डॉटर्स डे, बहुत ही खूबसूरत शब्द है | पर हमारे देश में जहाँ बेटियाँ गर्भ में मार दी जाती हों | उनके जन्म पर उदासी छा जाती हो | घर में भेदभाव होता हो …वहां डॉटर्स डे सिर्फ मनाने का त्यौहार नहीं है बल्कि संकल्प ले ने का दिन है कि हम अपनी बेटियों को समान अधिकार दिलवाएंगे |
डॉटर्स डे-जिनके जन्म पर थाली नहीं पीटी जाती
जानती हूँ,
आज डॉटर्स डे है
सब दे रहे है बेटियों को जन्म की बधाइयाँ ,
ऐसे में ,
एक बधाई तो तुम्हे भी बनती है
मेरी प्यारी बेटी,
ये जानते हुए भी क़ि तुम्हारे जन्म पर
नहीं पीटी गयीं थी थालियाँ ,
न ही मनी थी छठी या बरहीं,
सब के बीच घोषित कर दी गयी थी मैं,
पुत्री जन्म की अपराधिनी,
जिसने ध्यान नहीं रखा था,
चढ़ते -उतरते दिनों का,
खासकर चौदहवें दिन का,
कितना समझाया गया था,फिर भी…
सबके उदास लटके चेहरे,और कहे -अनकहे ताने
पड़ोसियों के व्यंग -बाण,
“सुना है पहलौटी कि लड़की होती है अशुभ”
के बीच दबे हुए मेरे प्रश्न
“क्या पहली बेटी के बाद दूसरी हो जाती है शुभ?”
जानती थी उत्तर,फिर भी…
जैसे जानती हूँ क़ि “दुर्गा आयी है,लक्ष्मी आयी है”
के बाहरी उद्घोष के बीच में
घर की चारदीवारी के अंदर,बड़ी ख़ूबसूरती से दबा दी जाती है
दोषी घोषित की गयी माँ की सिसकियाँ,
मेरी प्यारी बेटी,
ये जानते हुए भी क़ि तुम्हारे जन्म पर
नहीं पीटी गयीं थी थालियाँ ,
न ही मनी थी छठी या बरहीं,
सब के बीच घोषित कर दी गयी थी मैं,
पुत्री जन्म की अपराधिनी,
जिसने ध्यान नहीं रखा था,
चढ़ते -उतरते दिनों का,
खासकर चौदहवें दिन का,
कितना समझाया गया था,फिर भी…
सबके उदास लटके चेहरे,और कहे -अनकहे ताने
पड़ोसियों के व्यंग -बाण,
“सुना है पहलौटी कि लड़की होती है अशुभ”
के बीच दबे हुए मेरे प्रश्न
“क्या पहली बेटी के बाद दूसरी हो जाती है शुभ?”
जानती थी उत्तर,फिर भी…
जैसे जानती हूँ क़ि “दुर्गा आयी है,लक्ष्मी आयी है”
के बाहरी उद्घोष के बीच में
घर की चारदीवारी के अंदर,बड़ी ख़ूबसूरती से दबा दी जाती है
दोषी घोषित की गयी माँ की सिसकियाँ,
किससे शिकायत करती
सब अपने ही तो थे,
अपने ही तो हैं,फिर भी…
उस समय दबा कर उपेक्षा की वेदना को
मैं अकेली ही सही
खड़ी हुई थी तुम्हारे साथ,दी थी खुद को बधाई
तुम्हारे जन्म की
और तुम्हारी वजह से ही,
समझी हूँ दर्द नकारे जाने का
इसलिए
आज मैं खड़ी हूँ
उन लाखों बेटियों के साथ
जिनके जन्म पर थाली नहीं पीटी जाती
वंदना बाजपेयी
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