बच्चों को दुनिया में तभी लाएँ जब आप शारीरिक -मानसिक रूप से 21 साल का प्रोजेक्ट लेने के लिए तैयार हों — सद्गुरु
बच्चे दुनिया की सबसे खूबसूरत सौगात हैं | एक माता -पिता के तौर पर हम बच्चों को दुनिया में लाते हैं तो एक वादा भी होता है उसे जीवन की सारी खुशियाँ देंगे | शायद अपने हिसाब से अपने बच्चों के लिए हम ये करते भी हैं पर कभी उँगलियाँ अपनी ओर भी उठ जातीं हैं |शायद कभी कभी ये जरूरी भी होता है |
हम अपने बच्चों के दोषी हैं
हम अपने बच्चों के दोषी हैं,
हम लाते हैं उन्हें दुनिया में ,
उनकी इच्छा के विरुद्ध
क्योंकि हमें चाहिए उत्तराधिकारी,
अपने पैसों का, अपने नाम और उपनाम का भी,
हम नहीं तो कम से कम सुरक्षित रह जाए हमारा जेनिटिक कॉन्फ़िगयुरेशन
और शायद हम बचना चाहते हैं अपने ऊपर लगे बांझ या नामर्दी के तानों से,
और उनके दुनिया में आते ही जताने लगते हैं उन पर अधिकार,
गुड़िया रानी के झबले से, खाने में रोटी या डबलरोटी से,
उनके गाल नोचे जाने और हवा में उलार देने तक उनकी मर्जी के बिना
हम अपने पास रखते हैं दुलार का अधिकार ,
हम ही तो दौड़ाते हैं उन्हें जिंदगी की रैट रेस में,
दौड़ों,भागों पा लो वो सब कुछ,
कहीं हमारी नाक ना कट जाए पड़ोस की नीना , बिट्टू की मम्मी,ऑफिस के सहकर्मियों के आगे,
उनकी मर्जी के बिना झटके से उठा देते हैं उन्हें तकिया खींचकर
क्योंकि हम उनसे ज्यादा जानते हैं
इसीलिए तो खुद ही चुनना चाहते हैं
उनके सपने, उनका धर्म और उनका जीवन साथी भी
उनका विरोध संस्कारहीनता है
क्योंकि जिस जीव को हम अपनी इच्छा से दुनिया में लाए थे
उसे खिला-पिला कर अहसान किया है हमने
उन्हें समझना ही होगा हमारे त्यागों के पर्वत को
तभी तो जिस नौकरी के लिए दौड़ा दिया था हमने,
किसी विशेषाधिकार के तहत
जीवन की संध्या वेला में कोसते हैं उसे ही …
अब क्यों सुनेंगे हमारी,
उन्हें तो बस नौकरी प्यारी है .. अपना,नाम अपना पैसा
क्योंकि अब हमारी जरूरतें बदल गईं है
अब हमें पड़ोस की नीना और बिट्टू की मम्मी नहीं दिखतीं
अब दिखती है शर्मा जी की बहु,चुपचाप दिन भर सबकी सेवा करती है
राधेश्याम जी का लड़का,नकारा रहा पर अब देखो ,
कैसे अस्पताल लिए दौड़ता है..
और ये हमारे बच्चे ,संस्कारहीन, कुलक्षण
बैठे हैं देश -परदेश में
हमारा बुढ़ापा खराब किया
लगा देते हैं वही टैग
जो कभी न कभी हमें लगाना ही है
जीवन के उस पन में
जब सब कुछ हमारे हिसाब से ना हो रहा हो
सच, पीढ़ी दर पीढ़ी
हम बच्चों को दुनिया में लाते हैं
उनके लिए नहीं
अपने लिए
अपने क्रोमज़ोम के संरक्षण के लिए,अपने अधूरे रह गए सपनों के लिए , अपने बुढ़ापे के लिए
कहीं न कहीं
हम सब अपने बच्चों के दोषी हैं |
वंदना बाजपेयी
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सही कहा। बच्चों को अपनी इच्छाओं के तले नहीं दबाना चाहिए।