जेल के पन्नों से – अंतिम इच्छा

रिश्ते भी कितने अजीब होते हैं | कभी अनजान अपने हो जाते हैं तो अपने अनजान |वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह जी के धारावाहिक “जेल के पन्नों से” सत्य पर आधारित  शृंखला” की ये कहानी एक ऐसे ही भाई की कहानी है जो अपनी बहन के लिए हत्या बना |जेल गया | अंतिम समय में टी . बी हो गया | साक्षात मृत्यु सामने थी |ऐसे समय में उस की एक ही अंतिम इच्छा थी |क्या वो पूरी हुई | आइए जाने …..

अंतिम इच्छा

उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जेल में टी बी पीड़ित कैदी रखे जाते हैं।आजादी से पहले जेल परिसर में एक कुआं था,जिसके पानी के सेवन से टी बी रोग  के कीटाणु कम हो जाते थे। इसीलिए टी बी के कैदी यहां रखे जाते।१९४७मेंअंग्रेजों ने भारत छोड़ा,इस कुएं को पटवा गये ।साथ तो नहीं ले जा सकते थे।विजेता की हताशा या मानवता का ह्रास।

पर वह राजयक्ष्मा से पीड़ित कैदियों की जेल रही है। अब दवाओं और स्वास्थ्यवर्धक आहार से इलाज किया जाता है।

जब भी डाक्टर निरीक्षण पर जाते, सारे कैदी अपने बिस्तर पर बैठ जाते, परीक्षण के बाद दवा और डायट लिखी जाती।

एक कैदी निहायत बदतमीजी से बेड पर लेटा रहा। कर्मचारी ने उठने को कहा।

बेहद नाराजगी से बोला- हम बागी हैं। किसी की नहीं सुनते।

खींच कर वार्ड ब्वाय ने उसे बैठाया।

परीक्षण बाद दवा और पथ्य लिखा।

आहार में अंडा और मांस देखते ही बिफर उठा-ऐ डाक्टर,हम ब्राह्मण है,मांसमछली नहीं छूते।

डाक्टर-पर कर्म तो ब्राह्मणों वाले नहीं किया।

बाकी कैदी आश्चर्य से ताक रहे थे।कितना जिद्दी है,हम लोगों को दे देता।

खैर डाक्टर ने फल दूध बढ़ा दिया

‘पंडित जी, अच्छी तरह इलाज करवाओ , जल्दी ठीक हो जाओगे।

वह गुर्राया – ठीक किसको होना है

उसके व्यवहार को अन्देखा कर डाक्टर आगे बढ़ गये।उसके दोनों फेफड़े बुरीतरह संक्रमित थे। ज्यादा समय नहीं बचा था।

बाद में जेलर से पता चला कि वह दुर्दांत डाकू था। हत्या तो ऐसे करता  जैसे मक्खी मच्छर मार रहा है। फांसी और आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। महात्मा गांधी की जन्म शती के उपलक्ष्य में फांसी की सजा माफ कर दीगई।

सांस लेने में दिक्कत हो रही थी,अक्सर बदतमीजी करता।

जेल में हर वर्ष उच्च अधिकारियों की बैठक होती। गंभीर मरीजों को छोड़ने केलिए शासन को लिखा जाता।सारे कैदी कान लगाये रहते।

शुकुल बड़बड़ाता-सब साले घूंस खोर हैं।जिसके घर वाले मुठ्ठी गरम करदेंगे,उसी का नाम जायेगा। चारों ओर भ्रष्टाचार की गंगा बह रही है।

पड़ोसी कैदी ने कहा- यह डाक्टर ऐसा नहीं है।

उसे तो सारे ज़माने से चिढ़ थी।

मीटिंग के दिन पता चला कि शुकुल का नाम सबसे ऊपर है।

पुलिस कप्तान बोले-यह बहुत क्रूर हत्यारा है। गाजर मूली की तरह आदमीकाटता है।

डाक्टर ने दलील दी-यह तबकी बात है।अब तो वह सूजा(मोटी सुई) नहीं उठासकता। उसके पास ज्यादा समय नहीं है। अंतिम पल अपने परिवार के साथ रहलेगा।

सारे अधिकारी सहमत हुए,लिहाजा उसकी रिहाई के लिए अनुमोदन पत्र शासनको भेजा गया।शुकुल को सारी बात पता चली।

अगले दिन जब डाक्टर राउन्ड पर आते,उसने खड़े होकर प्रणाम किया।

डाक्टर ने कहा -अब तुम अपने परिवार के पास जल्दी चले जाओगे।

वह कहना चाहता था कि- मेरे लिए क्यों इतना किया,पर गला रूंध गया।आपपहले क्यों नहीं मेरे जीवन में आये।

डाक्टर ने कुर्सी खींची बेड के पास बैठ गया।- अब तुमने प्रायश्चित कर लियाहै।कोई बात हो तो कह सकते हो।

शुकुल ने अपनी कहानी शुरू की।साहब,मेरे माता पिता बचपन में ही हमें अनाथकर गये। मैं और बड़ी बहन चाचा के पास पले।सारी जमीन जायदाद पर उन्हींका कब्जा था।चाचा के सात बेटे थे।जरा बड़े होते ही मुझे खेतों में भेज दियागया।चाचा के बेटे पढ़ने जाते।बहन घर के सारे काम करती।हम दोनों को बचाखुचा खाना मिलता।घर में गाय भैंस थी,दूध घी चचेरे भाइयों के हिस्से में,छाछमुझे दिया जाता।

साहब, गांवों की परंपरा है कि पुरुष बाहर तथा स्त्रियां घर के अंदर सोती है।

मैंने एक दिन चचेरे भाई को बहन से बदतमीजी करते देख लिया। वह हिरणीजैसी थर थर कांप रही थी, भेड़िया घात लगाए आगे बढ़ रहा था कि मैं पहुंचगया। मुझे देख कर भेड़िया दुम दबाकर भाग गया।

साहब मुझे कभी भरपूर भोजन नहीं मिला,पर खेतों में फावड़ा चला कर शरीर मेंबल था।

मैंने चुपचाप फरसे पर सान चढ़वायी।सान चढ़ाते हुए लुहार ने पूछा-अरे महाराजक्या परशुरामी करना है।

रात को जब सब गहरी नींद में थे, मैंने फरसे के प्रहार से चाचा और चचेरे भाइयोंके सिर को धड़ से अलग कर दिया।आक्रोश इतना ज्यादा था कि किसीकीआवाज भी नहीं निकली।

पौ फटने वाली थी, मैं चुपचाप बैठा था।बहन बाहर आई।उसने मुझे भाग जानेको कहा। भागता रहा। एक डाकूओं के गिरोह में शामिल हो गया। हत्या करतेहुए मेरे हाथ नहीं कांपते थे। धीरे धीरे गिरोह का सरदार बन गया।

किसी से पता चला कि चाची भी अपने पति और बेटों के दुख के कारण मर गई।मैंने रिश्तेदार की मदद से बहन का विवाह करवा दिया।बहन और जीजा को घरखेती की जिम्मेदारी सौंपी। स्वयं डकैती डालता।दूर दराज से बहन और उसकेबच्चों को देख लेता।अब जीवन में और क्या बचा था।

वह बुरी तरह हांफने लगा।

उसे दवा देकर लिटा दिया गया।

डाक्टर ने तसल्ली दी-अब तुम छिपकर नहीं सबके साथ रहोगे।

राज काज में समय लगता ही है।उसकी हालत बिगड़ती जा रही थी।

आंखें डूब रही थी। उसने बहन से मिलने की इच्छा जताई। घर के पते पर पत्रडाला गया।उस समय मोबाइल नहीं आये थे।वायर लेस से थाने को सूचना दीगई,पर कोई नहीं आया। प्रतीक्षा की घड़ी बढ़ रही थी,और सांस उखड़ रही थी।

सुबह जब डाक्टर राउन्ड पर आये, उसने अपने कांपते हाथों से डाक्टर का हाथपकड़ लिया-मुझे छोड़कर मत जाइए,वरना यमदूत मुझे ले जायेंगे।

निरुपाय डाक्टर उसके पास बैठ गया।वह बड़बड़ाने लगा -सब मुझे छोड़ करचले गए।अम्मा बाबू। यहां तक कि दीदी भी भूल गयी। आप मत जाइए।

डाक्टर जरा सा उठने की कोशिश करते,वह किसी कोमल शिशु की भांति हाथपकड़ लेता जो मां को नहीं छोड़ता।

‘मसीहा के रहने से इरादा मौत का बदला जाएगा‘

लंच का समय हो गया था, पर उसने हाथ नहीं छोड़ा।

पूरा जेल स्तब्ध,बार बार वायरलेस भेजा जा रहा था।

सुबह से शाम हो गई। दूसरे डॉ पर मरीज की जिम्मेदारी देकर केवल चाय पीनेघर आये।कप मुंह से लगाया ही था,टूट गया।

कदाचित यमदूत भी मसीहा के सामने प्राण खींचने का साहस नहीं जुटा सके।जब कोई संसार छोड़ता है, आसपास कुछ अपने आंसू बहाते हैं, कुछ अभागे ऐसेहोते हैं,जिनके पास अपने नहीं होते।

सूचना देने पर भी परिवार का कोई व्यक्ति नहीं आया, लिहाजा जेल प्रशासन नेअंतिम संस्कार कर दिया।

पन्द्रह दिन बाद उसके बहनोई आये।जेलर के समक्ष न पहुंच सकने के बहानेबताया।

जेलर बड़ी मुश्किल से अपने जज्बातों पर काबू रख सके।जाने का इशाराकिया।

‘साहब उसके आखिरी क्षणों में कौन उसके पास था।‘

‘क्यों डाक्टर साहब थे।‘

‘उनसे मिलना है।‘

‘क्यों मिलना चाहते हो।‘जेलर ने पूछा।

जीजा ने रिरियाते हुए कहा-‘शायद साहब को बताया हो कि माल कहां छिपा रखा है।‘

लंबे तड़गें जेलर साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। बड़ी मुश्किलसे अपने को रोका-‘ निकल जा मेरी नजरों से।जब वह अपनी बहन को देखेने केलिए तड़प रहा था, नहीं आया। डाक्टर साहब तो हाथ उठा देंगे।‘

जेलर हतप्रभ थे मानवता का उत्थान और पतन देखकर।

आशा सिंह

आशा सिंह

आपको कहानी “जेल के पन्नों से – अंतिम इच्छा”कैसी लगी |
अपने विचारों से हमें अवश्य अवगत कराये |अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो साइट को सबस्क्राइब करें व हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |

4 thoughts on “जेल के पन्नों से – अंतिम इच्छा”

  1. निस्तब्ध कर दिया ।कुछ लोगों के लिए दौलत के आगे रिश्तों की कद्र नहीं होती।सुन्दर सृजन ।

    Reply

Leave a Comment