क्या हम मुताह कर लें?

 

मुस्लिम धर्म में मुताह निकाह की परंपरा है | ये एक तरह से कान्ट्रैक्ट मैरिज है | ये कॉन्ट्रैक्ट एक दिन का भी हो सकता है, कुछ महीनों का और कुछ घंटों का भी | इसमें मेहर पहले ही दे दी जाती  है | किसी समय ये एक स्त्री को संरक्षण देने के लिए था पर आज इसका स्वरूप सही नहीं कहा जयाया सकता | क्योंकि वेश्यावृत्ति की इजाजत नहीं है इसलिए ये उस पर एक मोहर लगाने की तरह है | निकाह से पहले ही बता दिया जाता है कि ये मुताह निकाह है | इसलिए कॉन्ट्रैक्ट खत्म होते ही दोनों अलग हो जाते हैं | इस निकाह से उत्पन्न बच्चों के कानूनी अधिकार नहीं होते |  पुरुष कितने भी मुताह कर सकते हैं पर स्त्री को एक मुताह के बाद दूसरे की इजात तभी है जब वो इददत की अवधि पूरी कर ले | ये चार महीने दस दिन का मर्द की छाया से बचकर  ऐकांतवास का समय होता है |

ये तो रही मुताह निकाह की बात |पर आज हम वरिष्ठ लेखिका आशा सिंह जी की सच्चे किस्सों पर आधारित शृंखला “जेल के पन्नों से” से एक ऐसी कहानी ले कर आए हैंजो .. | सवाल ये उठता है कि आखिर वो ऐसा क्यों करती है ? हमने वाल्मीकि की कथा पढ़ी है | जहाँ उनके गुनाह में परिवार का कोई सदस्य शामिल नहीं होता | फिर भी सब वाल्मीकि नहीं होते |गुनाह की तरफ भागते हैं | पैसा , प्रतिष्ठा, बच्चों की परवरिश , परिवार की जरूरतें | वाल्मीकि होने के लिए जरूरी है समय रहते गुनाह का अहसास |

 

क्या हम मुताह कर लें?

 

 

जेल में सबसे भयानक दिन,जब किसी को फांसी दी जाती है। यद्यपि    जघन्य अपराध के लिए ही फांसी की सजा सुनाई जाती है। न्यायाधीश भी सजा सुनाकर कलम तोड़ देते हैं

उस दिन जेल में अजीब सन्नाटा छा जाता है।जब जब घंटा बजता,कलेजा मुंहको आ जाता,बस ज़िन्दगी को इतना   समय शेष है।उस समय उसके जुर्म  को भूलकर बस पल पल खींचती मौत की बात होती।

कैदी की अंतिम इच्छा पूछी जाती।

शमशाद को हत्यायों और डकैती के मामले में फांसी  की सजा मिली थी।

उसने अपनी पत्नी शबनम से मिलना चाहा | मुलाकात के समय जेलर उपस्थित थे।सींखचे दोनों के बीच में,बीबी बराबर सुबकती जा रही थी। मन बार बार चीत्कार कर रहा था |काश, जो सब वो देख रही है वो बस एक सपना होता|

कितनी बार  कहा  था “हराम का पैसा घर मत लाओ |रूखी -सूखी में भी जन्नत है |” पर शमशाद समझा ही  नहीं | शौहर से खोने से कहीं ज्यादा दुख उसे इस बात का था कि बच्चे एक हत्यारे के बच्चे के ठप्पे के साथ कैसे पलेंगे | पर ऊपर से कुछ कहा नहीं |

शमशाद भी अपने परिवार से बहुत प्यार करता था |उसे भी खौफ था कि से  बाद उसके बच्चे कैसे पलेंगे |इसीलिए तो हर तरीके से कमाया था धन उसने | न डकैती को गलत समझा, न हत्या को  और नया ही दारू में उड़ाने को |

सिसकियाँ सुन कर उसका दिल भर आया | अंतिम समय बच्चों के प्रति खुद को आश्वस्त करने के लिए समझाने लगा – रोओ नहीं, कुछ माल अम्मा की चारपाई के नीचे गड़ा है, थोड़ा भैंस की नाद के नीचे। कुछ पै सा लाला के पास जमा है, हर महीने खर्च को लेती रहना बच्चों की परवरिश अच्छे ढंग से करना। खूब पढ़ाना लिखाना। हमारी तरह  गलत सोहबत में न पड़ें।पूछें तो कहना कि अब्बा दुबई कमाने गये है।

सिसकियां तेज हो गई।कैसा मिलन जो हमेशा बिछुड़ने के लिए था।

शमशाद तसल्ली देते हुए बोला – अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है।बैरक में लौटने ही वाला था,बीबी ने कहा- एक बात पूछूं ?

हां हां बोलो- शमशाद ने कहा।

‘क्या हम मुताह कर लें ?‘

शमशाद के चेहरे  का बल्ब फ्यूज हो गया।अपने बीबी बच्चों से बेइंतहा प्यार करने वाला फांसी से पहले टूट कर मर गया।

‘कर लेना, और भारी कदमों से बैरक की ओर चल दिया। कुछ अभागे   ऐसे भी होते हैं जिन्हें मर कर भी चैन  नहीं मिलता।

जेलर जो बड़ी मुश्किल से अपने गुस्से को दबाये थे,बम्ब की तरह फट   पड़े-बेवकूफ औरत,वह तो कुछ देर बाद दुनिया छोड़ कर जाने वाला था।कम  से कम उसे सुकून से जाने देती।तूने तो पहले ही उसकी जान लें ली।मरने के  बाद कुछ भी करती, क्या वह देखने आता।

एक निराश, अजीब सी नजर से उसने  उसने जेलर की ओर देखा |

फिर, पैसा..  डकैती,हत्या ,मुताह .. बड़बड़ाते हुए शबनम डबडबाई आँखों के साथ जेल से बाहर निकलने लगी |

आशा सिंह

asha singh

इस प्रथा पर डिटेल जानकारी के लिए पढ़ें –मुताह

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3 thoughts on “क्या हम मुताह कर लें?”

  1. जेलर ने कहा “मरने से पहले ही मार दिया!”
    औरत रोज़ मरती है,उसका कोई अफसोस नहीं, हिसाब नहीं!
    😥😥 शानदार कहानी

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