गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?

                                 गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?
एक बार की बात है एक संत अपने शिष्यों के साथ बाग़ में पुष्प चुनने गए | बाग़ का वातावरण बहुत शांत था |ठंडी -ठंडी हवा चल रही थी | सुन्दर फूल खिले  हुए थे | हवा भी उन पुष्पों को छू कर सुवासित हो रही थी | कुछ लोग टहल रहे थे , कुछ व्यायाम कर रहे थे और कुछ घास पर बैठ कर ग्रुप बना कर बातें कर रहे थे | शिष्यों को बहुत अच्छा लगा , वे भी राम नाम लेते हुए पुष्प चुनने लगे |

                      तभी एक ग्रुप में बैठे दो व्यक्ति  किसी बात पर भिड  गए | वो जोर – जोर से चिल्ला कर अपनी बात सही सिद्ध करने लगे | शिष्यों व् गुरूजी को उनका चिल्लाना अच्छा नहीं लगा |
संत ने शिष्यों से पूंछा क्या तुम में से कोई बता सकता है कि गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?
सभी शिष्यों ने अपने हिसाब से उत्तर दिया, जैसे लोग आपा  खो बैठते हैं , यही तरीका उनके संस्कार में है , क्रोध में स्वर पर ध्यान नहीं जाता आदि – आदि | गुरूजी किसी उत्तर से संतुष्ट नहीं हुए , तब शिष्यों ने कहा ,  ” गुरुदेव आप ही बता दीजिये | कि गुस्से में चिल्लाते क्यों हैं ?
गुरूजी बोले , ” जब कोई व्यक्ति हमारे पास होता है तो हम सामान्य आवाज़ में ही बात करते हैं पर जब वह व्यक्ति दूर चला जाता है तो हमें जोर से बोलना पड़ता है , कोई व्यक्ति बहुत दूर हो और उसे बुलाना हो तो चिल्ला कर उसका नाम पुकारना पड़ता है |गुस्से में भी यही बात होती है | जब दो व्यक्ति आपस में गुस्सा कर रहे होते हैं तो उनके दिल बहुत दूर होते हैं | भले ही वो शारीरिक दृष्टि से नज़दीक हों पर दिलों की यह दूरी उन्हें चिल्ला कर बोलने पर विवश करती है क्योंकि सामान्य आवाज़ तो वो सुन ही नहीं सकते | 
     इसके विपरीत प्रेम जैसे – जैसे गहराता जाता है दो व्यक्ति आपस में धीमे – धीमे बात करने लगते हैं , फिर फुसफुसा कर बात करने लगते हैं और अंत में उन्हें शब्दों की आवश्यकता ही नहीं रहती वो मौन पढने लगते हैं | 
संसार में हम सब को दिलों के बीच की ये दूरी मिटाने का प्रयास करना चाहिए ताकि चिल्लना न पड़े बल्कि सब एक दूसरे के मन की बात खुद ही समझ सके | 
टीम ABC
प्रेरक कथाओं से 


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