मुझे मिला वो, मेरा नसीब है


मुझे मिला वो, मेरा नसीब है



मुझे मिला वो, मेरा नसीब है 
वही सुकून जहां वो करीब है 
मैं और क्या भला चाहूंगी 
जब प्यार से उसके भर गई ।

उसने जो कहा मैंने मान ली 
नज़र की हरकतें पहचान ली 
जिस राह उसके कदम बढ़े 
बनी फूल और मैं बिखर गई ।

वह मोड़ जहां टकराए हम
बने जिस्म, जिस्म के साये हम 
मेरा वक्त आगे बढ़ गया 
पर मैं वहीं पर ठहर गई ।

जीवन उसी पर वार के 
मैं खुश हूं खुद को हार के
उसने देखा जैसे प्यार से 
मेरी रूह तक निखर गई।

आ जाए तो उसे प्यार दूं 
मेरे यार सदका उतार लूं
डर है नजर लग जाएगी 
गर उसपर कोई नजर गई ।।  


साधना सिंह 

लेखिका -साधना सिंह


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