“ अटूट बंधन “ राष्ट्रीय हिंदी मासिक पत्रिका अपने एक वर्ष का उत्साह व् उपलब्धियों से भरा सफ़र पूरा कर के दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रही है | पहला वर्ष चुनौतियों और उसका सामना करके लोकप्रियता का परचम लहराने की अनेकानेक खट्टी –मीठी यादों के साथ स्मृति पटल पटल पर सदैव अंकित रहेगा | हम पहले वर्ष के दरवाजे से निकल कर दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं | एक नया उत्साह , नयी उमंग साथ ही नयी चुनौतियाँ , नए संघर्ष पर उन पर जीत हासिल करने का वही हौसला वही जूनून | पहले वर्ष की समाप्ति पर अटूट बंधन लोकप्रियता के जिस पायदान पर खड़ी है वो किसी नयी पत्रिका के लिए अभूतपूर्व है | मेरी एक सहेली ने पत्रिका के लोकप्रियता के बढ़ते ग्राफ पर खुश होकर मुझसे कहा, “ ऐसा लगता है जैसे कोई बच्चा खड़ा होना सीखते ही दौड़ने लगे | ये किसी चमत्कार से कम नहीं है | पर ये चमत्कार संभव हो सका पत्रिका की विषय वस्तु , “ अटूट बंधन ग्रुप “ के एक जुट प्रयास और पाठकों के स्नेह , आशीर्वाद की वजह से | पाठकों ने जिस प्रकार पत्रिका हाथों हाथ ले कर सर माथे पर बिठाया उसके लिए मैं अटूट बंधन ग्रुप की तरफ से सभी पाठकों का ह्रदय से शुक्रिया अदा करती हूँ |
वैसे शुक्रिया एक
बहुत छोटा शब्द है पर उसमें स्नेह की कृतज्ञता की , आदर की असीमित भावनाएं भरी
होती हैं | अभी कुछ दिन पहले की
बात है माँ के घर जाना हुआ | अल सुबह घर में स्थापित छोटे से मंदिर से माँ के चिर –परिचित भजन की आवाजे सुनाई देने लगी |
बहुत छोटा शब्द है पर उसमें स्नेह की कृतज्ञता की , आदर की असीमित भावनाएं भरी
होती हैं | अभी कुछ दिन पहले की
बात है माँ के घर जाना हुआ | अल सुबह घर में स्थापित छोटे से मंदिर से माँ के चिर –परिचित भजन की आवाजे सुनाई देने लगी |
“ मुझे दाता तूने बहुत कुछ दिया है
मैं बचपन की अंगुली थाम मंदिर में
जा कर हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी | माँ पूरी
श्रद्धा और तन्मयता के साथ भजन गाने
में लींन थी और मैं माँ में लींन हो गयी | जीवन के सत्तर दशक पार कर चुकी ,
अनेकों सुख , दुःख झेल चुकी माँ के झुर्रीदार चेहरे में चमक और गज़ब की शांति थी जो कह रही थी , “ जब
आवे संतोष धन सब धन धूरी सामान “ | कहाँ से आता है ये संतोष धन | क्या इस भजन से
?या शुक्रिया कहने से ? शायद …और मैं
बचपन की स्मृतियों में चली गयी | जब माँ हमें समझाया करती थी , सुबह उठते ही सबसे
पहले ईश्वर का शुक्रिया अदा किया करो |
ईश्वर की कृपा से नया दिन देखने का अवसर मिला है | अपनी बात कहने का अवसर मिला है
, दूसरों की बातें सुनने का अवसर मिला है , बुरे कर्मों का प्रायश्चित करने और अच्छे कर्म करने
का एक और अवसर मिला है | कितने लोग हैं जो अगली सुबह नहीं देख पाते | कितनी बातें
हैं जो सदा के लिए अनकही ,अनसुनी रह जाती हैं | हम माँ की आज्ञा पालन करने के लिए आदतन शुक्रिया कहने लगे , इस बात से अनभिज्ञ की
एक छोटा सा शुक्रिया सुबह- सुबह कितना
सकारात्मक वातावरण तैयार करता है | कितने सकारात्मक विचारों को जन्म देता है |
जा कर हाथ जोड़ कर खड़ी हो गयी | माँ पूरी
श्रद्धा और तन्मयता के साथ भजन गाने
में लींन थी और मैं माँ में लींन हो गयी | जीवन के सत्तर दशक पार कर चुकी ,
अनेकों सुख , दुःख झेल चुकी माँ के झुर्रीदार चेहरे में चमक और गज़ब की शांति थी जो कह रही थी , “ जब
आवे संतोष धन सब धन धूरी सामान “ | कहाँ से आता है ये संतोष धन | क्या इस भजन से
?या शुक्रिया कहने से ? शायद …और मैं
बचपन की स्मृतियों में चली गयी | जब माँ हमें समझाया करती थी , सुबह उठते ही सबसे
पहले ईश्वर का शुक्रिया अदा किया करो |
ईश्वर की कृपा से नया दिन देखने का अवसर मिला है | अपनी बात कहने का अवसर मिला है
, दूसरों की बातें सुनने का अवसर मिला है , बुरे कर्मों का प्रायश्चित करने और अच्छे कर्म करने
का एक और अवसर मिला है | कितने लोग हैं जो अगली सुबह नहीं देख पाते | कितनी बातें
हैं जो सदा के लिए अनकही ,अनसुनी रह जाती हैं | हम माँ की आज्ञा पालन करने के लिए आदतन शुक्रिया कहने लगे , इस बात से अनभिज्ञ की
एक छोटा सा शुक्रिया सुबह- सुबह कितना
सकारात्मक वातावरण तैयार करता है | कितने सकारात्मक विचारों को जन्म देता है |
बचपन के गलियारों में घुमते हुए
मुझे अपने बड़े फूफा जी की स्मृति हो आई | बड़े फूफाजी डाइनिंग टेबल छोड़ कर पूरे देशी तरीके से जमीन पर चौकी लगा कर भोजन
करते थे | ख़ास बात यह थी वो भोजन करने से पहले थाली छूकर कहा करते “ अन्न उगाने वाले का भला , बनाने
वाले का भला , परोसने वाले का भला | हम उनकी बात को गौर से सुनते और सोचते वह ऐसा
क्यों कहते हैं | एक दिन हमारे पूंछने पर
उन्होंने राज़ खोला , यह मंत्र है इसीकी
वजह से स्वस्थ हूँ , दो पैसे की दवा नहीं
खानी पड़ती | सच ही होगा , तभी तो उन्होंने बिना दवा पर निर्भर हुए स्वस्थ तन और मन
के साथ लम्बी आयु के बाद अपनी इह लीला पूरी कर परलोक गमन किया | शुक्रिया
, धन्यवाद एक बहुत छोटा सा शब्द है पर बहुत गहरी भावनायों से भरा हुआ | वो भावनाएं
जो ह्रदय से निकलती हैं | जो प्रेम और कृतज्ञता से भरी होती हैं | जो आम चलन में भावना
हीन कहे जाने वाले थैंक्स से बहुत भिन्न होता हैं |
मुझे अपने बड़े फूफा जी की स्मृति हो आई | बड़े फूफाजी डाइनिंग टेबल छोड़ कर पूरे देशी तरीके से जमीन पर चौकी लगा कर भोजन
करते थे | ख़ास बात यह थी वो भोजन करने से पहले थाली छूकर कहा करते “ अन्न उगाने वाले का भला , बनाने
वाले का भला , परोसने वाले का भला | हम उनकी बात को गौर से सुनते और सोचते वह ऐसा
क्यों कहते हैं | एक दिन हमारे पूंछने पर
उन्होंने राज़ खोला , यह मंत्र है इसीकी
वजह से स्वस्थ हूँ , दो पैसे की दवा नहीं
खानी पड़ती | सच ही होगा , तभी तो उन्होंने बिना दवा पर निर्भर हुए स्वस्थ तन और मन
के साथ लम्बी आयु के बाद अपनी इह लीला पूरी कर परलोक गमन किया | शुक्रिया
, धन्यवाद एक बहुत छोटा सा शब्द है पर बहुत गहरी भावनायों से भरा हुआ | वो भावनाएं
जो ह्रदय से निकलती हैं | जो प्रेम और कृतज्ञता से भरी होती हैं | जो आम चलन में भावना
हीन कहे जाने वाले थैंक्स से बहुत भिन्न होता हैं |
ये भावनाएं ही तो हैं जो हमें पशु से ऊपर उठाकर
मनुष्य बनाती हैं |रिश्तों की डोर में बांधती हैं , उन्हें मजबूत बनाती हैं और
जीवन को सार्थक करती हैं | मानव तो क्या
भगवान् भी भाव के भूखे हैं | एक
पौराणिक कथा हैं | श्रीकृष्ण की परम भक्त मीरा
बाई कृष्ण प्रेम में इतना डूबी रहती की
सुबह उठते ही उन्हें सबसे पहले यह चिंता
सताती की उसके आराध्य भूखे न रह जाए |
इसलिए बिना स्नान किये प्रभु को नैवेध अर्पित करती | जब आस –पास वालों को पता चला
तो उन्होंने समझाने का प्रयास किया , ईश्वर तो तुम्हारे आराध्य हैं , सबके रचियता
हैं उन्हें बिना स्नान किये कुछ खिलाना गलत है | मीरा बाई डर गयी, अपराध बोध हुआ | अगले दिन से श्री कृष्ण के स्थान पर उन्हें
स्नान की चिंता सताने लगी | वह स्नान कर विधिवत नैवेध अर्पित करने लगी | तीन दिन
बाद स्वप्न में श्री कृष्ण दिखाई दिए | उन्होंने मीरा बाई से कहा , मैं तीन दिन से
भूखा हूँ ,कुछ खिलाओ | मीरा बाई बोली , प्रभु ! मैं तो रोज नैवेध अर्पित करती हूँ
| प्रभु मुस्कुरा कर बोले , नहीं मीरा पहले मैं तुम्हारे स्मरण में रहता था तो उस
भोजन में भाव थे अब स्नान और सफाई की चिंता में तुम्हारे वो भाव खो गए हैं | मैं
अन्न ग्रहण नहीं करता भाव ग्रहण करता हूँ | इसलिए तीन दिन से मैं भूखा हूँ | यह
मात्र एक किवदंती हो सकती है जिसका उद्देश्य मनुष्य को भावनाओं की श्रेष्ठता
सिखाना है |
मनुष्य बनाती हैं |रिश्तों की डोर में बांधती हैं , उन्हें मजबूत बनाती हैं और
जीवन को सार्थक करती हैं | मानव तो क्या
भगवान् भी भाव के भूखे हैं | एक
पौराणिक कथा हैं | श्रीकृष्ण की परम भक्त मीरा
बाई कृष्ण प्रेम में इतना डूबी रहती की
सुबह उठते ही उन्हें सबसे पहले यह चिंता
सताती की उसके आराध्य भूखे न रह जाए |
इसलिए बिना स्नान किये प्रभु को नैवेध अर्पित करती | जब आस –पास वालों को पता चला
तो उन्होंने समझाने का प्रयास किया , ईश्वर तो तुम्हारे आराध्य हैं , सबके रचियता
हैं उन्हें बिना स्नान किये कुछ खिलाना गलत है | मीरा बाई डर गयी, अपराध बोध हुआ | अगले दिन से श्री कृष्ण के स्थान पर उन्हें
स्नान की चिंता सताने लगी | वह स्नान कर विधिवत नैवेध अर्पित करने लगी | तीन दिन
बाद स्वप्न में श्री कृष्ण दिखाई दिए | उन्होंने मीरा बाई से कहा , मैं तीन दिन से
भूखा हूँ ,कुछ खिलाओ | मीरा बाई बोली , प्रभु ! मैं तो रोज नैवेध अर्पित करती हूँ
| प्रभु मुस्कुरा कर बोले , नहीं मीरा पहले मैं तुम्हारे स्मरण में रहता था तो उस
भोजन में भाव थे अब स्नान और सफाई की चिंता में तुम्हारे वो भाव खो गए हैं | मैं
अन्न ग्रहण नहीं करता भाव ग्रहण करता हूँ | इसलिए तीन दिन से मैं भूखा हूँ | यह
मात्र एक किवदंती हो सकती है जिसका उद्देश्य मनुष्य को भावनाओं की श्रेष्ठता
सिखाना है |
वस्तुतः भावनाएं आत्मा हैं और
विचार शरीर | विज्ञान कहता है मानव मष्तिष्क में प्रतिदिन तकरीबन ६०,००० विचार आते
हैं | चाहे अनचाहे | क्यों इतना सोचता है मनुष्य ? क्या इसके पीछे कोई रीजन या लाजिक है | कहने वाले कहते हैं कि ईश्वर ने एक कोशकीय जीव से ले… विशालकाय व्हेल , भयानक
शेर , भावनाओं से भरा मानव , पेड़ , फूल पत्ती कोई भी चीज बेकार नहीं बनायीं है |
तो फिर इतने सारे विचार क्यों बना दिए | क्या हमें परेशान करने के लिए ? नहीं ….
विज्ञान की एक शाखा विचारों पर प्रयोग
करने में लगी है | सिद्ध किया जा रहा है , ब्रह्मांड में हर कोई एक दूसरे से
कनेक्टेड हैं | सूरज चाँद , सितारे , मनुष्य , पशु जीव जंतु और परिस्तिथियाँ किसी का अलग से अस्तित्व नहीं है सब आपस में
जुड़े हैं , विचारों के माध्यम से | विचारों में मास या द्रव्यमान होता है | और
आइन्स्टीन के फार्मूले के अनुसार
द्रव्यमान है तो ऊर्जा भी होगी | हर विचार उर्जा का एक नन्हा सा स्फुर्लिंग है |
जिन्होंने भी भौतकी पढ़ी है वो जानते
हैं उर्जा न कभी बनायी जा सकती है , न मिटाई जा सकती है
बस रूपांतरित होती है …एक रूप से दुसरे रूप में
| वैचारिक उर्जा केवल दो रूपों में भ्रमण करती है … सकारात्मक और
नकारात्मक | जब हम सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण होते हैं तो सकारत्मक लोगों व्
परिस्तिथियों को अपनी तरफ खींचते हैं व् जब नकारात्मक विचारों से भरे होते हैं तो नकारात्मक
परिस्तिथियों को अपनी तरफ खींचते हैं |
विचार शरीर | विज्ञान कहता है मानव मष्तिष्क में प्रतिदिन तकरीबन ६०,००० विचार आते
हैं | चाहे अनचाहे | क्यों इतना सोचता है मनुष्य ? क्या इसके पीछे कोई रीजन या लाजिक है | कहने वाले कहते हैं कि ईश्वर ने एक कोशकीय जीव से ले… विशालकाय व्हेल , भयानक
शेर , भावनाओं से भरा मानव , पेड़ , फूल पत्ती कोई भी चीज बेकार नहीं बनायीं है |
तो फिर इतने सारे विचार क्यों बना दिए | क्या हमें परेशान करने के लिए ? नहीं ….
विज्ञान की एक शाखा विचारों पर प्रयोग
करने में लगी है | सिद्ध किया जा रहा है , ब्रह्मांड में हर कोई एक दूसरे से
कनेक्टेड हैं | सूरज चाँद , सितारे , मनुष्य , पशु जीव जंतु और परिस्तिथियाँ किसी का अलग से अस्तित्व नहीं है सब आपस में
जुड़े हैं , विचारों के माध्यम से | विचारों में मास या द्रव्यमान होता है | और
आइन्स्टीन के फार्मूले के अनुसार
द्रव्यमान है तो ऊर्जा भी होगी | हर विचार उर्जा का एक नन्हा सा स्फुर्लिंग है |
जिन्होंने भी भौतकी पढ़ी है वो जानते
हैं उर्जा न कभी बनायी जा सकती है , न मिटाई जा सकती है
बस रूपांतरित होती है …एक रूप से दुसरे रूप में
| वैचारिक उर्जा केवल दो रूपों में भ्रमण करती है … सकारात्मक और
नकारात्मक | जब हम सकारात्मक विचारों से परिपूर्ण होते हैं तो सकारत्मक लोगों व्
परिस्तिथियों को अपनी तरफ खींचते हैं व् जब नकारात्मक विचारों से भरे होते हैं तो नकारात्मक
परिस्तिथियों को अपनी तरफ खींचते हैं |
भगवद
गीता के अनुसार निष्काम कर्म पर जोर दिया गया है | अर्थात कर्म से किसी भाव को मत
जोड़ों | अध्यात्मिक गुरु कहते हैं अध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हो तो विचारों से
ऊपर उठ कर अविचार की स्तिथि में आओ | क्या आप ने सोचा है क्यों ? क्योंकि वो जानते
थे सकारात्मक /नकारात्मक विचारो की ऊर्जा
काम करती है बिलकुल गुत्वाकर्षण के नियमों
की तरह | विचार आना और उससे सम्बंधित परिस्तिथियों का खिंचना एक नियम की तरह काम करता है | जैसे किसी राकेट
को पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल तोड़ कर अन्तरिक्ष में जाने के लिए अतिशय उर्जा
लगानी पड़ती है उसी प्रकार विचारों से अविचार
की स्तिथि में आने के लिए कुण्डलनी जगानी पड़ती है | ये सब कहने का तात्पर्य
बस इतना है कि विचारों में उर्जा होती है | हर विचार अपने समान परिस्तिथि खींचता
है | प्रेम , ख़ुशी , संतोष आदि के विचार
सकारात्मक विचार हैं व् इर्ष्या , क्रोध , अपमान , जलन आदि नकारात्मक विचार हैं | शोध यहाँ तक हुए हैं की लगातार नकारात्मक
विचारों से देखा जाने पर पानी भी जम गया
| हर व्यक्ति कुंडली जगा कर मोक्ष की
कामना नहीं करता परन्तु हर व्यक्ति अपने जीवन में ज्यादा से ज्यादा खुशियाँ ,
सफलताओं की कामना अवश्य करता हैं | मिल जाने पर खुश व् न मिलने पर दुखी हो जाता है
| फिर एक के बाद एक वैसी ही समान परिस्तिथियाँ उसके जीवन में आती जाती हैं |
परिस्तिथियों का दास बना मनुष्य यह नहीं सोचता यह सारी परिस्तिथियाँ वह खुद आकर्षित कर रहा है | अपने
विचारों के माध्यम से |
गीता के अनुसार निष्काम कर्म पर जोर दिया गया है | अर्थात कर्म से किसी भाव को मत
जोड़ों | अध्यात्मिक गुरु कहते हैं अध्यात्मिक उन्नति करना चाहते हो तो विचारों से
ऊपर उठ कर अविचार की स्तिथि में आओ | क्या आप ने सोचा है क्यों ? क्योंकि वो जानते
थे सकारात्मक /नकारात्मक विचारो की ऊर्जा
काम करती है बिलकुल गुत्वाकर्षण के नियमों
की तरह | विचार आना और उससे सम्बंधित परिस्तिथियों का खिंचना एक नियम की तरह काम करता है | जैसे किसी राकेट
को पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण बल तोड़ कर अन्तरिक्ष में जाने के लिए अतिशय उर्जा
लगानी पड़ती है उसी प्रकार विचारों से अविचार
की स्तिथि में आने के लिए कुण्डलनी जगानी पड़ती है | ये सब कहने का तात्पर्य
बस इतना है कि विचारों में उर्जा होती है | हर विचार अपने समान परिस्तिथि खींचता
है | प्रेम , ख़ुशी , संतोष आदि के विचार
सकारात्मक विचार हैं व् इर्ष्या , क्रोध , अपमान , जलन आदि नकारात्मक विचार हैं | शोध यहाँ तक हुए हैं की लगातार नकारात्मक
विचारों से देखा जाने पर पानी भी जम गया
| हर व्यक्ति कुंडली जगा कर मोक्ष की
कामना नहीं करता परन्तु हर व्यक्ति अपने जीवन में ज्यादा से ज्यादा खुशियाँ ,
सफलताओं की कामना अवश्य करता हैं | मिल जाने पर खुश व् न मिलने पर दुखी हो जाता है
| फिर एक के बाद एक वैसी ही समान परिस्तिथियाँ उसके जीवन में आती जाती हैं |
परिस्तिथियों का दास बना मनुष्य यह नहीं सोचता यह सारी परिस्तिथियाँ वह खुद आकर्षित कर रहा है | अपने
विचारों के माध्यम से |
पोजिटिव थिंकिंग की
किताबें पढने के बाद भी अक्सर हम अपने को असहाय पाते हैं क्योंकि यह संभव ही नहीं
की हम दिन भर आने वाले ६०,००० विचारों में सिर्फ अच्छा ही सोचे | स्वाभाविक है कुछ
सकारात्मक होंगे ,कुछ नकारात्मक | मिले
जुले विचार तो मिले जुले परिणाम | जैसा की मैंने पहले कहा है “ विचार शरीर हैं
भावनाएं प्राण “| हमारे वहीँ विचार परिस्तिथियों को खींचने में सक्षम होते हैं
जिनके साथ हमारी भावनाएं जुडी होती हैं |
प्रेम उत्साह , उमंग की सकारत्मक भावनाएं
सकारात्मक परिस्तिथियों को खींचती हैं |
जाहिर सी बात है जिस वस्तु या व्यक्ति से प्रेम करते हैं उसकी उन्नति, उसकी बढ़ोत्तरी हमें ख़ुशी देती है | उसके द्वरा
दिया गया छोटा सा उपहार हमें आनंदित कर देता है | कृतज्ञ भाव उत्पन्न होता है | शब्द आकार लें या
न ले हमारा रोम , रोम शुक्रिया कहता है | जिसे आज विज्ञान द्वारा खोजा जा रहा है |
भारतीय संस्कृति उसे बरसों पहले उसी पर अपनी आधारशिला रखी | वो भाव है प्रेम का ,
कृतज्ञता का , शुक्रिया का | कभी आपने ध्यान दिया है बचपन में दादी ने सिखाया
था सुबह उठते ही धरती के पैर छुआ करो , या
माँ ने ईश्वर को धन्यवाद देना सिखाया था या तुलसी की पत्ती तोड़ते समय प्रणाम करना , गंगा को गंगा मैया या गंगा जी कहना आदि ,आदि | बहुत छोटी
–छोटी बातें हैं पर इनके पीछे जीवन की खुशियों के गंभीर रहस्य छिपे हुए हैं | पेड़
, पौधों , नदी पहाड़ की पूजा , ईश्वर के विभिन्न रूपों के वाहनों के रूप में हर पशु
–पक्षी का सम्मान | क्या है इसका कारण ? पूरे पर्यावरण के लिए समस्त जीव –जंतुओं
के लिए पूरे ब्रह्माण्ड के लिए और स्वयं मानव के लिए सकारात्मक परिस्तिथियों का
निर्माण | कैसे ? उत्तर सरल है | आप वास्तव में किसी के प्रति कृतज्ञ भाव या सम्मान
ह्रदय में प्रेम लाये बिना नहीं कर
सकते | जैसे ही आप के ह्रदय में प्रेम भाव उत्पन्न होता है | आप सकारात्मक उर्जा
के उच्च पायदान पर होते हैं | जब आप उर्जा के उच्च पायदान पर होते हैं तो सकारत्मक
परिस्तिथियों को अपनी तरफ खींचते हैं | और आपकी खुशियाँ और बढ़ जाती हैं | एक छोटा
सा नियम कृतज्ञता का , एक छोटा सा नियम शुक्रिया का |
किताबें पढने के बाद भी अक्सर हम अपने को असहाय पाते हैं क्योंकि यह संभव ही नहीं
की हम दिन भर आने वाले ६०,००० विचारों में सिर्फ अच्छा ही सोचे | स्वाभाविक है कुछ
सकारात्मक होंगे ,कुछ नकारात्मक | मिले
जुले विचार तो मिले जुले परिणाम | जैसा की मैंने पहले कहा है “ विचार शरीर हैं
भावनाएं प्राण “| हमारे वहीँ विचार परिस्तिथियों को खींचने में सक्षम होते हैं
जिनके साथ हमारी भावनाएं जुडी होती हैं |
प्रेम उत्साह , उमंग की सकारत्मक भावनाएं
सकारात्मक परिस्तिथियों को खींचती हैं |
जाहिर सी बात है जिस वस्तु या व्यक्ति से प्रेम करते हैं उसकी उन्नति, उसकी बढ़ोत्तरी हमें ख़ुशी देती है | उसके द्वरा
दिया गया छोटा सा उपहार हमें आनंदित कर देता है | कृतज्ञ भाव उत्पन्न होता है | शब्द आकार लें या
न ले हमारा रोम , रोम शुक्रिया कहता है | जिसे आज विज्ञान द्वारा खोजा जा रहा है |
भारतीय संस्कृति उसे बरसों पहले उसी पर अपनी आधारशिला रखी | वो भाव है प्रेम का ,
कृतज्ञता का , शुक्रिया का | कभी आपने ध्यान दिया है बचपन में दादी ने सिखाया
था सुबह उठते ही धरती के पैर छुआ करो , या
माँ ने ईश्वर को धन्यवाद देना सिखाया था या तुलसी की पत्ती तोड़ते समय प्रणाम करना , गंगा को गंगा मैया या गंगा जी कहना आदि ,आदि | बहुत छोटी
–छोटी बातें हैं पर इनके पीछे जीवन की खुशियों के गंभीर रहस्य छिपे हुए हैं | पेड़
, पौधों , नदी पहाड़ की पूजा , ईश्वर के विभिन्न रूपों के वाहनों के रूप में हर पशु
–पक्षी का सम्मान | क्या है इसका कारण ? पूरे पर्यावरण के लिए समस्त जीव –जंतुओं
के लिए पूरे ब्रह्माण्ड के लिए और स्वयं मानव के लिए सकारात्मक परिस्तिथियों का
निर्माण | कैसे ? उत्तर सरल है | आप वास्तव में किसी के प्रति कृतज्ञ भाव या सम्मान
ह्रदय में प्रेम लाये बिना नहीं कर
सकते | जैसे ही आप के ह्रदय में प्रेम भाव उत्पन्न होता है | आप सकारात्मक उर्जा
के उच्च पायदान पर होते हैं | जब आप उर्जा के उच्च पायदान पर होते हैं तो सकारत्मक
परिस्तिथियों को अपनी तरफ खींचते हैं | और आपकी खुशियाँ और बढ़ जाती हैं | एक छोटा
सा नियम कृतज्ञता का , एक छोटा सा नियम शुक्रिया का |
भारतीय संस्कृति ने
हमें कृतज्ञ भाव को शुक्रिया को अपने जीवन
में शामिल करने का रास्ता दिखा दिया है | अब ये हमारे ऊपर हैं कि हम कितना ज्यादा
से ज्यादा कृतज्ञ भाव का अनुभव करके अपने जीवन में खुशियों की बढ़ोत्तरी करे |जितनी
ज्यादा शुक्रिया जितने अच्छे भाव उतनी ही
खुशियाँ आप के द्वार पर | एक छोटा सा शुक्रिया जो हम दूसरों को देते हैं वह बदल
सकता है हमारी जिंदगी | जिससे पाने वाले
का मन भी
खुश होता है और हमारा भी | फिर भी हम शुक्रिया कहने से कतराते हैं | भागती दौड़ती जिन्दगी में जो हमारे साथ रोज़ अच्छा
करते हैं उनके काम को हम महत्व ही नहीं देते हैं या फॉर ग्रांटेड लेने
लगते हैं | माँ तो खाना बनाती ही है , पिताजी तो कमा कर लाते ही हैं ये तो उनका काम है | काम वाली तो रोज आती है , तनख्वाह जो लेती है |
फिर भी जरा सोचिये जब जाड़े में आप रजाई से निकलने की
हिम्मत नहीं कर पा रहे होते हैं वह ठंडे पानी से
आपके बर्तन कपडे धो रही होती हैं | एक शुक्रिया तो बनता है | शब्दों में न सही मन
में सही | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | एक दूसरे के बिना काम नहीं चलता | कोई पद
पर बैठ कर या यूँ कहे तनख्वाह ले कर या
यूँहीं राह चलते आपका काम कर रहा हैं वो आपके
जीवन को सरल बना रहा है तो उसके काम को अनदेखा न करे | अखबार वाला समय पर अखबार ले
आया , माली ने गमलों से खर –पतवार साफ़ कर दी , बिल जमा करने वाले ने बिल जमा कर लिया | हर कोई आपके जीवन
में एक छोटी पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा
रहा है| क्या कभी महसूस किया है एक काम
गलत होते ही पूरी श्रृंखला गडबड़ा जाती है
| तो जिसने आप का काम कर दिया उसने आपका दिन बनाने में मदद कर दी |
हमें कृतज्ञ भाव को शुक्रिया को अपने जीवन
में शामिल करने का रास्ता दिखा दिया है | अब ये हमारे ऊपर हैं कि हम कितना ज्यादा
से ज्यादा कृतज्ञ भाव का अनुभव करके अपने जीवन में खुशियों की बढ़ोत्तरी करे |जितनी
ज्यादा शुक्रिया जितने अच्छे भाव उतनी ही
खुशियाँ आप के द्वार पर | एक छोटा सा शुक्रिया जो हम दूसरों को देते हैं वह बदल
सकता है हमारी जिंदगी | जिससे पाने वाले
का मन भी
खुश होता है और हमारा भी | फिर भी हम शुक्रिया कहने से कतराते हैं | भागती दौड़ती जिन्दगी में जो हमारे साथ रोज़ अच्छा
करते हैं उनके काम को हम महत्व ही नहीं देते हैं या फॉर ग्रांटेड लेने
लगते हैं | माँ तो खाना बनाती ही है , पिताजी तो कमा कर लाते ही हैं ये तो उनका काम है | काम वाली तो रोज आती है , तनख्वाह जो लेती है |
फिर भी जरा सोचिये जब जाड़े में आप रजाई से निकलने की
हिम्मत नहीं कर पा रहे होते हैं वह ठंडे पानी से
आपके बर्तन कपडे धो रही होती हैं | एक शुक्रिया तो बनता है | शब्दों में न सही मन
में सही | मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | एक दूसरे के बिना काम नहीं चलता | कोई पद
पर बैठ कर या यूँ कहे तनख्वाह ले कर या
यूँहीं राह चलते आपका काम कर रहा हैं वो आपके
जीवन को सरल बना रहा है तो उसके काम को अनदेखा न करे | अखबार वाला समय पर अखबार ले
आया , माली ने गमलों से खर –पतवार साफ़ कर दी , बिल जमा करने वाले ने बिल जमा कर लिया | हर कोई आपके जीवन
में एक छोटी पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा
रहा है| क्या कभी महसूस किया है एक काम
गलत होते ही पूरी श्रृंखला गडबड़ा जाती है
| तो जिसने आप का काम कर दिया उसने आपका दिन बनाने में मदद कर दी |
इतना ही नहीं जैसी की
एक लघु कथा पढ़ी थी … एक आदमी के पास जूते नहीं थे वह बहुत दुखी था | पर जब उसने एक लंगड़े
व्यक्ति को देखा तो उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसके पास तो जूते ही नहीं थे पर
दूसरे व्यक्ति के तो पाँव ही नहीं हैं | आपको जो मिला है ,जैसा मिला है वो सब भी
किसी को नहीं मिला है | जो नहीं मिला है उस पर तकदीर को कोसने के स्थान पर जो मिला
हैं उसके प्रति कृतज्ञ भाव रखिये | फिर देखिये
चमत्कार अभी भी होते हैं | खुशियों के दरवाजे कैसे खुलते हैं | प्रति दिन आने वाले ६०,०००० विचारों में से हम
जितने ज्यादा से ज्यादा विचारों को कृतज्ञ भाव से भर देंगे उतने ही अवसर हमें
वास्तव में शुक्रिया कहने के मिलते जायेंगे | हो सकता है आप भी वही सोच रहे हों जैसा मेरी सहेली स्नेहा ने कहा , “ दुनिया में इतने चालक लोग भरे हैं जो
आप को धोखा देते हैं उन्हें आप शुक्रिया कैसे कहेंगे | सीधा सा उत्तर है उन्हें भी
शुक्रिया, कि उन्होंने आप को दर्द जरूर
दिया पर शिक्षा भी दी
की अब आगे आप ऐसे धोखों के शिकार नहीं होंगे | कुल मिला कर आपकी खुशियों के
, सफलता के दरवाजे के लिए शुक्रिया की
चाभी आपके हाथ हैं | तो क्यों न इस
दीपावली पर इसका इस्तेमाल शुरू करके करके खुशियों के स्वप्नीले महल
में प्रवेश किया जाए | और निराशा के अँधेरे को सदा के लिए हरा दिया जाए |
एक लघु कथा पढ़ी थी … एक आदमी के पास जूते नहीं थे वह बहुत दुखी था | पर जब उसने एक लंगड़े
व्यक्ति को देखा तो उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि उसके पास तो जूते ही नहीं थे पर
दूसरे व्यक्ति के तो पाँव ही नहीं हैं | आपको जो मिला है ,जैसा मिला है वो सब भी
किसी को नहीं मिला है | जो नहीं मिला है उस पर तकदीर को कोसने के स्थान पर जो मिला
हैं उसके प्रति कृतज्ञ भाव रखिये | फिर देखिये
चमत्कार अभी भी होते हैं | खुशियों के दरवाजे कैसे खुलते हैं | प्रति दिन आने वाले ६०,०००० विचारों में से हम
जितने ज्यादा से ज्यादा विचारों को कृतज्ञ भाव से भर देंगे उतने ही अवसर हमें
वास्तव में शुक्रिया कहने के मिलते जायेंगे | हो सकता है आप भी वही सोच रहे हों जैसा मेरी सहेली स्नेहा ने कहा , “ दुनिया में इतने चालक लोग भरे हैं जो
आप को धोखा देते हैं उन्हें आप शुक्रिया कैसे कहेंगे | सीधा सा उत्तर है उन्हें भी
शुक्रिया, कि उन्होंने आप को दर्द जरूर
दिया पर शिक्षा भी दी
की अब आगे आप ऐसे धोखों के शिकार नहीं होंगे | कुल मिला कर आपकी खुशियों के
, सफलता के दरवाजे के लिए शुक्रिया की
चाभी आपके हाथ हैं | तो क्यों न इस
दीपावली पर इसका इस्तेमाल शुरू करके करके खुशियों के स्वप्नीले महल
में प्रवेश किया जाए | और निराशा के अँधेरे को सदा के लिए हरा दिया जाए |
एक कोशिश है ……….कर के देखते हैं
वंदना बाजपेयी
bhut hi umda
वाह्ह्ह्ह्ह् वाह्ह्ह्ह्ह् अति सुंदर सृजन ! सादर नमन आपको और आपकी लेखनी को 🙂