स्वेताम्बर जैन समाज में पर्युषण पर्व के तहत संवत्सरी पर्व मनाया जाता है। इस अवसर पर सभी मंदिरों एवं उपाश्रयों में प्रतिक्रमण के पश्चात उपस्थित श्रावक एक-दूसरे से ‘मिच्छामि दुक्कड़म’ कहकर क्षमायाचना करते है। मुनि-संतों का कहना है कि क्षमा आत्मा को निर्मल बनाती है।व्यक्ति जीवन में मैत्री और प्रेम का निरंतर विकास कर जीवन को उन्नत बना सकता है। मनुष्य द्वारा अनेक भूलें की जाती हैं। पारस्परिक कलह एवं कटुता वर्ष भर में होती है। संवत्सरी महापर्व पर अन्तःकरण से क्षमा याचना कर आत्मा को निर्मल बनाया जा सकता है।जीवनयापन के दौरान आपसी कलह से यह जीवन नरक बन जाता है भारत की संस्कृति में क्षमा को सर्वोच्च स्थान दिया गया है। संत-ज्ञानीजन कभी झगड़ते नहीं हैं और कभी मत को लेकर विवाद हो भी जाता है तो वे एक-दूसरे के प्रति शत्रुता नहीं रखते हैं। आम आदमी और साधु-संतों के बीच यही फर्क होता है। मानव अपने अहं के चलते एक-दूसरे से क्षमा न मांगते हुए अपने अहं में डूबे रहते है। और यही वजह है कि वर्ष भर में ऐसा दिन भी आता है, जब मानव अपनी सारे भूलों, अपने अहंकार को छोड़कर क्षमा मांग सकता है और दूसरों को भी क्षमा कर सकता है।
अभी देर नहीं हुई है
क्षमा पर्व हमें सहनशीलता से रहने की प्रेरणा देता है। अपने मन में क्रोध को पैदा न होने देना और अगर हो भी जाए तो अपने विवेक से, नम्रता से उसे विफल कर देना। अपने भीतर आने वाले क्रोध के कारण को ढूँढकर, क्रोध से होने वाले अनर्थों के बारे में सोचना और अपने क्रोध को क्षमारूपी अमृत पिलाकर अपने आपको और दूसरों को भी क्षमा की नजरों से देखना। अपने से जाने-अनजाने में हुई गलतियों के लिए खुद को क्षमा करना और दूसरे के प्रति भी इसी भाव को रखना इस पर्व का महत्व है।क्षमा पर्व मनाते समय अपने मन में छोटे-बड़े का भेदभाव न रखते हुए सभी से क्षमा माँगना इस पर्व का उद्देश्य है। हम सब यह क्यों भूल जाते हैं कि हम इंसान हैं और इंसानों से गलतियाँ हो जाना स्वाभाविक है। ये गलतियाँ या तो हमसे हमारी परिस्थितियाँ करवाती हैं या अज्ञानतावश हो जाती हैं। तो ऐसी गलतियों पर न हमें दूसरों को सजा देने का हक है, न स्वयं को। यदि आपको संतुष्टि के लिए कुछ देना है तो दीजिए ‘क्षमा’।क्षमा करने से आप दोहरा लाभ लेते हैं। एक तो सामने वाले को आत्मग्लानि भाव से मुक्त करते हैं व दूसरा दिलों की दूरियों को दूर कर सहज वातावरण का निर्माण करके उसके दिल में फिर से अपने लिए एक अच्छी जगह बना लेते हैं।तो आइए अभी भी देर नहीं हुई है। इस क्षमावणी पर्व से खुद को और औरों को भी रोशनी का नया संकल्प पाठ गढ़ते हुए क्षमा पर्व का असली आनंद उठाए और खुद भी जीए और दूसरों को भी जीने दे के संकल्प पर चलते हुए क्षमापर्व का लाभ उठाएँ।
– अर्थात् क्षमा वीरों का आभूषण होता है। अत: आप भी इस क्षमा पर्व सभी को अपने दिल से माफी देकर भगवान महावीर के रास्ते पर चलें।क्षमा मांगने के बाद जहाँ एक और मन अपराध बोध से निकल जाता है वहीँ क्षमा करने के बाद मन नकारात्मक विचारों से मुक्त हो जाता है | दोनों ही स्तिथियों में क्षमा से हमें लाभ होता है |
तो आइये आप भी इस पर्व में शामिल होकर क्षमा दान देकर और क्षमा मांग कर अपने मन को स्व्क्छ व् निर्मल कर लीजिये |