स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के

swatantrta divas par vishesh kavita / main swpn dekhta hoon ek aise swarajy ke 

मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के
जहाँ कोई माँ
भूख से बिलबिलाते
बेबस लाचार बच्चे के आगे
पानी भर परात में न उतारे चंदा
यूँ बहलाते हुए
कि चुप हो जा बेटा
देख तेरी रोटी गीली हो गयी है
खा लेना
जब सूख जाए
अपलक उसे ताकते ताकते
सो जाए नन्हा बच्चा
थक हार कर

मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के
जहाँ लाला के होटल में
 बर्तन मलता भीखू
घरों में झाड़ू कटका करती छमिया
फेंक कर झाड़ू और जूना
उठा लें किताबें
चल दे स्कूल की ओर
कि यही बस यही
उपाय है उत्पीडन से निकलने का


मैं स्वप्न देखता हूँ ,एक ऐसे स्वराज्य के
जहाँ मान के गर्भ में
न असुरक्षित रहे बेटियां
डॉ की सुई से छिपने का
असफल प्रयास करते हुए
न निकाली जाए
टुकड़े -टुकड़े कर
अपितु सहर्ष जन्म लेकर
करे उद्घोष
कि लिंग के आधार पर नहीं छीना जा सकता
जन्म लेने का अधिकार

मैं स्वप्न देखता हूँ ,एक ऐसे स्वराज्य के
जहाँ कोई निर्भया
सड़क पर
न फेंकी जाए रौंद कर
झोपडी में रहने वाला ननकू
न हार जाए मुकदमा
घूस न दे पाने की वजह से
जहाँ सफाई अभियान में न सिर्फ शहर
अपितु तन ,मन और विचारों की भी हो
स्वक्षता
जहाँ अपने -अपने ईश्वर को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए
तलवारे थाम कर
न नेस्तनाबूत कर दी जाए मानवता


मैं स्वप्न देखता हूँ
हाँ ! मैं रोज स्वप्न देखता हूँ
मेरी पूरी पीढ़ी स्वप्न देखती है
एक ऐसे स्वराज्य की
जहाँ हम अपनी जड़ों को सीचते हुए
पुराने दुराग्रहों कुटिलताओ और वैमनस्यता को भूलकर
रचेंगे एक नया भारत
पर ये मात्र स्वप्न ही नहीं है
ये उद्घोष है
कि ये स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है
और हम इसे ले कर रहेंगे

शिवम्

मेरा भारत महान ~ जय हिन्द

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