आज पितृ दिवस पर मैं अपने पिता को अलग से याद नहीं कर पाउँगी , क्योंकि माता -पिता वो जीवन भर एक दूसरे के पूरक रहे यहाँ तक की समय की धारा के उस पार भी उन्होंने एक दूसरे का साथ दिया |एक बेटी की स्मृतियों के पन्नों से निकली हृदयस्पर्शी कविता …
पूरक एक दूजे के
माँ थी
तो पिता थे
पिता थे
तो माँ थी
पूरक थे
दोनों एक-दूजे के…….!
जब दोनों थे
हँसते दिन-रातें थीं
हवाएँ घर की
देहरी-आँगन में गीत गाती थीं……!
जब दोनों थे
बसेरा था त्योहारों का घर में
आते थे पंछी
घर के बगीचे में
शोर मचाते थे
नटखट बच्चों की तरह,
नृत्य करती थी भोर
जैसे उनके साथ में……..!
जब दोनों थे
गूँजते थे गीत और कविताएँ
घर के कोने-कोने में
आते थे अतिथि
बनती थी पकौड़ियाँ और चाय……!
जब दोनों थे
फलते थे आम, आड़ू, नाशपाती
लीची, चकोतरे बगिया में,
पालक, मेथी, धनिया, मूली
पोदीना, अरबी फलते थे
छोटी-छोटी क्यारियों में
मिलते थे थैले भर-भर
लहलहाती थी बगिया……..!
खिलते थे
विविध रंगी गुलाब, गेंदे
गुलमेहँदी, बोगनविलिया
“ उत्तरगिरि “ में…………..!
जब दोनों थे
बरसता आशीर्वाद
मिलती थी स्नेह-छाया
हर मौसम में……………!
ईश्वर ने
भेजा संदेश
माँ को आने का
तो उनको विदा कर
पिता भी ढूँढने लगे थे
मार्ग जल्दी माँ के पास जाने का……!
पूरक थे
जीवन भर एक-दूजे के
तभी डेढ़ माह बाद ही
साथ देने माँ का पहुँचे पिता भी,
पूरक बने हैं मृत्यु के बाद भी
तारों के मध्य दोनों
साथ-साथ चमकते हैं…………!
दुख के अंधेरों में
सिर पर हाथ रख सदा की तरह
मेरा साहस बनते हैं तो
खुशियों में आशीष बरसाते
नवगीत रचते हैं
मेरी श्वास बन
साथ-साथ चलते हैं…………!
इसी से
नहीं करती
उन्हें स्मरण मैं अलग-अलग
मातृ दिवस-पितृ दिवस पर…….!
हर दिवस
उन्हीं की स्मृतियों के
धनक संग ढलते हैं
माँ-पापा आज भी
मेरे हृदय में
बच्चों से पलते हैं……….!!
——————————-
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
यह भी पढ़ें …
डर -कहानी रोचिका शर्मा
एक दिन पिता के नाम -गडा धन
आप पढेंगे ना पापा
लघुकथा -याद पापा की
सच है पूरक होते हैं माँ पिता इक दूजे के …
एक नहीं तो दूजा कहाँ सहज हो पाता है … भूमिका अपनी अपनी पर एक राह के साथी … बच्चों के सन कुछ …
अच्छी रचना है …