ख़ुशी

ख़ुशी

ख़ुशी क्या है ? मुट्ठी में पकड़ी रेत सी जो उँगलियों के बीच से रिसती चली जाती है | फिर भी इसी ख़ुशी की तलाश में हम सारा जीवन लगा देते हैं | ऐसी तो थी मुनिया | कभी उसकी ख़ुशी खिलौनों में थी कभी चूड़ियों में कभी पति , बेटे , बहु में | हर रिश्ते में देती चली गयी | पर क्या उसके हिस्से में ख़ुशी आ पाई …




कहानी -ख़ुशी 


शाम होने आई, पिताजी के आने का इन्तजार करती मुनिया को भूख  लगी थी फिर भी वह खेलने में मस्त थी।
मां ने आवाज लगाई मुन्नी आजा खाना खा
ले
, लेकिन मुन्नी के कान तांगे की आवाज सुनने को बेताब थे। इतने में
घोड़े की ठकठक की आवाज आई तांगे से पिताजी को उतरते हुए देख रही मुन्नी भागकर
पिताजी से लिपट गई।
क्या लाये, जानने के लिए भूखी  मुनिया टुकटुकी लगाए पिताजी के इधर उधर घूमती
रही।
कलाकंद का डिब्बा और मोती की चूड़िया
मुन्नी को देकर‌ पिताजी नहाने चले गए। मुन्नी अपने ख्यालों में खो गई कि मां ने
कहा था बस तेरा ब्याह करके हम बेफिक्र होकर शहर में रहेंगे। चू ड़ियों को हाथों
में लेकर मुन्नी खुश होकर सपने में खो गई।
 
 मुन्नी के
पिता (मगन) ने अच्छा लड़का देखकर शादी करने का दिन निश्चित किया। तैयारी होते देख
मुन्नी भी सपने संजो रही थी। आखिर शादी के बाद ससुराल आई मुन्नी १६साल की अल्हड़
उम्र के बदलाव के कारण मन में पति के साथ रहने के सपनों में खोती चली गई लेकिन
किस्मत का फैसला कुछ और ही था। बड़ी बहू होने के कारण सारे फर्ज उसी के हिस्से में
आए। कर्तव्य पूरे किए गए
,लेकिन खुशीयों से दूर रहने के कारण मन विद्रोही हो गया।अब पति
के साथ अनबन रहती लेकिन अपने बेटे के लिए सहन कर लेती।एक ही संतान के रूप में बेटे
अजय में अपना सुख ढूंढ रही थी।बेटा बड़ा हो गया
, पढ़ाई के साथ कहीं नौकरी करने के लिए चक्कर लगा
रहा था।एक दिन साइकल टिकाकर अजय घर में आते हुए मां पिताजी की बात सुनकर चिंतित हो
गया। पिताजी को टीबी के इलाज के लिए पैसे चाहिए थे।वह मां से गहने ना बेचने की बात
कर रहे थे
,पर मां बेचकर
इलाज के लिए रुपए इकट्ठे करने की जिद कर रही थी।यह वही मुन्नी थी जो बचपन में मोती
की चूड़िया देखकर अपनी खुशी सहेली से बांटती थी
,और आज अपना दुःख अपने बेटे को भी नहीं बता पाई थी।



बहुत दिनों तक
इलाज किया पर मुनिया का भाग्य साथी छूटा
,साथ ही पैसे के अभाव में रिश्ते कम होते गए या करने पड़े।बेटा
नौकरी करके मां के साथ अपने सपने पूरे करने की जी तोड़ कोशिश में लगा था। मुनिया
ने भी अपने अन्दर के कलाकार को दुनिया के सामने लाने की तैयारी कर ली। किराए से
सिलाई मशीन ली।घर घर जाकर काम मांगने लगी। कपड़े सिलकर थोड़ी सहायता करना चाहतीं
थीं।काम अच्छा होने के कारण पैसा भी मिलने लगा और सभी आसपास के मोहल्ले में नाम
होने लगा। धीरे धीरे बेटे ने किराए पर बुटिक ले लिया मशीन खरीदी। धीरे धीरे गरीब
औरतों को काम करने का मौका दिया
,अब तो मुनिया पैसे वाली हो गई।



बेटे की शादी के लिए रिश्ते आने
लगे। अच्छी लड़की देखकर बेटे की शादी की।अब घर की जवाबदारी बहू को देकर मुनिया
चिंता से मुक्त हो गई। लेकिन बहू को भी अपनी पढ़ाई पर गर्व था वह भी कुछ करना
चाहती थी। मुनिया के समझाने पर साथ में काम करने को राजी हो गई बहू।अब बड़े बड़े
घरों से काम मांगने नहीं जाना पड़ता बल्कि लोग
  कपड़े सिलवाने खुद आते।बहू नया डिज़ाइन बना
कर देती।एक दिन बहू को चक्कर आने लगे डॉक्टर ने खुश खबरी दी। टाइम पर एक बेटी को
जन्म दिया बहू ने। 





मुनिया ने अब अकेले काम संभाला पर उम्र बढ़ने के कारण दिखाई कम
देने लगा। कमर दर्द
, रक्त चाप के साथ शक्कर बढ़ने से मुनिया और भी बीमार हो गई।वह
बेटे बहू को अपने कारण परेशान नहीं करना चाहती थी ।एक दिन चुपचाप घर से निकल कर
आश्रम में आ गई। हुलिया और नाम बदल लिया।बेटे बहू ने ढूंढा भी लेकिन हुलिया बदलकर
रहने से वह कुछ नहीं कर पाए। धीरे धीरे मुनिया गंभीर रोग से पीड़ित हो गई। 





अन्तिम
समय आने पर आश्रम के माध्यम से बेटे को ख़बर की। मुनिया बड़बड़ाते हुए बचपन में
चली गई पिताजी क्या लाए चुड़ियों को देख कर बोली देखो कितनी सुन्दर है। मैं सहेली को
दिखाकर आती हूं
,और बिस्तर से
उठ कर जाने लगी। कौनसी इच्छा शक्ति से वह चार क़दम चली लेकिन अंत में प्रभू के पास
चली गई। बेटे बहू को भरा-पूरा घर सौंप कर नवीन  शरीर नई ख़ुशी की तलाश में चली गई
, मुनिया।



प्रेमलता तोंगिया 

लेखिका- प्रेमलता तोंगिया





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