मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है | समाज में कई रिश्तों के बीच उनका जन्म होता है और जीवन पर्यन्त इस रिश्तों को निभाता चला जाता है | कुछ रिश्ते उसके वजूद का इस कदर हिस्सा बन जाते हैं कि उनसे अलग वो अपने अस्तित्व को समझ ही नहीं पाता | कभी कभी कोई एक घटना आँखों पर बंधी ये पट्टी खोल देती और अहसास कराती है कि दो लोगों के बीच परस्पर विश्वास की तथाकथित धुरी पर टिका ये रिश्ता कितना एक तरफ़ा था | ऐसे समय में क्या निर्णय सही होता है ? ये द्वन्द उसे कैसे तोड़ता है ? और वो किसके पक्ष में खड़ा होता है एक टूटे जर्जर रिश्ते के नीचे कुचले अपने वजूद के साथ या अपने आत्मसम्मान के साथ | पौ फटी पगरा भया , 30 साल के अँधेरे के छटने के बाद ऐसे ही निर्णय की कहानी है |ये कहानी है सुमन और अनूप के रिश्तों की , ये कहानी है , ये कहानी है परस्पर विश्वास की , ये कहानी है स्त्री चरित्र की …आइये पढ़ें स्त्री विमर्श को रेखांकित करती शिवानी शर्मा जी की सशक्त कहानी। ..
“पौ फटी पगरा भया”
सुमन हफ्ते भर से परेशान थी। रसोई में सब्जियों को गर्म पानी में धोते हुए मन ही मन भुनभुना रही थी! भतीजे की शादी अगले हफ्ते है और ये पीरियड्स समय से क्यों नहीं आए? एन शादी के वक्त आए तो दर्द लेकर बैठी रहूंगी, नाचने गाने की तो सोच भी नहीं सकती! डॉ को भी दिखा आई। उन्होंने कहा कि मेनोपॉज़ का समय है कुछ दिन आगे पीछे हो सकता है!क्या मुसीबत है! और एक ये अनूप हैं! हर बात हंसी-मजाक में उड़ाते हैं! कहते हैं कोई खुशखबरी तो नहीं सुना रही? हद्द है सच्ची! पंद्रह साल पहले ही खुद ने अपना ऑपरेशन करवाया था फिर बच्चे की बात कहां से आ गई? कुछ भी मज़ाक करना बस!
और ये इतनी सारी पत्ते वाली सब्जियां एक साथ क्यों ले आते हैं जाने!सारा शनिवार इनमें ही निकल जाता है। साफ-सूफ करने में कितना समय और मेहनत लगती है!पालक,मेथी, बथुआ, सरसों,मटर सब एक साथ थोड़े ही बनेगी? ज्यादा दिन रख भी नहीं सकते! उफ़!ये अनूप भी ना अपनी तरह के बस एक ही अनोखे इंसान हैं शायद! बरसों से समझा रही हूं कि ये सब एकसाथ मत लाया करो पर मंडी में घुसते ही मुझे भूलकर सब्जियों के प्रेम में पड़ जाते हैं!
पालक,मेथी, बथुआ, सरसों और धनिया साफ करके और धो कर अलग-अलग टोकरियों में पानी निथरने के लिए रख दिए गए हैं और गाजर, पत्तागोभी, फूलगोभी एक टोकरी में रखी है।अब मटर छीले जाएंगे। आज सरसों का साग और बथुए का रायता बनेगा। कल सुबह मेथी के परांठे और शाम को मटर पनीर! हरी सब्जियों को ठिकाने लगाने की पूरी योजना बन चुकी थी।
अपने लिए चाय बनाकर सुमन मटर छीलने बैठी।मटर छीलते हुए मां बहुत याद आती हैं! भैया और मैं आधी मटर तो खा ही जाते थे। फिर मम्मी खाने के लिए अलग से मटर लाने लगी और कहतीं कि पहले खालो फिर छीलना और तब बिल्कुल मत खाना। मम्मी ने सब्जी-सुब्जी साफ करने के काम शायद ही कभी किए होंगे। संयुक्त परिवार में पहले देवर-ननदें फिर बच्चे और सास-ससुर ही बैठे बैठे ऐसे काम कर देते थे। एक हम हैं कि कोई सहारा नहीं! एकल परिवार अनूप की नौकरी के कारण मजबूरी रही! बार-बार स्थानांतरण के चलते कोई स्थाई साथ भी नहीं बन पाया। बच्चों को पढ़ाई-लिखाई और हॉबी क्लासेज से फुर्सत नहीं मिली फिर बाहर पढ़ने चले गए और अब दोनों की शादी हो गई, नौकरी में बाहर रह रहे हैं। हम फिर दोनों अकेले रह गये घर में!
सुमन के विचारों की चक्की अनवरत चलती रहती है!
उसने तय कर लिया है कि जो दुख उसने उठाया वो बहूओं को नहीं उठाने देगी! अनूप की सेवानिवृत्ति के बाद उनके साथ रहेगी, बच्चे पालेगी और काम में मदद करेगी। अभी भी कभी कभी सुमन उनके साथ रहने चली जाती है। बहुएं भी उसका इंतज़ार ही करती रहती हैं। अभी तक तो बहुत अच्छी पट रही है और वो प्रार्थना करती है कि आगे भी भगवान ऐसे ही बनाए रखे।
मटर भी छिल गये हैं। भैया का फोन आ गया।
“हां सुमी!कब पहुंच रही है?”
“आती हूं भैया एक-दो दिन पहले पहुंच जाऊंगी।”
“अरे पागल है क्या? तुझे तो हफ्ते दस दिन पहले आना चाहिए। कल ही चल दे। अनूप को छुट्टी मिले तो दोनों ही आ जाओ वरना तू तो कल ही आ जा। तीन घंटे का तो रास्ता है। सुबह ही चल दे।”( अनूप भैया के बचपन के दोस्त हैं इसलिए भैया उनको नाम से ही बुलाते हैं)
“देखती हूं भैया! अनूप तो बाद में ही आएंगे। मैं पहले आ जाऊंगी। यहां से कुछ लाना हो तो बताओ।”
“रावत की मावे की कचौड़ी ले आना सबके लिए!”
“ठीक है भैया। मैं रात को सब पक्का करके बताती हूं।”
सुमन का मन सब्जियों में अटका हुआ था। इतनी सब्जियां आई पड़ी हैं। छोड़ जाऊंगी तो खराब हो जाएंगी और फिकेंगी! वहां ले जाऊं, इतनी भी नहीं हैं! परसों जाऊं तो केवल गाजर और गोभियाँ बचेंगी। काट-पीट कर रख जाऊंगी। अनूप बना लेंगे। मन ही मन सब तय करके सुमन रसोई में खाना बनाने में लग गयी।दो दिन अनूप की छुट्टी होती थी। शनिवार को सुबह सब्जी मंडी जाते हैं। फिर बैंक और बाज़ार के काम निपटाते हैं और खूब सोते हैं। रविवार का दिन सुमन के साथ बिताते हैं। सुमन इसलिए रविवार को कहीं और का कोई काम नहीं रखती। ज़िन्दगी अच्छी भली चल रही है बस ये सर्दियों में सब्जियां ही सौतन सी लगती हैं सुमन को!
खैर… शादी से निपटकर सुमन और अनूप वापस आ गये दोनों बेटे-बहू भी आए थे। सीधे वहीं आए और वहीं से चले गए। खूब मौज-मस्ती के बीच भी सुमन के पीरियड्स आने की धुकधुकी लगी रही जिसके चलते वो थोड़ी असहज रही। भाभी ने टोका भी तो भाभी को बताया। भाभी भी खुशखबरी के लड्डू मांगकर छेड़छाड़ करती रही।
आज सुबह अनूप के ऑफिस जाने के बाद सुमन फिर डॉ के गयी। जाते ही डॉ ने भी बच्चे की संभावना के बारे में पूछा। सुमन ने बताया कि पंद्रह साल पहले ही पति का ऑपरेशन हो चुका है। फिर भी डॉ ने कहा कि कभी कभी ऑपरेशन फेल भी हो जाता है इसलिए प्रेगनेंसी टेस्ट करवाना चाहिए।सुमन का तो मूड ही खराब हो गया! अब इस उम्र में कितनी शर्म की बात है और जीव-हत्या का पाप चढ़ेगा सो अलग! तबियत सम्हलते भी समय लगेगा। सुमन अपनी आदत के अनुसार आगे से आगे सोचने लगी कि नर्स टैस्ट के लिए आ गई। ईश्वर से प्रार्थना करते हुए सुमन ने सैंपल दिया और ये क्या!! रिपोर्ट पॉजिटिव आ गई। सिर पकड़ कर बैठ गई सुमन फिर सिसकियां छूट पड़ी। डॉ ने समझाया कि अभी बहुत कम समय हुआ है इसलिए एबॉर्शन में खतरा अपेक्षाकृत कम है। कल सुबह ही आ जाना ,सब ठीक हो जाएगा।
डॉक्टर के चैम्बर से निकलते ही उसने अनूप को फोन लगाया और बात करने की कोशिश में रोने लगी। अनूप भी घबरा गया। फिर सुमन ने बस इतना कहा कि उसकी तबियत ठीक नहीं हो सके तो घर जल्दी आ जाना। अनूप ने टैस्ट के बारे में पूछा तो सुमन पॉज़िटिव कहकर सुबकने लगी। अनूप ने कहा घर पहुंचो मैं भी आ रहा हूं। सुमन को कुछ हिम्मत मिली! याद आ रही है अनूप की!उस की गोद में सर रखकर रोने से उसके मन को हमेशा कितना सुकून मिलता है!सारी तकलीफ़, सारे दर्द और दुनिया भर के शिकवे गिले आंसुओं के साथ बहकर गायब हो जाते हैं और रह जाता है अनूप का प्यार-दुलार और साथ! यही तो जीवन की सबसे बड़ी पूंजी है। विचारों की श्रृंखला अनवरत चलती ही रहती है सुमन के भीतर!
घर खुला था यानि कि अनूप पहले ही आ गया था। भीतर जाते ही सुमन ने देखा अनूप ड्रॉइंग रूम में ही बैठा है। पर्स एक ओर पटककर वो अनूप से लिपटकर रोने लगी। “अब इस उम्र में जीव हत्या का पाप सिर चढ़ेगा अनूप! बहुत बुरा लग रहा है! उम्र को देखते हुए खतरा भी कम नहीं पर डॉक्टर बोलीं कि समय कम ही हुआ है इसलिए जितनी जल्दी एबॉर्शन करवाओगे उतना ठीक होगा। कल ही बुलाया है।” सुमन अपनी धुन में कहती जा रही थी। अनूप उसे थामे हुए शांत बैठा था। अचानक उसने सुमन को कंधे से पकड़कर कुछ दूर किया और उसकी ओर देखते हुए बोला “किसका बच्चा है ये सुमी?”
सुमन को सहसा अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ! “ये क्या कह रहे हो तुम अनूप? ऐसे सोच भी कैसे सकते हो तुम?”
“इसमें सोचने की बात ही नहीं है! तुम भूली तो नहीं होंगी कि मेरा ऑपरेशन हुए सत्रह साल हो चुके हैं!” अनूप गुस्से में नहीं था।उसकी आवाज़ में दर्ज दर्द आसानी से पहचाना जा सकता था। कहते हैं ना कि शोक के सम्मुख क्रोध कहां? बस शायद वही हाल अनूप का भी था।
“तो?” सुमन अपमान और अविश्वास से विह्वल हो रही थी। “ऑपरेशन फेल भी होता है अनूप!”
“इतने सालों बाद?” अनूप भी मानने को तैयार नहीं था
“तुम मुझे बचपन से जानते हो! तीस साल की शादीशुदा ज़िंदगी में कभी कोई ऐसी बात नहीं हुई कि तुम मुझ पर शक करो और आज अचानक मेरे बारे में ऐसा सोच भी कैसे लिया तुमने?” सुमन अपमान की आग में झुलसने लगी। उसने बालों में लगा क्लच निकाल कर दूर फेंक दिया। बालों में उंगलियां फंसाकर सिर पकड़कर ज़मीन पर बैठ गई। आंखों से आंसू अपमान की आग से पिघल कर निकल रहे थे और हैरत थी कि रोम-रोम से टपक रही थी! उसे समझ नहीं आ रहा था कि अनूप की इस बात पर कैसे रिएक्ट करे? कैसे समझाए उसे?
इधर अनूप भी जैसे जड़ होकर सोफे में धंस गया था! बहुत बचपन से जानता है सुमी को और बीस बरस की थी तब तो ब्याह कर घर ले आया था।उस के बारे में वो ऐसा सोच भी नहीं सकता था पर रिपोर्ट को भी झुठलाया नहीं जा सकता था! इतने सालों बाद ऑपरेशन फेल होने की बात उसने कभी सुनी ही नहीं थी। अजीबोगरीब उलझन भरी नज़रों से उसने सुमन को देखा तो मन एकदम पिघलने लगा। जी चाहा कि उठकर गले लगा ले अपनी सुमी को और शक करने के लिए माफी मांग ले।पर न जाने क्या था भीतर जो वो सिर पकड़कर बैठा ही रह गया!
कमरे में अभूतपूर्व सन्नाटा पसरा हुआ था। बीच-बीच में सुमन की सिसकियां सन्नाटे को चीरती हुई अनूप के कानों को बेध रही थी।
लगभग एक घंटा ऐसे ही निकल गया। सुमन अनूप के पास सोफे पर सिर टिकाए ज़मीन पर बैठी थी। अनूप का अविश्वास उसके वज़ूद को जैसे चुनौती देता हुआ ललकार रहा था और उससे उपजी हताशा और दुख से मुंह पर चुप्पी के असंख्य ताले जड़े हुए प्रतीत हो रहे थे।
अनूप उठकर खिड़की के पास हाथ बांधकर खड़ा हो गया! बाहर चटक धूप बगीचे की घास पर पड़े पानी को और उजला बना रही थी। रंग-बिरंगे फूल इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहे थे। परिंडे पर चिड़ियों की चहचहाहट थी और नीम पर गिलहरी का परिवार लुका-छिपी खेल रहा था। आम दिनों में ये नज़ारा दिल खुश कर दिया करता था पर आज धूप चुभ रही थी आंखों में! फूलों की आभा भी फीकी लग रही थी और अनूप का मन हुआ कि एक पत्थर मारकर चिड़ियाओं को उड़ा दे, गिलहरियों को भगा दे! कोई रंग, कोई खुशबू, कोई आवाज़ और नज़ारा आज भीतर की घुटन, बेचैनी और बेबसी को दूर कर पाने में सक्षम नहीं था। हाथों को खोलकर उसने खिड़की की चौखट पर रखते हुए मन ही मन कुछ निश्चय किया। थोड़ी देर ऐसे ही खड़े रहने के बाद उसने मुड़कर सुमन को देखा।दर्द की एक लहर उठी।कह नहीं सकते कि वो सुमन को बेहाल देखकर उठी थी यह फिर संभावित धोखे के विचार से उठी थी! भीतर कुछ पिघलने-सा लगा जो उसे सुमन की ओर बहा ले गया। उसने सुमन को उठाकर सीने से लगा लिया। सुमन के भीतर ठहरा लावा फिर से आंसुओं में ढलकर बहने लगा। उसने कोई विरोध न करते हुए खुद को अनूप की बाहों में सौंप दिया।अनूप के आंसुओं की तपिश महसूस की तो उसे लगा कि अनूप को अपने व्यवहार पर पछतावा है! दिल पर रखी दुख की चट्टान रेत होकर बिखरने लगी। सिर उठाकर उसने अनूप की आंखों में देखा। वहां उसके लिए असीम अनंत प्रेम तो था पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह भी साफ दिखाई दे रहा था।
“अनूप…कुछ कहो भी अब!क्या सोच रहे हो?”
अनूप ने उसका चेहरा अपने हाथों से थामते हुए बहुत लाचारी से उसकी ओर देखते हुए कहा “सुमी…एबॉर्शन से पहले क्या मेरी तसल्ली के लिए हम पैटर्निटी टेस्ट नहीं करवा सकते?”
“अनूप…” सुमन की आवाज़ कांप रही थी!वो आकाश से सीधे धरती पर आ गिरी जैसे! उसने अनूप की हथेलियों को कसकर पकड़ा। “तुम ये क्या कह रहे हो? मुझे खुद को पाक-साफ साबित करने के लिए अग्नि परीक्षा देने को कह रहे हो तुम? इतने सालों का भरोसा पल में टूट गया? इतना कमज़ोर था वो भरोसा जो तुमने मुझ पर रखा? और इतने सालों में न जाने कितनी रातें तुमने बिज़नस के सिलसिले में बाहर गुज़ारीं पर मैंने कभी कुछ नहीं कहा बल्कि ऐसा कभी सोचा तक नहीं कि तुम होटलों में रुकते हो तो कुछ ग़लत भी कर सकते हो!मेरा भरोसा तुम पर अडिग रहा हमेशा! पर … पर मैं तुम्हें समझने में इतनी बड़ी गलती कैसे कर गई?” उसने अनूप के हाथ छोड़ दिए और अपने हाथों में चेहरा छुपा कर रोने लगी। “मैं नहीं जानती थी कि तुम्हारा मुझ पर भरोसा उम्र के इस मोड़ पर भी इतना कच्चा निकलेगा!”
“सुमी…सुमी मुझे समझने की कोशिश करो प्लीज़!” अनूप तड़पकर बोला। सुमी का रोना उसे विचलित कर रहा था। “मैं झूठा साबित होकर शर्मिंदा होना चाहता हूं सुमी! मेरे मन में जो विचार आया उसे गलत साबित करने के लिए, तुम पैटर्निटी टेस्ट की रिपोर्ट मेरे मुंह पर मारना सुमी! और मैं जीवन भर पछतावे की आग में झुलसता रहूंगा। यही मेरी सही सज़ा होगी।” वो सुमन को कंधों से पकड़ कर झिंझोड़ते हुए जैसे गिड़गिड़ाने लगा।
समन का रोना रुक गया था। एक अजीब सी कठोरता उसके चेहरे पर छाने लगी। जीवन में पहली बार उसने जलती हुई आंखों से अनूप को देखा! उसकी पकड़ से खुद को छुड़ाते हुए एक-एक शब्द सम्हलते हुए दृढ़ निश्चय से कहा “हां अनूप! पैटर्निटी टेस्ट तो हमें करवाना ही चाहिए! आखिर तुम्हारी तसल्ली भी तो बहुत ज़रूरी है!”
अनूप कुछ नहीं बोला या शायद उसे समझ ही नहीं आया कि क्या कहना चाहिए था अब!
ऑफिस से ज़रूरी काम के लिए फोन आया और वो सुमी को अपना ख्याल रखने का कहकर निकल गया।
उसके जाते ही सुमी ने खुद को सम्हाला। उस ने बड़ी बहू काव्या, छोटे बेटे रोहन और भाभी को फोन लगाकर सब बताया। भाभी ने कहा हम रात को ही पहुंच रहे हैं।
काव्या को विश्वास ही नहीं हो रहा था। फिर भी उसके दिमाग़ में कुछ और ही खिचड़ी पकने लगी!वो इस बच्चे की हत्या के पाप से सबको बचाने के लिए इसे खुद अपनाने की बात सोचने लगी। वैसे भी उसकी अपनी अक्षमता के चलते वो दोनों बच्चा गोद लेने के बारे में सोच ही रहे थे। परिवार का बच्चा परिवार में ही रह जाएगा। बस उम्र को देखते हुए थोड़ा जोखिम भरा मामला है! यही सब सोचते हुए उसने पति कानन को फोन करके सब बताया। कानन एकदम बौखला गया! “अब इस उम्र में ये दोनों पगला गए हैं क्या? एक तो प्रेगनेंसी ऊपर से पैटर्निटी टेस्ट!
मैं रोहन से बात करता हूं। तुम चलने की तैयारी करो रात को ही निकलते हैं।”
काव्या भी सहमत हुई और उसने ज़रूरी पैकिंग करनी शुरू कर दी।
इधर रोहन और उसकी पत्नी ऋचा को भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। उन्होंने भी सुबह पहुंचने की तैयारी कर ली।
इधर सुमन का दिन सोच-विचार,अपने भैया और दोनों बेटों से फोन पर लम्बी बातचीत और अस्पताल जाने की तैयारी में ही निकल गया। शाम होने लगी थी। उसने उठकर लाइट्स ऑन कीं।घर में खाना नहीं बना था। सुमन को ध्यान आया कि फ्रिज सब्ज़ियों से भरा पड़ा है सब खराब हो जाएंगी। आटा तो लगा रखा ही है। कुछ बना लेती हूं।।उठकर रसोई में गई पर रोटी बनाने का मन नहीं हुआ। फिर भी सब सब्जियां डालकर पुलाव बना लिया और डाइनिंग टेबल पर रख दिया।
बैल बजी। अनूप आ गया था।आते ही हमेशा की तरह सुमी को गले लगाना चाहा पर सुमी दरवाज़ा खोलकर तुरंत ही वॉशरूम में चली गई। अनूप भी अचकचाया सा चाय का कहकर नहाने चला गया। न जाने क्यों आज सुमन का उखड़ा हुआ मूड़ देखकर अनूप को हमेशा की तरह उसको मनाने का मन ही नहीं हुआ! वो सिर पकड़कर काउच में धंस गया। उसके मन में तरह-तरह के विचार उठने लगे। ‘इसका मतलब ये है कि मैं सही हूं! सुमी का ज़रूर किसी और से संबंध है इसीलिए वो इतनी परेशान है कि टैस्ट की रिपोर्ट के बाद मुझसे आंख कैसे मिलाएगी!’ फिर लगा ‘नहीं नहीं! मेरी सुमी ऐसी नहीं हो सकती! पर मैंने शक करके उसके आत्मसम्मान को,स्वाभिमान को बहुत चोट पहुंचाई है इसलिए वो दुखी हो रही है!’ वैचारिक झंझावात लगातार विचलित कर रहे थे! घर लौटे हुए घंटे भर से अधिक हो गया था पर अनूप अभी तक बैडरूम में ही था। सुमन ने बैडरूम के दरवाज़े पर ही खड़ी हो कर कहा-“डाइनिंग टेबल पर खाना रखा है!” और बच्चों के कमरे में जाकर पलंग पर पड़ गई। भूख और नींद कोसों दूर थीं। अनूप के साथ बीती खुशहाल ज़िन्दगी चलचित्र की भांति सामने से गुज़र रही थी। और आखिर में पैटर्निटी टेस्ट पर आकर रुक गई। और एक पल में ज़िन्दगी की रंगत बदल गई !गालों पर लुढ़की बूंदों ने उसे ज़िंदा होने का एहसास कराया। इतने में दरवाजे की घंटी बजी। भैया भाभी आ गये थे। सुमन ने भाभी से लिपट कर रोकी हुई रुलाई को फूट जाने दिया! अनूप उन दोनों को देखकर चौंक गया! “सुमित ! तुम लोग अचानक यहां कैसे?”
भैया सीधे अनूप से मुखातिब हुए-“क्या चल रहा है ये अनूप? पागल हो गए हो दोनों? कल सुबह डॉक्टर के चलते हैं और मामला खत्म करते हैं। ऑपरेशन फेल भी होते हैं अनूप! मैंने कई डॉक्टरों से पता किया है!”
“ओह् तो ये बात है! सुमी ने बुलाया है तुम्हें!” अनूप का विश्वास और भी पुख्ता होने लगा!
सुमित! मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा अब! मैंने ऐसा क्या ग़लत कह दिया? मानते हैं कि वो सच्ची है! तो अच्छा है ना कि टेस्ट की रिपोर्ट मेरा मुंह बंद कर देगी और वो खुद को सही साबित कर के खुश ही होगी ना! इसमें इतना गुस्सा होकर मुंह फुलाने और तुम्हें बुलाने की बात कहां से आ गई?अब तुम ही उससे बात करो प्लीज़।मेरी तो वो सुनेगी नहीं!”अनूप उलझन में था।
“मैं बात करता हूं सुमी से!” सुमित ने आश्वासन दिया। फिर उसको कुछ याद आया, “खाने का क्या हुआ? कुछ बनाया सुमी ने? मीनू भी लेकर आई है कुछ खाना-वाना। खाया तो नहीं होगा ना?”
“नहीं यार भूख ही नहीं है। वैसे कुछ बनाकर रखा है डाइनिंग टेबल पर सुमी ने!” इतने बुरे माहौल में भी सुमी ने खाना बनाया और खाने को कहा ये बात अनूप को भीतर तक नरम तो कर गयी थी पर उसकी नाराज़गी की बात से वो सुमन से कुछ नाराज़ सा था। सुमित का हाथ पकड़कर कुछ देर ऐसे ही बैठा रहा।
सुमित ने कहा कि खाने का कुछ देखो ऐसा भूखे रहने से समस्या का हल नहीं होगा।
“भाभी को बोल कि सुमी को भी खिला दें।” अनूप ने फिर संयत होकर सुमित को भेजा।
“मीनू वहीं ले जा रही है सुमी का खाना। चल तू भी खा ले अब!” सुमित के कहने पर अनूप ने भी बुझे मन से थोड़ा सा पुलाव खा लिया।
घर में मेहमानों के आने पर कितनी ही बार सुमन और अनूप अलग-अलग सोए हैं पर आज की रात अलग-अलग सोना अखर रहा था। ऐसा लगता था कि अबके बिछड़े तो शायद कभी फिर ख्वाबों में मिलें।
सुमित और मीनू देर तक दोनों से बात करते रहे।पर न सुमन कमरे से हिली न अनूप बाहर आया था। वो दोनों को एकसाथ आमने-सामने बैठाकर बात करना चाहते थे पर ऐसा हो नहीं सका।अहम और ऐंठ जो उनके बीच कभी नहीं रही थी, आज अपने चरम पर थी।रात यूं ही सोते-जागते कटी। सुबह-सुबह दोनों ने बेटे-बहू भी आ गये। अनूप को उनको देखकर जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा! क्या पैटर्निटी टेस्ट इतनी गंभीर बात है कि सुमी ने सबको इकट्ठा कर लिया?
सब बैठक में एक साथ बैठे थे पर बात शुरू करने में हिचकिचा रहे थे। तब बड़ी बहू काव्या और कानन ने ही बात शुरु की और अपनी मंशा जताई कि बच्चे को हम ले लेंगे।न हत्या का दोष न अनजान बच्चे को गोद लेने का कोई जोखिम!रही बात मम्मी के स्वास्थ्य की तो वो हम अपने साथ रखकर पूरा ध्यान रखेंगे। उनकी बात पूरी होती उसके पहले ही सुमन ने अनूप को जलती हुई नज़रों से देखते हुए पूछा-“और पैटर्निटी टेस्ट? उसका क्या?वो नेगेटिव आया तो भी पालोगे?” एक पल को कमरे में सन्नाटा छा गया!
फिर सब लगभग एक साथ ही बोल पड़े
“जीजी तुम पागल हो गई हो? कुछ भी बोल रही हो! मैं कहती हूं नेगेटिव आ ही नहीं सकता।” मीनू ने डांटा।
“और हम करवाएं ही क्यों?” सुमित ने अपने मन की बात कह ही दी।
“मम्मा ये क्या बकवास बात करते हो? आखिर आप चाहते क्या हो?” ये कानन था।
What rubbish Mumma!! You have lost all your senses!! Disgusting ! रोहन झल्लाया।
बहूएं हतप्रभ सी सुमन के पास ही बैठी थीं। अनूप उठकर खिड़की के पास खड़ा हो गया।
कुछ पल को पसरे सन्नाटे को सुमन ने ही तोड़ा “सॉरी काव्या!” उसने काव्या की हथेली अपने हाथ में लेकर उसे थपथपाते हुए कहना जारी रखा-“इस हादसे की कोई निशानी रखना ठीक नहीं है! जो होना है, हो और खत्म हो जाए बात यहीं।”
सुमन की मन:स्थिति देखते हुए हर कोई उसी को सम्हालने में ला हुआ था! दोनों बहुएं कह रही थीं कि वो एबॉर्शन के बाद उनके साथ रहें तो भाभी अपने साथ ले जाने की ज़िद्द कर रही थीं। “मम्मी आप हमारे साथ रह लो कुछ दिन! फिर खूब घूमो-फिरो! देश-विदेश घूमो! आजकल एजेंसियां खूब ग्रुप-ट्रिप करवाती हैं।” छोटी बहू ऋचा ने सुमन से लिपटते हुए कहा।
अनूप इस बार अकेला पड़ गया था। खिड़की के पास खड़े खड़े वो चुपचाप सुनता रहा! उसके मन में भी विचारों का सैलाब उमड़ रहा था-“कैसे सब कुछ मेरे हाथ से निकलता जा रहा था। जहां मेरी हां की मुहर लगे बिना कोई बात फाइनल नहीं होती थी, वहां आज कोई मेरे मन की बात जानना तक नहीं चाह रहा है! मेरी जगह कोई भी पति होता तो यही कहता! कहां क्या ग़लत कह दिया मैंने? सुमी के पास तो बल्कि मौका भी है मुझे ग़लत साबित करने का! फिर भी सब मुझे नज़र अंदाज़ कर रहे हैं! बच्चों ने भी अब तक कोई बात सीधे-सीधे मुझसे की ही नहीं है! मैं ही अपराधी हो गया हूं जैसे!”
ऋचा और काव्या ने सबसे पहले उठकर सभा बर्खास्त करने का संकेत देते हुए कहा कि सब नहा-धोकर तैयार हो जाएं फिर नाश्ता करके डॉक्टर के पास चलते हैं। जानी-पहचानी हैं वो, उनसे भी ज़रूरी सलाह-मशवरा करके फिर किसी निर्णय पर विचार करेंगे।
एक घंटे में सब तैयार हो कर नाश्ता कर रहे थे। बेहद गंभीर और बोझिल माहौल था!
हमेशा की तरह सुमन की वैचारिक चक्की चल रही थी-“अनूप के अविश्वास के बाद अब उसके साथ रहने का मन नहीं है! ऋचा के सुझाव पर सोचा जा सकता है पर ऐसे कितने दिन चलेगा? कितना घूमूंगी? फिर क्या बच्चे कभी यहां,इस घर में नहीं आएंगे-जाएंगे? तब मैं कहां जाऊंगी? नौकरी कर लूं फिर से? थोड़े दिन पहले सुधा की ननद ने एक स्कूल के हॉस्टल में वॉर्डन की नौकरी जॉइन की है! हां! ऐसी कोई नौकरी ठीक रहेगी जहां रहने-खाने की सुविधा भी हो! नौकरी मिलने तक कहां रहूंगी? रह तो यहां भी सकती हूं। ये मेरा घर है। जितना अधिकार अनूप का है उतना ही मेरा भी है! एक उम्र देकर चारदीवारी को घर बनाया है, हक़ है इस पर मेरा! पर अनूप के साथ रहने में मेरे भावुक होने का खतरा है।” अनूप के साथ… मन कहीं डूबने सा लगा इस ख्याल से ही… दिल के आसपास कुछ जमा हुआ था जो पिघलता हुआ महसूस होने लगा!पर सुमन ने दिल पर हाथ रख कर उसे सम्हाला और अपना निर्णय मन ही मन दोहराया! तब उसे याद आया कि डॉक्टर के चलना है।
“कौन कौन चल रहा है?” उसने नाश्ता खत्म करते हुए पूछा।
उत्तर सुमित ने दिया-“हम दोनों, कानन और रोहन!”
अनूप कुछ कहते-कहते रुक गया…उसे तो साथ जाना ही था।
डॉक्टर हैरान रह गयी जब उन्होंने पैटर्निटी टेस्ट की इच्छा जताई।पर इसे निजी मामला समझते हुए कुछ कहा नहीं! आवश्यक कार्यवाही हुई। डॉक्टर ने एबॉर्शन के लिए अगले दिन भूखे पेट बुलाया था। सब घर लौट आए।
सभी के बीच एक अवांछित चुप्पी बनी हुई थी। हमेशा हंसने हंसाने वाले लोग चुपचाप बैठे थे। बीच-बीच में कोई कुछ बात छेड़ कर माहौल हल्का करने की कोशिश करता पर वो कोशिश ज्यादा सफल न हो पाती। बहुएं सुमन को अपने साथ रहने के लिए राज़ी करने में लगी थीं तो सुमित अनूप को समझाने में लगा हुआ था कि अब भी वक्त है अपनी भूल स्वीकार कर के सुमी से माफ़ी मांग ले।पर अनूप को लगता है कि जब सुमी के पास मौका है उसे ग़लत साबित करने का तो फिर दिक्कत क्या है? कितनी ही बार ऐसा होता है कि हम सहमत नहीं होते हैं तो एक-दूसरे को तर्क या साक्ष्य देकर बात मनवाते हैं। तो इस बार इतना बवाल क्यों? और जब सुमी को उसकी परवाह ही नहीं है तो आखिर मैं ही क्यों झुकूं? और फिर काव्या की बात भी तो सही है। वो भी कोई नहीं मान रहा।
सुमित हताशा और गुस्से में था और अनूप से और बात नहीं करना चाहता। मीनू और बच्चों ने भी अनूप से बात करने की कोशिश की पर सब बेकार।
तो आखिर में फिलहाल के लिए तय ये हुआ था कि कल एबॉर्शन के बाद सुमी भैया-भाभी के साथ पीहर जाएगी।
सुमी ने रात में ही पैकिंग कर ली। सवेरे अस्पताल से सीधे ही निकलना है। ज़रूरी काग़ज़ात, फोटो,ज़ेवर और कपड़े-दवाएं सब रख लिए। जैसे ट्रांसफर के वक्त साथ रखती थी। एक बार भी अनूप से बात नहीं की। अनूप आश्वस्त सा था कि रिपोर्ट आते ही सब ठीक हो जाएगा। वो सुमी को घर ले आएगा।
सुबह-सुबह भैया-भाभी के साथ सुमन अस्पताल चली गई। दोपहर तक बेटे-बहू भी चले गए। अनूप ऑफिस निकल गया था।
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नियत समय पर अनूप रिपोर्ट लेने पहुंचा और धड़कते दिल से उसने रिपोर्ट पढ़नी शुरू की! और पढ़ते ही उसकी आंखों में खुशी के आंसू आ गए! लौटते समय रास्ते में से ही उसने सुमन को फोन किया और बताया तो सुमन ने कहा “मुझे बता रहे हो अनूप? मुझसे बेहतर कौन जानता था कि तुम ही उस बच्चे के पिता थे! घर पहुंच कर बात करना। मेरा जवाब तुम्हें वहां मिलेगा!” अनूप रिपोर्ट लेकर खुशी-खुशी घर लौटा! तो तलाक का नोटिस और सुमन की चिट्ठी उसका इंतज़ार कर रहे थे!
सुमन ने लिखा था “अनूप,हमेशा तुम सबकी सहमति से ही सब काम किया! नौकरी करने में राजी थे तो की! जब बच्चों के लिए छोड़ी तब भी सबसे सलाह करके छोड़ी! शादी-ब्याह हो या घूमना-फिरना, सब कुछ सबकी सहमति से होता आया है।पर अब,आज मैं अपना निर्णय ले चुकी हूं! जिसको मंजूरी की तलब नहीं है!”
सुमन
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अनूप रिपोर्ट को छाती पर धरे गुमसुम पड़ा था। सुमन का फोन अब बंद था!कोई उसे नहीं बता रहा कि सुमन कहां है? न बच्चे और न भैया-भाभी!
आज उसे समझ आ रहा था कि उसने क्या कर दिया है।
सुमी के समर्पित जीवन पर शक किया!कितना मोह रहा उसे घर की हर चीज़ से! कुछ भी सामान वेस्ट नहीं होता था यहां। वो कुछ न कुछ बैस्ट आऊट ऑफ वेस्ट कर ही लेती थी। अपने घर की सुई भी दस सुईयों में जो पहचान सकती थी ऐसी सुमी ने सब छोड़ने की बात सोच ली!ऐसा नहीं कि उनके बीच कभी कोई कहा-सुनी नहीं हुई पर स्वाभिमान पर ऐसी चोट कभी किसी ने किसी को नहीं पहुंचाई।ये उससे क्या हो गया??
काश वो रिपोर्ट आने का इंतजार न करके अपनी सुमि से पहले ही माफ़ी मांग लेता!
शाम होने को थी घर में तो लाइट जलाकर उजाला हो जाएगा पर जीवन में जो अंधकार भर लिया था उसके लिए कोई उपाय नहीं! कोई उपाय नहीं….
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दूर कहीं भोर की लाली में सुमन आज अपने हाथ में असिस्टेंट वॉर्डन का नियुक्ति पत्र लेकर नये सफर पर निकल पड़ी थी!
शिवानी जयपुर
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filed under – shivani sharma, relationship, husband -wife, women issues
बहुत शुक्रिया वंदना वाजपेई जी।
अच्छी कहानी
रिश्तों के बीच आ रही उधेड़बुन का सुंदर चित्रण ।
आधुनिक समाज में भी सीता की अग्निपरीक्षा !!
धन्यवाद सोनू
लोग ले रहे हैं और सुमियाँ दे रही हैंपर अब परिक्षाओं के परिणाम सुमियाँ तय करेंगी!
वाह बेहद खूबसूरती से बुनी कहानी। सच है स्त्री के स्वाभिमान पर चोट करने के बाद बिखरने से बचा पाना मुश्किल होता है और होना भी चाहिए।
बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
आपने पसंद की और सराही है ये मेरे लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है!
आभारी रहूंगी
सांस रोके पढ़ती रही सोचकर कि शायद अनूप को अपनी गलती का एहसास हो जाये ।बहुत बढ़िया कहानी शिवानी
आपको बांधे रखने में सफल हुई कहानी तो ये मेरे लिए बहुत खुशी की बात है! बहुत बहुत शुक्रिया सदैव आभारी रहूंगी 🙏🙏
बहुत बढिया कहानी ,सही निर्णय लिया सुमन ने
पात्र के साथ सहमति रखना यानि आपको पसंद आई कहानी 😊😊🙏🙏 बहुत शुक्रिया
बेहद भावात्मक एवं अत्यंत मार्मिक ,मं की झकझोरने वाली कहानी।स्त्री जीवन के त्याग, समर्पंण,अपनत्व की अविरल गाथा और उसपर आत्म सम्मान पे लगी चोट, उसके अस्तित्व पर प्रश्नचिंह?? सब कुह बहुत अच्छे से उकेरा आपने शिवानी जी दृश्य परिलक्षित हो चले मेरी आँखो के सामने और अश्रु छलछला उठे।👌🏻👌🏻👏🏻👏🏻👏🏻👍🏻
अभिभूत हूं सारिका जी! स्त्री मन के सरोकार सुख-दुख सब साझे ही होते हैं! आपका कहानी से इस तरह जुड़ाव हुआ उससे मैं भी भावुक हो रही हूं और खुशी के आंसू आ गए हैं।
सदैव आभारी रहूंगी आपकी 🙏🙏 बहुत शुक्रिया
बेहद मार्मिक ,कहानी का हर मोड़ बांध कर रख रहा , सुमन का निर्णय सटीक लगा , जीवन को समझौता मान कर हर परिस्थिति में ढलने वाली स्त्री का स्वाभिमान और आत्मसम्मान सबसे ऊपर होता । बहुत अच्छी कहानी
बहुत बहुत धन्यवाद प्रवीणा जी!
औरत का मन औरत ही समझ सकती है ।बेहद सच्चाई से भरी कहानी ।यही कारण है कि हमारे समाज में आज भी स्त्रियां स्वयं ही इस ज़िम्मेदारी को लेना चाहती हैं ताकि कभी ऑपरेशन फेल होने पर प्रश्नचिह्न का सामना न करना पड़े।कहने को छोटी बात लग सकती है लेकिन वास्तव में स्त्री के जीवन का निर्णायक पल हो जाती हैं ऐसी बातें।
बहुत ही खूबसूरती से बाँधा आपने शिवानी जी ।बधाई आपको
मनीषा जी यानि कि विश्वास नहीं किए जाने की तलवार हमेशा लटकती रहती है सिर पर! और ये विश्वास कमाने की जद्दोजहद में ही अपने ऊपर शारीरिक और मानसिक अत्याचार करती है स्त्री!
कहानी पसंद करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद 😊🙏
बहुत ही मार्मिक वर्णन है स्त्रियों के जीवन का अन्त में निर्णय भी सटीक था बदलाव आ रहा है! बहुत खूब लिखा!
बदलाव बहुत ज़रूरी है! है ना 😊😊
शिवानी जी को बधाई!अलग विषय पर सार्थक कहानी के लिये बधाई!
अजीब से मोड पर जिन्दगी की गाड़ी आ गई ।मेरे विचार से सही निर्णय लिया ।
आपकी क़लम हमेशा कुछ नया कमाल करती हैं, साधुवाद💐