(कहानी)अंतिम इच्छा
मोहन लाल जी मृत्यु शैया पर थे! उनके परिवार के सदस्य भी उनकी आखरी साँसे गिन रहे
थे! मोहन लाल जी के नजदीकी सगे-संबंधी और दोस्त-यार समाचार सुनकर अपनी-अपनी
साहूलियत के मुताबिक पिच्छले कुछ दिनों से उनके यहाँ आ-जा रहे थे। उनके घर में खूब
गहमा-गहमी लगी थी! न चाह कर और सब-कुछ भूल-भुलाकर भी उनके सभी मिलने-मिलाने वाले
दुनियादारी निभा रहे थे!
मोहन लाल जी के बारे में उनके अपनों और परायों, दोनों
की ही कोई अच्छी राय नही थी। उन्होने अपने जीते-जीते सभी को किसी न किसी ढंग से
कष्ट दिया था और ठेस पहुंचाई थी! समाज में उनकी इस बुरी आदत की अक्सर खुली चर्चा
होती थी और उन्हें खुद भी इसका पूरी तरह से आभास था! लेकिन, वे आदत से मजबूर थे!
जब तक किसी का बुरा न कर लेते उनकी रोटी हज़म नही होती थी!
वे अपने इन कर्मो का इस दुनिया को छोड़ने से पहले प्रायश्चित करना चाहते थे
और इस उदेश्य से उन्होने अपने सभी करीबी अपने सिरहाने ईकट्ठे कर लिए थे! उनकी आँखें नम थी और कहते-कहते उनका गला रूँध गया था –“मैं
जानता हूँ कि मैं एक बुरा इंसान हूँ…मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी किसी का
कोई भला नही किया…हरेक को कोई न कोई ठेस या हानी पहुंचाई है…उन्हे दुख
पहुंचाया है और अपने इन दुष्कर्मों के लिए
मैं शर्मिंदा हूँ…और आज जब मेरे जाने का…समय नजदीक आ गया है…मैं अपने
पापों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। मैं हाथ जोड़कर आप सब से विनती करता हूँ कि आप
मुझे मेरी सभी कुताहियों और गलतियों के लिए क्षमा दें!”
और इस उदेश्य से उन्होने अपने सभी करीबी अपने सिरहाने ईकट्ठे कर लिए थे! उनकी आँखें नम थी और कहते-कहते उनका गला रूँध गया था –“मैं
जानता हूँ कि मैं एक बुरा इंसान हूँ…मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में कभी किसी का
कोई भला नही किया…हरेक को कोई न कोई ठेस या हानी पहुंचाई है…उन्हे दुख
पहुंचाया है और अपने इन दुष्कर्मों के लिए
मैं शर्मिंदा हूँ…और आज जब मेरे जाने का…समय नजदीक आ गया है…मैं अपने
पापों का प्रायश्चित करना चाहता हूँ। मैं हाथ जोड़कर आप सब से विनती करता हूँ कि आप
मुझे मेरी सभी कुताहियों और गलतियों के लिए क्षमा दें!”
अपनी
कमजोर सांस को पकड़ते हुये, मोहन लाल जी पुन: बोले,“मैं अपने आप को सज़ा
देना चाहता हूँ…मेरी एक अंतिम ईच्छा है…!”
“वह
क्या पिता जी? बतायें, हम आप के लिये क्या कर सकते
हैं?” पास खड़े उनके सबसे बड़े बेटे रमेश ने उनका हाथ अपने हाथों में
लेते हुए पूछा!
“बेटा,मैं
चाहता हूँ कि जब मेरे प्राण पंखेरू हों, तब मेरा अंतिम-संस्कार करने
से पहले एक बड़ा कील मेरी छाती में ठोक दिया जाये! ऐसा करने से मुझे मेरे किए की
सज़ा मिल जाएगी!”
“नही, नही
बाबू जी, यह आप क्या कह रहे हैं…यह सब हमसे नही हो पाएगा…” कहते
कहते उनके बेटे रमेश की आँखें भर आई!
“हाँ,बेटा!तुम
सबमिलकर यह वादा करो,मुझे वचन दोकि तुम मेरी अंतिम ईच्छा पूरी करोगेऔर तभी
मैं इस दुनिया से शांति के साथ जा सकूँगा!”
“पिता
जी…!”
“…” और
यह कहकर मोहन लाल जी खामोश हो गये, उनकी आँखें मुंद गई और उनका
दम निकल गया!
परिवार
वालों ने अंतिम संस्कार से पहले उनकी अंतिम ईच्छा पूरी कर दी और अब उन्हें अंतिम
संस्कार के लिए शमशान-घाट ले जाया जा रहा था!
सूचना
पाकर पुलिस ने रास्ते में शव-यात्रा को रोका और परिवार वालों को शरीर से कफन हटाने
का आदेश दिया!
सभी
हताश थे और पसीना-पसीना हो गये। पुलिस वालों ने सभी को पकड़कर जेल में डाल दिया!
“भगवान
तुम्हारा भला करे,जीते जी तो तुमने किसी को सुख की सांस नही लेने दी, मरने
के बाद भी देखो क्या कर गये?”
पूरे शहर में मोहन लाल जी की बस यही चर्चा थी जिसके लिये वेसदैव
जाने जाते थे! लोगों की हालत यह थी कि न तो वे रो पा रहे थे और न ही हस ही सकते थे
अशोक परुथी‘मतवाला’
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दूरदर्शी दूधवाला
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