सभी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस व् जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं

अद्भुत संयोग है की इस बार जन्माष्टमी व् स्वतंत्रता दिवस एक साथ मनाया जा रहा है | लीलाधर , नन्द नंदन योगेश्वर श्रीकृष्ण जिन्होंने जन्म के साथ ही परतंत्रता के खिलाफ युद्ध की शुरुआत कर दी थी | उन्होंने अपने जीवन पर्यंत उस समय प्रचलित अनेकों बन्धनों अनेकों कुरीतियों व् परम्पराओं को तोडा व् उनसे आज़ादी दिलवाई | आज ये अनुपम संयोग संकेत दे रहा है की भले ही सन १९४७ में हमें स्वतंत्रता मिल गयी हो पर आज़ादी की लड़ाई अभी बाकी है | ये लड़ाई किसी विदेशी आक्रांता के खिलाफ नहीं वरन अपने ही देश में व्याप्त भ्रष्टाचार , धर्मिक विद्वेष व् सामाजिक कुरीतियों के साथ हैं | जिनसे हमें स्वयं ही अपने – अपने स्तर पर लड़ना है और स्वतंत्र होना है | आप सभी को स्वतंत्रता दिवस व् जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें

आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प लें नए भारत के निर्माण का

15 अगस्त ‘‘स्वतंत्रता दिवस’’ पर विशेष लेख – डाॅ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक नए भारत के निर्माण का:-             1942 में हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक संकल्प लिया था, ‘भारत छोड़ो’ का और 1047 में वह महान संकल्प सिद्ध हुआ, भारत स्वतंत्र हुआ। हम सब मिलकर संकल्प लेते हैं, 2022 तक स्वच्छ, गरीबी मुक्त, भ्रष्टाचार मुक्त, आतंकवाद मुक्त, सम्प्रदायवाद मुक्त तथा जातिवाद मुक्त नए भारत के निर्माण का। भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात ‘भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए’ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं – हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के। (2) उदार चरित्र वालों के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है:-             भारत एक महान देश है इसकी महानता इसकी उदारता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में छुपी हुई है। विश्वव्यापी समस्याओं के ठोस समाधान भारत जैसे देश के पास ही हैं। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान दुनियाँ से अलग एवं अनूठी है। इसलिए आज सारा विश्व भारत की ओर बड़ी ही आशा की दृष्टि से देख रहा है। देश की आजादी के समय दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी। एक ओर अंग्रेजों की संस्कृति भारत जैसे देशों पर शासन करके अपनी आमदनी बढ़ाने की थी तो दूसरी ओर भारत के ऐसे विचारशील लोग थे जो सारी दुनियाँ में ‘उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात उदार चरित्र वाले के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है, के विचारों को फैलाने में संलग्न थे। भारत की आज़ादी के लिए अनेक शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण त्याग दिये। इन शूरवीरों ने जो आवाज़ उठाई थी, वह महज़ अंगे्रजांे के खिलाफ़ नहीं बल्कि सारी मानव जाति के शोषण के विरूद्ध थी। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर 54 देशों ने अपने को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कर लिया। (3) भारत जैसे विशाल देश पर सारे विश्व को बचाने का दायित्व है:-             आज से लगभग 157 वर्ष पूर्व बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समक्ष अंग्रेजी दासता से देश को आजाद कराने की चुनौती थी, जिसके विरूद्ध उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ लड़ाई लड़ी और भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया। लेकिन बदलते परिदृश्य में आज विश्व के समक्ष दूसरी तरह की समस्यायें आ खड़ी हुईं हैं। वर्तमान में विश्व की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका, 36,000 बमों का जखीरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि समस्याओं के कारण आज विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। आज ऐसी विषम परिस्थितियों से विश्व की मानवता को मुक्त कराने की चुनौती भारत जैसे महान देश के समक्ष है। (4) भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा:-             प्राचीन काल में हमारे देश का सारे विश्व में ‘‘जगत गुरू’’ के रूप में अत्यन्त ही गौरवशाली इतिहास था। हमारे देश के गौरवशाली इतिहास को विदेशी शक्तियों द्वारा कुचला तथा नष्ट किया गया। भारत ही विश्व का ऐसा देश है जिसने सबसे पहले सारे विश्व को अध्यात्म, दर्शन, धर्म, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला, न्याय, भाषा आदि का ज्ञान दिया। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते (1) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारा ‘विश्व एक परिवार है’ की भारतीय संस्कृति तथा (2) भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51 को शामिल करते हुए) का संरक्षक होने के नाते, मानवजाति के इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक शक्तिशाली बनाने के साथ ही उसे प्रजातांत्रिक बनाने पर जोर देने का दायित्व भारत पर है। ऐसा करके भारत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्राविधानों का पालन करने के साथ ही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति को भी सारे विश्व में फैलायेंगा। विश्व भर की उम्मीदें भारत से जुड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत ही वो अकेला देश हैं जो न केवल भारत के 40 करोड़ वरन् विश्व के 2 अरब से ऊपर बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। (5) हमें अपनी संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्व को एकता की डोर से बांधना है:-             महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘कोई-न-कोई दिन ऐसा जरूर आयेगा, जब जगत शांति की खोज करता-करता भारत की ओर आयेगा और भारत समस्त संसार की ज्योति बनेगा।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यदि हम वास्तव में संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।’’ हमारा मानना है कि भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुच्छेद 51 के बलबुते सारे विश्व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संताने हैं और हमारा धर्म है ‘‘सारी मानवजाति की भलाई।’ अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं दोहराई न जायें। इसके लिए भारत को अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के आदर्श के अनुकूल सारे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय का शीघ्र गठन करने की अगुवाई पूरी … Read more

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के

swatantrta divas par vishesh kavita / main swpn dekhta hoon ek aise swarajy ke  मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ कोई माँ भूख से बिलबिलाते बेबस लाचार बच्चे के आगे पानी भर परात में न उतारे चंदा यूँ बहलाते हुए कि चुप हो जा बेटा देख तेरी रोटी गीली हो गयी है खा लेना जब सूख जाए अपलक उसे ताकते ताकते सो जाए नन्हा बच्चा थक हार कर २ मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ लाला के होटल में  बर्तन मलता भीखू घरों में झाड़ू कटका करती छमिया फेंक कर झाड़ू और जूना उठा लें किताबें चल दे स्कूल की ओर कि यही बस यही उपाय है उत्पीडन से निकलने का ३ मैं स्वप्न देखता हूँ ,एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ मान के गर्भ में न असुरक्षित रहे बेटियां डॉ की सुई से छिपने का असफल प्रयास करते हुए न निकाली जाए टुकड़े -टुकड़े कर अपितु सहर्ष जन्म लेकर करे उद्घोष कि लिंग के आधार पर नहीं छीना जा सकता जन्म लेने का अधिकार ३ मैं स्वप्न देखता हूँ ,एक ऐसे स्वराज्य के जहाँ कोई निर्भया सड़क पर न फेंकी जाए रौंद कर झोपडी में रहने वाला ननकू न हार जाए मुकदमा घूस न दे पाने की वजह से जहाँ सफाई अभियान में न सिर्फ शहर अपितु तन ,मन और विचारों की भी हो स्वक्षता जहाँ अपने -अपने ईश्वर को श्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए तलवारे थाम कर न नेस्तनाबूत कर दी जाए मानवता ४ मैं स्वप्न देखता हूँ हाँ ! मैं रोज स्वप्न देखता हूँ मेरी पूरी पीढ़ी स्वप्न देखती है एक ऐसे स्वराज्य की जहाँ हम अपनी जड़ों को सीचते हुए पुराने दुराग्रहों कुटिलताओ और वैमनस्यता को भूलकर रचेंगे एक नया भारत पर ये मात्र स्वप्न ही नहीं है ये उद्घोष है कि ये स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है और हम इसे ले कर रहेंगे शिवम् मेरा भारत महान ~ जय हिन्द

‘‘स्वतंत्रता दिवस’’ पर विशेष लेख : भारत बनेगा फिर से विश्व गुरु

15 अगस्त ‘‘स्वतंत्रता दिवस’’ पर विशेष लेख – डाॅ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के:- भारत के लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी कुर्बानियाँ देकर ब्रिटिश शासन से 15 अगस्त 1947 को अपने देश को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया था। तब से इस महान दिवस को भारत में स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत के महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपने देश की आजादी के लिए एक लम्बी और कठिन यात्रा तय की थी। देश को अन्यायपूर्ण अंग्रेजी साम्राज्य की गुलामी से आजाद कराने में अपने प्राणों की बाजी लगाने वाले लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के बलिदान तथा त्याग का मूल्य किसी भी कीमत पर नहीं चुकाया जा सकता। इन सभी ने अपने युग की समस्या अर्थात ‘भारत को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कराने के लिए’ अपने परिवार और सम्पत्ति के साथ ही अपनी सुख-सुविधाओं आदि चीजों का त्याग किया था। आजादी के इन मतवाले शहीदों के त्याग एवं बलिदान से मिली आजादी को हमें सम्भाल कर रखना होगा। भारत की आजादी की लड़ाई में लाखों शहीदों के बलिदानी जीवन हमें सन्देश दे रहे हैं – हम लाये हैं तूफान से किश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों सम्भाल के। (2) उदार चरित्र वालो के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है:-  भारत एक महान देश है इसकी महानता इसकी उदारता तथा शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व में छुपी हुई है। विश्वव्यापी समस्याओं के ठोस समाधान भारत जैसे देश के पास ही हैं। भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान दुनियाँ से अलग एवं अनूठी है। इसलिए आज सारा विश्व भारत की ओर बड़ी ही आशा की दृष्टि से देख रहा है। देश की आजादी के समय दो विचारधाराओं के बीच लड़ाई थी। एक ओर अंग्रेजों की संस्कृति भारत जैसे देशों पर शासन करके अपनी आमदनी बढ़ाने की थी तो दूसरी ओर भारत के ऐसे विचारशील लोग थे जो सारी दुनियाँ में ‘उदारचरित्रानाम्तु वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात उदार चरित्र वाले के लिए यह पृथ्वी एक परिवार के समान है, के विचारों को फैलाने में संलग्न थे। भारत की आज़ादी के लिए अनेक शूरवीरों ने हँसते-हँसते अपने प्राण त्याग दिये। इन शूरवीरों ने जो आवाज़ उठाई थी, वह महज़ अंगे्रजांे के खिलाफ़ नहीं बल्कि सारी मानव जाति के शोषण के विरुद्ध थी। भारत की आजादी से प्रेरणा लेकर 54 देशों ने अपने को अंग्रेजों की गुलामी से मुक्त कर लिया। (3) भारत जैसे विशाल देश पर सारे विश्व को बचाने का दायित्व है:-  आज से लगभग 157 वर्ष पूर्व बलिदानी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के समक्ष अंग्रेजी दासता से देश को आजाद कराने की चुनौती थी, जिसके विरूद्ध उन्होंने पूरी शिद्दत के साथ लड़ाई लड़ी और भारत को अंग्रेजों की दासता से मुक्त कराया। लेकिन बदलते परिदृश्य में आज विश्व के समक्ष दूसरी तरह की समस्यायें आ खड़ी हुईं हैं। वर्तमान में विश्व की सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक व्यवस्था पूरी तरह से बिगड़ चुकी है। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद, भूख, बीमारी, हिंसा, तीसरे विश्व युद्ध की आशंका, 36,000 बमों का जखीरा, ग्लोबल वार्मिंग आदि समस्याओं के कारण आज विश्व के दो अरब तथा चालीस करोड़ बच्चों के साथ ही आगे आने वाली पीढ़ियों का भविष्य अंधकारमय दिखाई दे रहा है। आज ऐसी विषम परिस्थितियों से विश्व की मानवता को मुक्त कराने की चुनौती भारत जैसे महान देश के समक्ष है। (4) भारत ही विश्व में शान्ति स्थापित करेगा:- प्राचीन काल में हमारे देश का सारे विश्व में ‘‘जगत गुरू’’ के रूप में अत्यन्त ही गौरवशाली इतिहास था। हमारे देश के गौरवशाली इतिहास को विदेशी शक्तियों द्वारा कुचला तथा नष्ट किया गया। भारत ही विश्व का ऐसा देश है जिसने सबसे पहले सारे विश्व को अध्यात्म, दर्शन, धर्म, योग, आयुर्वेद, संगीत, कला, न्याय, भाषा आदि का ज्ञान दिया। सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश होने के नाते (1) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ अर्थात् सारा ‘विश्व एक परिवार है’ की भारतीय संस्कृति तथा (2) भारतीय संविधान (अनुच्छेद 51 को शामिल करते हुए) का संरक्षक होने के नाते, मानवजाति के इतिहास के इस निर्णायक मोड़ पर, संयुक्त राष्ट्र महासभा में संयुक्त राष्ट्र संघ को और अधिक शक्तिशाली बनाने के साथ ही उसे प्रजातांत्रिक बनाने पर जोर देने का दायित्व भारत पर है। ऐसा करके भारत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 51 के प्राविधानों का पालन करने के साथ ही भारत की ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति को भी सारे विश्व में फैलायेंगा। विश्व भर की उम्मीदें भारत से जुड़ी हुई हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि भारत ही वो अकेला देश हैं जो न केवल भारत के 40 करोड़ वरन् विश्व के 2 अरब से ऊपर बच्चों तथा आगे आने वाली पीढ़ियों के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है। (5) हमें अपनी संस्कृति तथा संविधान के अनुरूप सारे विश्व को एकता की डोर से बांधना है:-  महात्मा गांधी ने कहा था कि ‘‘कोई-न-कोई दिन ऐसा जरूर आयेगा, जब जगत शांति की खोज करता-करता भारत की ओर आयेगा और भारत समस्त संसार की ज्योति बनेगा।’’ साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि ‘‘यदि हम वास्तव में संसार से युद्धों को समाप्त करना चाहते हैं तो हमें उसकी शुरूआत बच्चों से करनी होगी।’’ हमारा मानना है कि भारत ही अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के अनुच्छेद 51 के बलबुते सारे विश्व को बचा सकता है। इसके लिए हमें प्रत्येक बच्चे के मस्तिष्क में बचपन से ही ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की महान संस्कृति डालने के साथ ही उन्हें यह शिक्षा देनी होगी कि हम सब एक ही परमपिता परमात्मा की संताने हैं और हमारा धर्म है ‘‘सारी मानवजाति की भलाई।’ अब हिरोशिमा और नागासाकी जैसी दुखदायी घटनाएं दोहराई न जायें। इसके लिए भारत को अपनी संस्कृति, सभ्यता तथा संविधान के आदर्श के अनुकूल सारे विश्व में शांति स्थापित करने के लिए विश्व संसद, विश्व सरकार तथा विश्व न्यायालय का शीघ्र गठन करने की अगुवाई पूरी दृढ़ता से करनी चाहिए। वह बाल एवं युवा पीढ़ी जो अपने जीवन के सबसे सुन्दर पलों को इस देश सहित विश्व के निर्माण में लगा रहे हैं वे हमारी ताकत, रोशनी, दृष्टि, ऊर्जा, धरोहर तथा उम्मीद हैं। (6) सी.एम.एस. इस युग की समस्याओं के समाधान हेतु प्रयासरत् हैः-  हमारे विद्यालय को संयुक्त राष्ट्र से अधिकृत एन.जी.ओ. के रूप में … Read more

शहीद दिवस पर कविता

शहीद दिवस भारत माता के तीन वीर सपूत भगतसिंह , राजगुरु व् सुखदेव को  कृतज्ञ राष्ट्र का सलाम है |अंग्रेजी हुकूमत ने 23 मार्च सन 1931 को फांसी पर लटका दिया था | देश की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का बलिदान करने वाले ये तीनों हमारे आदर्श हैं आइये पढ़ते हैं उन्हीं को समर्पित कविता .. शहीद  दिवस पर कविता वे  देश के लिए  अपना आगा-पीछा  देखे-सोचे बिना  हँसते-हँसते  फाँसी के  फंदे पर झूल गए  और आज  अपने आस-पास  अन्याय होते  देख कर भी  नहीं निकलते  घर से बाहर देखते हैं बस  अपने घर की  खिड़कियों पर लगे  परदों का एक कोना हटा कर  चोरों की तरह  कितना अंतर आ गया है  स्वतंत्र होने के बाद  शहीदों को याद करते हैं  नमन करते हैं  सोशल मीडिया पर  गूगल से ढूँढ-ढूँढ कर  शहीदों की फ़ोटो  पोस्ट करते हैं  सभाएँ,कार्यक्रम करते हैं  उनकी फ़ोटो पर  माल्यार्पण कर  देश के लिए अपना  सर्वस्व समर्पण की  बात करते हैं  पर समय आने पर  देश तो बहुत दूर  अपने आस-पास तक के लिए भी  बाहर निकलने तक में  डरते हैं  कुछ करने में  सौ बार सोचते हैं और केवल सोचते रहते हैं  शहीदों की विरासत को इस तरह संभाले बस खड़े रहते हैं। ————————- डा० भारती वर्मा बौड़ाई फोटो क्रेडिट –shutterstock पढ़िए एक से बढाकर एक कवितायें काव्य जगत में आपको  कविता  “ शहीद  दिवस पर कविता“कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  filed under- shaheed divas, 23 march, bhagat singh

क्या है स्वतंत्रता सही अर्थ :जरूरी है स्वतंत्रता, स्वछंदता, उच्श्रृंखलता की पुनर्व्याख्या

डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई, देहरादून, उत्तराखंड ——————————————-             स्वतंत्रता का क्या अर्थ है?  स्वतंत्रता का अर्थ वही है जो हम समझना चाहते हैं, जो अर्थ हम लेना चाहते हैं। यह केवल हम पर निर्भर है कि हम स्वतंत्रता,स्वाधीनता,स्वच्छंदता और उच्छ्रंखलता में अंतर करना सीखें।           वर्षों की गुलामी के बाद स्वतंत्रता पाई, पर लंबे समय तक पराधीन रहने के कारण मिली स्वतंत्रता का सही अर्थ लोगों ने समझा ही नहीं और हम मानसिक परतंत्रता से मुक्त नहीं हो पाए। अपनी भाषा पर गर्व, गौरव करना नहीं सीख पाए।           आज देखा जाए तो स्वतंत्रता और परतंत्रता दोनों के ही अर्थ बदल गए है।  हर व्यक्ति अपनी सुविधा के अनुसार इन्हें परिभाषित कर आचरण करता हैं और इसके कारण सबसे ज्यादा रिश्ते प्रभावित हुए हैं। रिश्तों ने अपनी मर्यादा खोई है, अपनापन प्रभावित हुआ है, संस्कारों को रूढ़िवादिता समझा जाने लगा और ऐसी बातें करने और सोच रखने वालों को रूढ़िवादी। रिश्तों में स्वतंत्रता का अर्थ…स्पेस चाहिए। मतलब आप क्या कर रहे हैं इससे किसी को कोई मतलब नहीं होना चाहिए, कुछ पूछना नहीं चाहिए…यदि पूछ लिया तो आप स्पेस छीन रहे हैं। इसे क्या समझा जाए। क्या परिवार में एक-दूसरे के  बारे में जानना गलत है कि वह क्या कर रहे हैं, कहाँ जा रहे हैं, कब आएँगे, कब जाएँगे… और इसी अति का परिणाम…रिश्ते हाय-हैलो और दिवसों तक सीमित होकर रह गए हैं।  विवाह जैसे पवित्र बंधनो में आस्था कम होने लगी हैं क्योंकि वहाँ जिम्मेदारियाँ हैं और जिम्मेदारियों को निभाने में कुछ बंधन, नियम मानने पड़ते हैं और मानते हैं तो स्वतंत्रता या यूँ कहें मनमानी का हनन होता है। तब लिव इन का कांसेप्ट आकर्षित करने लगा…जहाँ स्वतंत्रता ही स्वतंत्रता। हर काम बँटा हुआ…जब तक अच्छा लगे साथ, नहीं लगे तो कोई और साथी। इसमें नुकसान अधिक लड़की का ही होता है, पर वह स्वतंत्रता का सही अर्थ ही समझने को तैयार नहीं, अपने संस्कार, अपनी मर्यादाओं में विश्वास करने को तैयार नहीं          स्त्री-पुरुष दोनों बराबर हैं… इसने भी स्वतंत्रता के अर्थ बदल दिए हैं। इसने मनमानी और उच्छ्रंखलता को ही बढ़ावा दिया है। प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को एक-दूसरे का पूरक बनाया है तो उसे स्वीकार कर रिश्ते, परिवार, समाज, देश संभाला जाए, पर नहीं… बराबरी करके संकटों को न्योता देना ही है।             एकल परिवारों की बढ़ती संख्या भी इसी का परिणाम है। सबको अपने परिवार में यानी पति-पत्नी,बच्चों को अपने मनमाने ढंग से रहने के लिए देश-विदेश में इतनी स्वतंत्रता चाहिए कि उसमें वृद्ध माता-पिता के साथ रहने के लिए कोई जगह ही नहीं बचती। तभी ऐसी घटनाएं घटती हैं कि कभी जब बेटा घर आता है मेहमान की तरह तो उसे कंकाल मिलता है।            आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपना विवेक जगाएँ, सही और गलत को समझें…तब स्वतंत्रता, स्वछंदता, उच्श्रृंखलता, मनमानी के सही अर्थ समझें, इनकी पुनर्व्याख्या करें, अपनी संस्कृति, अपनी मर्यादाएँ, अपनी सभ्यता, अपने आचरण पर विचार करें | तभी रिश्ते कलंकित होने से बच पाएंगे, परिवार सुरक्षित होंगे, समाज और देश भी सुरक्षित हाथों में रह कर, ईमानदारी के रास्ते पर चल कर अपना विकास करने में समर्थ होंगे। ——————————————- रिलेटेड पोस्ट … आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प ले नए भारत के निर्माण का स्वतंत्रता दिवस पर आधी आबादी जाने अपने अधिकार भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के मेरा भारत महान ~जय हिन्द  Attachments area

मातृ दिवस पर- एक माँ के अपने बच्चों ( बेटे और बेटी ) के नाम पत्र

                                      आज इन दो पत्रों को पढ़ते हुए फिल्म कभी ख़ुशी कभी गम का एक डायलाग याद आ गया | पिता भले ही अपने स्नेह को व्यक्त करे न करे  बच्चों के साथ खुल कर बात करे न करें पर माँ कहती रहती है , कहती  रहती है , भले ही बच्चा सुने न सुने | पर ये कहना सिर्फ कहना नहीं होता इसमें माँ का स्नेह होता है आशीर्वाद होता है और विभिन्न परिस्तिथियों में अपने बच्चे को समन्वय करा सकने की कला का उपदेश भी | पर जब बच्चे दूर चले जाते हैं तब भी फोन कॉल्स या पत्र के माद्यम से माँ अपने बच्चे का संरक्षण करती रहती है | वैसे तो आजकल लड़का , लड़की की परवरिश में में कोई भेद नहीं पर एक माँ ही जानती है की दोनों को थोड़ी सी शिक्षा अलग – अलग देनी है | जहाँ बेटी को पराये घर में रमने के गुर सिखाने हैं वहीँ बेटे के मन में स्त्रियों के प्रति सम्मान की भावना भरनी है | ऐसे ही एक माँ ( डॉ >  भारती वर्मा ) के अपने बच्चों ( बेटे व् बेटी ) के लिए लिए गए भाव भरे खत हम अपने पाठकों के लिए लाये है | ये खत भले ही ही निजी हों पर उसमें दी गयी शिक्षा हर बच्चे के लिए है | पढ़िए और लाभ उठाइये ……… मातृ दिवस पर …बेटी के नाम पत्र —————————————— प्यारी बेटी उर्वशी          आज तुमसे बहुत सारी बातें करने का मन है। हो भी क्यों न….माँ-बेटी का रिश्ता है ही ऐसा…जहाँ कितना भी कहो, कितना भी सुनो…फिर भी बहुत कुछ अनकहा-अनसुना रह जाता है।            मैं अपने जीवन के उस स्वर्णिम पल को सर्वश्रेष्ठ मानती हूँ जब तुम्हें जन्म देकर मैंने तुम्हारी माँ होने का गौरवपूर्ण पद प्राप्त किया। जन्म से लेकर तुम्हें बड़ा करने तक, शिक्षा-दीक्षा, विवाह से लेकर विदाई तक के हर उस सुख-दुख, त्याग का अनुभव किया जिसे मेरी माँ ने मेरे साथ अनुभव किया होगा। हर माँ की तरह मैंने भी तुम्हारे बचपन के साथ अपना बचपन जिया। तुम्हारे सपनों में अपने सपने मिला कर तुम्हारे सपनों को जिया। मैं जो नहीं कर सकी वो तुमने किया। इसमें छिपी माँ की प्रसन्नता शब्दों में तो वर्णित नहीं ही हो सकती, केवल अनुभव की जा सकती है।               मैंने अपने जीवन में वही किया जो मुझे सही लगा। अपने लिए किसी भी निर्णय पर कभी पश्चाताप नही हुआ। मेरे आत्मविश्वास ने ऐसा करने में मेरी सहायता की। यह आत्मविश्वास अपने माता-पिता से मिले संस्कारों पर चलते हुए तथा जीवन में मिलने वाले कड़वे-मीठे अनुभवों से मिला। समयानुसार उसमें कुछ नया जोड़ते हुए हमने तुम्हारा लालन-पालन किया और प्रयत्न किया कि तुम वो आत्मविश्वास प्राप्त कर सको जो जीवन में आने वाली कठिनाइयों के समय सही निर्णय लेने में सहायक बने। हम अपने प्रयत्न में कहाँ तक सफल हुए हैं….यह तो आने वाला समय ही बताएगा।               सही पर अडिग रहना और गलत होने पर क्षमा माँगना… ये दो बातें जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। जीवन में ऐसा समय भी आएगा जब तुम्हें कठिन फैसले लेने पड़ेंगे। तब अपना आत्मविश्वास बनाए रखना। अच्छी और बुरी दोनों स्तिथियों में अपने को संभालते हुए अपनों को संभाल कर रखना।           जीवन में सदा अपने मन का नहीं होता। हमें सबके मनों को समझ कर , उनका ध्यान रखते हुए चलना होता है। ऐसा करते हुए जो आत्मसंतुष्टि, सुख और प्रसन्नता मिलती है…उसे तुमने स्वयं भी अनुभव किया होगा।                जीवन का एक ही मूल मंत्र है….जो सही लगे वही करो, अपनी राह स्वयं चुनो, अपने सपने स्वयं बुनो, पर उस राह पर अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपनों को साथ लेकर चलो। अपनों का साथ सपनों को पूरा करने की यात्रा में आशीर्वाद बन कर साथ चलता है।               जीवन में कोई भी परफ़ेक्ट नहीं होता। एक-दूसरे की कमियों को स्वीकार करते हुए अपने जीवनसाथी के साथ अपने लक्ष्य, सपनों को पूरा करने के लिए सकारात्मक सोच रखते हुए ईमानदारी के साथ जीवन जीना। अपने नाना की तरह कठिन परिश्रम को जीवन का अंग बनाना। तब देखना जीवन कितना सुंदर, सुंदरतम होता जाएगा और कितने इंद्रधनुष खुशियों के चमकते हुए दिखाई देंगे।           तुम्हारा आत्मविश्वास और समझदारी देख कर मेरा विश्वास मजबूत हो चला है कि तुम सही राह पर चलते हुए सही निर्णय लेने में समर्थ बनोगी और सबकी आँख का तारा रहोगी।            मुझे गर्व है कि तुम मेरी बेटी हो और मैं तुम्हारी माँ हूँ।                   तुम्हारी मम्मी                      भारती ——————————————— डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई, देहरादून,(उत्तराखंड) —————————————————— मातृ दिवस पर….. बेटे के नाम पत्र —————————————— प्रिय अभिषेक                       बहुत सी बातें हैं जिन्हें एक लंबे अरसे से कहना चाह रही थी, पर अपने-अपने कामों की व्यस्तता के चलते कहने का समय नहीं मिल पाया। जीवन का क्या…..आज है कल नहीं। तो क्यों न जो कहना है आज ही कह दिया जाए।             तुम वो कड़ी हो जिसने हमारे जीवन में जुड़ कर हमारे परिवार को संपूर्णता प्रदान की। बहन को भाई मिला। हम सौभाग्यशाली हैं बेटी-बेटे की माँ बनने के साथ जामाता ओर पुत्रवधु के रिश्तों को भी जीने का भरपूर सुख प्राप्त होगा।          पुरुष प्रधान समाज होते हुए भी हमने बेटी-बेटे में कोई भेदभाव न करते हुए तुम दोनों को एक समान परिस्थितियों में एक जैसी सुख-सुविधाएँ देते हुए बड़ा किया। हमारे अनुसार बच्चों के लिए स्वतंत्रता का अर्थ था….हमारे बच्चे अपनी रुचियों के अनुसार अपना लक्ष्य निर्धारित करें, अपने सपने स्वयं देखें और जिएं। अपनी इच्छाओं का दबाव बच्चों पर डालना कभी हमारे परिवार की परंपरा नहीं रही । जो स्वतंत्रता … Read more

हिंदी दिवस पर विशेष – हिंदी जब अंग्रेज हुई

वंदना बाजपेयी सबसे पहले तो आप सभी को आज हिंदी दिवस की बधाई |पर जैसा की हमारे यहाँ किसी के जन्म पर और जन्म दिवस पर बधाई गाने का रिवाज़ है | तो मैं भी अपने लेख की शुरुआत एक बधाई गीत से करती हूँ ………. १ .. पहली बधाई हिंदी के उत्थान के लिए काम करने वाले उन लोगों को जिनके बच्चे अंग्रेजी मीडियम के स्कूलों में पढ़ते हैं | २ …दूसरी बधाई उन प्रकाशकों को जो हिंदी के नाम पर बड़ा सरकारी अनुदान प्राप्त कर के बैकों व् सरकारी लाइब्रेरियों की शोभा बढाते हैं | जिन्हें शायद कोई नहीं पढता | ३… तीसरी और विशेष बधाई उन तमाम हिंदी की पत्र – पत्रिकाओ व् वेबसाइट मालिकों को जो हिंदी न तो ठीक से पढ़ सकते हैं , न बोल सकते हैं न लिख सकते हैं फिर भी हिंदी के उत्थान के नाम पर हिंदी की पत्रिका या वेबसाइट के व्यवसाय में उतर पड़े | आप लोगों को अवश्य लग रहा होगा की मैं बधाई के नाम पर कटाक्ष कर रही हूँ | पर वास्तव में मैं केवल एक मुखौटा उतारने का प्रयास कर रही हूँ | एक मुखौटा जो हम भारतीय आदर्श के नाम पर पहने रहते हैं | पर खोखले आदर्शों से रोटी नहीं चलती |जैसे बिना पेट्रोल के गाडी नहीं चलती उसी तरह से बिना धन के कोई उपक्रम नहीं चल सकता |न ही कोई असाध्य श्रम व्र मेहनत से कमाया हुआ धन hindi के प्रचार – प्रसार में लगा कर खुद सड़क पर कटोरा ले कर भीख मांगने की नौबत पर पहुंचना चाहेगा | तमाम मरती हुई पत्र – पत्रिकाएँ इसकी गवाह हैं | जिन्होंने बड़ी ही सद्भावना से पत्रिका की नीव रखी पर वो उसे खींच नहीं पाए |क्योंकि धन देने के नाम पर कोई सहयोग के लिए आगे नहीं बढ़ा |  रही बात सरकारी अनुदान की तो ज्यादातर अनुदान प्राप्त पत्रिकाओ या पुस्तकों के प्रकाशक प्रचार – प्रसार के लिए बहुत मेहनत नहीं करते | वो केवल ये देखते हैं की उनका घाटा पूरा हो गया है | इसलिए ज्यादातर अनुदान प्राप्त किताबें सरकारी लाइब्रेरियों के शो केस की शोभा बढाती हुई ही रह जाती हैं |कुल मिला कर स्तिथि बहुत अच्छी नहीं रही | पर अब समय बदल रहा है …… कुछ लोग हिंदी को एक ” ब्लूमिग सेक्टर ” के तौर पर देख रहे हैं | वो इससे लाभ की आशा कर रहे हैं | अगर ये व्यवसायीकरण भी कहे और हिंदी लोगों को रोटी दिलाने में सक्षम हो रही है तो कुछ भी गलत नहीं है | क्योंकि भाषा हमारी संस्कृति है , हमारी सांस भले ही हो पर पर उसको जिन्दा रखने के लिए ये जरूरी है की उससे लोगों को रोटी मिले | उदाहरण के तौर पर मैं हिंदी सिनेमा को लेना चाहती हूँ | जिसका उद्देश्य शुद्ध व्यावसायिक ही क्यों न हो ….. पर जब एक रूसी मेरा  जूता है जापानी गाता है … तो स्वत : ही hindi के शब्द उसकी जुबान पर चढ़ते हैं और भारत व् भारतीय संस्कृति को जानने समझने की इच्छा पैदा होती है | कितने लोग हिंदी फिल्मों के कारण हिंदी सीखते हैं | कहने की जरूरत नहीं जो काम साहित्यकार नहीं कर पाए वो हिंदी फिल्में कर रही हैं |  किसी संस्कृति को जिन्दा रखने के लिए भाषा का जिन्दा रहना बहुत जरूरी हैं | पर क्या उसी रूप में जैसा की हम हिंदी को समझते हैं | यह सच है की साहित्यिक भाषा आम बोलचाल की भाषा नहीं है | और आम पाठक उसी साहित्य को पढना पसंद करता है जो आम बोलचाल की भाषा में हो | साहित्यिक भाषा पुरूस्कार भले ही दिला दे पर बेस्ट सेलर नहीं बन सकती | कुल मिला कर लेखक का वही दुखड़ा ” कोई हिंदी नहीं पढता ” रह जाता है | देखा जाए तो आम बोलचाल की हिंदी भी एक नहीं है | भारत में एक प्रचलित कहावत है “ चार कोस में पानी बदले सौ कोस पे बानी ” |  इसलिए हिंदी को बचाए रखने के लिए प्रयोग होने बहुत जरूरी हैं | आज हिंदी आगे बढ़ रही है उसका एक मात्र कारण है की प्रयोग हो रहे हैं | हिंदी में केवल साहित्यिक हिंदी पढने वाले ही नहीं डॉक्टर , इंजिनीयर , विज्ञान अध्यापक और अन्य व्यवसायों से जुड़े लोग लिख रहे हैं | उनका अनुभव विविधता भरा है इसलिए वो लेखन में और हिंदी में नए प्राण फूंक रहे हैं | पाठक नए विचारों की ओर आकर्षित हो रहे हैं | और क्योंकि लेखक विविध विषयों में शिक्षा प्राप्त हैं | इसलिए उन्होंने भावनाओं को अभिव्यक्त करने में भाषा के मामले में थोड़ी स्वतंत्रता ले ली है | हर्ष का विषय है की ये प्रयोग बहुत सफल रहा है | पढ़ें –व्यर्थ में न बनाएं साहित्य को अखाड़ा  आज हिंदी में तमाम प्रान्तों के देशज शब्द ख़ूबसूरती से गूँथ गए हैं | और खास कर के अंग्रेजी के शब्द हिंदी के सहज प्रवाह में वैसे ही बहने लगे हैं जैसे विभिन्न नदियों को समेट कर गंगा बहती है |यह शुभ संकेत है | अगर हम किसी का विकास चाहते हैं तो उसमें विभिन्नता को समाहित करने की क्षमता होनी कहिये , चाहे वो देश हो , धर्म हो, या भाषा | कोई भी भाषा जैसे जैसे विकसित व् स्वीकार्य होती जायेगी उसमें रोजगार देने की क्षमता बढती जायगी और वो समृद्ध होती जायेगी |आज क्षितिज पर हिंदी के इस नए युग की पहली किरण देखते हुए मुझे विश्वास हो गया है की एक दिन हिंदी का सूर्य पूरे आकश को अपने स्वर्णिम प्रकाश से सराबोर कर देगा | आप सब हो हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं यह भी पढ़ें … भाषा को समृद्ध करने का अभिप्राय साहित्य विरोध से नहीं समाज के हित की भावना ही हो लेखन का उद्देश्य मोह – साहित्यिक उदाहरणों सहित गहन मीमांसा कवि एवं कविता कर्म

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस् पर विशेष : कुछ पाया है …….. कुछ पाना है बाकी

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस् पर विशेष       कुछ पाया है …….. कुछ पाना है बाकी सदियों से लिखती आई हैं औरतें सबके लिए चूल्हे की राख पर  धुएं से त्याग द्वारे की अल्पना पर रंगों से प्रेम तुलसी के चौरे पर गेरू से श्रद्धा  अब लिखेंगी अपने लिए आसमानों पर कलम से सफलता की दास्ताने अब नहीं रह जाएगा आरक्षित उनके लिए पूरब के घर में दक्षिण का कोना बल्कि बनेगा  एक क्षितिज जहाँ सही अर्थो में  स्थापित होगा संतुलन शिव और शक्ति  में  ८ मार्च अन्तराष्ट्रीय महिला दिवस …. ३६५ दिनों में से एक दिन महिलाओं के लिए ….पता नहीं क्यों  मैं कल्पना नहीं कर पाती किसी ऐसे दिन ऐसे घंटे या ऐसे मिनट की जिसमें स्त्री न हो ,या जो स्त्री के लिए न हो तो फिर ये  महिला दिवस क्या है ? माँ ,बहन बेटी ,सामान्य नारी के लिए सम्मान या मात्र खानापूरी  ,भाषण बाज़ी चर्चाएँ ,नारे बाजी जो यह सिद्ध कर देती है कि वो कहीं न कहीं कमजोर है ,उपेक्षित है ,पीड़ित है , क्योंकि समर्थ के कोई दिन नहीं होते ,दिन कमजोर लोगो के ऊपर करे गये अहसान है कि एक दिन तो कम से कम तुम्हारे बारे में सोचा गया | क्या स्त्री को इसकी जरूरत है ? क्या ये मात्र एक फ्रेम से निकल कर दूसरे फ्रेम में टंगने  के लिए है | इस उहापोह के बीच में मैं पलटती हूँ एक किताब  राहुल संस्कृतायन  “वोल्गा से  गंगा ”  | जिसमें राहुल संस्कृतायन  नारी के बारे में  लिखते हैं  …. देह के स्तर पर  बलिष्ठ ,नेतृत्व  करने की क्षमता के  साथ वह युद्ध करने में और  शिकार करने में   भी पुरुष की सहायक   हुआ करती थी।  राहुल सांकृत्यायन के अनुसार नारी में सबको साथ लेकर चलने की शक्ति थी, वह झुण्ड में आगे चलती थी ,वह अपना साथी खुद चुनती थी ।” वोल्गा से  गंगा ” में वे  एक जगह लिखते हैं ” पुरुष की भुजाएं भी ,स्त्री की भुजाओं की  तरह बलिष्ठ थीं ” अतार्थ स्त्री की भुजाएं तो पहले से ही बलिष्ठ थी |आखिर समय के साथ क्या हुआ की वो बलिष्ठ भुजाओं वाली स्त्री इतनी कमजोर हो गयी कि उसके लिए दिवस बनाने की आवश्यकता पड़ी |                           मैं महिलाओं के मध्य पायी जाने वाली  समस्याए और उनका समाधान खोजना चाहती हूँ |मुझे सबसे पहले याद आती है गाँव की  धनियाँ , जो ढोलक की थाप पर नृत्य करती है “मैं तो चंदा ऐसी नार राजा क्यों लाये सौतानियाँ | नृत्य करते समय वो प्रसन्न है चहक रही है परन्तु वास्तव में उसका पूरा जीवन इसी धुन पर नृत्य कर रहा है | धनियाँ घुटने तक पानी में कमर झुका कर दिन भर धान  रोपती है ,७-८ बच्चे पैदा करती है ,चूल्हा चकिया करती है ,शराबी पति से डांट  –मार खाती है फिर भी सब सहती है उसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है ,कभी सोचा ही नहीं है उसकी धुरी उसका पति है ,जो स्वतंत्र है ….ये औरते रोती हैं लगातार ,बात –बिना बात पर ,ख़ुशी में गम में  सौतन का भय उसे सब कुछ सहने को और एक टांग पर दिन भर नृत्य करने को विवश करता है चक्की चलती है ,धनियाँ नाचती है , बच्चा रोता है धनियाँ नाचती है ,ढोलक बजती है धनियाँ नाचती है … धनियाँ नाचती है अनवरत ,लगातार ,बिना रुके बिना थके |                        मुझे याद आती हैं पड़ोस के मध्यमवर्गीय परिवार वाली  भाभी जो स्कूल में अध्यापिका हैं , बैंक में क्लर्क हैं या  घर के बाहर किसी छोटे मोटे काम में लगी हुई कमाऊ बहु का खिताब अर्जित किये हैं…. भाभी दुधारू गाय हैं , समाज में इज्ज़त है  पर ये अंत नहीं है शुरुआत है उनकी कहानी का |  भाभी दो नावों पर सवार हैं एक साथ , समाज़ की वर्जनाओं रूपी विपरीत धारा  में बहती नदी, जिसे उन्हें पार करना है हर हाल में ज़रा चूके तो गए ….. मीलों दूर नामों निशान भी नहीं मिलेगा | एक बहु घर का खाना बना छोटे बड़े का ध्यान रख  सर पर पल्ला करके घर से बाहर  निकलती है ,चौराहे के बाद पल्ला हटा कर वह एक कामकाजी औरत है ,शाम को फिर रूप बदलना है ,महीने के आखिर में अपनी मेहनत  की कमाई को घर वालों को सौप देना है , क्यों न ले आखिर उन्होंने ही तो दी है घर के बाहर ऐश करने की इजाज़त ….. भाभी इंसान नहीं हैं मशीन हैं ,या घडी के कांटे जिन्हें चलना हैं समाज की टिक –टिक के बीच जो कोई अवसर जाने नहीं देना चाहता “कण देखा और तलवार मारी का “भाभी अक्सर छुप  कर रोती हैं ,या कभी अपने आँसू को चूल्हे के धुए में छिपा लेती हैं … भाभी जानती हैं माध्यम वर्गीय औरत और आँसू …. जैसे शरीर और प्राण |                   मुझे याद आती हैं डॉक्टर ,इंजीनियर , बड़ी कंपनियों की मालिक औरतें ,जिन्होंने खासी मेहनत के बाद अपना एक मुकाम बनाया है |आज बड़े –बड़े ऊंचे  पदों पर बैठी हैं…. अक्सर फाइलों पर दस्तखत करते हुए जब दिख जाते हैं अपने हाथ तो भर जाता है निराशा से मन, एक सहज स्वाभाविक प्रश्न से “क्यों स्त्री के दोनों हाथों में लड्डू नहीं होते “ क्यों कुछ पाने कुछ खोने का नियम हैं |ये औरते बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स की मीटिंग में जाती हैं ,माइक सभालती हैं ,सफलता पर घंटों लेक्चर देती हैं पर खो देती हैं जब बेटी नें पहली बार माँ कहा था ,जब बेटा पहली बार चलना सीखा था ,युवा होते बच्चों को देना चाहती  हैं समय पर नहीं, कहाँ हैं समय ?पेप्सिको की इन्द्रा नुई कहती हैं ऊँचे पदों पर बैठी औरत हर दिन जूझती है इस प्रश्न से आज किसे प्राथमिकता देना है एक माँ को या एक सी .ई .ओ को |ये औरतें रोती  नहीं,…. समय ही नहीं हैं पर हर बार दरक जाती हैं अन्दर से ,बढ़ जाती है एक सलवट माथे पर ,जिसे छुपा लेती हैं मेकअप की परतों में ,पहन लेती हैं समाजिक मुखौटा … और  हो जाती हैं तैयार अगली मीटिंग के लिए                   मुझे दिखाई देती है महिलाओं की एक चौथी जमात जो सभ्यता के लिए बिलकुल नयी है| ये हाई सोसायटी की मॉड औरते … Read more

गणतंत्र दिवस पर विशेष – भारत की गौरवशाली परंपरा को आगे बढ़ाना होगा

गणतन्त्र दिवस यानी की पूर्ण स्वराज्य दिवस ये केवल एक दिन याद की जाने वाली देश भक्ति नही है बल्कि अपने देश के गौरव ,गरिमा की रक्षा के लिए मर  मिटने की उद्दात भावना है | राष्ट्र हित में मर मिटने वाले देश भक्तों से भारत का इतिहास भरा पड़ा है अपने राष्ट्र से प्रेम होना सहज-स्वाभाविक है। देश का चाहे राजनेता हो योगी हो सन्यासी हो रंक से लेकर रजा तक का सबसे पहला धर्म रास्त्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों को आहूत करने के लिए तत्पर रहना ही है | देशप्रेम से जुड़ी असंख्य कथाएं इतिहास के पन्नों में दर्ज है। भारत जैसे विशाल देश में इसके असंख्य उदाहरण दृषिटगोचर होते हैं।  जानिये गौरवशाली राष्ट्र का गौरवशाली गणतांत्रिक इतिहास हम अपने इतिहास के पन्नों में झांक कर देखें तो प्राचीन काल से ही अनेक वीर योद्धा हुए जिन्होंने भारतभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राण तक को न्योछावर कर दिए। पृथ्वीराज चौहाण, महाराणा प्रताप, टीपू सुल्तान, बाजीराव,झांसी की रानी लक्ष्मीबार्इ, वीर कुंवर सिंह, नाना साहेब, तांत्या टोपे, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरू, खुदीराम बोस, सुभाषचंद्रबोस, सरदार बल्लभ भार्इ पटेल, रामप्रसाद विसिमल जैसे असंख्य वीरों के योगदान को हम कभी नहीं भूल सकते। इन्होंने मातृभूमि की रक्षा हेतु हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए। विदेशियों को देश  से दूर रखने और फिर स्वतंत्रता हासिल करने में इनका अभिन्न योगदान रहा। आज हम स्वतंत्र परिवेश में रह रहे हैं। आजादी ही हवा में हम सांस ले रहे हैं, यह सब संभव हो पाया है अनगिनत क्रांतिकारियों और देशप्रेमियों के योगदान के फलस्वरूप। लेखकों और कवियों, गीतकारों आदि के माध्यम से समाज में देशप्रेम की भावना को प्रफुल्लित करने का अनवरत प्रयास किया जाता है।रामचरित मानस में राम जी जब वनवास को निकले तो अपने साथ अपने देश की मिट्टी को लेकर गये जिसकी वो नित्य प्रति पूजा करते थे | राष्ट्रप्रेम की भावना इतनी उदात और व्यापक है कि राष्ट्रप्रेमी समय आने पर प्राणों की बलि देकर भी अपने राष्ट्र की रक्षा करता है। महर्षि दधीचि की त्याग-गाथा कौन नहीं जानता, जिन्होंने समाज के कल्याण के लिए अपनी हड्डियों तक का दान दे दिया था। सिख गुरूओं का इतिहास राष्ट्र की बलिवेदी पर कुर्बान होने वाली शमाओं से ही बना है। गुरू गोविंद सिंह के बच्चों को जिंदा दीवारों में चिनवा दिया गया। उनके पिता को भी दिल्ली के शीशगंज गुरूद्वारे के स्थान पर बलिदान कर दिया गया। उनके चारों बच्चें जब देश-प्रेम की ज्वाला पर होम हो गए तो उन्होंने यही कहा-चार गए तो क्या हुआ, जब जीवित कई हज़ार।ऐसे देशप्रेमियों के लिए हमारी भावनाओं को माखनलाल चतुर्वेदी ने पुष्प के माध्यम से व्यक्त किया है– मुझे तोड़ लेना बनमाली, उस पथ पर तुम देना फेंक,मातृभूमि पर शीश चढ़ने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक। देश  प्रति हमारा स्वाभाविक कर्तव्य जिस मिट्टी का हम अन्न खाते हैं, उसके प्रति हमारा स्वाभाविक कर्तव्य हो जाता है कि हम उसकी आन-बान-मान की रक्षा करें। उसके लिए चाहें हमें अपना सर्वस्व भी लुटाना पड़े तो लुटा दें। सच्चे प्रेमी का यही कर्तव्य है कि वह बलिदान के अवसर पर सोच-विचार न करे, मन में लाभ-हानि का विचार न लाए, अपितु प्रभु-इच्छा मानकर कुर्बान हो जाए।  सच्चा देशभक्त वही है, जो देश के लिए जिए और उसी के लिए मरे। ‘देश के लिए मरना‘ उतनी बड़ी बात नहीं, जितनी कि ‘देश के लिए जीना‘। एक दिन आवेश, जोश और उत्साह की आँधी में बहकर कुर्बान हो जाना फिर भी सरल है, क्योंकि उसके दोनों हाथों में लाभ है। मरने पर यश की कमाई और मरते वक्त देश-प्रेम का नशा। किंतु जब देश के लिए क्षण-क्षण, तिल-तिल कर जलना पड़ता है, अपनी इच्छाओं-आकांक्षाओं की नित्य बलि देनी पड़ती है, रोज़-रोज़ भग़तसिंह बनना पड़ता है, तब यह मार्ग बहुत कठिन हो जाता है।   आज का युवा चाहे तो क्या नही क्र सकता परन्तु पश्चिम की बयार में खोया हुआ युवा अपने कर्तव्यों के प्रति उदासीन नज़र आता है |आज दुर्भाग्य से व्यक्ति इतना आत्मकेंद्रित हो गया है कि वह चाहता है कि सारा राष्ट्र मिलकर उसकी सेवा में जुट जाए। ‘पूरा वेतन, आधा काम‘ उसका नारा बन गया है। आज देश में किसी को यह परवाह नहीं है कि उसके किसी कर्म का सारे देश के हित पर क्या प्रभाव पड़ेगा। हर व्यक्ति अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगा हुआ है  यही कारण है कि भारतवर्ष नित्य समस्याओं के अजगरों से घिरता चला जा रहा हैं। जब तक हम भारतवासी यह संकल्प नहीं लेते कि हम देश के विकास में अपना सर्वस्व लगा देंगे, तब तक देश का सर्वांगीण विकास नहीं हो सकता, और जब तक देश का विकास नहीं होता, तब तक व्यक्ति सुखी नहीं हो सकता। अतः हमें मिलकर यही निश्य करना चाहिए कि आओ, हम राष्ट्र के लिए जियें।  हमारा देश भारत अत्यन्त महान् एवं सुन्दर है यह देश इतना पावन एवं गौरवमय है कि यहाँ देवता भी जन्म लेने को लालायित रहते हैं। विश्व मव इतना गौरवशाली इतिहास किसी देश का नही मिलता जितना की भारत का है हमारी यह जन्मभूमी स्वर्ग से भी बढ़कर है। कहा गया है – ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी‘ अर्थात जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। हमारे देश का नाम भारत है, जो महाराज दुष्यंत एवं शकुंतला के प्रतापि पुत्र ‘भरत‘ के नाम पर रखा गया। पहले इसे ‘आर्यावर्त‘ कहा जाता था। इस देश में राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, वर्धमान महावीर आदि महापुरूषों ने जन्म लिया। इस देश में अशोक जैसे प्रतापी सम्राट भी हुए हैं। इस देश के स्वतंत्रता संग्राम में लाखों वीर जवानों ने लोकमान्य तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाषचन्द्र बोस, सरोजिनी नयाडू आदि से कंधे से कंधा मिलाकर संघर्ष किया। हिमालय हमारे देश का सशक्त प्रहरी है, तो हिन्द महासागर इस भारतमाता के चरणों को निरंतर धोता रहता है। हमारा यह विशाल देश उत्तर में कश्मीर से लेकर दक्षिण में कन्याकुमारी तक और पुर्व में असम से लेकर पश्चिम में गुजरात तक फैला हुआ है। इस देश की प्राकृतिक सुषमा का वर्णन करते हुए कवि रामनरेश त्रिपाठी लिखते हैं-”शोभित है सर्वोच्च मुकुट से, जिनके दिव्य देश का मस्तक। गूँज रही हैं सकल दिशाएँ, जिनके जयगीतों से अब तक।”हमारे देश में ‘विभिन्नता में एकता‘ की भावना निहित है। … Read more