संघर्ष पथ

वंदना बाजपेयी

वंदना बाजपेयी की कविता संघर्ष पथ संघर्ष पथ  सुनो स्त्री अगर बढ़ चली हो सशक्तता की ओर तो पता न चलने देना आँसुओं का ओर-छोर माना की रोने के अधिकार से कर वंचित बचपन से पुरुष बनाए जाते हैं  समाज द्वारा सशक्त स्वीकृत पर संघर्षों से तप कर आगे बढ़ती स्त्री के हाथ भी कर दिए जाते हैं आँसुओं से रिक्त जाने कब किसने सबके अवचेतन में कर दी है नत्थी सशक्तता की अश्रु विरोधी परिभाषा रो सकती हो तुम खुलकर  मात्र है शब्दों का झांसा एक बार सशक्त घोषित हो जाने के बाद नहीं रखना स्त्री और आँसुओं के संबंधों को याद कि तुम्हारे कमजोर पड़ जाने के क्षणों को भी नाम दिया जाएगा विक्टिम कार्ड तब तुम्हारे कोमल मन को नहीं देगा संरक्षण तुम्हारी देह पर लिपटा सिक्स यार्ड यहाँ तक कि कुछ समझ कर तुम्हें अंदर से कमजोर बेचारा डाल देंगे तुम्हारे आगे चारा दूर ही रहना इन शातिरों की चाल से पद के साथ और भी फँसोगी जंजाल में दाँव पर लगेगी तुम्हारी निष्ठा जा भी सकता है पद और प्रतिष्ठा   सही या गलत सच या झूठ पर सशक्तता का अलाप बस एक राग गाता कि तोड़ना होगा उसे आँसुओं से नाता भले ही हर अगली सीढ़ी पर पाँव धरती अकेली डरती-सहमती उतनी ही आकुल-व्याकुल है तुम्हारे अंदर की अबला पर दिखाकर आँसुओं को और मत चटका लेना अपने भीतर की दरारें ओ संघर्षों की राह पर आगे बढ़ती सबला पुरुष नहीं हो तुम पर अपेक्षाएँ वही हैं जो उनके लिए नहीं वो तुम्हारे लिए भी नहीं है और आज के पुरुष भी रो सकते हैं के इस झूठे शोर में मत आ जाना प्रचार के विभोर में संघर्ष का पथ होता है जटिल हर अगली सीढ़ी पर समाज हो जाता है और कुटिल माना की आँसू है इंसानियत की निशानी भावनाओं का वेग होता है तूफ़ानी बह ही जाए गर भावावेश में तो रोक लेना पल विशेष में माना कि आँसू नहीं हैं कमजोरी के प्रतीक पर निकाले जाएंगे अर्थ तुम्हारी सोच के विपरीत फिर से कहती हूँ बार-बार हर किसी को मत देना अपने आँसुओं को देखने का अधिकार वंदना बाजपेयी  

मिसेज़ चटर्जी वर्सस नॉर्वे और लीड्स में हुई हिंसा

मिसेज़ चटर्जी वर्सस नॉर्वे और लीड्स में हुई हिंसा

लंदन से प्रकाशित पुरवाई के संपादकीय कई मुद्दों पर सोचने को विवश कर देते हैं। ‘प्रवासी हिंसा और दंगे” ऐसा ही संपादकीय है जिसने मुझे उसपर लिखने को विवश कर दिया l आदरणीय तेजेंद्र शर्मा जी अपने संपादकीय में लिखते हैं कि, “ब्रिटेन में ऐसे बहुत से इलाक़े हैं जिनमें एक ख़ास किस्म के प्रवासी एक समूह की तरह रहते हैं और अपने रीति-रिवाजों के साथ वहां जीते हैं। ये सभी प्रवासी ब्रिटेन में आर्थिक कारणों से ही बसने के लिये आए हैं। इनमें से बहुतों ने राजनीतिक शरण ले रखी है; वे ब्रिटेन की सोशल सेवाओं का पूरा लाभ उठाते हैं। मगर वे ब्रिटेन की मुख्यधारा में शामिल होने का प्रयास नहीं करते। संपादकीय मुख्य रूप से पिछले दिनों ब्रिटेन के शहर लीड्स के हेयरहिल्स इलाके में हुई हिंसा और दंगों पर केंद्रित है, जहाँ एक भाई ने अपने छोटे भाई को बेदर्दी से मारा और उसे घायल कर दिया। माँ-बाप बच्चे को अस्पताल ले गये तो अस्पताल के कर्मचारियों ने सोशल सर्विस विभाग को सूचित कर दिया। सोशल सर्विस विभाग के कर्मचारियों ने उस परिवार के बच्चों को परिवार से अलग करने का निर्णय लिया क्योंकि उस परिवार में बच्चों को हिंसा के कारण जान का ख़तरा था। जैसे ही बच्चों को ले जाया जाने लगा, लोग इकट्ठे होना शुरू हो गये। भीड़ उग्र हो गई l मिसेज़ चटर्जी वर्सस नॉर्वे और लीड्स में हुई हिंसा सर ने ब्रिटेन की बात की, पर अलगाववादी फैलाव भारत और पूरे विश्व में है। हमारा अपना देश भी ऐसे समूहों से जूझ रहा है l कभी एक सज़ा के रूप में प्रचलित ‘गैटो’ शब्द अब एक हथियार के रूप में इस्तेमाल हो रहा है। निजी तौर पर अपनी संस्कृति का आदर या उसे अपनी जीवन शैली में शामिल रखना गलत बात नहीं है, पर भीड़ में बदल कर कानून के खिलाफ़ हो जाना, संस्कृति का नहीं सत्ता का एक रूप है। रही बात बच्चों को मारने पीटने की तो इसे तो सही नहीं कहा जा सकता। मेरा एक अस्पताल में आँखों देखा केस है, एक पिता ने अपनी बच्ची को इतना मारा कि उसकी एक आँख की रोशिनी चली गई l पास खड़ा पिता रो रहा था, पर गुस्से में उस समय खुद को काबू में नहीं रख पाया। मेरा रंग में ऐसिड विक्टिम का एक कार्यकम देखा था l पिता ने माँ पर गुस्से में तेजाब फेंका और माँ का पल्लू पकड़ कर खड़ी बच्ची की आँखों में चला गया, और रोशिनी छीन ली l   देवी-देवता के स्थान पर बैठाए गए माता-पिता भी कितने परिपक्कव है? ये भी सोचने का विषय है। अपने देश में भी जब मार-पिटाई जायज मानी जाती थी, तब बच्चे संयुक्त परिवार में रहते थे। इतनी हिंसक पिटाई से बचाने वाला कोई न कोई घर में रहता था। बड़े बुजुर्गों से सुना है, ज्यादा मारोगे तो ‘मरकहा हो जाएगा’ यानि मार का असर नहीं पड़ेगा। स्त्रियों पर हाथ ना उठाने का संस्कार तो हम कबका भूल चुके हैं। मुझे तो लगता है कि हल्की-फुकी चपत और हिंसात्मक पिटाई में अंतर है, और आज जबकि सहनशक्ति कम हो गई है, यहाँ के माता-पिता को भी कानून के दायरे में लाना चाहिए। वैसे “मिसेज़ चटर्जी वर्सस नॉर्वे” जैसी फिल्म प्रवासी भारतीयों की एक अलग ही कहानी कहती है। फिल्म में मुख्यतः देबिका की कहानी को दिखाया गया है जिसमें वो अपने पति अनिरुद्ध, पुत्र शुभ और पाँच माह की बच्ची सुची के साथ नॉर्वे के स्टवान्गर नामक स्थान पर रहती है। नॉर्वेजियन चाइल्ड वेलफेयर सर्विसेज के दो कर्मचारी तब तक उनके घर पर नियमित तौर पर आते थे जब तक वो शुभा और सुचि को लेकर नहीं चले गये। चटर्जी परिवार को बता दिया गया कि वो अपने बच्चों की देखभाल करने में सक्षम नहीं हैं, अतः देबिका ने सरकार पर मुक़दमा करने का निर्णय लिया और अपने बच्चों की अभिरक्षा वापस प्राप्त की l   ये कहानी  प्रवासियों को परेशान करके पैसे ऐंठने का ये सत्ता का नया रूप हैl सही क्या है गलत क्या है, ये हम निष्पक्ष होकर नहीं कह सकते l मेरे विचार से अगर किसी कानून से दिक्कत भी है, तो भीड़ की सत्ता का हिंसात्मक प्रदर्शन करने के स्थान पर लोकतांत्रिक तरीके से अपना विरोध दर्ज किया जा सकता है, पर उसके लिए देश को अपना समझना होगा, देश को प्रवासियों को । एक शानदार, विचारणीय संपादकीय के लिए बहुत बधाई वंदना बाजपेयी

कथारंग कहानी प्रतियोगिता 2023 वंदना बाजपेयी ने जलाई जीत की ज्योति

कथारंग कहानी प्रतियोगिता -2023

“कथा रंग कहानी प्रतियोगिता परिणाम -2023” के सभी पुरस्कृत रचनाकारों को कथा रंग परिवार, ग़ाज़ियाबाद की ओर से हार्दिक मंगलकामनाएं और निर्णायक मंडल का आभार व्यक्त करते हुए आलोक यात्री ने कहा कि कहानियों की श्रेष्ठता का चयन निसंदेह एक मुश्किल कार्य था, लेकिन चयनकर्ताओं के अथक परिश्रम के बाद इस दुरूह कार्य को अंजाम तक पहुंचाया जा सका। स्पर्धा में शामिल सफल रचनाकारों को 13 जुलाई को ग़ाज़ियाबाद में भव्य रूप से आयोजित “कथा रंग साहित्योत्सव एवं अलंकरण समारोह” में सम्मिलित किया जाएगा। वंदना वाजपेई ने जलाई जीत की ‘ज्योति’ आखिरकार इंतज़ार की घड़ियां समाप्त हुईं और ‘कथा रंग कहानी प्रतियोगिता-2023″ के परिणामों की घोषणा करते हुए मुख्य संयोजक आलोक यात्री ने बताया कि स्पर्धा की सर्वश्रेष्ठ कहानी वंदना वाजपेई की “ज्योति” को चुना गया है। जिसे पुरस्कार स्वरूप 11 हजार रुपए का “शिवम कपूर स्मृति प्रेमचंद कथा सम्मान” से अलंकृत किया जाएगा। आलोक यात्री ने प्रतियोगिता में शामिल सभी रचनाकारों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि पुरस्कृत न होने वालों के लिए यह पीड़ादायक हो सकता है, लेकिन उनके लिए संतोष व हर्ष की बात यह है कि तमाम व्याधियों के बावजूद अधिकांश रचनाओं के मूल्यांकन में साहित्यकार से. रा. यात्री का योगदान भी शामिल रहा है। साथ ही उनकी प्रतिक्रिया भी काबिले गौर है, जिसमें से. रा. यात्री यह कहते हैं कि “कहानी प्रतियोगिता सौ-दो सौ मीटर की फर्राटा दौड़ नहीं है। रचना प्रक्रिया एक यात्रा है। जिसका आकलन कभी अपनी अंतिम पराकाष्ठा को प्राप्त नहीं हो सकता” आलोक यात्री का कहना है कि से. रा. यात्री हमेशा इस बात के पक्षधर रहे हैं कि कहानियों के चयन की प्रक्रिया पर नए सिरे से विमर्श होना चाहिए। आलोक यात्री ने अवगत करवाया कि आगामी साहित्योत्सव में कहानियों की चयन प्रक्रिया पर भी नए सिरे से विमर्श किया जाएगा। से. रा. यात्री की पहल पर ही इस बार पुरस्कारों की संख्या में तीन से चार गुणा की वृद्धि की गई है। इस बार का यह आयोजन दिवंगत साहित्यकार से. रा. यात्री को ही समर्पित है। परिणाम की घोषणा करते हुए आलोक यात्री ने अवगत कराया कि द्वितीय स्थान पर आशीष दशोत्तर की ‘गिंडौले’ और दिव्या शर्मा की ‘सात सितारों वाली चुनरी’ चुनी गई है कहानियों की गुणवत्ता को देखते हुए तृतीय स्थान पर इस बार पांच रचनाओं का चयन किया गया है। जिसमें अरुण अर्णव खरे की ‘दुनिया को तुम्हारी जरूरत नहीं’ सुधा गोयल की ‘तुम कहां हो निन्नी’ तौसीफ बरेलवी की ‘साइंसदानों का कब्रिस्तान’ अनीता रश्मि की ‘इक आग का दरिया है’ और रेणु हुसैन की ‘आलाद्दीन’ शामिल है। इसके अलावा 11 रचनाओं को “कथा रंग सृजन सम्मान” से अलंकृत किया जाएगा।‌ जिनमें हंसा दीप (पाती) राजकुमार सिंह (पार्टी जन हिताय, पार्टी जन सुखाय) डॉ. शिवजी श्रीवास्तव (कहानियां और भी हैं) राम नगीना मौर्य (सबाऊन) ज्योति झा (बंद दरवाजे) डॉ. वीणा चूंडावत (खुद को तलाशती लड़की) डॉ. रंजना जायसवाल (ऐ लड़की) आभा सिंह (रसीला) एजाजुल हक (एक दिन स्याने होंगे बच्चे) राष्ट्रवर्धन अरोड़ा (जुम्मा) और डॉ. बीना शर्मा (बत्तो) शामिल हैं। इसके अलावा पांच अन्य रचनाकारों से. रा. यात्री स्मृति कथा गौरव सम्मान” से अलंकृत होंगे। डॉ. असलम जमशेदपुरी (बड़े घर की छोटी बेटी) प्रगति गुप्ता (है यह कैसी डगर) शकील अहमद (बबुआ) मनुलक्ष्मी मिश्रा (चल बिटिया घर आपने) और रिंकल शर्मा (कालिख)“ आलोक यात्री ने निर्णायक मंडल में शामिल डॉ. हरियश राय जी, श्री सुभाष चंदर जी और श्री विपिन जैन जी का आभार व्यक्त करते हुए सभी पुरस्कृत रचनाकारों को बधाई देते हुए शनिवार 13 जुलाई 2024 को सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल, बुलंदशहर रोड इंडस्ट्रियल एरिया, ग़ाज़ियाबाद में आयोजित “कथा रंग महोत्सव एवं अलंकरण समारोह” में आने के लिए आमंत्रित किया है l आलोक यात्री अगर आपको अटूट बंधन की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया साइट को सबस्क्राइब करें व अटूट बंधन फेसबुक पेज लाइक करें l आपका सहयोग हमें अच्छा काम करने की प्रेरणा देगा l