कानपुर में धनुक की गूँज –एक विस्तृत रिपोर्ट

कानपुर में धनुक की गूँज कानपुर एक ऐसा शहर जो चारों तरफ से गाँवों से घिरा हुआ  हुआ है | आम बोली-बानी में सहज ही देशज शब्द शामिल हैं | उत्तर प्रदेश की देशी  संस्कृति से धडकता है इसका दिल |  वैसे आम तौर पर  कानपुर की पहचान उत्तर के प्रमुख औद्योगिक शहर के रूप में है | यहाँ का हैंडलूम व् चमड़ा उद्द्योग पूरे देश में प्रसिद्द है | जहाँ पर किसान, श्रमिक और पूंजीपति वर्ग मिलजुल कर रहते हों वहाँ  की धरती स्वत : ही साहित्य के लिए उर्वरा हो जाती है | इन आम लोगों के जीवन, उनकी दुश्वारियों उनकी संवेदनाओं से मिलकर ही तो बनता है साहित्य | कानपुर और साहित्य का अटूट संबंध  है | महर्षि वाल्मीकि ने आदि  कानपुर  कहे जाने वाले बिठूर में ही रामायण की रचना की | जो विश्व साहित्य की अनमोल धरोहर है | धरती पर साहित्य सृजन का सिलसिला वहीँ से आरम्भ माना जाता है |  1857 की क्रांति का विस्फोट यहाँ  से हुआ। बिठूर के नानाराव पेशवा, अजीमुल्ला खां, अजीजन बाई सहित कई ऐसे चरित्र हुए, जिन्होंने कलम के सिपाहियों को आकर्षित किया। उन्हीं के प्रभाव से ‘प्रताप अखबार’ के जरिये गणेश शंकर विद्यार्थी ने तेजस्वी हिंदी पत्रकारिता की शुरुआत कानपुर से की। महान क्रांतिकारी भगत सिंह भी यहां रहक उर्दू में छद्म नाम प्रताप अखबार में लिखते थे |  “धनपत राय” कानपुर में पोस्टिंग के दौरान यहाँ मजदूरों की स्थिति, ट्रेड यूनियन के आन्दोलन देखकर हिंदी में लिखना शुरू किया और कथा सम्राट ‘प्रेमचन्द्र’ का साहित्यिक जन्म कानपुर में हुआ | महावीर प्रसाद द्विवेदी को कानपुर से विशेष लगाव रहा। इलाहाबाद से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘सरस्वती’ का उन्हें संपादक बनाया गया तो उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी। शर्त रख दी कि वह संपादन करेंगे एक ही शर्त पर। कानपुर में रहकर लेखन करेंगे और यहां से इलाहाबाद लेख भेजे | अटल बिहारी बाजपेयी और गोपाल दास नीरज जी की  हिंदी की काव्यधारा का उद्गम स्थल भी कानपुर ही है | वर्तमान दौर में सबसे वरिष्ठ और सशक्त साहित्यकारों में कथाकार पद्मश्री गिरिराज किशोर और प्रियंवद का नाम सम्मान से लिया जाता है। फिर औद्योगिक परिवेश ने ही शहर को राजेंद्र राव, श्रीनाथ और सुनील कौशिक जैसे साहित्यकार दिए। कहानीकारों में ललित मोहन अवस्थी, सुशील शुक्ल, प्रकाश बाथम और हृषिकेश भी उल्लेखनीय नाम हुए। सुमित अय्यर और अमरीक सिंह दीप भी कानपुर के साहित्यिक आकाश के सितारे हैं । कानपुर में धनुक की गूँज –एक विस्तृत रिपोर्ट इतना सब कुछ होने के बावजूद साहित्य  के बड़े उत्सव दिल्ली, भोपाल, पटना, जयपुर में सिमिटने लगे | साहित्य की शुरुआत करने वाला कानपुर पीछे होता चला गया | जरूरत थी एक धनुष  के टंकार की जो कानपुर के साहित्य व् यहाँ की साहित्यिक सोच से समृद्ध जनता का गौरव फिर से स्थापित कर सके | और ये काम किया साहित्यिक संस्था “धनुक” ने | इसकी खास बात ये है कि इस संस्था की अध्यक्षा कानपुर में ही पली बढ़ी डॉ. ज्योत्स्ना मिश्रा हैं | जो शरीर के साथ –साथ मन को भी दुरुस्त करने का माद्दा रखती हैं | और इसी सन्दर्भ में एक फरवरी 2020 को कानपुर के लाजपत भवन प्रेक्षागार में एक वृहद् साहित्यिक आयोजन किया गया | पूरे दिन चलने वाले इस कार्यक्रम के कई सत्र थे | जहाँ कविता ग़ज़ल कहानी के साथ –साथ स्त्री विमर्श, गांधी दर्शन और कश्मीरी पंडितों के दर्द के जरूरी मुद्दों पर भी विमर्श हुए |   कार्यक्रम का शुभ आरंभ प्रात 11 बजे कवि अग्निशेखर, प्रियंवद, विजय किशोर मानव, लीलाधर जगूड़ी , ज्योत्स्ना मिश्रा व्  सभी गणमान्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्जलन के साथ हुआ । इस अवसर पर आचार्य नरेंद्रदेव कॉलेज से आई एक टीम द्वारा सरस्वती वंदना का भी गयां किया गया | कार्यक्रम का पहला सत्र “गांधी से डरता कौन है “में महात्मा गाँधी पर एक गंभीर विमर्श हुआ | इसके बाद प्रथम सत्र में “गांधी से को डरता है” विषय पर गंभीर चर्चा हुई जिसमें देहरादून से आए वरिष्ठ साहित्यकार पदम श्री लीलाधर जगुड़ी  जी कानपुर के साहित्यकार प्रियवद जी , एवम पत्रकार श्री विजय किशोर मानव जी और नासिक से आए गांधी अभ्यासक पराग मांडले ने भाग लिया संचालन सर्वोदय जगत पत्रिका के सह संपादक प्रेम प्रकाश जी  ने किया। पराग मांडले जी ने जहाँ इस बात पर जोर दिया कि गांधी जी की मूर्तियों को ह्रदय में स्थापित करना है | उनके चश्में पर सत्य और अहिंसा के स्थान पर स्वच्छ भारत लिख देने से क्या फर्क  पड़ता है अगर उसे अमल  में ना लाया जाए | उनका कहना था कि गांधी जी से सत्ताएं डरती हैं | प्रियंवद जी ने कहा कि गांधी जी का प्रयोग उनके पक्ष और विपक्ष के सभी लोगों ने अपनी सुविधानुसार किया | उन्होंने जोर दिया कि गांधी जी के फॉलोअर बनने  के स्थान पर उनकी शिक्षाओं पर अमल  करना चाहिए | विजय किशोर मानव जी ने कहा कि गांधी से हर वो व्यक्ति डरता है जो सच से डरता है | क्योंकि जिसके पास सत्य का अवलंबन होता है वो निडर हो जाता है, निर्भय हो जाता है | उनका कहना था कि हिंसा शाब्दिक भी होती है |  पद्मश्री लीलाधर  जगूडी जी ने उन सब परिस्थितियों की चर्चा की जिनसे एक साधारण इंसान गाँधी बनता है | क्योंकि वो अपने जीवन से सीखता और उसे सुधारता  चलता है | उन्होंने रविन्द्रनाथ टैगोर और गाँधी जी का एक बहुत खूबसूरत प्रसंग सुनाया | जहाँ उन्होंने कहा कि असुंदर दिखना भी हिंसा है | हर हिंसा दिखाई नहीं देती पर कई प्रव्त्तियाँ हिंसक होती है | गांधी से वो सब डरते हैं जिनके अंदर हिंसा शेष है |   दूसरे सत्र सम्मान समारोह का रहा जिसमें सखी केंद्र की संस्थापक और सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री नीलम चतुर्वेदी और पर्यावरण विध श्री नरेन्द्र नीरव को व्यक्तित्व सम्मान 2020 दिया गया। तीसरे सत्र में वंकुश अरोरा की पुस्तक लव ड्राइव का विमोचन किया गया। युवा कथाकार वंकुश  की कहानियाँ आम जनमानस के ह्रदय को स्पर्श  करती हुई है | चौथे सत्र में स्त्री विमर्श में वरिष्ठ पत्रकार रोमी अरोड़ा ,  वरिष्ठ साहित्यकार चित्रा देसाई , युवा विचारक कव्या मिश्रा, और ‘अटूट बंधन’ की कार्यकारी संपादक व् साहित्यकार वंदना बाजपेयी … Read more

वंदना कटोच – 60 % लाने पर अपने बेटे को बधाई देने वाली माँ की पोस्ट हुई वायरल

फोटो -पंजाब केसरी से साभार फेसबुक पर एक माँ ने अपने बेटे को 60 % मार्क्स लाने पर बधाई दी , तब उन्हें नहीं पता था कि उनकी यह पोस्ट लाखों लोगों की जुबान बन जायेगी | उनकी यह पोस्ट वायरल हुई है | इस पोस्ट के 7000 से ऊपर शेयर , एक हज़ार से ज्यादा कमेन्ट व दस हज़ार से ज्यादा लैक आ चुके हैं | दरअसल बहुत  से लोग ऐस कहना चाहते हैं पर कह नहीं पाते क्योंकि बच्चों पर अच्छे नंबर लाने का सामाजिक दवाब हमीं ने बनाया है और अब हम और हमारे बच्चे ही इसका शिकार हो रहे हैं | ऐसे में बहुत जरूरत है ऐसी माँओं  के आगे आने की जो कम प्रतिशत लाने वाले अपने बच्चों के साथ खड़ी हो सकें |  वंदना कटोच –  60 % लाने पर अपने बेटे को बधाई देने वाली माँ की पोस्ट हुई वायरल  वंदना कटोच ने अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि .. मैं ओने बेटे पर गर्व महसूस कर रही हूँ | जिसने दसवीं की बोर्ड की परीक्षा में 60 % मार्क्स हासिल किये हैं | ये 90 % मार्क्स नहीं हैं , लेकिन मेरी भावनाएं नहीं बदली हैं |  मैंने अपने बेटे का संघर्ष देखा है , जहाँ वो कुछ विषयों को छोड़ने की स्थिति में था |जिसके बाद पढाई को लेकर उसने काफी संघर्ष किया | बेटा आमेर जैसे मछलियों से पेड़ पर चढ़ने की उम्मीद की जाती है ,  लेकिन ठीक इससे उल्ट तुम अपने दायरे के भीतर ही एक बड़ी उपलब्द्धि हासिल करो | तुम मछली की तरह पेड़ पर नहीं चढ़ सकते लेकिन बड़े समुद्र को अपना लक्ष्य बना सकते हो| मेरा प्यार तुम्हारे लिए | अपने भीतर अच्छे जिज्ञासा और ज्ञान को हमेशा जीवित रखो ,  और हाँ ! अपना अटपटा सेंसोफ़ ह्यूमर भी |” इस पोस्ट के बाद बहुत से लोगों ने उनके साहस और प्रेरणादायक पोस्ट के लिए उन्हें बधाई दी है | वंदना कहतीं हैं कि मैंने ९७ -९८ प्रतिशत लाने वाले बच्चों के माता -पिता को भी रोते हुए देखा है | बच्चे रोते हैं तब तो समझ में आता है पर माता -पिता क्यों रोते हैं ? उन्होंने अपनी खुशियाँ बच्चों के नंबरों से जोड़  रखी हैं | ये एक बहुत ही खतरनाक परंपरा  हो गयी है | बच्चे पर दवाब डालने के लिए माता -पिता के आँसू ही काफी हैं … और ये आँसू ही कई बार बच्चे के उस अंतिम खत का कारण बनते हैं ,” ये मेरा आखिरी खत है , मुझे दुःख है कि मैं आप की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर सका |” बहुत से लोगों ने उनकी पोस्ट पर यह भी लिखा कि की इतने कम नंबर लाने वाले बच्चे भविष्य में क्या कर पायेंगे |  इसके जवाब में उन्होंने कहा कि रिजल्ट आते ही कम प्रतिशत लाने वाले बच्चों के प्रति दया दिखाते लोग कहने लगते हैं कि ये बच्चा कैसे सर्वाइव करेगा …ऐसा लगता है कि बच्चे के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण उसके मार्क्स हो गए हैं | और फिर हर बच्चा कुछ ना कुछ तो कर ही लेगा | पर नंबरों का दवाब उसे उस काम को करने से भी रोक देता है जिसमें वो अच्छा है | बहुत से लोग फोटोग्राफी में जाते हैं , नृत्य -कला के क्षेत्र मे जाते हैं वहां विज्ञानं और गणित के नंबरों की जरूरत नहीं होती | उनका बेटा इन्हीं विषयों में कमजोर रहा है , अब वो अपने मन के विषय चुनेगा और उसमें निश्चित तौर पर अच्छा करेगा |  कुछ लोगों ने ये भी भी सवाल उठाया कि जब एक -डेढ़ महीने पढने से ये रिजल्ट रहा तो सारा साल पढने से बेहतर होता  इस के उत्तर में वंदना कहतीं हैं कि लोगों को लगता है कि जो बच्चे अच्छे नंबर नहीं लायें हैं उन्होंने साल भर ऐय्याशी की हैं | जबकि ऐसा नहीं है | कुछ बच्चों का कुछ और इंटरेस्ट होता है वो उसे करते हैं या फिर कुछ उन विषयों में जूझने में अपनी ज्यादा ऊर्जा जाया करते हैं जो उन्हें रुचिकर नहीं लगते | उनके बेटे को मैथ्स व् साइंस में मुश्किल होती थी | उसने बहुत मेहनत की पर रिजल्ट अनुकूल नहीं रहा | वो अवसाद से घिर गया | हमारे लिए भी वो बहुत मुश्किल वक्त था | फिर हमने हिम्मत की सब्जेक्ट को छोटे -छोटे टुकड़ों में बांटा और उस को तैयार करवाया | एक समय ऐसा था जब उनके बेटे आमेर ने इन सब्जेक्ट्स की परीक्षा ना देने का मन बनाया पर एक -डेढ़ महीने पहले उसने हिम्मत कर सभी विषयों की परीक्षा देने का मन बनाया और हमने उसका साथ दिया | हर बच्चा जो नंबर कम ला रहा है वो पढ़ा नहीं हो , ऐसनाहीं है |  नंबर और रूचि किसी विषय को समझने की क्ष्त्मा में अंतर जीवन में उसके सफल या असफल होने की गारंटी नहीं हैं | कुछ लोगों ने पूछा जब वो 90 % वाले बच्चों को देखतीं है तो अपने बच्चे को कहाँ पाती हैं ? इसके जवाब में वंदना कहती हैं कि वो बच्चों की तुलना नहीं करती | हर बच्चा खास है | जिन्होंने ज्यादा नंबर पाए हैं वो भी खास हैं और उनका बेटा आमेर भी | दोनों की तुलना नहीं हो सकती | आज जब कम प्रतिशत लाने वाले बच्चे समाज की नज़रों में खुद को कमतर , नाकारा , बेकार सिद्ध किये जाने से अवसाद में आ रहे हैं तब वंदना जैसी माँओं की बहुत जरूरत है जो डटकर अपने बच्चे के साथ खड़ी हो |  अटूट बंधन  यह भी पढ़ें … खराब रिजल्ट आने पर बच्चों को कैसे रखे पॉजिटिव   बच्चों के मन से परीक्षा का डर कैसे दूर करें बस्तों के बोझ तले दबता बचपन क्या हम  बच्चों में रचनात्मकता विकसित कर रहे हैं  बच्चों में बढती हिंसक प्रवत्ति आपको  लेख “वंदना कटोच –  60 % लाने पर अपने बेटे को बधाई देने वाली माँ की पोस्ट हुई वायरल “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  … Read more

जानिये प्यार की 5 भाषाओँ के बारे में

    हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू , फ़ारसी , लैटिन या फ्रेंच …. कितनी भी भाषाएँ आती हो मगर , प्यार की भाषा नहीं आती तो रिश्तों के मामले में तो शून्य ही रह जाते हैं | आप सोच सकते हैं कि ऐसा भला कौन हो सकता है जिसे प्यार की भाषा ना आती हो … तो ठहरिये आपको अपनी नहीं जिसे से आप प्यार करते हैं उसकी भाषा समझने की जरूरत है | कैसे ? आज वैलेंटाइन डे पर खास ये रहस्य आपसे साझा कर रहे हैं ………   वैलेंटाइन डे – जानिये प्यार की 5 भाषाओँ के बारे में    अभी कुछ दिन पहले की बात है मैं अपनी सहेली लतिका के साथ दूसरी सहेली प्रिया के घर गयी| प्रिया थोड़ी उदास थी| बातों का सिलसिला शुरू हुआ, तभी मेरी नज़र उसके हाथों की डायमंड रिंग पर गयी | रिंग बहुत खूबसूरत थी | मैंने तारीफ़ करते हुए कहा,” वाह  लगता है जीजाजी ने दी है, कितना प्यार करते हैं आपसे | मेरी बात सुन कर उसकी आँखों में आँसू आ गए, जैसे उनका वर्षों पूराना दर्द बह कर निकल जाना चाहता हो| गला खखार कर बोलीं,” पता नहीं, ये प्यार है या नहीं, नीलेश, महंगे से महंगे गिफ्ट्स दे देते हैं, मेरी नज़र भी अगर दुकान पर किसी चीज पर पड़ जाए तो उसे मिनटों में खरीद कर दे देते हैं, चाहें वो कपड़े हो, गहने हों या श्रृंगार का कोई सामान, पर जब मैं खुश हो कर उसे पहनती हूँ तो कभी झूठे मुँह भी नहीं कहते कि बहुत सुन्दर लग रही हो| पहले मैं पूँछती थी ,” बताओ न, कैसी लग रही हूँ “ , तो हर बार बस वही उत्तर दे देते,  “वैसी  ही जैसी हमेशा लगती हो … अच्छी”| मेरा दिल एकदम टूट कर रह जाता | मैंने कितनी ऐसी औरते देखी हैं जो बिलकुल सुन्दर नहीं हैं, पर उनके पति उन्हें सर पर बिठा कर रखते हैं … परी, हूर , चाँद का टुकड़ा न जाने क्या–क्या कहते हैं, एक तरफ मैं हूँ जिसे दुनिया सुन्दर कहती है उसका पति कभी कुछ नहीं कहता , ये महंगे गिफ्ट्स क्या हैं? … बस अपनी हैसियत का प्रदर्शन हैं | बिना भाव से दिया गया हीरा भी पत्थर से अधिक कुछ नहीं है मेरे लिए | उनका दुःख जान कर मुझे बहुत दुःख हुआ पर मैंने माहौल को हल्का करने के लिए इधर –उधर की बातें करना शुरू किया | हमने हँसते –खिलखिलाते हुए उनके घर से विदा ली |                   रास्ते में लतिका कहने लगी,  “कितनी बेवकूफ है प्रिया, उसे अपने पति का प्यार दिखता ही नहीं | अगर प्यार न करते तो क्या इतने महंगे गिफ्ट्स ला कर देते, एक मेरे पति हैं, मेरी दुनिया भर की तारीफें करते रहेंगे, गीत , ग़ज़ल भी मेरे ऊपर लिख देंगे, मगर मजाल है गिफ्ट के नाम पर एक पैसा भी खर्च करें | बहुत महंगा गिफ्ट तो मैंने चाहा ही नहीं , पर एक गुलाब का फूल तो दे ही सकते हैं |”              घर आ कर मैं प्रिया और लतिका के बारे में सोंचने लगी | दरअसल ये समस्या प्रिया और लतिका की नहीं हम सब की है | हम सब अक्सर इस बात से परेशान रहते हैं कि जिसे हम इतना प्यार करते हैं, वो हमें उतना प्यार नहीं करता, या फिर हम तो अपने प्यार का इजहार बार–बार करते हैं पर वो हमारी  भावनाओं को समझता ही नहीं या उनकी कद्र ही नहीं करता| ये रिश्ता सिर्फ पति –पत्नी या प्रेमी –प्रेमिका का न हो कर कोई भी हो सकता है, जैसे माता–पिता का रिश्ता, भाई बहन का रिश्ता, दो बहनों को का रिश्ता, दो मित्रों का रिश्ता | इन तमाम रिश्तों में प्यार होते हुए भी एक दूरी होने की वजह सिर्फ इतनी होती है कि हम एक दूसरे के प्यार की भाषा नहीं समझ पाते | क्या होती है प्यार की भाषा –                     मान लीजिये आप अपनी किसी सहेली से मिलती हैं, वो आपको अपने तमिलनाडू टूर के बारे में बता रही है कि वो कहाँ–कहाँ गयी, उसने क्या–क्या किया, क्या–क्या खाया वगैरह–वगैरह, पर वो ये सारी  बातें तमिल में बता रही है, और आपको तमिल आती नहीं | अब आप उसे खुश देख कर खुश होने का अभिनय तो करेंगी  पर क्या आप वास्तव में खुश हो पाएंगीं ? नहीं, क्योंकि आपको एक शब्द भी समझ में नहीं आया| अब बताने वाला भले ही फ्रस्टेट हो पर गलती उसी की है, सारी कहानी बताने से पहले उसे पूँछ तो लेना चाहिए था कि आपको तमिल आती है या नहीं ? ठीक उसी तरह प्यार एक खूबसूरत भावना है पर हर किसी को उसे कहने या समझने की भाषा अलग–अलग होती है | अगर लोगों को उसी भाषा में प्यार मिलता है जिस भाषा को वो समझते हैं तो उन्हें प्यार महसूस होता है, अन्यथा उन्हें महसूस ही नहीं होता कि उन्हें अगला प्यार कर रहा है| अलग होती है सबकी प्यार की भाषा                          मनोवैज्ञानिक गैरी चैपमैन के अनुसार प्यार की पाँच भाषाएँ होती हैं और हर कोई अपनी भाषा में व्यक्त  किये गए प्यार को ही शिद्दत से महसूस कर पाता है | अगर आप किसी से उसकी प्यार की भाषा में बात नहीं करेंगे तो आप चाहे जितनी भी कोशिश कर लें वो खुद को प्यार किया हुआ नहीं समझ पाएगा | आपने कई ऐसे लोगों को देखा होगा जिनके बीच में प्यार है, दूसरों को समझ में आता है कि उनमें प्यार है, पर उनमें से एक हमेशा शिकायत करता रहेगा कि अगला उसे प्यार नहीं करता | कारण स्पष्ट है कि अगला उसे उस भाषा में प्यार नहीं करता जिस भाषा में उसे प्यार चाहिए| मनोवैज्ञानिक गैरी चैपमैन ने इसके लिए लव टैंक की अवधारणा प्रस्तुत की थी | जब आप किसी से उस की प्यार की भाषा में बात करते हैं तो उसका लव टैंक भर जाता है और वो खुद को प्यार किया हुआ महसूस करता है , लेकिन अगर आप  उस के प्यार की भाषा में बात नहीं करते … Read more

अटूट रिश्तों पर 15 अनमोल विचार

हम सब चाहते हैं की हमारे रिश्ते अटूट बंधन में बंधे रहे | इसके लिए प्रयास भी करते हैं |कभी सफल होते हैं कभी असफल | कुछ बाते हैं जो आपके रिश्तों को अटूट बंधन में बांधती हैं | आइये जाने ऐसी ही बातें … जानिये अटूट रिश्तों पर 15 अनमोल विचार  1) किसी के साथ होना उसके प्रति स्पष्ट होना , ईमानदार होना , भावना से भरे होना , उसको सुनने , जान्ने समझने को तैयार होना , उसको जैसा है वैसा स्वीकार करना , साथ देना और जरूरत पड़ने पर क्षमा कर देना ….. यही अटूट रिश्तों की सम्पूर्ण परिभाषा है | 2.एक अच्छा रिश्ता वो है जब कोई आपका अतीत स्वीकार करे आपके वर्तमान की सहायता करे व् आपके भविष्य को बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहित करे | ३.एक अच्छे रिश्ते में दो बाते जरूरी है | पहली उन बातों की तारीफ करना जो आप दोनों में सामान हैं | दूसरा उन बातों का सम्मान करना जो आपमें भिन्न हैं | 4.क्षमा मांगने का अर्थ हमेशा ये नहीं होता है की आप गलत हैं और अगला सही है | कई बार इसका मतलब ये होता है की आप अपने रिश्ते को अपने अहंकार से ज्यादा अहमियत देते हैं | 5.अच्छा रिश्ता वहां है जब व्यक्ति आपकी सारी असुक्षाएं और सारी कमजोरियां समझता हो , फिर भी आप से प्यार करता हो | 6)आपकी उपस्थिति और अनुपस्थिति दोनों जिसके लिए महत्वपूर्ण हों वही आपका सच्चा रिश्ता है | 7)किसी गलत व्यक्ति के पीछे मत दौड़ों | एक अच्छा रिश्ता कभी दूर भागता नहीं है | 8)अच्छे रिश्ते अचानक से नहीं हो जाते हैं वो समय लेते हैं | 9)एक खूबसूरत रिश्ता एस बात पर निर्भर नहीं करता कि हम कितना एक दूसरे को समझते हैं बल्कि इस बात पर निर्भर करता है की हम अपने विरोध कितनी ख़ूबसूरती से निपटा लेते हैं | 10)किसी रिश्ते के ख्त्म्होने का अर्थ ये नहीं ई की दो लोगों ने एक दूसरे को प्यार करना बंद कर दिया है बल्कि दो लोगों ने एक दूसरे को चोट पहुँचाना बंद  कर दिया है | 11)प्रेम वो भाषाही जिसे हर कोई बोलता है | पर जब दो लोग इस भाषा को समझने लगते हैं वही अटूट बंधन बन जाता है | 12)विवाह का लक्ष्य एक जैसा सोंचना नहीं बल्कि एक साथ सोंचना है | 13)एक अच्छा रिश्ता वो है जो आपको बिना किसी दूसरे में बदले खुद में ही  बेहतर  व्यक्ति बना देता है | 14)एक अच्छा रिश्ता ये नहीं है कि आप एक दूसरे से लड़ते , झगड़ते या बुरा – भला नहीं कहते हैं बल्कि एक अच्छा रिश्ता वो है जब आप इन झगड़ों के बाद जल्द से जल्द सामान्य व् पूर्ववत हो जाते हैं | 15)अगर किसी रिश्ते में झगडा खत्म हो जाए तो समझ लेना चाहिए कि वो रिश्ता खत्म होने की कगार पर है | टीम ABC यह भी पढ़ें ………. रिश्तों पर 21 सर्वश्रेष्ठ विचार असफलता से सीखने पर 21 अनमोल विचार जीवन सूत्र पर २१ अनमोल विचार इंदिरा गाँधी के 21 सर्वश्रेष्ठ विचार आपको आपको  लेख “अटूट रिश्तों पर 15 अनमोल विचार  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    

अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति सम्मान की मांग

  मिसेज गुप्ता कहती हैं की उस समय परिवार में सब  कहते थे, “लड़की है बहुत पढाओ  मत | एक पापा थे जिन्होंने सर पर हाथ फेरते हुए कहा, “तुम जितना चाहो पढो” |   श्रीमती देसाई बड़े गर्व से बताती हैं की उनका भाई शादी में सबसे ज्यादा रोया था | अभी भी हर छोटी बड़ी जरूरत में उसके घर दौड़ा चला जाता है |   कात्यायनी जी ( काल्पनिक नाम ) अपने लेखन का सारा श्री पति को देती हैं | अगर ये न साथ देते तो मैं एक शब्द भी न लिख पाती | जब मैं लिखती तो घंटो सुध न रहती | खाना लेट हो जाता पर ये कुछ कहते नहीं | भले ही भूख के मारे पेट में चूहे कूद रहे हों | श्रीमान देशमुख अपनी पत्नी की ख़ुशी के लिए  स्कूटर न लेकर उसके लिए उसकी पसंद का सामान लेते हैं |                            फेहरिस्त लम्बी है पर  ये सब हमारे आपके जैसे आम घरों के उदाहरण है | ये सही है  कि हमारे पिता , भाई , पति बेटे और मित्र हमारे लिए बहुत कुछ करते हैं |पर क्या हम उनके स्नेह को नज़रअंदाज कर देते हैं | अगर ऐसा नहीं है तो क्यों पुरुष ऐसा महसूस कर रहे हैं |  अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति  सम्मान की मांग है  कल व्हाट्स एप्प पर एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें एक खूबसूरत गीत के साथ अन्तराष्ट्रीय पुरुष दिवस मानाने की अपील की गयी थी .. गीत के बोल कुछ इस तरह से थे “ मेन्स डे पर ही क्यों सन्नाटा एवेरीवेयर , सो नॉट फेयर-२” … पूरे गीत में उन कामों का वर्णन था जो पुरुष घर परिवार के लिए करता है, फिर भी उसके कामों को कोईश्रेय नहीं मिलता है | जाहिर है उसे देख कर कुछ पल मुस्कुराने के बाद एक प्रश्न दिमाग में उठा “ मेन्स डे’ ? ये क्या है ? तुरंत विकिपिडिया पर सर्च किया | जी हां गाना सही था |  अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस कब मनाया जाता है    १९ नवम्बर को इंटरनेशनल मेन्स डे होता है | यह लगातार १९९२ से मनाया जा रहा है | पहले पहल इसे ७ फरवरी को मनाया गया | फिर १९९९ में इसे दोबारा त्रिनिदाद और टुबैगो में शुरू किया गया |     अब पूरे विश्व भर में पुरुषों द्वारा किये गए कामों को मुख्य रूप से घर में , शादी को बनाये रखने में , बच्चों की परवरिश में , या समाज में निभाई जाने वाली भूमिका के लिए सम्मान की मांग उठी है |     पुरुष हो या स्त्री घर की गाडी के दो पहिये हैं | दोनों का सही संतुलन , कामों का वर्गीकरण एक खुशहाल परिवार के लिए बेहद जरूरी होता है | क्योंकि परिवार समाज की इकाई है | परिवारों का संतुलन समाज का संतुलन है | इसलिए स्त्री या पुरुष हर किसी के काम का सम्मान किया जाना जरूरी हैं | काम का सम्मान न सिर्फ उसे महत्वपूर्ण होने का अहसास दिलाता है अपितु उसे और बेहतर काम करने के लिए प्रेरित भी करता है | क्यों उठ रही है अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस की मांग    यह एक  सच्चाई  है की दिन उन्हीं के बनाये जाते हैं जो कमजोर होते हैं |पितृसत्तात्मक  समाज में हुए महिलाओं के शोषण को से कोई इनकार नहीं कर सकता | महिला बराबरी की मांग जायज है | उसे किसी तरह से गलत नहीं ठहराया जा सकता है | पर इस अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस  की मांग क्यों ? तस्वीर का एक पक्ष यह है की दिनों की मांग वही करतें हैं जो कमजोर होते हैं | तो क्या स्त्री इतनी सशक्त हो चुकी है की पुरुष को मेन्स डे सेलेब्रेट करने की आवश्यकता आन पड़ी | या ये एक बेहूदा मज़ाक है | जैसा पहले स्त्री के बारे में कहा जाता था की पुरुष से बराबरी की चाह में स्त्री अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों का नाश कर रही है , अपनी कोमलता खो रही है | क्योंकि उसने पुरुष की सफलता को मानक मान लिया है | इसलिए वो पुरुषोचित गुण अपना रही हैं |अब पुरुष स्त्री की बराबरी करने लगे हैं |      सवाल ये उठता है की पुरुषों को ऐसी कौन सी आवश्यकता आ गयी की वो स्त्री के नक़्शे कदम पर चल कर मेन्स डे की मांग कर बैठा | क्या नारी को अपनी इस सफलता पर हर्षित होना चाहिए “ की वास्तव में वो सशक्त साबित हो गयी है | पर आस पास के समाज में देखे तो ऐसा तो लगता नहीं , फिर अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस की मांग क्यों ?     अपने प्रश्नों के साथ मैंने फिर से वीडियो देखा …. और उत्तर भी मिला | इस वीडियों के अनुसार पुरुष घर के अन्दर अपने कामों के प्रति सम्मान व् स्नेह की मांग कर रहा है | कहीं न कहीं मुझे लग रहा है की ये बदलते समाज की सच्चाई है | पहले महिलाएं घर में रहती थी और पुरुष बाहर धनोपार्जन में | पुरुष को घर के बाहर सम्मान मिलता था और वो घर में परिवार व् बच्चों के लिए पूर्णतया समर्पित स्त्री का घर में बच्चो व् परिवार द्वारा ज्यादा मान दिया जाना सहर्ष स्वीकार कर लेता था |समय बदला , परिसतिथियाँ  बदली |आज उन घरों में जहाँ स्त्री और पुरुष दोनों बाहर धनोपार्जन कर रहे हैं |   बाहर दोनों को सम्मान मिल रहा है | घर आने के बाद जहाँ स्त्रियाँ रसोई का मोर्चा संभालती हैं वही पुरुष बिल भरने ,घर की टूट फूट की मरम्मत कराने , सब्जी तरकारी लाने का काम करते हैं | संभ्रांत पुरुषों का एक बड़ा वर्ग इन सब से आगे निकल कर बच्चों के डायपर बदलने , रसोई में थोडा बहुत पत्नी की मदद करने और बच्चों को कहानी सुना कर सुलाने की नयी भूमिका में नज़र आ रहा है | पर कहीं न कहीं उसे लग रहा है की बढ़ते महिला समर्थन या पुरुष विरोध के चलते उसे उसे घर के अन्दर या समाज में उसके स्नेह भरे कामों के लिए पर्याप्त सम्मान नहीं मिल रहा है |     अपने परिचित का एक उदाहरण … Read more

मृत्यु – शरीर नश्वर है पर विचार शाश्वत

  मृत्यु जीवन से कहीं ज्यादा व्यापक है , क्योंकि हर किसी की मृत्यु होती है , पर हर कोई जीता नहीं है -जॉन मेसन                                             मृत्यु …एक ऐसे पहेली जिसका हल दूंढ निकालने में सारी  विज्ञान लगी हुई है , लिक्विड नाईटरोजन में शव रखे जा रहे हैं | मृत्यु … जिसका हल खोजने में सारा आध्यात्म लगा हुआ है | नचिकेता से ले कर आज तक आत्मा और परमात्मा का रहस्य खोजा जा रहा है | मृत्यु जिसका हल खोजने में सारा ज्योतिष लगा हुआ है | राहू – केतु , शनि मंगल  की गड्नायें  जारी हैं | फिर भी मृत्यु है | उससे भयभीत पर उससे बेखबर हम भी | युधिष्ठर के उत्तर से यक्ष भले ही संतुष्ट हो गए हों | पर हम आज भी उसी भ्रम में हैं | हम शव यात्राओ में जाते है | माटी बनी देह की अंतिम क्रिया में भाग लेते हैं | मृतक के परिवार जनों को सांत्वना देते हैं | थोडा भयभीत थोडा घबराए हुए अपने घर लौट कर इस भ्रम के साथ अपने घर के दरवाजे बंद कर लेते हैं की मेरे घर में ये कभी नहीं होगा |                                      विडम्बना है की हम मृत्यु को  स्वीकारते हुए भी नकारते हैं | मृत्यु पर एक बोधि कथा है | कहते हैं एक बार एक स्त्री के युवा पुत्र की मृत्यु हो गयी | वो इसे स्वीकार नहीं कर पा रही थी | उसी समय महत्मा बुद्ध उस शहर  में आये | लोगों ने उस स्त्री से कहा की मातम बुद्ध बहुत बड़े योगी हैं | वो बड़े – बड़े चमत्कार कर सकते हैं | तुम उनसे अपने पुत्र को पुन : जीवित करने की प्रार्थना करो | अगर कुछ कर सकते हैं तो वो ही कर सकते हैं | वह स्त्री तुरंत अपने पुत्र का शव लेकर महात्मा बुद्ध के दरबार में पहुंची और उनसे अपने पुत्र को पुनर्जीवित करने की फ़रियाद करने लगी | | महात्मा बुद्ध असमंजस में पड़ गए | वो एक माँ की पीड़ा को समझते हुए उसे निराश नहीं करना चाहते थे | थोड़ी देर सोंचने के उपरान्त वो बोले की ,” मैं मंत्र पढ़ के तुम्हारे पुत्र को पुनर्जीवित कर देता हूँ | बस तुम्हें किसी ऐसे घर से चूल्हे की राख लानी पड़ेगी | जहाँ कभी किसी की मृत्यु न हुई हो | आँसू पोछ कर वो स्त्री शहर की तरफ गयी | उसने हर द्वार खटखटाया | परन्तु उसे कहीं कोई ऐसा घर नहीं मिला जहाँ कभी किसी की मृत्यु न हुई हो | निराश ,हताश हो कर वो वापस महात्मा बुद्ध के पास लौट आई | उनके चरणों में गिर कर बोली ,” प्रभु मुझे समझ आ गया है की मृत्यु अवश्यसंभावी है , मैं ही पुत्र मोह में उसे नकार बैठी थी |                          जीवन के इस पार से उस पार गए पथिक पता नहीं वहाँ  से हमें देख पाते हैं की नहीं | अगर देख पाते तो जानते की इस पार छूटे हुए परिवार के सदस्यों , मित्रों हितैषियों का जीवन भी  उस मुकाम पर रुक जाता है | मानसिक रूप से उस पार विचरण करने वाले  परिजनों के लिए न जाने कितने दिनों तक कलैंडर की तारीखे बेमानी हो जाती हैं , घडी की सुइयां बेमानी हो जाती हैं , सोना जागना बेमानी हो जाता है | क्योंकि वो भी थोडा सा मर चुके होते हैं | अंदर ही अंदर मन के किसी कोने में , जहाँ ये अहसास गहरा होता है की जीवन अब कभी भी पहले जैसा नहीं होगा | यहाँ तक की वो खुद भी पहले जैसे नहीं रहेंगे | जहाँ उन्हें फिर से चलना सीखना होगा ,  संभलना सीखना होगा , यहाँ तक की जीना सीखना होगा |ऐसे समय में कोई संबल बनता है तो उस व्यक्ति के द्वारा कही गयी बातें | उसके विचार | जैसे – जैसे हम वेदना  का पर्दा हटा कर उस व्यक्ति का जीवन खंगालते हैं तो समझ में आती हैं उसके द्वारा कही गयी बातें उसका जीवन दर्शन | कितने लोग कहते हैं की मेरे पिता जी / माता जी अदि – आदि ऐसे कहा करते थे | अब उनके जाने के बाद मुझे ये मर्म समझ में आया है | अब मैं भी यही करूँगा / करुँगी | विचारों के माध्यम से व्यक्ति कहीं न कहीं जीवित रहता है |                                     व्यक्ति का दायरा जितना बड़ा होता है | उसके विचार जितने सर्वग्राही या व्यापक दृष्टिकोण वाले होते हैं | उसके विचारों को ग्रहण करने वाले उतने ही लोग होते हैं |  हम सब को दिशा दिखाने वाली भगवत भी प्रभु श्री कृष्ण के श्रीमुख से व्यक्त किये गए विचार ही थे | परन्तु उससे युगों – युगों तक समाज का भला होने वाला था इसलिए उसे लिखने की तैयारी पहले ही कर ली गयी थी | कबीर दास ने तो ‘मसि कागद छुओ नहीं ‘कलम गहि नहीं हाथ ” परन्तु उनके विचार इतने महान थे की की उनके शिष्यों ने  उनका संकलन किया | जिससे हम आज भी लाभान्वित हो रहे है | पुनर्जन्म है की नहीं इस पर विवाद हो सकता है | परन्तु स्वामी विवेकानंद  के अनुसार  पॉजिटिव एनर्जी और नेगेटिव एनर्जी के दो बादल होते हैं | हम जैसे विचार रखते हैं | जैसे काम करते हैं | अंत में उन्ही बादलों के द्वारा हमारी आत्मा को खींच लिया जाता है | वही हमारे अगले जन्म को भी निर्धारित करता है |                                   विज्ञानं द्वारा भी सिद्ध हो गया है की विचार उर्जा का ही दूसरा रूप है | और उर्जा कभी नष्ट नहीं होती | चूँकि विचार शास्वत है और शरीर नश्वर ,इसलिए हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने … Read more

अटूट बंधन

अटूट बंधन ब्लॉग की नींव “सर्वजन हिताय , सर्वजन सुखाय” की भावना से प्रेरित हो कर रखी गयी है | इसके मुख्य उद्देश्य निम्न हैं … हमारे जीवन में रोटी कपडा और मकान के बाद जो चीज सबसे महत्वपूर्ण होती है ,वो है हमारे रिश्ते | जहाँ रोटी कपडा और मकान भैतिक आवश्कताओं के लिए जरूरी हैं ,वहीं रिश्ते भावनात्मक आवश्यकताओं के लिए जरूरी हैं | आज के समय में जब रिश्ते टूट और बिखर रहे हैं तब बहुत जरूरी है उन्हें संभालना , सहेजना ताकि हम भावनात्मक रूप से संतुष्ट रह सके | भावनात्मक संतुष्टि के बिना सारी खुशिया बेकार लगती है | हम अटूट बंधन ब्लॉग पर ऐसे जानकारीयुक्त लेख ले कर आयेगे जो आपके रिश्तों को सँभालने में आपकी सहायता करेंगे व्  आपको गलत रिश्तों से निकलने की समझ भी देंगें | जीवन है तो समस्याएं हैं | जब समस्याएं आती हैं तो हमारा दिमाग काम नहीं करता | उस समय लगता है कोई रास्ता दिखा दे | हमारे ब्लॉग में “अगला कदम” वही हाथ है जो उस समय आपको सहारा देगा , रास्ता दिखाएगा जब आप समस्या से जूझ रहे हो और उसका हल खोज रहे हों | इसमें रिश्तों , कैरियर , स्वाथ्य , प्रियजन की मृत्यु , अतीत में जीने आदि बहुत सारी समस्याओं को उठाया है | ये योजना मेरे दिल के बहुत करीब है | आशा है सब को इससे लाभ होगा | कौन है जो सफल नहीं होना चाहता | सफलता के लिए सभी प्रयास भी करते हैं | सफलता आशा और उत्साह देती है वहीँ असफलता मन को तोड़ देती है | हालांकि कोई भी असफलता अंतिम नहीं होती | पर निराशा के आलम में जरूरी होता है कोई ऐसा व्यक्ति जो उस निराशा से निकल दे और जीवन में फिर से जिजीविषा भर दे | “अटूट बंधन “ ब्लॉग का प्रयास है की वो सकारात्मक विचरों का प्रचार प्रसार  करेगा जिससे लोग निराशा से बाहर निकल कर लौकिक व् परलौकिक सफलता प्राप्त कर सकें | साथ ही स्वस्थ , संतुष्ट व् उर्जा से भरे आपके व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होगा | अटूट बंधन ब्लॉग प्रतिभाशाली लोगों को मंच देने की कोशिश है |हमारा प्रयास रहेगा की आप की रचनाओं को ज्यादा से ज्यादा पाठक पढ़ सके | जो लोग भी अटूट बंधन में अपनी रचनाएँ भेजना चाहते हैं वो editor.atootbandhan@gmail.com पर भेजें | रचना पसंद आने पर प्रकाशित की जायेगी |         उम्मीद है अच्छी भावना से शुरू की गई ये कोशिश कामयाब होगी और पाठकों के साथ मेरा “अटूट बंधन”                                                        बना रहेगा |   वंदना.  बाजपेयी  फाउंडर ऑफ़ अटूट बंधन .कॉम 

अटूट बंधन वर्ष- २ अंक – ६ अनुक्रमाणिका

अटूट बंधन वर्ष -२ अंक -६ अनुक्रमाणिका 1)सम्पादकीय – नजरिया बनाता है विजेता 2 )कार्यकारी संपादक का सम्पादकीय – समग्र जीवन की सफलता नवरात्रों पर विशेष – कन्या पूजन का महत्व्  – निवेदिता श्रीवास्तव लखनऊ 3 )व्यक्तित्व विकास – दूर करतें व्यक्तित्व के ५ दोष – डॉ . कमलेश निगम ,मुंबई 4 )राम नाम जप का वैज्ञानिक महत्व – आचार्य विनोद पाठक , चंडीगढ़ 5 )जीवन मन्त्र – सबसे जरूरी है खुद पर भरोसा – डॉ . दीपक शुक्ल, कोलकाता 6 )चर्चित व्यक्तित्व – मानवाधिकारों के प्रखर प्रहरी – उत्तर प्रदेश के कारागार मंत्री श्री बलवंत सिंह रामूवालिया जी  का विशेष साक्षात्कार 7 )सक्सेस मंत्र – समय प्रबंधन का २० /८० का नियम- परस मेहता , अहमदाबाद  8 )आवरण कथा –आत्म शक्ति कैसे बढायें 9 )बाल –जागत – कहीं आप टॉक्सिक अभिवावक तो नहीं – डॉ . अंजुम चोपड़ा रांची 10 )काव्य –जगत – रश्मि प्रभा , स्वेता मिश्र नाइजीरिया  , शिवानी शर्मा , अनुभूति गुप्ता व् हयात सिंह की कवितायें 11 )रिश्ते –नाते – रिश्तों का संसार और आध्यात्मिकता – आराधना शास्त्री –बेंगलुरु , कर्नाटक 12 )कहानी –मन का अँधेरा – डॉ . विनय कुमार सिंह , जोहन्सबर्ग दक्षिण अमेरिका 13 )कहानी – बाहें – डॉ डेज़ी नेहरा , हरियाणा 14 )नारी मन – गुडिया माटी और देवी – वंदना बाजपेयी 15 )स्वास्थ्य जगत – स्वस्थ किडनी , स्वस्थ शरीर – डॉ . विजय गोयल , चेन्नई 16 )ज्योतिष – माह का राशिफल 17 )प्रेरक बातें – बात जो दिल को छू जाए  18 )व्यंग – दूरदर्शी दूधवाला – डॉ . अशोक परूथी , अमेरिका 19)पुस्तक समीक्षा – हैदराबाद की साहित्यिक पत्रकारिता , – नीरजा द्वारा आशा मिश्र ‘मुक्त ‘ की पुस्तक समीक्षा 20 )आध्यात्म – हर तरफ रामलीला – ओशो 21 )चिट्ठी –पत्री – पाठकों द्वारा भेजे गए पत्र 22 )प्रेरक प्रसंग 23 ) रोचक तथ्य व् अन्य स्थायी स्तम्भ

अटूट बंधन वर्ष -२ अंक -४ , अंक -१६ अनुक्रमणिका

अटूट बंधन वर्ष -२ अंक -४ , अंक -१६ अनुक्रमणिका *सम्पादकीय –जिंदगी का हिस्सा है स्पीड ब्रेकर *सम्पादकीय (कार्यकारी संपादक )- नगर ढिंढोरा पीटती प्रीत न करियो कोय *खुद मर कर ही मिलता है स्वर्ग – डॉ तेजबहादुर सिंह –बिहार *रोग भय  पर टिका सेहत का कारोबार –डॉ अलका खत्री –चंडीगढ़ *आवरण कथा –प्रेम में है सकारात्मक उर्जा *लघुकथाएं –शशि बंसल , पूनम पाठक *संकट में जागती हैं सुप्त शक्तियाँ – डॉ .विवेक सिन्हा –चेन्नई *विशेष आलेख – होंठ देख कर जाने स्वाभाव -डॉ मधुरिमा  *संकल्प उदित होते ही छटता  है अँधेरा –प्रदीप चतुर्वेदी –पंजाब *व्यंग – तौबा इस संसार में भांति –भांति के प्रेम – प्रियंका सेठ –गुजरात *नारी मन – मंगलसूत्र:  बंधन है प्यार का – प्रियंवदा रावत नयी दिल्ली *काव्य जगत … चिंतामणि जोशी –असफल प्रेमी रश्मि प्रभा –खैर किरण सिंह – रूठे तुम हो तुम ही बोलो साधना सिंह –मेरे शब्द पंखुरी सिन्हा –शब्द और मौसम डॉली अग्रवाल –प्रेम दीवानी अम्बरीश त्रिपाठी –यादें *जीवन मन्त्र – आत्मनियंत्रण है सफलता की पहली सीढ़ी –उर्मिला दुबे गोरखपुर *कहानी –एक प्यार ऐसा भी –स्वेता मिश्रा –नाइजीरिया *स्वास्थ्य : थाईराइड : संभव है उपचार –डॉ सोमनाथ झा तेलंगाना *बाल जगत – बोर्ड परीक्षाएं : सही तैयारी है सफलता की कुंजी –डॉ जगदीश गाँधी ( संस्थापक प्रबंधक सिटी मांटेसरी स्कूल लखनऊ *ज्योतिष /वास्तु -वास्तु के अनुसार कैसा हो आपके बच्चे का स्टडी रूम –पंडित अविनाश आचार्य वाराणसी *वैलेन्टाइन डे  पर विशेष – आई लव यू यानी जादू की झप्पी… सरबानी सेनगुप्ता  *आध्यात्म -ओशो – प्रेम स्वतंत्रता की कीमत पर नहीं *दिल को छूती बातें …..बात जो दिल को  जाए *प्रेरक विचार व् रोचक तथ्य व् अन्य स्थायी स्तम्भ * प्रेरक कथा – सुकरात की शिक्षा  *फरवरी माह का राशि फल

लवली पब्लिक स्कूल के वार्षिकोत्सव में मुख्य अतिथि अटूट बंधन की कार्यकारी संपादक वंदना बाजपेयी के उदगार : सपनों को जीने के लिए जरूरी है जूनून

सपनों  को जीने के लिए जरूरी है जूनून | उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि हर बच्चे की आँखों में हजारों सपने होते हैं , वो सफल होना चाहता है | पर सफलता के लिए सिर्फ सपने देखने से काम नहीं चलता क्योंकि सपनों में जीने और सपनों को जीने में जमीन आसमान का अंतर होता है | सफल वहीं होते हैं जो सपनों को जीते हैं |  उक्त उदगार थे दिल्ली के सुप्रसिद्ध लवली पब्लिक स्कूल के वार्षिकोत्सव की मुख्य अतिथि  अटूट बंधन की कार्यकारी संपादक वंदना बाजपेयी के |                                         कल मंगलवार को दिल्ली के सुप्रसिद्ध लवली पब्लिक स्कूल ने वार्षिकोत्सव मनाया | जिसमें सभा को संबोधित करते हुए अटूट बंधन की कार्यकारी संपादक श्रीमती वंदना बाजपेयी बच्चों को सफलता के गुर बताये |  उन्होंने   एक छोटी सी कविता के माध्यम से समझाया कि सपनों को जीने के लिए जूनून या पैशन का होना बहुत जरूरी है| उन्होंने बच्चों से प्रश्न किया कि अगर कुकर में तरह -तरह की सब्जियाँ व् दुनिया भर के मसाले डाल कर गैस पर चढ़ा दिया जाए पर गैस जलाई नहीं जाए तो क्या सब्जी पक सकती है ? बच्चों के नहीं में उत्तर देने पर उन्होंने बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि इसी प्रकार जूनून वो आग है जिसमें पक कर सपने सफलता में बदलते हैं | पर सच्चाई यह भी है कि उसी काम को जूनून से किया जा सकता है जिस काम से प्यार हो | उन्होंने बच्चों के पेरेंट्स से आग्रह किया कि आप बच्चों के कैरियर के सन्दर्भ में विशेष सतर्कता बरतें |आप के बच्चे में जिस क्षेत्र में जाने की रूचि हो उसे उसी क्षेत्र में जाने के लिए प्रोत्साहित करे | बच्चा जिस काम से प्यार करता है उसी काम को पूरे जूनून से कर पायेगा तभी खुश रह पायेगा | जब काम ही खेल लगने लगे तो पूरी जिंदगी खेल खेल में हँसते – गाते ही कट जाती है | श्रीमती बाजपेयी ने बच्चों को आगाह किया की मन का काम होने के बावजूद कई बार बाधाएं आती हैं परन्तु उस समय घबराना नहीं चाहिए | क्योंकि छोटी –छोटी असफलताएं जीत से अलग नहीं होती | ये असफलताएं एक बड़ी जीत का हिस्सा होती हैं | हर सफल व्यक्ति अपने जीवन में असफलताओं को देखता है पर इस उम्मीद के साथ अपने काम में लगा रहता है कि जिस प्रकार रात के बाद दिन व् दिन के बाद रात आती है उसी प्रकार यह यह भी सफलता की राह का हिस्सा भर हैं | श्रीमती बाजपेयी ने उन बच्चों को जो किसी काम को पूरे जोश खरोश के साथ शुरू करते हैं पर आधा करके छोड़ देते हैं उदाहरण देकर समझाया की , अगर बहुत सारे आधे –आधे गड्ढे खोद कर छोड़ दिए जाए तो भी किसी में पानी नहीं मिलेगा | उस के स्थान पर यदि एक ही गड्ढे को लगातार खोदा जाए तो पानी भी मिलेगा और परिश्रम भी व्यर्थ नहीं होगा | किसी भी काम को आधे में नहीं छोड़ना चाहिए बल्कि उसे उसी में निरंतर लगे रहना चाहिए | जो लोग अपने काम में निरंतर लगे रहते हैं उन्हें देर –सवे र सफलता मिल ही जाती है |श्रीमती बाजपेयी ने बच्चों द्वारा किये गए सरकरात्मक सोंच के कार्यक्रम की सराहना करते हुए कहा कि ये कार्यक्रम उन्हें बेहद पसंद आया | अटूट बंधन पत्रिका भी इसी दिशा में काम कर रही है कि की हर व्यक्ति का सकारात्मक सोंच से व्यक्तित्व विकास किया जा सके | क्योंकि अब यह विज्ञान द्वारा सिद्ध हो चुका है के विचारों में द्रव्यमान होता हैं जिस कारण वो अपने समान परिस्तिथियों को खीच लाते हैं | इस विषय पर उन्होंने छोटी सी कहानी सुना कर सभा को सकारात्मक विचारों का महत्त्व बताया | उन्होंने आशा व्यक्त की कि वो यहाँ भविष्य के कई सफल लोगों को देख रही हैं | श्रीमती बाजपेयी ने मेधावी बच्चों को पूरुस्कार भी वितरित किये |इससे पहले लवली पब्लिक स्कूल कि डायरेक्टर प्रिंसिपल ने गुलदस्ता देकर मुख्य अतिथि का स्वागत किया | उन्होंने बच्चों के पेरेंट्स को संबोधित करते हुए कहा कि आप अपने बच्चों को एक ही लकीर पर चलते हुए केवल डॉक्टर व् इंजीनीयर बनाने की न सोंचे बल्कि उस क्षेत्र में भेजे जिस में बच्चे की प्रतिभा हो | आज ऐसे कई क्षेत्र हैं जिन्हें बच्चे अपने कैरियर के रूप में चुन सकते हैं | कई ऐसे भी क्षेत्र हैं जहाँ जा कर ये माधवी छात्र उस क्षेत्र में कैरियर बना कर दूसरों के लिए उदहारण बन सकते हैं | उन्होंने कहा कि आज के तनाव भरी जिंदगी में बच्चों के साथ –साथ माता –पिता का भी तनाव मुक्त रहना जरूरी है | इसके लिए उन्होंने हास्य योग का सुझाव दिया | उनके अनुसार सामान्यत: कभी –कभी किसी चुटकुले पर हंसने व् हास्य योग में अंतर है | क्योंकि ये एक व्यायाम की तरह काम करता हैं व् तनाव को पूर्णतया अपने नियन्त्रण में करने की आदत डाल देता है | श्रीमती मलिक नें बताया कि वो बच्च्चों को स्वयं इसका अभ्यास कराती हैं | उन्होंने इस अवसर पर हास्य योग की एक सी .डी भी अभिवावकों को दिखलाई व् उन्हें उसे घर में करने का परामर्श भी दिया |वार्षिकोत्सव में बच्चों ने तरह –अरह के रंगारंग कार्यक्रम प्रस्तुत किये | जिसमें ज्यादातर भातीय संस्कृति से प्रेरित थे | चाहे वो गायत्री मन्त्र हो हनुमान चालीसा या वभिन्न चक्रों से जो उर्जा स्तर बढ़ता है व् उसका जो लाभ होता है उसकी व्याख्या | रंगबिरंगी वेश –भूषा में सुर ताल के साथ नृत्य करते बच्चों के इन सभी कार्यक्रमों ने दर्शकों का मन मोह लिया |कार्यक्रम में चेयरमैंन ऑफ़ फेडेरेशन ऑफ़ पब्लिक स्कूल ( फार्मर एक्सीक्यूटिव मजिस्ट्रेट ) डॉ . आर . पी मलिक , लवली पब्लिक स्कूल की डायरेक्टर प्रिंसिपल एस . डी मलिक , श्रीमती सेन गुप्ता , लवली पब्लिक स्कूल की शिक्षिकाएं व् बच्चे व् भारी संख्या में अभिवावक उपस्तिथ थे |