अटूट बंधन सम्मान समारोह -२०१५ एक रिपोर्ट

कल रविवार हिंदी भवन में हिंदी मासिक पत्रिका “ अटूट बंधन “ ने सम्मान समारोह – २०१५ का आयोजन किया | कार्यक्रम की मुख्य अतिथि सुविख्यात लेखिका व् साहित्य एकादमी दिल्ली की उपाध्यक्ष श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी थी व् मुख्य वक्ता अरविन्द सिंह जी( राज्यसभा टी. वी ) व् सदानंद पाण्डेय जी ( एसोसिएट एडिटर वीर अर्जुन ) थे | श्रीमती मैत्रेयी पुष्पा जी ने सरस्वती प्रतिमा के आगे दीप जला कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया | उन्होंने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि एक स्त्री ही स्त्री की शक्ति हैं | उन्होंने आगे कहा कि ये पुरुष प्रधान समाज की सोंच है की ,” एक स्त्री दूसरी स्त्री को पसंद नहीं करती हैं , या नीचा दिखाने का प्रयास करती है , उनमें परस्पर वैमनस्य होता है | वास्तविकता इससे बिलकुल उलट है | एक स्त्री दूसरी स्त्री का दुःख बहुत अच्छी तरह से समझ सकती है व् बाँट सकती है | मैत्रेयी पुष्पा जी ने महिला सिपाहियों के सामने दिए गए अपने भाषण का उल्लेख करते हुए कहा कि जब वो विद्यार्थी थी व् बस से स्कूल जाया करती थी तो स्त्री होने के नाते उन्हें जो कष्ट , ताने , अपमान सहने पड़ते थे उसे वो मौन होकर झेलने को विवश थी | रास्ते में एक थाना पड़ता था | दिल करता था बस से कूद कर वहां उस दुर्व्यवहार की शिकायत करे परन्तु पुरुष पुलिस कर्मियों के दुर्व्यवहार के किस्से उन्हें भयभीत करते थे | अगर कोई महिला पुलिस कर्मी वहां होती तो वह जरूर बस से उतर कर थाने जाती और बस उससे लिपट कर रो लेती | न वो कुछ कहती न वो कुछ सुनती पर सारा दर्द बिना कहे सुने बयाँ हो जाता | अपनी बात पर जोर देते हुए श्रीमती पुष्पा ने कहा कि हर क्षेत्र में महिलाओ का आगे आना जरूरी हैं क्योंकि ये दूसरी महिलाओ को सुरक्षा का अहसास दिलाता है | उन्होंने ख़ुशी जाहिर की संपादन के क्षेत्र में आज महिलाएं आगे आ रही हैं | पर अभी और महिलाओं को आगे आना चाहिए | ये अभी तक स्त्रियों के लिए वर्जित क्षेत्र था | इस क्षेत्र में महिलाओं का आगे आना पुरुष संपादकों द्वारा महिला रचनाकारों के शोषण को रोकेगा | जिससे उनकी लेखनी मुखर हो सकेगी | उन्होंने आगे कहाँ की साहित्य जीवन की शिक्षा देता हैं | व्यक्ति डाक्टर हो सकता है , इंजिनीयर हो सकता है , पर जिसने साहित्य नहीं पढ़ा उसने जीवन को नहीं पढ़ा | पत्र –पत्रिकाओं के विषय में चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि एक पत्रिका को रचनाकार मिल सकते हैं , बहुत प्रयास से उसका प्रचार –प्रसार भी किया जा सकता है ,परन्तु अगर उसकी विषय वस्तु में दम नहीं होगा तो पाठक नहीं मिलेंगे | जिसक पत्रिका की विषय वस्तु में दम होगा उसे पाठक ढूंढ – ढूंढ कर पढेंगे | रचना ठोस व् सत्य आधारित होनी चाहिए फिर चाहे उसमें आधुनिक जीवन शैली का वर्णन हो या लोक का | उन्होंने इस दुष्प्रचार का विरोध किया कि लोग हिंदी पढना नहीं चाहते हैं | सच्चाई ये है कि लोग हिंदी साहित्य को पढना चाहते हैं , पर भ्रामक प्रचार से दूर हो रहे हैं | इसके लिए स्कूल , कॉलेजों में कविता कहानी की कार्यशालायें लगाने पर बल दिया | मुख्य वक्ता अरविन्द कुमार सिंह जी ने कहा कि जो साहित्य के क्षेत्र में उतरता है वह सरस्वती की सेवा के लिए उतरता है , वहां धन कमाने की अभिलाषा नहीं होती | उन्होंने महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का उदहारण देते हुए बताया कि ,”द्विवेदी जी ने सन १९०२ में पत्रिका निकालने के लिए अपनी नौकरी छोड़ी थी | तब वो मुश्किल से २० रुपये अपनी धर्म पत्नी को घर खर्च के लिए दे पाते थे | साहित्य एक साधना है , उन्होंने अटूट बंधन परिवार के सभी सदस्यों की इस साधना में तल्लीन होने की भूरी –भूरी प्रशंसा की | श्री सदानंद पाण्डेय जी ने कहा कि निराशा जीवन को दिशा हीन कर देती है | ऐसे में ऐसे विचारों का आगे आना बहुत आवश्यक है जो व्यक्ति में आशा का संचार कर सके | उन्होंने आशा जतायी कि आज मीडिया में जिस तरह से कर्मठ , योग्य , शिक्षित लोग आगे आ रहे हैं उससे लोगों में अच्छे विचारों का प्रचार –प्रसार होगा | कार्यक्रम में ११ व्यक्तियों को सम्मानित किया गया इसमें मदर टेरेसा पब्लिक स्कूल पुणे के संस्थापक व् प्रिंसिपल मैथ्यूज रोजेवेला को “अटूट बंधन योग रत्न “, नेत्र चिकित्सक डॉ . अर्चना परवानी को “अटूट बंधन नारी रत्न” , लवली पब्लिक स्कूल दिल्ली की संस्थापक व् प्रिंसिपल डॉ . एस डी मलिक को ‘अटूट बंधन शिक्षा रत्न “,बांकेलाल यादव पुणे को “ अटूट बंधन व्यापार रत्न “, महेश अग्रवाल, हैदराबाद को “अटूट बंधन प्राणी मित्र रत्न” , अरविन्द गाँधी , उत्तर प्रदेश को “ अटूट बंधन समाज सेवा रत्न” , स्ट्रेट तो बाज़ार के संथापक ऋषभ चुग व् ३ नव युवाओं को “अटूट बंधन नव उद्धम रत्न” , डॉ गिरीश चन्द्र पाण्डेय प्रतीक पिथौरागढ़ ,उत्तराखंड को” अटूट बंधन साहित्य रत्न ( पुरुष वर्ग ) “, नॉएडा की डॉ . छवि निगम को “अटूट बंधन साहित्य रत्न ( महिला वर्ग )” , श्री योगेश त्रिपाठी , उत्तर प्रदेश को “ अटूट बंधन मीडिया रत्न “, दिल्ली के छात्र अक्षत शुक्ला को “ अटूट बंधन बाल रत्न “से सम्मानित किया गया | इस अवसर पर अटूट बंधन के प्रधान संपादक श्री ओमकार मणि त्रिपाठी जी , कार्यकारी संपादक श्रीमती वंदना बाजपेयी जी व् प्रबंध संपादक श्रीमती रेनू चुग जी भी उपस्तिथ थी | अटूट बंधन के प्रधान सम्पादक श्री ओमकार मणि त्रिपाठी जी ने भीड़ भरे हाल में अपने ह्रदय के उदगार व्यक्त करते हुए कहा कि ये पूंजीपतियों कि पत्रिका नहीं है बल्कि स्वप्न दृष्टा का दुस्साहस है | उन्होंने कहा कि वो पत्रकारिता जगत में पिछले २० साल से हैं और उन्होंने हजारों पत्र -पत्रिकाओं को उदय होते व् अस्त होते देखा है | वो जानते थे कि पत्र -पत्रिकाएँ निकालना आसान नहीं हैं इसमें ढेर सारी पूँजी , समय व् ऊर्जा कि जरूरत होती है | परन्तु फिर भी जब उन्होंने अपने चारों ओर निराश -हताश समाज को देखा … Read more

जन्म दिन की शुभकामनाएं ” अटूट बंधन “

आज आपकी प्रिय पत्रिका ” अटूट बंधन” एकवर्ष पूरा कर दूसरे वर्ष में प्रवेश कर रही हैं| जिस तरह आप सब ने स्नेह व् आशीर्वाद देकर पत्रिका को प्रथम वर्ष में ही देश की लोकप्रिय पत्रिकाओ में शामिल कर दिया है | उसके लिए पूरा ” अटूट बंधन ग्रुप ” आप सब का आभारी है| आशा है आगे भी आपका साथ हमें इसी प्रकार मिलता रहेगा | जैसा की सर्वविदित है ” अटूट बंधन ” पोजिटिव थिंकिंग का महा अभियान है| हमारा मानना है क्रांति तलवार से नहीं विचारों से होती है | और दुनिया की सबसे कठिन लड़ाई अपने से होती है | जब इंसान खुद से हार जाता है , तो वो किसी से कभी भी नहीं जीत सकता | निराशा की कोई जाति नहीं होती , धर्म नहीं होता , अमीर –गरीब नहीं होती , देश और प्रान्त की सीमाएं भी उसे नहीं बाँध सकती | वो सर्व व्यापक हैं | जब जीवन में निराशा आती है तो उस अन्धकार में कुछ भी दिखाई नहीं देता | “ अटूट बंधन का उदेश्य उसी निराशा के खिलाफ सकारात्मक चिंतन का दीप जलना हैं | जब  ओमकार मणि त्रिपाठी जी  ने नेक नियति व् सर्व जन हिताय की भावना से इस पत्रिका की नींव रखी तो देश भर से लोग स्वत: ही जुड़ते गए व् अटूट बंधन ग्रुप बना | सभी ने पत्रिका के माध्यम से सकारात्मक विचारों के प्रचार –प्रसार , व् मनुष्य के अन्दर समस्याओं से जूझ कर विजेता के रूप में सामने आने वाली क्षमताओं के विकास के इस महाभियान के प्रसार में अपनी शत प्रतिशत शक्ति लगा दी |पत्रिका की प्रबंध संपादक रेनू चुग जी, सलाहकार संपादक नागेश्वरी राव जी , अरुणा पाण्डेय जी व् दक्षिण भारत ब्यूरो प्रमुख महेश अग्रवाल जी  व् प्रशासकीय  सलाहकार सत्यकार मणि त्रिपाठी जी के  अथक प्रयासों ने पत्रिका को एक वर्ष से भी कम समय में पाठकों के बीच लोकप्रिय पत्रिका के रूप में स्थापित कर दिया | हमारा प्रयास है ज्यादा से ज्यादा लोग इससे लाभान्वित हों | अटूट बंधन परिवार का निरंतर विस्तार हो रहा है | आप भी इस महाभियान में शामिल होइए, क्योंकि हमारी लड़ाई निराशा के अंधेरों के खिलाफ है | हमें उम्मीद ही नहीं पूर्ण विश्वास है की आप का साथ हमें मिलेगा जिससे हम जन कल्याण के अपने व्यापक उदेश्य को पूरा करने में सफल हो पायेंगे ……….

अटूट बंधन अंक -९ अनुक्रमणिका

अटूट बंधन अंक -९ जुलाई अंक अनुक्रमणिका  १) आपके विचार ही आपकी उर्जा हैं जो जीवन को दिशा देते हैं क्या सकारात्मक विचार के द्वारा व्यक्तित्व का विकास कर जीवन को सफल बनाया जा सकता है ? व् आज के युग में जब हम सुबह भारत में शाम अमेरिका में बिता कर गर्व से कहते हैं कि अब पूरा विश्व एक आँगन बन गया है ,क्या हमारा आँगन बड़ा हो गया है व् दायरे संकुचित ………. सकारात्मक विचार से व्यक्तिव विकास व् बड़ा होता आँगन पर विशेष सम्पादकीय २) हम सभी चाहते हैं कि हमारा घर सुन्दर दिखे …. और बजट भी हमारे अनुकूल हो ,तो क्या रंगों में थोड़ी हेर –फेर करके घर को ग्रैंड लुक दिया जा सकता है ……. जानिये कोलकाता की प्राची शुक्ला के लेख “गृह सज्जा में रंगों का महत्व “लेख से ३) सुबह से शाम तक सेल्फी खींचना और ऍफ़ .बी पर डालना …. ये महज एक शौक हो सकता है पर जब आप इसकी गिरफ्त में आ जाते हैं तो क्या क्या दुष्परिणाम हो सकते हैं …….. पढ़िए मनीषा सक्सेना के ज्ञानवर्धक लेख “सेल्फी का दीवानापन “ में४) सत्ता के गलियारों में बैठे लोग “ फर्जी डिग्री के मामले में पकडे जाते हैं तो जनता का आहत होना स्वाभाविक है | जिन्हें हमने भारी बहुमत से जीता कर संसद व् विधान सभा में भेजते समय अपने मासूम सपने सौपे थे उनकी नीयत और नैतिकता की खोट से पूरा देश स्तब्ध है …………पढ़िए देश दशा में कुछ सवालों के उत्तर तलाशता एक संवेदनशील लेख “सत्ता की चौखट पर आहात नैतिकता ५) कितने लोग हैं जो आईने के सामने खड़े होकर खुद को स्वीकार कर पाते हैं हैं अपने फेवरेट | बस किसी ने कुछ कहा और कच्ची नीव के मकान की तरह हमारा आत्मविश्वास भरभरा के गिर पड़ता है रह जाता है बस अवसाद …….. पर इसे रोका जा सकता है ,खुद को स्वीकारे करके ,खुद से प्यार करके …………. कैसे ?पढ़िए आवरण कथा “करे खुद से प्यार “में ६) जब घर में अन्धकार हो ,तो दीपक जालाते हैं पर जब मन में अन्धकार हों तो क्या करे ….. जानिये दिल्ली के सच्चिदानंद शुक्ला के ज्ञान वर्धक लेख “निराशा में जलाए आशा के दीप “में ७) जीवन में सब कुछ मिल जाता है पर सच्चा गुरु नहीं मिलता ….. गुरु के लिए मन में श्रद्धा भाव स्वाभाविक है …………..पढ़िए गुरु पूर्णिमा पर दिनेश शर्मा गोरखपुर का विशेष लेख “गुरु बिना अधूरा है जीवन “८) व्यक्तिव विकास में पढ़िए जीतेंद्र पाण्डेय भोपाल मध्य प्रदेश का उत्त्सह्वर्धक लेख “लगन से जीते बाधाएं ‘९) नैतिक शिक्षा देता प्रेरक प्रसंग “ जो झुकता है वो पाता है “१०) बच्चे परेशांन हैं बूढ़े परेशांन ,मैगी के बैन से सब परेशान हैं ………. ये मैगी क्या गयी ………बच्चों का टेस्टी फ़ूड ले गयी , औरतों की कलफ लगी साडी के साथ बस दो मिनट वाली स्माइल ले गयी ,डॉक्टरों के मरीज ले गयी …….. और भी जाने क्या क्या ले गयी …. जानने के लिए पढ़िए हँसाता –गुदगुदाता व्यंग “हाय मैगी …बाय मैगी में ११) इंसान सामाजिक प्राणी है ,न अकेला हंस सकता है न रो सकता है ….इसीलिये उसे चाहिए तरह तरह के लोग तरह तरह के रिश्ते …. रिश्ते –नाते कॉलम में पढ़िए डॉ हेमा चतुर्वेदी मुंबई महाराष्ट्र का महत्वपूर्ण लेख ….”रिश्तों का महत्व “१२) काव्यजगत में पढ़िए ……….इंजी .आशा शर्मा ,तरसेम कौर ‘सुमी ‘,हयात सिंह ,शबाना कलीम अव्वल ,सपना मांगलिक ,श्रीमती एस .सेन गुप्ता ,चद्र मौली पाण्डेय और बीनू भटनागर जी की भाव् प्रणव कवितायें १३) अतीत का बारबार वर्तमान में हावी होना ,जिंदगी को रोक देता है पर जिंदगी रोकी नहीं जा सकती एक ही उपाय है …….पढ़िए आराधना सिंह की बेहतरीन कहानी “ ब्लोक अतीत “१४) अगर कोई बच्चा जरूरत से ज्यादा शैतान है ,पढाई में मन नहीं लगा पाता ,हमेशा ख्यालों में खोया रहता है तो ये सामान्य लक्षण नहीं हैं …. जरूरत है इन्हें पहचानने की व् सुधार करने की ….. बाल जगत में पढ़िए डॉशिखा अग्निहोत्री चेन्नई का अवश्य पठनीय लेख “ कहीं आप का बच्चा ए .डी एच .डी का शिकार तो नहीं “ १५) बारिश का मौसम यानी की बीमारियों का मौसम …. पर क्या कुछ बचाव कर सकते हैं कि स्वस्थ रहे और भीगते हुए भी चाय पकौड़ी के साथ मौसम का लुत्फ़ ले सके …….. स्वाथ्य जगत में पढ़िए दो सर्वजीत त्रिपाठी वाराणसी का स्वास्थ्यवर्धक लेख “बचे बारिश के मौसम की बीमारियों से “ १६) समय बदला ,युग बदले पर नारी आज भी वहीँ खड़ी है क्या कोई समाधान है …… स्त्री विमर्श में पढ़िए पुष्प लता शर्मा का लेख “ परिवर्तन जरूरी है १७) हमारे नए कॉलम “ बात जो दिल को छू जाए” में आप पढेगे ऐसी बाते जो आपकी संवेदनाओ को झक्झोरेंगी और यकीनन दिल को छुएगी १८) १४ जुलाई को गुरु सिंह राशी में प्रवेश करेगा …. जिसका असर हर राशी के जातको पर अलग –अलग पड़ेगा ………. आपकी राशी पर इसका क्या असर पड़ेगा जानने के लिए ज्योतिष सेक्शन में पढ़िए रोचकता से भरपूर लेख ‘ १४ जुलाई से किसकी बदलेगी तकदीर “में १९) हम सब हँसना चाहते हैं पर शुद्ध हास्य कहीं खो गया है ……. अध्यात्म में पढ़िए”हंसो जी भर के “२०) डॉ संध्या तिवारी व् रचना व्यास की लघुकथाएं २१) विविध में जानिये क्यों करते हैं मंदिर में घंटा नाद २२) प्रेरक विचार व् रोचक तथ्य २३) आपके स्नेह से लिखे खतों में से चुनिन्दा खतों को को जनता तक पहुचायेगा “चिट्ठी –पत्री कॉलम’२४) अन्य सभी स्थयी स्तम्भ पूर्ववत atoot bandhan ……………हमारा पेज 

अटूट बंधन

अटूट बंधन  के पाठकों का शुक्रिया  एक नन्हा सा जुगनू , निकल पड़ा कोमल मखमली परों पर रख कर कुछ सपनों की कतरने हौसलों कीमुट्ठी भर धूपदेखते ही देखतेहोने लगा उजियाराकैसे ?कोई परीयाजादू की छड़ीविश्वास नहीं होतापरकरिश्में अब भी होते हैं ये किसी करिश्में से कम नहीं कि इतने कम समय में कोई पत्रिका इतनी लोकप्रिय हो जाए ………पाठकों के फोन ,ईमेल और मिलने पर उनकी आँखों में श्रद्धा का भाव हमें यह अहसास दिला रहा है कि हम पूरी ईमानदारी के साथ अपना ” वैचारिक क्रांति के अभियान” का उत्तरदायित्व निभा रहे हैं | हमें उम्मीद है आगे भी समस्त पाठक यूँ ही हमारा मनोबल बढाते रहेंगे और हम अच्छा काम करते रहेंगे …….पूरा “अटूट बंधन “परिवार इस सहयोग व् सराहना के लिए अपने सभी पाठकों का ह्रदय से धन्यवाद व्यक्त करता है अटूट बंधन। …………. हमारा पेज 

सिर्फ अहसास हूँ मैं…….. रूह से महसूस करो

फिर पद चाप  सुनाई पड़ रहे  वसंत ऋतु के आगमन के  जब वसुंधरा बदलेगी स्वेत साडी  करेगी श्रृंगार उल्लसित वातावरण में झूमने लगेंगे मदन -रति और अखिल विश्व करने लगेगा मादक नृत्य सजने लगेंगे बाजार अस्तित्व में आयेगे अदृश्य तराजू जो फिर से तोलने लगेंगे प्रेम जैसे विराट शब्द को उपहारों में अधिकार भाव में आकर्षण में भोग -विलास में और विश्व रहेगा अतृप्त का अतृप्त फिर सिसकेगी प्रेम की असली परिभाषा क्योकि जिसने उसे जान लिया उसके लिए हर मौसम वसंत का है जिसने नहीं जाना उसके लिए चार दिन के वसंत में भी क्या है ?                 मैं प्रेम हूँ ….. चौक गए …सच! मैं वहीं प्रेम हूँ जिसे तुम सदियों से ढूंढते आ रहे हो ,कितनी जगहों पर कितने रिश्तों में कितनी जड़ और चेतन वस्तुओं  में तुमने मुझे ढूँढने का प्रयास किया है…..यहाँ वहाँ इधर –उधर सर्वत्र व्याप्त होते हुए भी मैं सदा तुम्हारे लिए एक अबूझ पहेली ही रहा जिसको तुम तरह –तरह से परिभाषित करते रहे और जितना परिभाषित करते रहे उतना उलझते रहे ये लुका –छिपी मुझे दरसल भाती  बहुत है मैं किसी  कमसिन अल्हड नायिका की तरह मुस्कुराता हूँ  जब तुम  मुझे पा के अतृप्त , भोग कर अभोगे ,जान कर अनजान रह जाते हो  …आश्चर्य  जितना तुम मुझे परिभाषाओं से बाँधने का प्रयास करते हो उतना ही मैं परिभाषा से रहित हो जाता हूँ क्योकि बंधन मुझे पसंद नहीं |मैं तुम्हारे हर रिश्ते में हूँ कहीं माता –पिता का प्यार ,कहीं बहन –भाई का स्नेह ,कहीं बच्चों की किलकारी तो कहीं पति –पत्नी का दाम्पत्य |इतने रिश्तों में होते हुए भी तुम अतृप्त हो क्यों ?उत्तर सरल है जब भी तुम किसी रिश्ते में अधिकार और वर्चस्व की भावना ले आते हो ,मेरा दम घुटने लगता है ,बस सतह पर अपना प्रतिबिम्ब छोड़ मैं निकल कर भाग जाता हूँ ,और सतह के जल से तुम तृप्त नहीं होते | फिर तुम मुझे प्रकृति में सिद्ध करते हो कि मैं झरनों  की झम –झम में नदियाँ की कल –कल में फूलों की खुश्बूँ में हूँ तो मैं पाषाण प्रतिमा में  प्रवेश कर साक्षात् ईश्वर बन जाता हूँ ,जब तुम  मुझे सुख –सुविधाओं में  सिद्ध करते हो तो मैं अलमस्त कबीर की फटी झोली बन जाता हूँ ….तुम हार नहीं मानते तुम मुझे देह को भोगते हुए देहातीत होने को सिद्ध करते हो |मैं फिर मुस्कुरा कर कहता हूँ अरे ! मैं तो वो राधा हूँ,जो प्रेम की सम्पूर्णता में  पुकारती है “आदि मैं न होती राधे –कृष्ण की रकार पे ,तो मेरी जान राधे –कृष्ण “आधे कृष्ण” रहते “ राधा  किसी दूसरे की पत्नी बच्चों की माँ , अपने कृष्ण हजारों मील दूर ,कहाँ है देह ?यहाँ तो देह का सानिध्य नहीं है ….राधा के लिए कृष्ण देह नहीं हैं अपतु राधा  के लिए कृष्ण के अतिरिक्त कोई दूसरी देह ही नहीं है ,न जड़ न चेतन |तभी तो जब एक चाकर ने  कृष्ण के परलोक पलायन का दुखद समाचार  राधा को दिया ,हे राधे कृष्ण चले गए … मुस्कुरा  कर कह उठी राधा “परिहास करता है ,कहाँ गए कृष्ण ,कहाँ जा सकते हैं वो तो कण –कण में हैं ,पत्ते –पत्ते  में हैं ,उनके अतिरिक्त कुछ है क्या ? राधा के लिए कृष्ण ,कृष्ण नहीं हैं ,अपितु कृष्ण के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है ,स्वयं राधा भी राधा नहीं रहीं वो कृष्ण हो गयी …. सारे  भेद ही मिट गए…. लोक –काल से परे हो गया ,पूज्य हो गया ये प्रेम |  पर ठहरो नहीं, यहीं पर मत अटको अभी मेरे पिटारे में बताने को और भी बहुत कुछ है ….. मैं तुलसी का वो पत्ता हूँ जो कृष्ण के वजन से भी गुरु हो गया ,हाँ !उस कृष्ण के वजन से जिनके पलड़े को  सत्यभामा का अभिमान व् अहंकार मिश्रित प्रेम अपने व् सारे द्वारिका के स्वर्ण आभूषणों के भार  से जरा भी न झुका सका |                                         विज्ञान ने भी मुझे जानने  समझने की कोशिश की है…कभी कहता है मैं मष्तिष्क के हाइपोथेलेमस में हूँ तो कभी कहता है मैं मात्र एक रसायन हूँ ….मैं फिर मुस्कुरा उठता हूँ ….जनता हूँ विरोधाभास मेरा स्वाभाव है …. जितना गूंढ उतना सुलभ  , जितना सूक्ष्म उतना व्यापक, जितना जटिल उतना सरल …. तभी तो लेने में नहीं देने में बढ़ता हूँ ….. इतना कि व्यक्ति में क्या समष्टि में न समाये …. ज्ञानी जान न पाए मुझे पर कबीर गा उठते हैं “पोथी पढ़ी –पढ़ी जग मुआ पंडित भया न कोय ,ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय “|ये ढाई अक्षर समझना ही तो दुष्कर है क्योंकि इसके बाद ज्ञान के सारे द्वार खुल जाते हैं ,आनद के सारे द्वार खुल जाते हैं |कितने विचारक तुम्हे मेरा अर्थ समझाने का प्रयास करते हैं …. पर मैं गूंगे का गुड हूँ जिसने जान लिया उसके लिए समझाना आसान नहीं ….  फिर भी प्रयास जारी रखे गए क्योंकि जिसने पा लिया उसने जान लिया प्रेम को पाना मतलब आनंद को पाना उसे बांटने में आनन्द आने लगा …. अरे ! मैं ही तो वो प्याला हूँ जो एक बार भर जाए तो छलकता रहता है युगों –युगों तक कभी रिक्त नहीं होता |रिश्तों के बंधन हैं मर्यादाएं पर मैं कोई बंधन नहीं मानता …. अपने शुद्ध रूप में जो सात्विक है मैं सबके लिए एक सामान हूँ रिश्तों –नातों के लिए ही नहीं समस्त सृष्टि के लिए |कभी अनुभव किये हैं अपने आंसूं ,सुख के मीठे से ,दुःख के जहरीले ,कडवे से और तीसरे स्नेह के ,कुछ अबूझ से जो आत्मा को तृप्त करते हैं एक विचित्र सा आनंद प्रदान करते हैं जैसे किसी ने आत्मा को छू  लिया है…. क्योकि यहाँ सिर्फ देना ही देना है लेने की भावना नहीं |मेरे इस शुद्ध  सात्विक रूप को ही ऋषि मुनियों ने जाना है ,आनंद का अनुभव किया है  किसी ने तुम्हे यह कह कर  समझाने का प्रयास  किया है सबमें स्वयं को देखो तभी परस्पर झगडे –फसाद ,सीमाओं को तोड़ कर मुझे पा सकोगे |तो किसी ने यह कह कर समझाने का प्रयास किया है अपने अन्दर गहरे उतरो ,सबको खुद में देखो …उस बूँद की तरह जो सागर का हिस्सा भी है ,और स्वयं सागर भी …. क्योकि असली … Read more

ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः

                                                       ॐ  ॐ  ॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः                                                                                   सर्वे सन्तु निरामयाः । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा  कश्चिद् दुःखभागभवेत। ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥                                           भारतीय  संस्कृति का यह श्लोक मुझे सदैव प्रभावित करता रहा है। ….. जिसमें प्राणी मात्र की मंगलकामना निहित है।मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ,एक का दुःख दूसरे पर प्रभाव डालता  है.इसीलिए  भारतीय दर्शन सदा से सबके सुख की कामना करना सिखाता है। कहीं न कहीं यह “अटूट बंधन “का  यह ब्लॉग बनाने का मेरा उद्देश्य भी यही रहा है। कहते हैं साहित्य समाज का दर्पण होता है ,परन्तु मेरा मानना  है की साहित्य समाज का  दर्पण होने के साथ -साथ समाज को सकारात्मक सोचने पर विवश भी करता है और उसे नयी दिशा देने में उत्प्रेरक का काम भी करता है।साहित्य की भूमिका एक दीपक की तरह होती है , जो किसी भी उद्देश्य से जलाया जाए सब का पथ आलोकित करता है |इस  ब्लॉग में मेरा प्रयास सदैव यही रहेगा की आप को उच्च कोटि की रचनायें , ………. चाहे वो साहित्य आध्यात्म ,धर्म ,सामाजिक सरोकारों से या संस्कृतिक चेतना से  सम्बंधित हो पढ़ने को मिले। इसके अतिरिक्त समस्याओं से घिरे मन को अपनी समस्याओं का सामना करने के लिए सकारात्मक सोंच और नयी दिशा मिले | आशा यहाँ समय व्यतीत करने के बाद आप कुछ शांति ,कुछ उत्साह का अनुभव करेंगे व् आपकी सकारात्मकता  का दायरा विकसित होगा।                             आइये इस यात्रा में आगे बढें | आप सभी को जीवन में स्वास्थ्य , सफलता और खुशियाँ मिले |                                                                                   वंदना बाजपेयी