किट्टी पार्टी

आज रमा के यहाँ किट्टी पार्टी थी। हर महीने होने वाली किट्टी पार्टी का अपना ही एक अलग उत्साह रखता था। लगभग तीस महिलाओं का समूह था यह। सभी सखियाँ -सहेलियां आ रही थी। महकती -गमकती मुस्कुराती, पर्स संभालती, बालों को सेट करती एक -एक करती पहुँच रही थी। आँखों पर पतली सी काज़ल और लबों पर भी एक रंगीन लकीर खींच कर जता रही थी मानो कुछ देर के लिए चिंताओं और ग़मों को एक लक्ष्मण रेखा के भीतर धकेल दिया हो। हर कोई बस जी लेना चाहती थी कुछ पल। तरो ताज़ा होने के लिए कुछ महिलाओं के लिए यह पार्टी कम नहीं थी। हालाँकि कई महिलाओं की तो कई और भी किट्टी पार्टी थी।गर्म-गर्म खाने और पीने का दौर चल रहा था। एक खुशगवार सा माहौल था।अचानक लीना ने एक खबर सुनानी शुरू की , ” कल मैंने विदेश की एक खबर पढ़ी, उसमे लिखा था एक जोड़े ने शादी के उन्नीस घंटे बाद ही तलाक ले लिया …!” बड़ी हैरान हो कर थोड़ी आँखे विस्फारित सी हो कर वह कह रही थी।सभी महिलाएं खिलखिलाकर हंस पड़ी। निहारिका थोडा सा मुहं बना कर दिल पर हाथ रख बोल पड़ी , ” लो कर लो बात …! उन्नीस घंटे बाद ही तलाक …!और हमारे यहाँ तो शादी के बाद प्यार होने में ही उन्नीस साल लग जाते हैं …!”एक बार फिर से खिलखिलाहट ..!थोड़ी ही देर में एक ख़ामोशी सी छा गयी।फिर रोमा हंस कर बोली जैसे कहीं खो सी गयी हो , ” हाँ …!ये तो तुमने सच ही कहा निहारिका , प्यार तो होते -होते हो ही जाता है बस, ये अलग बात है हम अपने साथी के साथ रहते हैं, एक दूसरे की जरुरत पूरी करते , बच्चे जनते – पालते और इस बीच न जाने प्यार कब हो जाता है। लेकिन इतने सालों बाद भी एक खालीपन तो महसूस होता ही है। जैसे कोई तो होता जो हमें भी सुनता। किसी के आगे हम भी जिद करते और अपनी बात मनवाते …! आखिर प्यार में यही तो होता है ना …?”पल्लवी ने भी हामी भरी , ” अरे यह भी कोई जिन्दगी होती है जैसी हम जीते हैं, शादी ना हुई कोई उम्र कैद की सजा ही हो गई। ना मन पसंद रंग पहन सकते। ना अपनी पसंद का कोई ड्रेस ही पहन सकते। यह मत करो या यह क्यूँ किया या तुमको यही करना चाहिए। मैं तो अपनी पसंद का रंग ही भूल गयी हूँ …..याद ही नहीं के मुझे क्या पसंद था और मुझ पर क्या जंचता था …! ”माहोल थोडा गंभीर हो चला था .हाथों में पकडे कॉफी के मगों से अब भाप निकलनी बंद हो गयी थी। आखों और होठों पर लगी लकीरें भी थोड़ी सी फीकी दिखने लगी थी।परनीत थोडा सा संजीदा हो चुकी थी। ” हाँ यार …! ऐसा ही होता है , कभी जिद करो या सोचो के आज बात ही नहीं करना और अनशन पर ही रहना है चाहे कुछ भी हो …! भाड़ में गया यह घर और उनकी घर गृहस्थी …हुंह ! लेकिन थोड़ी देर में कोई बच्चा कुछ बात करता या खाने को मांग बैठा तो यह ममता उमड़ने लगती है ,आखिर बच्चों की तो कोई गलती नहीं होती ना !”” और नहीं तो क्या बच्चों को क्यूँ घसीटें हमारे आपसी मतभेद में, उनके लिए ही उठना पड़ता है एक बार से बिखरती गृहस्थी को समेटने। तभी पीछे से साहब भी आ जाएँगे मंद -दबी मुस्कान लिए और धीमे से चाय की फरमाइश लिए हुए। अब चाहे कितना भी मुहं घुमाओ हंसी आ ही जाती है। पर मन में एक टीस सी छोड़ जाती है हूक सी उठाती हुई …, क्या जिन्दगी यूँ ही कट जायेगी, अपने आप को हर रोज़ घोलते हुए ! “, उषा भावुक सी होते हुए बोली।आकांक्षा जिसे अभी गृहस्थी का अनुभव कम था। बोली , “अरे तो आप सब सहन ही क्यूँ करती हो ….विरोध करो , और बच्चों के लिए ,किस के लिए अपनी खुशियों को त्याग देती हो !कौन है जो तुम सब के त्याग को महान कहेगा ? समय आने पर यह बच्चे भी अपनी दुनिया में मग्न हो जायेंगे। हम सब बैठी रहेंगी अपने-अपने त्याग और बलिदान की टोकरी लिए। शायद एक दिन हम सब अपने आप को ही भूल जाएं ।”” लेकिन ये जो हमारे बच्चे हैं, अपने आप तो दुनिया में आये हैं नहीं और ना ही इन्होने हमें कहा था के उनको इस दुनिया में आना है। हम ही तो लायें है इन्हें, तो इनकी देख भाल और परवरिश करने का फ़र्ज़ तो हमारा ही है …! और हम बच्चों की बात नहीं कर रहे, यहाँ बात हो रही है स्व की …! हमारी निजता की। हमारा आखिर वज़ूद क्या है घर में समाज में …, क्या सिर्फ अनुगामिनी ही है हम , थोडा सा भी विरोध का स्वर उठाने पर कौन हमारा साथ देता है ? यहाँ तक की घर की महिलाये भी साथ नहीं देती। मेरी नज़र में हर औरत अकेली है और सिर्फ अकेली ही उसे अपने लिए लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है कोई भी साथ नहीं देता उसका।” निहारिका ने अपनी बात पर जोर दे कर कहा।” नहीं ऐसा नहीं है ….,साथ तो देती ही है …” , आशा ने कहा तो लेकिन कुछ कमजोर स्वर में।“क्यूंकि सभी को मालूम है जब कभी भी जोर दे कर महिला अपनी बात भी मनवाना चाहती है तो उसे विद्रोहिणी की संज्ञा दी जाती है।” एक बात तो निहारिका ने सही कहा , ” हर औरत अकेली है ” ….दूसरी बात मैं भी कहूँगी कि “हर औरत का एक ही वर्ग है “….और वह मजदूर वर्ग …! जिस तरह एक मजदूर औरत या घरों में काम करने वाली माई सुबह से शाम मजदूरी करती है वैसे ही मैं भी सुबह घर का काम देख ,फिर अपनी नौकरी पर जाती हूँ। कई बार कुछ फरमाइश होती है शाम को आते हुए कुछ सामान भी लेती आना। देर हो जाती है शाम को आते-आते तो फिर सभी के फूले हुए मुहं देखो और बडबडाहट भी सुनो , महारानी सुबह ही निकल जाती है पर्स झुलाते हुए ,अब घर आयी है … Read more

आधी आबादी :कितनी कैद कितनी आज़ाद (उपासना सियाग )

औरत होना ही अपने आप में एक ताकत है ..           नारी विमर्श , नारी -चिंतन या नारी की चिंता करते हुए लेखन , हमेशा से ही  होड़   का विषय रहा है। हर किसी को चिंता रहती है नारी के उत्थान की ,उसकी प्रगति की .पर कोई पुरुष या मैं कहूँगी कोई नारी भी , अपने दिल पर हाथ रख कर बताये और सच ही बताये कि  क्या कोई भी किसी को अपने से आगे  बढ़ते देख सकता है। यहाँ हर कोई प्रतियोगी है. फिर सिर्फ नारी की बात क्यूँ की जाये !           एक औरत अपने जीवन में कितने रूप धारण करती है, बेटी से ले कर दादी तक। उसका हर रूप शक्ति स्वरूप ही है। बस कमी है तो अपने अन्दर की शक्ति को पहचानने की। ना जाने क्यूँ वह कस्तूरी मृग की तरह इधर -उधर भागती -भटकती रहती है। जबकि  खुशबु रूपी ताकत तो स्वयम उसमे ही समाहित है। सदियाँ गवाह है जब भी नारी ने प्रतिरोध किया है तो उसे न्याय अवश्य ही मिला है।        सबसे पहले तो मुझे ” महिला-दिवस ” मनाने  पर ही आपत्ति है. क्यूँ बताया जाये के नारी कमजोर है  और उसके लिए कुछ किया जाये। कुछ विद्वान जन का मत होता है  , एक महिला जो विभिन्न रूप में होती है उसका आभार प्रकट करने के लिए ही यह दिन मनाया जाता है।  ऐसी मानसिकता पर मुझे हंसी आती है . एक दिन आभार और बाकी साल क्या ….? फिर तो यह शहरी   क्षेत्रों तक ही सीमित हो कर ही रहता है।  मैं स्वयं ग्रामीण क्षेत्र से हूँ। एक अपने परिवेश की महिला से कह बैठी , ” आज तो महिला दिवस है …!” वो हंस पड़ी और बोली , ” अच्छा बाकी दिन हमारे नहीं होते क्या…? ” यह भी सोचने वाली बात है के बाकी दिन नारी, नारी ही तो है …!          हमारे आस -पास नज़र दौडाएं तो बहुत सारी महिलाये दिख जाएगी ,मैं यहाँ आधुनिकाओं की बात नहीं कर रही हूँ . मैं बात कर रही हूँ ग्रामीण क्षेत्रीय या मजदूर -वर्ग की महिलाओं की , जो रोज़ ना जाने कितनी चिंताए ले कर सोती है और सुबह उठते ही कल की चिंता भूल कर आने वाले कल की चिंता में जुट जाती है। वह  आज में तो जीती ही नहीं। जिस दिन वह अपने , आज की चिंता करेगी वही दिन उसके लिए होगा।  उसके लिए उसका देश , उसका घर और उसके देश का प्रधानमंत्री उसका पति ही होता है।  और विपक्ष उसके ससुराल वाले ही बस ! अब ऐसे महिला के लिए क्या चिंता की जाये जब उसे ही पता नहीं उसके लिए क्या सही है या गलत।  उसे अपने बुनियादी हकों के बारे में भी पता नहीं है बस फ़र्ज़ के नाम पर घिसी -पिटी   मान्यताएं ही निभाए जा रही है। यहाँ  तो हम बात कर सकते हैं कि ये  महिलाएं अशिक्षित है और उन्हें अपने बुनियादी हको के बारे में कोई भी जानकारी ही नहीं है।  बस जानवरों की तरह हांकी ही जा रही है।     लेकिन शहर की आधुनिक और उच्च -शिक्षित महिलाओं की बात की जाये तो उनको अपने हक़ के बार में तो पता चल गया है लेकिन अपने फ़र्ज़ ही भूले जा रही है।  वे  विदेशी संस्कृति की ओर  बढती जा रही है।  बढती महत्वकांक्षाएँ और आगे बढ़ने की होड़ में ये अपना स्त्रीत्व और कभी जान तक गवां बैठती है ऐसे बहुत सारे उदहारण है हमारे सामने।        मुझे दोनों ही क्षेत्रो की नारियों से शिकायत है।  दोनों को ही  पुरुष रूपी मसीहा का  इंतजार रहता है कि कोई आएगा और उसका उद्धार करेगा।  पंजाबी में एक कहावत का भावार्थ है ” जिसने राजा महाराजाओं को और महान संतो को जन्म दिया है उसे बुरा किस लिए कहें !” और यह सच भी है।       कहा जाता है नारी जैसा कठोर नहीं और नारी जैसा कोई नरम नहीं है. तो वह किसलिए अपनी शक्ति भूल गई ! पुरुष को वह जन्म देती है तो क्यूँ  नहीं अपने अनुरूप  उसे ढाल देती. किसलिए वह पुरुष कि सत्ता के आगे झुक जाती है।           जब तक एक नारी अपनी स्वभावगत ईर्ष्या से मुक्त नहीं होगी . तब तक वह आगे बढ़ ही नहीं सकती . चाहे परिवार हो या कोई कार्य क्षेत्र महिलाये आगे बढती महिलाओं को रोकने में एक महिला ही बाधा डालती है . पुरुष तो सिर्फ मौके का फायदा ही उठाता है।  औरतें, औरतों की दुश्मनहोती है .ये शब्द तो पुरुषों के ही है ,बसकहलवाया गया है औरतों केमुहं से …….… और कहला कर उनके दिमाग मेबैठा दिया गया है …. लेकिन औरतें ,औरतों की दुश्मन कब हुई है भला …… जितना वो एक दूसरी को समझ सकती  है ,उतना और कौन समझता है ……. उसकी उदासी में ,तकलीफ में , उसके दुःख में कौन मरहम लगाती है ….   मैं यहाँ पुरुषों की बात नहीं करुगी कि उन्होंने औरतों पर कितने जुल्म किये और क्यूँ और कैसे.  बल्कि मैं तो कहूँगी , औरतों  ने सहन ही क्यूँ किये. यह ठीक है , पुरुष और स्त्री कि शारीरिक क्षमता अलग – अलग है. आत्म बल और बुद्धि बल में किसी भी पुरुष सेए स्त्री कहीं भी कमतर नहीं  फिर उसने क्यूँ एक  पुरुष को केन्द्रित कर आपस में अपने स्वरूप को मिटाने  को तुली है।       मुझे विद्वान  जनों के एक कथन  पर हंसी आती है और हैरानी भी होती है , जब वे कहते है ,” समाज में  ऐसी व्यवस्था हो जिससे स्त्रियों का स्तर सुधरे.” समाज सिर्फ पुरुषों से ही तो नहीं बनता .यहाँ भी तो औरतों  की  भागीदारी होती है।  फिर  वे क्यूँ पुरुषों पर ही छोड़ देती है कि  उनके बारे में फैसला ले।        मेरे विचार से शुरुआत हर नारी को अपने ही घर से करनी होगी।  उसे ही अपने घर बेटी को , उसका  हक़ और फ़र्ज़ दोनों याद दिलाने के साथ -साथ उसे अपने मान –सम्मान कि रक्षा करना भी सिखाये।  अपने बेटों को नारी जाति का सम्मान करना सिखाये।  बात जरा सी है और  समझ नहीं आती … जब एक माँ अपनी  बेटी को दुपट्टा में इज्ज़त   सँभालने का तरीका  समझाती है , तो वह अपने बेटे को राह … Read more

उसके बाद ( कहानी-उपासना सियाग )

                                          गाँव दीना सर में आज एक अजीब सी ख़ामोशी थी लेकिन लोगों के मन में एक हड़कंपथा। होठों पर ताले लगे हुए थे और मनों में कोलाहल मचा  था। कोई भी बोलना नहीं चाह रहा था लेकिन अंतर्मन शोर से फटा जा रहा था। दरवाज़े बंद थे घरों के लेकिन खिडकियों की ओट  से झांकते दहशत ज़दा चेहरे थे …! आखिर ऐसा क्या हुआ है आज गाँव में जो इतनी रहस्यमय चुप्पी है …! अब कोई अपना मुहं कैसे खोले भला …!किसकी इतनी हिम्मत थी !       गाँव की गलियों के सन्नाटे को चीरती एक जीप एक बड़ी सी हवेली के आगे रुकी। यह हवेली चौधरी रणवीर सिंह की है। जीप से उतरने वाला भी चौधरी रणवीर सिंह ही है। उसकी आँखे जैसे अंगारे उगल रही हो  चेहरा तमतमाया हुआ है। चाल  में तेज़ी है जैसे बहुत आक्रोशित हो ,विजयी भाव तो फिर भी नहीं थे चेहरे पर। एक हार ही नज़र आ रही थी।      अचानक सामने उनकी पत्नी सुमित्रा आ खड़ी हुई और सवालिया नज़रों से ताकने लगी। सुमित्रा को जवाब मिल तो गया था लेकिन उनके मुंह   से ही सुनना चाह  रही थी।जवाब क्या देते वह …! एक हाथ से झटक दिया उसे और आगे बढ़  कर कुर्सी पर बैठ गए।      सुमित्रा जाने कब से रुदन रोके हुए थी। घुटने जमीन पर टिका कर जोर से रो पड़ी , ” मार दिया रे …!  अरे जालिम मेरी बच्ची  को मार डाला रे …!”    रणवीर सिंह ने उसे बाजू से पकड कर उठाने की भी जहमत नहीं की बल्कि  लगभग घसीटते हुए कमरे में ले जा धकेल दिया और बोला , ” जुबान बंद रख …! रोने की , मातम मनाने की जरूरत नहीं है। तुमने कोई हीरा नहीं जना था , अरे कलंक थी वो परिवार के लिए …मार दिया …! पाप मिटा दिया कई जन्मो का …पीढियां तर गयी …!”  बाहर आकर घर की दूसरी औरतों को सख्त ताकीद की , कि कोई मातम नहीं मनाया जायेगा यहाँ , जैसा रोज़ चलता है वैसे ही चलेगा। सभी स्तब्ध थी।     घर की बेटी सायरा जो कभी इन्ही चौधरी रणवीर सिंह के आँखों का तारा थी , आज अपने ही हाथों उसे मार डाला। “मार डाला …!” लेकिन किस कुसूर की सजा मिली है उसे …! प्यार करने की सज़ा मिली है उसे …! एक बड़े घर की बेटी जिसे पढाया लिखाया , लाड-प्यार जताया , उसे क्या हक़ है किसी दूसरी जात के लड़के को प्यार करने का …! क्या उसे खानदान की इज्ज़त का ख्याल नहीं रखना चाहिए था ? चार अक्षर क्या पढ़ लिए …! बस हो गयी खुद मुख्तियार …!  चौधरी रणवीर सिंह चुप बैठा ऐसा ही कुछ सोच रहा है। अचानक दिल को चीर देने वाली आवाज़ सुनाई दी। सायरा चीख रही थी …” बाबा , मत मारो …! मैं तुम्हारी तो लाडली हूँ …इतनी बड़ी सज़ा मत दो अपने आपको …! मेरे मरने से तुम्हे ही सबसे ज्यादा दुःख होगा। तुम भी चैन नहीं पाओगे …,”        सुन कर अचानक खड़ा हो गया रणवीर सिंह और ताकने लगा की यह आवाज़ कहाँ से आई। फिर कटे वृक्ष की भांति कुर्सी पर बैठ गया क्यूँकि यह आवाज़ तो उसके भीतर से ही आ रही थी। पेट से जैसे मरोड़ की तरह रोना फूटना चाहा।   लेकिन वह क्यूँ रोये …! क्या गलत किया उसने। अब बेटी थी तो क्या हुआ , कलंक तो थी ही ना …! कुर्सी से खड़े हो बैचेन से चहलकदमी करने लगा। “यह मन को कैसे समझाऊं कि इसे चैन मिले। किया तो तूने गलत ही है आखिर रणवीर …! कलेजे के टुकड़े को तूने अपने हाथों से टुकड़े कर दिए। किसी का क्या गया , तेरी बेटी गयी , तुझे कन्या की हत्या का पाप भी तो लगा है , क्या तू उसे और समय नहीं दे सकता था। ” अब रणवीर सोचते -सोचते दोनों हाथों से मुहं ढांप  कर रोने को ही था कि बाहर से आहट हुई , किसी ने उसे पुकारा था। संयत हो कर फिर से चौधराहट का गंभीर आवरण पहन बाहर को चला।    आँखे छलकने को आई जब सामने बड़े भाई को देखा। एक बार मन किया कि लिपट कर जोर से रो पड़े। माँ-बापू के बाद यह बड़ा भाई राम शरण ही सब कुछ था उसका।  मन किया फिर से बच्चा बन कर लिपट  जाये भाई से और सारा दुःख हल्का कर दे।   वह रो कैसे सकता था उसने ऐसा क्या किया जो दुःख होता उसको। सामने भाई की आँखों में देखा तो उसकी भी आँखों में एक मलाल था जाने कन्या की हत्या का या खानदान की इज्ज़त जाने का। चाहे लडकी को मार डाला  हो कलंक तो लग ही गया था।     दोनों भाई निशब्द – स्तब्ध से बैठे रहे। मानो शब्द ही ख़त्म हो गए सायरा के साथ -साथ। लेकिन रणवीर को भाई का मौन भी एक सांत्वना सी ही दे रहा था। थोड़ी देर बाद राम शरण उसके कंधे थपथपा कर चल दिया।   चुप रणबीर का गला भर आता था रह – रह कर , लेकिन गला सूख रहा था। आँखे बंद ,होठ भींचे कुर्सी पर बैठा था।  ” बापू पानी …” , अचानक किसी ने पुकारा  तो आँखे खोली। अरे सायरा …! यह तो सायरा ही थी सामने हाथ में गिलास लिए। उसे देख चौंक कर उठ खड़ा हुआ रणवीर। बड़े प्यार से हमेशा की तरह उसने एक हाथ पानी के गिलास की तरफ और दूसरा बेटी के  सर पर रखने को बढ़ा दिया। लेकिन यह क्या …?  दोनों हाथ तो हवा में लहरा कर ही रह गए। अब सायरा कहाँ थी ! उसे तो उसने इन्ही दोनों हाथों से गला दबा कर मार दिया था।हृदय से एक हूक सी निकली और कटे वृक्ष की भाँति कुर्सी पर गिर पड़ा।     रणबीर की सबसे छोटी बेटी सायरा जो तीन भाइयों की इकलौती बहन भी थी। घर भर में सबकी लाडली थी। जन्म हुआ तो दादी ना खुश हुई कि  बेटी हो गयी कहाँ तो वह चार पोतों को देखने को तरस रही थी और कहां सायरा का जन्म हो गया। तीन की पोते हुए अब उसके जोड़ी तो ना … Read more

मेरी माँ , प्यारी माँ , मम्मा .

                                                मेरी माँ , प्यारी माँ , मम्मा ..      माँ की ममता को कौन नहीं जानता और कोई परिभाषित भी नहीं कर पाया है। सभी को माँ प्यारी लगती है और हर माँ को अपना बच्चा प्रिय होता है। मेरी माँ भी हम चारों बहनों को एक सामान प्यार करती है। कोई भी यह नहीं कहती कि माँ को कौनसी बहन ज्यादा प्यारी लगती है, ऐसा लगता है जैसे उसे ही ज्यादा प्यार करती है। कभी -कभी  मुझे लगता है मैंने मेरी माँ को बहुत सताया है क्यूंकि मैं बचपन में बहुत अधिक शरारती थी।      मेरा जन्म हुआ तो मैं सामान्य बच्चों की तरह नहीं थी। मेरा एक पैर घुटने से भीतर की और मुड़ा  हुआ था।नानी परेशान थी ,लेकिन माँ …! वह तो गोद में लिए बस भाव विभोर थी। नानी रो ही पड़ी थी , ” एक तो दूसरी बार लड़की का जन्म ,उस पर पैर भी मुड़ा  हुआ कौन  इससे शादी करेगा कैसे जिन्दगी कटेगी इसकी …! “    माँ बोली , ” माँ तुम एक बार इसकी आँखे तो देखो कितनी प्यारी है …, तुम चिंता मत करो ईश्वर सब अच्छा करेगा। “   मेरी माँ में सकारात्मकता कूट-कूट कर भरी है , तभी तो हम चारों बहनों में भी यही गुण है। किसी भी परिस्थिति में हम डगमगाते नहीं है ।     खैर , मुड़ा हुआ पैर तो ठीक करवाना ही था। पहले सीधा कर के ऐसे ही कपडे से बाँध कर रखा गया। बाद में पैर को सीधा करने के लिए प्लास्टर किया गया जो की तीन महीने रखा गया।( अब तो माँ को भी याद नहीं है कि कौनसा पैर मुड़ा हुआ था।) तब तक मैं सरक कर चलने की कोशिश करने लगी थी।माँ बताया करती है कि मुझे पानी में भीगने का बहुत शौक था। माँ के इधर -उधर होते ही सीधे पानी के पास जा कर बैठ जाती , जिसके फलस्वरूप पानी पलास्टर के अंदर  चला जाता। अब उसके अंदर से तो पोंछा नहीं जा  सकता था। पानी की अंदर ही अन्दर बदबू होने लगी। रात को माँ के साथ ही सोती थी और सर्दियों में , रजाई में भयंकर बदबू असहनीय थी। लेकिन माँ ने वह भी ख़ुशी -ख़ुशी झेल लिया। माँ की ममता का कोई मोल नहीं चुका सकता है लेकिन मेरी माँ ने तो जो बदबू सहन की उसका मोल मैं कैसे उतारूँ , मेरे पास कोई जवाब नहीं है। मैंने अनजाने में ही बहुत तकलीफ दी है माँ को …!     जब बहुत छोटी थी तभी से मुझे भीड़ से बहुत डर  लगता था। माँ जब भी बस से सफर करती तो मैं भीड़ से डर  के माँ के  बाल अपनी दोनों मुट्ठियों में जकड़ लेती थी और घर आने तक नहीं छोडती थी। अब सोचती हूँ माँ को कितनी पीड़ा होती होगी। इस दर्द का कोई मोल है क्या …?      मेरी सारी शरारतें – बदमाशियां माँ हंस कर माफ़ कर देती। जबकि मैं अपनी छोटी बहन पूजा को बहुत सताया करती थी। खास तोर से चौपड़ के खेल मे तो जरुर ही पूजा रो कर -हार कर  ही खड़ी होती थी। हम चारों बहनें पढाई में हमेशा से अच्छी रहीं है। मुझे याद है जब मैं आठवी कक्षा में प्रथम आयी थी तो माँ ने गले लगा कर कितना प्यार किया था। और नवीं कक्षा में विज्ञान  मेले के दौरान मेरा माडल जिला स्तर पर प्रथम आया था औरआगे की प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए पापा ने जाने नहीं दिया था तो माँ ने समझाया था कि  मैं ना सही मेरा मॉडल  तो वहां गया ही है ना , नाम तो तुम्हारा ही होगा। माँ कभी उदास या रोने तो कभी देती ही नहीं है ।     जब हॉस्टल गयी तो माँ रो पड़ी थी कि अब घर ही सूना हो जायेगा क्यूंकि मैं ही थी जो कि घर में बहुत बोलती थी या सारा दिन रेडिओ सुना करती थी  और नहीं तो बहनों से शरारतें ही करती रहती थी। जब घर आती तो छोटी बहन शिकायत करती थी कि जब से मैं हॉस्टल गयी हूँ तब से माँ कोई भी खाने की वह चीज़ ही नहीं बनाती थी जो मुझे पसंद थी और बनाती भी तो वह खाती नहीं थी । माँ झट से कह देती कि यह तो मुझे बहुत पसंद है , माँ के तो गले से ही नहीं उतरेगी बल्कि बनाते हुए भी जी दुखेगा। अब मुझे खाने का भी बहुत शौक था तो अधिकतर चीज़ें मुझे पसंद ही होती थी।      जब बच्चे का भविष्य बनाना हो तो माँ थोड़ी सी सख्त भी हो जाती है। मेरा मन भी हॉस्टल में नहीं लगा , एक महीने तक रोती  ही रही कि मुझे घर ही जाना है यहाँ नहीं रहना। पापा को भी कई बार बुलवा लिया कि मुझे वहां से ले जाओ लेकिन माँ ने सख्त ताकीद की कि यदि वह घर आने की जिद करे तो बाप-बेटी को घर में आने की इजाज़त नहीं है। पापा ने भी मज़ाक किया कि मैं तो हॉस्टल में रह लूंगी लेकिन वे कहाँ जायेंगे इसलिए वो मुझे घर नहीं ले जा सकते।    लेकिन अब जब मैं खुद माँ हूँ और मेरे दोनों बेटे हॉस्टल में हैं तो मैं माँ होने का दर्द समझ सकती हूँ। माँ का दर्द माँ बनने के बाद ही जाना जा सकता है। लेकिन फिर भी माँ क़र्ज़ तो कोई भी नहीं उतार पाया है। माँ बन जाने के बाद भी। मैं चाहती हूँ कि माँ हमेशा स्वस्थ रहे और उनका आशीर्वाद और साया हमेशा हमारे साथ रहे। उपासना सियाग  अटूट बंधन ………… कृपया क्लिक करे 

नसीब

                       !!!!!!!! नसीब !!!!!!!!                       (कहानी -उपासना सियाग )                                                  कॉलेज में छुट्टी की घंटी बजते ही अलका की नज़र घड़ी पर पड़ी। उसने भी अपने कागज़ फ़ाइल में समेट , अपना मेज़ व्यवस्थित कर कुर्सी से उठने को ही थी कि जानकी बाई अंदर आ कर बोली , ” प्रिंसिपल मेडम जी , कोई महिला आपसे मिलने आयी है।” ” नहीं जानकी बाई , अब मैं किसी से नहीं मिलूंगी , बहुत थक गयी हूँ …उनसे बोलो कल आकर मिल लेगी।” ” मैंने कहा था कि अब मेडम जी की छुट्टी का समय हो गया है , लेकिन वो मानी नहीं कहा रही है के जरुरी काम है।” जानकी बाई ने कहा। ” अच्छा ठीक है , भेज दो उसको और तुम जरा यहीं ठहरना ….,” अलका ने कहा।     अलका  भोपाल के गर्ल्स कॉलेज में बहुत सालों से प्रिंसिपल है। व्यवसायी पति का राजनेताओं में अच्छा रसूख है। जब भी उसका  तबादला  हुआ तो रद्द करवा दिया गया। ऐसे में वह घर और नौकरी दोनों में अच्छा तालमेल बैठा पायी।नौकरी की जरूरत तो नहीं थी उसे लेकिन यह उनकी सास की आखिरी इच्छा थी कि  वह शिक्षिका बने और मजबूर और जरूरत मंद  महिलाओं की मदद कर सके।        उसकी सास का मानना था कि अगर महिलाये अपनी आपसी इर्ष्या भूल कर किसी मजबूर महिला की मदद करे तो महिलाओं पर जुल्म जरुर खत्म हो जायेगा। वे कहती थी अगर कोई महिला सक्षम है तो उसे कमजोर महिला के उत्थान के लिए जरुर कुछ करना चाहिए।        जब वे बोलती थी तो अलका उनका मुख मंडल पर तेज़ देख दंग  रह जाती थी। एक महिला जिसे मात्र  अक्षर ज्ञान ही था और इतना ज्ञान !        पढाई पूरी  हुए बिन ही अलका की शादी कर दी गयी तो उसकी सास ने आगे की पढाई करवाई। दमे की समस्या से ग्रसित उसकी सास ज्यादा दिन जी नहीं पाई।  मरने से पहले अलका से वचन जरुर लिया कि वह शिक्षिका बन कर मजबूर औरतों का सहारा जरुर बनेगी। अलका ने अपना वादा निभाया भी।अपने कार्यकाल में बहुत सी लड़कियों और औरतों का सहारा भी बनी।अब रिटायर होने में एक साल के करीब रह गया है।कभी सोचती है रिटायर होने के बाद वह क्या करेगी ….!                        ” राम -राम मेडम जी …!” आवाज़ से अलका की तन्द्रा  भंग हुई। सामने उसकी ही हम उम्र लेकिन बेहद खूबसूरत महिला खड़ी थी। बदन पर साधारण – सूती सी साड़ी थी। चेहरे पर मुस्कान और भी सुन्दर बना रही थी उसे। ” राम -राम मेडम जी , मैं रामबती हूँ। मैं यहाँ भोपाल में ही रहती हूँ। आपसे कुछ बात करनी थी इसलिए चली आयी।  मुझे पता है यह छुट्टी का समय है पर मैं क्या करती मुझे अभी ही समय मिल पाया।” रामबती की आवाज़ में थोडा संकोच तो था पर चेहरे पर आत्मविश्वास भी था। ” कोई बात नहीं रामबती , तुम सामने बैठो …!” कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए अलका ने उसे बैठने का इशारा किया। ” अच्छा बताओ क्या काम है और तुम क्या करती हो …?” अलका ने उसकी और देखते हुए कहा। रामबती ने अलका की और गहरी नज़र से देखते हुए कहा , ” मेडम जी  , मैं वैश्या हूँ …! आप मेरे बारे में जो चाहे सोच सकते हो और यह भी  के मैं एक गिरी हुयी औरत हूँ।” ” हां गिरी हुई  तो हो तुम …!” अलका ने होठ भींच कर कुछ आहत स्वर में रामबती को देखते हुए कहा। ” लेकिन तुम खुद  गिरी हो या गिराया गया है यह तो तुम बताओ। तुमने यही घिनोना पेशा  क्यूँ अपनाया।काम तो बहुत सारे है जहान में।अब मुझसे क्या काम आ पड़ा तुम्हें। ” थोडा सा खीझ गयी अलका। एक तो थकान  और  दूसरे भूख भी लग आयी थी उसे। उसने जानकी बाई को दो कप चाय और बिस्किट लाने को कहा। ” पहले मेडम जी मेरे बारे में सुन तो लो …! साधारण परिवार में मेरा जन्म हुआ।पिता चपरासी थे।माँ-बाबा की लाडली थी। मेरी माँ तो रामी ही कहा करती थी मुझे। हम तीन बहने दो भाई ,परिवार भी बड़ा था।फिर भी पिता जी ने हमको स्कूल भेजा।”        “मेरी ख़ूबसूरती ही मेरे जीवन का बहुत बड़ा अभिशाप बन गयी। आठवीं कक्षा तक तो ठीक रहा लेकिन उसके बाद ,मेडम जी.… !  गरीब की बेटी जवान भी जल्दी हो जाती है और उस पर सुन्दरता तो ‘ कोढ़ में खाज ‘ का काम करती है।  मेरे साथ भी यही हुआ।” थोडा सांस लेते हुए बोली रामबती।   इतने में चाय भी आ गयी।  अलका ने कप और बिस्किट उसकी और बढ़ाते हुए कहा , ” अच्छा फिर …!”                            ” अब सुन्दर थी और गरीब की बेटी भी जो भी नज़र डालता गन्दी ही डालता।स्कूल जाती तो चार लड़के साथ चलते , आती तो चार साथ होते। कोई सीटी मारता कोई पास से गन्दी बात करता या कोई अश्लील गीत सुनाता निकल जाता। मैं भी क्या करती। घर में शिकायत की तो बाबा ने स्कूल छुडवा दिया।”     ” कोई साल – छह महीने बाद शादी भी कर दी। अब चपरासी पिता अपना दामाद चपरासी के कम क्या ढूंढता सो मेरा पति भी एक बहुत बड़े ऑफिस में चपरासी था। मेरे माँ-बाबा तो मेरे बोझ से मुक्त हो गए कि  उन्होंने लड़की को ससुराल भेज दिया अब चाहे कैसे भी रखे अगले ,ये बेटी की किस्मत …! मैं तो हर बात से नासमझ थी। पति का प्यार -सुख क्या होता है नहीं जानती थी।बस इतना जानती थी कि पति अपनी पत्नी का बहुत ख्याल रखता है जैसे मेरे बाबा मेरी माँ का रखते थे।कभी जोर से बोले हुए तो सुना ही नहीं। पर यहाँ तो मेरा पति जो मुझसे 10 साल तो बड़ा होगा ही , पहली रात को ही मेरे चेहरे को दोनों हाथों में भर कर बोला …!” बोलते -बोलते रामबती … Read more