किट्टी पार्टी
आज रमा के यहाँ किट्टी पार्टी थी। हर महीने होने वाली किट्टी पार्टी का अपना ही एक अलग उत्साह रखता था। लगभग तीस महिलाओं का समूह था यह। सभी सखियाँ -सहेलियां आ रही थी। महकती -गमकती मुस्कुराती, पर्स संभालती, बालों को सेट करती एक -एक करती पहुँच रही थी। आँखों पर पतली सी काज़ल और लबों पर भी एक रंगीन लकीर खींच कर जता रही थी मानो कुछ देर के लिए चिंताओं और ग़मों को एक लक्ष्मण रेखा के भीतर धकेल दिया हो। हर कोई बस जी लेना चाहती थी कुछ पल। तरो ताज़ा होने के लिए कुछ महिलाओं के लिए यह पार्टी कम नहीं थी। हालाँकि कई महिलाओं की तो कई और भी किट्टी पार्टी थी।गर्म-गर्म खाने और पीने का दौर चल रहा था। एक खुशगवार सा माहौल था।अचानक लीना ने एक खबर सुनानी शुरू की , ” कल मैंने विदेश की एक खबर पढ़ी, उसमे लिखा था एक जोड़े ने शादी के उन्नीस घंटे बाद ही तलाक ले लिया …!” बड़ी हैरान हो कर थोड़ी आँखे विस्फारित सी हो कर वह कह रही थी।सभी महिलाएं खिलखिलाकर हंस पड़ी। निहारिका थोडा सा मुहं बना कर दिल पर हाथ रख बोल पड़ी , ” लो कर लो बात …! उन्नीस घंटे बाद ही तलाक …!और हमारे यहाँ तो शादी के बाद प्यार होने में ही उन्नीस साल लग जाते हैं …!”एक बार फिर से खिलखिलाहट ..!थोड़ी ही देर में एक ख़ामोशी सी छा गयी।फिर रोमा हंस कर बोली जैसे कहीं खो सी गयी हो , ” हाँ …!ये तो तुमने सच ही कहा निहारिका , प्यार तो होते -होते हो ही जाता है बस, ये अलग बात है हम अपने साथी के साथ रहते हैं, एक दूसरे की जरुरत पूरी करते , बच्चे जनते – पालते और इस बीच न जाने प्यार कब हो जाता है। लेकिन इतने सालों बाद भी एक खालीपन तो महसूस होता ही है। जैसे कोई तो होता जो हमें भी सुनता। किसी के आगे हम भी जिद करते और अपनी बात मनवाते …! आखिर प्यार में यही तो होता है ना …?”पल्लवी ने भी हामी भरी , ” अरे यह भी कोई जिन्दगी होती है जैसी हम जीते हैं, शादी ना हुई कोई उम्र कैद की सजा ही हो गई। ना मन पसंद रंग पहन सकते। ना अपनी पसंद का कोई ड्रेस ही पहन सकते। यह मत करो या यह क्यूँ किया या तुमको यही करना चाहिए। मैं तो अपनी पसंद का रंग ही भूल गयी हूँ …..याद ही नहीं के मुझे क्या पसंद था और मुझ पर क्या जंचता था …! ”माहोल थोडा गंभीर हो चला था .हाथों में पकडे कॉफी के मगों से अब भाप निकलनी बंद हो गयी थी। आखों और होठों पर लगी लकीरें भी थोड़ी सी फीकी दिखने लगी थी।परनीत थोडा सा संजीदा हो चुकी थी। ” हाँ यार …! ऐसा ही होता है , कभी जिद करो या सोचो के आज बात ही नहीं करना और अनशन पर ही रहना है चाहे कुछ भी हो …! भाड़ में गया यह घर और उनकी घर गृहस्थी …हुंह ! लेकिन थोड़ी देर में कोई बच्चा कुछ बात करता या खाने को मांग बैठा तो यह ममता उमड़ने लगती है ,आखिर बच्चों की तो कोई गलती नहीं होती ना !”” और नहीं तो क्या बच्चों को क्यूँ घसीटें हमारे आपसी मतभेद में, उनके लिए ही उठना पड़ता है एक बार से बिखरती गृहस्थी को समेटने। तभी पीछे से साहब भी आ जाएँगे मंद -दबी मुस्कान लिए और धीमे से चाय की फरमाइश लिए हुए। अब चाहे कितना भी मुहं घुमाओ हंसी आ ही जाती है। पर मन में एक टीस सी छोड़ जाती है हूक सी उठाती हुई …, क्या जिन्दगी यूँ ही कट जायेगी, अपने आप को हर रोज़ घोलते हुए ! “, उषा भावुक सी होते हुए बोली।आकांक्षा जिसे अभी गृहस्थी का अनुभव कम था। बोली , “अरे तो आप सब सहन ही क्यूँ करती हो ….विरोध करो , और बच्चों के लिए ,किस के लिए अपनी खुशियों को त्याग देती हो !कौन है जो तुम सब के त्याग को महान कहेगा ? समय आने पर यह बच्चे भी अपनी दुनिया में मग्न हो जायेंगे। हम सब बैठी रहेंगी अपने-अपने त्याग और बलिदान की टोकरी लिए। शायद एक दिन हम सब अपने आप को ही भूल जाएं ।”” लेकिन ये जो हमारे बच्चे हैं, अपने आप तो दुनिया में आये हैं नहीं और ना ही इन्होने हमें कहा था के उनको इस दुनिया में आना है। हम ही तो लायें है इन्हें, तो इनकी देख भाल और परवरिश करने का फ़र्ज़ तो हमारा ही है …! और हम बच्चों की बात नहीं कर रहे, यहाँ बात हो रही है स्व की …! हमारी निजता की। हमारा आखिर वज़ूद क्या है घर में समाज में …, क्या सिर्फ अनुगामिनी ही है हम , थोडा सा भी विरोध का स्वर उठाने पर कौन हमारा साथ देता है ? यहाँ तक की घर की महिलाये भी साथ नहीं देती। मेरी नज़र में हर औरत अकेली है और सिर्फ अकेली ही उसे अपने लिए लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ती है कोई भी साथ नहीं देता उसका।” निहारिका ने अपनी बात पर जोर दे कर कहा।” नहीं ऐसा नहीं है ….,साथ तो देती ही है …” , आशा ने कहा तो लेकिन कुछ कमजोर स्वर में।“क्यूंकि सभी को मालूम है जब कभी भी जोर दे कर महिला अपनी बात भी मनवाना चाहती है तो उसे विद्रोहिणी की संज्ञा दी जाती है।” एक बात तो निहारिका ने सही कहा , ” हर औरत अकेली है ” ….दूसरी बात मैं भी कहूँगी कि “हर औरत का एक ही वर्ग है “….और वह मजदूर वर्ग …! जिस तरह एक मजदूर औरत या घरों में काम करने वाली माई सुबह से शाम मजदूरी करती है वैसे ही मैं भी सुबह घर का काम देख ,फिर अपनी नौकरी पर जाती हूँ। कई बार कुछ फरमाइश होती है शाम को आते हुए कुछ सामान भी लेती आना। देर हो जाती है शाम को आते-आते तो फिर सभी के फूले हुए मुहं देखो और बडबडाहट भी सुनो , महारानी सुबह ही निकल जाती है पर्स झुलाते हुए ,अब घर आयी है … Read more