हिंदी की कीमत पर अंग्रेजी नहीं

                         हिंदी दिवस आने वाला है | अपनी अन्य  पूजाओं की तरह एक बार फिर हम हमारी प्यारी हिंदी को फूल मालाएं चढ़ा कर पूजेंगे और उसके बाद विसर्जित कर देंगे | आखिर क्यों हम साल भर इसके विकास का प्रयास नहीं करते | एक पड़ताल …. हिंदी की कीमत पर अंग्रेजी नहीं  हिन्दी पखवारा चल रहा है । कुछ भाषण , कवि सम्मेलन , लेखकों और कवियों का सम्मान।अच्छी बात है । लेकिन हमें इससे कुछ अधिक करने की आवश्कता है । पौधों के बढ़ने और उन्हे स्वस्थ रखने के लिए पौधों की जड़ में पानी डालना पड़ता है , फल- फूलों में नहीं। वे तो जड़ों की मजबूती से स्वत: ही स्वस्थ होने लगते हैं।हमें जानना होगा कि हमारी भाषा की जड़ों में किस खाद – पानी की आवश्यकता है ? निश्चघय ही यह जड़ हमारे बच्चे हैं , जिन्हे सही अर्थ , सही उच्चारण सिखाना हमारी जिम्मेदारी है । केरल की एक अध्यापिका बच्चों को श्रुतिलेख बोल रही थीं ।उन्होंने ‘ बाघ ‘ शब्द बोला । बच्चे ने बाघ लिख दिया । काॅपी जाँचने पर उन्होने उस शब्द के नम्बर काट लिए । कारण पूछने पर उन्होने बताया कि ‘ बाग ‘ शब्द है ।जब कि उन्होंने बाघ ही बोला था । बच्चा रोकर रह गया । वह हिन्दी भाषी था। हमने उसे समझाया कि तुम्हारे लिखने में कोई गलती नहीं है । उनके उच्चारण का तरीका फर्क है । जैसे- जेसे बच्चे को मलयाली भाषा समझ में आने लगी , वह यह बात समझ गया । एक मराठी अध्यापिका ने बच्चे को संतान का अर्थ औलाद और बच्चा बताया । मैंने बच्चे से कहा कि औलाद तो सही है किन्तु संतान का अर्थ ‘ बच्चा ‘ गलत है । उसकी जगह संतति कहना सही होगा । आजकल की अंग्रेजी बोलने वाली माँएं बच्चों को सही शब्द सिखाना ही नहीं चाहतीं । उनको लगता है कि जो टीचर ने बताया है , अगर  बच्चे वह नहीं लिखेगें तो उनके नम्बर कट जाएगें ।  यह कैसी मानसिकता है ? कैसी स्पर्धा है ?  केवल ‘एक’ नम्बर के लिए  हम बच्चों को सही गलत का फर्क नहीं मालूम होने देना चाहते । एक मानसिकता यह भी है कि कुछ ही दिनों की तो बात है । आगे चलकर इसे इगंलिश ही बोलनी है । अंग्रेजी भाषा में ही कार्य करना है तो क्या फर्क पड़ता है ? किसी भाषा को सीखना गलत नहीं है किन्तु अपनी भाषा को भूल जाने की कीमत पर नहीं । यह कार्य तो हमे मिलजुल कर ही करना पड़ेगा , तभी कुछ बात बनेगी अन्यथा केवल झूठे आँकड़ों पर ही संतोष करना पड़ेगा । सच्चाई कभी सामने नहीं आ पाएगी और वास्तव मे हिन्दी को राष्ट्रभाषा तथा अंन्तर्राष्ट्रीय स्तर की भाषा बनाने की हकीकत स्वप्न बनकर रह जाएगी । उषा अवस्थी  हिंदी दिवस पर विशेष -क्या हम तैयार हैं हिंदी दिवस -भाषा को समृद्ध करने का अभिप्राय साहित्य विरोध से नहीं हिंदी जब अंग्रेज हुई गाँव के बरगद की हिंदी छोड़ आये हैं आपको लेख  ” हिंदी की कीमत पर अंग्रेजी नहीं  “कैसा लगा  अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-Hindi, Hindi Divas, Hindi and English

देश गान

                   स्वतंत्रता दिवस का अर्थ केवल जश्न मनाना नहीं है ये दिन हमें हमारे कर्तव्यों को याद दिलाता है | तो आइये हम भी अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों  को पालन करने का संकल्प लें | जैसा कि इस देश गान में लिया है …. देश गान  तमस के आवरण को चीर रोशनी का डेरा  हैनई किरण से नित उतरता देश में सवेरा हैले ऊर्जा नई – नई नया जहाँ बसाएगेंहम अपने देश की धरा को स्वर्ग सा बनाएगेंबनाएगें , बनाएगें , बनाएगें , बनाएगें   विशाल भाल देश का न झुकने  देगें हम कभीमहर्षियों के ज्ञान को न मिटने देगें हम कभीप्रत्येक ज्योति से नवीन ज्योति हम जलाएगेंहम अपने देश की धरा को स्वर्ग सा बनाएगेंबनाएगें , बनाएगें , बनाएगें , बनाएगे वरण करेगी विजय श्री बढ़ेगें ये कदम जिधरबुरी निगाह गर किसी की उठ गई कभी इधरतो एक काश्मीर क्या जहाँ को जीत लाएगेंहम अपने देश की धरा को स्वर्ग सा बनाएगेंबनाएगें , बनाएगें , बनाएगें बनाएगें ऐ देश के जवानों है तुम्हे नमन , तुम्हे नमनजो बलि हुए तिरंगे पर उन्हे नमन,उन्हे नमनतुम्हारे धैर्य शौर्य को कभी न भूल पाएगेंहम अपने देश की धरा को स्वर्ग सा बनाएगेंबनाएगें , बनाएगें ,बनाएगें बनाएगें उषा अवस्थी फोटो क्रेडिट –indiawish.in यह भी पढ़ें … क्या है स्वतंत्रता का सही अर्थ भारत बनेगा फिर से विश्व गुरु आइये स्वतंत्रता दिवस पर संकल्प ले नए भारत के निर्माण का स्वतंत्रता दिवस पर आधी आबादी जाने अपने अधिकार भावनात्मक गुलामी भी गुलामी ही है स्वतंत्रता दिवस पर विशेष : मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज्य के मेरा भारत महान ~जय हिन्द  आपको    “देश गान “   कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: India, poetry, hindi poetry, kavita, Bharat mata, Independence day, swatantrta divas

फूल गए कुम्हला

किसी का आगमन तो किसी का प्रस्थान ये जीवन का शाश्वत नियम है |  प्रात : सुंदरी सूर्य की रश्मियों के रथ पर बैठ कर जब आती है तो संध्या को खिलने वाले फूल कुम्हला जाते हैं और दीपक धुंधले पड़ जाते हैं | आईये पढ़ें प्रकृति का मनोहारी वर्णन करती हुई कविता … फूल गए कुम्हला   फूल गए कुम्हला , साँझ के दीप गए धुंधला फूल गए कुम्हला   देव भास्कर का सारथि  आरुण रथ ले आया अंधकार डूबा , पूरब में है प्रकाश झाँका फूल- – – – नव किरणें संदेश बिखेरें सुप्रभात आया भानु बढ़ रहे लेकर रथ अब , नव प्रकाश छाया फूल- – – – प्रात कुमुदिनी , सकुचाई खिली कमलिनी पाँत भ्रमर कर रहे मधुमय गुंजन  ज्योति भरे आकाश फूल गए कुम्हला , साँझ के दीप गए धुंथला फूल गए कुम्हला मौलिक एवं स्वरचित उषा अवस्थी विराम खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ (उ0 प्र) यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “ फूल गए कुम्हला  “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: flower, poetry, hindi poetry, kavita

पुर्नस्थापन

तुलसी मात्र एक पौधा ही नहीं है वो हमारी संस्कृति और भावनाओं का प्रतीक भी है  जिसका पुनर्स्थापन जरूरी है | प्रतीक के माध्यम से संवेदनाओं को संजोने का सन्देश देती कविता  कविता -पुर्नस्थापन क्यों तुलसी को उसके   आँगन से उखाड़ ले जाओगे ? भला वहाँ कैसे पनपेगी रोप कहाँ तुम पाओगे ? इतने दिन की पाली पोसी कैसे यह बच पाएगी अपने गाँव शहर से कटकर यह कैसे रह पाएगी ?  जब अनुकूल नहीं जलवायु नहीं सहन कर पाएगी दे विश्रान्ति उसे , तुम ऐसी खाद कहाँ से लाओगे ?  अन्तराल से जो रीते मन के संवेग जगाओ तुम  फिर आकर उसको , उसके आँगन से लेकर जाओ तुम उषा अवस्थी गोमती नगर , लखनऊ (उ0 प्र0) यह भी पढ़ें …… आखिरी दिन निर्भया को न्याय है सखी देखो वसंत आया लज्जा फिर से रंग लो जीवन वृक्ष की तटस्थता आपको    “  पुर्नस्थापन   “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, 

दो जून की रोटी

एक इंसान के जीने के लिए पहली आवश्यकता क्या है .. बस “दो जून रोटी ” उसका सारा संघर्ष इसी के इर्द गिर्द बिखरा पड़ा है | हृदयस्पर्शी कहानी … दो जून की रोटी   बुआ जी के घर पर, सत्यनारायण कब आया, मुझे पता नहीं. जबसे होश संभाला, उसे बुआ जी के घर के पीछे, भंडरिया में रहते हुए पाया. वह ईंट, गारा उठाने की मजदूरी करता. सुबह और शाम को बुआ जी के काम में थोड़ा-बहुत हाथ बंटा देता. उनकी हाट-बाजार कर देता. बुआ जी को माँ के पास कोई खबर भेजनी होती तो वही लेकर आता. गोल चेहरा, घुटा हुआ सर, धोती और कुरते पर अंगोछा डाले हुए; पैरों में सस्ते स्लीपर- यही उसका हुलिया था. जाड़ों में कुरते के ऊपर, सदरी चढ़ जाती. अंदर के कपड़े वह ऐसे पहनता, जिससे उसका शरीर गदबदा लगता. उसे कपड़े लादे रहने का शौक था. फूफा पंडिताई करते थे. उससे उन्हें जो कुछ भी मिलता, उसी से बुआ घर का सारा खर्च चलातीं. वह बड़ी संतोषी जीव थीं. उन्होंने अपने मायके वालों से, यानी हमारे घरवालों से, अपनी किसी तकलीफ की, कभी भी, कोई शिकायत नहीं की. किन्तु हमें मालूम था कि बुआ किस कठिनाई से भैया को पढ़ा रही हैं. सत्यनारायण जब भी हमारे घर आता , मेरी दोनों बड़ी बहनें, उसे किसी न किसी बहाने से चिढ़ातीं. कभी कहतीं, “सत्यनारायण, तूने इतने कपड़े क्यों पहन रखे हैं? तुझे गर्मी नहीं लगती?! नहाता नहीं है क्या??” वह हंसकर कहता, “अभी काम से आ रहा हूँ न इसलिए. माँ जी ने तुरंत ही मुझे यहाँ भेज दिया, कपड़े बदल ही नहीं पाया”  कभी उसे वक्र दृष्टि से देखती हुई, गोल-गोल आँखें नचाकर बोलतीं, “सत्यनारायण जरा इधर तो आ.” फिर धीरे से आवाज को रहस्यमय बनाकर कहतीं,“देख सत्यनारायण, वह लाइनपार वाले वैद्य जी हैं न, त्रिभुवन शास्त्री जी; तू उनके पास चला जा, वह बहुत बढ़िया दवा देते हैं. उनके इलाज से तेरे दाढ़ी-मूंछें निकल आयेंगी. शरीर में कोई कमी हो, तभी ऐसा होता है.” और वह फिक्क से हंस देता. कुछ दिनों से सत्यनारायण का भतीजा परमानन्द भी गाँव से आ गया था. वह उसी के साथ रहकर, मजूरी करने लगा था. समय यूँ ही सरक रहा था. देखते ही देखते भैया ने अपनी पढ़ाई पूरी कर ली और उनका पी. सी. एस. में चयन हो गया. इसके साथ ही बुआ का सारा दलिद्दर(दरिद्रता) भी दूर हो गया. उन्होंने बड़े उत्साह से भैया की शादी तय कर दी. शादी का सारा काम फूफा और बुआ के साथ ही सत्यनारायण पर आ पड़ा. वह बहुत प्रसन्न था. दौड़- दौड़कर सारा काम निपटा रहा था. घर में शादी की चहल- पहल थी. अचानक ही सत्यनारायण और परमानन्द की तेज आवाजें पड़ीं. वह लड़ते हुए, एक दूसरे को धकियाते हुए भंडरिया से बाहर आ रहे थे. परमानन्द कह रहा था, “ठहर जनानी, अभी तेरी पोल-पट्टी खोलता हूँ. तू सारी दुनियां की आँखों में धूल झोंक सकती है, लेकिन मुझे तो तेरी असलियत मालूम है…तू मुझसे पंगा लेने चली है! अगर तुझे दूध की मक्खी की तरह, न निकलवा फेंका तो मेरा नाम भी परमानन्द नहीं. तू अपने आप को समझती क्या है?!” और सत्यनारायन रोते हुए कह रहा था, “जब ससुराल वालों ने घर से निकाला था, तब तेरे ही माँ-बाप के दरवाजे गयी थी, यह सोचकर कि माता- पिता नहीं तो क्या, भाई- भौजाई तो हैं; लेकिन तेरी माँ ने बाहर से ही भगा दिया था कि कहीं दो जून की रोटी न देनी पड़ जाए. पर तुझे तो मैंने अपने साथ रखा, खिलाया-पिलाया. उसका यह बदला दिया है तूने! आखिर है तो उन्हीं माँ- बाप की औलाद…सांप का संपोला!!” चारों ओर भीड़ इकट्ठा हो गई थी. सारे नाते-रिश्तेदार, नौकर-चाकर आकर जमा हो गये थे. तभी भीड़ में से एक आवाज आई, “राम-राम, पंडित जी ने औरत रख छोड़ी है. क्या इतने दिनों से इन्हें मालूम नहीं कि यह औरत है?!” बुआ गरजीं, “ तुम क्या जानते हो? मुझे मालूम नहीं कि यह औरत है?? लेकिन मैंने उसे कभी यह एहसास नहीं होने दिया कि मुझे उसकी सच्चाई मालूम है…मुझे पता है, एक बिना पढ़ी-लिखी अकेली औरत का घर से बाहर निकलकर रोजी-रोटी कमाना, कितना कठिन और जीवट का काम है! अगर वह चार रोटी, अपनी मेहनत से कमाकर खा रही है तो तुम्हारे पेट में मरोड़ें क्यों उठती हैं?! रही पंडित जी की बात, तो उनकी चिन्ता करने की तुम लोगों को जरूरत नहीं. उसके लिए मैं ही काफी हूँ. तुम सब चरित्र की क्या बातें करते हो? मुझे मालूम नहीं कि कौन कैसा है?  बताओ तो सही, इसने किसके साथ बेहयाई की है? किसी एक का भी नाम बता दो, जिसके साथ मुंह काला किया हो….किसी का शांति से जीना भी तुम लोगों से देखा नहीं जाता, यदि वह इंसान औरत हो तब तो और भी नहीं! और तुम परमानंद…!! अभी अपना सामान उठाओ और यहाँ से चलते बनो. अब कभी अपना मुंह मत दिखाना” फिर घूमकर सत्यनारायण से बोलीं, “ अब जबकि तेरी हकीकत खुल ही गयी है, तुझे केवल दो जून की रोटी के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं है. घर में बहुतेरा अन्न है. तू तो जानती है, बाहर कितने बहेलिये, जाल बिछाए बैठे हैं!!” फिर बोलीं, “जाकर देख, हलवाई को किसी सामान की जरूरत है या नहीं?” सभी की निगाहें झुकी हुई थीं. धीरे- धीरे सब लोग तितर-बितर होकर, अपने कामों में व्यस्त हो गये…और बुआ तो इस तरह काम में लगीं, मानों कुछ हुआ ही न हो!!! –    उषा अवस्थी लेखिका का परिचय  नाम – उषा अवस्थी शिक्षा – एम .ए. मनोविज्ञान              अतिरिक्त योग्यता – १- संगीत प्रभाकर (सितार)                                 (अखिल भारतीय गंधर्व महाविद्यालय)                                २ – संगीत विशारद (सितार)          (प्रयाग समिति, इलाहाबाद)               कार्य अनुभव – सरस्वती बालिका विद्यालय, कानपुर में कुछ वर्षों तक अध्यापन कार्य                विशेष –१- आकाशवाणी लखनऊ द्वारा समय- समय पर (गृहलक्ष्मी कार्यक्रम में)  कविताओं का प्रसारण (२१ अप्रैल २०१७ और १३ अक्तूबर २०१७ ) २         – राष्ट्रीय पुस्तक मेले ( ११ से २० अगस्त २०१७) में कवियित्री सम्मेलन की अध्यक्षता ३         – दयानंद गर्ल्स कॉलेज, कानपुर के द्वारा वर्ष १९६१- ६२ में सर्टिफिकेट ऑफ़ ऑनर ४ – डी. ए. वी. कॉलेज, कानपुर में आयोजित पांचवे इंटर … Read more

सखि , देखो तो , वसन्त आया

सखि , देखो तो , वसन्त आया नव द्रुम , नव पल्लव , नव सुगन्ध चहुँ दिशि मधु – उसव का आनन्द मंजरी मधुर मधुकोष भरित ये आम्र – कुंज भी बौराया सखि , देखो तो वसन्त आया अमराई में कोयल कूजी वन उपवन ने श्रृंगार किया वृक्षों , पादप , लतिकाओं की देही पर यौवन गदराया सखि , देखो तो , वसन्त आया सुरभित , पुष्पित , कुसुमकुल पर भ्रमरों की टोली डोल रही प्रकृति ने अपनी झोली से अनगिनत रंगों को बिखराया सखि , देखो तो , वसन्त आया मादक बयार की मधुर गंध मन – प्रांगण में भरती उमंग तन पोर – पोर है आह्लादित इक जलतरंग सा खनकाया सखि , देखो तो , वसन्त आरा मधुवन में कृष्ण सांवरे की वंशी स्वर – लहरी गूँज रही खेतों में फूली सरसों सा राधा का मन भी हुलसाया सखि , देखो तो वसन्त आया उषा अवस्थी लखनऊ , ( उ0 प्र0 ) यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ माँ गंगा पिंजड़े से आज़ादी बैसाखियाँ  आपको “सखि , देखो तो , वसन्त आया  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

प्रकृति की अद्भुत छटा

कूजती है कोकिला अमराई मेंगूंजती भ्रमरावली मधुराई मेंचल रही सुरभित मृदुल शीतल पवनकर रहे कलरव मधुर पक्षी मगनइन्द्रधनुषी तितलियां इठला रहींझूमती लतिकाएं रस बरसा रहींपुष्प भारों से झुके पादप विपुलखिल रहा सौन्दर्य धरती का अतुलपीत सरसों खेत में लहरा रहीअवनि रंगों से सजी मुसका रहीबांसुरी चरवाहे की कुछ कह रहीप्रकृति की अद्भुत छटा मन हर रहीहै इला की दीप्ति चित को खींचतीनयन पथ से चल ह्रदय को सींचती उषा अवस्थी  यह भी पढ़ें … बदनाम औरतें बोनसाई डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बैसाखियाँ  आपको “प्रकृति की अद्भुत छटा “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

गीत वसंत

धरा ने है ओढ़ी वसन्ती ये चूनरनव सुमनों का किनारा टँका हैनवल किसलयों का परिधान पहनाकि फागुन अभी आ रहा , आ रहा है धरा – – – –ये पायल की रुनझुन सी भँवरों की गुनगुनसघन आम्रकुन्जों में कोयल की पंचमशीतल सुगन्धित मलय को लिए संगऋतुराज तो स्वागत को खड़ा हैधरा  – – – – ये पुष्पों के भारों से झुकती लताएँविपुल रंगों की इन्द्रधनुषी छटाएँये सौन्दर्य – झरना धरा यौवना काअनिमेष फागुन ठगा सा खड़ा हैधरा – – – – उषाअवस्थी, गोमती नगरलखनऊ ( उ0प्र0) यह भी पढ़ें … बदनाम औरतें रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ माँ मैं दौडूगा आपको “गीत वसंत    “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

वाणी-वंदना

                                         यूँ तो पतझड़ के बाद वसंत के आगमन पर जब वसुंधरा फिर से नव- श्रृंगार करती है तो सारा वातावरण ही  एक अनूठी शोभा से युक्त हो जाता है | ऋतुओं में श्रेष्ठ वसंत ऋतु  का सबसे उत्तम दिन है वसंत पंचमी |  वसंत पंचमी हिन्दू कैलेण्डर के अनुसार माघ मास  के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि की मनाया जाता है |मान्यता है की वसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती का प्राकट्य  हुआ था , जिन्होंने जीव -जंतुओं को वाणी प्रदान की | माता सरस्वती को ज्ञान विज्ञान, संगीत , कला और बुद्धि की देवी भी माना जाता है |माता के जन्म के उत्सव में उनके प्रति श्रद्धा व् आभार प्रगट करने के लिए वसंत पंचमी का उत्सव मनाया जाता है | आइये हम सब उनकी स्तुति करें |  माँ सरस्वती की वाणी-वंदना  जय वीणा – पाणि पुस्तक धारिणि जय श्वेत वसनि अक्षर कारणि जय ब्रम्ह -सुता , कवि – कुल मंडन जय – जय अज्ञान तिमिर भंजन जय प्रखर प्रज्ज्वलित ज्ञान – ज्योत साहित्य – सृजन प्रेरणा स्रोत जय हे शारदे कमल आसनि आध्यात्म – पुंज उर भ्रम नाशिनि इस आत्म – दीप मन – चन्दन से अर्चन वन्दन स्वीकार करो इस प्राण – पियाले में रक्खे कुछ भाव – पुष्प स्वीकार करो उषा अवस्थी  यह भी पढ़ें … स्वागत है ऋतू राज वाणी की देवी वीणा पानी और उनके श्री विग्रह का मूक सन्देश आत्मविश्वास बढ़ाना है तो पीला रंग अपनाइए निराश लोगों के लिए आशा की किरण ले कर आता है वसंत आपको  कविता  “.वाणी-वंदना .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

जल जीवन है

अखिल सृष्टि में जल जीवन है जीवन का सम्मान करो संरक्षित कर स्वच्छ सलिल को धरती में मुस्कान भरो जिस पानी को हम तलाशते मंगल चन्द्र विविध ग्रह पर वह अमृत अवनी पर बहता नदी , झील ,निर्झर बनकर मिले विरासत में जो , इन जल स्रोतों पर अभिमान करो नष्ट मत करो इन्हे बचाओ  तुम सबका कल्याण करो अम्बु – कोष जो हमे मिला है उसका कर्ज चुकाना है भावी पीढ़ी को इससे  कुछ बेहतर देकर जाना है उषा अवस्थी यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बाबुल मोरा नैहर छूटों ही जाए रेशमा कितने जंगल काटे हमने कितने वृक्ष गिराए हैं आपको  कविता  “..जल जीवन है“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें