कितने जंगल काटे हमने, कितने वृक्ष गिराए हैं

कितने जंगल काटे हमनेकितने वृक्ष गिराए हैंनीड़ बिना बेघर पंक्षीमौसम ने मार गिराए हैंकितने—चारों ओर कोलाहल भारीजहर घुल गया सांसों मेंउन्नति के सोपानों पर चढ़अवनति द्वार बनाए हैंकितने—जल स्रोतों को सुखा मिटा कर हमने महल बनाए हैंधधक रही अवनी की छातीरेगिस्तान बुलाए हैंकितने—जिन पवित्र नदियों पर गर्वितसदा रहे इतराते हमउनके ही निर्मल जल मेंमल का अम्बार लगाए हैंकितने—लाज नहीं आती हमको निर्लज्जों की श्रेणी में हमबात शान्ति की करते , लेकिनएटम बम गिराए हैंकितने–होगा क्या भविष्य अब अपना प्रज्ञा बेंच , गवाएं हैंरजस्वला हो रही धरा केअनगिन गर्भ गिराए हैंकितने–‘–विविधायुध घनघोर गरजतेदेशों की सीमाओं परपंचमहाभूतों पर अब तो हमने दांव लगाए हैंकितने—” उषा अवस्थी आपको आपको  कविता  “कितने जंगल काटे हमने, कितने वृक्ष गिराए हैं“ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

शिवोहम – उषा अवस्थी की कवितायें

प्रस्तुत हैं उषा अवस्थी जी की दो कवितायें शिवोहम व् चाँदनी  कितनी सुहानी चाँदनी  शिवोहम ब्रम्हांड बने जब तन कोई कैलाश बने कोई मन उस मन परवत पर विचरण करते  गौरि शंभु हरदम मन रत्नाकर विस्तृत अगाध प्रज्ञा मंदर और रज्जु श्वास से करे कोई मंथन उसके सब कलुष हलाहल पीते नीलकंठ हरदम कर कुसुम- चाप, अभिमान भरे जब मदन बाण पर धार धरे करता समाधि भंजन तब ही कामारि त्रिलोकनाथ खोलें तिनेत्र हरदम जिसका तन काशी मन गंगा उस पुण्य सलिला भागीरथी में करता कोई अवगाहन भव- बंध काट आनंद धाम भेजें प्रभु हर हरदम 2- चाँदनी, कितनी सुहानी- चाँदनी चाँदनी, कितनी सुहानी, चाँदनी ज्यों उड़ेले मधु- कलश  कोई सजीली कामिनी,। चाँदनी, कितनी सुहानी, चाँदनी डाली- डाली फूल- फूल पर नर्तन करती धूल- धूल पर विहंस- विहंस मुकुलित विटपों पर है बिखेरे रागिनी चाँदनी, कितनी सुहानी, चाँदनी डाल किरण- माला धरती पर अम्बर करता प्रणय- निवेदन अन्तर में अनुराग समेटे भू लजीली भामिनी चाँदनी, कितनी सुहानी, चाँदनी चन्द्र- रश्मियों की डोरी से बाँध रहा अलकावलियाँ नभ बिखर गईं मधुजा- मुख पर जो बन हठीली यामिनी चाँदनी, कितनी सुहानी, चाँदनी लेखिका परिचय नाम-उषा अवस्थी शिक्षा- एम ए मनोविज्ञान  सम्प्रति- 1- समिति सदस्य ‘अभिव्यक्ति’ साहित्यिक संस्था, लखनऊ 2- सदस्य ‘भारतीय लेखिका परिषद’, लखनऊ प्रकाशित रचनाएँ- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संग्रहों, भारतीय लेखिका परिषद’ की पत्रिका ‘अपूर्वा’, दैनिक पत्रों ‘दैनिक जागरण’ व ‘राष्ट्रबोध’, साप्ताहिक पत्र ‘विश्वविधायक’ एवं विविध पत्रिकाओं यथा ‘भावना संदेश’, ‘नामान्तर’ आदि में रचनाएँ प्रकाशित विशेष-1- आकाशवाणी लखनऊ द्वारा समय समय पर कविताओं का प्रसारण 2- राष्ट्रीय पुस्तक मेले के कवियत्री सम्मेलन की अध्यक्षता 3- कुछ वर्षों का शैक्षणिक अनुभव 4- संगीत प्रभाकर एवं संगीत विशारद

बोनसाई

   चित्राधर – प्रसिद्ध पादप वैज्ञानिक, आसमान छूती प्रसिद्धि; आत्मविश्वास से भरपूर। कितने ही पुरस्कारों से नवाज़ी गई हस्ती। सुगंध की भाँति फैलती, महकती कीर्ति ; बोनसाई बनाने में महारत हासिल, किंतु आज कितनी मुरझाई हुई!  उनके अपने कोख जाए बच्चे की लम्बाई, अपनी कक्षा के बच्चों से काफी कम थी। शुरू में तो उन्होंने ध्यान नहीं दिया, किन्तु इधर साल दो साल से वह बहुत उद्विग्न रहने लगीं थीं। एक से दूसरे, दूसरे से तीसरे चिकित्सकों के चक्कर लगा- लगाकर वह थक गईं थीं। प्रारम्भ में तो चिकित्सकों ने काफी हौसला दिया था और वे टौनिक तथा दवाइयाँ देते रहे थे, किन्तु अब कह दिया था कि बच्चे में जन्मजात त्रुटि है। एक सीमा से अधिक, इसकी लम्बाई नहीं बढ़ाई जा सकती। वह बौना है। यह सुनकर उनका कलेजा टूक टूक हो गया था।   अवसाद से पीड़ित, आँसुओं से बोझिल पलकें उन्होंने उठाईं तो देखा कि बरगद, नीम, पाकड़, नींबू, नारंगी आदि पौधे उन्हें चारों ओर से घेरकर खड़े हुए हैं। वे उन्हें व्यंग से निहार रहे थे।  बरगद कह रहा था, “क्यों, हमें बोनसाई बनाने का बहुत शौक है न तुम्हें, अब तुम्हारा बेटा बोनसाई बन गया है तो क्यों आँसू बहा रही हो? तुमने हमारी जड़ों को क्रूरता से बार बार काट-छाँटकर हमें बौना रहने पर मजबूर कर दिया है। हमारे विशाल आकार को खिलौना बनाकर अपने घर में सजा लिया है। अब जब अपने ऊपर आन पड़ी है तो टसुए बहा रही हो। “ सारे पौधे निरादर से हंस पड़े थे,” हमारी कद- काठी का तुमने ही तो सत्यानाश किया है। लोगों को हरी-भरी छाया और फल देने से तो तुमने ही वंचित कर दिया है हमें।“ उसी समय दरवाजे की घंटी बजने से उनकी आँख खुल गई। उनकी सांसें जोर- जोर से चल रही थीं और वे पसीने से तर थीं। उन्होंने अपने उभरे हुए पेट पर हाथ फेरते हुए, खुद को संयत किया। वे बुदबुदाईं,’  नहीं मैं तुम्हें बौना नहीं देख सकती!’  बाहर आकर उन्होंने देखा कि कुछ ग्राहक उनसे तैयार बोनसाई लेने को आए हुए हैं। उन्होंने ग्राहकों से कहा, “माफ कीजिएगा, मैंने बोनसाई बनाना छोड़ दिया है।“ उन लोगों के जाने के पश्चात उन्होंने बड़ी ही नरमियत से बरगद और नीम के पौधों को मिट्टी से अलग किया और उन्हें स्कूल के किनारे की चौड़ी कच्ची जमीन पर रोपने का आदेश देकर माली के हाथ में खुरपी पकड़ा दी। लेखिका परिचय- नाम- उषा अवस्थी शिक्षा- एम ए मनोविज्ञान  सम्प्रति- 1- समिति सदस्य ‘अभिव्यक्ति’ साहित्यिक संस्था, लखनऊ 2- सदस्य ‘भारतीय लेखिका परिषद’, लखनऊ प्रकाशित रचनाएँ- ‘अभिव्यक्ति’ के कथा संग्रहों, भारतीय लेखिका परिषद’ की पत्रिका ‘अपूर्वा’, दैनिक पत्रों ‘दैनिक जागरण’ व ‘राष्ट्रबोध’, साप्ताहिक पत्र ‘विश्वविधायक’ एवं विविध पत्रिकाओं यथा ‘भावना संदेश’, ‘नामान्तर’ आदि में रचनाएँ प्रकाशित विशेष-1- आकाशवाणी लखनऊ द्वारा समय समय पर कविताओं का प्रसारण 2- राष्ट्रीय पुस्तक मेले के कवियत्री सम्मेलन की अध्यक्षता 3- कुछ वर्षों का शैक्षणिक अनुभव 4- संगीत प्रभाकर एवं संगीत विशारद ————————————————–