गण और तंत्र के बीच बढ़ता फासला

26 जनवरी 2018 को हमारे देश का संविधान लागू हुए 68 साल हो जायेंगे| अंग्रेजी हुकूमत से आज़ादी हासिल करने के बाद हमने देश को अपनी तरह से चलाने के लिए अपने संविधान की रचना की थी| हमारा यह संविधान महज कागजी दस्तावेज नहीं है वरन इसमें समाहित तमाम कायदे –क़ानून नियम –निर्देश पूरे देश के नागरिकों के हितों की नुमाइंदगी  करते हैं | इस संविधान में इस बात की पूरी व्यवस्था की गयी है कि देश के हर नागरिक को उसके मौलिक अधिकार मिल सकें, उसके अधिकारों की रक्षा हो सके और वो अपनी मर्जी के अनुसार स्वतंत्रता पूर्वक जीवन जी सके| व्यक्ति और समाज के विकास के लिए प्रतिबद्ध इस संविधान की निष्ठां और गरिमा को ध्यान में रखते हुए सरकार काम करे , ऐसी अपेक्षा हमारे संविधान के निर्माताओं ने की थी|  क्यों बढ़ रहा है गण और तंत्र के बीच फासला  संविधान बनना एक बात है और उस पर अमल करना दूसरी बात | दुखद है कि संविधान की मूल भावना को 68 साल बाद भी अक्षरश :लागू नहीं किया जा सका | जो गणतंत्र बनना चाहिए था वो भीड़ तंत्र में तब्दील हो गया |  राजनैतिक दलों और नौकरशाहों की आपाधापी देश में व्याप्त भ्रस्टाचार के मूल में है |नौकरशाहों में आज न ईमानदारी है न नैतिकता और न ही सपने देखने की सृजनशील क्षमता और न ही सपनों को आकार देने का सुद्रण संकल्प  आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं यह भी पढ़ें …… गणतंत्र दिवस पर विशेष – भारत की गौरवशाली परंपरा को आगे बढाना होगा हम सबकी जिम्मेदारी मिलकर बनाएं दुनिया प्यारी देश भक्ति के गीत मैं स्वप्न देखता हूँ एक ऐसे स्वराज के  आपको  लेख   “ गण और तंत्र के बीच बढ़ता फासला   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    keywords: Republic Day, 26 january, Indian Republic Day

तेज दौड़ने के लिए जरूरी है धीमी रफ़्तार

एक पुरानी अंग्रेजी कहावत है ,“go slow to go fast “अगर आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो अपनी शुरूआती गति थोड़ी धीमी रखिये | आपको सुनने में बहुत अजीब लग रहा होगा | पर याद करिए बचपन में पढ़ी कछुए और खरगोश की कहानी | कछुआ धीमे चलता है और रेस जीत जाता है | वहीँ शुरू में सरपट दौड़ने वाला खरगोश ऊंघता रह जाता है | ये कहानी मात्र प्रतीकात्मक है | जहाँ खरगोश के ऊँघने और हारने के अपने अपने सन्दर्भ में कई कारण समझे जा सकते हैं |  जैसा की बिल गेट्स कहते हैं , “ किसी भी कम्पनी के सफल होने के लिए ये कार्ययोजना जरूरी नहीं है की हम पहले साल कितना तेज दौड़ेंगे , बल्कि ये जरूरी है की हम दस साल में कितना दौड़ लेंगे | आप जरूर जानना चाहते होंगे की कैसे आप धीमे दौड़ते हुए तेज दौड़ने वाले धावक सिद्ध होते हैं , तो जरा इन  कारणों पर गौर करिए | बना रहेगा  काम के प्रति पैशन पिछले दिनों अपने बचपन के दोस्त से मिला | वह डॉक्टर है , और उसके पास मिलने का समय बहुत कम ही रहता है | क्लिनिक में बैठ कर कभी ठीक से बात हो नहीं पाती | उसका खुद यूं घर आ जाना कुछ अजीब सा लगा | राज उसने ही खोला | बतौर दीपक ( परिवर्तित नाम ) अगर पिछले सालों में अपने जीवन को मुझे एक शब्द में परिभाषित करना पड़े तो निश्चित तौर पर वो शब्द होगा “व्यस्त ” | जो मुझे हमेशा से बहुत खूबसूरत शब्द लगता रहा है |जैसे घडी की सुइयां चलती हैं , जैसे दिल धडकता है , जैसे साँसे चलती हैं … बिना रुके बिना थके , तो हम क्यों नहीं |मुझे लगता था सारी खुशियाँ व्यस्त , अति व्यस्त रहने में है |अगर मैं व्यस्त हूँ तो इसका मतलब मैं अपने समय का पूरा सदुपयोग कर रहा  हूँ | हमारी सारी पाजिटिव थिंकिंग की किताबें भी तो यही सिखाती हैं | समय कीमती है | एक – एक मिनट का इस्तेमाल करो | आगे बढ़ो , दौड़ों , और सफलता , और पैसा , और शोहरत | पर पता नहीं क्यों सब कुछ मिलने के बाद भी एक खालींपन रह जाता है , जैसे बहुत कुछ पा कर खो दिया | ” इतना कह कर दीपक तो चला गया , क्योंकि उसे एक जरूरी ऑपरेशन करना  था | पर मैं सोचने में व्यस्त हो गया  ” अति व्यस्त ” लोगों के बारे में | बात सिर्फ दीपक की नहीं उन बहुत से लोगों की है जो अति व्यस्त रहते हैं | जो व्यस्तता को ही ख़ुशी समझते हैं |इनमें से ज्यादातर मल्टीटास्किंग होते हैं | एक साथ कई काम हाथ में ले लेना इनका हुनर होता है |परन्तु तेज दौड़ते – दौड़ते उनका काम के प्रति पैशन खत्म हो जाता है | अपना काम जिसे वो बेहद प्यार करते थे | बेहद उबाऊ लगने लगता है | समझ विकसित करने का अवसर आपने अगर कभी किसी बच्चे को पढ़ाया होगा तो आप बेहतर जानते होंगे की | जो बच्चे जल्दी – जल्दी पाठ पढ़ कर आप को सुना देते हैं उनकी समझ गहरी नहीं  होती | वह पाठ को ठीक से समझ नहीं पाते और ट्रिकी सवालों के जबाब नहीं दे पाते | और हाँ ! हर बार पाठ के रिविजन में उन्हें उतना ही टाइम लगता है | पर जो बच्चे एनालिसिस के स्तर  पर जा कर पाठ समझते हैं | उन्हें पहली बार पढने में तो समय लगता है | पर बार – बार उसे दोहराना नहीं पड़ता | वह पाठ आधारित सभी प्रश्नों के उत्तर आसानी से दे पाते हैं | यही बात जीवन के हर क्षेत्र में लागू होती है | जब आप किसी प्रोजेक्ट को समझ कर एक – एक कदम सधा हुआ व् ठोस उठाते है तो सफल होने की सम्भावना बहुत होती है | क्योंकि आप अपने हर कदम की एनालिसिस करते हुए आगे बढ़ते हैं | जिससे गलतियाँ सुधरती चलती हैं व् सही दिशा का चयन कर पाते हैं | आपसी बॉन्डिंग होती है बेहतर  ज्यादातर बड़ी सफलताएं टीम वर्क का नतीजा होती हैं | जब आप जब आप तेज भागते हैं तो आपकी टीम को भी उसी गति से दौड़ना पड़ता है | जहाँ उन्हें आपसी समझ विकसित करने का अवसर नहीं मिलता | कुछ सदस्य तो तेज दौड़ते हैं कुछ धीमे | उनके बीच ” वर्क कॉडीनेशन ” का आभाव हो जाता है | नतीजा नेट परिणाम जीरो आता है | वहीँ अगर टीम की बॉन्डिंग अच्छी होती है तो हर व्यक्ति अपना १०० % दे पाता है व् तुलनात्मक रूप से कम्पनी का विकास होता है | जरूरी हैं अंतिम दस मीटर  कभी आपने किसी ऐथिलीट को दौड़ते हुए देखा है | यहाँ जीतने वाले शुरू में अपनी पूरी ताकत नहीं झोंक देते बल्कि एक सामान गति से दौड़ते हैं और अंतिम दस मीटर की निर्णायक दौड़ में अपनी पूरी उर्जा लगा देते हैं |जरूरी है पाला छूना न की ये की आप पहले कितना तेज दौड़े थे |अगर आप शुरू में अपनी पूरी उर्जा झोंक देते हैं तो आप थका हुआ महसूस करेंगे | हो सकता है आप काम इतना बाधा लें की आप के पास उसे पूरा करने की ताकत ही न बचे | यही वो जगह है जहाँ आप का काम पिछड़ना शुरू कर देता है | अगर आप पहले से ही अपनी गति व् उर्जा का उचित आकलन करते हुए आगे बढ़ते तो काम को सफलता पूर्वक निष्पादित कर पाते | जरूरी है पौज  फिर से मुझे एक पुरानी अंग्रेजी कहावत याद आ रही है …  go fast enough to go there  go slow enough to see  आपने कभी सोंचा है की मूवी में इंटरवेल क्यों होते हैं | या यूँ कहने की जब हम नेट पर भी कोई मूवी देख रहे होते हैं तो थोड़ी – थोड़ी देर में पॉज  कर के क्यों उठ जाते हैं | कारण स्पष्ट है मूवी ज्यादा एन्जॉय करने के लिए थोडा पॉज  जरूरी है |यही बात जिन्दगी की मूवी पर भी लागू होती है | जहाँ तेज दौड़ने के बीच में थोडा सा पॉज  या … Read more

क्या आप जानते हैं सफलता के इको के बारे में ?

ओमकार मणि त्रिपाठी  ( पूर्व प्रकाशित )  मैं समुद्र के किनारे बैठा हुआ था  | लहरे आ रही हैं जा रही थीं  | बड़ा ही मनोरम दृश्य था  | पास में कुछ बच्चे खेल रहे थे  | एक बच्चे के हाथ से नारियल छूट कर गिर गया  | लहरें उसे दूर ले गयीं  | बच्चा रोने लगा  | तभी लहरे पलट कर आयीं , शायद बच्चे का नायियल वापस करने , वो नारियल वापस कर फिर अपनी राह  लौट गयीं  | माँ बच्चे को गोद में उठा कर बोली , “ देखो तुमने समुद्र को नारियल दिया था तो उसने भी तुम्हें नारियल दिया | रोया न करो , अपनी चीज बांटोगे तो दूसरा भी अपनी चीज देगा |   ऐसे ही एक कहानी मुझे माँ बचपन में अक्सर सुनाया करती थीं | कहानी इस प्रकार है ….                         एक  माँ, अपने नन्हें पुत्र की साथ पर्वत की चढ़ाई कर रही थी, अचानक पुत्र का पैर फिसल गया और वो गिर पड़ा। चोट लगते ही वो जोर से चिल्लाया- आह… ह.ह.ह.ह…..माँ.…।  पुत्र चौंक पड़ा क्योंकि पहाड़ से ठीक वैसी ही आवाज लौटकर आई। अचम्भा से उसने प्रश्न किया- कौन हो तुम? पहाड़ों से फिर से आवाज आई- कौन हो तुम? पुत्र चिल्लाया- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! आवाज आई- मैं तुम्हारा मित्र हूँ! किसी को सामने न पाते हुए पुत्र गुस्से से चिल्लाया- तुम डरपोंक हो! आवाज लौटी- तुम डरपोंक हो! पुत्र आश्चर्य में पड़ गया, उसने अपनी माँ से पूछा- ये क्या हो रहा है? वो जोर से चिल्लाई- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! पहाड़ों से आवाज लौटी- तुम एक चैम्पियन हो, और एक अच्छे बेटे! उन्होंने दोबारा चिल्लाया- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। आवाज लौटी- हम तुमसे बहुत प्यार करते हैं। बच्चा ने दोबारा वही पुछा- ये क्या हो रहा है? तभी माँ ने उसे जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पाठ पढ़ाते  हुए कहा- बेटा, आम शब्दों में लोग इसे इको कहते हैं लेकिन असल में यही जिंदगी है।  जिंदगी में आपको जो कुछ भी मिलता है, वो आपका ही कहा या फिर किया हुआ होता है।  जिंदगी तो सिर्फ हमारे कार्यों का आईना होती है। यदि हमें अपनी टीम से श्रेष्ठता की उम्मीद रखना है, तो हमें खुद में श्रेष्ठता लाना होगा। यदि हम दूसरों से प्यार की उम्मीद करते हैं, तो हमें दूसरों से दिल खोलकर प्यार करना होगा।  आखिर में, जिंदगी हमें हर वो चीज लौटाती है, जो हमने दिया है।,  ऐसा ही एक उदाहरण और है | वो उदाहरण एक खेल का है | उस खेल का नाम है बुमरेग | ये एक ऐसा खेल है जिसमें हम बुमेरैंग को जितनी तेजी से फेंकते हैं | यह उतनी ही तेजी से हमारे पास पलट कर आता है | अगर विज्ञानं की भाषा में कहें तो यह न्यूटन का थर्ड लॉ फॉलो करती है वही क्रिया प्रतिक्रिया का | क्या यही हमारी जिंदगी भी नहीं है ?    गौर से सोंचिये ये तीनों उदाहरण यही बताते हैं की हम जो भी शब्द  दूसरों के लिए प्रयोग  करते हैं, वो एकदिन घूमकर हमारे पास आता ही है। हम जो भी इस दुनिया को देते हैं, एक दिन वह कई गुना होकर हमारे पास लौट आता है।        समुद्र हो , पहाड़ हो , नदी हो या प्रकृति का कोई अन्य हिस्सा , सब के सब मौन होते हुए भी हमें बहुत कुछ समझाते हैं |  इसी को हमारे पूर्वजों ने बहुत पहले ही प्रकृति से समझ कर एक सूत्र वाक्य में पिरो दिया था “ जैसी करनी वैसी भरनी “ |  जो दोगे वही मिलेगा |  जीवन का सबसे बड़ा सिद्धांत यही है, कि आप जो बोयेंगे, एकदिन वही आपको काटना पड़ेगा।  जो भी चीजें आप अपने लिए सबसे ज्यादा चाहते हैं, उसे सबसे ज्यादा बाँटिये। यदि आप दूसरों से सम्मान पाना चाहते हैं, तो आपको दिल खोलकर दूसरों का सम्मान करना होगा।  लेकिन यदि आप दूसरों का तिरस्कार करेंगे तो बदले में आपको भी वही मिलेगा।यदि आप चाहते हैं कि मुश्किल परिस्थितियों में दूसरे आपका साथ दें, तो आप उनकी मुश्किलों में उनके साथ खड़े रहिये। यदि आप प्रशंसा करेंगे, तो वही आपको मिलेगा।  यही तो जीने का नियम है,  हमारे पूर्वज धर्मिक संस्कार के रूप में हमें इसे मानना सिखा भी गए हैं | तभी तो हम  अन्न  प्राप्ति कि इच्छा  के लिए अन्न  दान , धन प्राप्ति कि इच्छा   के लिए अर्थ दान करते हैं |   पर जब बात सफलता कि आती है तो हम यह कहने से नहीं  चूकते कि आज कि अआज़ की गला काट प्रतिस्पर्धा के युग में किसी कि नीचे गिराए बिना आप ऊपर चढ़ नहीं सकते | युद्ध , प्रेम और सफलता के मार्ग में सब जायज है का नारा लागाते हुए हम दूसरे कि सफलता को देख कर मन में यह भाव पाल लेते हैं की अगर वह सफल है तो मैं सफल नहीं हो सकता | यही से इर्ष्या कि भावना पनपने लगती है जो अनेकों नकारात्मक विचारों का मूल है |                           डेल  कार्नेगी के अनुसार,  “जीतने का सबसे सरल रास्ता है कि आप दूसरों को उनकी जीत में मदद करें।यदि आप जीतना चाहते हैं, तो दूसरों की सफलता के हितैषी बनिए। जो आप देंगे वो कई गुना लौटकर आपके पास आएगा।”                   यह अलिखित नियम है कि अगर हम किसी कि  सफलता के बारे में नकारात्मक विचार रखेंगे तो सदा असफल ही होएंगे | इसका कारण यह भी है कि जब आप किसी सफल व्यक्ति से ईर्ष्या करते हैं तो आप का ध्यान  अपने काम में नहीं लगता बल्कि दूसरे को नीचा दिखाने  में लगा रहता है | सफलता तभी संभव है जब हम किसी काम में बिना आगा पीछा सोचे पूरी तरह से डूब जाए | ऐसा वही लोग कर पाते हैं जिन्हें अपने काम से प्यार होता है | इस प्यार का प्रतिशत जितना ज्यादा होता है व्यक्ति उतना ही सफल होता है | क्योंकि हम जिससे प्यार करते हैं हर हाल में उसकी  भलाई देखते हैं |  मान लीजिये जब आप चित्रकारी या लेखन से वास्तव में प्यार करतें है तो आप किसी दूसरे का चित्र या लेख देख पढ़ कर प्रसन्न होने कि वाह कितना अच्छा  काम किया जा रहा है इस क्षेत्र में | आप उसकी बारीकियों पर गौर कर उसे सराहेंगे | यह सराहना आप को और अच्छा काम करने कि प्रेरणा देगी |आप अपने क्षेत्र में … Read more

जमीन में गड़े हैं / jameen mein gade hain

                                                               एक बच्चा था | वह किसी गाँव में अपने माता – पिता व् दादी के साथ रहता था | उनका परिवार  सामान्य था | परन्तु तभी एक दुर्घटना घटी और उस बच्चे के माता –  पिता की मृत्यु हो गयी |माता –  पिता की मृत्यु होते ही उस परिवार की आर्थिक स्तिथि बिगड़ने लगी | दादी को मजबूरी में दुसरे घरों में काम पर जाना पड़ता | पर वो पैसे इतने ज्यादा नहीं थे की उनका घर अच्छे से चल पाता | ऐसी ही तंगहाली में वो बच्चा बड़ा होने लगा | अब वो स्कूल जाने लगा था | उसके दोस्त बन गए थे | बच्चा अक्सर देखता की उसके दोस्तों के घर उसके रिश्तेदार आते | उसके मन में प्रश्न उठता की आखिर उसके घर में रिश्तेदार क्यों नहीं आते हैं |आखिर वो हैं कहाँ ?  उसने रात में यही प्रश्न अपनी दादी से किया | दादी ने प्यार से उसका सर सहलाते हुए जवाब दिया की उसके  तो बहुत से रिश्तेदार हैं | पर क्या करे वो जमीन में गड़े हैं | बच्चे को दादी का जवाब अटपटा लगता पर उसने सच मान लिया  | स्कूल आते – जाते अक्सर वो उस जमीन के टुकड़े ( खेत )  को देखता और सोंचता की इसमें उसके रिश्तेदार गड़े हैं | वह दिल ही दिल में खुश होता की उसके  भी बहुत से रिश्तेदार हैं | जो दिखते भले ही न हों पर उसे उनके होने का अहसास तो है |  यही सब सुनते – सोंचते बच्चा बड़ा होने लगा | अब वो 14  वर्ष का किशोर था | एक दिन बच्चों की लड़ाई में किसी बच्चे ने कह दिया ,” तेरा है ही कौन , बस एक बूढ़ी दादी  , फिर इतनी हिम्मत मत कर की हमसे जुबान लड़ा | बच्चे को ये बात बहुत चुभ गयी | वो सीधा घर आकर दादी के पास गया और बोला ,” दादी अब मैं बच्चा नहीं हूँ , सच – सच बता दो मेरे रिश्तेदार कहाँ हैं ? दादी उस समय माला फेर रही थी | एक सेकंड रुक कर बोली ,” बार बार वही प्रश्न करते हो | देखते नहीं मैं माला जप रही हूँ | कितनी बार बताया की तेरे रिश्तेदार जमीन में गड़े हैं पर समझता ही नहीं |   अब बच्चे को गुस्सा आ गया | वह फावड़ा ले कर उस जमीन के टुकड़े के पास आ गया |  वो गुस्से में चिल्लाता जा रहा था  ,” देखे कहाँ हैं मेरे रिश्तेदार , यहाँ , यहाँ या वहां ” और जमीन खोदता जा रहा था | खोदते – खोदते उसने पूरा खेत ही खोद डाला पर कोई निकला नहीं | तभी दादी वहां आ गयीं और बोली अब तुमने खेत खोद ही डाला है तो इसमें बीज भी बो दो | बच्चे ने बीज बो दिए | कुछ दिन बाद नन्हे – नन्हे पौधे निकल आये | बच्चे को उन्हें देख कर ख़ुशी हुई | वह रोज उन्हें  खाद पानी देने लगा |  जमीन उपजाऊ थी | अच्छी पैदावार हुई | फसल बेंच कर उनके यहाँ  धन आ गया | अब वो गरीब नहीं थे | अब उसने नए बीज बो दिए | नयी फसल और …और पैसा | पूरे  गाँव में उनकी अमीरी के चर्चे होने लगे |                     एक दिन घर का दरवाजा खटका | दूर के चाचा आये थे | बेटी की शादी का न्यौता ले कर | फिर तो रोज दरवाजे खटकने लगे | कभी कोई रिश्तेदार तो कभी कोई रिश्तेदार | कभी तो इतने रिश्तेदार आ जाते की समस्या हो जाती की उन्हें बिठाए कहाँ | अब बच्चा खुश था | वो जान गया था की दादी का ” सब रिश्तेदार जमीन में गड़े हैं”  कहने का क्या मतलब था | दोस्तों आज हम self love और self development की बात करते हैं | पर हमारी लोक कथाओं में पहले ही इसे कितनी ख़ूबसूरती से बता दिया गया है की अगर हम चाहते हैं की हमारे रिश्तेनातेदार हमें पूंछे | तो हमें अपने विकास पर ध्यान देना होगा | धन केवल धन नहीं है | यह एक शक्ति भी है | जिसके कारण हमारे सामाजिक रिश्ते अच्छे से चलते हैं |मेहनत व् परिश्रम से धन कमा  कर प्रतिष्ठा अर्जित करना कोई अपराध नहीं है |  ओमकार मणि त्रिपाठी  ( पूर्व लेख से लिया गया )  रिलेटेड पोस्ट …… शैतान का सौदा अच्छी मम्मी ,गन्दी मम्मी जरा झुको तो सही एक चुटकी जहर रोजाना दो पत्ते

एक गुस्सैल आदमी

उसे बात – बात पर गुस्सा आता था क्योंकि उसे लगता था कुछ भी ठीक नहीं है वह टकराना चाहता था व्यवस्था से यहाँ तक की ईश्वर से जिसने किया है इतना भेद – भाव आदमी और आदमी में जब हुंकारता व्यवस्था के खिलाफ उसके चारों और खड़ी  हो जाती एक भीड़ जिसे यकीन था की एक दिन वो सब बदल देगा पर भीड़ बदलना चाहती उसका गुस्सा वो उसे दुलराती – पुचकारती , समझाती काना वही सब बस कम कर दो अपना गुस्सा वो फिर हुंकारता , नकारता और चल पड़ता अपने लक्ष्य की ओर पीछे – पीछे चल पड़ती भीड़ उसकी अनुगामी बन कर व्यवस्था को बदलने के लिए एक दिन उसने समझा गुस्से का अर्थ शास्त्र और त्याग दिया गुस्सा अब वो शांति से बात करता कुछ बढ़ा कर कुछ घटा कर बीच – बीच में जोड़ देता कुछ जुमले जो साबित कर देते की उसमें भी है विनोदप्रियता सुना है अब उसके चारों ओर की भीड़ छंटने लगी उसके गुस्से में एक आग थी जिससे लोगों को आस थी उसका गुस्सा खत्म होते ही खत्म हो गया लोगों का यकीन व्यवस्था परिवर्तन पर सुना है अब वो फिर से सीख रहा है गुस्सा करना और भीड़ फिर से ढूंढ रही है एक गुस्सैल आदमी जिसके गुस्से में छिपा हो यकीन व्यवस्था परिवर्तन का स्व . ओमकार मणि त्रिपाठी                                               रिलेटेड पोस्ट ….. ओमकार मणि त्रिपाठी की सात कवितायें जिंदगी कुछ यूँ तनहा होने लगी है सच की राहो में देखे है कांटे बहुत इंतज़ार

आलोचना पर ओमकार मणि त्रिपाठी के 11 अनमोल विचार

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उ त्तर प्रदेश के कारागार मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया से ओमकार मणि त्रिपाठी की विशेष बातचीत

उ त्तर प्रदेश के कारागार मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया से विशेष साक्षात्कार पदों का संक्षिप्त ब्यौरा महासचिव- स्टूडंेट फेडरेशन आॅफ इंडिया (1963.64) अध्यक्ष-अखिलभारतीय सिख छात्र संघ (1968 .1972) व पंजाबी भलाई मंच प्रचार सचिव-शिरोमणि अकाली दल (1975.77. 1980 .82) महासचिव-शिरोमणि अकाली दल (1985.87) नेता शिरोमणि अकाली दल ग्रुप-आठवीं लोकसभा केन्द्रीय मंत्री-समाज कल्याण विभाग (1996-98) राजनीतिक सफर बलवंत सिंह रामूवालिया का जन्म 15 मार्च, 1942 को पंजाब के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ। उनके पिता श्री करनैल सिंह पारस एक सुविख्यात कवि थे। पिता से विरासत में मिला भावुक हृदय बचपन से ही लोगों के दुःख-दर्द को देखकर व्यथित हो जाता। गरीब, बेसहारा और बेबस लोगों के लिए कुछ ठोस कदम उठाने चाहिए, ये बात उन्हें हर पल बेचैन करती और इसके लिए उन्होंने राजनीति का वो मार्ग चुना, जो त्याग और सेवा के रास्ते पर चलता है। श्री रामूवालिया ने अपने राजनैतिक कॅरियर की शुरुआत अपने छात्र जीवन में ही कर दी थी। 1963 में उन्हें स्टूडंेट फेडरेशन आॅफ इंडिया का महासचिव चुना गया। तत्पश्चात वे अखिल भारतीय सिख छात्र संघ में सम्मिलित हुए और 1968 से 1972 तक उसके अध्यक्ष रहे। बाद में उन्होंने अकाली दल की सदस्यता ग्रहण की और दो बार फरीदकोट व संगरूर से सांसद चुने गये। अकाली दल छोड़ने के पश्चात 1996 में वह राज्यसभा के लिए निर्वाचित हुए व केन्द्रीय मंत्री बने। उन्होंने ”लोक भलाई पार्टी“ नामक अपनी एक पार्टी भी बनायी थी, जिसका 2011 में अकाली दल में विलय हो गया। वर्तमान में वे उत्तरप्रदेश सरकार में जेल मंत्री हैं। विचारों में मानवीय भावनाओं-संवेदनाओं की झलक स्वभाव से वे मितभाषी और मृदुभाषी हैं, लेकिन जब बात मानवाधिकारों की आती है, तो वे काफी मुखर हो जाते हैं। समाज के शोषित-वंचित तबके की वेदना और आम आदमी की व्यथा उन्हें मानवाधिकारों की रक्षा हेतु संघर्ष के लिए प्रेरित करती है। राजनीति के शुष्क धरातल पर एक लम्बे सफर के बावजूद उनके विचारों में मानवीय भावनाओं-संवेदनाओं की झलक साफ दिखाई देती है। सत्ता को वे साध्य नहीं, बल्कि एक ऐसा साधन मानते हैं, जिसके माध्यम से समाज के उत्थान को नए आयाम दिए जा सकते हैं। जी हां! हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के कारागार मंत्री बलवंत सिंह रामूवालिया की, जिन्हें पंजाब से बुलाकर उत्तर प्रदेश में मंत्री बनाया गया है और पदभार संभालने के बाद से वे लगातार जेल सुधार और बंदीगृहों में मानवाधिकारों का उल्लंघन रोकने के लिए प्रयासरत हैं। हाल ही में ‘अटूट बंधन’ के प्रधान संपादक ओमकार मणि त्रिपाठी ने श्री रामूवालिया से उनके आवास पर विशेष मुलाकात करके विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर उनका मन टटोलने की कोशिश की। साक्षात्कार के दौरान श्री रामूवालिया ने पूछे गए हर सवाल के जवाब में बड़े ही बेबाक ढंग से अपनी राय स्पष्ट की। सहज एवं सरल जीवनशैली उनके व्यक्तित्व के हर पहलू में प्रतिबिंबित होती है। 74 वर्षीय श्री रामूवालिया इससे पहले पंजाब व केन्द्र सरकार में भी कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित कर चुके हैं। प्रस्तुत हैं साक्षात्कार के प्रमुख अंश। उत्तर प्रदेश के कारागार मंत्री के रूप में आपकी प्राथमिकताएं क्या हैं? मेरा स्पष्ट मानना है कि सत्ता किसी के भी हाथ में हो, सरकार किसी की भी हो, लेकिन न्याय का शासन होना चाहिए। सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों को आम लोगों की समस्याओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। सत्ता की चैखट पर कमजोर से कमजोर व्यक्ति को भी इंसाफ मिलना चाहिए। कारागार मंत्री के रूप में मेरी सर्वोच्च प्राथमिकता यही है कि जेलों में किसी भी कीमत पर कैदियों के मानवाधिकारों का उल्लंघन न होने दिया जाए। जो लोग विभिन्न कारागारों में बंद हैं, वे भी इसी देश के ही नागरिक हैं। जेल में बंद किसी भी कैदी के साथ ऐसा कोई व्यवहार नहीं होना चाहिए, जिसे अमानवीय या अमानुषिक कहा जा सके। पदभार संभालने के बाद से मैं लगातार जेल व्यवस्था में सुधार के लिए प्रयासरत हूँ। आपको पंजाब से बुलाकर उत्तर प्रदेश में मंत्री बनाया गया है। उत्तर प्रदेश आपको कैसा लगा? उत्तर प्रदेश की जो बात मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगी, वह है ज्यादातर लोगों में सामाजिक व सांप्रदायिक सद्भाव की भावना। यहां सिख समुदाय के लोगों और हिन्दुओं में जो भाईचारा देखने को मिलता है, वह काफी काबिले तारीफ है। आपकी नजर में इस समय समाज की प्रमुख समस्याएं क्या हैं और उनके समाधान किस तरह तलाशे जा सकते हैं। हमारा समाज वैसे तो कई समस्याओं का सामना कर रहा है, लेकिन दहेज व्यवस्था अभी भी हमारे समाज के लिए एक बड़ी समस्या बनी हुई है। दूध में आप जितनी शक्कर डालोगे, दूध उतना ही मीठा हो जाएगा, लेकिन शादी में आप जितना दहेज डालोगे, शादी उतनी ही कड़वी हो जाएगी। शादी-ब्याह खुशी के माध्यम बनने चाहिए, लेकिन दहेज की वजह से कई शादियां झगड़े की पतीली का रूप धारण कर ले रही हैं। बात सिर्फ दहेज तक ही सीमित नहीं है, शादियों में बेतहाशा खर्च की बढ़ती प्रवृत्ति भी समाज के लिए शुभ संकेत नहीं है। आज लगभग हर समुदाय की 95 प्रतिशत शादियों में यही देखने को मिलता है कि क्षमता से अधिक खर्च किया जा रहा है। कहीं-कहीं लड़के वालों की तरफ से लड़की वालों पर पंचसितारा होटलों में शादी समारोह आयोजित करने के लिए दबाव तक डाला जाता है। इस तरह की खर्चीली शादियां किसी के भी हित में नहीं हैं। यह धन की बर्बादी तो है ही, साथ ही संबंधों की बर्बादी भी है। फिजूलखर्ची और आडंबर की बुनियाद पर अच्छे रिश्तों की इमारत नहीं खड़ी की जा सकती। आजकल सहिष्णुता-असहिष्णुता को लेकर देश में बहुत चर्चा हो रही है। इस संबंध में आपकी क्या राय है? यह मुल्क सहिष्णु मुल्क है। भारतीय संस्कृति विविधता पर आधारित है। समन्वय तथा सामंजस्य भारतीय समाज की विशेषता है, लेकिन कुछ लोग सिर्फ अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हैं, जो देश और समाज के हित में नहीं है। इससे विघटनकारी और विभाजनकारी तत्वों को बढ़ावा मिलता है। अनेकता में एकता हमारी खासियत है, इसलिए हमें उन मुद्दों को तवज्जो नहीं देनी चाहिए, जिनसे पारस्परिक विश्वास और सद्भाव बिगड़ता हो। देशभक्ति भी आजकल राजनीतिक मुद्दा बना हुआ है? इस संबंध में आप क्या कहना चाहेंगे? यह देशभक्ति का मुद्दा सिर्फ वोट बटोरने के लिए उछाला … Read more

ऊर्जावर्धक होती है सकारात्मक और सार्थक सोच

हमारे जीवन की वर्तमान दशा और दिशा ही हमारा भविष्य तय करती हैं. इंसान सोचता मन से है और करता अपने तन से है  यानी जीवन की सरिता तन और मन जैसे दो किनारों के बीच बहती रहती है.मन के अंदर के विचार ही बाह्य जगत में नवीन आकार ग्रहण करते हैं। जो कल्पना चित्र अंदर पैदा होता है, वही बाहर स्थूल रूप में प्रकट होता है। सीधी-सी बात है कि हर विचार पहले मन में ही उत्पन्न होता है और मनुष्य अपने विचार के आधार पर ही अपना व्यवहार निश्चित करता है। विचारों का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है.सुख-दुःख , हानि-लाभ,उन्नति-अवनति,सफलता-असफलता, सभी कुछ हमारे अपने विचारों पर निर्भर करते हैं। जैसे विचार होते हैं,वैसा ही हमारा जीवन बनता है। संसार कल्पवृक्ष है, इसकी छाया तले बैठकर हम जो विचार करेंगे, वैसे ही परिणाम हमें प्राप्त होंगे। जिनके दिलो-दि माग सद्विचारों से भरे रहते हैं, वे पग-पग पर जीवन के महान वरदानों से विभूषित होते हैं। जो अंधकारमय, निराशावादी विचार रखते हैं, उनका जीवन कभी उन्नत और उत्कृष्ट नहीं बन सकता। कुएं में मुंह करके आवाज देने पर वैसी ही प्रतिध्वनि उत्पन्न होती है। संसार भी इस कुएं की आवाज की तरह ही है। मनुष्य जैसा सोचता है एवं विचारता है, वैसी ही प्रतिक्रिया वातावरण में होती है। मनुष्य के विचार शक्तिशाली चुंबक की तरह होते हैं,जो अपने समानधर्मी विचारों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। विचारों में एक प्रकार की चेतना शक्ति होती है। किसी भी प्रकार के विचारों के एक स्थान पर केंद्रित होते रहने पर उनकी सूक्ष्म चेतना शक्ति घनीभूत होती जाती है. प्रत्येक विचार आत्मा और बुध्दि के संसर्ग से पैदा होता है। बुध्दि उसका आकार प्रकार निर्धारित करती है तो आत्मा उसमें चेतना फूंकती है। इन  विचारों का जब केंद्रीयकरण हो जाता है,तो एक प्रचंड शक्ति का उदभव होता है।  सुन्दर और सकारात्मक विचार, मनुष्य के जीवन को स्वर्ग और शांत बना देते हैं और इसी प्रकार नकारात्मक सोच और निराशा उसके जीवन को नरक बना देते हैं. नकारात्मक और विध्वंसक सोच जब मन में पैदा हो जाती है और मन में फैलने लगती है,तो बहुत तेज़ी से पूरे मन को अपने क़ब्ज़े में ले लेती है और इस स्थिति में हम पूरी तरह से नकारात्मक सोच के चंगुल में फंस जाते हैं। सकारात्मक और सार्थक सोच ऊर्जावर्धक होती है, जो अभ्यास, बार-बार दोहराए जाने और सीखने से मन में पैदा होती  है और मनुष्य के जीवन को दिशा निर्देशित करती है.  हर व्यक्ति के जीवन में कभी न कभी निराशा के पल आते ही हैं .निराशा के उन पलो में सकारात्मक विचार संजीवनी का काम करते हैं.जो सकारात्मक हैं और आशा की उर्जा से सराबोर हैं,उन्हें सकारात्मक विचार अतिरिक्त उर्जा देते हैं और यही वजह है कि ” अटूट बंधन ” पहले अंक से ही सकारात्मक विचारों वाले प्रेरणादाई लेखो को प्राथमिकता देता आ रहा है.हमारी हमेशा यही कोशिश रहती है कि इस पत्रिका में प्रकाशित हर रचना पाठको के मन में नवचेतना का संचार करे.निराशा के अन्धकार से लड़ने और आशावाद का उजाला फैलाने की हमारी इस कोशिश को आप सबने अपार स्नेह दिया है और हमें पूरा यकीन है कि भविष्य में भी इस पत्रिका को इसी तरह आपका स्नेह मिलता रहेगा.

निराश लोगो के लिए आशा की किरण लेकर आता है वसंत

जनवरी की कडकडाती सर्दी फरवरी में धीरे-धीरे गुलाबी होने लगती है.इसी महीने में ऋतुराज वसंत का आगमन होता है और वासंती हवा जैसे ही तन-मन को स्पर्श करती है,तो समस्त मानवता शीत की ठिठुरी चादर छोड़कर हर्षोल्लास मनाने लगतीहै,क्योंकि जिस तरह से यौवन मानव जीवन का वसंत है,उसी तरह से वसंत इस सृष्टि का यौवन है,इसीलिये वसंत ऋतु का आगमन होते ही प्रकृति सोलह कलाओ में खिल उठती है. पौराणिक कथाओ में वसंत को कामदेव का पुत्र कहा गया है. शायद इसीलिये रूप और सौन्दर्य के देवता कामदेव के पुत्र का स्वागत करने के लिए प्रकृति झूम उठती है.पेड़ उसके लिए नवपल्लव का पालना डालते हैं,फूल वस्त्र पहनाते हैं,पवन झुलाती है और कोयल उसे गीत सुनकर बहलाती है.   वसंत ऋतु निराश लोगो के लिए आशा की किरण लेकर भी आती है.पतझड़ में वृक्षों के पत्तो का गिरना और सृष्टि का पुन नवपल्लवित होकर फिर से निखर जाना निराशा से घिरे हुए मानव को यह सन्देश देता है कि इसी तरह वह भीअपने जीवन में से दुःख और अवसाद के पत्तो को झाड़कर फिर से नवसृजन कर सकता है.जिन्दगी का हर पतझड़ यह इंगित करता है कि पतझड़ के बाद फिर से नए पत्ते आयेंगे,फिर से फल लगेंगे और सुखो की बगिया फिर से लहलहा उठेगी.  फरवरी का दूसरा सप्ताह आते-आते वेलेंटाइन डे का शोर भी मच जाता है.वेलेंटाइन डे के पक्ष-विपक्ष में तर्कों-दलीलों का संग्राम सा छिड़ जाता है.युवाओ का एक वर्ग इसे अपनी आजादी से जोड़कर देखता है,तो वही समाज का एक वर्ग इसे भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात मानता है.कोई इसे आधुनिक संस्कृति कहता है,तो कोई पाश्चात्य विकृति.कुल मिलाकर  भारतीय संस्कृति हो या पाश्चात्य संस्कृति,लेकिन फरवरी माह प्रेमोत्सव से जुड़ा हुआ है. प्रेम शब्द इतना व्यापक है कि इसे पूरी तरह से परिभाषित कर पाना किसी के लिए भी मुश्किल है,लेकिन दुर्भाग्य से मशीनीकरण और बाजारवाद के आज के इस दौर में प्रेम शब्द की व्यापकता धीरे-धीरे संकीर्ण होकर सिमटती जा रही है. महान दार्शनिक ओशो के अनुसार आदमी के व्यक्तित्व के तीन तल हैं: उसका शरीर विज्ञान, उसका शरीर, उसका मनोविज्ञान, उसका मन और उसका अंतरतम या शाश्वत आत्मा। प्रेम इन तीनों तलों पर हो सकता है लेकिन उसकीगुणवत्ताएं अलग होंगी। प्रेम जब सिर्फ शरीर  के तल पर होता है,तो वह प्रेम नहीं महज कामुकता होती है,लेकिन आजकल ज्यादातर इसी दैहिक आकर्षण को ही प्रेम समझा जा रहा है,जिसकी वजह से प्रेम शब्द अपना मूल अर्थ खोता जा रहाहै.प्रेम की वास्तविक परिभाषा उसके मूल स्वरुप पर चर्चा के लिए ही हमने अटूट बंधन का फरवरी अंक प्रेम विशेषांक के रूप में निकालने का निर्णय लिया है.पत्रिका के लिए यह गौरव का विषय है कि अपने तीसरे पड़ाव पर ही पत्रिका का जनवरी अंक देश के प्रमुख महानगरो के 56 बुकस्टालों पर पहुँच गया और फरवरी अंक लगभग 100 से ज्यादा बुकस्टालों पर उपलब्ध रहने की उम्मीद है.हमें पूरी उम्मीद है कि पहले के तीन अंको की तरह ही इस अंक को भी आप सबका अपार स्नेह और आशीर्वाद मिलेगा. ओमकार मणि त्रिपाठी  यह भी पढ़ें …. निराश लोगों के लिए आशा की किरण ले कर आता है वसंत अपरिभाषित है प्रेम प्रेम के रंग हज़ार -जो डूबे  सो हो पार                                                         आई लव यू -यानी जादू की झप्पी आपको  लेख   “निराश लोगो के लिए आशा की किरण लेकर आता  है वसंत ” कैसा लगा    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

इमानदारी पर ओमकार मणि त्रिपाठी के 11 अनमोल विचार

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