क्या आपका नाम भाग्यशाली है ?

                                                                           क्या आपका नाम भाग्यशाली है ? अंकशास्त्र में जितना महत्व मूलांक और भाग्यांक का है,उतना ही महत्व नामांक का भी है.नाम के अक्षरों का योग नामांक कहलाता है। मूलांक और भाग्यांक का ज्ञान तो लगभग सभी को होता है,लेकिन नामांक की गणना करना बेहद जटिल कार्य है। नामांक को सौभाग्य अंक भी कहा जाता है। किसी भी जातक की जन्मतिथि का योग मूलांक होता है, जैसे 4 ,22,31 तारीखों को जन्मे जातकों का मूलांक 4 कहलाएगा।  जन्म की तिथि, माह व वर्ष का योग भाग्यांक होता है, जैसे 31 अक्टूबर माह 1949 का भाग्यांक  3+ 1+1+0 +1+9+4+9 =28=10 =1होगा।अंकशास्त्र की मान्यताओ के अनुसार नाम अगर मूलांक और भाग्यांक  के अनुकूल नहीं होता, तो व्यक्ति को जीवन में कई तरह की असुविधाओ का सामना करना पड़ता है.आइये हम जानते हैं कि नामांक की गणना कैसे की जाती है?  A I J Q Y = 1 B K R = 2 C G L S = 3 D M T = 4 E H N X = 5 U V W = 6 O Z = 7 F P = 8  कीरो पद्दति के मुताबिक अंग्रेजी  के अक्षरों को दिये गये इन अंकों के आधार पर ही नामांक की गणना की जाती  है.खास बात यह है कि किसी भी अक्षर को 9 अंक नहीं दिया गया है. आप भी इन ऊपर दिये गये अंकों से अपना नामांक निकाल सकते हैं। उदाहरण के लिए यदि किसी का नाम mohan है,तो उसका नामांक 22 यानि 2+2=4 होगा.अब mohan की जन्मतिथि यदि 4,13,22 या 31 हो,तो उसे जीवन में ज्यादातर सफलताही मिलेगी,किन्तु यदि नामांक,मूलांक और भाग्यांक में सामंजस्य नहीं है,तो जीवन में अनेक तरह की कठिनाइयाँ आ सकती हैं.हम अपनी जन्मतिथि नहीं बदल सकते,इसलिए जन्मांक और मूलांक नहीं बदले जा सकते.यदि नामांक,मूलांक और भाग्यांक में सामंजस्य न हो ,तो हम सिर्फ इतना ही कर सकते हैं कि नाम की स्पेलिंग में थोडा फेरबदल करके नामांक को जन्मांक और मूलांक के अनुकूल बना सकते हैं.कई फ़िल्मी सितारों और राजनीतिज्ञों ने यह प्रयोग आजमाया भी है.फिर देर किस बात की. आप भी अपने नामांक को अपने मूलांक और भाग्यांक से मिलाकर देखिये और यदि इनमे सही तालमेल न हो ,तो नाम में थोडा फेरबदल करके तालमेल बिठा लीजिये. ओमकार मणि त्रिपाठी 

रिश्तों की तस्वीर का एक पहलू

रिश्तों की तस्वीर का एक पहलू                                                                                        इस संसार में हर व्यक्ति और वस्तु गुण-दोष से युक्त है,लेकिन रिश्तों की दुनिया में यह नियम लागू नहीं हो पाता। मन और आत्मा के धरातल पर रिश्ते जब प्रगाढ होते हैं,तो सिर्फ गुण ही गुण दिखाई देते हैं और दोष दिखना बंद हो जाते हैं या दूसरे शब्दों में कहें,तो जब किसी को किसी में दोष दिखाई देना बंद हो जाएं,तो वह रिश्ता प्रगाढता के चरम पर होता है। इसीलिए दुनिया के सबसे बडे और महान मां के रिश्ते में अक्सर यह देखने को मिलता है कि बेटा कितना ही बुरा क्यों न हो,मां को बेटे की बुराइयां नजर नहीं आतीं। जब हम किसी से मिलते हैं,तो उसके तन या मन के आधार पर आकर्षित या विकर्षित होते हैं। तन का आकर्षण दीर्घावधि तक नहीं रह सकता,क्योंकि तन की एक निर्धारित आयु है और यौवन के चरम पर पहुंचने के बाद दिन-ब-दिन तन की चमक फीकी पडने लगती है।लेकिन जब किसी का मन और आत्मा आकर्षण का केन्द्र बनता है,किसी के विचार मन को भाने लगते हैं,तो उसका तन कैसा भी हो,सर्वाधिक सुन्दर लगने लगता है। दोनों तरह के आकर्षणों में मूलभूत अंतर यही है कि तन का आकर्षण बहुधा मन की देहरी तक नहीं पहुंच पाता,जबकि मन और आत्मा का आकर्षण स्वत: तन को आकर्षक बना देता है। जब किसी के विचार या उसकी विचारशैली हृदय में प्रवेश करती है,तो धीरे-धीरे एक ऐसी स्थिति आती है,जब उसमें कोई कमी और दोष दिखना बंद हो जाते हैं।उसकी कमियां भी खूबियां जैसी दिखने लगती हैं। इसका परिणाम यह होता है कि कोई संशय नहीं रह जाता और अटूट विश्‍वास का सृजन होता है और यह तो सर्वविदित है कि विश्‍वास की किसी भी रिश्ते की सबसे मजबूत नींव होती है। रिश्ते उस समय और प्रगाढ हो जाते हैं,जब यह विश्‍वास गर्व का रुप धारण कर लेता है।यह विश्‍वास की चरमावस्था है,जब किसी को अपने साथी के साथ पर गर्व होने लगता है।विश्‍वास की नींव पर टिकी रिश्तों की इमारत को जब गर्व का गुम्बद मिलता है,तो वह रिश्ता एक मंदिर बन जाता है। जब किसी रिश्ते के प्रति कोई गौरवान्वित होता है,तो यह गौरव आत्मविश्‍वास का सम्बल भी बन जाता है। जिस रिश्ते में भाव पक्ष जितना मजबूत होता है,भौतिक पक्ष का उतना ही अभाव होता जाता है। इन रिश्तों में न तो शरीर का कोई महत्व होaता है और न ही क्षणभंगुर शरीर की किसी तस्वीर का,क्योंकि इस तरह के रिश्ते में शरीर का हर रुप और उस शरीर की हर तस्वीर खुद-ब-खुद दुनिया की सबसे खूबसूरत तस्वीर दिखेगी। ओमकार मणि त्रिपाठी  चित्र गूगल से साभार atoot bandhan ………… हमारा फेस बुक पेज 

मूलांक व् भाग्यांक

                                 मूलांक व् भाग्यांक  अंकशास्त्र में हर अंक किसी न किसी ग्रह से संबंद्ध है। अंक ज्योतिष में 1 से लेकर 9 तक की संख्या ग्रहों, उनकी दशा व उनके लक्षण को दर्शाता है। आपकी जन्मतिथि यदि 1 से 9 तक है जो वह अंक आपका मूलांक है, लेकिन यदि अंक 9 से अधिक है तो दोनों अंकों के जोड़ से जो अंक प्राप्त होगा उसे मूलांक माना जाएगा। उदाहरण के लिए यदि आपकी जन्म तिथि 14 (1+4) है तो मूलांक पांच होगा। इसी तरह पूरी जन्म तिथि को जोड़ने से जो अंक प्राप्त होगा, उसे अंक शास्त्र में भाग्यांक कहते है। उदाहरण के लिए यदि आपकी जन्म तिथि 14 नवंबर 1977 है तो आपका भाग्यांक(1+4+1+1+1+9+7+7) 4 होगा। मूलांक जहां व्यक्ति के चरित्र को दर्शाता है, वहीं भाग्यांक भविष्य की घटनाओं का संकेत देता है। अंकशास्त्र में मूलांक व भाग्यांक दोनों की गणना का प्रभाव है। यदि किसी व्यक्ति का भाग्यांक उसके मूलांक से अधिक प्रबल है तो मूलांक अपना चरित्र करीब-करीब खो देता है, लेकिन यदि मूलांक भाग्यांक से अधिक प्रबल है तो भाग्यांक उस पर अधिक हावी नहीं हो पाता है। किसी के जन्म तिथि में एक अंक दो से अधिक बार आता है तो वह अंक व उसका मालिक ग्रह अपने मूल चरित्र को छोड़कर विपरीत अंक व उसके मालिक ग्रह के चरित्र को अपना लेता है। स्वभावत: 8 अंक वाले अंतरमुखी होते हैं, क्योंकि उनका मालिक शनि ग्रह है। लेकिन यदि कोई व्यक्ति 8 अगस्त 2008 को पैदा हुआ हो तो वह बहिमुखी होगा। क्योंकि उसके जन्मतिथि में 8 की बहुतायत के चलते वह विपरीत अंक 4 व उसके मालिक ग्रह राहु की चारित्रिक विशेषता को अपना लेगा, जिस कारण उसका स्वभाग बहिर्मुखी हो जाएगा। शादी के वक्त अक्सर दो लोगों की ज्योतिषीय कुण्डली मिलाई जाती है। अंक शास्त्र में यह और भी आसान है। अंक शास्त्र में जन्मतिथि के आधार पर दो लोगों के स्वभाग व भविष्य की तुलना आसानी से की जाती है। मान लीजिए यदि दो व्यक्तियों की जन्मतिथि, माह व वर्ष में कोई एक अंक दो से अधिक बार आ रहा है तो दोनों में किसी भी सूरत में नहीं निभ सकती है। ऐसे व्यक्तियों की आपस में शादी न हो तो ही बेहतर है।

4 अप्रैल 2015 के पूर्ण चन्द्र ग्रहण का विभिन्न राशियों पर असर

               चंद्रग्रहण  क्या है चन्द्रग्रहण – वस्तुत :चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्तिथि को कहते हैं जब चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे उसकी छाया में आ  जाता है ऐसा तभी हो सकता है जब सूर्य चंद्रमा व् पृथ्वी एक सीढ़ी रेखा में अवस्तिथ हों | इस ज्यामिति प्रतिबन्ध के कारण चन्द्र ग्रहण केवल पूर्णिमा को ही दिख सकता है | सूर्य ग्रहण के विपरीत जो पृथ्वी पर केवल थोड़े ही भाग में दिख पाता है ,चन्द्र ग्रहण पृथ्वी के रात्रि  पक्ष वाले संपूर्ण भाग में दिखता है | चंद्रमा कि छाया कि लघुता के कारण सूर्य ग्रहण जहाँ कुछ मिनटों के लिए ही दिखाई पड़ता है चंद्रग्रहण के दिखाई देने कि अवधि कई घंटों कि होती है | चन्द्र ग्रहण सूर्य ग्रहण के विपरीत बिना किसी सुरक्षा के खुली आँखों से भी देखा जा सकता है | सूर्य या चन्द्र ग्रहण के दौरान निकलने वाली हानिकारक  किरणों का प्रभाव पृथ्वी पर पड़ता है ।      कल का चंद्रग्रहण  4 अप्रैल चैत्र शुक्ल पूर्णिमा, शनिवार को हनुमान जयंती के दिन ग्रस्तोदय चंद्रग्रहण  होने से ग्रहण के पश्चात ही हनुमान जयंती के कार्यक्रम होंगे। सूतक प्रातः 4.45 से प्रारंभ होगा। ग्रहण समय दोपहर 3.45 से प्रारंभ होकर सायं 7.19 पर समाप्त होगा। खग्रास चंद्रग्रहण – भारत में ग्रस्तोदय खण्डग्रास चन्द्र ग्रहण द्रश्य               इस वर्ष हनुमान जयंती पर पूर्ण चन्द्रग्रहण का संयोग 4 अप्रेल 2015 को बन रहा हैं। 4 अप्रेल 2015 को इस ग्रहण का स्पर्श भारत में कही भी द्रश्य नहीं होगा। यह ग्रहण भारत के साथ साथ चीन,ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी  व दक्षिणी अमेरिका के पूर्वी भाग स्थित नगरो में भी दिखाई देगा..। चैत्र शुक्ल पूर्णिमा शनिवार दिनांक 4 अप्रैल 2015 ई को दोपहर बाद से सायकाल तक होने वाला खग्रास चन्द्र ग्रहण सम्पूर्ण भारत में ग्रस्तोदय खण्डग्रास के रूप में दिखाई देगा। इस वर्ष 2015 में शनिवार के साथ अजब संयोग जुड़ा हुआ है। अप्रैल, जून, अगस्त, अक्टूबर और दिसंबर में जिस तारीख को शनिवार पड़ रहा है, उस तारीख और माह के अंक एक ही है। जैसे 4 अप्रैल 2015 (शनिवार) को चन्द्र प्रधान हस्त नक्षत्र की युति बन रही है, जो कि हर तरह के रोगों का क्षरण करने वाली युति बन रही है। इस दिन का मूलांक  भी आठ है, जो कि शनि प्रधान है।हनुमान जन्मोत्सव पर इस बार चन्द्रग्रहण की छाया है।  4 अप्रेल 2015 को पड़ने वाली हनुमान जयंती पर अल्प खण्डग्रास चंद्र ग्रहण होगा। इस दिन हनुमत आराधना का विशेष महत्व होगा। इससे पहले 15 अप्रेल 1995 को ग्रस्तोदय चन्द्रग्रहण और 2 अप्रेल 1996 को खण्डग्रास चंद्रग्रहण हनुमान जयंती पर आए थे।इस दिन जातक को शनि की ढैय्या व साढ़े साती से बचने के लिए हनुमान जी उपासना करनी चाहिए ।  मंगल दोष निवारण के लिए भी हनुमत उपासना श्रेष्ठ सिद्ध होगी। इस ग्रहण के प्रारम्भ व समाप्ति काल भारतीय स्टैंडर्ड टाइम में इस प्रकार है – ग्रहण प्रारम्भ – दोपहर बाद – 03. 45 बजे ग्रहण समाप्त – सांय – 07 .15 बजे ग्रहण का सूतक — इस ग्रहण का सूतक दिनांक 4 अप्रेल 2015 ई को सूर्योदय  के साथ ही प्रारम्भ हो जायेगा। सुबह ५ बजकर २८ मिनट पर सूतक आरम्भ हो जाएगा । ग्रहण का मोक्ष  ७ ;१५ मिनट पर होगा । सूतक काल में कोई भी धार्मिक काम ( हनुमान  जयंती कि पूजा) आदि न करे। या तो सूतक काल से पहले पूजा करे या मोक्ष के बाद करे।    सूतक प्रारम्भ हो जाने बाद [बच्चो वृद्ध व रोगियों को छोड़कर ] धार्मिक जनो को भोजन आदि नहीं करना चाहिए।भारत में केवल २२ मिनट  ही चन्द्र ग्रहण दिखाई देगा  ग्रहण का  पहला स्पर्श –३ :४५  मध्य काल –५ :३०  मोक्ष -७ :१५  ४ अप्रैल २०१५ के पूर्ण चन्द्रग्रहण का विभिन्न राशियों पर प्रभाव –               ४ अप्रैल २०१५ के पूर्ण चंद्रग्रहण का विभिन्न राशियों पर निम्नवत  प्रभाव पड़ेगा। ………….  मेष राशि:            ग्रहण आपकी राशि से छठी राशि में पड़ रहा है,इसलिए मिश्रित फल देखने को मिल सकते हैं. कुछ बाधाओं के बाद कार्य, व्यापार व आय में वृद्धि के साथ-साथ योजनाएं सफल हो सकती हैं,लेकिन स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.मन में अकारण की चिंता बनी रह सकती है.  वृष राशि:        ग्रहण आपकी राशि से पांचवे घर होने जा रहा है,इसलिए आपको अधिक भाग-दौड़ करनी पड़ सकती है. लंबित कार्य बनने व प्रतिष्ठा में वृद्धि के संकेत होने के बावजूद संतान पक्ष की चिंता सता सकती है. अन्य परिजनों की पीड़ा भी परेशान कर सकती है.बजट का ध्यान रखें,क्योंकि खर्च बढ़ सकता है. मिथुन राशि           धनलाभ व आनंद के योग हैं,लेकिन पारिवारिक क्लेश व मित्रों का सामना भी करना पड़ सकता है.विभिन्न कार्यों पर व्यय बढ़ सकता है. जमीन, मकान तथा वाहन आदि के सौदों से अभी बचना चाहिए. कर्क राशि:                आपकी राशी के लिए यह ग्रहण शुभ है.संपर्क बढ़ने से आर्थिक पक्ष मजबूत होने के योग हैं.व्यापार, नौकरी, निवेश आदि में लाभ हो सकता है. परिजनों के सहयोग से प्रगति होगी.मनोबल बढ़ेगा व उत्साह में वृद्धि होगी.कुल मिलाकर जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में प्रगति होगी. सिंह राशि:                       आपके लिए ग्रहण का मिलाजुला असर देखने को मिल सकता है.पारिवारिक समृद्धि व शुभकार्य पर निवेश के योग हैं, लेकिन धन निवेश के मामले में सजग रहें और लापरवाही से बचें. परिवार में विवाद से बचने की कोशिश करें. खर्च में वृद्घि होने के योग हैं.  कन्या राशि:                  यह ग्रहण कन्या राशी में ही पड़ रहा है,इसलिए ग्रहण का परिणाम आपके अनुकूल नहीं है. परिजनों के स्वास्थ्य को लेकर आर्थिक नुकसान के योग हैं.इस राशि के लोगों को वाहन चलाते समय सावधानी बरतनी चाहिए.अपने स्वास्थ्य का भी खास ध्यान रखें.धन संबंधी मामलों में जल्दबाजी न करें .  तुला राशि:  व्यवसायिक उन्नति व अकस्मात धन प्राप्ति के योग हैं,लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए ये चंद्रग्रहण कष्टकारक हो सकता है. खासतौर से जीवनसाथी का स्वास्थ्य आपको चिंतित कर सकता है. वाहन अभी न खरीदें.सावधानी न बरतने पर परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। वृश्चिक राशि चंद्रग्रहण की वजह … Read more

तो न करे ऐसा दान

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सफलता के मार्ग पर आलोचना,निंदा अपरिहार्य है

सफलता के मार्ग पर आलोचना,निंदा अपरिहार्य है सफलता के मार्ग पर आलोचना अपरिहार्य है। दुनिया में ऐसा कौन है,जिसकी आलोचना या निंदा नहीं हुई.इन्सान तो इन्सान,लोग तो भगवान् तक की आलोचना से नहीं आते.आलोचना और निंदा एक तरह से सफलता का मापदंड भी है.आलोचना और निंदा सफल लोगो की ही होती है.आखिर 30 साल पहले कौन नरेन्द्र मोदी की आलोचना या निंदा करता था. आलोचना सदैव दूसरे व्यक्ति की राय होती है। विफलता सहानुभूति लाती है,लेकिन सफलता आलोचकों और निंदको की भीड़ भी अपने साथ लाती है.यदि आप उनकी धारणासे सहमत हैं, तो उनकी आलोचना आपको स्वयं में सुधार लाने के लिए प्रेरित कर सकती है। परंतु यदि आप सहमत नहीं हैं, तो संभवतः आप नकारात्मकता को अंगीकार कर रहे हैं। नकारात्मक भावनाएं आप को दुर्बल बनाती हैं । कभी कभी आलोचना का सामना करना कठिन हो सकता है, विशेषकर जब आलोचना अपने प्रिय लोगों से आती है। जब दूसरे आप पर अपनी नकारात्मकता और राय थोपते हैं, उस क्षण ये निर्णय आप पर है कि आप उस आलोचना को अस्वीकार करते हैं, त्याग देते हैं या जाने देते हैं। यदि आप ऐसा करें तो आप शांतिपूर्ण रहेंगे और आपके ह्रदय को अधिक ठेस भी नहीं पहुंचेगी।सदैव दूसरों में दोष ढूंढते रहना मानवीय स्वभाव का एक बड़ा अवगुण है। दूसरों में दोष निकालना और खुद को श्रेष्ठ बताना कुछ लोगों का स्वभाव होता है। इस तरह के लोग हमें कहीं भी आसानी से मिल जाएंगे। प्रत्येक मनुष्य का अपना अलग दृष्टिकोण एवं स्वभाव होता है। दूसरों के विषय में कोई अपनी कुछ भी धारणा बना सकता है।                                           (चित्र गूगल से )  हर मनुष्य का अपनी जीभ पर अधिकार है और निंदा करने से किसी को रोकना संभव नहीं है।लोग अलग-अलग कारणों से निंदा रस का पान करते हैं। कुछ सिर्फ अपना समय काटने के लिए किसी की निंदा में लगे रहते हैं तो कुछ खुद को किसी से बेहतर साबित करने के लिए निंदा को अपना नित्य का नियम बना लेते हैं। निंदकों कोसंतुष्ट करना संभव नहीं है। जिनका स्वभाव है निंदा करना, वे किसी भी परिस्थिति में निंदा प्रवृत्ति का त्याग नहीं कर सकते हैं। इसलिए समझदार इंसान वही है जो उथले लोगों द्वारा की गई विपरीत टिप्पणियों की उपेक्षा कर अपने काम में तल्लीन रहता है। किस-किस के मुंह पर अंकुश लगाया जाए, कितनों का समाधान किया जाए!प्रतिवाद में व्यर्थ समय गंवाने से बेहतर है अपने मनोबल को और भी अधिक बढ़ाकर जीवन में प्रगति के पथ पर आगे बढ़ते रहें। ऐसा करने से एक दिन आपकी स्थिति काफी मजबूत हो जाएगी और आपके निंदकों को सिवाय निराशा के कुछ भी हाथ नहीं लगेगा।जो सूर्य की तरह प्रखर है, उस पर निंदा के कितने ही काले बादल छा जाएं किन्तु उसकी प्रखरता, तेजस्विता और ऊष्णता में कमी नहीं आ सकती। ओमकार मणि त्रिपाठी  atoot bandhan हमारे फेस बुक पेज पर भी पधारे 

आदतें बदलें,जिन्दगी बदल जाएगी

आदतें बदलें,जिन्दगी बदल जाएगी आदतें चाहे अच्छी हों या बुरी, हमारी जिंदगी में इनका असर बहुत पड़ता है। कुछ आदतें ऎसी भी होती हैं, जो हमारे अंदर सकारात्मक बदलाव ला सकती हैं। ऎसी आदतों को हमें विकसित करने की जरूरत होती है, क्योंकि यह तो सत्य है कि गंदी आदतें तुरंत पड़ जाती हैं और अच्छी आदतों के लिए हमें मशक्कत करनी पड़ती है। अगर आपको अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है तो अपने अंदर अच्छी आदतें विकसित करनी ही पड़ेंगी. प्राथमिकता सोच लें कई बार आप अपने लक्ष्य को प्राप्त इसलिए भी नहीं कर पाते हैं कि आप अपना यह निर्णय ही नहीं कर पाते कि जिंदगी में आपकी प्राथमिकता क्या है? इसलिए कई बार आप भ्रमित भी हो जाते हैं कि आपको कौन से समय में क्या करना है. प्राथमिकता तय करने के बाद लक्ष्य प्राप्त आसान होगी। चुनौती का सामना करें  यह व्यक्तिगत दृष्ठिकोण है ,अर्थात अपनी सोच तथा कार्यो के लिए स्वयम उत्तरदायी हों,उत्तरदायित्व स्वीकार करें.पहल करें तथा कार्य करने की जिम्मेदारी उठाये. जल्दी उठने की आदत डालें रोजाना देर से उठना यानी जरूरी कार्यो के लिए कम समय। यदि आप रोजाना दस मिनट जल्दी उठते हैं तो ये दस मिनट बहुत उपयोगी साबित होते हैं। इनमें आप ऎसी चीजें कर सकते हैं जो देखने में छोटी लगती हैं लेकिन बहुत खुशी और संतोष देती हैं। खुद को समझें  इससे पहले कि लोग आप को समझें,आप खुद को समझें.दूसरो की बात सुनने और समझने का कौशल विकसित करें. आरी की धार तेज करते रहें आप अपने सद्गुणों को निरंतर निखारते रहें.स्व का संरक्षण तथा संवर्धन आपका प्रथम कर्तव्य है.अपनी शारीरिक,मानसिक सामाजिक और भावनात्मक क्षमताओ को निरंतर बढ़ाते रहें. ज़माने को नहीं ,खुद को बदले  लोगो को बदलने में अपना समय और उर्जा बर्बाद न करें.जंहा जरूरत हो ,लोगो को बदलने के बजाय खुद को बदलने की कोशिश करें. दूसरो से नहीं ,खुद से तुलना करें  तुलना करना मानव स्वभाव का अभिन्न अंग है ,लेकिन स्वयं की दूसरो लोगो से कदापि तुलना न करें.खुद की खुद से तुलना करें वचन निभाने की आदत  सफलता के लिए यह बेहद जरूरी है कि लोग आप पर विश्वास करें और आप यह विश्वास तभी अर्जित कर पाएंगे,जब वचन निभाने की आदत डालेंगे,वचन,रिश्ते और विश्वास बनाये रखें. न कहने की और न सुनने की आदत डालें  अगर आप सफलता चाहते हैं,तो असहमति व्यक्त करने की आदत जरूर डाले.जिस बात से असहमत हों,वंहा न कहें और यदि कोई आपको न कहे तो उसे भी धैर्यपूर्वक स्वीकार करे. अच्छी आदतों को डालने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।यदि आप 21 दिन तक कोई अच्छा या बुरा कार्य करते हैं तो वह आपकी आदत बन जाती है. इसलिए आप अगर अंदर सकारात्मक बदलाव चाहते हैं तो एक हफ्ते से लेकर तीन हफ्ते तक अपने लिए एक टार्गेट फिक्स कर दें। हर बार जब आप अपना टार्गेट पूरा कर लें तो आप खुद को इनाम दें। इससे आप खुद को मोटीवेट भी कर पाएंगे।एक बार जब आप एक अच्छी आदत अपने अंदर विकसित कर लेते हैं तो फिर इसके बाद कोई अन्य आदत विकसित करने का टार्गेट रखें। ओमकार मणि त्रिपाठी atoot bandhan .…..फेस बुक पेज पर भी पधारे 

महिला दिवस और नारी मन की व्यथा

                           युग बदल गए, सदिया गुजर गयीं, बदलते दौर और जमाने के साथ-साथ बहुत कुछ बदल गया,लेकिन अगर कुछ नहीं बदला तो वह है नारी की नियति. कहीं परंपराओं की बेड़ियों में जकड़ी, तो कहीं भेदभाव के कारण दासता व पराधीनता के बंधनों में उलझी नारी आज भी अपनी मुक्ति के लिए छटपटा रही है.वह हौसलो की उड़ान भर कर अपने सपने पूरे करना चाहती है,लेकिन कदम-कदम पर तय की गयीं मर्यादा की लक्ष्मण रेखाये,पारिवारिक- सामाजिक राह में बाधाये बन कर खड़ी हो जाती हैं|                                                                                                           हर साल 8 मार्च आता है. अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की रस्म अदा की जाती है. बड़े-बड़े मंचों से नारी उत्थान के संकल्प दोहराये जाते हैं.लेकिन नारी की दशा नहीं बदलती. दुनिया के किसी न किसी कोने में हर दिन कहीं वासना के भूखे भेड़िये किसी नारी की अस्मत पर डाका डालते है,तो कहीं गर्म-गोश्त की मंडी में नीलाम होने के लिए उसे मजबूर किया जाता है. कहीं वह चंद रूपयो के लिए आपने जिगर के मासूम टुकड़ों को     बेचने के लिए मजबूर होती है,तो कहीं दहेज की लपटें उसे निगल लेती हैं.                      कहने का आशय यह है कि सिर्फ़ नारी उत्थान का नारा देने भर से ही शोषण की चक्की में पिस रही नारी मुक्त नहीं होगी, इसके लिए ठोस और सार्थक पहल करनी होगी. बदलते समय के हिसाब से समाज की मानसिकता बदलनी होगी.नारी को समान अधिकारों की जरूरत है.जरूरत इस बात की भी है कि उसकी भावनाओ और अरमानो को भी सम्मान दिया जाए |                                              नारी मन की व्यथा यही है कि क्यों…आखिर क्यों अपने सपने देखने तथा प्रयास करके उन सपनों को हक़ीक़त में बदलने का अधिकार उसके पास क्यों नहीं है.आज के आधुनिक दौर में भी वह अपने जीवन के फैसले ख़ुद लेने के अधिकार से वंचित क्यों है. ऐसा क्यों होता कि जब वह अपने सपनों के आकाश में उड़ना चाहती है,तो रूढ़ियों की आड़ में उसके पर कतर दिए जाते हैं.उसे उन कामों की सजा क्यों दी जाती है,जिसमे उसका कोई दोष नहीं होता.                                                                        यदि कोई औरत विधवा हो जाती है,तो उसमें उसका कोई दोष नहीं होता,लेकिन परिवार,समाज उसके लिए नए मापदंड तय कर देता है.कोई विधुर पुरुष अपनी मनमर्जी के हिसाब से जीवन जी सकता है,लेकिन विधवा औरत ने यदि ढंग के कपड़े भी पहन लिए तो उस पर उंगलिया उठनी शुरु हो जाती हैं.किसी के साथ बलात्कार होता है,तो उसमें बलात्कार की शिकार बनी महिला का क्या दोष है.यह कैसी विडंबना है कि बलात्कारी मूँछों पर हाथ फेरकर अपनी मर्दानगी दिखता घूमता है और बलात्कार का शिकार बनी महिला या युवती को गली-गली मुँह छिपाकर जिल्लत झेलनी पड़ती है. घर-संसार बसाना किसी युवती का सबसे अहम सपना होता है,इसलिये महिलाये बहुत मजबूरी में ही तलाक के लिए पहल करतीं हैं.लेकिन तलाक होते ही तलाकशुदा महिला के बारे में लोगों का नज़रिया बदल जाता है. उसकी मजबूरिया समझने के बजाय मजबूरी का फायदा उठाने वालों की संख्या बढ़ जाती है.यदा-कदा कुछ ऐसे लोग भी मिलते हैं जो तलाकशुदा या विधवा महिला को सार्वजनिक संपत्ति मान कर व्यवहार करते हैं. क्या यह हास्यास्पद नहीं है कि जिन घरों में महिलाये नौकरी या कारोबार कर रही हैं,घर के पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिलाकर आर्थिक योगदान दे रही है,उन घरों में भी महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे नौकरी या कारोबार भी करती रहें और चूल्हा चक्की के काम में भी किसी तरह की कमी न आने पाने पाए. उलाहने- तानें दिए जाते हैं कि हमारे खानदान में औरतें अमुक-अमुक घरेलू कामों में दक्ष थी,लेकिन उस समय यह ध्यान नहीं दिया जाता कि उस समय महिलाये सिर्फ़ घरेलू काम ही करती थी,नौकरी या कारोबार नहीं करती थी. नारी का उत्थान तभी संभव है,जब उसे समान अधिकार दिए जाए.नारी के प्रति देहवादी सोच को समूल रुप से नष्ट करना होगा.नारी सिर्फ़ देह तक ही सीमित नहीं है.उसके भी सीने में दिल धड़कता है, भावनाएँ स्पंदित होती हैं,आंखो में भविष्य के सपने तैरते हैं, आकाक्षाओं के बादल आते हैं. नारी की महिमा को समझते हुए उसकी गरिमा को सम्मान देना होगा. नारी माँ के रुप में बच्चे को सिर्फ़ जन्म ही नहीं देती,अपने रक्त से सींच कर उसे जीवन भी देती है.बहन के रुप में दुलार देती है,तो बेटी के रुप में आपने बाबुल के घर में स्नेह की बरसात करती है. जीवनसंगिनी के रुप में जीवन में मधुरता के रस का संचार करती है.करुणा,दया,क्षमा,धैर्य आदि गुणों की प्रतीक है नारी.त्याग और ममता की मूर्ति है नारी. भारतीय संस्कृति में नारी को शुरु से ही अहम दर्जा दिया गया है.इस देश की मान्यता रही है कि नारी भोग्या नहीं,पूज्या है.नारी को देवी का दर्जा देने वाले इस देश में जरूरत है एक बार फिर उन्हीं विचारों का प्रचार करने की.यह भारतीय संस्कृति की विशेषता है कि यहाँ स्वयम्वर होते रहे हैं.नारियों को आपने जीवन के फैसले करने का अधिकार रहा है.उसी संस्कृति को ध्यान में रखते हुए नारियों  को समान अधिकार व अवसर देने होंगे,अपने विकास का रास्ता और मंज़िल वे ख़ुद तलाश लेगी | ओमकार मणि त्रिपाठी  प्रधान संपादक :अटूट बंधन एवं सच का हौसला ओमकार मणि से साभार  कृपया हमारे  atoot bandhan फेस बुक पेज पर भी पधारे 

आखिर क्यों टूटते हैं गहरे रिश्ते

                                    अभी ज्यादा दिन नहीं बीते,जब सुरेश व मोहन गहरे दोस्त हुआ करते थे,लेकिन आज दोनों एक दूसरे की चर्चा तो दूर्,नाम तक सुनना पसंद नहीं करते.अगर कहीं किसी ने गलती से भी किसी चर्चा में एक का नाम ले लिया.तो दूसरा बिफर पड़ता है. आखिर क्यों टूटते हैं घनिष्ठ रिश्ते  सीमा और रजनीश की कहानी भी कुछ इसी तरह की है.दोनो ने लगभग 10 वर्षों की कड़ी प्रेम तपस्या के बाद एक वर्ष पूर्व विवाह किया,लेकिन इस एक साल के भीतर ही फ़ासले कुछ इस कदर बढ़े कि अब दोनों तलाक की तैयारी कर रहे हैं .बात सिर्फ़ सुरेश-मोहन या सीमा-रजनीश की ही नहीं है,न जाने कितने ऐसे रिश्ते हैं,जो जन्मते हैं,पनपते हैं,खिलते हैं और फिर यकायक मुरझा जाते हैं.जो कभी एक दूसरे के लिए जान तक कुर्बान करने के लिए तैयार रहते हैं.वही एक दूसरे के जानी-दुश्मन बन जाने हैं. कैसे बनते हैं रिश्ते  दरअसल किसी भी मनुष्य के जीवन में दो तरह के रिश्ते होते हैं.मनुष्य जन्म लेते ही कई तरह के रिश्तों की परिभाषाओं में बंध जाता है, जिनका आधार रक्त सम्बन्ध होता है,लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता जाता है,वैसे-वैसे कुछ नए रिश्तों की दुनिया भी आकार लेने लगती है, जिनका वह ख़ुद चयन करता है. ऐसे रिश्तों की एक अलग अहमियत होती है,क्योंकि ये विरासत में नहीं मिलते,बल्कि इनका चयन किया जाता है.ऐसे रिश्तों को प्रेम का नाम दिया जाए या दोस्ती का या कोई और नाम दिया जाये,लेकिन ये बनते तभी हैं,जब दोनों पक्षों को एक दूसरे से किसी न किसी तरह के सुख या संतुष्टि की अनुभूति होती है.यह सुख शारीरिक,मानसिक,आर्थिक या आत्मिक किसी भी तरह का हो सकता है.जब एक पक्ष दूसरे के बिना ख़ुद को अपूर्ण,अधूरा महसूस करता है,तो अपनत्व का भाव पनपता है और जैसे-जैसे यह अपनत्व बढ़ता जाता है,रिश्ता प्रगाढ़ होता जाता है. रिश्ते टूटने की वजह  दूसरे शब्दों में कहा जाए तो किन्हीं दो लोगों के बीच में पारस्परिक हितों का होना,बनना और बढ़ना रिश्तों को न केवल जन्म देता है ,बल्कि एक मज़बूत नींव भी प्रदान करता है,लेकिन जैसे ही पारस्परिक हित निजी हित में तब्दील होना शुरु होते हैं रिश्तों को ग्रहण लगाना शुरु हो जाता है.पारस्परिक हित में अपने हित के साथ-साथ दूसरे के हित का भी समान रुप से ध्यान रखा जाता है,जबकि निजी हित में अपने और सिर्फ़ अपने हित पर ध्यान दिया जाता है.निजहित को प्राथमिकता देने या स्वहित की कामना करने में उस समय तक कुछ भी ग़लत नहीं है जब तक दूसरे के हितों का भी पूरी तरह से ध्यान रखा जाये,लेकिन जब दूसरे के हितों की उपेक्षा करके अपने हित पर जोर दिया जाता है,तो रिश्ते को स्वार्थपरता की दीमक लग जाती है,जो धीरे-धीरे किसी भी रिश्ते को खोखला कर देती है. स्वार्थ की भावना रिश्तों की दुनिया का वह मीठा जहर है,जो रिश्ते को असमय ही कालकवलित कर देती है.स्वार्थ की भावना उस समय और भी कुरूप्, भीषण और वीभत्स रुप धारण कर लेती है,जब दूसरे पक्ष के अहित की कीमत पर भी ख़ुद का स्वार्थ सिद्ध करने की कोशिश की जाती है.किसी भी रिश्ते में एक-दो बार ऐसे प्रयास सफल भी हो सकते हैं,लेकिन जब बार-बार किसी का अहित करके कोई अपना हित साधने की कोशिश करता है,तो रिश्ते जख्मी होने लगते हैं.ये ज़ख्म जितने गहरे होते जाते हैं, रिश्तों की दरार उतनी ही चौड़ी होती जाती है.मन के किसी कोने में या दिल के दर्पण पर स्वार्थ की परत के जमते ही रिश्तों का संसार दरकने लगता है और धीरे-धीरे एक समय ऐसा भी आता है,जब रिश्ता पूरी तरह टूट कर बिखर जाता है. कैसे करे रिश्तों को बचाने की कोशिश  सुदीर्घ और मज़बूत रिश्ते मनुष्य को न केवल भावनात्मक संबल देते हैं,बल्कि आत्मबल बढ़ाने में भी मददगार साबित होते हैं. सदाबहार रिश्तों के हरे-भरे वृक्षों की छाया में मनुष्य ख़ुद को सुरक्षित महसूस करता है,जबकि किसी भी तरह के रिश्ते का बिखरना ऐसे घाव दे जाता है,जिसकी जीवन भर भरपाई नहीं हो पाती .इसलिए जहाँ तक हो सके रिश्तों को टूटने से बचाने की कोशिश करनी चहिये. रिश्तों को बचाने के लिए सबसे जरूरी है कि स्वार्थ के बजाय त्याग और स्वहित के बजाय पारस्परिक हित को प्रधानतादी जाये.दूसरे के अहित की कीमत पर भी अपना हित साधने के बजाए जब अपना अहित होने पर भी दूसरे का हित करने की भावना जन्म लेती है,तो रिश्ते ऐसी चट्टान बन जाते हैं, जिनका टूट पाना असंभव हो जाता है.इस तरह रिश्तों का बंधन इतना मज़बूत होता जाता है कि कोई भी इससे बाहर नहीं निकल सकता. रिश्तों की नाव को डूबने से बचाने के लिए यह जरूरी है कि इस नाव में स्वार्थपरता का सुराख न होने पाये,क्योंकि रिश्तों की नाव मझधार में तभी डूबती है जब पारस्परिकहित रुपी पतवार और त्यागरुपी खेवनहार लुप्त हो जाते हैं.                                                                                                                                                                              ओमकार मणि त्रिपाठी                                                                                 संस्थापक व् संपादक                                                                         सच का हौसला ( दैनिक समाचार पत्र )                                                                          अटूट बंधन … Read more