अटल रहे सुहाग : मैं आ रहा हूँ…..डॉ भारती वर्मा बौड़ाई

       मैं सदा उन अंकल-आंटी को साथ-साथ देखा करती थी। सब्जी लानी हो, डॉक्टर के पास जाना हो, पोस्टऑफिस, बैंक, बाज़ार जाना हो या अपनी बेटी के यहाँ जाना हो……हर जगह दोनों साथ जाते थे।उन्हें देख कर लगता था मानो एक प्राण दो शरीर हों। आज के भौतिकवादी समय को देखते हुए विश्वास नहीं होता था कि वृद्धावस्था में भी एक-दूसरे के प्रति इतना समर्पित प्रेम हो सकता है।            मैं जब-तब उनके यहाँ जाया करती थी। जैसे ही पहुँचती, अंकल कहते–आओ बेटा! देखो तुम्हारी आंटी ने मेरी किताब ही छीन कर रख दी! कहती है बस आराम करो। भला कैसे चलेगा इस तरह मेरा काम?           तब तक रसोई से आंटी की आवाज़ आती–कुछ भी शिकायत कर लो तुम बीना से, किताब तो तुम्हें नहीं ही मिलेगी। भूत की तरह बस चिपके रहते हो किताब से। न अपनी तबियत की चिंता न दवाई खाने की याद रहती है तुम्हें।              ऐसा भी नहीं था कि दोनों के विचार हर बात  में मिलते ही थे। मतभेद भी काफी रहता था। अंकल थे पढ़ने-लिखने वाले व्यक्ति, एक विद्वान् लेखक। काफी लोग उनके पास आया करते थे।उनका अधिकतर समय लिखने-पढ़ने में ही बीतता था। शेष समय अपने घर के अहाते में बागबानी करने में लगे रहते। फलों के खूब पेड़ लगा रखे थे उन्होंने। फूलों की भी बहुत जानकारी थी उन्हें। और आंटी गृहस्वामिनी थी, पर उनमें भी बहुत सी विशेषताएँ थीं। वे हाथ से बहुत अच्छे स्वेटर बनाती थी जो दिखने में मशीन के बने लगते थे। अपने सारे त्योहारों को पूरे मनोयोग, पूरी आस्था से मनाती थी। अंकल जितने अंतर्मुखी, आंटी उतनी ही बहिर्मुखी और मिलनसार। पर अंकल आंटी के हर काम में शामिल रहते…फिर चाहे वह बड़ियाँ-कचरियाँ बनाने का ही काम क्यों न हो। तीन बच्चे थे उनके। तीनों अपने-अपने परिवारों में आनंदपूर्वक रह रहे थे। आते-जाते रहते थे। बेटी एक ही शहर में रहती थी तो वो जब-तब उनके पास आती रहती थी और इस तरह अंकल-आंटी का जीवन भी अपनी गति से ठीक-ठाक चल रहा था।            पर जाने किसकी नज़र लगी उनकी खुशियों पर, कि आंटी की तबियत खराब रहने लगी। बेटी बीच-बीच में आती, फिर वह दोनों को अपने साथ ही ले गई अपने घर। कई जाँचों के बाद पता चला कि आंटी को गॉल ब्लैडर का कैंसर है। जिन आंटी ने अपने लिए कभी एक दिन भी अस्पताल में रह कर नहीं देखा था, अब उन्हें हर सप्ताह-पंद्रह दिन में चिकित्सा के लिए दिल्ली जाना पड़ने लगा। तब अंकल आंटी की इंतजार का समय उनकी बातें करके,उन्हें याद करके बिताते थे। जब उन्हें आंटी की बीमारी के बारे में बताया गया था तो वे फूट-फूट कर रो पड़े थे और उन्हें समझाना ही मुश्किल हो गया था। दोनों के जीवन का रूप ही बदल गया था। एक-दूसरे के लिए सबकुछ कर दें कि करने के लिए कुछ बाकी न रह जाए…इस भावना से दोनों एक-दूसरे के लिए जीने लगे थे। देखने पर मन भर-भर आता था।          करवाचौथ के बाद उनसे मिलने गई थी तो दोनों मुझे देख कर बहुत खुश हुए थे। मन का दुःख छिपाने की बहुत कोशिश कर रहे थे पर चेहरे पर दुःख साफ़ नज़र आ रहा था।        और सुनाओ बेटा! कैसा रहा तुम्हारा त्यौहार? हमने भी बस जैसे-तैसे मना ही लिया। मैंने बरामदे में कुर्सी पर बैठ कर तुम्हारे अंकल के साथ चाँद देखा और साथ मिल कर जल चढ़ाया। पता नहीं आगे यह सौभाग्य हमें मिले न मिले…कहते-कहते दोनों की आँखों में आँसू आ गए थे। मेरी भी आँखें आँसुओं से भीग गयी थी। मन ही मन दुआ कर रही थी कि आंटी ठीक हो जाएं और पहले की तरह  दोनों अपना जीवन सामान्य रूप से बिताएँ। पर ईश्वर ने तो जैसे स्वयं उन्हीं के मुख से बिछड़ने का सत्य बुलवा दिया था।         पर चाहने से भी कुछ हुआ है! एक दिन आंटी के घर सवेरे-सवेरे एम्बुलेंस आकर रुकी। घर से तुरंत भागी गयी। पता चला आंटी नहीं रहीं। मुझे अंकल की चिंता होने लगी कि अब वे कैसे रहेंगे जिन्होंने अपने जीवन का एक भी पल आंटी के बिना नहीं बिताया था। उनकी हालत देख कर अपने आँसू रोकने मुश्किल हो रहे थे। उनसे मिली तो देखते ही रोने लगे–देखा छोड़ गयी तुम्हारी आंटी मुझे! मैं उन्हें कहता था कि जब तुम ठीक हो जाओगी तो हम एक पार्टी रखेंगे और सबको बुलाएँगे। पर मुझे क्या पता था कि उनकी तेरहवीं में मुझे सबको बुलाना पड़ेगा।        इसके बाद भी मैं अंकल से मिलने जाती रही। मुझे देखते ही हँस कर आ बेटी..कहने वाले अंकल एकदम शांत से हो गए थे। बात करते हुए बातें कम और रोते ज्यादा थे। सोचती थी कि अपनी बेटी, जिनके अंकल-आंटी बहुत नज़दीक थे, के पास रहते हुए वे अपने को संभाल लेंगे….पर मैं गलत थी। उनकी शांति तो तूफ़ान के आने के पहले की शांति थी। कल करवाचौथ है तो कुछ तैयारियाँ आज ही करके रख दूँ ताकि कल शॉपिंग करने जा सकूँ..सोच कर काम करने में लग गई। मुझे क्या पता था कि यह सब नियति का सब पूर्वनियोजित है जिससे मैं कल अंकल को अंतिम विदाई दे सकूँ।        अगले दिन नहाने के लिए कपड़े निकाल ही रही थी कि उनकी बेटी का फोन आया। धड़कते मन से फोन कान पर लगाया ही था कि वो रोते-रोते बोली–बीना! पापा भी मुझे छोड़ गए। वो करवाचौथ पर मेरी माँ को अकेला कैसे देख सकते थे ? पर बीना! मैं क्या करूँ अब ?       और मैं उनके अंतिम दर्शन करके, उन्हें अंतिम विदाई देकर रोते-रोते सोच रही थी की सच्चे प्रेम की पराकाष्ठा भला और क्या होगी कि करवाचौथ पर रात को चंद्र-दर्शन और जल चढ़ा कर पूजा संपन्न करवाने के लिए वे अपनी भौतिक देह को छोड़ कर अपनी संगिनी के पास पहुँच, सदा के लिए एकाकार हो गए थे, अटूट बंधन में बंध गए थे।      ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ कॉपीराइट@डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई

अटल रहे सुहाग : ,किरण सिंह की कवितायें

                      करवाचौथ पर विशेष ” अटल रहे सुहाग ” में  आइये आज पढ़ते हैं किरण सिंह की कवितायें …….. आसमाँ से चाँद आसमाँ से चाँद फिर लगा रहा है कक्षा देना है आज हमें धैर्य की परीक्षा सोलह श्रॄंगार कर व्रत उपवास कर दूंगी मैं  तुझे अर्घ्य मेरी माँग पूरी कर उग आना जल्द आज प्रेम का साक्षी बन बड़ी हठी हैं हम तोड़ूंगी नहीं प्रण अखंड सौभाग्य रहे तू आराध्य रहे परीक्षा में पास कर हे चंदा पाप हर अटल रहे सुहाग हमारा  ****************** सुनो प्रार्थना चांद गगन के रूप तेरा नभ में यूं चमके बिखरे चांदनी छटा धरा पर माँग सिंदूर सदा ही दमके पूजन करे संसार तुम्हारा अटल रहे…………………. तू है साक्षी मेरे प्रेम की दिया जलाई नित्य नेह की अर्घ्य चढ़ाऊंगी मैं तुझको करो कामना पूरी मन की जग में हो तेरा जयकारा अटल रहे…………………. पति प्रेम जीवन भर पाऊँ सदा सुहागन मैं कहलाऊँ सोलह श्रृंगार कर मांग भरे पिया जब मैं इस दुनियां से जाऊँ पुष्प बरसाए सितारा अटल रहे………………… भूखी प्यासी मैं रही हूँ शीत तपन को मैं सही हूँ चन्द्र दया कर उगो शीघ्र नभ क्षमा करना यदि गलत कही हूँ मेरा पति है तुझसे प्यारा अटल रहे………………… किरण सिंह .

अटल रहे सुहाग : चौथी कड़ी : कहानी—” सरप्राइज “

रिया,,,, ओ,,, रिया,,,,,, बेटा सारा सामान रख लिया न पूजा का, बेटा सब इकट्ठा करो एक जगह ,,,,, थाली में, ,, तुमको जाना है न ,, पार्क में पूजा के वास्ते, ,,,। हाँ , माँ मैने सब कुछ रख लिया, ,, माँ, आप कितनी अच्छी हो,,, सारी चीजों का ध्यान रखती हो,,,,,, ये कहते-कहते रिया माँ से लिपट गई थी । अनुराधा जो रिया की सास थीं, ,, वाकई में सास हो तो अनुराधा जैसी, ,,,,,,,।कितना ध्यान रखती थी रिया का,,,, क्योंकि बेटा सिद्धार्थ बाहर नेवी में जाॅव करता था, और नेवी वाले हर करवाचौथ पर पास में ही हो , ये संभव नहीं था ।अनुराधा इस व्रत की भावना को बहुत अच्छी तरह पहचानती थी,,,, इसी कारण, उसका उसका व्यवहार भी रिया के लिए पूर्ण समर्पित था ,,,।रिया उसकी बहू ही नहीं, ,,, एक बेटी, सहेली और हर सुख दुःख की साथी थी ,,,,। आज दो दिनों से उसकी तैयारी करवा रहीं थी अनुराधा, ,।अच्छे से अच्छे मेहंदी वाले से मेहंदी लगवाना तो उनका सबसे बडा शौक था ,,,,,, आज भी रिया की मेहंदी देख कर बडी खुश थीं, ,,, और उसकी मेहंदी को देखते-देखते , जाने कौन सी दुनिया में खो गई थी, ,,,। रा,,,,,जेश को मेरे हाथों में मेहंदी कितनी पसंद थी ,,,,, वो तीज , त्यौहार बिना मेहंदी के ,,, मेरे हाथों को देख ही नहीं सकते थे और फिर “करवाचौथ”,,,,,,,उस पर तो उनका विषेश आग्रह होता था मेहंदी वाले से,,,,,,,,। खूब अच्छी तरह याद है कि एक करवाचौथ पर , मेहंदी नहीं लगवा पाई थी ,तो किस तरह सारा घर आसमान पर उठा लिया था इन्होनें, ,,,। अम्मा, ,,, अम्मा, अनु के हाथों में मेहंदी क्यूँ नहीं लगी,,,, क्या , काम में इतनी भी फुर्सत नहीं मिली, ,,,,। अम्मा तो जानों करेला खा कर बैठीं थीं, ,,, अरे,,,, मैं क्या जानूं क्यों न लगी,,,, अम्मा ने जवाब दिया ,,,,,, तो ,,,,, तुम्हें लेकर जाना चाहिए था अम्मा, ,,,। बस राजेश का इतना कहना था कि बिफर गईं,,,,,,,,,,अरे एक साल नहीं लगेगी तो कोई आफत नहीं आ जायेगी ,,,,,।इतनी,, परवाह थी,,,,, तो ले जाता, आया क्यों नहीं नौकरी के बीच में छुट्टी लेकर, ,,,। राजेश को अम्मा से ऐसे जवाब की उम्मीद न थी,,,।कि जिसकी बहू, उसी के बेटे की सलामती के लिए व्रत और श्रंगार कर रही है और अम्मा, ,,,,,, ऐसे कैसे बोल सकती हैं।आज राजेश को समझ आ चुका था , अनु के चुप रहने का राज, ,,,,,,। तभी और उसी दिन राजेश ने सोच लिया था कि अनु को लेकर, ,,, वो ट्रांसफर पर चला जायेगा ,,,। सिद्धार्थ की भी पढाई पूरी होने जा रही थी, सिद्धार्थ भी 24 साल का हो गया था और राजेश उसके लिए लडकी अपनी पसंद की लाना चाहते थे, ,,, क्योंकि सिद्धार्थ मुझे ब्यूटी क्वीन जो कहता रहता था । अम्मा गुज़र चुकी थीं , राजेश ने सिद्धार्थ की शादी में किसी चीज की कमी न रहने दी थी कितना उत्साह था इनको,,,,,, कि घर में रौनक छा जायेगी, ,,,। रिया हमारे घर की बहू बन कर आ चुकी थी, और हमारी लाइफ बहुत अच्छी तरह से चल रही थी , कितना स्नेह था राजेश को रिया से, बेटी की तरह हर इच्छा का ख्याल रखते थे, ,,,। एक दिन सिद्धार्थ ने बताया कि उसका नेवी में सिलेक्शन हो गया है, तो किस कदर सारे घर में शोर मचा था, ,,, अनु का तो रो -रो कर बुरा हाल था, लेकिन रिया की तरफ देख कर अपनी भावनाओं को दबा दिया था उसने,,,,, क्योंकि रिया नहीं जा सकती थी उसके साथ सिद्धार्थ नौकरी पर चला गया था, शिप पर ।  अब रिया, राजेश और ,,, मैं ही तो रह गये थे , रिया तो जैसे हमारे आँखों का तारा बन गई थी,,,। अचानक एक दिन ऐसा आया कि राजेश की तबियत इतनी बिगड गई, कि डॉ. तक ने जवाब दे दिया, ,,,,और इनको भी जाना पडा । विधि के विधान को टालना किसी के बस की नहीं है अगर होती, तो अनु कभी न जाने देती राजेश को दूसरी दुनिया में, ,,,,,,,,। सारी जिन्दगी अम्मा के एक ही आशीर्वाद के लिए तरसती रही थी , जब भी पैर छूआ ,,,,ठीक है, ,, खुश रहो,, बस । अनु औरौ को देखा करती थी, बडी-बूढी औरतें ,,,,,,, सदा सुहागिन रहो, अटल रहे सुहाग तेरा ,,, जाने कितने आशीष थे ,,,, उनके पास । माँ, ,,, माँ, क्या सोच रही हैं, , देखो, मेरी मेहंदी कितनी लाल रंग लाई है, ,,।रिया की आवाज जैसे ही अनुराधा के कानों में पडी, तो चौंकते हुए ही कहा था उन्होंने, ,,,, ओहहो,,,,, रिया,,, ये तो बहुत ही लाल रंग आया है तेरी मेहंदी का, ,,,,, और उसने रिया के हाथों को चूमते हुए कहा था ,,,, जा,, जाकर तैयार हो जा ,,,,। आज अनु बहुत खुश थी , क्योंकि एक राज,,,,, उसने छुपा रखा था अपने सीने में, ,,, और वो था ,,, कि आज उसके जिगर का टुकडा, लाडला बेटा सिद्धार्थ जो आ रहा था, ,,,,।उसकी और सिद्धार्थ की बातें जो हो चुकी थीं , कि रिया को बताना नहीं है माँ, ,,,, ” सरप्राइज” दुंगा, ,। शाम हो चुकी थी और रिया दुल्हन की तरह सजी हुई थी , उसने पूजा की और पूजा करके उठी ही थी कि, अचानक घंटी बजी, ,, रिया ने सोचा माँ खोल देंगी, ,,, लेकिन अनुराधा थी कि, ,, अपने को व्यस्त शो करने में लगीं थीं कि दरवाजा रिया ही खोले,,,,,नारी के अंतर्मन को अनुराधा पूरी तरह समझती थी ,,,,। रिया उठी, उसने जैसे ही डोर खोला ,,,,,, वो देखते ही रह गई, ,,,,, सामने सिद्धार्थ खडा था, हाथ में फूलों का खूबसूरत बुके को लेकर ,, हैप्पी, , करवाचौथ डार्लिंग, ,,,,,,, ।  रिया थी कि उसको अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं आ रहा था और उसके होठों से ,,,, कोई शब्द ही नही निकल रहे थे, ,,, वो सिद्धार्थ की जगह ,,,,माँ से लिपट गई थी जा कर,,,,,,। सिद्धार्थ भी ,,,, माँ से आ कर गले लग गया था । छत पर रिया ने चाँद को अर्ध्य दिया, चलनी की ओट से सिद्धार्थ को देखा, ,,,,और दोनों माँ का आशीर्वाद लेने, ,,,,, नीचे उनके चरणों में झुके,,,,,, तो अनुराधा के होठों पर … Read more

अटल रहे सुहाग : ( लघुकथा -व्रत ) शशि बंसल

” मीनू ! जल्दी से अपने पापा की थाली लगा दो,” घर में कदम धरते ही आदेशात्मक स्वर में कहा मृणाल ने। ” पर मां ! मैंने तो खाना बनाया ही नहीं। भैया पिज्ज़ा ले आए थे,” मीनू ने सहज स्वर में कहा तो मृणाल भड़क उठी ,” एक दिन खाना न बना सकी तुम? हद है कामचोरी की।” ” आपने ही तो कहा था माँ कि लौटने में १२ या१ बज जायेंगे रात के ,इसलिए…..” ” यही तो समस्या है कि तुम सिर्फ सोचती हो ,करती कुछ नहीं।रिश्ता पक्का कर आए हैं तुम्हारा।चार दिन बाद वो लोग ‘रोका’ करने आ रहे हैं। जाओ अब सो जाओ। मैं तुम्हारे पापा के लिए कुछ पका दूँ,”थके स्वर में कहा मृणाल ने। रसोई का काम निपटा कर मृणाल मीनू के कमरे में ही चली आई और उसके पास ही लेट गई। मीनू ने मां की और करवट लेते हुए नर्मी से कहा,” माँ ! आपका गुस्सा देख कर तो मैंने सोचा था कि बात इस बार भी नहीं बनी पर माँ जब रिश्ता पक्का हो ही गया है तो आप इतना क्रोध क्यों कर रही हैं ?” मृणाल उठ कर उसके सिरहाने आ बैठी और उसके घुंघराले बालों में अपनी उंगलियों की कंघी फेरते हुए भीगे स्वर में बोली, ” बिट्टो तू मेरी बेटी भी है और इकलौती सहेली भी।तुझे न बताऊँगी तो किसे बताऊँगी…. रिश्ता तय होने के बाद तेरे पापा ने तो वहाँ खाना खा लिया पर मैं ठहरी परंपरावादी सो मैंने नहीं खाया। फिर १० घंटे के सफर में मैं खाने को माँगती रही और तेरे पापा चीज़ों के दाम पूछते रहे लेकिन एक बार भी जेब में हाथ नहीं डाला क्योंकि उन्हें मेरी भूख सस्ती और हर चीज़ महँगी लगी… यह जानते हुए भी कि १२बजे के बाद मेरा करवाचौथ का व्रत शुरु हो जायेगा। सो बेटा ! भूख ऐसी राक्षसी चीज़ है जिसके शांत हुए बिना हर खुशी बेमानी है। अब तू ही बता मेरा गुस्सा बेमानी था क्या ? अब कल चाँद देख कर ही कुछ खाऊँगी मैं तो और वह जिसके लिए व्रत रखा है,खा-पी कर चैन से सो रहा है, “एक लंबी ठंडी साँस ले कर सूने स्वर में कहा मृणाल ने। शशि बंसल भोपाल ।

अटल रहे सुहाग : एक प्यार ऐसा भी

बस अब इन दिनो मे और जमकर मेहनत करनी है ये सोचता हुआ रामू अपना साईकिल रिक्शा खींचे  जा रहा था।पिछले 8-10हफ्तो से वो ज्यादा समय तक सवारी ले लेकर और पैसे कमाना चाह रहा था।अपनी धुन मे वो पिछले कितने समय से लगा हुआ था। ले भाई !तेरे पैसे ये कहते हुए सवारी वाले ने उसे पैसे दिये।आज के कमाऐ  हुए पैसो  मे से कुछ रुपये अपने मित्र कन्हैया को देते हुआ बोला और कितने इकट्ठे करने होंगे? कन्हैया बोला यार कम से कम 1200-1300 रुपये तो होने चाहिये।अभी तो 950ही एकत्रित हुऐ है।और अब करवाचौथ को बचे भी दो दिन है।ठीक है कोई नही इन दो दिनो मे और ज्यादा मेहनत करुंगा कहकर रामू घर को चल पङा। शादी को 10साल हो गये थे पर रामू ने अपनी पत्नी को कभी कोई तोहफा नही दिया था।इस बार वो कुछ देना चाहता था अपनी पत्नी को तोहफे मे।उसे देर हो जाती थी तो उसकी पत्नी राह देखती देखती दरवाजे पर ही सो जाती थी।आसपास कही लोकल  फोन भी न था जहां वो फोन करके बोल भी देता कि देरी हो जायेगी।कुछ दूर बनियें की दुकान थी जहा मुहल्ले के सभी लोगो के फोन आते जाते थे पर शाम पङे वहां गली का कुछ बदमाश लङके डेरा जमा के बैठ जाते थे और लङकियो और औरतो से बतमिजी किया करते थे।इसलिये रामू ने शाम के बाद उसे वहाँ जाने के लिये मना किया हुआ था। आज फिर देर कर दी ! अपनी बीवी की आवाज सुन रामू का ध्यान भंग हुआ।हां, अभी त्यौहारो का दिन है ना तो सवारियां थोङी ज्यादा मिल जाती है। हाथ मूहं धोकर जैसे ही रामू खाना खाने बेठा उसकी बीवी बोली दो दिन बाद करवा चौथ है आप तब तो जल्दी आ जाना घर.. मेरा व्रत होगा।हम्म् कहकर रामू मन ही मन मुस्कराने लगा। दो दिन की कङी मेहनत करने के बाद अब रामू के पास अलग से 1400 रूपये इकट्ठे  हो गये थे।उसने 1200 का अपनी बीवी के लिये मोबाईल लिया और और उपरी खर्चा करके डिब्बे को छुपाते हुये घर पहुचा और भगवान के मन्दिर के पीछे  रख दिया। सुबह देर तक रामू के न उठने पर बीवी ने आवाज लगाई..आज काम पर नही जाना क्या? नही आज मन नही है  कहकर वह झूठमूठ सोने का नाटक करने लगा।तभी पङोसन इट्ठलाते हुऐ आई देख लता मेरे ये मेरे लिये साङी लाये है।तुम्हे क्या मिला या इस बार भी भैया यू ही रखे।लता मुस्कराते हुऐ रामू की तरफ देख बोली मेरा सुहाग ही मेरा तोहफा है।तभी घर मे फोन की घंटी बजी लता यहां वहां देखने लगी आवाज तो यही से आ रही है जाकर देखा तो भगवान की मूर्ति के पिछे एक पैकेट पङा था उत्सुकतावश उसे देखा तो अंदर एक डिब्बे मे से फोन की घंटी बज रही थी और जब उठाया तो दुसरी तरफ से रामू का दोस्त बोला पाय लागू भौजाई।लता को समझते देर नही लगी कि उसका पति देर रात तक मेहनत क्यूं करता था।बस एकटक रामू की तरफ देखते हुऐ खुशी के आंसू बहाये जा रही थी।इस बार की करवा चौथ कुछ खास बन गई उसकी। एकता शारदा 

करवाचौथ पर विशेष……… ‘ अटल रहे सुहाग “

जब कभी हमारे पूर्वजों ने यह खोजा होगा की स्थूल व् सूक्ष्म दो रूपों से मिलकर एक जीवित शरीर बनता है | तभी से उन्होंने जान लिया था की तन का संसार चलाने के लिए जिस तरह भोजन व् अन्य भौतिक वस्तुओं की आवश्यकता होती हैं , उसी तरह मन का संसार चलाने भावनाओं की आवश्यकता होती हैं | और भावनाएं प्रवाहित होती हैं शुद्ध प्रेम से | वो प्रेम चाहे ईश्वर के लिए हो ,प्रकृति के लिए हो पशु पक्षी के लिए या तमाम मानवीय रिश्तों के लिए , उसे ताज़ा रखने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी होती हैं अभिव्यक्ति | शायद इसी लिए इतने सारे त्योहार बनाए गए जो प्रेम की भावना को खुल कर अभिव्यक्त करने का अवसर दें और रिश्तों को सींच कर तारो ताज़ा कर दें | चाहे वो भाई –बहन के प्रेम का प्रतीक रक्षा –बंधन, भाई दूज हो , माँ संतान के प्रेम का प्रतीक अहोई अष्टमी , जीवित पुत्रिका या सकट चौथ हो , पति –पत्नी के प्रेम का प्रतीक तीज या करवा चौथ हो | स्त्री हो या पुरुष दोनों अपने –अपने तरीके से रिश्तों के पौधे को हरा करने का प्रयास करते हैं | पर धयान से देखा जाए तो इन सब व्रतों के केंद्र में स्त्री ही हैं | स्त्री अपने प्रेम को कभी भोजन के माध्यम से ,कभी सेवा के माध्यम से व् कभी व्रत उपवास के माध्यम से व्यक्त करती हैं | तभी स्त्री घर की धुरी हैं | वह त्याग और प्रेम के धागे में हर रिश्ते को पिरो कर भावनाओ की खूबसूरत माला बनाती है | अब पति –पत्नी के प्रेम के प्रतीक पर्व करवाचौथ को ही लीजिये |कितना अनमोल रिश्ता है पति -पत्नी का | विवाह चाहे प्रेम विवाह हो , या परिवार द्वारा अरेंज , दोनों ही परिस्तिथियों में ह्रदय यह स्वीकार तो करता ही हैं कि ” कल तक जो अनजाने थे , जन्मों के मीत हैं | गठबंधन की गाँठ लगते ही मन कभी न मिटने वाली पवित्र गाँठ से बंध जाता है |   करवा चौथ में स्त्री अपने पति की लम्बी आयु के लिए निर्जल व्रत रखती है , करवे के जल में चीनी की मिठास घोल कर अपने दाम्पत्य जीवन में मिठास की मंगल कामना करती हुई जब प्रेम के प्रतीक चंद्रमा  को अर्घ देकर चलनी से पति का चेहरा देखकर यह प्रार्थना करती है कि इस चलनी से चलकर सारे सुख उसके पति को मिले व् सारे दुःख उसके हिस्से में आ जाये , तो इस निर्मल मनोभावों से परस्पर प्रेम की गाँठ कैसे न मजबूत हो | जब पत्नी दुल्हन की तरह अपने सजना के लिए सजती हैं तो प्रेम के , तकरार  की , मनुहार की  न जाने कितनी स्मृतियाँ ताज़ा हो उठती हैं | यही तो है इस त्यौहार का महत्व ” उपजी प्रीत पुनीत ” का सबल ले कर नयी उर्जा के साथ उनका दाम्पत्य फिर से मुखर हो उठता है | हालाँकि आज के ज़माने में कुछ पति भी अपनी पत्नियों की लम्बी उम्र की प्रार्थना करते हुए व्रत रखते हैं | एक साथ अर्घ देकर जल ग्रहण करते हैं | जो शायद स्त्री –पुरुष समानता के साथ प्रेम के बंधन को एक पायदान और ऊपर कर देता है |                                                 वहीँ दूसरी ओर यह भी सत्य है की और त्यौहारों की तरह इस पर्व को भी बाजारवाद ने अपनी गिरफ्त में ले लिया है | प्राचीन काल से श्रृंगार भले ही स्त्री की प्रिय वस्तु रही हो | पर इसका पर्व की मूल भावना से ऊपर उठ जाना कहीं न कहीं रिश्तों की मिठास पर प्रश्न चिन्ह अवश्य लगाता है | पर जिस श्रद्धा  से आज की नव् विवाहिताएं भी इस पर्व को मनाती हैं उससे यह कहा जा सकता है कि इस तडक –भड़क के आवरण के नीचे प्रेम अभी भी अपने शाश्वत रूप में विधमान है |  वंदना बाजपेयी  नोट ; ‘अटूट बंधन ‘ब्लॉग पर हम पति –पत्नी के प्रेम के प्रतीक करवाचौथ पर एक विशेष उत्सव का आयोजन कर कर रहे हैं ……….” अटल रहे सुहाग “आप भी अपनी भावनाएं कविता ,कहानी या लेख के माध्यम से हमें editor .atootbandhan@gmail.com पर भेजे और करवाचौथ उत्सव के आयोजन मे भाग लें |