चेखव की अनूदित रूसी कहानी – दुःख
” मैं अपना दुखड़ा किसे सुनाऊँ ? “ शाम के धुँधलके का समय है । सड़क के खम्भों की रोशनी के चारों ओर बर्फ़ की एक गीली और मोटी परत धीरे-धीरे फैलती जा रही है । बर्फ़बारी के कारण कोचवान योना पोतापोव किसी सफ़ेद प्रेत-सा दिखने लगा है । आदमी की देह जितनी भी मुड़ कर एक हो सकती है , उतनी उसने कर रखी है । वह अपनी घोड़ागाड़ी पर चुपचाप बिना हिले-डुले बैठा हुआ है । बर्फ़ से ढँका हुआ उसका छोटा-सा घोड़ा भी अब पूरी तरह सफ़ेद दिख रहा है । वह भी बिना हिले-डुले खड़ाहै । उसकी स्थिरता , दुबली-पतली काया और लकड़ी की तरह तनी सीधी टाँगें ऐसा आभास दिला रही हैं जैसे वह कोई सस्ता-सा मरियल घोड़ा हो । योना और उसका छोटा-सा घोड़ा , दोनों ही बहुत देर से अपनी जगह से नहीं हिले हैं । वे खाने के समय से पहले ही अपने बाड़े से निकल आए थे , पर अभी तक उन्हें कोई सवारी नहीं मिली है । ” ओ गाड़ी वाले , विबोर्ग चलोगे क्या ? ” योना अचानक सुनता है ,” विबोर्ग ! “ हड़बड़ाहट में वह अपनी जगह से उछल जाता है । अपनी आँखों पर जमा हो रही बर्फ़ के बीच से वह धूसर रंग के कोट में एक अफ़सर को देखता है , जिसके सिर पर उसकी टोपी चमक रही है । ” विबोर्ग ! ” अफ़सर एक बार फिर कहता है । ” अरे , सो रहे हो क्या ? मुझे विबोर्ग जाना है । “ चलने की तैयारी में योना घोड़े की लगाम खींचता है । घोड़े की गर्दन और पीठ पर पड़ी बर्फ़ की परतें नीचे गिर जाती हैं । अफ़सर पीछे बैठ जाता है । कोचवान घोड़े को पुचकारते हुए उसे आगे बढ़ने का आदेश देता है । घोड़ा पहले अपनी गर्दन सीधी करता है , फिर लकड़ी की तरह सख़्त दिख रही अपनी टाँगों को मोड़ता है और अंत में अपनी अनिश्चयी शैली में आगे बढ़ना शुरू कर देता है । योना ज्यों ही घोड़ा-गाड़ी आगे बढ़ाता है , अँधेरे में आ-जा रही भीड़ में से उसे सुनाई देता है , ” अबे , क्या कर रहा है , जानवर कहीं का ! इसे कहाँ ले जा रहा है , मूर्ख ! दाएँ मोड़ ! “ ” तुम्हें तो गाड़ी चलाना ही नहीं आता ! दाहिनी ओर रहो ! ” पीछे बैठा अफ़सर ग़ुस्से से चीख़ता है । फिर रुक कर , थोड़े संयत स्वर में वह कहता है , ” कितने बदमाश हैं …सब के सब ! ” और मज़ाक करने की कोशिश करते हुए वह आगे बोलताहै , ” लगता है , सब ने क़सम खा ली है कि या तो तुम्हें धकेलना है या फिर तुम्हारे घोड़े के नीचे आ कर ही दम लेना है ! “ कोचवान योना मुड़ कर अफ़सर की ओर देखता है । उसके होठ ज़रा-सा हिलते हैं । शायद वह कुछ कहना चाहता है । ” क्या कहना चाहते हो तुम ? ” अफ़सर उससे पूछता है । योना ज़बर्दस्ती अपने चेहरे पर एक मुस्कराहट ले आता है , और कोशिश करके फटी आवाज़ में कहता है , ” मेरा इकलौता बेटा बारिन इस हफ़्ते गुज़र गया साहब ! “ ” अच्छा ! कैसे मर गया वह ? “ योना अपनी सवारी की ओर पूरी तरह मुड़ कर बोलता है , ” क्या कहूँ , साहब । डॉक्टर तो कह रहे थे , सिर्फ़ तेज़ बुखार था । बेचारा तीन दिन तक अस्पताल में पड़ा तड़पता रहा और फिर हमें छोड़ कर चला गया … भगवान की मर्ज़ी के आगे किसकी चलती है ! “ ” अरे , शैतान की औलाद , ठीक से मोड़ ! ” अँधेरे में कोई चिल्लाया , ” अबे ओ बुड्ढे , तेरी अक़्ल क्या घास चरने गई है ? अपनी आँखों से काम क्यों नहीं लेता ? “ ” ज़रा तेज चलाओ घोड़ा … और तेज … ” अफ़सर चीख़ा , ‘ नहीं तो हम कल तक भी नहीं पहुँच पाएँगे ! ज़रा और तेज ! ” कोचवान एक बार फिर अपनी गर्दन ठीक करता है , सीधा हो कर बैठता है और रुखाई से अपना चाबुक हिलाता है । बीच-बीच में वह कई बार पीछे मुड़ कर अपनी सवारी की तरफ़ देखता है , लेकिन उस अफ़सर ने अब अपनी आँखें बंद कर ली हैं । साफ़ लग रहा है कि वह इस समय कुछ भी सुनना नहीं चाहता । अफ़सर को विबोर्ग पहुँचा कर योना शराबख़ाने के पास गाड़ी खड़ी कर देता है , और एक बार फिर उकड़ूँ हो कर सीट पर दुबक जाता है । दो घंटे बीत जाते हैं । तभी फुटपाथ पर पतले रबड़ के जूतों के घिसने की ‘ चूँ-चूँ , चीं-चीं ‘ आवाज़ के साथ तीन लड़के झगड़ते हुए वहाँ आते हैं । उन किशोरों में से दो लंबे और दुबले-पतले हैं जबकि तीसरा थोड़ा कुबड़ा और नाटा है । ” ओ गाड़ीवाले ! पुलिस ब्रिज चलोगे क्या ? ” कुबड़ा लड़का कर्कश स्वर में पूछता है । ” हम तुम्हें बीस कोपेक देंगे । “ * * * * * * * * * * * * * * * योना घोड़े की लगाम खींचकर उसे आवाज़ लगाता है , जो … Read more