” ब्लू व्हेल ” का अंतिम टास्क

पापा मेरे मैथ्स के सवाल हल करने में मुझे आपकी मदद चाहिए | नहीं बेटा आज तो मैं बहुत बिजी हूँ , ऐसा करो संडे  को  तुम्हारे साथ बैठूँगा | पापा , न जाने ये संडे कब आएगा | पिछले एक साल से तो आया नहीं | बहुत फ़ालतू बाते करने लगा है | अभी इतना बड़ा नहीं हुआ है की पिता से जुबान लड़ाए | देखते नहीं दिन – रात तुम्हारे लिए ही कमाता रहता हूँ | वर्ना मुझे क्या जरूरत है नौकरी करने की | मम्मा रोज चीज ब्रेड ले स्कूल लंच में ले जाते हुए ऊब होने लगी है ,दोस्त भी हँसी उड़ाते हैं |  क्या आप मेरे लिए आज कुछ अच्छा बना देंगीं | नहीं बेटा , तुम्हें पता है न सुबह सात बजे तक तुम्हारा लंच तैयार करना पड़ता हैं | फिर मुझे तैयार हो कर ऑफिस जाना होता है | शाम को लौटते समय घर का सामान लाना , फिर खाना बनाना | कितने काम हैं मेरी जान पर अकेली क्या क्या करु | आखिर ये नौकरी तुम्हारे लिए ही तो कर रही हूँ | ताकि तुम्हें बेहतर भविष्य दे सकूँ | कम से कम तुम सुबह के नाश्ते में तो एडजस्ट कर सकते हो |                                                                                                                सुपर बिजी रागिनी और विक्रम का अपने १२ वर्षीय पुत्र देवांश से ये वार्तालाप सामान्य लग सकता है | पर इस सामान्य से वार्तालाप से देवांश के मन में उपजे एकाकीपन को  उसके माता – पिता नहीं समझ पा रहे थे | तो किसी और से क्या उम्मीद की जा सकती है | स्कूल से आने के बाद देवांश घर में बिलकुल अकेला होता | कभी सोफे पर पड़ा रहता , तो कभी मोबाइल लैपटॉप पर कुछ खंगालता , कभी रिमोट से टी वी चैनल बदलता | उसे घर एक कैद खाना सा लगता पर माता – पिता की अपने एकलौते पुत्र की सुरक्षा के लिए  घर से बाहर न निकलने की इच्छा उसे मन या बेमन से माननी ही पड़ती | बाहर दोस्त खेलने को बुलाते पर वो  कोई बहाना बना कर मोबाइल में बिजी हो जाता | देवांश पढाई में भी पिछड़  रहा था | ये ऊब भरी जिंदगी उसे निर्थक लग रही थी | उसके लिए जिंदगी बोरिंग हो चुकी थी | जहाँ कोई एक्साईटमेंट नहीं था |                                            जिन्दगी की लौ फिर से जलाने के लिए वो नए – नए मोबाइल गेम्स खेलता रहता | ऐसे ही  उसकी नज़र पड़ी एक नए गेम पर , जिसका नाम था ब्लू व्हेल | यूँ तो ब्लू व्हेल संसार का सबसे बड़ा जीव है | पर इस गेम का नाम उस पर रखने के पीछे एक ख़ास मकसद था | क्योंकि ये ब्लू व्हेल समुद्र मैं तैरती नहीं थी | जिन्दिगियाँ निगलती थी ,पूरी की पूरी | इसका आसान शिकार थे जिन्दगी से ऊबे हुए लोग | खासकर किशोर व् बच्चे | इस गेम में प्रतियोगियों को ५० दिन में ५० अलग – अलग टास्क पूरे करने होते हैं |और हर टास्क के बाद अपने हाथ पर एक निशान बनाना होता है | इस गेम का आखिरी टास्क होता है आत्महत्या |                                 जिंदगी की चिंगारी जलाने की चाह  ब्लास्ट तक ले जा सकती है इस बात से अनभिज्ञ देवांश ने यह गेम खेलना शुरू किया | उसे बहुत मजा आ रहा था | पहला टास्क जो उसे मिला वो था रात में हॉरर मूवी देखने का | वो भी अकेले | देवांश सबके सो जाने के बाद चुपचाप दूसरे कमरे में जा कर फिल्म  देखने लगा | डर से उसके रोंगटे खड़े हो गए | पर  आखिरकार उसने फिल्म देख ही ली | जीत के अहसास के साथ उसने अपने हाथ पर निशान बना दिया | सुबह रागिनी ने हाथ देखा तो देवांश ने उसे बताया माँ ट्रुथ एंड डेयर का एक खेल खेल रहा था ” ब्लू व्हेल ” बहुत मजा आया | रागिनी सुरक्षा के साथ खेल खेलने की ताकीद दे कर अपने काम में लग गयी | इससे ज्यादा कुछ कहने  का समय रागिनी के पास कहाँ होता था |                                  देवांश का व्यवहार बदल रहा था | रागिनी व् विक्रम  महसूस कर रहे थे | कुछ टोंकते तो भी देवांश उनकी बात अनसुनी कर देता | रागिनी ने उसे पढाई के बहाने टोंका तो देवांश ने बताया ,” मम्मा आज मेरे गेम का अंतिम टास्क है | यह पूरा हो जाए फिर कल से पढूंगा | रागिनी  निश्चिन्त हो कर ऑफिस चली गयी | ऑफिस में आज माहौल  कुछ दूसरा ही था | सभी लोग कुछ चिंतित थे | रागिनी ने महसूस किया की आज वो ऑफिस के सहकर्मी नहीं बस माता – पिता थे | जो अपने बच्चों के वीडियो गेम्स खेलने पर चिंतित थे | अब बच्चे हैं तो वीडियो गेम खेलेंगे ही यह सोंच कर रागिनी ने उनकी बातों पर ध्यान न देकर अपने काम पर फोकस करने का मन बनाया | आखिर माता – पिता हैं तो चिंता तो करेंगे ही |                     एक बजे लंच ब्रेक में उसने अपनी सहकर्मी मोहिनी से कहा ,” क्या बात है आज सभी को अपने बच्चों की टेंशन है | मोहिनी दीवार पर आँखे गड़ा कर लंबी सांस लेते हुए बोली ,” क्यों न हो , आज हम सब यहाँ पैसा कमाने में जुटे  हैं , की बच्चों भविष्य सुनहरा हो , वहां घर पर हमारे बच्चे मोबाइल , लैप टॉप पर अपनी जान खतरे में डाल रहे हैं | क्या मतलब ? मोबाइल लैप टॉप पर समय … Read more

आगे जहाँ और भी होता है

साधना सिंह       गोरखपुर  बडे़ दिनो के बाद वो छत पर नजर आया था,  दिल जोर से धड़का पर मैने मुंह घुमा लिया । तभी मम्मी ने आवाज दी- अंजलि !आई माँ..  ! चोरी चोरी एक बार और उधर देखा तो वो जा चुका था । मै भी नीचे उतर आयी । मन बार बार अतीत की तरफ भाग रहा था । जल्दी -जल्दी काम निपटा अपने कमरे मे गयी,  दरवाजा बंद करके एक गहरी सांस ले खिडकी की तरफ  देखा । जाने महिनों से कभी उधर देखा तक ना था । वही खिडकी जो उसकी बालकनी की तरफ खुलता था । हर सुबह वो वहाँ एक्सरसाइज़ करता था और मेै वही खडी अपने बाल सुलझाती रहती थी ।  दोनो को एहसास रहता था एक दुसरे की मौजूदगी का,  पर दोनो तरफ एक ख़ामोशी छाई रहती थी ।   ज़ाम हो गयी है!..  मैे खिडकी खोलने की कोशिश करती हुई बडबडाई । लेकिन थोडी ही कोशिश मे खिडकी खुल गयी ।      ‘ अँजलि! इतने लम्बे बाल मुझे बाँधने के लिये ही रखा है तुमने..  है ना!  वह हर बार मेरी चोटी खोल देता..  – ‘बस,  इसे खुले रखो ना..  मेरा दम घुट जायेगा!       ‘ क्या करते हो!  … मै हंस पडती थी।    अजीब सन्नाटा था,  उसकी बालकनी मे भी और मेरे भीतर भी  ।  मेरे मन की तरह उसकी बालकनी भी उजाड थी ।    जाने कब हमारी खामोशी एक दुसरे पर खुल गयी थी पता नहीं चला । कभी निहारते नही थकती थी तो अब उससे बात किये बिना मन नहीं लगता । जब कालेज से निकलती तो अकसर वो गेट पर अपनी बाईक पर खडे मिलता,  चेहरे पर बडी सी मुस्कान सजाये ।    ‘ नही रोहित!  मम्मी वेट कर रही होंगी..  पापा को तो तुम जानते हो ना!  ‘ .. मै कशमकश मे पड जाती , एक तरफ घर वालो की हिदायते,  तो दुसरी तरफ मन बगावत  पर आ जाता । आखिरकार मन ही जीतता । मै उसके बाइक पर बैठी सोचती..  काश!  जिन्दगी बस इस सफर मे कट जाये ।  कहीं ना कही ये अंदेशा था कि पापा नहीं मानेंगे । पर रोहित कहता था कि वो सब ठीक कर देगा ।    दिन सोने के तो रातें चाँदी की ही थी । एक दुसरे के ख्यालों मे खोये ये गुमाँ ही ना था कि हमे अलग करने वाला तूफान तेजी से हमारी तरफ बढ रहा था ।  उस दिन आइसक्रीम पार्लर से निकलते वक्त रोहित के पापा अचानक सामने आ गये ।  मेरा चेहरा भक से पीला पड गया । कब कैसे घर तक आयी होश नही रहा ।   ‘ एक कायस्थ लडकी कभी मेरे ब्राह्मण खानदान मे नहीं आ सकती ! ‘ रोहित के पापा ने शख्त लहजे मे कह दिया ।  आल रेड्डी उन्हे दो बार,  एक माइनर और एक बडा हार्ट अटैक आ चुका था ।  माँ से रोहित ने बहुत बिनती की पर पति के बिमारी से भयभीत माँ चाह कर भी बेटे की मदद ना की । बस बेटे को ही अपनी सुहाग का वास्ता दिया ।        ‘ अंजलि  ! .. मै तुम्हारा गुनहगार हूँ,  मै कोई वादा ना निभा सका । ‘ .. वो फफक पडा ।मै क्या कहती,  बस भरी आखे और टूटे दिल के साथ वापस आ गयी । परन्तु उसे भुलना आसान था क्या?   खुद से लडती लडती नर्वस ब्रेक डाउन का शिकार हो गयी,  कितने दिनो तक बेसुध रही । मेरे आत्मसम्मानी पिता को मेरा मर जाना मंजूर था पर रोहित के रूढि़वादी पिता के सामने बेटी की जिन्दगी भीख मांगना नही ।       माँ की दिन रात की दुआओ ने मुझे नयी जिन्दगी दी । जब थोडी सम्भली तो पता चला रोहित का परिवार अपने गाँव चला गया है ।  दिल मे फिर भी एक आस थी कि वो लौटेगा । पर फिर एक दिन पडोसी से पता चला कि रोहित की शादी हो गयी । मुझे विश्वास नहीं हुआ । इतनी जल्दी भूल गया था रोहित सब कुछ । लाख मुश्किलें सही,  थोडी तो कोशिश करता । मौत के कगार पर तो मै भी जा पहुंची थी,  उसे पता तो होगा ही फिर भी सेहरा सजा़ लिया ।     और उस दिन मेरे आँख से एक आसूँ भी ना टपका । कुछ दिन तो रोहित इन्तजार करता। मेरा मन अजीब सा हुआ , और उसीदिन मैने सारा ध्यान करियर मे लगा दिया । अब एक कॉलेज मे लेक्चरर हूँ । एक जगह शादी की बात भी चल रही है । यान् जिन्दगी धीरे धीरे पटरी पर आ ही गयी थी कि अचानक उसका नजर आना .. मैने खिडकी पूरी खोल दी क्योकि अब एक अलग तरह की रौशनी भीतर आ रही थी,  कमरे मे भी और मेरे भीतर भी । अब मुझे कोई फर्क नहीं पडेगा क्योकि जो बीत गया था एक कमजोर ख्वाहिश थी । जब रोहित आगे बढ गया तो मै क्यो नहीं ।      मै कमरे से निकली और माँ को कसके गले लगाया ।  माँ समझ गयी थी क्योकि लॉन से माँ ने सब देखा था । तभी उन्होंने अावाज दी थी।  मेरे सारे ख्यालो और सोचो से वाकिफ रहती थी बिना जताये । पर उस दिन उन्होंने मेरा चेहरा उपर करके मेरी आँखों मे देखा और मेरा माथा चूम लिया । मै समझ गयी कि माँ मेरे मन के उथल-पुथल से बेखबर नहीं। मै खुल कर मुस्करायी क्योंकि एक नयी सुबह मेरा स्वागत कर रही थी । _________  यह भी पढ़ें ……… लली फिर हुई मुलाकात नयी सुबह घरेलू पति

एंटन चेखव की अनूदित रूसी कहानी कहानी निंदक – अनुवाद : सुशांत सुप्रिय

                                                                       सुलेख के शिक्षक सर्गेई कैपितोनिच अख़िनेयेव की बेटी नताल्या की शादी इतिहास और भूगोल के शिक्षक इवान पेत्रोविच लोशादिनिख़ के साथ हो रही थी । शादी की दावत बेहद कामयाब थी । सारे मेहमान बैठक में नाच-गा रहे थे । इस अवसर के लिए क्लब से किराए पर बैरों की व्यवस्था की गई थी । वे काले कोट और मैली सफ़ेद टाई पहने पागलों की तरह इधर-उधर आ-जा रहे थे । हवा में मिली-जुली आवाज़ों का शोर था । बाहर खड़े लोग खिड़कियों में से भीतर झाँक रहे थे । दरअसल वे समाज के निम्न-वर्ग के लोग थे जिन्हें विवाह-समारोह में शामिल होने की इजाज़त नहीं थी ।                मध्य-रात्रि के समय मेज़बान अख़िनेयेव यह देखने के लिए रसोई में पहुँचा कि क्या रात के खाने का इंतज़ाम हो गया था । रसोई ऊपर से नीचे तक धुएँ से भरी थी । हंसों और बत्तखों के भुनते हुए मांस की गंध धुएँ में लिपटी हुई थी । दो मेजों पर खाने-पीने का सामान कलात्मक बेतरतीबी से बिखरा हुआ था । लाल चेहरे वाली मोटी रसोइया मारफ़ा उन मेजों के पास व्यस्त-सी दिख रही थी ।               ” सुनो , मुझे पकी हुई स्टर्जन मछली दिखाओ , ” अपने हाथों को आपस में रगड़ते और जीभ से अपने होठों को चाटते हुए अख़िनेयेव ने कहा । ” क्या बढ़िया ख़ुशबू है ! मैं तो रसोई में रखा सारा खाना खा सकता हूँ ! अब ज़रा मुझे स्टर्जन मछली दिखाओ । “               मारफ़ा चल कर एक तख़्त के पास गई और उसने ध्यान से एक मैला अख़बार उठाया । उसके नीचे कड़ाही में एक पकी हुई बड़ी-सी मोटी मछली रखी हुई थी , जिसके ऊपर खजूर और गाजर के टुकड़े पड़े हुए थे । अख़िनेयेव ने स्टर्जन मछली पर निगाह डाली और चैन की साँस ली । उसका चेहरा खिल गया और उसकी आँखों में संतोष का भाव आ गया । वह झुका और उसने अपने मुँह से पहिये के चरमराने जैसी आवाज़ निकाली । वह थोड़ी देर वहीं खड़ा रहा । फिर खुश हो कर उसने अपनी उँगलियाँ चटकाईं और दोबारा अपने होठों से चटखारा लेने की आवाज़ निकाली ।              ” ओह ! हार्दिक चुम्बन की आवाज़ । मारफ़ा , तुम वहाँ किसे चूम रहीहो ? ” बगल वाले कमरे में से किसी की आवाज़ आई , और जल्दी ही दरवाज़े पर विद्यालय के शिक्षक वैन्किन का घने बालों वाला सिर नज़र आया । ” तुम यहाँ किसे चूम रही थी ? अहा ! बहुत अच्छे ! सर्गेई कैपितोनिच ! क्या शानदार बुज़ुर्ग हैं आप ! तो आप इस महिला के साथ हैं ! “              ” मैं किसी को नहीं चूम रहा था , ” अख़िनेयेव ने घबराहट में कहा , ” मूर्ख आदमी , तुम्हें यह बात किसने बताई ? मैं तो केवल अपने होठों से चटखारा लेने की आवाज़ निकाल रहा था क्योंकि मैंने बढ़िया पकी हुई मछली देखी थी । “             ” ये बहाने मुझे नहीं , किसी और को बताना , ” वैन्किन चहक कर बोला । उसके चेहरे पर एक चौड़ी मुस्कान फैल गई थी । फिर वह दरवाज़े से हटकर दूसरे कमरे में चला गया । अख़िनेयेव झेंप गया ।             ” शैतान ही जानता है कि इस घटना का नतीजा क्या होगा ! ” उसने सोचा ।” अब वह दूसरों से मेरी निंदा करता फिरेगा । बदमाश कहीं का ! उफ़्फ़ ! वह जंगली पूरे शहर के सामने मेरी इज़्ज़त उतार देगा ! “              अख़िनेयेव सहमता हुआ बैठक में दाखिल हुआ । वह चोर-निगाहों से यह देख रहा था कि वैन्किन क्या कर रहा है । वैन्किन पियानो के पास खड़ा था । उसका सिर झुका हुआ था और वह पुलिस इंस्पेक्टर की साली के कान में कुछ फुसफुसा रहा था । उसकी बात सुन कर वह महिला हँस रही थी ।             ” ज़रूर वह मेरी ही निंदा कर रहा है , ” अख़िनेयेव ने सोचा । ” शैतान उसका बेड़ा ग़र्क करे ! उस स्त्री ने वैन्किन की बातों को सच मान लिया है , तभी तो वह हँस रही है । हे ईश्वर ! नहीं , मैं इस बात को ऐसे ही नहीं छोड़ सकता । मुझे लोगों को सच्चाई बतानी ही पड़ेगी ताकि कोई भी वैन्किन की बातों पर यक़ीन न करे । मैं खुद इस बारे में सबको बताऊँगा ताकि अंत में वैन्किन की बातें मनगढ़ंत गप्प साबितहों । “              घबराहट में अपने सिर को खुजलाते हुए अख़िनेयेव चल कर पदेकोई के पास पहुँचा ।             ” अभी थोड़ी देर पहले मैं रात के खाने की तैयारी देखने के लिए रसोई में गया था ,” उसने अपने फ़्रांसीसी मेहमान से कहा । ” मुझे पता है , आप को मछली पसंद है । इसलिए मैने एक ख़ास बड़ी स्टर्जन मछली का इंतज़ाम किया है । लगभग दो गज लम्बी मछली ! हा, हा हा ! अरे वह बात आपको बताना तो मैं भूल ही गया । रसोई में उस स्टर्जन मछली से जुड़ा एक क़िस्सा मैं आपको बताता हूँ । थोड़ी देर पहले मैं रात के खाने का इंतज़ाम देखने के लिए रसोई में गया । अच्छी तरह से पकी स्टर्जन मछली को देखकर मैंने होठों से चटखारा लिया । वह बड़ी मसालेदार मछली लग रही थी । तभी वह मूर्ख वैन्किन रसोई के दरवाज़े पर आया और कहने लगा —  हा,हा,हा ! और कहने लगा — ‘ आहा ! तो तुम यहाँ मारफ़ा को चूम रहे हो ! आप ही सोचिये — रसोइये का चुम्बन ! क्या मनगढ़ंत बात थी ! महामूढ़ व्यक्ति ! वह औरत वैसे ही दिखने में बदसूरत है । … Read more

लली

मिताली ने डाइनिंग टेबल पर अपनी सारी फाइलें  फैला ली और हिसाब किताब करने लगी | आखिर गलती कहाँ हो रही है जो उसे घाटा हो रहा है | कुछ समझ में नहीं आ रहा है | एक तो काम में घाटा ऊपर से कामवाली का टेंशन | महारानी खुद तो गाँव चली गयीं और अपनी जगह किसी को लगा कर नहीं गयीं | पड़ोस की निधि से कहा तो है की अपनी कामवाली से कह कर किसी को भिजवाये | पर चार दिन हो गए अभी तो दूर – दूर तक कोई निशान दिखाई नहीं दे रहे हैं | आखिर वो क्या – क्या संभाले ? अपने ख्यालों को परे झटक कर मिताली फिर हिसाब में लग गयी | तभी दिव्य कमरे में आये | उसे देख कर बोले ,” रहने दो मिताली तुमसे नहीं होगा | ये बात मिताली को तीर की तरह चुभ गयी | दिव्य को देख कर गुस्से में चीखती हुई बोली ,” क्या कहा ? मुझसे नहीं होगा … मुझसे , मैं MBA हूँ | वो तो तुम्हारी घर गृहस्थी के चक्कर में इतने साल खराब हो गए , वर्ना मैं कहाँ से कहाँ होती | वो ठीक हैं मैडम पर आपके इस प्रोजेक्ट के चक्कर में मेरा बैंक बैलेंस कहाँ से कहाँ जा रहा है | दिव्य ने हवा में ऊपर से नीचे की और इशारा करते हुए कहा | मिताली कुछ कहने ही वाली थी की तभी बाहर से आवाज़ आई ,” लली “ मिताली ने बाहर जा कर देखा | कोई 52- 55 वर्ष  की महिला खड़ी  थी | मोटी स्थूलकाय देह , कपड़ों से उठती फिनायल की खुशबू से मिताली को समझते देर न लगी की ये काम वाली है जिसे निधि ने भेजा है | इससे पहले की मिताली कुछ कहती वो ही मुस्कुराते हुए बोल पड़ी ,”सुनो लली ,  कमला नाम है मेरा , निधि मेमसाहब ने बताया था की आप को कामवाली की जरूरत है | मिताली : ( उसे देखते हुए ) हां पर मुझे कम उम्र लड़की चाहिए | कमला : देखो लली , काम तो हम लड़कियों से ज्यादा अच्छा करते हैं | एक बार करा कर देखोगी तब पता चलेगा | मिताली : देखो मेरा समय बर्बाद मत करो , तुम्हारा शरीर इतना भारी है तुम कैसे पलंग के नीचे से कूड़ा निकाल पाओगी | कमला : अरे लली , उसकी चिंता न करो , हम सब कर कर लेंगें | मिताली : कैसे? कमला : अब का बताये लली ,करा के तो देखो मिताली : नहीं कराना , मुझे लड़की ही चाहिए बस | कमला : देखो लली , मिताली : ( गुस्से में उसकी बात बीच में ही काटते हुए ) क्या , लली , लली लगा रखा है | बड़े – बड़े बच्चे हैं मेरे | अब कोई कम उम्र लली थोड़ी न हूँ मैं | कमला : आश्चर्य से उसे देख कर बोली , “ का बातावें धोखा खा गए | अब आप को देख कर कोई कह सकता है की आप के बड़े – बड़े बच्चा  हैं | लड़की सी लगती हैं उमर का  तो तनिक पता ही नहीं चलता है | भाग हैं , भगवान् की देन है | उसके शब्दों ने जादू सा असर किया | अब मिताली थोड़ी ठंडी पड़ गयी | धीरे से बोली , “ कितना लोगी ?’ कमला : सफाई बर्तन का पंद्रह सौ मिताली :पंद्रह सौ , अरे ये तो बहुत ज्यादा हैं | पहले वाली तो बारह सौ लेती थी |  इससे अच्छा तो बर्तन मैं ही कर लूं और तुम सफाई कर लो  |मिताली घाटे का गणित लगाते हुए बोली | कमला : क्या  लली , अपने हाथ देखे हैं | कितने मुलायम हैं | सबके कहाँ होते हैं ऐसे हाथ |  भगवान् बानाए रखे | कया  , २ ००- २५०  रुपया के लिए इन्हें भी कुर्बान कर दोगी | मिताली अपने हाथ देखने लगी | सच में कितने मुलायम हैं | तभी तो दो नंबर की चूड़ियाँ भी झटपट चढ़ जाती है | सहेलियां भी तो अक्सर तारीफ करती हैं | मिताली ने अपने हाथ देखते हुए स्वीकृति में सर हिलाया | खुश होते हुए कमला बोली ,” ठीक है लली , कल से आयेंगे | फिर से लली ,इस बार मीताली  के स्वर में प्यार भरी  झिडकी थी | कमला हँसते हुए बोली ,” अब हम तो लली ही कहियें | जैसे दिखती हो , वही कहेंगे | और दोनों हँस पड़ीं |                            कमला ने काम पर आना शुरू कर दिया | और मिताली उसी प्रोजेक्ट , हिसाब , किताब , गुणा  – भाग में लग गयी | वो घाटे  से उबर नहीं पा रही थी | क्या दिव्य सही कहते हैं की उसे बुकिश नॉलिज है | प्रैक्टिकल नहीं | कहीं , कुछ तो है गलत है | पांच – छ : लोगों की छोटी सी कंपनी को वो संभाल  नहीं पा रही थी | सबके इगो हैंडल करना उसके बस की बात नहीं थी | पैसा वो लगाये , काम वो सबसे ज्यादा करे और मनमर्जी सबकी सहे |  हर कोई अपनी वाहवाही चाहता था |  दिव्य कहते हैं की सब का इगो हैंडल करना ही सबसे बड़ा हुनर है | नहीं तो कम्पनी ही टूट जायेगी |फिर बचेगा क्या ? कैसे करे वो ? और अब तो दिव्य ने भी पैसे देने से इनकार कर दिया है  | मिताली हारना नहीं चाहती थी |उसने लोन लेने का मन बनाया | सारे कागज़ तैयार किये | पर MBA की डिग्री की फोटो कॉपी रह गयी | मिताली डिग्री की फोटो कॉपी कराने बाज़ार के लिए निकली |                              रास्ते में पार्क पड़ता है | जहाँ काम वालियां अक्सर झुण्ड में बैठ कर बतियाती हैं | उसे दूर से कमला बैठी दिख गयी | कमला ने उसे नहीं देखा वो बातचीत में मशगूल थी |  पार्क के पास पहुँचते – पहुँचते मिताली को उनकी सपष्ट आवाज़े सुनाई देने लगीं | एक बोली ,” कमला चाची इस उम्र में भी तुम कैसे इतने घर पकड़  ली हो | हमें तो 40 की होने के बाद से ही काम नहीं मिलने लगा | सब ओ लड़की … Read more

अर्नेस्ट हेमिंग्वे की अनूदित अमेरिकी कहानी : पुल पर बैठा बूढ़ा

                                                                                  — मूल कथा : अर्नेस्ट हेमिंग्वे                                                        — अनुवाद : सुशांत सुप्रिय               स्टील के फ़्रेम वाला चश्मा पहने एक बूढ़ा आदमी सड़क के किनारे बैठा था । उसके कपड़े धूल-धूसरित थे । नदी पर पीपों का पुल बना हुआ था और घोड़ा-गाड़ियाँ , ट्रक , मर्द , औरतें और बच्चे उस पुल को पार कर रहे थे । घोड़ा-गाड़ियाँ नदी की खड़ी चढ़ाई वाले किनारे से लड़खड़ा कर पुल पर चढ़ रही थीं । सैनिक पीछे से इन गाड़ियों को धक्का दे रहे थे । ट्रक अपनी भारी घुरघुराहट के साथ यह कठिन चढ़ाई तय कर रहे थे और किसान टखने तक की धूल में पैदल चलते चले जा रहे थे । लेकिन वह बूढ़ा आदमी बिना हिले-डुले वहीं बैठा हुआ था । वह बेहद थक गया था इसलिए आगे कहीं नहीं जा सकता था ।                पुल को पार करके यह देखना कि शत्रु कहाँ तक पहुँच गया है , यह मेरी ज़िम्मेदारी थी । आगे तक का एक चक्कर लगा कर मैं लौट कर पुल पर आ गया । अब पुल पर ज़्यादा घोड़ा-गाड़ियाँ नहीं थीं , और पैदल पुल पार करने वालों की संख्या भी कम थी । पर वह बूढ़ा अब भी वहीं बैठा था ।               ” आप कहाँ के रहने वाले हैं ? ” मैंने उससे पूछा ।               ” मैं सैन कार्लोस से हूँ , ” उसने मुस्करा कर कहा ।               वह उसका अपना शहर था । उसका ज़िक्र करने से उसे खुशी होती थी , इसलिए वह मुस्कराया ।               ” मैं तो पशुओं की देखभाल कर रहा था , ” उसने बताया ।               ” ओह , ” मैंने कहा , हालाँकि मैं पूरी बात नहीं समझ पाया ।               ” हाँ , मैं पशुओं की देख-भाल करने के लिए वहाँ रुका रहा । सैन कार्लोस शहर को छोड़ कर जाने वाला मैं अंतिम व्यक्ति था । “               वह किसी गरड़िए या चरवाहे जैसा नहीं दिखता था । मैंने उसके मटमैले कपड़े और धूल से सने चेहरे और उसके स्टील के फ़्रेम वाले चश्मे की ओर देखते हुए पूछा — ” वे कौन से पशु थे ? “               ” कई तरह के , ” उसने अपना सिर हिलाते हुए कहा , ” मुझे उन्हें छोड़ कर जाना पड़ा । “               मैं पुल पर हो रही आवाजाही और आगे एब्रो के पास नदी के मुहाने वाली ज़मीन और अफ़्रीकी-से लगते दृश्य को ध्यान से देख रहा था । मन-ही-मन मैं यह आकलन कर रहा था कि कितनी देर बाद मुझे शोर का वह रहस्यमय संकेत मिलेगा ,जब दोनों सेनाओं की आमने-सामने भिड़ंत होगी । किंतु वह बूढ़ा अब भी वहीं बैठा हुआ था ।              ” वे कौन-से पशु थे ? ” मैंने दोबारा पूछा ।              ” उनकी संख्या तीन थी , ” उसने बताया । ” दो बकरियाँ थीं और एक बिल्ली थी और कबूतरों के चार जोड़े थे । “              ” और आप को उन्हें छोड़ कर जाना पड़ा ? ” मैंने पूछा ।              ” हाँ , तोपख़ाने की गोलाबारी के डर से । सेना के कप्तान ने मुझे तोपख़ाने की मार से बचने के लिए वहाँ से चले जाने का आदेश दिया । “              ” और आपका कोई परिवार नहीं है ? ” मैंने पूछा । मैं पुल के दूसरे छोर पर कुछ अंतिम घोड़ा-गाड़ियों को किनारे की ढलान से तेज़ी से नीचे उतरते हुए देख रहा था ।             ” नहीं , ” उसने कहा , ” मेरे पास केवल मेरे पशु थे । बिल्ली तो ख़ैर अपना ख़्याल रख लेगी , लेकिन मेरे बाक़ी पशुओं का क्या होगा , मैं नहीं जानता । “             ” आप किस राजनीतिक दल का समर्थन करते हैं ? ” मैंने पूछा ।             ” राजनीति में मेरी रुचि नहीं , ” वह बोला । ” मैं छिहत्तर साल का हूँ । मैं बारह किलोमीटर पैदल चल कर यहाँ पहुँचा हूँ , और अब मुझे लगता है कि मैं और आगे नहीं जा सकता । “              ” रुकने के लिए यह अच्छी जगह नहीं है , ” मैंने कहा । ” अगर आप जा सकें तो आगे सड़क पर आपको वहाँ ट्रक मिल जाएँगे , जहाँ से टौर्टोसा के लिए एक और सड़क निकलती है । “              ” मैं यहाँ कुछ देर रुकूँगा , ” उसने कहा । ” और फिर मैं यहाँ से चला जाऊँगा । ट्रक किस ओर जाते हैं ? “              ” बार्सीलोना की ओर , ” मैंने उसे बताया ।              ” उस ओर तो मैं किसी को नहीं जानता , ” उसने कहा , ” लेकिन आपका शुक्रिया । आपका बहुत-बहुत शुक्रिया । “              उसने खोई और थकी हुई आँखों से मुझे देखा और फिर अपनी चिंता किसी से बाँटने के इरादे से कहा , ” मुझे यक़ीन है ,बिल्ली तो अपना ख़्याल रख लेगी । बिल्ली के बारे में फ़िक्र करने की ज़रूरत नहीं । लेकिन बाक़ियों का क्या होगा ? बाक़ियों के बारे में आप क्या … Read more

ईद मुबारक ~सेवइयों की मिठास

  पतिदेव को टूर पर जाना था | मैं सामान पैक  करने में जुटी थी और ये जनाब टी वी देखने में | मुझे लगता है दुनिया भर के  पुरुष इस मामले में एक से ही हैं  | कहीं जाना हो तो कुछ सामन भले ही छूट जाए पर खबर एक भी न छूटे | खाना – पीना,  ओढना -बिछाना जैसे सब कुछ खबरे  ही हैं | पर आज तो हद हो गयी समय भागता ही जा रहा रह और ये हैं की टीवी पर ही नज़रे गडाए बैठे हैं | सारी  दुनिया की ख़बरों का जिम्मा आप ने ही लिया है क्या ,”बडबडाते  हुए मैं टी वी बंद करने आई | पर श्रीमान जी मेरे इरादों को भांप कर मुझे रोकते हुए बोले अरे , रुको , रुको , इतनी महत्वपूर्ण बहस चल रही है | मैं टी वी की तरफ देखा | कुछ बड़े नामी गिरामी पत्रकार धर्म के मुद्दे पर बहस कर रहे थे | यूँ तो उन सब के कुछ नाम थे पर मुझे दिख  रहे थे कुछ … जो सिर्फ मुसलमान थे , कुछ … जो सिर्फ हिन्दू थे | पूरा मुकम्मल इंसान तो कोई था ही नहीं |                                    खैर इधर पतिदेव टूर के लिए निकले उधर मेरे खास रिश्तेदारों का फोन आ गया | वो मेरे घर आना चाहते हैं | यूँ तो कभी कोई आये जाए अच्छा ही लगता है | पर ये रिश्तेदार बड़े ही हाई – फाई व् दिखावा पसंद थे | अपनेघर की नाक न कटे इसका  ध्यान मुझे ही रखना था |मैं शॉपिंग लिस्ट मन ही मन तैयार करने लगी |  तभी  ही मेरा दिमाग बेड रूम की तरफ गया | दरसल  बेडरूम की की अलमारी  बिलकुल सड़ गयी थी | कुछ समय पहले ही पता चला था की दीमक उसे अंदर ही अंदर खा चुकी है |ये दीमक भी बड़ी खतरनाक होती है , इसका पता तब चलता है जब सब कुछ खतम हो जाता है |  तुरंत पेस्ट कंट्रोल  वालों को बुलाया | दीमक मारक दवाइयों ने दीमक तो खत्म कर दी पर अलमारी का एक बड़ा हिस्सा जर्जर हो चूका था | सोंचा था बाद में बनवा लेंगे | परन्तु अब उसको जल्दी से जल्दी बनवाना मेरी मजबूरी थी क्योंकि अलमारी का सारा सामन घर के दूसरे कमरों में बेतरतीब पड़ा था | इस उथल – पुथल के दौरान मेहमानों के आने की सूचना , मैं तो एकदम परेशांन  हो गयी |  मैंने अपनी समस्या  पास में रहने वाली मिसेज जुनेजा को बतायी | उन्होंने कारपेंटर का नंबर दिया | मैंने फोन करके जल्दी से जल्दी उन्हें आने को कहा | पर उन्होंने भी काम ज्यादा और कारीगर कम होने की बात कह कर आने में असमर्थता जताई | फिर शायद मुझ पर तरस खा कर उन्होंने  मुझे एक दूसरा नंबर दिया और कहा आप उनसे बात कर लें | उसने भी कहा ,” मैडम इस समय तो कारीगर मिलना मुश्किल है , फिर भी एक लड़का है पूंछता हूँ | अगले दिन कोई २५ – २६ साल का लड़का मेरे घर आया और कहा की अमुक सर ने आपकी अलमारी बनाने के लिए कहा है | मैंने उसे जल्दी से जल्दी अलमारी बनाने की ताकीद देते हुए पूंछा ,” नाम क्या है तुम्हारा ? उसने उत्तर दिया – हामिद , उसके बाद वो अपने काम में जुट गया | मैं उसके लिए चाय नाश्ता ले कर गयी तो उसने मुस्कुरा कर कहा ,” नहीं दीदी मेरे रोजे चल रहे हैं | अच्छा – अच्छा कहते हुए मैंने चाय – नाश्ते  की ट्रे हटा ली | हामिद , उत्तर प्रदेश के कासगंज का रहने वाला था |यू . पी वाला होने के नाते एक भाईचारे का रिश्ता तो जुड़ ही गया था उससे | बड़ी विचित्र बात है जब आप किसी दूसरे प्रदेश में रहते हैं तो उस प्रदेश का हर व्यक्ति आपको अपना  सा लगता है | इसे वही जान सकता है जो रोजी – रोटी के लिए दूसरे प्रदेश में रह रहा हो |  यही अपनापन मुझे हामिद में नज़र आया |मुझे वो बिलकुल अपने छोटे भाई सा लगा | यू पी वालों की आदत के अनुसार ही हामिद भी काम करते समय बोलता रहता था | उसी ने बताया की  उसका परिवार वहीं कासगंज में  रहता है | बीबी का नाम शबाना है , दो बच्चे है  आदि – आदि | रोजे  रखने के बावजूद हामिद   बड़े मन से काम कर रहा था , हां !थोड़ी देर के लिए  दोपहर में नमाज के लिए जरूर जाता |  मैं आश्वस्त थी तभी मेरे  रिश्तेदारों का फोन आया | उनका प्रोग्राम कुछ बदल गया | अब वो वो २८ की जगह २६ को यानी ठीक ईद वाले दिन आ रहे हैं | मैंने हामिद से जल्दी काम खत्म करने को कहा और बाकी तैयारियों में जुट गयी | बाज़ार से लौटते समय मिसेज जुनेजा टकरा गयी | मैंने उन्हें फोन नंबर देने के लिए शुक्रिया कहते हुए कहा  ” हामिद अच्छे से  काम कर रहा है | मिसेज जुनेजा चौंकते हुए बोलीं ,” क्या हामिद !!! तब तो हो चुका तुम्हारा काम , ईद आने वाली है | देखना अपने गाँव जाएगा ईद मानाने , आखिरी जुम्मे से छुट्टी ले लेगा | तुम्हारी अलमारी तो फंस गयी | अब इतनी जल्दी कोई दूसरा इंतजाम भी नहीं हो सकता | अब सामानों को कैसे व्यव्स्तिथ  करोगी इसके बारे में सोंचों |  मैं निरुत्तर सी हो गयी | मुझे लगा , ” हो सकता है मिसेज जुनेजा की बात सही हो | हामिद भी तो घर जाने की बात कर रहा था | ओह ! तो क्या , मेरा काम यूँ ही अटका रहेगा | फिर खुद से ही अपनी बात को काटा ,” अरे नहीं , हामिद कह तो रहा था की वो समय पर काम कर के दे देगा | कितनी लगन  से लगा भी है | दूसरे दिन हामिद ने आते ही कहा ,” दीदी आज दोपहर में ही चला जाऊँगा | रमजान का आखिरी जुम्मा है  ना | फिर शाम को आऊंगा थोड़ी देर के लिए … Read more

आग

लेखिका – स्मिता दात्ये आग“दीदी!”हूँ ”“तुमने आग देखी है?”“क्या बात है छोटी अब तक सोई नहीीं? कैसी बातें कर रही है? सो जा”“दीदी, आग बहुत जलाती है न? कैसा लगता होगा जलते समय?”“छोटी, तेरी शादी हुए 28 साल होने को आए, पर है त अभी छोटी ही। इतने सालों में मैंने कितनी बार तुझे अपने घर बुलाया, रहने के लिए , पर तू कभी आई नहीीं। हमेशा महेशजी का बहाना करके बात टाल गई। इस बार तू ने खुद कहा की तुझे मुझसे मिलना है , मेरे घर रहने आना चाहती है। पता है मुझे कितनी खुशी हुई थी। तू ने कहा था की तू पूरा महीना भर रहना चाहती है। तुझे आए 7-8 दिन हुए हैं, पर त इतनी गुमसुम रहती है की क्या कह ूँ। कुछ बताती भी नहीीं। सच बता, क्या बात है?”“कुछ नहीीं दीदी, मैं तो बस आग के बारे में सोच रही थी। क्या तुम्हें इस आग से भी भयंकर किसी ऐसी आग की जानकारी है, जो दिखाई नहीीं देती, पर तन-मन को जलाती है .. जलाती रहती है…?“दीदी, तुम उठकर क्यों बैठ गई? दिन भर इतना काम करती रहती हो, थक जाती हो, रात को तो अच्छी नीींद मिलनी चाहिए । पर मेरे कारण तुम ठीक से सो भी नहीीं पा रही हो। ठीक है, अब मैं कुछ नहीीं कह ूँगी। तुम सो जाओ।“ “नहीीं छोटी, अब तो तुझे बताना ही पडेगा क्या बात है। मेरा मन कह रहा है कोई बहुत भयंकर बात है ज़रूर।““सच में दीदी, कुछ भी नहीीं। मैं तो बहुत खुश ह ूँ। महेशजी भी एकदम सीधे -सादे इंसान हैं।““हाूँ, वह तो हम जानते ही हैं। जब भी तुम्हारी बात चलती है, सब तुम्हारे भाग्य पर नाज करते हैं की छोटी को कितना सज्जन पति मिला है। उन्हें देखकर, उनसे मिलकर दुनिया में भलाई के जीवत होने पर भरोसा हो जाता है। तेरे जीवन में कभी कोई परेशानी आई ही नहीीं। सास-ससुर भी भले इन्सान थे, देवर और ननद अपने-अपने घर में सुखी। वक्त-जरूरत पर साथ देते हैं। महेशजी को अपनी रिसर्च से फुरसत नहीीं। जो परोसोगी, खा लेंगे। तुम अपने अड़ोसियों -पड़ोसियों को लेकर खुश। बस, कमी है तो एक बच्चे की।““अब वह बात क्यों दीदी। मैंने कहा न, अब तुम्हें तंग नहीीं करती। सो जाओ। मैं भी सो जाती ह ूँ।““अच्छा छोटी, सच बता, कभी तेरा मन नहीीं हुआ की कोई बच्चा ही गोद ले ले? हमें पता है की तेरी किस कमज़ोरी की वजह से त माूँ नहीीं बन सकी। पर गोद लेना तो संभव था न? तेरा कभी जी नहीीं किया ? महेशजी ने भी नहीीं पूंछा कभी?“दीदी, अब बस भी करो न। मेरा कभी मन नहीीं हुआ की बच्चा गोद ले ल ूँ। अब अपना बच्चा अपना होता है। महेशजी ने भी कभी जोर नहीी दिया । बस, हो गई तसल्ली? अब सो जाऊूँ मैं? तुम सोचती बैठो।“…………………………………………………………..“दीदी”,“हाूँ छोटी।““सो गई क्या?”“नहीीं, बस अब नीींद आने ही वाली है। पर तू तो कब की लेटी है, तुझे अब तक नीींद नहीीं लगी?”“नहीीं, बस य ूँ ही कुछ खयाल मन में आ रहे थे।““अब क्या फिर कोई सवाल उठा है मन में?”“दीदी, अस्पर्शा का क्या मतलब होता है?”“लो. यह भी कोई बात हुई? तुम भाषा और साहित्य की जानकार, मैं ठहरी गंवार । मुझसे शब्दों का अर्थ पूछोगी, तो शायद अनर्थ हो जाएगा।““नहीीं, बताओ न!”“तुम जानती हो। कफर भी, मेरा इम्तहान लेना चाहती हो तो सुन लो – अस्पर्शा का अर्थ होता है जिसे कभी किसी ने छुआ नहीीं. किसी ने स्पर्श नहीं किया । अब टीचरजी, बताओ मैंने सही उत्तर सही है या गलत?”“ह ूँ।““इतनी आह क्यों भर रही हो? मैंने सही उत्तर दिया , इसललए परेशान हो गई क्या?”“नहीीं दीदी। ऐसा कुछ भी नहीीं। तुमने ठीक कहा। चलो अब सो जाएूँ। बहुत नीींद आ रही है।““छोटी, कुछ बात तो है। जब तुझे अपनी दीदी पर भरोसा हो, तब बता देना। आ मेरे पास। जैसे बचपन में सोते थे, वैसे ही सोएूँगे आज।““आह, दीदी। कितना अच्छा लग रहा है। क्या किसी स्पर्श में इतना सुख होता है? मुझे कभी पता ही नहीीं चला। मेरी शादी हुई, विदा के समय माूँ से, तुमसे ललपटकर रोई थी, बस, किसी इन्सान का वह आखरी स्पर्श था।“क्या कह रही है छोटी!”“मैं अट्ठाईस सालों से किसी के स्पर्श के लिए तरसती रही ह ूँ, आज तुमसे वह सुख पाकर मेरी सारी इच्छाएूँ पू री हो गईं। अब कोई चाह बाकी नहीीं। अब यदि मौत भी आए, तो खुशी से गले लगा ल ूँगी।““कैसी बात कर रही है छोटी। मरे तेरे दुश्मन। मेरी तरफ देख, सच बता …अरे, सो गई क्या? इतनी जल्दी नीींद लग गई? लगता है सालों से चैन की नीींद नहीीं सोई। सो जा छोटी, अपनी दीदी के पास निश्चिन्त होकर सो जा।………………………………………………………………..“दीदी”“दीदी, सो गई क्या?”“लगता है सो ही गई। आज सारा दिन किसी न किसी कारण से लोगों का आना-जाना लगा रहा। बेचारी पूरे दिन लगी रही। थक गई होगी। लेटते ही नीींद लग गई।““दीदी, कल तुमने कहा की क्या मैं अस्पर्शा का अर्थ नहीीं जानती। भला मुझसे बेहतर कौन जान सकता है इस शब्द का अर्थ ?“छोटी, उठकर क्यों बैठ गई, नीींद नहीीं आ रही?”“अरे दीदी, तुम जाग रही हो, मुझे लगा सो गई हो।““सो ही गई थी। पर तुम बार बार करवट बदलकर मुझे तंग कर रही हो।““सॉरी दीदी।““पगली, सॉरी कैसी बात की? मैं तो मजाक कर रही थी। पर ये तो बता,तू उठकर क्यों बैठ गई? नीींद नहीीं आ रही है क्या? अच्छा, मुझे नहीीं बताओगी अपने भीतर तुम क्या तूफ़ान छिपाए बैठी हो?”“दीदी, सुहागरात के समय पति अपनी शारीररक कमज़ोरी को छिपाने के लिए पत्नी को एक पत्र दिखलाता है, जो पत्नी के किसी तथाकथित प्रेमी ने लिखा था। पत्नी को धमकाता है की यदि तुमने कभी मेरे बारे में किसी से कुछ भी कहा, तो याद रखना, तुम्हें बदनाम करने में मैं कोई कसर नहीीं छो दूंगा ““तू किसकी बात कर रही है छोटी?”“फिर पति अपने काम में दीवानों की तरह जुट जाता है। लोगों के सामने वह एक आदर्श पति है। आदर्श इन्सान। जो पत्नी को यह मानने और घोषित करने के ललए मजबूर करता है की माँ न बन पाना उसकी अपनी कमजोरी है, पति की नहीीं। दुनिया की नज़रों … Read more

फिर हुई मुलाकात

‘क्या वक्त आया है, रिटायर जिला-शिक्षा अधिकारी को अब टीचर नहीं पहचानता है ! मैडम लता शर्मा, ने ये मैडम माथुर को नहीं कहा,पर मन ही मन सोच रही है |’ जब वो कैमेस्ट्री की टीचर माथुर के पास अपनी पोती रश्मि को कोचिंग क्लास में पढ़ाने की बात करने के लिए आई थी |’क्या आप अपने तीन ग्रुप मे से किसी एक में भी और, लड़की को नहीं पढ़ा सकती !ये तो बड़ी हैरानी की बात है|…आपसे इस जवाब की अपेक्षा कतई नहीं थी |’मैडम शर्मा ने लगभग निराश होते हुए कहा |‘अब आपसे क्या कहूँ मैडम, ,टाइम होता तो आपको निराश नहीं करती | स्कूल से आने के बाद घर की, बच्चो की जिम्मेदारी, पूरी करने के बाद इन तीन ग्रुप को मुश्किल से पढ़ा पाती हूँ | मै पैसो के लिए नही बस आत्म संतुष्टि के अपने ज्ञान को बच्चियों में बाँट देती हूँ, वो पूर्ण मेहनत के साथ ऐसे में और, एक लड़की की जिम्मेदारी नहीं ले सकती |’ मैडम माथुर ने अपनी सफाई दे दी और चुप हो गयी | आपका कहना अपनी जगह पर बिलकुल सही है ,पर मै भी, अपनी विवशता के कारण आपके पास आयी| मेरी अब वृद्धा अवस्था है विभिन्न …..रोगो ने जकड़ लिया है | कुछ समय पहले दिल का दौरा पढ़ा तो डॉ. ने आराम करने को बोल दिया | नहीं तो मै आपको तकलीफ देने नहीं आती |’ खैर,जाने दो टाइम-टाइम की बात है,मेरी जगह अभी आपका कोई परिचित होता तो ,टाइम का बहाना बना कर यूँ टाल देती आप ?थैंक्स टॉक टू मी, इतना कह कर मैडम लता शर्मा अपनी पोती का हाथ पकड कर धीरे-धीरे कमरे से बाहर आ गयी |लम्बा-गोरा,पतला शरीर ,चौड़ा ललाट,चेहरे पर गजब का तेज, मैडम लता शर्मा अपनी पोती के साथ आकर गाड़ी मे बैठ कर चली गयी |घर आकर थकान के कारण पलंग पर तकिये के सहारे लेट गयी | विचारो की श्रंखला शुरू हो गयी | अपने ज़माने की मशहूर कैमेस्ट्री की टीचर,मिस लता ने बी. एस. सी. ऍम.एस. सी. टॉप किया | पिता की आर्थिक हालत ठीक नहीं होने से जल्दी ही सरकारी टीचर की नौकरी करनी पड़ी | सपना तो कॉलेज लेक्चरर बनने का था | पर उस कट स्कूल टीचर से ही संतोष करना पड़ा | इंसान अगर किसी चीज को पाने की ठान ले तो पाकर रहता है | मिस लता ने कड़ी मेहनत करके चार वर्ष बाद ही ”लोक सेवा आयोग” से फर्स्ट ग्रेड परीक्षा पास करी और स्कूल लेक्चरर बन गयी |स्कूल मे एक-एक लड़की को कैमेस्ट्री समझाती और उनके सवालों को हल करती थी | सुबह और शाम को वो अपने घर मे भी लडकियों को पढाने के लिए बेच लगाती थी | जो लडकिया पढने मे कमजोर होती उन पर तो विशेष ध्यान देती | लडकियां भी निसंकोच मैडम के घर पढने के लिए जाती थी | किसी से कोई पैसा नहीं लेती | विधा-दान करना देश के प्रति सेवा समझती, बजाय विधा को बेचने |उन्ही दिनों उसके लिए लड़के की तलाश भी होने लगी | वो अभी शादी नहीं करना चाहती थी ,पर माता-पिता के आग्रह को टाल भी नहीं सकती थी | और वन-विभाग के फारेस्ट-अधिकारी मिस्टर शर्मा के साथ उसकी शादी हो गयी |अब वो मिस लता से मिसेज शर्मा बन गयी |जहाँ भी जिस भी स्कूल मे उसकी पोस्टिंग हुई,वहां लडकियों की सबसे प्रिय और अच्छी टीचर बन कर रही | बड़ी कुशलता के साथ पढ़ाती थी | अपनी मेहनत के कारण उसने खूब नाम कमाया | अब वो ‘’सीनियर सेकेंडरी’’ स्कूल की प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत है | हर साल उसके स्कूल की लडकियों ने राज्य मे प्रथम पोजीशन हासिल करी| साथ ही स्कूल की अन्य गतिविधियों मे भी लडकियों ने अपना और स्कूल का नाम रौशन किया | अंत मे मैडम शर्मा प्रमोशन लेते-लेते जिला-शिक्षा अधिकारी की पोस्ट से रिटायर हुई |अब ढलती उम्र मे अपने परिवार के साथ सुख-चैन का जीवन अपने अपनों के साथ बसर कर रही है | एक पुत्र- और एक पुत्री,पति बस यही उनका परिवार;पुत्री अपने ससुराल और पुत्र अपने परिवार के साथ ही रहता है | एक पौत्र-पौत्री है जो इनकी आँखों के तारे, इनके जीने का सुखद अहसास भी है | पुत्र अकाउंटेंट है| पुत्र-वधु कुशल गृहणी के साथ एक अच्छी बहु,पत्नी और माँ है |पौत्री रश्मि अपनी दादी से ही पढना चाहती थी | अपनी तकलीफ के कारण अभी नहीं पढ़ा सकती इसलिए उसकी स्कूल की टीचर के पास बात करने गयी | पर सब बेकार ! रश्मि ने कहा ‘आप कब तक ठीक होगी?’ ‘क्या बताऊ , बेटा डॉ . ने और, एक महिना आराम करने को कहा है | तब तक तुम रुक जाओ फिर मै सारा कोर्स करवा दूंगी |’ मिसेज लता शर्मा ने कहा | ‘ पलंग पर लेटी है मिसेज शर्मा, और सोच रही है कि मैंने पहले ही कहा था बेटे से कि अब रिटायर होने के बाद कौन पहचानेगा मुझे ! विचारो की श्रंखला उसे अतीत की यादो मे ले गयी |पापा के पास कितने सारे लड़के-लडकिया दिन भर पढने को आते रहते थे | कभी किसी को निराश नहीं किया सबको गणित सीखने मे उनकी भरपूर मदद करते थे | गणित पर उनका बहुत कंट्रोल था | बहुत सारे बच्चो को गणित मे निपुण किया था | बिना कोई पैसा लिए | सब को निशुल्क शिक्षा देते थे उन्ही का के नक्से कदम पर चलते हुए मैंने भी जीवन में बच्चो को निशुल्क पढाने का निर्णय लिया था |माँ बहुत नेक दिल और धरम-परायण स्त्री थी | पति से उनको कभी कोई शिकायत नहीं रही , जो कुछ पति ने लाकर दिया, उसी मे संतोष के साथ अपना गुजारा सहर्ष किया | ये सब सोचते-सोचते कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला | उठी तब तक शाम हो गयी थी |मिसेज शर्मा मिसेज माथुर की माँ की कॉलेज टाइम की दोस्त थी , जब मिसेज शर्मा उनके घर से निकल रही थी,तो उन्होंने बात करनी चाही ,पर तब तक मिसेज शर्मा निकल गयी थी | ‘बेटा मिसेज शर्मा जो तुम्हारी गुरु भी रही थी कभी, आज इनके आने से तुम्हे गुरु सेवा करने का मौका मिला … Read more

क्षितिज

नेहा अग्रवाल कहने को तो बहुत कुछ था आकाश के पास पर शायद धरा के पास ही वक्त की कमी थी।आज तीन साल हो गये थे आकाश को पर धरा आज भी सबके सामने उसके प्यार का मजाक बना मुस्करा कर गुजर जाती हैं ।धरा रखती तो अपने कदम जमीन पर ही है पर आकाश को ऐसा लगता था ।जैसे धरा का एक एक कदम उसके दिल की दहलीज को लहूलहान कर देता है। आकाश की धुंधली आंखो मैं एक बार फिर तीन साल पुराने मंजर का साया लहरा गया था। कालेज के पहले दिन बेफ्रिक आकाश अपनी मोटरसाइकिल स्टैंड पर लगाने ही वाला था। तभी धरा तूफान की तरह अपनी स्कूटी के साथ आकाश से जा टकरायी थी ।गलती धरा की ही थी पर वो मानने को तैयार नहीं थी चोट दोनों को ही लगी थी। पर आकाश का जख्म कुछ ज्यादा गहरा था ।उसका दिल भी घायल हो गया था इस हादसे में और उस पर सितम यह सामने वाले को कोई फरक ही नहीं पड़ा था।एक छोटा सा sorry भी नहीं बोला था धरा ने। और आकाश की तों दुनिया ही बदल गई थी उस दिन से ,सुबह शाम धरा को याद करता आकाश खुद को भूल गया था। अपनी सारी दुआ कबूल लगी थी आकाश को जब पता लगा था की धरा उसके ही क्लास में है । पर साथ ही बुरा भी लगा कि पूरी क्लास जान देती है धरा पर ।कहने को यह तो धरा की गलती नहीं थी। पर अगर आकाश का बस चलता तो वो पूरी क्लास को जादू गायब कर देता ।कोई और उसकी धरा को देखता भी था तो आकाश का खून खौल जाता था। धरा मस्त मौला सी लड़की थी ।हमेशा मुस्कुराने वाली और जब जब वो मुस्कुराती उसके गालों पर डिम्पल पड़ जाते।और बस तभी आकाश का दिल भी उसी डिम्पल में उलझ जाता। बहुत मुश्किल मे था आकाश दिल उसकी बात समझता नहीं था ।और धरा शायद समझ कर भी अन्जान बन जाती। आकाश समझ नहीं पा रहा था की क्या करें ।कैसे धरा को बताये वो धरा से कितना प्यार करता हैं साल गुजर गया था पर आकाश आज भी पहले दिन के मायाजाल से निकल नहीं पाया था। आज धरा का जन्मदिन था ।और आकाश ने भी यह सोच लिया था चाहे कुछ हो जाये वो धरा को अपने दिल की बात बता कर रहेगा।अपनी साल भर की पाकेट मनी को कुरबान कर आकाश ने धरा के लिए कालेज कैन्टीन मे एक छोटी सी पार्टी रखी थी।पर आकाश आज भी धरा को अपने प्यार का यकीन नहीं दिला पाया था। जाने क्या हो जाता था आकाश को ,धरा के सामने आते ही जैसे आकाश के सारे लफ्ज जम जाते है।आकाश को लगता जैसे अचानक हिमयुग आ गया हो ।और सब कुछ बर्फ की सफेद चादर के साये तले छुप गया हों।जज्बातों की नदी बर्फ कीचादर से ढक कर अपना वजूद खो बैठी हों।। बेबस सा आकाश धरा के प्यार की गरमी के लिए तडपता रह जाता हैं । उस दिन सुबह से ही दिल घबरा रहा था आकाश का।कुछ बुरा होने वाला हो जैसे।और तभी मोबाइल मे आये एक मैसज ने आकाश के सारे अन्देशों को सच कर दिया था। धरा को एक बस ने टक्कर मार दी थी।धरा की हालत बहुत नाजुक थी।उसके बचने की उम्मीद बहुत कम थी।आकाश को उस वक्त अपना दिल बन्द होता हुआ महसूस हुआ था ।जाने कैसे वो हास्पिटल पहुँचा था यह सिर्फ़ उसका ही दिल जानता था। बहुत मुश्किल वक्त था यह आकाश के लिए धरा को बहुत खून की जरूरत थी।आकाश के साथ और भी कुछ लोगों ने धरा को बचाने के लिए अपना रक्त दिया था। आकाश की दुआ कबूल हो गयी थी आज ।धरा फिर से लौट आयी थी जिन्दगी की तरफ और आकाश उसकी तो खुशियों का कोई ठिकाना ही नहीं था।उसको फिर से जैसे नयी जिन्दगी मिल गयी थी। कहते हैं ना जो होता है अच्छे के लिए ही होता है।आकाश के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ था। यह हादसा धरा को आकाश के प्यार का यकिन दिला गया था। धरा औऱ आकाश के जीवन में प्यार का मौसम आ गया था।आकाश को कभी कभी डर भी लगता कहीं उसकी खुशियों को किसी की नजर ना लग जाये। दूसरा साल गुजरते गुजरते पतझड़ आ गयीं थी ।औऱ यह पतझड़ सिर्फ़ मौसम में ही नहीं धरा औऱ आकाश के जीवन मे भी आयी थी । धरा फिर पहले की तरह आकाश को नजरअन्दाज करने लगती थी।आकाश से बात नहीं करती हैं ।आकाश को कभी कभी लगता शायद वो प्यार का मौसम आया ही नहीं था।उसने एक सपना देखा था ।जो आंख खुलने के साथ ही बिखर गया था।धरा आकाश से दूर जाती जा रही थी ।अब तो आकाश को भी लगने लगा था कि धरा और आकाश का कभी मिलन नहीं हो सकता दूर सें देखने मे लगता तो हैं कि दोनों मिल रहे हैं पर कितनी भी कोशिश कर ले क्षितिज तक पहुँचना तो असम्भव ही है ना ।आकाश के लिए धरा का प्यार बिल्कुल वैसा ही है जैसे तपते हुये रेगिस्तान मे ठंडे पानी का भ्रम होना। और फिर एक दिन आकाश के इन्द्र धनुष के सारे रंग चुरा ले गया कोई उदास सा इन्द्रधनुष अपने वजूद के मिट जाने का मातम कर रहा था।धरा अपनी पढाई अधूरी छोड़ कर चली गयी थी ।पर आकाश की दुनिया से नहीं पूरी दुनिया को छोड़ कर ।उस हादसे ने जान तो बचाई थी धरा की पर कुछ लापरवाही के कारण दूषित रक्त घुल गया था धरा की नसों मे HIV हो गया था धरा को और यह जानकर ही दूर चली गयी थी धरा आकाश की जिन्दगी से। बेवफा नहीं थी धरा बस वक्त ने ही वफा नहीं की। नेहा अग्रवाल

ममत्व की प्यास

अशोक परूथी शांति का मन आज बहुत अशांत था. रो-रोकर उसने अपनी आंखें सुजा ली थी! वह अपनी किस्मत को भी रो-धो बैंठी थी. अपने मन का बोझ हल्का करने के लिये गुस्से में उसने अपनी बगल वाली पड़ोसिन लक्ष्मी के लिये बुरा-भला कहा और चाहा भी! आखिर, बरामदे की फर्श से उठकर उसने अपना हाथ मुंह ठन्डे पानी से धोया, तोलिये से पौंछा, फिर अपने घर के सामने वाली पड़ोसिन कृष्णा के घर जाने के लिये अपनी चप्पलें ढूँढने लगी.उसने अपने घर के जंगले की कुंडी लगाई और अपनी गली की सड़क पार करके कृष्णा के मुख्य द्वार पर दस्तक दी! कृष्णा ने शांति का हाल देखकर उसकी परेशानी का कारण जानने की जिज्ञासा प्रकट की. शांति कुछ जवाब न दे सकी, भरी पडी थी, बस सुबक पड़ी. उसकी आँखों से अश्रुओं की एक धारा फूट पड़ी! भावुक होकर, दुखी मन से पूछने लगी, “बहिन जी, अभी तक मेरी गोद खाली है तो इसका क्या यह मतलब है मैं एक पापिन हूँ, दूसरों के बच्चों को तकलीफ पहुँचाना चाहती…हूँ?” क्या मैंने ऐसा कुछ किया है?…क्या मेरी नियत इतनी खराब हो सकती है? नहीं…मेरा इश्वर जानता है कि मैंने ऐसा कुछ नहीं किया.” फफक-फफक कर रोते हुए शांति, कृष्णा के कंधे लग गयी!“हुआ क्या है, शांति बहिन? आज किसने तेरा दिल दुखाया है? ऐसे ही दिल छोटा नहीं करते…भगवान के घर देर है, अंधेर नहीं!” बरामदे में अंदर लेजाकर एक चारपाई पर शांति को बिठाते हुये कृष्णा पुनः बोली, “यहाँ बैठो, इधर, मैं पहले आपको एक ग्लास पानी दूं, फिर बैठकर सुनती हूँ, आपकी …!” कृष्णा ने अपनी बिटिया मिनी को आवाज़ लगाते हुये उसने कहा, “बेटा, शांता आंटी के लिये एक कप चाय तो बना दे!” “सच कहती हूँ… मेरा दिल दुखाने के लिये भगवान चुड़ैल लक्ष्मी बाई को सजा जरूर देगा, कसम उठा कर कहती हूँ कि आज के बाद चाहे लक्ष्मी जितनी जरूरतमंद या फसी में क्यूं न हो, उसके बच्चे को नहीं रखूँगी…आप भली-भांति जानती हैं कि मेरे मन में कभी कोइ द्वेष या खोट नहीं आया…आज मेरी देखभाल में उसकी पिंकी को थोड़ी सी क्य (उल्टी) क्या आ गयी कि बिना सोचे समझे उसने मुझ पर इलज़ाम लगा दिया. कहने लगी, “खुद तो बाँझ हो, इसलिए तुमसे दूसरों की खुशी बर्दास्त नहीं होती! जानबूझकर तुमने पिंकी को कुछ अंत-शंट खिला दिया है!” माँ की लाश घर पहुंची तो उसकी बच्ची महक ने, अपने नन्हे हाथों से अपनी मां के होंठो का स्पर्श किया…उसकी छाती पर अपना सर रख पहली बार ‘मां – मां’ पुकारा! माँ वहाँ होती तो अपनी बच्ची की आवाज़ को सुनती और उसका जवाब देती!कितनी विडंबना है एक मां अपने जिगर के टुकड़े से ‘मां’ शब्द सुनने के लिये बरसों तड़फती और तरसती रही और फिर एक दिन जब उसके जिगर का टुकड़ा उसे ‘मां’ पुकारने के काबिल हुआ तो ‘मां’ शब्द सुनने वाली वह ‘मां’ न रही! शांति फिर सिसक पडी, “इतना बड़ा इलज़ाम किसी पर, बता नहीं सकती मेरे दिल को कितनी गहरी ठेस पहुँची है लेकिन, मैं किसे दोष दूं? इंसान कुछ तो, थोड़ा सा तो अपना मुंह खोलने से पहले सोचता है… बस, सारा दोष तो मेरी किस्मत का है, मेरी शादी हुये अब पूरे दस साल होने को आये हैं लेकिन मेरी कोख आज तक खाली है…”“तूं फ़िक्र न कर, शांति! लक्ष्मी की बात का भी बुरा मत मना! ईश्वर की कृपा से तुम्हारी गोद बहुत जल्द ही ‘हरी’ होगी! प्रभु बहुत ही जल्द तुम्हारे मन की मुराद पूरी करेंगे. बोल हरी!”कृष्णा से वार्तालाप के बाद शांति के मन का काफी बोझ हल्का हो गया था! कृष्णा का शुक्रिया कर वह फिर अपने घर लौट चली थी. कृष्णा उसकी एक विश्वश्नीय सलाहकार और पड़ोसिन ही नहीं थी बल्कि उसकी एक सुलझी हुई अच्छी मित्र भी थी. बिना किसी झिझक, आये – गए शांति अपना सुख दुःख साँझा कर लेती थी!शाम को पति घर आये तो शांति ने उनसे भी अपनी राम-कहानी सांझी की. शांति के पति का नाम रोशनलाल था जो बिजली के महकमें में काम करते थे. शांती के मन की व्यथा को वह अच्छी तरह से जानते थे! उन्होंने उससे हमदर्दी के कुछ शब्द कहे ओर बातचीत का विषय बदल दिया, “आज के दिन का काम और उसके ऊपर जलती दोपहरी…उफ़ …! एक कप चाय बना लो तो बैठ कर इकठे पीते हैं!” फिर संयोगों से हुआ यूं कि पडौस की मुनिया के घर आठवीं संतान का जन्म हुआ और यह खबर पड़ोस में फ़ैली. दुर्भाग्य से पुत्री को जन्म देने के बाद मुनिया चल बसी थी. मुनिया का पति मुश्किल से ही घर का खर्चा चलाता था. वह फलों की रेहडी लगाता था. उसकी आठों की आठों संताने लडकियां थी. अपने परिवार का नाम आगे चलाने और एक लड़के की ख्वाईश का ही यह नतीजा था. मुनिया का पति यह अच्छी तरह जानता था कि वह अपनी नयी संतान की परवरिश तो छोडो उसे मां के बिना जीवित भी न रख पायेगा. शांति भी इस खबर से अनभिज्ञ न थी, लेकिन कई प्रश्नों से वह भयभीत थी जिसके उतर उसके पास नहीं थे! उसने सुन रखा था कि गोद लिये बच्चे बड़े होने पर अपने असली माता-पिता के पास जाना चाहते हैं! लेकिन, कृष्णा ने शांति और उसके पति रोशन लाल जी से बातचीत करके उन्हें मुनिया की बिटिया को कानूनी कारवाही करने के बाद गोद लेने के लिये राजी कर लिया था. अंधे को जैसे दो आँखें मिल गयी हों. दो दिन बाद ही कचहरी जाकर शांति और रोशनलाल जी ने नवजात शिशु को गोद ले लिया था. इस शुभ घड़ी के स्वागत में उन्होंने एक ‘हवन’ कराया और उसके बाद एक छोटी सी पार्टी का आयोजन भी किया!क्या संयोग बना था – एक नवजात शिशु था जिसे जिन्दा रहने, अपनी परवरिश के लिये एक मां की ज़रुरत थी और उधर एक मां थी जिसे एक बच्चे की जरूरत थी, उसमें ‘ममत्व की प्यास’ थी, जिसे बुझाने के लिये कई वर्षों से वह प्रयत्न-रत थी. अपनी गोद भरने को तरस रही थी और इस इच्छापूर्ति के लिये उसने क्या-क्या नहीं किया था. अपने मन की व्यथा और जीवन का खालीपन बस शांति ही जानती थी और उसकी इस रिक्ति को दुनिया की … Read more