ब्याह :कहानी -वंदना गुप्ता
ब्याह नैन नक्श तो बडे कंटीले हैं साफ़ सुथरे दिल को चीरने वाले गर जुबान पर भी नियन्त्रण होता तो क्या जरूरत थी फिर से सेज चढने की । हाय हाय ! जीजी ये क्या कह दिया ? जो कह रही हो सोचा कभी तुम भी वो ही कर रही हो वो ही जुबान बोल रही हो । न जीजी कोई औरत कब खुशी से दोबारा सेज सजाती है , जाने क्या मजबूरी रही होगी , कभी इस तरह भी सोचा करो । औरत की तो बिछावन और जलावन दोनो ही कब किसी के काम आयी हैं , वो तो हमेशा निरीह पशु सी हाँकी गयी है , कभी इस देश कभी उस देश , एक साँस लेने के गुनाह की इतनी बडी सजा तो सिर्फ़ एक औरत को ही मिला करती है , दुनिया भला कब बर्तन में झाँका करती है बस कडछी के खडकने से अंदाज़े लगाती है कि बर्तन में तरकारी बची है या नहीं । और आज तुम भी यही कर रही हो बिना सोचे समझे जाने आखिर क्यों ये नौबत आयी ? आखिर क्यों औरत के सिर्फ़ हाड माँस का ही हमेशा सौदा होता रहा बिना उसकी इजाज़त के बिना उसके मन के । मन , हा हा हा मन अरी औरत का भी कभी कोई मन हुआ करता है ? क्या हमारा तुम्हारा भी कभी मन हुआ किसी बात का ? क्या हम नही जीये , क्या हम खुश नहीं रहे , क्या कमी रही भला बता तो रज्जो । जीजी तुम क्यों जान कर भी अंजान बन रही हो , किसे भुलावे में रखना चाह रही हो मुझे या खुद को या इस समाज को । बताना जरा कितनी बार तुमने अपने मन से ओढा पहना या कोई भी निर्णय लिया जो किया सब जीजाजी के लिए किया , बच्चों के लिए किया , घर परिवार के लिए किया । तो क्या गलत किया रज्जो यही तो ज़िन्दगी होती है और ऐसे ही चला करती है क्या हमारी माँ ऐसे नहीं जी या हमारी सखियाँ या आस पास की औरतें ऐसे नहीं जीतीं तो इसमें बुराई क्या है । सबको सुख देते हुए जीना थोडा बहत त्याग कर देना तो उससे घर में जो वातावरण बनता है उसमें बहुत अपनत्व होता है और देख उसी के बल पर तो घर के मर्द बेफ़िक्री से काम धन्धे पर लगे रहते हैं । जाने तुझे कब ये बात समझ आयेगी कि औरत का काम घर की चाहरदीवारी को सुरक्षित बनाए रखना है और मर्द का उसके बाहर अपने होने की तैनाती का आभास बनाए रखना और ज़िन्दगी गुजर जाती है आराम से इसी तरह । भला क्या जरूरत थी इसे इतने ऊँचे शब्द बोलने की ? भला क्या जरूरत थी इसे अपने भर्तार को दुत्कारने की वो भी इस हद तक कि वो आत्महत्या कर ले । भला ऐसी सुन्दरता किस काम की जो आदमी की जान ही ले ले , ऐसा क्या घमंड अपने रूप यौवन का जो एक बसे बसाए घर को ही उजाड दे और तुम कहती हो चुप रहो । भई अपने से ये अनर्थ देख चुप नहीं रहा जाता । जीजी तुम नहीं जानती क्या हुआ है ? तुमने तो बस जो सुना उसी पर आँख मूँद विश्वास कर लिया अन्दर की बात तुम्हें नहीं पता यदि पता होती तो कभी ऐसा न कहतीँ बल्कि सुनयना से तुम्हें सहानुभूति ही होती । कभी कभी सच को सात परदों में छुपा दिया जाता है फिर भी वो किसी न किसी झिर्री से बाहर आ ही जाता है । बेशक सबको नहीं पता मगर मुझे पता चल गयी है लेकिन तुम्हें एक ही शर्त पर बताऊँगी तुम किसी से कहोगी नहीं । (अचरज से रज्जो को देखते हुए ) अरे रज्जो , ये क्या कह रही है तू , जो सारे में बात फ़ैली हुई है क्या वो सही नहीं है ? तो सच क्या है ? बता मुझे किसी से नहीं कहूँगी तेरी सौं । जीजी जाने क्या सोच ईश्वर ने औरत की रचना की और यदि की भी तो क्यों नहीं उसे इतना सख्तजान बनाया जो सारे संसार से लोहा ले सकती । बेबसियों के सारे काँटे सिर्फ़ उसी की राह में बो दिए हैं और उस पर सितम ये कि चलना भी नंगे पाँव पडेगा वो भी बिना उफ़ किए बस ऐसा ही तो सुनयना के साथ हुआ है जो एक ऐसा सच है जिसके बारे में किसी को नहीं पता । मुझे आज भी याद है जब सुनयना डोली से उतरी थी जिसने देखा उसे ही लगा मानो चाँद धरती पर उतर आया है । खुदा ने एक एक अंग को ऐसे तराशा मानो आज के बाद अब कोई कृति बनानी ही नहीं , जाने किस फ़ुर्सत में बैठकर गढा था कि जो देखता फिर वो स्त्री हो या पुरुष देखता रह जाता । चाल ऐसी मोरनी को भी मात करे , बोली मानो कोयल कुहुक रही हो सबका मन मोह लेती , एक पल में दुख को सुख में बदल देती किसी के चेहरे पर उदासी देख ही नहीं सकती थी । जैसे बासन्ती बयार ने खुद अविनाश के आँगन में दस्तक दी हो । हर पल मानो सरसों ही महक रही हो आँगन यूँ गुलज़ार रहता । आस पडोस दुआयें देता न थकता जिसका जो काम होता ऐसे करती मानो जादू की छडी हाथ में हो और अपने घर का काम कब करती किसी को पता भी नहीं चलता क्या छोटा क्या बडा सब निहाल रहते क्योंकि बतियाने में उसका कोई सानी ही नहीं था । अविनाश के पाँव जमीन पर नहीं पडते उसे भला और क्या चाहिए था ऐसी सुन्दर सुगढ पत्नी जिसे मिल जाए उसे और क्या चाहिए भला । सास ससुर , देवर , जेठ जेठानी सबकी चहेती बनी हवा के पंखों पर एक तितली सी मानो उडती फ़िरती और अपने रंगों से सबको सराबोर रखती । इसी सब में छह महीने कब निकले किसी को पता न चला । अचानक एक दिन अविनाश के घर से रोने चीखने की आवाज़ें सुन सारे पडोसी भागे आखिर क्या हो गया ऐसा और जाकर देखा तो अविनाश की लाश बिस्तर पर पडी थी … Read more