विश्व पर्यावरण दिवस

विकास के साथ हमने जिस चीज का सबसे ज्यादा  विनाश किया वो है हमारा पर्यावरण | पर्यावरण हमारे जीने का आधार है , इसकी उपेक्षा कर के हमने पृथ्वी पर जीवन को ही खतरे में डालने की शुरुआत कर दी है | आज अनेकों बीमारियाँ इसका परिणाम है | अगर अब भी नहीं चेते तो शायद चेतने का मौका भी न मिले | याद रखिये  कि ये पृथ्वी हमें अपने बुजुर्गों से विरासत में नहीं मिली है बल्कि इसे हमने अपने बच्चों से उधार  में लिया है | पर्यावरण की रक्षा करना हम सब का कर्तव्य है | सरकार क़ानून बना सकती है पर पालन हमे ही करना है | इसके लिए जन जाग्रति बहुत जरूरी है | आइये पेड़ लगाये और  अपने पर्यावरण को फिर से स्वस्थ  होने में मदद करें |  विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता  आज  पर्यावरण दिवस है  जगह-जगह  पेड़ लगाने के  कार्यक्रम हो रहे है  जगह-जगह  सभाएँ भी  जिनमें  नेता भी  सफेद कुरते-पजामे में  सजे-धजे  विशिष्ट अतिथि बने  पेड़ लगा कर  फोटो खिंचवायेंगे जो कल के  अखबार में  बड़ी-बड़ी सुर्खियों के साथ  पहले-दूसरे पृष्ठ पर  नजर आयेंगे  आज के लगाए पेड़  जिए या मरें  इसकी चिंता  कोई नहीं करेगा  बस आज  पेड़ लगेंगे  फोटो खिंचेंगे  सभाओं में  सेमिनारों में भाषण होंगे फेसबुक पर  फोटो डलेंगी……! यह सब तो होगा पर, सोचा कभी आपने  पर्यावरण के लिए  आप, हम  क्या कर रहे हैं………..!! कोई संकल्प करके  कुछ शुरू किया? प्लास्टिक की थैलियों को छोड़  कपड़ों के थैले लेकर  सब्जी लेने  निकले आप, घर के  जैविक-अजैविक  कूड़े को अलग किया, बिजली के  उपकरणों का प्रयोग  कम किया, माईक्रोवेव को  अपनी रसोई से हटाया, एक दिन  गाड़ी छोड़  पैदल चलने के लिए सोचा, अपने घर के टपकते  नलों को ठीक कराया, अपने घर में  नीम, करी पत्ते और  तुलसी के पौधे लगाए, प्यासी चिड़ियों के लिए  मिट्टी के बर्तन में  पानी रखा……..??? यदि नहीं किया  ये सब तो  पहले ये  छोटे-छोटे काम  स्वयं अपने घर से आरंभ करके  अपने आसपास  अलख जगाइये पर्यावरण बचाने को  इस तरह अपना  कर्तव्य निभा कर  नित सार्थक  पर्यावरण दिवस  मनाइये…………!!! ———————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें … मायके आई हुई बेटियाँ शुक्र मनाओ फिर से रंग लो जीवन सतरंगिनी आपको “ वृक्ष की तटस्था “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Tree, Poetry, Poem, Hindi Poem, World Environment day

वृक्ष की तटस्था

ईश्वर ने इंसान को भी बनाया और वृक्षों को भी | पर दोनों के स्वाभाव में कितना अंतर है | जहाँ इंसान मेरा , मेरा और सिर्फ मेरा करता है , किसी को कुछ देता भी है तो भी पूरा आकलन कर के देता है , कि कैसे उसके स्वार्थ की पूर्ति हो | पर वृक्ष तटस्थ रहते हैं | वहां मेरा -तेरा कुछ नहीं है वो सब की सेवा करने को वैसे ही तत्पर हैं |  कविता -वृक्ष की तटस्थता   हे ईश्वर  मुझे अगले जन्म मेंवृक्ष बनानाताकि लोगों कोऔषधियां फल -फूलऔर जीने की प्राणवायु दे सकूँ । जब भी वृक्षों को देखता हूँमुझे जलन सी होने लगती हैक्योकि इंसानों में तो  दोगलई घुसपैठ  कर गई है । इन्सान -इन्सान कोवहशी होकर काटने लगा हैवह वृक्षों पर भी स्वार्थ केहाथ आजमाने लगा है । ईश्वर नेतुम्हे पूजे जाने का आशीर्वाद दियाबूढ़े होने पर तुमइंसानों को चिताओ परगोदी में ले लेते होशायद ये तुम्हारा कर्तव्य है । इंसान चाहे जितने हरेवृक्ष -परिवार उजाड़ेकिंतु तुम सदैव  इंसानों को कुछदेते ही हो । ऐसा ही दानवीरमै अगले जन्म में बनना चाहता हूँउब चूका हूँधूर्त इंसानों के बीचस्वार्थी बहुरूपिये रूप सेलेकिन वृक्ष तुम तो आज भी तटस्थ होप्राणियों की सेवा करने में । संजय वर्मा “दृष्टि “  शहीद भगत सींग मार्ग  मनावर जिला धार (म प्र ) यह भी पढ़ें … मायके आई हुई बेटियाँ मैं गंगा  कैंसर सतरंगिनी आपको “ वृक्ष की तटस्था “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Tree, Poetry, Poem, Hindi Poem, Emotional Hindi Poem

विश्व हास्य दिवस पर दो कवितायें

हँसी.. ख़ुशी का पर्याय है | हँसना वो तरंग है जिस पर जीवन उर्जा नृत्य करती है | फिर भी आज हँसी की कमी होती जा रही है | ये कमी इतनी हो गयी है कि इसे इंडेंजर्ड  स्पीसीज का किताब देते हुए विश्व हास्य दिवस की स्थापना करनी पड़ी | अगर जीवन की उर्जा को जिन्दा रखना है तो हँसी को सहेजना ही होगा | इसी हँसी को सहेजने की कोशिश करती हुई … विश्व हास्य दिवस पर दो कवितायें  १—हँसे….. चलो  हँसे खुल कर  खिलखिलाएँ  बाहर निकल कर  उन लोगों के साथ  जो जीवन से  निराश होकर  हँसना भूल गए हैं  साथ ले चलें  कुछ प्यारे  कोमल से बच्चे  जो बेवजह  हँस सके  बिना किसी  षड्यंत्र के साथ  किसी के भी साथ। २—हँसी बिखर रही है……. अपनी बुनी चादर समस्याओं की  ओढ़ी हुई है  जाने कब से  उतार फेंको… खोल दो  घर के सब  दरवाजे और खिड़कियाँ निकल आओ बाहर  खुले आसमान में… दोनों बाँहे फैला कर  हँसो हँसो खुल के  लगाओ ठहाके  जोर-शोर से…. पता तो लगे हँसी बिखर रही है उन्मुक्त  सूर्य के प्रकाश की तरह  चारों ओर  सर्वत्र……!!!!! ———————————- डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी शुक्र मनाओ किताबें कच्ची नींद का ख्वाब   आपको “विश्व हास्य दिवस पर दो कवितायें  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- World Laughter day, laughing, laugh, Laughter club

कच्ची नींद का ख्वाब

ख्वाबों की पूरी अपनी एक अलग ही दुनिया होती है | वो हकीकत की दुनिया से भले ही मेल न खाती हो पर दिल को तो सुकून देती है | ऐसे में जब कच्ची नींद के ख्वाब में प्रियतम खुद प्रियतमा के पास आ जाए तो मौसम कैसे न रंगीन हो जाए |  हिंदी कविता -कच्ची नींद का ख्वाब  कच्ची नींद में कोई ख्वाब देखा है जैसे,   तुमको अपने पास देखा है।  मेरे साने पर गिरती तुम्हारी गर्म सासें और तुम्हारे नर्म होठों का जिंदा आभास  उफ़..  हथेलियाँ भींगती सी लगी  मानों तलवों मे हजार तितलियाँ गुदगुदी सी कर गयी …  दिल बेतहाशा धड़का   कि आँख खुल गयी ..   फिर जैसे मेरे उंगलियों के पोरों से तुम्हारे बालों की खुशबू आयी  और आंखों के कोरों से तुम्हारे ना होने का गीला एहसास…..!!! _______ साधना सिंह         गोरखपुर  यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी शुक्र मनाओ किताबें बोनसाई आपको “कच्ची नींद का ख्वाब   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, dream, dreaming

बुद्ध पूर्णिमा पर 17 हाइकु

हायकू काव्य की एक विधा है जो नौवी शताब्दी से प्रचलन में आई | ये बहुत ही गहन विधा है जिसमें  कम से कम शब्दों में अपनी बात कही जाती है | हायकू कविता  की बनावट 5-7-5 होती है | बुद्ध पूर्णिमा पर पढ़ें – भगवान् बुद्ध  को समर्पित 17 हाइकु  नहीं आसान  स्वयं बुद्ध बनना  हों समाधान। सिखाए पानी  नदी मचाती शोर  सागर शांत। पहने अहं ढीले वस्त्रों समान  उतारें सहम। भौतिक मोह भस्म कर डाले जो  वही है बुद्ध। क्षमा है शक्ति  मिटाती क्रोध शोक  उपजे प्रेम। मार्ग हो धर्म  अपनाइए साथ  मिटे अधर्म। जीवन को दिशा दिखाते भगवान् बुद्ध के 21 अनमोल विचार मिटे अँधेरा  धम्मपद का ज्ञान  देवे सवेरा। महान पल  अस्वीकारें सहाय  मुक्ति संभव। बीता है भूत  भविष्य आया नहीं  है मात्र क्षण। बदलें दिशा  चलते चलो तभी  सुधरे दशा। रचते स्वयं  सेहत रोग शोक  कहते बुद्ध। बुद्ध पूर्णिमा -भगवन बुद्ध ने दिया समता का सन्देश पवित्र बोल  कर्म में परिणत  तभी सार्थक। शांति भीतर  कस्तूरी के समान  करती वास। वहीं है खुशी जो सहेजते इसे  रखते पास। प्रबुद्ध बनें सर्व जन हिताय  समृद्ध बनें। जैसा सोचते  कर्म यथानुसार वैसा बनते। पवित्र मन  समझ से उपजे वो सच्चा प्रेम। ———————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई  यह भी पढ़ें … दीपावली पर हायकू व् चौका हायकू व् हाइगा -डॉ . रमा द्विवेदी  आपको  हायकू  “बुद्ध पूर्णिमा पर 17 हाइकु “ कैसे लगे | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  filed under-   Buddha, Buddha purnima, God  , lord Buddha                                       

मैं माँ की गुडिया , दादी की परी नहीं…बस एक खबर थी

वो मेरा चौथा जन्मदिन था माँ ने खुद अपने हाथों से सी कर दी थी गुलाबी फ्रॉक खूब घेर वाली जिसमें टंके  हुए थे छोटे -छोटे मोती माँ ने ही बाँध दिया था बड़ा सा फीता मेरे बालों पर और बोली थी मुस्कुरा कर अब लग रही है बोलती सी गुडिया तभी दादी ने बुलाया खोंस दिया मेरे बालों पर गुलाब का फूल खुशबू बिखेरता फिर लेती हुई बलैया कहने लगी अब लग रही है हूर बुआ ने पहना दी थी छम -छम करती  पायल पांवों में चूम कर मेरा माथा कहने लगी मुझे परी पापा  ने किया था वादा शाम को ढेर से खिलौने लाने का मैं इठलाती सी चल पड़ी बाहर सब दोस्तों को दिखाने अपनी , पायल अपना फूल , और गुलाबी फ्रॉक तभी नुक्कड़ की  दूकान वाले चाचा ने चॉकलेट दिखाते बुलाया अपने पास और मैं चली गयी दौड़ते -इठलाते मेरा जन्मदिन जो था कैसे इनकार करती चाचा के  तोहफे का बड़ी चॉकलेट दिलाने की कह कर चाचा ले चले मुझे अंगुली थाम कर दूर … झाड़ियों के पीछे और चाचा के निकल आये सींग उफ़ कितना दर्द था मैं चिल्लाती रही , पापा बचाओ , मम्मी बचाओ कोई तो बचाओ आ दर्द हो रहा है लग रही है कोई तो बचाओ झाड़ियों से टकराकर मेरे आवाज़  आती रही वापस टूट गए मेरी फ्रॉक के मोती बिखर गयी गुलाब की पंखुड़ियां टूटते रहे पायल के रौने मेरी हर चीख के साथ मेरी गुलाबी फ्रॉक हो गयी लाल हां वो मेरा चौथा  जन्मदिन था जब मैं माँ की गुडिया नहीं , दादी की परी नहीं , बुआ की हूर नहीं बस एक खबर थी … एक दर्दनाक  खबर जिसका  अस्तित्व अगली दर्दनाक खबर आने तक था मालिनी वर्मा  यह भी पढ़ें … प्रेम कविताओं का गुलदस्ता नारी मन पर पांच कवितायें फिर से रंग लो जीवन जल जीवन है आपको “ मैं माँ की गुडिया , दादी की परी नहीं…बस एक  खबर थी  “कैसी  लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | FILED UNDER-  HINDI POETRY, HINDI POEM, CHILD RAPE , CRIME AGAINST WOMEN

किताबें

मैंने हमेशा कल्पना की है कि स्वर्ग एक तरह का पुस्तकालय है -जोर्ज लुईस बोर्गेज  किताबें मनुष्य की सबसे अच्छी दोस्त होती हैं | ये अपने अंदर  विश्व का सारा ज्ञान समेटे हुए होती हैं | केवल किताबों को पढ़कर एक कोने में रख देना ही काफी नहीं है उन्हें समझ कर उस ज्ञान को आत्मसात करना ही हमारे जीवन का मुख्य उद्देश्य होना चाहिए |  किताबें /Kitaabein poem in Hindi मुझे  मुफ़्त में  न लेना कभी  जब भी लो  मूल्य देकर ख़रीदना  मैं अलमारी में  बंद होकर नहीं, तुम्हारे  हृदय में  मीत बन कर  रहना चाहती हूँ  मन से मन तक की  निर्बाध यात्रा  करना चाहती हूँ  सुगंध बन सर्वत्र  बिखरना चाहती हूँ ————————— २— मिल  जाती हूँ विमोचन कार्यक्रमों में  मुफ़्त में  तो सहेज कर  रख लेते हो अपने  सजे-धजे ड्रॉइंगरूम की  बड़ी सी अलमारी में आने-जाने वालों पर  अपने पुस्तक प्रेमी होने का प्रभाव डालने को,  पर पढ़ते नहीं कभी तुम मुझे! सुनो!  एक सलाह देती हूँ  जहाँ भी  कोई भी तुम्हें  दे कोई पुस्तक मुफ़्त में  तो मना करना सीख लो  लेनी ही तो  उसका मूल्य देना सीख लो  मूल्य दोगे तो  कम से कम  अपने दिए पैसों का  मूल्य चुकाने को  उसे पढ़ने की  आदत डालना तो  सीखोगे। —————- डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें …  प्रेम कविताओं का गुलदस्ता नारी मन पर पांच कवितायें फिर से रंग लो जीवन जल जीवन है आपको “ किताबें “कैसी  लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | FILED UNDER- BOOKS, HINDI POETRY, HINDI POEM

शुक्र मनाओ

शुक्र मनाओ शुक्र मनाओ कि आज तुम्हारी पूजा सफल हुई बेटी लौट आई है स्कूल से जहाँ टाफी -चॉकलेट का लालच देकर अ आ … इ ई सिखाते हुए किसी टीचर ने नहीं खेला उसके साथ बड़ों वाला ‘खेल ‘ नहीं लगाये हाथ उसको यहाँ -वहाँ शुक्र मानों की वो खेल रही है आज भी गुडिया से शुक्र मनाओ तुम भी कि तुम्हारी बेटी लौट आई है खेल के मैदान से नहीं खींची गयी है किसी झड़ी के पीछे न ही उसने देखे हैं बिना सींग वाले राक्षस शुक्र मनाओ कि वो आज भी  खेल रही है मिटटी के चूल्हे से शुक्र मनाओ हर सुबह की तुम्हारी बेटी कर रही है स्कूल जाने की तैयारी  इठला कर डाल रही है बस्ते  में किताबें कि आज भी उसे मामा , चाचा , भैया लगते हैं मामा ,चाचा , भैया आज भी सलामत हैं उसके रिश्तों की परिभाषाएं शुक्र मनाओ कि वो आज भी खेल रही है घर -घर शुक्र मनाओ कि तुम आज भी जोड़ रही हो हाथ बेटी की हिफाजत के लिए ईश्वर के आगे जबकि कितनी माएं चीख  रहीं है बेटी के क्षत -विक्षत शव के आगे जो मिले हैं कहीं खेत में , झड़ी के पीछे , मंदिर में लहुलुहान से जिन्हें वो प्यार से कहती थी बेटियाँ दरिंदों को नज़र आई सिर्फ योनियाँ खैर तुम शुक्र मनाओ , शुक्र मनाओ शुक्र मनाओ जब तक मन सकती हो बस तब तक शुक्र मनाओ सरबानी सेन गुप्ता  यह भी पढ़ें …. बदनाम औरतें बोनसाई डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बैसाखियाँ  आपको “ शुक्र मनाओ “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- rape, crime against women, daughter

सखि , देखो तो , वसन्त आया

सखि , देखो तो , वसन्त आया नव द्रुम , नव पल्लव , नव सुगन्ध चहुँ दिशि मधु – उसव का आनन्द मंजरी मधुर मधुकोष भरित ये आम्र – कुंज भी बौराया सखि , देखो तो वसन्त आया अमराई में कोयल कूजी वन उपवन ने श्रृंगार किया वृक्षों , पादप , लतिकाओं की देही पर यौवन गदराया सखि , देखो तो , वसन्त आया सुरभित , पुष्पित , कुसुमकुल पर भ्रमरों की टोली डोल रही प्रकृति ने अपनी झोली से अनगिनत रंगों को बिखराया सखि , देखो तो , वसन्त आया मादक बयार की मधुर गंध मन – प्रांगण में भरती उमंग तन पोर – पोर है आह्लादित इक जलतरंग सा खनकाया सखि , देखो तो , वसन्त आरा मधुवन में कृष्ण सांवरे की वंशी स्वर – लहरी गूँज रही खेतों में फूली सरसों सा राधा का मन भी हुलसाया सखि , देखो तो वसन्त आया उषा अवस्थी लखनऊ , ( उ0 प्र0 ) यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ माँ गंगा पिंजड़े से आज़ादी बैसाखियाँ  आपको “सखि , देखो तो , वसन्त आया  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |

अब चैन से सोऊंगी

तुम्हारा आना तुम्हारा होना मेरा पूर्णता का द्योतक  तुम प्रेम हो इससे इतर  मैं सम्मान क्या जोहूंगी | कियें अास सब तूने पूरे  …विश्वास मेरा जीता  हुआ मेरा सांस-सांस तेरा   तेरी उम्मीद मैं बोऊंगी |  अब  तरंग है, उमंग है , रास-रंग है ये जीवन  एक तुझे पाकर जो पाया है,    तुझे खोकर ना खोऊंगी |  गुदगुदाती रहती है मन को तेरी मीठी ये  बातें  तुने तोहफे में हंसी दी है अब  एक आँसू ना रोऊंगी  |   बहुत गुजरी है रातें मेरी उलझन में, बेचैनियों में  तेरे बांहों का तकिया लेकर  अब चैन से सोऊंगी ||  _____=== साधना सिंह  यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ मुझे शक्ति बनना होगा बैसाखियाँ  आपको “ अब चैन से सोऊंगी“कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |