पतंगें

हम सब ने पतंगे आसमान  में उड़ाई हैं | बड़ा ही मनोरंजक खेल हैं | पर यहाँ मैंने पतंग को उस आसमान की सत्ता पर काबिज होने वाले आसमानी खेल का प्रतीक माना है जो जमीन से  खेला जाता है | Hindi poem kites पतंगे लाल -नीली ,पीली -गुलाबी शुद्ध गुड्डी -गुड्डा उडाई जाती हैंन सिर्फ जी बहलाने के लिएबल्कि आसमान पर परचम लहराने के लिएकि आसमानों पर कब्जा करने की रणनीतिजमीनों पर तैयार होती हैतय किये जाते हैं पेंच लड़ाने के तरीकेयुद्ध की रणनीतिलटाई सौपी जाती है विश्वास पात्र साथी के हाथवही देता है कसाव और ढीलनेस्तनाबूत करने की ख्वाइशेढूढती हैं शिकारकोई खतरनाक मांजाजिसने लपेट लिया है धारदार सीसाअपने चारों ओरजो दिखता नहीं पर काट देता हैकिसी भोले मुलायम मांजे का सरआह !कर गिरती है कट कर मासूमऔर तन जाती है विजयी पतंगअपनी आसमानी सत्ता परइस बात से बेखबरकि आ रही है एक और पतंग पेंच लड़ाने कोजिस के मांजे पर लिपटे शीशे की धार शायद ज्यादा हैजो पलट देगा इतिहासतो क्या !ऐसे ही तो सदा से खेले जाते रहे हैजमीनों से आसमानी खेल वंदना बाजपेयी मेरे ब्लॉग  अपना आकाश  से यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “.पतंगे .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

रेप से जैनब मरी है

उफ! मासूम जैनब ये जो रेप से जैनब मरी है, किसी वालिद की बिटिया, किसी की जीऩत,किसी की परी है——- ये जो रेप से जैनब मरी है। जिस्मानी भूख और हवस की हद है, वे मासूम कितनी चीख़ी होगी, या अल्लाह! वे कौन? नमाज़ी था, कि मरने के बाद भी लग रहा की, जैसे जैनब बहुत डरी है——— ये जो रेप से जैनब मरी है। इंसाफ़ मांगे किससे, खामोश है पाक मे तहरिक-ए-इंसाफ़, गोलियां मिली शायद यही किस्मत है, हर मुल्क के जैनब की, लेकिन जैनब सी किसी मासूम की लाश, शर्मिंदगी से सर झुका देती है, क्योंकि किसी भी मुल्क की जैनब, हमारे मज़हब और मज़हबी किताब से कही बड़ी है, ये जो रेप से जैनब मरी है। @@@पाकिस्तान मे एक मासूम जैनब को मेरी श्रद्धांजलि। रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) यह भी पढ़ें ………. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “रेप से जैनब मरी है.“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये

शर्मिंदा हूं—————- सुनुंगा घंटो कल किसी गोष्ठी में, उनसे मै हिन्दी की पीड़ा, जो खुद अपने गाँव मे, शहर की अय्याशी के लिये——– अपने पनघट की हिन्दी छोड़ आये। गंभीर साँसे भर, नकली किरदार से अपने, भर भराई आवाज से अपने, गाँव की एक-एक रेखा खिचेंगे, जो खुद अपने बुढ़े बाप के दो जोड़ी बैल, और चलती हुई पुरवट की हिन्दी छोड़ आये। फिर गोष्ठी खत्म होगी, किसी एक बड़े वक्ता की पीठ थपथपा, एक-एक कर इस सभागार से निकल जायेंगे, हिन्दी के ये मूर्धन्य चिंतक, फिर अगले वर्ष हिन्दी दिवस मनायेंगे, ये हिन्दी के मुज़ाहिद है एै,रंग——— जो शौक से गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये। @@@आप सभी को अंतरराष्ट्रीय हिन्दी दिवस की बधाई। रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। यह भी पढ़ें ………. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “.गाँव के बरगद की हिन्दी छोड़ आये .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

श्वेता मिश्रा की 5 कवितायें

कवितायें भावनाओं की वो अभिव्यक्ति हैं,जो जब खुद ही अपना आकार लेती हैं,तो पाठकों के मन को अवश्य छूती हैं | आज हम लायें नाजीरिया में रहने वाली युवा कवियत्री श्वेता मिश्रा की 5 कवितायेँ |पेशे से फैशन डिजाइनर कविताओं के माध्यम से भावनाओं का ताना -बाना भी बहुत ख़ूबसूरती से बुनती हैं |  1. रात कुछ भावनाओं की ठहरी सी धारा नेत्र से नेह बन ढुलक कर गालों से गिर हथेली पर आ ठहरी है रात का चन्द्रमा कटा सा तन्हा सा सफ़र में रुका रुका सा रात शायद यादों की आज बहुत गहरी है ………………… 2. प्रेम-पुष्प शब्दों के भावों में मधुर प्रेम-पुष्प है खिला बंधन अटूट मेरा ईश्वर-प्रदत तुमसे है मिला ऋतू आती है ठहरती है और चली जाती है समय के चक्र पर रंग मौसम का है चला विरह-मिलन वेदना-संवेदना इस डाली के फूल जगत के तपते रेगिस्तान में प्रेम रस है घुला …………………….. 3. तुम कुछ पुष्प कुछ अक्षतकुछ रोली कुछ चन्दनएक हार था प्रभु के वास्तेएक उल्लास था भक्ति के रास्तेएक ही था कठोर मनभीगा था नेह मेंमधुर था स्नेह मेंअधरों पर थी लौटी एक मुस्कानपल जो बीता था कलसौ बात की इक बातमधुर प्रेम पर है विश्वासईश भी रहता जिनके द्वारकठोर मन के भीतररहता मिश्री घुला मीठा जलक्यूँ हो तुम जैसे एक नारियल !!!……………………….. 4. ए दरखत ये दरख्त जब भी तेरी छावंकी महज़ चाहत हुयीतेरे पत्तों ने गिर करमेरा कोमल मन घायल कियादोष मेरा क्या ??????इक बार तो बता दोमाना तेरी छावं केहकदार हैं कईमगर क्यूँसजा का मुझे हकदार किया ??? ए दरख्त तुझे कई बारसींचा है मैंने भी अपने स्नेह से स्वार्थ था शायद या थी असीम चाहततूने समझने से ही इनकार कियाए दरख्त तू यूँ ही हरा भरा रहेतेरी छावं तेरी चाहतो पर बनी रहेमैं मुसाफ़िर हूँ दूर से हीतुझे देख कर नेह जल से तुझे सींचती रहूंगीआखिर मैंने तुझे प्यार किया प्यार किया प्यार किया…………………………….. 5. एक बूंद  ! वो एक बूंदजो पलक तकआ ठहरी थीजाने कितनेख्वाब समेटेजाने कितनेसपनो के रंग लिएअनछुई थी बसएक स्पर्श सेटूट कर गिरीऔर दफ़न होगयी हथेली में !!!! …………………………. नाम-श्वेता मिश्र सम्प्रति- फैशन डिजाईनर स्थान –नाइजीरिया लेखन विधाएँ-कविता गजल नज़्म कहानी प्रकाशित कृतियाँ- (कविता एवं कहानी) — साहित्य अमृत, रचनाकार , अपना ब्लॉग ,पुष्पवाटिका मासिक पत्रिका(मई २०१४ से नियमित  ….) तथा अन्य समाचार पत्र पत्रिकाओं में कवितायेँ एवं कहानियां प्रकाशित ई पत्रिका – साहित्य कुंज, लेखनी, साहित्य रागिनी ,युवा साहित्य,हमरंग.com  आदि में भी यह भी पढ़ें ………. काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें रूचि भल्ला की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायेँ आभा दुबे की कवितायें बातूनी लड़की आपको  कविता  “.श्वेता  मिश्रा की 5 कवितायें .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

जल जीवन है

अखिल सृष्टि में जल जीवन है जीवन का सम्मान करो संरक्षित कर स्वच्छ सलिल को धरती में मुस्कान भरो जिस पानी को हम तलाशते मंगल चन्द्र विविध ग्रह पर वह अमृत अवनी पर बहता नदी , झील ,निर्झर बनकर मिले विरासत में जो , इन जल स्रोतों पर अभिमान करो नष्ट मत करो इन्हे बचाओ  तुम सबका कल्याण करो अम्बु – कोष जो हमे मिला है उसका कर्ज चुकाना है भावी पीढ़ी को इससे  कुछ बेहतर देकर जाना है उषा अवस्थी यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बाबुल मोरा नैहर छूटों ही जाए रेशमा कितने जंगल काटे हमने कितने वृक्ष गिराए हैं आपको  कविता  “..जल जीवन है“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

सुहागरात (कविता )

यूँही पड़ी रहने दो कुछ दिन और कमरे मे— हमारे सुहागरात की बिस्तर और उसकी सिलवटे। मोगरे के अलसाये व गजरे से गिरे फुल, खोई बिंदिया,टूटी चुड़ियाँ! और सुबह के धुंधलके की अंगडाई मे, हमारे बाँहो की वे मिठी थकन! कुछ दिन और———- हमारे तन-मन,बिस्तर को जिने दो ये सुहागरात। फिर जिवन की आपाधापी मे ये छुवन की तपिस खो जायेगी, तब शायद तुम और हम बस बाते करेंगे, और ढ़ुढ़ेंगे पुरी जिंदगी——— इस कमरे मे अपनी सुहागरात। और याद करेंगे हम बिस्तर की सिलवटे, मोगरे के फुल,खोई बिंदिया,टूटी चुड़ियाँ और सुहागरात के धुंधलके की वे अंगडाई, जिसमे कभी हमारे तुम्हारे प्यार की मिठी थकन थी। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर। यह भी पढ़ें …… डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल में पपुआ की मम्मी डिजिटल हो गयीं मेरे भगवान् काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें आपको  कविता  “ सुहागरात (कविता )“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ.

तुम्हें अपने शब्दों में ढाल कर अपनी डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ…  पर उन शब्दों में निहित भाव तुम्हें यकीनन नागवार गुजरेंगे ।  मेरे जुबान बेशक चुप रहते है  पर मेरे मन में जाने कितने सवाल टीस बनकर चुभतें है । मै वृक्ष सी कब तक तिराहे पर चौराहा बनकर निस्तब्ध पड़ी रहूंगी…   बिना मुसाफिर, बिना मंजिल जिसकी छाँव भी उदास कोई राहगीर की प्रतिक्षा में जड़ हो जाये ।  कहां मिलोगे… कब मिलोगे… पता नहीं,   ये असहज संवाद,  बेवजह ठहाके  निराधार संबंध, और अस्थिर मनोभाव  क्यों,  कैसे और किस लिये साथ लेकर जीना है ? समझा पाओगे मुझे…  ?  या सह पाओगे जब मैं तुमसे अपने कुछ अधिकार मांग लूँ?   तुम्हारे पुरुषत्व की प्रतिष्ठा और मेरे स्त्रीत्व की गरिमा  मैं कागज पर उतार तो दूँ,  पर फिर सवाल निजता की होगी  और मेैं एक तलवार के धार पर  यही सोचकर मैं कलम की स्याही कागज पर उडे़ल कर एक विकृत नासमझ सी आकृति बना देती हूँ ||   _________ साधना सिंह        गोरखपुर  काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें यह भी पढ़ें ……….. नए साल में पापुआ की मम्मी डिजिटल हो गयी पाँच कविताओं को गुलदस्ता – साल बदला है हम भी बदलें बाबुल मोरा नैहर छुटो नि जाए मेरे भगवान् आपको  कविता  “. डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ..“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई

टेक्नोलोजी पर  हालांकि पुरुषों का एकाधिकार नहीं है | पर एक सीधी  – साधी  घरेलू महिला जब नया मोबाइल लेती है तो  बेचारे पति को क्या – क्या समस्याएं आ सकती हैं | जानने के लिए पढ़ें रंगनाथ दुबे जी की व्यंग कविता और करें नए साल की शुरुआत थोड़े हंसी मजाक के साथ …….. नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई नये साल मे मोबाइल खरीद——— मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। पहले से ही क्या कम अक्ल थी उसमें, अभी उसी से निजात न मिली थी, कि हाय राम! हमारे पपुवा की मम्मी——- पहले से ज्यादा टेक्नीकल हो गई। नये साल मे मोबाइल खरीद—– मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। अब तो कुछ उसके शब्द भी सिनेमाई हो गये, दिन भर झगड़ती है, फिर सेल्फी लेते समय ये कहना—– कि क्या मुँह बनाये बैठे हो चलो हँसो, फिर अपने रंगे-पुते चेहरे को मेरे पास ला, कई सेल्फी लेती है, उफ! रे मोबाइल, चाहे जैसे थी, थोड़ा बहुत ही सही, प्यार तो करती थी पपुवा की मम्मी, लेकिन वाह रे! नया साल, कि मोबाइल खरीदते ही मेरे पपुवा की मम्मी— कितना क्रिटिकल हो गई। नये साल मे मोबाइल खरीद—— मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। उसे सजी-सँवरी होने पे भी, छुने की हिम्मत न पड़ रही, पता नही कब मुड़ आॅफ हो जाये, थोड़ी बहुत संभावना भी साफ हो जाये, इस डर से मै हिन्दी के स्टुडेंट की तरह, डर रहा क्या करु,हाय राम! इस नये साल——— मेरे पपुवा की मम्मी ना समझ आने वाली, कमेस्ट्री की केमिकल हो गई। नये साल मे मोबाइल खरीद——- मेरे पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई। @@@रचयिता—-रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर। जौनपुर(उत्तर-प्रदेश)। काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें आपको  कविता  “..नये साल मे—-पपुवा की मम्मी डिजिटल हो गई “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

नए साल पर 5 कवितायें -साल बदला है , हम भी बदलें

नया साल , नयी उम्मीदें नए सपने , नयी आशाएं ,नए संकल्प और नए संघर्ष भी | नए साल पर प्रस्तुत हैं पाँच कवितायें … “साल बदला है , हम भी बदलें”  “नया साल “HAPPY NEW YEAR नया साल आने वाला है सब खुश है सबने तैयारी कर ली हैइस उम्मीद के साथशायदजाग जाये सोया भाग्य उसने भी जिसने आपने फटे बस्ते में रखी फटी किताब को सिल लिया है इस उम्मीद के साथ शायद कर सके काम के साथ विध्याभ्यास उसने भी जिसने असंख्य कीले लगी चप्पल में फिर से ठुकवा ली है नयी कील इस उम्मीद के साथ शायद पहुँच जाए चिर -प्रतिच्छित मंजिल के पास उसने भी जसने ठंडे पड़े चूल्हे और गीली लकड़ियों को पोंछ कर सुखा लिया है इस उम्मीद के साथ शायद इस बार बुझ सके पेट की आग और उन्होंने भी जो बड़े-बड़े होटलों क्लबों में जायेगे पिता-प्रदत्त बड़ी-बड़ी गाड़ियों में सुन्दर बालाओं के साथ नशे में धुत चिंता -मुक्त जोर से चिलायेगे हैप्पी न्यू इयर इस विश्वास के साथ बदल जायेगी अगले साल यह गाडी और यह……. सतत जीवन वो देखो ,सुदूर समय के वृक्ष पर झड़ने ही वाला है पिछले साल का पीला पत्ता और उगने को तैयार है नयी हरी कोंपले झेलने को तैयार धूप , गर्मी और बरसात दिलाती है विश्वास बाकी है अभी कुछ और क्षितज नापने को बाकी है कुछ और ऊँचाइयाँ चढने को बाकी है कुछ और यात्राएं बाकी हैं कुछ और संघर्ष बाकी हैं कुछ और विकास  हर अंत के साथ नया  जन्म लेता सतत जीवन भी तो  अभी बाकी है …. “प्रयास “ फिर शुरू  करनी है एक नयी जददोजहद पूस की धुंध मेंसुखानी हैदुखो की चादरजेठ की तपन मेंठंडा करना हैअपूर्ण स्वप्नो कोखौलते मन मेंबारिश की बूंदो मेंअंनबहे आंसुओं कोपी लेना हैगीली आँखों सेहर साल की तरहफिर इस बारकर लेना हैसमय कापुल पारसर पर लिएअतीत कीगठरी का भार ऐ जाते हुए साल ऐ जाते हुए साल तुम्हीं ने सिखाया मुझे की हर साल 31 दिसंबर की रात को ” happy new year ” कह देने से हैप्पी नहीं हो जाता सब कुछ तुम्हीं ने मुझे सिखाया की ” आल इज वेल ” के मखमली कालीन के नीचे छिपे होते हैं नकारात्मकता के कांटे जो कर देते हैं पांवों को लहुलुहान फिर भी रिसते पैरों और टूटी आशाओं के साथ बढ़ना होता है आगे तुम्हीं ने मुझे सिखाया की धुंध के बीच में आकर चुपके से भर देते हो तुम जीवन में धुंध की ३६५पर्वतों के बीच छुपी होती हैं खाइयाँ जहाँ चोटियों पर फतह की मुस्कराहट के साथ मिलते हैं खाइयों में गिरने के घाव भी तुम्हीं ने मुझे सिखाया की हर दिन सूरज का उगना भी नहीं होता एक सामान कभी – कभी रातों की कालिमा होती है इतनी गहरी की कई दिनों तक नहीं होता सूरज उगने का अहसास जब किसी स्याह रात में लिख देते हो तुम अब सब कुछ नहीं होगा पहले जैसा हां ! इतना जरूर है की तुम्हारे लगातार सिखाने समझाने से हर गुज़ारे साल की तरह इस साल भी मैं हो गयी हूँ पहले से बेहतर पहले से मजबूत और पहले से मौन भी सब समझते जानते हुए भी यह तो तय है की इस साल भी जब 31 दिसंबर की रात को ठीक १२ बजे घनघना उठेगी मेरे फोन की घंटी तो उसी तरह उत्साह से भर कर फिर से कहूँगी ” happy new year ” स्वागत में आगत के बिछा दूँगी स्वप्नों के कालीन सजा दूँगी आशाओं के गुलदस्ते और दरवाजे पर टांग दूँगी उम्मीदों के बंदनवार क्योंकि उम्मीदों का जिन्दा रहना मेरे जिन्दा होने का सबूत है साल बदला है , हम भी बदलें  आधी रात दबे पाँव आता है नया साल क्योंकि वो जानता है बहुत उम्मीद लगा कर बैठे हैं सब उससे  होंगी प्राथनाएं बजेंगी  मंदिर में घंटियाँ मस्जिद में होंगीं आजान चर्च में प्रेयर फूटेंगे पटाखे होंगे “ happy new year”के धमाके फिर वो क्या बदल पायेगा दशा भूख से व्याकुल किसानों की सीमा पर निर्दोष मरते जवानों की कि अभी भी लुटी जायेंगीं इज्ज़तें भ्रस्टाचारी  लगायेंगे कहकहे बदलेंगे नहीं  धर्म भाषा और संस्कृति के नाम पर लड़ते झगड़ते लोग हम बदलेंगें सिर्फ कैलेंडर और डाल देंगे उम्मीदों का सारा भर  नए साल पर जश्न पार्टियों और प्रार्थनाओं  के शोर में कहाँ सुनते हैं हम समय की आवाज़ को मैं बदल रहा हूँ तुम भी तो बदल जाओ  वंदना बाजपेयी   आप सभी को नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  happy new year काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें काहे को ब्याही ओ बाबुल मेरे मायके आई हुई बेटियाँ बैसाखियाँ डायरियां आपको  कविता  “.नए साल पर 5 कवितायें -साल बदला है , हम भी बदलें .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | 

नए साल पर प्रेम की काव्य गाथा -दिसंबर बनके हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी

यूँ तो प्यार का कोई मौसम नहीं होता | परन्तु आज हम एक ऐसे प्रेम की मोहक गाथा ले कर आये हैं | जहाँ नये साल की शुरुआत यानि जनवरी ही प्रेम की कोंपलों के फूटने की शुरुआत बनी |फरवरी , मार्च अप्रैल … बढ़ते हुए प्यार के साक्षी बने , धीरे धीरे महीने दर महीने प्यार परवान चढ़ा उसको उसका अंजाम नसीब हुआ | और प्यार के बंधन में बंधे एक जोड़े ने साल के आखिरी महीने दिसंबर में अपने प्यार की एनिवर्सरी कुछ यूँ मनाई … नए साल पर जनवरी से लेकर दिसंबर तक के रोमांटिक प्यार की काव्यगाथा कभी बन सँवर के दुल्हन सी——— मेरे कमरे मे जनवरी आई थी। सच वे गुलाब ही तो पकड़ा था तुमने, जो इतने सालो से बेनुर था, मेरी जिंदगी में———– वेलेनटाइन डे की रोमानियत लिये, वे पहली फरवरी आई थी। मार्च के महीने मे———– पहली बार खिले थे मेरी अरमान के गुलमुहर, हमारे प्यार की डालियो पे कोयल कूकी थी, वे मार्च ही था———– जब आम और महुवे पे मंजरी आई थी। अप्रैल याद है——— जब तुम मायके गई थी, मै कितना उदास था——- कई राते हमे नींद कहां आई थी। फिर मई महिने ने ही उबारा था, हमे तेरी विरह से! इसी महिने इंतज़ार करते हुये मेरे कमरे मे— कमरे की परी आई थी। फिर जून की तपिस में——– हम घंटो टहलने निकलते थे एक दुजे का हाथ पकड़े, नदी के तट की तरफ, वे शामे शरारत याद है और याद है वे कंपकपाते होंठ, जब हमने अपनी अँगुलियो से छुआ था, और तुम्हारी झील सी आँखो मे शर्म उतर आई थी। फिर जुलाई की——— वे घिरी बदलियां, वे बारिश मे पहली बार तुम्हे छत पे भीगा देखना एकटक, फिर बिजली की गरज सुन, तुम एक हिरनी सी दौड़ी मेरी बाँहो मे चली आई थी, मुझे भी तुम्हे छेड़ने की——— इस बरसात मे मसखरी आई थी। फिर पुरा अगस्त———– तुम्हारी बहन की चुहलबाजियो में गुजरा, मौके कम मिले, तब पहली बार तुम्हे चिढ़ाते आँखो से मुस्कुराते कनखियो से देखा, मै मन ही मन कुढ़ता रहा क्या करता? मेरे हारने और तेरी शरारतो के जितने की घड़ी आई थी। फिर सितम्बर ने दिये मौके, वे मौके जो मै भुलता नही,क्योंकि इसी महिने तेरी कलाई की तमाम चुड़ियाँ टूटी, और इसी महिने तेरे लिये, मैने दर्जनो की तादात मे खरिदे, तुम्हारी साड़ी से मैच करती तमाम चुड़ियाँ, उन चुड़ियो मे तुमने कहा था——— कि तुम्हे पसंद दिल से चुड़ी हरी आई थी। फिर अक्टुबर के महीने में हमने-तुमने अपनी जिंदगी के इस हनीमून को, फिर टटोला! लगा कि अभी भी तुम सुहागरात सी हो—- जैसे घूँघट किये आई थी। फिर नवंबर——— हमारी-तुम्हारी जिंदगी मे महिना नही था, हम माँ-बाप बन गये थे, हमारे आँगन में———– हँसने-खेलने एक गुड़िया चली आई थी। इस दिसम्बर———- जो हमारे कमरे मे कैलेंडर टंगा है, उसमे एक छोटी सी बिटिया को, छोटे-छोटे नन्हे पाँवो मे———- घूँघरुओ की पायल पहने चलते दिखाया है, हमारी बिटिया केवल बिटिया नही, इस दिसम्बर बनके————– हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर काव्य जगत में पढ़े – एक से बढ़कर एक कवितायें आपको  कविता  “.. नए साल पर प्रेम की काव्य गाथा  -दिसंबर बनके हमारे प्यार की ऐनवर्सरी आई थी“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें