कविता -रेशमा
“रेशमा” महज़ एक लड़की नही बल्कि वे मुझ जैसे किसी शायर की मुहब्बत थी————— तेरे शहर में———– आज रात मै फिर गा रहा हूँ रेशमा। देख तुझसे किये अहद को——— मै कितनी शिद्दत से निभा रहा हूँ रेशमा। आज भी ये नज़र तलाश रही है, वे किनारे कि महबूब कुर्सी, जिसपे तुम बैठ कभी हमें सुना करती थी, तेरी खातिर अब तलक मै खुद को—– कितना तड़पा रहा हूँ रेशमा। मेरी गज़लो के हर्फ महज़ हर्फ नही, तेरे सहलाये भरे जख्म़ है, लेकिन फिर वे ताजे हो टिस रहे है, मान नही रहे न जाने क्यू आज़, जबकि इन्हें मै———– तेरी खातिर न जाने कितनी देर से मना रहा हूँ रेशमा। लोग कहते है कि मेरी गज़ल को वे सिरहाने रख के सोते है, शायद उन्हें पता नही, कि हम एक गज़ल को लिख फिर सारी रात रोते है, ये दिवान मेरे है लेकिन—————– इस दिवान की कबर पे तुम्ही छपी हो रेशमा। सच तुम हमारी मुहब्बत थी,मुहब्बत हो बेशक—– तुम्हारे शहर से मै जा रहा हूँ रेशमा। @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर जौनपुर (उत्तर-प्रदेश)। आपको आपको कविता “ कविता -रेशमा“ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें