बकरा
रंगनाथ द्विवेदी। जज कालोनी,मियाँपुर,जौनपुर(उत्तर-प्रदेश) पालने वाले मालिक से खरीदकर, जब कसाई—————– जबरदस्ती पकड़े ले चलेगा बकरे को उस गाँव,उस गली से जहां वे इतने दिन पला बढ़ा है, तो में में में कर रोता जायेगा वे रास्ते भर। गर रास्ते में कही देखेगा वे बकरी का मेंमना, तो सोचेगा————— कि देखो कितना उछल कुद रहा, गले में घंटी और घुँघरू पहने, अपने अंजाम से बेखबर, कितना खुश है ये मेंमना! यही जब बड़ा हो जायेगा तो इसको भी खरीदने, फिर इसी गाँव और गली में आयेगा एक कसाई! ले जायेगा फिर में में में करते हुये बकरे को, फिर कसाई उसे तमाम बकरो में खड़ा कर, खू से तरबतर ———– जब इसको भी काटने की तरफ बढ़ेगा, तो एक मर्तबा फिर बकरे को———- वे गाँव,वे गली,वे मालिक याद आयेगा। फिर कसाई———— गले को बेरहमी से काटेगा रेतेगा, और में में में में कर तड़पड़ा के, अपने ही खून में कुछ देर के बाद, हमेशा के लिये शांत हो जायेगा बकरा।