डॉ मधु त्रिवेदी की पांच कवितायें
मैं व्यापारी हूँ झूठ फरेब झोले में रखतासच सच बातें बोलतासत्य हिंसा को मैं रोदतासाँच में आँच लगातामैं व्यापारी हूँ संस्कृति हरण का पापीगर्त की ओर ले जातामिथ्या भाषण करता हूँचार छ:रोज सटकातामैं व्यापारी हूँ अशुद्ध परिहास करता हूँनकली बेकार कहता हूँसच्चाई का गला घोटता हूँसाफ साफ हिसाब देता हूँबेजोड हेर फेर करता हूँसदा असत्य कहता हूँमैं व्यापारी हूँ हाँ जीयहाँ मैं बेचता हूँआप भी खरीद लोफ्री में बिकती है झूठ मक्कारीवादों की नहीँ कीमत है यहाँरोज हजार दम तोड़ते यहाँवादा मेरा मैं साथ दूँगानिर्लज्जता सीखा दूँगामैं व्यापारी हूँ हर जगह जगह मेराबोलबाला हैजनमन कैसा बेचारा हैटेडेमेडे लोग सबल हैअन्न जल से निर्बल हैलाज शर्म रोती हैबेशर्मी पनपती हैमैं व्यापारी हूँ बेशर्मी का नंग नाच करतादुर्जनों पर रोज हाथ साफ करताहत्या , रेप , लूटपाट , डकैतीयहीं सब मेरे आचार हैमैं व्यापारी हूँ 1………. हे माँ सीते !दीवाली पर आ जानाहे माँ सीते ! विनती है मेरीघर दीवाली पर आ जानाराम लखन बजरंगी सहितजन – जन के उर बस जाना हे माँ सीते ! मेरा हर धामचरणों में तेरे रोज बसता हैदीवाली की यह जगमगाहटतेरे ही तेज से मिलती है माँ सीते ! आकर उर मेरेप्यार फुलझड़ी जला जानाहर जन को रोशन करकेअँधेरा दिल का मिटा जाना हे मा सीते! आशीष अपनादुष्ट जनों पर बरसा जानाबन कर दीप चाहतों का तुमनवयौवन का अंकुर फूटा जाना हे माँ सीते ! दिलो में आकरलोगों को सब्र का पाठ पढ़ानाजैसे तुम बसी हो उर राम केवैसे प्रिय प्रेम का दीप जला जाना हे माँ ! लक्ष्मण प्रिय भक्त तेरेभाव हर भाई में यह जगानान हो बँटवारा भाई -भाई मेंदीप वह जला माँ तुम जाना हे माँ सीते! खील खिलोने कीहर गरीब जनों पर बारिशें होहृदय में मधु मिठास को घोलशब्द शब्द को मधु बना जाना दीप जलते अनगिनत दीवाली परराकेट जैसे जाता है दूर गगन तकजाति-पाति धर्म की खाई को पाटसबके हृदय विशाल बना जाना 2………………… लाज अपने देश की सबको बचाना है लाज अपने देश की सबको बचाना हैदुश्मनों के आज मिल छक्के छुड़ाना है बार हर मिल कर मनाते प्रव गणतंत्र काइसलिये अब प्रतिज्ञा हमको कराना है याद वीरों की दिला कर के यहीं गाथामान भारत भूमि का अब बढ़ाना है कोन जाने यह कि आहुति कितनी दी हमनेयाद वो सारी हमें ही तो दिलाना है माँग उजड़ी पत्नियों की ही यहाँ पर क्योंबात बच्चों को यही समझा बताना है खो दिये है लाल अपने तब यहाँ पर जोफिर पुरानी आपसे दुहरा जताना है आबरू माँ की बचाने के लिए हम अबगर पडे़ मौका शीश अपना भी कटाना है 3………… जाया भारतभूमि ने दो लालों कोवो गाँधी और लाल बहादुर कहलायेबन अलौकिक अनुपम विभूतिभारत और विश्व की शान कहलाये दो अक्टूबर का यह शुभ दिन आयाविश्व इतिहास में पावन दिवस कहलायाराष्टपिता बन गाँधी ने खूब नाम कमायालाल ने विश्व में भारत को जनवाया सत्य अहिंसा के गाँधी थे पुजारीजनमन के थे गांधी शांति दातादीन हीनों के थे गाँधी भाग्य विधाताबिना तीर के थे गाँधी अस्त्रशस्त्र चल के गाँधी ने साँची राह परदेश के निज गौरव का मान बढायादो हजार सात वर्ष को अन्तर्राष्टीयअहिंसा दिवस के रूप में मनवाया शांति चुप रहना ही उनका हथियार थाभटकी जनता को राह दिखाना संस्कार थाबन बच्चों के बापू उनके प्यारे थेतो मेरे जैसों की आँखों के तारे थे लालबहादुर गांधी डग से डगमिलाकर चला करते थेएक नहीं हजारों को साथ ले चलते थेराह दिखाते हुए फिरंगियों को दूर करते फिरंगी भी भास गये इस बात कोअन्याय अनीति नही अब चलने वालाअब तो छोड़ जाना होगा ही करहवाले देश गाँधी जी को ही गाँधी जी नहीं है आज हमारे बीचफिर हम रोज कुचल देते है उनकीआत्मा और कहलाते है नीचआत्मा है केवल किताबों में बन्द अपना कर गाँधी बहादुर का आदर्शहम देश को बचा सकते हैघात लगाये गिद्ध कौऔं से लुटनेसे हमेशा बचा सकते है 4…….. शहर के मुख्य चौराहे परठीक फुटपाथ परले ढकेल वह रोजखड़ा होता थालोगो को अपनी बारीका इन्तजार रहताजब कभी गुजरना होताघर से बाहरमैं भी नहीं भूलतीखाना पानी पूरीबस पानी पूरीखाते खातेआत्मीयता सी होगई थी मुझेजब कभी मेराजाना होतातो वह भी कहने सेना चूकता थाआज बहुत दिन बाद—– वक्त बीतता गयाजीवन का क्रम चलता रहाअनायास एक दिन वहफेक्चर का शिकारहो गयातदन्तर अस्पताल मेंसुविधाएं भी पैसे वालों केलिए होती है ———पर वो बेचाराजैसे तैसे ठीक हुआबीमारी ने आ घेराएक दिन बस शून्य मेंदेखते ही देखतेकाल कवलितहो गयाफिर बस केवलसंवेदनाएं ही संवेदनाबस स़बेदनाबची सबकी जीवन का करूणांततदन्तरआत्मनिर्भर परिवारिक जनों कीदो रोज की रोटी नेएक गहरी चिंतन रेखाखींच दी पर मैं और मेरीआत्मीयता बाकी हैआज भीक्योंकि व्यक्ति जाता हैजहां सेउसकी नेकी लगावआसक्ति रह जाती हैबाकीपर वक्त छीन देता हैउसे भीऔर घावों को भर देता है