“अँधेरी रात मे——- वे शहर की स्ट्रिट लाइट से टेक लगा, अपना आधे से अधिक वक्षस्थल खोले, किसी ग्राहक को रिझाने और लुभाने का प्रयास करती है, किसी रात जब काफी प्रयासो के इतर, कोई ग्राहक आता और रिझता नही दिखता, तो अपनी निदाई आँखो की निद दुर करने को, वे गाढ़ी और सुर्ख लिपस्टिक के उस तरफ, अक्सर बीड़ी पीने से सँवलाये होंठो के बीच, एक बीड़ी दबा————– बड़ी अश्लीलता और निर्लज्जता से वे अपने हाथो को, अपने अधखुले वक्षस्थल मे डाल, चारो तरफ जलाने को दियासलाई टटोलती है, उस टटोलने मे स्त्रियोचित कोई संवेदना नही, बल्कि बेरहमी से दियासलाई निकाल बीड़ी जला—– कुछ तगड़े-तगड़े सुट्टे ले जब अपने नथुनो से धुआँ निकालती है, तो उस धुँये की धुँध उसे अपनी एकलौती जीवन सखी लगती है, कभी-कभी जब एकाध कस की शुरुआत मे ही किसी ग्राहक को आता देखती है, तो उसे रोज अपनी तरह जली बीना बुझाये फेक, कुछ इस तरह झुकती है, कि उसके अधखुले वक्षस्थल थोड़ा और गहरे खुल, ग्राहक को यौन मदांध कर बाबले और उतावले कर देते है, उसकी इस झुकन की कलात्मकता ने ही उसे अब तक, ज्यादा ग्राहक दिये है! वे हर रात अपने ग्राहक को शिशे मे उतार, इस स्ट्रिट लाइट की कुछ दुरी पे बने अपने उस दो कमरे की सिलन की बदबू से रचे बसे कोठरी मे ले जाती है, और उसी कमरे की एक जर्जर तखत पे सो जाती है, कभी इसी तखत पे दुल्हन की तरह सोने आई थी, और इसी तखत पे सोने के लिये, माँ-बाप का घर छोड़———- प्रेमी के साथ भाग आई थी ये शायद उन्हिं की पीड़ा का श्राप है, कि सुहाग तखत पे रंडी बन रह गई। फिर समय के साथ मैने ख़ुदकुशी न की, हाँ उस शरीर और अंग से बदला जरुर लेती हूँ, जिसे अगर कुछ दिन और संभाल लेती तो एक औरत होने का, संम्पुर्ण ऐहसास करती, मै बलात भागी थी उसी बलात भागने ने जीवन नर्क कर दिया। हर रात उसका ग्राहक तृप्त हो जब ये जुमले कहता है कि—– तेरे अर्धखुले वक्षस्थल ब्लाउज मे तो सुंदर थे ही, और आजाद हुये तो और कयामत व सुंदर हो गये, ये सुन उसने हमेशा की तरह अपने ग्राहक को मन ही मन मादरजात गाली दे, फिर अपने उस ब्लाउज को उठा एक रुटीन की तरह, बीना किसी कोमलता के जबरदस्ती इधर-उधर ठुस, और उस ठुसने की रगड़ को, वे राड़ कह खूब हँसती है वे हँसी अपने को और पीड़ित करने की होती है, फिर उसी तखत पे अस्त-ब्यस्त लेट, एक रंडी की तरह पुरा दिन बीता उठती है, नहा धुलकर,गाढ़ी लिपस्टिक लगा चल पड़ती है, एक बीड़ी होठ पे लगाये उसी स्ट्रिट लाइट की तरफ, वैसे ही खड़ी हो फिर किसी ग्राहक को, अपने अधखुले ब्लाउज से रोज की तरह दिखाने अपना, अाधे से अधिक खुला वक्षस्थल।