1… आखिर कब तक….? डूबे रहोगे सिर्फ बौद्धिक व्यभिचार में वक्त पुकार रहा हैसमस्याओं के उपचारकी बाट जोह रहे हैं लोगअब मिथ्याचार नहीं,बल्कि समाधान के आधार तलाशो २… कई बार ऐसा होता है रख दिए जाते हैं संवेदना के स्रोतों के ऊपर यथार्थ के पत्थर ढंक दिया जाता है संवेदना कोमर जाती हैसंवेदना की स्रोतस्विनीडर जाती हैक़ाली हकीकतों को देखकर ३…… मीत अगर कहलाना है,तो बातों से मत बहलाना, मैं भी खुद को खो दूंगा,तुम भी खुद को खो देना। वीणा का तार हो जाउंगा,करुणा का भाव तुम बन जाना। काजल हूं रात का मैं,भिनसार की झलक तुम,शबनम हूं भोर की मैं,मधुबन की भूमिका तुम,प्रणयी का गीत हूं मैं,बिसरा अतीत हूं मैं,मैं छेडूंगा राग सारे,बस तुम गीत गुनगुनाना। 4…. जब मुखर होता है , मौन शब्द चुक जाते है | तब अहसासों की प्रतीती में , पुनः जन्म लेती है वाणी 5……… भूलूं तुझे अगर तो लोग बेवफा कहें…..रखूं अगर जो याद तो परछाइयां डसें।खोलूं अगर जो होंठ तो रुसवाई हो तेरी…..चुप रहूं तो चीखती सच्चाइयां डसें।घर में रहूं या बाजार में रहूं…….भीड में भी मुझे तन्हाइयां डसें।तेरी बेवफाई से गिला कोई नहीं,मगर……..मुझको मेरे मिजाज की अच्छाइयां डसें। ६ …….. भावों ने भिगोया जिन्हें नहीं, बरसात की कीमत क्या जानें। बस,बातों के जो सौदागर, जज्बात की कीमत क्या जानें।दिल-दिमाग जिनके बंजर,तन ही सब कुछ,मन क्या जानें।जग को ठगकर भी जो भूखे,उपवास की कीमत क्या जानें।खुदगर्जी जिनकी फितरत है,अहसास की कीमत क्या जानें।खून भरोसे का जो करते,विश्वास की कीमत क्या जानें। ७……… ……क्योंकि दुखडे सुनाने की आदत न थी हम अंदर ही अंदर सुलगते रहे फिर भी हमें देखकर लोग जलते रहे ……क्योंकि दुखडे सुनाने की आदत न थी।वैसे दुश्मन किसी को बनाया नहींलेकिन,दोस्तों ने कमी वो भी खलने न दी….क्योंकि झूठी तारीफें करने की आदत न थी।सीढी बने हम और चढाया जिन्हेंचिढाकर हमें वो भी चलते बने….क्योंकि बदला चुकाने की आदत न थी।खुद बिखरते रहे,खुद सिमटते रहेसब सिसकियों पर ठहाके लगाते रहे…..क्योंकि हमें गिडगिडाने की आदत न थी।बस दिया ही दिया,कुछ लिया न कभीपर,लेने वाले भी आंखें दिखाते रहे…क्योंकि हमें दिल दुखाने की आदत न थी। 8…… मीत जबसे तुम मिले हो,ख्वाब फिर सजने लगे हैं,निर्जीव मन में नूतन सृजन के भाव फिर जगने लगे हैं.द्वंद्व मन का मेरा सब काल-कवलित हो गया है,हसरतों की रोशनी में सारा अंधेरा खो गया है.जंगल-जंगल वीरानों में मन का साथी ढूंढ रहा था,साथ तुम्हारा हुआ है जबसे,फूल खिलने फिर लगे हैं. ९ ………