आज के साहित्यकार

एक प्रश्न बार -बार उठता है कि क्या आज के साहित्यकार भी उतने ही संवेदनशील व् मेहनती है जितने पहले हुआ करते थे | कहीं ऐसा तो नहीं कि नाम और शोहरत उन्हें शोर्ट कट की तरफ मोड़ रहा हो | इसी चिंतन -मनन प्रक्रिया में एक ऐसी ही रचना सौरभ दीक्षित ‘मानस’ जी की … आज के साहित्यकार   आज कोई प्रेमचंद भूखा नहीं मरता। आज किसी निराला को, पत्थर तोड़ती स्त्री की पीड़ा नहीं दिखती। आज कोई महादेवी मंच की शोभा बनने से ऐतराज नहीं करती क्योंकि…. बदल गया है समय बदल गया है परिवेश आज के प्रेमचंद अवसर देते हैं नवोदितों को, लेकर एक मुश्त राशि या बनाने लगे हैं कहानीकार, कथाकार रचनाकार या साहित्यकार मिलकर, एक रात होटल के कमरे में…. आज के निराला देखते हैं, गोरी चमड़ी जो कर दे उन्हें आनंदित, अपने स्पर्श से उनके लिए आवश्यक है सुंदरता, योग्यता से अधिक…. आज की महादेवी होती है गौरवान्वित सम्मिलित होकर मंचों पर दस कवियों के बीच एक मात्र कवियत्री बनकर…. हाँ!!!! बदल गया है समय और साहित्यकार होने की परिभाषा भी….. सौरभ दीक्षित ‘मानस’ आपको रचना आज के साहित्यकार कैसी लगी | अपने विचार हमें अवश्य बताये |  

कैलाश सत्यार्थी जी की कविता -परिंदे और प्रवासी मजदूर

नोबेल शांति पुरस्‍कार से सम्‍मानित विश्व प्रसिद्ध बाल अधिकार कार्यकर्ता श्री कैलाश सत्‍यार्थी लॉकडाउन से बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों और उनके बच्चों को लेकर चिंतित हैं। उनकी मदद के लिए व्यक्तिगत स्तर पर प्रयास के साथ-साथ वे इसके लिए लगातार सरकार और कोरपोरेट जगत के लोगों से बातचीत कर रहे हैं। पिछले दिनों अपने गांवों की तरफ लौटते भूख से तड़पते प्रवासी मजदूरों को देखकर श्री सत्‍यार्थी इतने व्‍यथित हुए कि उन्‍होंने अपनी व्‍यथा और संवेदना को शब्दों में ढाल दिया। वे घर लौट रहे दिहाड़ी मजदूरों की व्‍यथा को इस कविता में प्रतीकात्‍मक अंदाज में व्‍यक्‍त करते हैं। इस कविता के जरिए वह भारत के भाग्‍य विधाता और सभ्‍यताओं के निर्माता इन मजदूरों प्रति असीम कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए यह उम्मीद भी जताते हैं कि एक दिन उनके जीवन में सब कुछ अच्छा होगा…   परिंदे और प्रवासी मजदूर-कैलाश सत्यार्थी मेरे दरवाज़े के बाहर घना पेड़ था, फल मीठे थे कई परिंदे उस पर गुज़र-बसर करते थे जाने किसकी नज़र लगी या ज़हरीली हो गईं हवाएं   बिन मौसम के आया पतझड़ और अचानक बंद खिड़कियां कर, मैं घर में दुबक गया था बाहर देखा बदहवास से भाग रहे थे सारे पक्षी कुछ बूढ़े थे तो कुछ उड़ना सीख रहे थे   छोड़ घोंसला जाने का भी दर्द बहुत होता है फिर वे तो कल के ही जन्मे चूज़े थे जिनकी आंखें अभी बंद थीं, चोंच खुली थी उनको चूम चिरैया कैसे भाग रही थी उसका क्रंदन, उसकी चीखें, उसकी आहें कौन सुनेगा कोलाहल में   घर में लाइट देख परिंदों ने शायद ये सोचा होगा यहां ज़िंदगी रहती होगी, इंसानों का डेरा होगा कुछ ही क्षण में खिड़की के शीशों पर, रोशनदानों तक पर कई परिंदे आकर चोंचें मार रहे थे मैंने उस मां को भी देखा, फेर लिया मुंह मुझको अपनी, अपने बच्चों की चिंता थी   मेरे घर में कई कमरे हैं उनमें एक पूजाघर भी है भरा हुआ फ्रिज है, खाना है, पानी है खिड़की-दरवाज़ों पर चिड़ियों की खटखट थी भीतर टीवी पर म्यूज़िक था, फ़िल्में थीं   देर हो गई, कोयल-तोते, गौरैया सब फुर्र हो गए देर हो गई, रंग, गीत, सुर, राग सभी कुछ फुर्र हो गए   ठगा-ठगा सा देख रहा हूं आसमान को कहां गए वो जिनसे हमने सीखा उड़ना कहां गया एहसास मुक्ति का, ऊंचाई का और असीमित हो जाने का   पेड़ देखकर सोच रहा हूं मैंने या मेरे पुरखों ने नहीं लगाया, फिर किसने ये पेड़ उगाया? बीज चोंच में लाया होगा उनमें से ही कोई जिनने बोए बीज पहाड़ों की चोटी पर दुर्गम से दुर्गम घाटी में, रेगिस्तानों, वीरानों में जिनके कारण जंगल फैले, बादल बरसे चलीं हवाएं, महकी धरती   धुंधला होकर शीशा भी अब, दर्पण सा लगता है देख रहा हूं उसमें अपने बौनेपन को और पतन को   भाग गए जो मुझे छोड़कर कल लौटेंगे सभी परिंदे मुझे यक़ीं है, इंतजार है लौटेगी वह चिड़िया भी चूज़ों से मिलने उसे मिलेंगे धींगामुश्ती करते वे सब मेरे घर में सभी खिड़कियां, दरवाज़े सब खुले मिलेंगे आस-पास के घर-आंगन भी बांह पसारे खुले मिलेंगे। यह भी पढ़ें … रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बदनाम औरतें नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको कविता ” परिंदे और प्रवासी मजदूर”   “कैसी लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   filed under-lock down, kailash satyarthi, hindi poem, labourer, corona

यामिनी नयन गुप्ता की कवितायें

कविता मानस पर उगे भाव पुष्प है | मानव हृदय की भावनाएं अपने उच्चतम बिंदु पर जा कर कब कैसे कविता का रूप ले लेती हैं ये स्वयं कवि भी नहीं जानता|भाव जितने ही गहरे होंगे पुष्प उतना ही पल्लवित होगा | आज हम पाठकों के लिए यामिनी नयन गुप्ता की कुछ  ऐसी ही कुछ कवितायें लायें हैं जो भिन्न भिन्न भावों के पुष्पमाला की तरह है |आइये पढ़ते हैं … प्रणय के रक्तिम पलाश  फिर वही फुर्सत के पल फिर वही इंतजार , खिलना चाहते हैं हरसिंगार अब मैंने जाना ___क्यों तुम्हारी हर आहट पर मन हो जाता है सप्तरंग ; मैं लौट जाना चाहती हूं अपनी पुरानी दुनिया में देह से परे ___ प्रकृति की उस दुनिया में फूल हैं ,गंध है , फुहार है, रंग हैं , बार-बार तुम्हारा आकर कह देना यूं ही __ मन की बात बेकाबू जज़्बात , मेरे शब्दों में जो खुशबू है तुम्हारी अतृप्त बाहों की गंध है , इन चटकीले रंगों में नेह के बंध हैं इंद्रधनुषीय रंग में रंगे हुए मेरी तन्मयता के गहरे पल हैं , बदल सा गया हर मंजर यह भी रहा ना याद बह गया है वक्त ____ लेकर मेरे हिस्से के पलाश हां ____ मेरे रक्तिम पलाश ।          यामिनी नयन गुप्ता 2 .                   मां के आंगन का बसंत मां के आंगन का वृक्ष था वह हरा-भरा छितराया मन भर हरसिंगार इतना महका एक बार कि पीछे बाग को जाती पगडंडी  छुप गई थी मां बोली ” जा बिटिया ‼️ बीनकर ले आ कुछ हरसिंगार अपनी बिटिया और उसकी गुड़िया के लिए मैं बनाऊंगी छोटे-छोटे गजरे “ मैं जाकर झट से चुन लायी मन भर हरसिंगार अपनी  फ्रॉक  के सीमित वितान में। जिस सुबह एक बार जागकर पुनः चिर निद्रा में लीन हो गई थीं मां रोया नहीं था वो वृक्ष हरियाले तने हो गए थे काजल से स्याह खिलखिलाते पत्ते  हो गए धूल-धूसरित निर्जीव हो गयीं सफेद फूलों की नारंगी डंडियां , शायद अब कभी लौट कर नहीं आएगा इस आंगन में बसंत । मुक्ति द्वार में जाते समय भी मां को याद रहा होगा पिता का अकेलापन ; या कि मेरे बचपन की यादें या कि मां को भी याद आया होगा अपनी मां का चेहरा , मेरे शब्दों में रहती हैं वो कविता का नेपथ्य बनकर मां मैं  होना चाहती हूं तेरी रोशनाई । यामिनी नयन गुप्ता 3 .                  एक बसंत अपना भी ___                  जब एक पुरूष लगाता है स्त्री पर आक्षेप , अपनी श्रेष्ठता का सिद्ध करने के लिए करता है स्त्री अस्मिता का हनन , प्रथम दृष्ट्या प्रतिक्रिया स्वरुप काठ हो जाती है औरत नजर नीची किए साड़ी के पल्ले को घुमाती है उंगलियों की चारों तरफ और याद करती है सप्तपदी के वचन मन से भी तेज गति होती है अपमान की , वो हो जाती है अवाक् , निर्वाक् और तुम समझते हो __ विजयी हो गए ? जब तुम कहते हो , ” मूर्ख स्त्री !! तुम चुप नहीं रह सकतीं ?” यह महज़ एक तिरस्कार नहीं है उपेक्षा नहीं हैं यह है एक स्त्री को उसकी औकात बताने का उपक्रम स्त्री भला कब अपनी तरह से जीने को हुई स्वतंत्र एक स्वाभिमानी स्त्री को  नीचा दिखाने का है यह षड्यंत्र; जिस घर में होता है स्त्रियों का रुदन वह दहलीज हो जाती है बांझ श्मशान हो जाता है आंगन उस घर की बगिया से बारहोमास का हो जाता है पतझड़ का लगन  ; बुरे से बुरे अपशब्दों का समाज कर देता है सामान्यीकरण अरे !!  कुल्टा !! कुलक्ष्नी कह दिया तो क्या हुआ है तो भरतार ही , और एक दिन भर जाता है घडा़ अपमान का लबलबाकर उफन जाती है नदी वेदना की खंडित स्वाभिमान की चीखों से मौन हो जाता है भस्म , उधड़ चुकी मन की भीतरी सीवन से झर-झर जाती हैं निष्ठाएं , रेशे-रेशे जोडी़ महीन बुनावट  के ढीले पड़ जाते हैं बंधन पीले पड़ते पत्तों का कोरस ही नहीं हैं ये खांटी औरतें इनके जीवन में भी एक दिन आएगा अपना एक बसंत । यामिनी नयन गुप्ता नाम : यामिनी नयन गुप्ता जन्मतिथि : 28/04/1972 जन्मस्थान : कोलकाता शिक्षा : स्नातकोत्तर ( अर्थशास्त्र ) लेखन विधा : कविताएं , हास्य-व्यंग्य , लघुकथाएं काव्य संकलन : आज के हिंदी कवि (खण्ड१)                         दिल्ली पुस्तक सदन द्वारा                         तेरे मेरे शब्द ( साझा)                        शब्दों का कारवां ( साझा)                        मेरे हिस्से की धूप ( साझा )                        काव्य किरण  (साझा )                     चाटुकार कलवा 2020                       व्यंग्य संग्रह ( साझा )        एकल काव्य संग्रह ( अस्तित्व बोध) संप्रति : व्यवसायिक प्रतिष्ठान में कार्यरत सम्मान : काव्य संपर्क सम्मान              नवकिरण सृजन सम्मान  पाखी में प्रकाशित हुई हैं कविताएं एवं कथाक्रम में कहानी “कस्तूरी “      4th अगस्त समाचार पत्र जनसत्ता रविवारीय एवं जून की यथावत् में प्रकाशित हुई हैं कविताएं।        प्रतिष्ठित साहित्यिक समाचार पत्र जनसत्ता ,अमर उजाला एवं साहित्यिक पत्रिका आलोक पर्व , कथाक्रम सेतु ,मरू नवकिरण, अवधदूत ,  दैनिक युगपक्ष , ककसाड़ , सरिता , वनिता ,रूपायन व अन्य राष्ट्रीय स्तर के पत्र- पत्रिकाओं में कविताएं , लघुकथाएं , हास्य-व्यंग्य प्रकाशित । विषय  : नारी व्यथा ,विरह ,प्रेम..पर मैं लिखती हूं।साथ ही          वर्तमान परिपेक्ष्य में स्री् कशमकश ,जिजीविषा और          मनोभावों को कविता में उकेरने का प्रयास रहता है ।              yaminignaina@gmail.com मर्द के आँसू रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको   “यामिनी नयन गुप्ता की कवितायेँ  “ कैसी   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-poem, hindi poem, mother, palash, yamini

सांता का गिफ्ट

क्रिसमस से संता का करिश्मा भी जुड़ा है | दुनिया भर के बच्चे क्रिसमस के दिन संता का इंतज़ार करते हैं | सफ़ेद दाढ़ी वाला ये दयालु आदमी स्लेज से आकर चुपके से लोगों के घरों में गिफ्ट छोड़ जाएगा | क्या क्रिसमस से एक रात पहले संता क्लाज गिफ्ट देते हैं और अगर देते हैं तो वो क्या है ? सांता का गिफ्ट  सुबह -सुबह जब बच्चे चमकती आँखों के साथ गले लग कर कहते हैं  ‘मेरी क्रिसमस “ तो मुझे याद आ जाती है उनकी बचपन की वो क्रिसमस जब दिसंबर की सर्द रातों में वो बेसब्री से किया करते थे सांता का इंतज़ार जो आधी रात को आएगा अपनी स्लेज में बैठकर और चुपके से खिड़की से डाल देगा उनकी पसंद का कोई उपहार चॉकलेट, पेंसिल, केक या उनके पसंद की कोई किताब कितनी सर्द रातों में उनींदी पलकों के कोरों झप जाने से रोकने की की थी असफल कोशिश नींद के आगोश में जाने से पहले नहीं बंद करने दी थी खिड़की भले ही ठिठुरते रहे  सब पर सांता को खिड़की नहीं मिलनी चाहिए बंद सांता यानी चमत्कार मनचाही मुराद पूरी होने का द्वार उम्र के जाने किस पायदान पर जब नहीं झपकने लगीं थी उनकी पलकें वो कर सकते थे इंतज़ार १२, १, २ बजे तक भी फिर भी खिड़की रहने लगी थी बंद ऐसा नहीं कि अब उन्हें संता पर विश्वास नहीं रहा या क्रिसमस  पर ख़ुशी का अहसास नहीं रहा हर क्रिसमस पर सुबह -सुबह उनकी चमकती आँखें देती हैं गवाही कि कल रात भी आया था सांता लम्बी सफ़ेद दाढ़ी के साथ अपनी स्लेज पर सवार हो कर और फिर  से दे गया है वही उपहार जो है चॉकलेट, खिलौनों और कपड़ों से भी कीमती जिसको लेने के लिए नहीं है जरूरत खिड़की खुली रखने की जरूरत है बस समझने की कि मनचाही मुराद पाने के लिए जरूरी है नींदों की कुरबानी कि जागती आँखों के कोरों को मेहनत की दिशा में झोंक देने से ही पूरा होता है मुरादों का सफ़र मुरादों के पूरा होने का सफ़र वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … सेंटा क्लॉज आयेंगे क्रिसमस पर 15 सर्वश्रेष्ठ विचार जीवन को दिशा देते बाइबिल के अनमोल विचार आपको  कविता “ सांता का गिफ्ट    “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  keywords; CHIRTMAS, CHRISTMAS TREE, SANTA CLAUS

बलात्कार के खिलाफ हुँकार

 हम उसी देश के वासी हैं जहाँ कभी कहा जाता था कि ,”यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता” आज उसी देश में हर १५ मिनट पर एक बलात्कार हो रहा है | ये एक दर्दनाक सत्य है कि आज के ही दिन निर्भया कांड हुआ था | बरसों से उसकी माँ अपराधियों को दंड दिलालाने के लिए भटक रही है | उसके बलात्कारी  “अपराध से घृणा करो, अपराधी से नहीं’  जैसे प्रवचन देते हुए  यह सिद्ध कर देते हैं कि उनमें आज भी अपराध बोध नहीं है | हाल ही का प्रियंका कांड हो या उन्नाव का, बिहार का या कठुआ का  किसी भी अपराधी को  इस बर्बरता के लिए छोड़ा  नहीं जाना चाहिए | देवी बना के ना पूजो, इंसान बन कर तो जीने दो |स्त्री सुरक्षा के लिए जरूरी हैं कठोर कानून और उनका तुरंत क्रियान्वन | पढ़िए निर्भय काण्ड की बरसी पर ये आक्रोश से भरी कविता … बलात्कार के खिलाफ हुँकार  नारी सर्वत्र पूज्यते कीअब बात खोखली लगती हैनित-नित चीर हरण होताहर बात दोगली लगती हैचारों ओर प्रवृत्ति आसुरीबढ़ता जाता है व्यभिचारपूजा तो अति दूर,निरन्तरबलात्कार हो बारम्बारहवस पूर्ति करके औरत कोअग्नि हवाले यह करतेकलियुग के पापाचारीहैं दुराचार के घट भरतेजिन कोखों से जन्म लिया हैउन्हे लजाते शर्म नहींबहन , बेटियों की मर्यादाकरें भ॔ंग ; कोई धर्म नहींजहाँ जानकी ,राधा,काली ,दुर्गा हैं पूजी जातीराम,कृष्ण के देश भलाक्योंकर जन्मे ये कुलघाती?इन्सानों का भेषजानवर से बद्तर इनकी करनीखोद रहे अपनी ही कब्रेंकुटिल , निकम्में , दुष्कर्मी उषा अवस्थी  यह भी पढ़ें …. मर्द के आँसू वो पहला क्रश रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “बलात्कार के खिलाफ हुंकार “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |      filed under-poem, hindi poem, rape, crime against women, rape victim,   

मर्द के आँसू

मर्द के आंसुओं पर बहुत बात होती है | बचपन से सिखाया जाता है , “अरे लड़के होकर रोते हो | बड़े होते होते भावनाओं पर लगाम लगाना आ जाता है | पर आंसू तो स्वाभाविक हैं | वो किसी ना किसी तरह से अपने निकलने का रास्ता खोज ही लेते हैं | आइये जानते हैं कैसे … मर्द के आँसू  कौन कहता है की मर्द नहीं रोते हैं उनके रोने के अंदाज जुदा होते हैं सामाज ने कह -कह कर उन्हें ऐसा बनाया है आंसुओं को खुद ह्रदय में पत्थर सा जमाया है पिघलते भी हैं तो  ये आँसू रक्त में मिल जाते हैं और सारे शरीर में बस घुमते रह जाते हैं | बाहर निकलने का रास्ता कहाँ मिल पाता है | इसलिए ये खून इनके अंतस को जलाता है दर्द की किसी शय पर जब मन बुझ  जाता है तो दुःख के पलों में इन्हें गुस्सा बहुत आता है  कई बार जब ये गुस्से में चिल्ला रहे होते हैं या खुदा ! दिल ही दिल में आँसू बहा रहे होते हैं | लोग रोने पर औरत के ऊँगली उठाते हैं , उसको नाजुक और कमजोर बताते हैं | पर औरत तो आंसू पोछ कर सामने आती है पूरी हिम्मत से फिर मैदान में जुट जाती है पर मर्द अपने आंसुओं को कहाँ पाच पाता है | वो तो आँसुओं के साथ बस रोता ही रह जाता है | एक औरत जब आँसुओं का साथ लेती है बड़े ही प्रेम से दूजी का दुःख बाँट लेती है | पर आदमी, खून में अपने आँसू छिपाता है इसलिए दूसरा आदमी समझ नहीं पाता है | ताज्जुब है कि इन्हें औरत ही समझ पाती है | अपने आँसुओं से उस पर मलहम लगाती है | हर मर्द की तकलीफ जो उसे दिल ही दिल में सताती है उसकी माँ , बहन , बेटी पत्नी की आँखों से निकल जाती है | वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … अंतर्राष्ट्रीय  पुरुष दिवस -परिवार में अपनी भूमिका के प्रति  सम्मान की मांग  या परदे उखड फेंकिये या रिश्ते प्रेम की ओवर डोज खतरनाक है जरूरत से ज्यादा मोबाइल का इस्तेमाल आपको आपको  लेख “मर्द के आँसू“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  फाइल्ड अंडर – Iternational Man’s Day , aansoon , tear , man’s tear , poem 

भाई -दूज पर मुक्तक

दीपावली के दूसरे दिन भाई दूज का त्यौहार मनाया जाता है | इस दिन बहनें अपने भाई के माथे पर रोली अक्षत का टीका लगा कर उसके लिए दीर्घायु की प्रार्थना करती हैं | कहा जाता है कि इसी दिन मृत्यु के देवता यमराज अपनी बहन यमी के निमंत्रण पर वर्षों बाद उसके घर भोजन करने गए थे | तभी यमी ने संसार की सभी बहनों के लिए ये आशीर्वाद माँगा था कि जो भी भाई आज के दिन अपनी बहन का आतिथ्य स्वीकार कर उसके यहाँ भोजन करने जाए उसे वर्ष भर यमराज बुलाने ना आयें | इसी लिए आज के दिन का विशेष महत्व है | फिर भी बदलते ज़माने के साथ बहनें इंतज़ार करती रह जाती हैं और भाई अपने परिवार में व्यस्त हो जाते हैं | जमाना बदल जाता है पर भावनाएं कहाँ बदलती है | बहनों की उन्हीं भावनाओं को मुक्तक में पिरोने की कोशिश  की है |  भाई -दूज पर मुक्तक  कि अपने भाई को देखो बहन  संदेश लिखती है चले आओ  कि ये आँखें  तिहारी राह तकती हैं सजाये थाल  बैठी हूँ तुम्हारे ही लिए भाई तुम्हारी याद  में आँखें घटाओं सम बरसतीं हैं …………………………………………. तुझे भी याद तो होंगी पुरानी वो सभी दूजे बहन के सात भाई चौक पर जो थे कभी पूजे बताशे हाथ में देकर सुनाई थी कथा माँ ने सुनाई दे रहीं मुझको न जाने क्यों अभी गूँजें ———————————————— वर्ष बीते  मिले  हमको गिना है क्या कभी तुमने पलों को  भी  जरा सोचो    लगाया है   गले      हम ने  खता हुई      बताओ क्या  जरा  सी  बात पर रूठे                        कि आ जाओ मनाउंगी   उठाई   है कसम  हमने  —————————————- बने भैया    बहन आठों       धरा पे  चौक  आटे से  लगे ना चोट पाँवों  में     कभी  राहों के    काँटे  से  चला मूसर कुचल दूँगी     अल्पें तेरी   मैं  राहों की  बटेगा   ना  कभी     बंधन    हमारा  प्रभु    बांटे से  वंदना बाजपेयी मुक्तक –मु –फाई-लुन -1222 x 4 यह भी पढ़ें … प्रेम दीपक आओ मिलकर दिए जलायें धनतेरस -दीपोत्सव का प्रथम दिन दीपावली पर 11 नए शुभकामना सन्देश लम्बी चटाई के पटाखे की तरह हूँ मित्रों , आपको  ‘भाई -दूज पर मुक्तक‘ कैसे लगे   | पसंद आने पर शेयर करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |  अगर आपको ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री ईमेल सबस्क्रिप्शन लें ताकि सभी  नयी प्रकाशित रचनाएँ आपके ईमेल पर सीधे पहुँच सके |  filed under-bhaiya duj, bhai-bahan, muktak

दीपोत्सव

दीपावली मानने के तमाम कारणों में एक है राम का अयोध्या में पुनरागमन | कहते हैं दीपावली के दिन प्रभु श्री  राम 14 वर्ष का वनवास काट कर पुन: अयोध्या लौटे थे | इस ख़ुशी में लोगों ने अपने घरों में दीप जला लिए थे | राम सिर्फ एक राजा ही नहीं थे | बल्कि आदर्श पुत्र , एक पत्नीव्रत का निर्वाह करने वाले , स्त्रियों की इज्ज़त  करने वाले भी थे | हम दीपावली प्रभु राम के अयोध्या वापस आने की ख़ुशी में तो मना लेते हैं पर क्या राम को  अपने व्यक्तित्व में उतार पाते हैं |  दीपोत्सव  जगमगाती दीपमालाएँ लगीं भानेराम जैसे बन के दिखलाओ तो हम जानें टूट कर गृह कलह से बिखरे नहीं परिवारपिता के वचनों को निभाओ तो फिर मानेंराम जैसे बन के दिखलाओ तो हम जानें राम सीता के न रह पाए बहुत दिन साथउन सा पत्नी एक व्रत , धारो तो फिर मानेंराम जैसे बन के दिखलाओ तो हम जानें दूसरों की पत्नियाँ हों, बहन, या बेटीअपनी माँ, बहनों सा ही जानो तो फिर मानेंराम जैसे बन के दिखलाओ तो हम जानें गुरूजन, माता-पिता, अपने जो हैं कुल श्रेष्ठउनके चरणों में झुके जो शीश,  फिर मानेंराम जैसे बन के दिखलाओ तो हम जानें जगमगाती दीपमालाएँ लगीं भाने उषा अवस्थी                                        यह भी पढ़ें …. आओ मिलकर दिए जलायें धनतेरस -दीपोत्सव का प्रथम दिन दीपावली पर 11 नए शुभकामना सन्देश लम्बी चटाई के पटाखे की तरह हूँ मित्रों , आपको कविता ‘ दीपोत्सव’ –  कैसी लगी  | पसंद आने पर शेयर करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |  अगर आपको ” अटूट बंधन ” की रचनाएँ पसंद आती हैं तो हमारा फ्री ईमेल सबस्क्रिप्शन लें ताकि सभी  नयी प्रकाशित रचनाएँ आपके ईमेल पर सीधे पहुँच सके |  filed under-deepawali, deepotsav, diwali, diye, deepak, Ram

धनतेरस पर करें आरोग्य की कामना

चलो जलाए आज हम , सखि द्वारे पर दीप। तम को जो मेटे सदा , उजला सौम्य प्रदीप। उजला सौम्य प्रदीप , स्वास्थ्य का सुख धन लाये । रोग-व्याधि हों दूर , कमलिनी मन हर्षाये । देख स्वास्थ्य सुख शांति , पास यमदूत न आयें। धन्वंतरि को पूज , चलो हम दीप जलायें।। धनतेरस की हार्दिक शुभकामनाएं वंदना बाजपेयी

मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा

फोटो क्रेडिट -आउटलुक इंडिया .कॉम गाँधी जी आज भी प्रासंगिक है | गाँधी जी के विचार आज भी उतने ही सशक्त है | हम ही उन पर नहीं चलना चाहते | पर एक नन्ही बच्ची मुन्नी ने उन पर चल कर कैसे अपने अधिकार को प्राप्त किया आइये जाने इस काव्य कथा से … मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा  मुन्नी के बारे में आप नहीं जानते होंगे कोई नहीं जानता कितनी ही मुन्नियाँ हैं बेनाम सी पर एक नाम होते हुए भी ये मुन्नी थी कुछ अलग जो जमुनापार झुग्गीबस्ती में रहती थी अपनी अम्मा-बाबूजी और तीन बहनों के साथ अम्मा के साथ झुग्गी बस्ती में रोज चौका -बर्तन करते बड़े घरों की फर्श चमकाते जब ब्याह दी गयीं थी तीनों बहने तब मुन्नी स्लेट पट्टी पकड़ जाती थी पास के स्कूल में पढने मुन्नी की नज़रों में था पढने का सपना एक -एक बढती कक्षा के साथ इतिहास की किताब में  मुन्नी ने पढ़ा था गाँधी को , पढ़ा था, आमरण अनशन को, और जाना था अहिंसा की ताकत को वो अभी बहुत पढना चाहती थी, पर मुन्नी की माँ की आँखों में पलने  लगा सपना मुन्नी को अपने संग काम पर ले जाने का  कद हो गया है ऊँचा, भर गया है शरीर , सुनाई देने लगी खनक उन पैसों की जो उसे मिल सकते थे काम के एवज में चल जाएगा घर का खर्चा, जोड़ ही लेगी खुद का दहेज़ अपनी तीनों बहनों की तरह …आखिर हाथ तो पीले करने ही हैं बिठा कर थोड़ी ना रखनी है लड़की अम्मा की बात पर बापू ने सुना दिया फरमान बहुत हो गयी पढाई , अब कल से जाना है अम्मा के साथ काम पर दिए गए प्रलोभन उन बख्शीशों के जो बड़े घरों में मिल जाती है तीज त्योहारों पर मुन्नी रोई गिडगिड़ाई ” हमको पढना है बापू, हमको पढना है अम्मा, पर बापू ना पसीजे और अम्मा भी नहीं ठीक उसी वक्त मुन्नी को याद आ गए गाँधी और बैठ गयी भूख हड़ताल पर शिक्षा  के अधिकार के लिए एक दिन,  दो दिन, पाँच दिन सात दिन गले के नीचे से नहीं उतारा निवाला अम्मा ने पीटा , बापू ने पीटा पर मुन्नी डटी रही अपनी शिक्षा  के अधिकार के लिए आखिरकार एक दिन झूके बापू और कर दिया ऐलान मुन्नी स्कूल जायेगी , शिक्षा  पाएगी मुन्नी स्कूल जाने लगी … और करने लगी फिर से पढाई इस तरह वो मुन्नी हो गयी हज़ारों मुन्नियों  से अलग बात बहुत छोटी  है पर सीख बड़ी गर संघर्ष हो सत्य  की राह पर तो टिके रहो , हिंसा के विरुद्ध भूख के विरुद्ध सत्ता के विरुद्ध यही बात तो सिखाई थी गांधी ने यही तो था कमजोर की जीत का मन्त्र कौन कहता है कि आज गाँधी प्रासंगिक नहीं … सरबानी सेन गुप्ता यह भी पढ़ें …  रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “मुन्नी और गाँधी -एक काव्य कथा “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, gandhi jayanti, Mahatma Gandhi, 2 october, gandhigiri, गाँधी , गाँधीवाद