डॉटर्स डे-जिनके जन्म पर थाली नहीं पीटी जाती

डॉटर्स डे, बहुत ही खूबसूरत शब्द है | पर हमारे देश में जहाँ बेटियाँ गर्भ में मार दी जाती हों | उनके जन्म पर उदासी छा जाती हो | घर में भेदभाव होता हो …वहां डॉटर्स डे सिर्फ मनाने का त्यौहार नहीं है बल्कि संकल्प ले ने का दिन है कि हम अपनी बेटियों को  समान अधिकार दिलवाएंगे |  डॉटर्स डे-जिनके जन्म पर थाली नहीं पीटी जाती  जानती हूँ, आज डॉटर्स डे है सब दे रहे है बेटियों को जन्म की बधाइयाँ , ऐसे में , एक बधाई तो तुम्हे भी बनती हैमेरी प्यारी बेटी,ये जानते हुए भी क़ि तुम्हारे जन्म परनहीं पीटी गयीं थी थालियाँ ,न ही मनी थी छठी या बरहीं,सब के बीच घोषित कर दी गयी थी मैं,पुत्री जन्म की अपराधिनी,जिसने ध्यान नहीं रखा था,चढ़ते -उतरते दिनों का,खासकर चौदहवें दिन का,कितना समझाया गया था,फिर भी…सबके उदास लटके चेहरे,और कहे -अनकहे तानेपड़ोसियों के व्यंग -बाण,“सुना है पहलौटी कि लड़की होती है अशुभ”के बीच दबे हुए मेरे  प्रश्न“क्या पहली बेटी के बाद दूसरी हो जाती है शुभ?”जानती थी उत्तर,फिर भी…जैसे जानती हूँ क़ि “दुर्गा आयी है,लक्ष्मी आयी है”के बाहरी उद्घोष के बीच मेंघर की चारदीवारी के अंदर,बड़ी ख़ूबसूरती से दबा दी जाती हैदोषी घोषित की गयी माँ की सिसकियाँ, किससे शिकायत करती सब अपने ही तो थे, अपने ही तो हैं,फिर भी… उस समय दबा कर उपेक्षा की वेदना को  मैं अकेली ही सही खड़ी हुई थी तुम्हारे साथ,दी थी खुद को बधाई तुम्हारे जन्म की  और तुम्हारी वजह से ही, समझी हूँ दर्द नकारे जाने का इसलिए   आज मैं खड़ी हूँ उन लाखों बेटियों के साथ जिनके जन्म पर थाली नहीं पीटी जाती वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “डॉटर्स डे-जिनके जन्म पर थाली नहीं पीटी जाती “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, life, daughter’s day, women issues, mother and daughter

अग्नि – पथ

         हम ऐसे समज में जीने के लिए अभिशप्त हैं जहाँ रिश्ते -नाते अपनत्व पीछे छूटते जा रहे हैं | इंसान में  जो चीज सबसे पहले खत्म हो  रही है वो है इंसानियत | इंसान बर्बर होता जा रहा है | आये दिन अखबारों के पन्ने ऐसी  ही दर्दनाक खबरों से से भरे रहते हैं …जहाँ मानवता शर्मसार हो |ऐसे में कवि ह्रदय का व्याकुल होना स्वाभाविक है | ये कविता एक ऐसी ही घटना से व्याकुल हो कर लिखी गयी है जिसमें फरक्का एक्सप्रेस में एक महिला से उसका बच्चा छीन कर बाहर फेंक दिया गया | माँ की व्यथा का अंदाजा लगाया जा सकता है | ये कविता गिरते मानव मूल्यों के प्रति जागरूक कर रही है …. अग्नि – पथ वक्त यह ,सोचें-विचारेंबढ़ रही क्यों दूरियाँ?चल पड़े हैं अग्नि-पथ परकौन सी मजबूरियाँ?करुणा से दूरी बनाईप्रेम-घट खाली कियापोंछेगा किसके तू आँसू?बन के बर्बर जो जियाबढ़ती जाएँ दूरियाँकुटुम्ब और समाज सेपाठ जिनसे पढ़ते थे हमनेह, प्रीति ,उजास केबिखरते परिवाररिश्ते टूटते अपनत्व केअब सबक़ किससे पढ़ें ?सहिष्णुता , समत्व के उषा अवस्थी                                    यह भी पढ़ें … नींव व्हाट्स एप से रिश्ते  रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  आपको “अग्नि – पथ“कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-Hindi poetry, poem, agani-path, human relations, crime

श्रीकृष्ण वंदना

जन्माष्टमी प्रभु श्रीकृष्ण के धरती पर अवतरण का दिन है | दुनिया भर में भक्तों द्वारा यह पर्व हर्षौल्लास के साथ मनाया जाता है | भक्ति प्रेम की उच्चतम अभिव्यक्ति है | भक्ति भावना में निमग्न व्यक्ति सबसे पहले ईश के चरणों की वंदना करता है … श्रीकृष्ण वंदना  अंतर में बैठे हो प्रभुवर , इतनी करुणा  करते रहिये | मम जीवन रथ की बागडोर , कर कमलों में थामें रहिये ||  उच्श्रिंखल इन्द्रिय घोड़े हैं , निज लक्ष्य का बोध न रखते हैं  ठुकरा मेरे निर्देशों को , भव पथ पर सदा भटकते हैं || अति बलि निरंकुश चंचल मन , प्रिय मेरे वश नहीं होता है | ये मस्त गेंद की भांति प्रभु , दिन रात्रि दौड़ता रहता है || चंचल मरकट  की भांति जभी  ये स्वप्न जगत में जाता है | तब कुशल नटी की भांति वहाँ, अद्भुत क्रीडा दिखलाता है || निज जान अकिंचन दासी को , चरणों में नाथ लगा लीजे , गोविन्द वारि करुणा  की बन  अब सतत वृष्टि मुझ पर कीजे || मेरे जीवन कुरुक्षेत्र में आ , गीता का ज्ञान उर में भरिये , प्रिय सारथि अब जीवन रथ को ,  आध्यात्म मार्ग पर ले चलिए ||   उर  के विकार कौरव दल का , प्रिय सारथि अब विनाश करिए | सद्वृति रूपी पांडव की , अविलम्ब प्रभु रक्षा करिए || मन से वाणी से काया  से , जीवन भर जो भी कर्म करूँ  हे जगन्नाथ करुना सागर | वे सभी समर्पित तुम्हें करूँ || ये ‘राष्ट्रदेवी ‘अल्पज्ञ प्रभु  स्वीकार उसे करते रहिये  शुभ कर्मों का आचरण करूँ  | अवलंबन प्रिय देते रहिये || कृष्णी राष्ट्र देवी त्रिपाठी (श्रीमती एम डी त्रिपाठी,) (संक्षिप्त गीतामृतं से ) यह भी पढ़ें ……. जन्माष्टमी पर सात काव्य पुष्प पवित्र गीता सभी को कर्तव्य व् न्याय के मार्ग पर चलने का सन्देश देती है जन्माष्टमी पर विशेष झांकी _ जय कन्हैया लाल की धर्म और विज्ञान का समन्वय इस युग की आवश्यकता है कान्हा तेरी प्रीत में कृष्ण की गीता और मैं आपको    ”  श्रीकृष्ण वंदना “कैसी लगी    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- janmashtami, shri krishna, lord krishna, govind, avtar, krishna avtar

अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें

फोटो क्रेडिट -वेब दुनिया जब भी राजनीति में ऐसे नेताओं की बात आती है जिन्हें पक्ष व् विपक्ष दोनों के लोग समान रूपसे सम्मान देते हों तो उनमें अटल बिहारी बाजपेयी का नाम पहली पंक्ति में आता है | भारत के दसवें प्रधानमंत्री रह चुके अटल जी एक कवि पत्रकार व् प्रखर वक्ता भी थे | कवि होने से भी ज्यादा विशेष था उनका कवि हृदय | भावों और शब्न्दों पर पकड से कोई भी कवि हो सकता है परन्तु कवि ह्रदय दुर्लभ है | अपने इस दुर्लभ ह्रदय के कारण ही राजनीति में रह कर भी  तमाम राजनैतिक द्वंदफंदों  से दूर रहे | आज उनकी पुन्य तिथि पर हम लाये हैं उनकी पांच कवितायें ….. अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें  ना चुप हूँ , ना गाता हूँ ना चुप हूँ , ना गाता हूँ सवेरा है मगर पूरब दिशा में घिर रहे बादल रुई से धुंधलके में मील  के पत्थर पड़े घायल ठिठके पाँव ओझल गाँव जड़ता है ना गतिमयता स्वर को दूसरों की दृष्टि से मैं देख पाता हूँ ना चुप हूँ , ना गाता हूँ समय की सद्र साँसों ने चिनारों को झुलस डाला मगर हिमपात को देती चुनौती एक दुर्गमाला बिखरे नीड़ विहसे चीड़ आंसू हैं न मुस्काने हिमानी झील्के तट पर अकेला गुनगुनाता हूँ ना चुप हूँ ना गाता हूँ | मैं अखिल विश्व का गुरु महान मैं अखिल विश्व का गुरु महान देता विद्या का अमर  दान मैं दिखलाता मुक्ति मार्ग मैंने सिखलाया , ब्रह्म ज्ञान | मेरे वेदों का ज्ञान अमर मेरे वेदों की ज्योति प्रखर मानव के मन का अंधकार क्या कभी सामने सका ठहर ? मेरे स्वर नभ में गहर -गहर सागर के जल में छहर -छहर इस कोने से उस कोने तक कर सकता जगती सौरभ भय मौत से ठन  गयी  ठन गयी मौत से ठन गयी जूझने का मेरा इरादा ना था मोड़ पर मिलेंगे , इसका वादा ना था , रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गयी , यूँ लगा जिन्दगी से बड़ी हो गयी | मौत की उम्र क्या है ?दो पल की नहीं , जिन्दगी सिलसिला , आजकल की नहीं | मैं जी भर जिया, मैं मन से मरुँ , लौट कर आऊंगा , कूच से क्यों डरूं | तू दबे पाँव , चोरी छिपे से ना आ सामने वार कर फिर मुझे आजमा | मौत से बेखबर , जिन्दगी का सफ़र शान हर सुरमई रात बंशी का स्वर | बात ऐसी नहीं कि कोई गम नहीं , दर्द अपने पराये कुछ  कम भी नहीं प्यार इतना परायों का मुझको मिला न अपनों से बाकी हैं कोई गिला हर चुनौती में दो हाथ  मैंने किये आँधियों में जलाए हैं बुझते दिए | आज झकझोरता तेज तूफान है , नाँव भवरों की बाहों में मेहमान है | पार पाने का कायम मगर हौसला, देख तेवर तूफां का तेवरी तन गयी , मौत से ठन गयी || आओ फिर से दिया जलायें  आओ फिर से दिया जलायें भरी दुपहरी में अंधियारा सूरज परछाई से हारा अंतरतम का नेह निचोडें बुझी हुई बाटी सुलगाएं आओ फिर से दिया जलायें हम पड़ाव को समझे मंजिल लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल ना भुलाएं आओ फिर से दिया जलाए आहुति बाकी यज्ञ अधूरा अपनों के विघ्नों ने घेरा अंतिम जय कवज्र बनाने नव दधीची , हड्डियां गलाए आओ फिर से दिया जलायें एक बरस बीत गया झुलसाता जेठ मास शरद चाँदनी उदास सिसकी भरते सावन का  अंतर्घट रीत गया एक बरस बीत गया | सींकचों में सिमटा जग किन्तु विकल प्राण विहाग धरती से अम्बर तक गूँज मुक्ति गीत गया एक बरस बीत गया | पथ निहारते नयन गिनते दिल पल छिन लौट कभी आएगा मन का जो मीत गया एक बरस बीत गया | अटूट बंधन यह भी पढ़ें … काव्य जगत में पढ़िए बेहतरीन कवितायें संगीता पाण्डेय की कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ रूचि भल्ला की कवितायें आपको  कविता  “  अटल बिहारी बाजपेयी की पाँच कवितायें .“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    डिस्क्लेमर – कविता , लेखक के निजी विचार हैं , इनसे atootbandhann.com के संपादक मंडल का सहमत/असहमत होना जरूरी हैं filed under- Atal Bihari Bajpayee,

वियोग श्रृंगार के दोहे

श्रृंगार रस के दो रूप होते हैं संयोग श्रृंगार और वियोग श्रृंगार ….वियोग में प्रेम की तीव्रता देखते ही बनती है | ऐसे में हम लायें हैं वियोग श्रृंगार रस में डूबे कुछ दोहे …….. वियोग श्रृंगार के  दोहे  १.. पढ़ कर पाती प्रीत की , भीग रहे हैं नैन | आखर -आखर बोलते , साजन हैं बेचैन || २… मैं उनकी हो ली सखी , पर वो मेरे नाही | एकतरफा अग्नि प्रेम की , नाहि  जाए बुझाहि  || ३ .. रूठे साजन से कहूँ , कैसे हिय की बात | ऊँघत तारों के तले  , कटती है हर रात || ४… मुझे होता जो भान ये , साजन हैं चितचोर | मनवा रखती  खींचकर , नहीं सौपती  डोर || ५… जबसे बालम ने किया , दूर देश में ठौर | तबसे देखा है नहीं ,दर्पण करके गौर || ६… घड़ी चले घड़ियाल सी , इस वियोग में हाय | तडपत हूँ दिन -रैन  मैं , पर साजन ना आय || ७… संदेशा तू  प्रेम का , बदरा ले जा साथ | बूँदों -बूँदों में छिपा , कहना हिय की बात || 8…. रिमझिम सावन भी गया , गयी घाम औ शीत | दिवस -दिवस बढती रही , मेरे उर की प्रीत || 9 .. नून घुले ज्यूँ नीर में , घुलती है यूँ देह | थामे रहतीं प्राण को , साँसें भर कर नेह || 10… तुम भी तो होगे पिया , उतने ही बेचैन | लिखना खत हमको कभी , कटती कैसे रैन || 11… मैं हुई हलकान पिया , नाम तुम्हारा टेर | अब तो आजा बालमा , नहीं करो अब देर || वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें … पढ़ें सावन पर कुछ भीगती हुई कवितायें – अगर सावन ना आई (भोजपुरी कविता ) सावन में लग गयी आग कि दिल मेरा (कहानी ) सावन पर किरण सिंह की कवितायें सावन एक अट्ठारह साल की लड़की है आपको “वियोग श्रृंगार के  दोहे   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, dohe, viyog shringar

सावन की बुंदियां

सावन के आते ही अपनी धरती ख़ुशी से झूम उठती है , किसान अच्छी फसल की उम्मीद करने लगता है और बावरा मन गा उठता है ….. सावन की बुंदियां उमड़ – घुमड़ करश्याम मेघ , अम्बर छाएसंकुल नभ गलियांरिमझिम गिरे सावन की बुंदियां शीतल , मृदुल फुहारें गिरतींअमृत सम मधुमय जल झरतींभरतीं पोखर , झीलें , नदियांरिमझिम गिरे सावन की बुदियां तप्त हुई बेचैन धरा कीहै जलधर ने प्यास बुझाईकृषकों के चेहरों पर खुशियांरिमझिम गिरे सावन की बुंदियां अट्टालिका गगनचुंबी हितवृक्ष कटें वन , उपवन के नितझूला किस पर डाले मुनिया ?रिमझिम गिरे सावन की बुंदियां उषा अवस्थी पढ़ें सावन पर कुछ भीगती हुई कवितायें – अगर सावन ना आई (भोजपुरी कविता ) सावन में लग गयी आग कि दिल मेरा (कहानी ) सावन पर किरण सिंह की कवितायें सावन एक अट्ठारह साल की लड़की है आपको ”  देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry ,rain, rainy season

देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें

देश की दशा पर कवि का ह्रदय दग्ध ना हो ऐसा हो ही नहीं सकता | वो अपने दर्द को शब्द देकर न सिर्फ खुद राहत पाटा है बल्कि औरों को सोचने को भी विवश करता है | प्रस्तुत है देश की समसामयिक दशा पर ऐसी ही कुछ कवितायें ………. देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें  विकास ——————- बिहार से आ रही है रोज बच्चों के मरने की खबर और हम रोती कलपती माताओं से दृष्टि हटा नयी मिस इंडिया की ख़बरों में उलझे हैं सच में हमने विकास कर लिया है हम मानव से मशीन  बन गए हैं टी .वी रिपोर्टिंग  ——————— आइये आइये … अपने टी वी ऑन करिए देखिये -देखिये कैसे कैसे गरीब बच्चे मर रहे हैं यहाँ अस्पताल में इलाज के आभाव में हाँ  तो डॉक्टर साहब आप क्या कर रहे हैं ? देखिये -देखिये वो बच्चा वहाँ  पड़ा उसे कोई पूछ नहीं रहा आखिर क्या कर रहे हैं आप ? बताइए -बताइए ? छोडिये मैडम जाने दीजिये क्यों जाने दूं आज पूरा देश देखे देखे तो सही आप की लापरवाही मैंने कहा ना मैडम जाने दीजिये फिर जाने दीजिये हद है आप डरते हैं उत्तर देने से नहीं मैडम डरता नहीं पर जितनी देर आपसे बात करूंगा शायद एक बच्चे की जान बचा लूँ मुझमें और आपमें फर्क बस इतना है कि आपके  चैनल की टी आर पी बढ़ेगी बच्चों की मौत की सनसनी से और मेरी निजी प्रैक्टिस बच्चो को बचाने से शरणार्थी —————— वो शरणार्थी ही थे जो रिरियाते हुए आये थे दूर देश से दया की भीख मांगते पर भीख मिलते ही वो 200 लोगों को ट्रक में लाकर कर देते हैं डॉक्टरों पर हमला डॉक्टर करते हैं सुरक्षा की मांग नहीं पिघलती सत्ता की कुर्सी की ममता उन्हें नज़र आता है  सांप्रदायिक रंग नहीं देखतीं कि उनकी सरपरस्ती में क्या  है जो गुंडागर्दी पर उतर आये हैं बेचारे शरणार्थी और इन दो पाटो के बीच पिस रहे हैं मरीज शरणार्थियों के पक्ष में खडी ममता आखिर क्यों नहीं देख पाती उन का दर्द जो अपने मरीज के ठीक होने की आशा में आये थे इन अस्पतालों की शरण में संसद में नारे  ——————- इस बार संसद में गूंजे जय श्री राम अल्लाह हु अकबर जय भीम जय हिन्द जय संविधान के बुलंद नारे सही है कि एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र में सबको है स्वतंत्रता अपने -अपने धर्म -सम्प्रदाय के नारों की आवाज़ बुलंद करने का नहीं है कोई रोक टोक बशर्ते ये नारे ना हों एक दूसरे को नीचा दिखाने लिए संसद से लेकर सड़क तक ना बने धर्म किसी युद्ध की वजह आधा गिलास पानी ——————- जब तुम फ्रिज से निकाल कर हलक से उतारते हो आधा गिलास पानी और आधा बहा देते हो नाली में तो कुछ और सूख जाते हैं महाराष्ट्र , बुन्देलखंड और राजस्थान के खेत तीन गाँव पार करने की जगह अब चार गाँव पार कर लाती हैं मटकी भर पानी वहां की औरतें क्या ये सही नहीं कि प्यास के अनुसार  पिया जाए सिर्फ आधा गिलास एक बार में और आधा बच जाए फेंकने से क्या ये भी बताना पड़ेगा कि ये धरती सबकी है और सबके हैं इसके संसाधन नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको ”  देश की समसामयिक दशा पर पाँच कवितायें “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry , current situation 

फेसबुक पर लाइक कमेंट की मित्रता

दोस्त यूँ ही नहीं बनते | दो लोगों के जुड़ने के बीच कुछ कारण होता है | ये कारण उस दोस्ती को थामे रखता है | दोस्ती को जिन्दा रखने के लिए उस कारण का बने रहना बहुत जरूरी है | ऐसी ही तो है फेसबुक की मित्रता भी …जिसकी प्राण -वायु है लाइक और कमेंट फेसबुक पर लाइक कमेंट की मित्रता  फेसबुक की इस अनजान दुनिया में तमाम परायों के बीच अपनापन खोजते हुए मैंने ही तो भेजा था तुम्हें मित्रता निवेदन जिसे स्वीकार किया था तुमने बड़ी ही जिन्दादिली से और मेरी वाल पर चस्पा कर दी थी अपनी पोस्ट स्वागत है आपका झूम गयी थी उस दिन मन ही मन और एक तरफ़ा प्रेम में डूबी मैं तुम्हारी  हर पोस्ट पर लगाती रही लाइक  और कमेंट की मोहर और खुश होती रही अपनी मित्रता की इस उपलब्द्धि पर महीनों की मेहनत के बाद तुम्हारी  भी कुछ लाइक चमकने लगीं मेरी पोस्ट पर और उस दिन समझा था मैंने खुद को दुनिया का सबसे धनी फिर फोन नंबर की हुई अदला -बदली और कभी -कभी मुलाकाते भी अचानक तुमने मेरी पोस्ट आना छोड़ दिया कुछ खटका सा मेरे मन में हालांकि फोन पर थीं तुम उतनी ही सहज मिलने के दौरान भी लगता था सब ठीक फिर भी तुम्हारी हर पोस्ट पर मेरी लाइक -कमेंट के बाद नहीं आने लगीं तुम्हारी लाइक मेरी किसी भी पोस्ट पर इस बीच बढ़ गए थे हमारे मित्रों की संख्या पर उन सबके बीच मैं हमेशा खोजती रही तुम्हारी लाइक और होती रही निराश  अन्तत :न्यूटन का थर्ड लॉ अपनाते हुए धीरे -धीरे तुम्हारी पोस्टों पर कम होने लगे मेरे भी   कमेंट फिर लाइक भी अब हमारी फोन पर बातें भी  नहीं  होतीं मुलाकातें तो बिलकुल भी नहीं और फेसबुक की हजारों दोस्तियों की तरह हमारी -तुम्हारी दोस्ती भी जो लाइक -कमेंट से शुरू हुई थी लाइक -कमेंट की प्राण वायु के आभाव में खत्म हो गयी नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको “फेसबुक पर लाइक कमेंट की मित्रता  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, facebook, facebook friends

मुझे मिला वो, मेरा नसीब है

मुझे मिला वो, मेरा नसीब है  वही सुकून जहां वो करीब है  मैं और क्या भला चाहूंगी  जब प्यार से उसके भर गई । उसने जो कहा मैंने मान ली  नज़र की हरकतें पहचान ली  जिस राह उसके कदम बढ़े  बनी फूल और मैं बिखर गई । वह मोड़ जहां टकराए हम बने जिस्म, जिस्म के साये हम  मेरा वक्त आगे बढ़ गया  पर मैं वहीं पर ठहर गई । जीवन उसी पर वार के  मैं खुश हूं खुद को हार के उसने देखा जैसे प्यार से  मेरी रूह तक निखर गई। आ जाए तो उसे प्यार दूं  मेरे यार सदका उतार लूं डर है नजर लग जाएगी  गर उसपर कोई नजर गई ।।   साधना सिंह  यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ लज्जा फिर से रंग लो जीवन टूटते तारे की मिन्नतें बाबुल मोरा नैहर छुटो नि जाए मेरे भगवान् आपको  कविता  “. डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ..“ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under: , poetry, hindi poetry, kavita,

हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा

फोटो क्रेडिट -http://naqeebnews.com ये उन दिनों की बात है जब बाज़ार में तरह -तरह के शर्बत व्ग कोल्ड ड्रिंक नहीं आये थे ….तब गर्मी दूर भगाने का एक ही तरीका था …रूह अफजा शर्बत , गर्मी शुरू और रूह अफजा की मांग शुरू | ठंडे पेयों के फैलते जाल के बीच भी इसकी मांग कम ना होने पायी और अभी भी अपनी युवा पीढ़ी के साथ माल में शान से खड़ा रहता है … परन्तु कवि की कल्पना ये तो कुछ और ही कह रही है …. हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा तू मेरी, शरीक-ऐ-हयात है, कि—- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. ये तेरी—- नर्म-नाजूक सी कलाई की छुअन, हाय !! तू मह़ज़ गिलास है ,या —- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. ये शर्म से झुकी नज़र, उसपे सुर्खी ,तेरे गाल की, बता तू ,गुलाब है, कि—- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. ये हवा की शरारत , ये उड़ती तेरी जुल्फें, हाय !! तू खुबसूरत ढ़लती शाम है,या —- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. टहलना —- तेरा हौले-हौले यूं छत पे और मेरा देखना तुमको , तू मेरी मुमताज़ है, या —- हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा. @@ रंगनाथ द्विवेदी जजकालोनी, मियांपुर जिला-जौनपुर 222002 (U.P.) यह भी पढ़ें …. मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको “हमदर्द की रूह-अफ्ज़ा “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, rooh afza