मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई जी की चार कविताएँ
माँ का उसकी संतान से रिश्ता अद्भुत है |माँ हमेशा स्नेह प्रेम और दया की मूर्ति होती है | अगर ये कहें कि माँ धरती पर साक्षात ईश्वर है तो अतिश्योक्ति ना होगी | यूँ तो हर दिन माँ का दिन होता है … पर मदर्स डे विशेष रूप से इसलिए बनाया गया कि कम से कम वर्ष में एक दिन तो माँ के प्रति अपनी सद्भावनाएं व्यक्त की जा सकें | भले ही ये आयातित त्यौहार हो , पर हमें अवसर देता है की हम कह सकें ,” माँ तुम मेरी जिन्दगी में आज भी उतनी ही अहमियत रखती हो | “ कुछ ऐसा ही प्रयास है इन कविताओं में …. मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई जी की चार कविताएँ ——————————- १– अम्मा जी ————— जब से गई हो तुम रुका नहीं कुछ भी सब कुछ चल रहा है वैसे ही आज भी बस तुम ही नहीं हो देखने के लिए हमारे साथ…! वो पुराना कमरा जहाँ रखी रहती थी दो कुर्सियाँ जिन पर सदा बैठी मिलती थी बाबा जी के साथ और बाद में नए कमरे में लगे डबल बेड पर बैठी मिलती थी तुम…. वो दोनों चित्र आज भी बसे हैं मेरी आँखो में बिलकुल वैसे ही… जब कभी जाती हूँ वहाँ तो मिलती हो तब भी पर बैठी हुई नहीं, दीवार पर लगे चित्र से देखती हुई…. मानो अभी कह उठोगी बड़े दिन में आए, पता है तुम्हें इस बीच बहुत कुछ बदल गया है अब आने पर भी मन नहीं लगता तुम्हारे बिना, बातें भी नहीं सूझती करने को कुछ…! तुम्हारे होते कहने–सुनने को होता था इतना, पर अब देखो… जैसे कुछ है ही नहीं तुम्हें पता है तुम्हारे सामने खेलने– कूदने वाले नाती–पोते अब कितने बड़े हो गए है दो पोतों, एक पोती और एक नातिन..इनका विवाह भी हो गया है तुम्हारा बड़ा परिवार अब और बड़ा हो गया जिसमें दो बहुएँ दो दामाद जुड़ गए हैं और जल्दी ही एक दामाद और आएगा…! हुई न खुशी यह सब सुन कर, इसीलिए तो बताया मैंने….! और हाँ! एक दिन तुमसे पूछ–पूछ कर अचार डालने के तुम्हारे तरीके और मसालों के अनुपात मैंने जिस कॉपी में लिखे थे जाने कहाँ इधर–उधर हो गई तभी से मन बड़ा बेचैन है ढूँढने वाला भी तो मेरे सिवा कोई नहीं…. आज जन्मदिन है तुम्हारा और आज ही घर की गृहप्रवेश पूजा हुई थी इसलिए यह तारीख कभी भूलती नहीं मैं….! तुम होती तो आज तुम्हारे पास आती पर नहीं हो तभी याद करते हुए कल्पनाओं में ही तुमसे बात करके तुम्हें पाने का सुख जी रही हूँ हो जहाँ कहीं भी तुम मैं तो सदा अपने पास अपने साथ लिए तुम्हें चल रही हूँ अम्मा जी……!!!!!! ———————————— पढ़ें -मदर्स डे पर माँ को समर्पित भावनाओं का गुलदस्ता २– मैं तुझे फिर मिलूँगी ———————— मैं तुझे फिर मिलूँगी एक नये मोड़ पर, तब तक तुम भी एक नये रूप में अवतरित हो चुकोगी और मैं भी इसकी तैयारी कर रही होऊँगी…..! एक यात्रा पूर्ण हो चुकी तुम्हारी माँ और मैं अभी यात्रा के मध्य हूँ, अगला जन्म जब ही होगा हमारा तुम प्रतीक्षा करना, जिंदगी हमारी पानी के रंग सी इस तरह घुली–मिली है कि जिस मोड़ पर भी मिलोगी मैं तुम्हें पहचान लूँगी माँ….!! कुछ वादे इस जन्म में किए थे हमने अगले जन्म के लिए और कुछ हर जन्म के लिए…..!!! उन्हें पूरा करने हमें तो बार–बार मिलना है तुम्हें मेरी माँ और मुझे तुम्हारी बेटी बनना है….!!!! तभी तो कहती हूँ जहाँ भी जिस मोड़ पर खड़ी तुम मेरी प्रतीक्षा करोगी वहीं मैं तुझे मिलूँगी मेरी माँ! जिस भी जन्म में जो भी रह जायेगा बाकी उसे पूरा करने मैं हर एक जन्म में मैं तुझे मिलूँगी माँ! और पूछती रहूँगी अपने अंतिम समय में तुम मुझे क्या कहना चाहती थी माँ…..!!!!! ————————————— ३– हर दिवस मातृ दिवस ————————————— माँ का हर दिवस तभी है सार्थक जब हर बच्चा उसका बने एक सच्चा इंसान….! हो भरपूर मानवता से माँ और मातृभूमि दोनों के वास्ते रखे प्राणों पर भी खेल सकने का जीवट करे रक्षा सम्मान के साथ…..! जो प्रकृति को दे प्यार जो करे काम हृदय में बसने को भले ही न आए नाम अखबारों में कहीं भी कभी भी…! तब है माँ का हर दिन सार्थक हर दिन मातृ दिवस…!!! —————————— ४– धागा ——— आँधियों में दरकने लगी है पैरों तले की जमीन, डूबने को है जहाज और कप्तान भयभीत, जिस आशीष और बरकत के पवित्र धागे से बुना करती थी सुरक्षा कवच अपने संसार के चारों ओर वो तुम्हारा दिया धागा टूटने को है, आओ फिर से माँ! मैं खड़ी हूँ तुमसे वो धागा लेने के लिए आँधियों का सामना करने के लिए, आओगी न माँ…..!!!!! —————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई यह भी पढ़ें … मदर्स डे -माँ और बेटी को पत्र मदर्स डे -कौन है बेहतर माँ या मॉम मदर्स डे पर विशेष -प्रिय बेटे सौरभ मदर्स डे -माँ को समर्पित सात स्त्री स्वर आपको कहानी “”मातृ दिवस पर डॉ . भारती वर्मा ‘बौड़ाई जी की चार कविताएँ कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-mother’s day , hindi poem, poetry, mother keywords-HINDI STORY,Short Story,