महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे

              महाशिवरात्रि यानि भगवान् शिव और माता पार्वती के विवाह  की पावन तिथि | कहते हैं इस दिन भगवान् शिव बहुत प्रसन्न रहते हैं | वैसे भी भोले बाबा जरा से नाम जप पर ही प्रसन्न हो कर वरदान दे देते हैं तो फिर ये दिन तो उनके लिए भी ख़ास है | इसलिए शिव की ख़ास  कृपा प्राप्त करने के लिए भक्त व्रत करते हैं , बेल धतूरा , मदार से शिव का पूजन करते हैं | हर घर हर मंदिर से आती हुई ॐ नम : शिवाय की ध्वनियाँ वातावरण को बहुत सात्विक बना देती है | महा शिवरात्रि के पावन अवसर पर हम आप सभी के लिए शिव को समर्पित ११ दोहे व् दो कुण्डलियाँ लाये हैं | तो आइये पढ़ें ……….. महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे  शिव सा वर जो चाहिए , कर सोलह सोमवार  जन्मों तक चलता रहे , पति -पत्नी का प्यार  ———————————————– महाशिवरात्रि जो करे  ,शिव -गौरा को याद  सुखद दांपत्य जीवन की , वहाँ पड़ें बुनियाद  ———————————————————— मत चढ़ाओ दूध कभी , ना जोड़ो ये हाथ   करो सेवा दीनो की , मिल जायेंगे नाथ  ——————————————- बेल धतूरा बेर  से ,प्रसन्न होते  आप  लें  विष बरसायें सुधा  , ऐसे भोलेनाथ   —————————————— तैंतीस कोटि  देवता , से कहूँ कर के नमन  आप सभी के बीच है  , सबसे भोला   शिवम्  ———————————————— शिव मंदिर के बाहर , लगी भक्तों की भीड़  जिस की हम सब शाख हैं, शिवजी हैं वो नीड़  ————————————————- आज करूँ में  वंदना , जोड़े  दोनों हाथ   मेरी हर बाधा हरो , हे गौरी के नाथ  ———————————————- माँगे वर शिव सा सदा , जब-जब पूजे गौर  सम कहने वाला नहीं ,  दूजा कोई और  ————————————————— निशदिन पूजें शंभु को,जपें ॐ नम: शिवाय पूरी करते कामना ,  देवलोक से आय  ————————————————– पढ़ें – महाशिवरात्रि -एक रात इनर इंजीनीयरिंग के नाम भक्तों की रक्षा के लिए,लिया हलाहल खाय  नीलकंठ के नाम से , जाने गए शिवाय  —————————————————- विष पी के संसार का , देते जो वरदान  ऐसे दीना नाथ  को , भक्त जरा पहचान  ————————————————– दो -कुण्डलियाँ  ———————- यामा  में शिवरात्रि की  ,  मलो अरघे चंदन  बेल धतूरा चढ़ा के , करो शिव का वंदन  करो शिव का वंदन , हो पूरे काज तुम्हारे  रिपु दल पीटें  माथ, भटकते  मारे -मारे   ना जाना करना भूल  , ये व्रत पूरनकामा  सुनो महत्व की बड़े   , ये शिवरातत्रि की यामा  ———————————————————- भोले बाबा ने दिया , भस्मासुर को वरदान उनके पीछे ही पड़ा , भागते  बचा कर जान   भागते बचा कर जान , दौड़ते यहाँ वहाँ को  श्री हरि तब मुस्काए , रूप धर लिया शिवा को बोले  मीठे बैन , कर  शीश पर धर  तो ले  फिर तो भ्स्म अरि हुआ औ ,मगन हुये शंभु भोले  —————————————————— वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें ……….. सोऽहं या सोहम ध्यान साधना -विधि व् लाभ मनसा वाचा कर्मणा -जाने रोजमर्रा के जीवन में क्या है कर्म और उसका फल उसकी निशानी वो भोला भाला  आपको  रचना    ““महाशिवरात्रि पर शिव को समर्पित 11 दोहे  कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords-shiv, mahashivraatri, fasting, dohe, bhagvan shiva, ॐ नम:शिवाय , shankar

हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ

हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ कविता में थोड़ी कल्पना का समावेश किया है | जैसा कि हम सब जानते हैं कि गुलाब के कांटे लोगों को खलते हैं | शायद इस कारण कांटे के मन में द्वेष पैदा होता हो ? उसे गुलाब से शिकायत होती हो ? गुलाब का अपना दर्द हैं …..यहाँ उनका आपसी संवाद है |  हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  जब एक डाली पर जन्म हुआ संग -संग ही अपना गात बनातब अपने मध्य यह अंतर क्यूँ ?हो तुम  गुलाब मैं कंटक क्यूँ? तुम रूप रस ,गुण गंध युक्तपूजन -अर्चन श्रृंगार में नियुक्तकवि कल्पना का तुम प्रथम द्वारमिलता सबसे तुम्हें अतिशय प्यार मैं हतभागा सा खड़ा हुआनित आत्मग्लानि से गड़ा हुआ विकृत आकृति को देख -देख  उलाहने देते सब मुझको अनेक मैं कब तक विष पीयूँगा यूँ हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ  सुनो मुझसे मत क्लेश करोअपने मन में मत द्वेष भरोअपने घर में कहाँ रह पातानिज डाली से टूटता है नाता जो देखता है वो ललचातातोडा कुचला मसला जाताकैसे समझाउ मैं तुमकोयह रूप बना है बाधक यूँ अच्छा है जो तुम कंटक हो  अच्छा है जो तुम कंटक हो …. वंदना बाजपेयी  यह भी पढ़ें ….. नींव व्हाट्स एप से रिश्ते  रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको “  हो तुम गुलाब मैं कंटक क्यूँ “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-Rose, Rose day, Flower, Hindi poetry

किताबें

ऑनलाइन पढने में और किताब हाथ लेकर पढने में वहीँ अंतर है जो किसी मित्र से रूबरू मिलने और फोन पर बात करने में है | ऑनलाइन रीडिंग की सुविधाओं के साथ कुछ तो है जो अनछुआ रह जाता हैं | एक तरफ हम  उन भावों की कमी से जूझते रहते हैं , दूसरी तरफ किताबिन शोव्केस में सजी हमारा रास्ता निहारी रहतीं हैं | क्या कहतीं हैं वो ….वक्त मिले तो पास बैठ कर सुनियेगा …. किताबें  किताबें  सबसे प्रिय मित्र ,संगी- साथी और मार्गदर्शक होते थे उन दिनों ।  बचपन में लोरी बन कर हमें हंसाते थे , गुदगुदाते थे , बहलाते थे , सुलाते थे । जवानी में लिपटकर सीने से  कल के सपने सजाते थे रूमानी ख़्वाब दिखाते थे तो कभी डाकिया बन जाते थे ।  बुढ़ापे के अकेलेपन में  गीता के श्लोक सुनाते थे, जीने की राह दिखाते थे ,  ईश्वर से मिलाते थे ।  पर आजकल डिजिटल संसार में  सबसे कोने वाली सेल्फ में  सजी रहती है किताबें  आते जाते सबको तकती रहती है किताबें  ज़रा ग़ौर से सुनो तो  कितना कुछ कहती रहती है किताबें ।  साधना सिंह गोरखपुर यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “किताबें “   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, books 

जरा धीरे चलो

आज फुर्सत किसके पास है , हर कोई भाग रहा है …तेज , और तेज , लेकिन इस भागने में , अपने अहंकार की तुष्टि में , ना जाने कितने मासूम पलों को खोता जाता है जो वास्तव में जिंदगी हैं … तभी तो ज्ञानी कहते हैं … कविता -जरा धीरे चलो  जिन्दगी थोड़ा ठहर जाओ जरा धीरे चलो तेज इस रफ्तार से  घात से प्रतिघात से  वक्त रहते , सम्भल जाओ जरा धीरे चलो जिन्दगी – – – – कामना के ज्वार में मान के अधिभार में डूबने से बच , उबर जाओ जरा धीरे चलो जिन्दगी – – – – शब्दाडम्बरों के उत्तरों प्रत्युत्तरों के जाल से बच कर , निकल जाओ  जरा धीरे चलो जिन्दगी – – – – ऊषा अवस्थी यह भी पढ़ें …. मंगत्लाल की दीवाली रिश्ते तो कपड़े हैं सखी देखो वसंत आया नींव आपको  कविता   “जरा धीरे चलो “कैसे   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-poem, hindi poem, life, life lessons

व्हाट्स एप से रिश्ते

अभी कुछ दिन पहले एक कार्यक्रम में जाना हुआ | वहां एक महिला मेरे पास आयीं , कुछ देर मुझसे बात करने के बाद बोलीं , ” आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा | यूँ तो जिन्दगी में बहुत से लोग मिलते हैं पर कुछ लोग ऐसे होते हैं जो बहुत खास होते हैं जिनसे मिलकर लगता है कि ये तो बहुत अपने हैं … आप उनमें से एक हैं | उनकी बात सुन कर मैं थोडा असहज हुई , पर जल्द ही मेरी असहजता मुस्कुराहट में बदल गयी , जब मैंने उन्हें यही बात कार्यक्रम में उपस्थित बहुत से लोगों से कहते सुना |आज रिश्ते निभाए नहीं बनाये जातें | राजनीति में ही नहीं आम लोगों के छोटे -मोटे कार्यक्रमों में नए -नए गठबंधन तैयार होते हैं | रिश्ते बनाये रखना बहुत  जरूरी है क्या पता कब कौन काम आ जाए | इसलिए लोग रिश्तों को इतनी ही ऑक्सीजन देने में विश्वास करते हैं कि वो बने रहे निभे न … व्हाट्स एप से  रिश्ते  सुबह -सुबह   व्हाट्स एप पर भेजे गए गुड मोर्निंग सन्देश  जितने ही  रह गए हैं आज रिश्ते  जहाँ एक खूबसूरत  गुलदस्ते पर  नीति वाक्य लिख कर  दबा दिया जाता है सेंड  टू ऑल  का बटन  ताकि बस बने  रहे रिश्ते  मिलती रहे बस बने रहने जितनी ऑक्सीजन  ताकि  कभी काम पड़ने पर ना हों संकोच या बेगानापन  आत्मीयता के आधार पर नहीं काम आने के आधार पर बनती है  प्राथमिकताओं की सूची  राजनीती में ही नहीं  आम लोगों के छोटे -छोटे कार्यक्रमों में भी  उपयोगिता के आधार पर बनते हैं नए -नए गठबंधन  अब नहीं समझाती घर की औरतें अपने -अपने पतियों को  हमें तो जाना ही पड़ेगा उनके घर  रिश्ता जो है  बल्कि देती हैं हिदायत  सुनो , बेटे की शादी है  अब सब को कर लो ग्रुप में शामिल  अभी तक तो दिया ही है व्यवहार  अब है वसूलने का  समय  रह ना जाये कोई बाकी  और अगले ही दिन शामिल हो जाते हैं कई और नाम सेंड टू ऑल की लिस्ट में  जो कट जायेंगे बेटे की शादी के बाद  आकाश से देखतीं हैं पड़ाइन चाची यहीं हाँ यहीं  जहाँ आज है नक्काशी दार गेट  वहां पर बिछी रहती थी उनकी खटिया  वहीँ जाड़े के दिनों में काटती रहती थीं  बथुआ , पालक , मेथी और सरसों  कद्दूकस करती रहती  गाज़र और मूली के लच्छे  गली से निकलने वाली हर बहु बेटी को रोक कर  अक्सर बांटती रहती थीं अपने स्नेह की दौलत  लाठी टेकती चली जाती थी  हर किसी की जचगी , हारी -बिमारी , मृत्यु पर  साथ में खड़े होने के लिए  नहीं बनी कभी उनकी कमजोरी व् उम्र  रोड़ा  अब वहीँ आसमान से पोछ कर आँसू सोचती हैं काकी  अब कंप्यूटर का जमाना है  जहाँ रिश्ते सहेजने के लिए उनमें रमने की नहीं  रैम बढ़ने की जरूरत होती है  क्योंकि  व्हाट्स एप के युग में  आज रिश्ते निभाने नहीं  बनाये रखने में रह गया है यकीन  यह भी पढ़ें ……. बदनाम औरतें रेप से जैनब मरी है डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ नए साल पर पांच कवितायें -साल बदला है हम भी बदलें आपको ” व्हाट्स एप से  रिश्ते   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-whats app, relations

किसी विवाह समारोह में

आप भी अवश्य किसी विवाह समारोह में गए होंगे …. रिश्तों के टूटे तारों को समेटा होगा , जी भर जिया होगा और दामन में आत्मीयता को भर कर फिर लौटे होंगे अपनी मशीनी जिन्दगी में …. आइये उसे  फिर से जिए कविता -किसी विवाह समारोह में  किसी विवाह समारोह में अक्सर मैं सोचती हूँ , हम किसके लिए कर रहे हैं विमर्श बराबरी की बातें एक शिकन भी तो नहीं हैं इनके चेहरे पर मेक अप , चूड़ियों और महँगी साड़ियों की बातें करती चहक -चहक कर बतियाती ये औरतें नज़र आती हैं धरती का सबसे संतुष्ट जीव किसी विवाह समारोह में बन्ना -बन्नी ,  और बधाई गाती हुई ये औरतें जो ढोलक की थाप पर नाचते  -झूमते हुए शायद कुछ पल के लिए भूल जाना चाहती हैं अपनी निजी जिन्दगी के दर्द सास ननद और ससुराल की दिक्कतों को तभी तो बड़ी ही ख़ूबसूरती से चुनती है … काहे को ब्याही विदेश के स्थान पर पिया का घर प्यारा लगे किसी विवाह समारोह में एक दूसरे को सजाती संवारती हैं औरतें किसी का जूड़ा बांधतीं , किसी का पल्लू ठीक  करतीं प्लेटों को करीने से लगाती बना देना चाहती हैं दुनिया को सबसे सुंदर फिर धीरे से दूसरी औरत के कान के पास जा कर कर फुस्फुसातीं हैं अगली की साड़ी की कीमत होती है हार के असली या नकली करार देने की कवायद हार और साड़ी की कीमत से बाँटती हैं दूसरी के सुखी या दुखी होने का सर्टिफिकेट और इस नकारात्मकता के साथ कुछ पल पहले अपनी ही रचाई हुई सबसे खुबसूरत दुनिया को कर देती हैं संतुलित किसी विवाह समारोह में हाशिये  पर धकेल दी जाती हैं वो औरतें जो सुंदर नहीं हैं , या जिनके गहने कपड़े नहीं हैं सुंदर समारोह की जान और शान हैं खूबसूरत , धनवान  औरतें जिनके हीरे के कर्णफूलों की चमक से कुछ और बढ़ जाती हैं जिन्दगी की धूप  में पकी हुई औरतों के गालों की झुर्रियां ठीक उसी समय से वो करने लगती हैं हिसाब अगले समारोह के खर्चे का, दोहराती हैं मन में महंगे ब्यूटीपार्लरों के नाम ताकि बढ़ा सकें अपना थोडा सा कद और    यूँ ही ना  कर दी जाए नज़रंदाज़ क्योंकि सिर्फ सुन्दरता ही  यहाँ की डिग्री है तन की या धन की किसी विवाह समारोह के समापन के बाद मेकअप की परतों के उतरते ही उभर आतें हैं उनके दर्द धन , सम्मान और रूप से परे निकल आती हैं  खालिस औरतें जो करोचती नहीं , सहलातीं हैं एक दूसरे का दर्द खुलती हैं मन की गिरहें विदा लेती बेटियाँ और बहनें भुला ना देना की आर्तनाद के साथ कोछ के चावल के संग आंचल के कोने में ,बाँध लेना चाहती हैं मायके का प्यार विदा लेती खानदान की बहुए लेती हैं वादा अपनी एक जुटता का गले मिलती जेठानी -देवरानियाँ करतीं हैं आसरा गाढ़े वक्त में काम आने का किसी विवाह समारोह में नहीं जुड़ता सिर्फ पति -पत्नी का रिश्ता जुड़ते हैं अनेक रिश्ते ताज़ा हो जाते हैं कुछ पुराने चेहरे जो समय की धुंध में कहीं खो गए थे अरे पहिचाना की नाहीं से वाह तुम तो इत्ते बड़े हो गए तक झनझना जाते हैं ना जाने कितने तार बजता है संगीत जो करता है इशारा कि आज के युग में भी जब भौतिकता की अंधी दौड़ में भागते हम जो अलापते हैं ‘मेरी  जिन्दगी मेरी मर्जी ‘का सुर और होते ज़ाते हैं अकेले और कोसते हैं रसहीन होती जिंदगी को तभी कोईविवाह समारोह  हमें फिर से जोड़ता है अपनी जड़ों से देता है आत्मीयता की ऊर्जा ताकि  बिना घर्षण के अगले विवाह समारोह तक चल सके मशीनी जिन्दगी वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें ……… बदनाम औरतें बोनसाई डायरी के पन्नों में छुपा तो लूँ बैसाखियाँ  आपको “किसी विवाह समारोह में  “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट   पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-wedding, indian wedding, marriage, bride, women

मंगतलाल की दिवाली

हम सब वायु , ध्वनि , जल और मिटटी के प्रदूष्ण के बारे में पढ़ते हैं … पर एक और प्रदुषण है जो खतरनाक स्तर तक बढ़ा है , इसे भी हमने ही खतरनाक स्तर तक बढाया है पर हम ही इससे अनभिज्ञ हैं … कैसे ? आइये समझें मंगत्लाल की दिवाली से काव्य कथा -मंगतलाल की दिवाली  देखते ही पहचान लिया उसे मैंने आज के अखबार में दिखाने को दिल्ली का प्रदूष्ण जो  बड़ी-बड़ी लाल –लाल आँखों वाले का छपा है ना फोटू वो तो मंगत लाल है अरे , हमारे इलाके ही में सब्जियां बेंचता है मंगत लाल दो पैसे की आस -खींच लायी है उसको परदेश में सब्जी के मुनाफे में खाता रहा है आधा पेट बाकी जोड़ -जोड़ कर भेज देता है अपने देश उसी से भरता है पेट परिवार का , जुड़ते हैं बेटी की शादी के पैसे और निपटती है ,हारी -बिमारी , तीज -त्यौहार और मेहमान कई बरस से गया नहीं है अपने गाँव , पूछने पर खीसें निपोर कर देता है उत्तर का करें ? जितना किराया -भाडा में खर्च करेंगे उतने में बन जायेगी , टूटी छत या हो जायेगी घर की पुताई या जुड़ जाएगा बिटिया के ब्याह के लिए आखिर सयानी हो रही होगी चार बरस हो गए देखे हुए , मंगतलाल बेचैन दिखा  इस दीवाली पर गाँव जाने को तपेदिक हो गया अम्मा को मुश्किल है  बचना हसरत है बस देख आये एक बार इसीलिए उसने दीवाली से कुछ रोज पहले भाजी छोड़ लगा लिया दिये का ठेला सीजन की चीज बिक ही जायेगी , मुनाफे से जुड़ जाएगा किराए का पैसा और जा पायेगा अपने गाँव  मैंने, हाँ मैंने  देखा था मंगत को ठेला लगाये हुए मैं जानती थी कि उसकी हसरत फिर भी अपनी  बालकनी में बिजली की झालर लगाते हुए मेरे पास था , अकाट्य तर्क एक मेरे ले लेने से भी क्या हो जाएगा , बाकि तो लगायेगे झालर शायद यही सोचा पड़ोस के दुआ जी ने , वर्मा जी ने और सब लोगों ने सबने वही किया जो सब करते हैं , सज गयीं बिजली की झालरे घर -घर , द्वार -द्वार  और बिना बिके  खड़ा रह गया दीपों का ठेला       अखबार में अपनी फोटू से बेखबर आज मंगतलाल  फिर बेंच रहा है साग –भाजी आंखे अभी भी है लाल पूछने पर बताता है भारी  नुक्सान हो गया बीबीजी , बिके नहीं दिए, नहीं जुड़ पाया किराए-भाड़े का पैसा   और कल रात अम्मा भी नहीं रहीं , कह कर ठेला ले कर आगे बढ़ गया मंगत लाल शोक मनाने का समय नहीं है उसके पास उसके चलने से चल रहीं हैं कई जिंदगियाँ  यहाँ से बहुत दूर , उसके गाँव में    मैं वहीं सब्जी का थैला पकडे जड़ हूँ ओह मंगत लाल ….तुम्हारी दोषी हूँ मैं , दुआ जी , शर्मा जी और वो सब जिन्होंने सोचा एक हमारे खरीद लेने से क्या होगा और झूठा है ये अखबार भी जो कह रहा है दिल्ली के वायु प्रदूषण  से लाल हैं तुम्हारी आँखें  हां ये आँखे प्रदूषण  से तो लाल हैं पर ये प्रदूषण सिर्फ हवा का तो नहीं ….   वंदना बाजपेयी      बैसाखियाँ   एक गुस्सैल आदमी   सबंध      रंडी एक वीभत्स भयावाह यथार्थ     आपको    “  मंगतलाल की दीवाली “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, diwali, deepawali

करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य

पति -पत्नी के प्रेम का प्रतीक  करवाचौथ का व्रत सुहागिनें निर्जल रहा करती हैं और चंद्रमा पर जल का अर्घ्य चढ़ा कर ही जल ग्रहण करती हैं | समय के साथ करवाचौथ मानाने की प्रक्रिया में कुछ बदलाव भी आये पर मूल में प्रेम ही रहा | आज उसी प्रेम को चार काव्य अर्घ्य के रूप में समर्पित कर रहे हैं |  करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य  १— जोड़ियाँ  कहते हैं  बनती हैं जोड़ियाँ ईश्वर के यहाँ  आती तभी  धरती पर  पति-पत्नी के रूप में..! ईश्वर के  वरदान सदृश  बंधे हैं जब इस रिश्ते में  तो आओ आज  कुछ अनुबंध कर लें…!! जैसे हैं  बस वैसे ही  अपना कर  एक-दूजे को  साथ चलते रहने का  मन से प्रबंध कर लें….!!! अपने “ मैं” को  हम में मिला कर  पूरक बनने का  दृढ़ संबंध कर लें…..!!!! पति-पत्नी के साथ ही  आओ  कुछ रंग बचपन के  कुछ दोस्ती के  कुछ जाने से  कुछ अनजाने से  आँचल में भर कर इस प्यारे से रिश्ते को  और प्यारा कर लें…..!!!!! ——————————— २–  करवाचौथ पर  —————— मीत! सुना तुमने..? बन रहा  इस बार  विशेष संयोग  सत्ताइस वर्षों बाद  इस करवाचौथ पर….! मिलेंगी जब  अमृत सिद्धि  और स्वार्थ सिद्धि  देंगी विशेष फल हर सुहागिन को….!! लगता  हर दिन ही  मुझे करवाचौथ सा  जब से  मिले तुम  मुझे मीत मेरे! ये मेरा  सजना-सँवरना है सब कुछ तुम्हीं से  राग-रंग  जीवन के  हैं सब तुम्हीं में….!!! पूजा कर  जब चाँद देखेंगे  छत पर  हम दोनों मिलकर  माँगेंगे आशीष  हम चंद्रमा से  सदा यूँ ही  पूजा कर  निहारे उसे  हर करवाचौथ पर…..!!! ——————————— ३–  सुनो चाँद! ————— सुनो चाँद! आज कुछ  कहना चाहती हूँ तुमसे  ये पर्व  मेरे लिए  उस निष्ठा  और प्रेम का है  जिसे  जाना-समझा  अपने माता-पिता को  देख कर मैंने  कि प्रेम और संबंध में  कभी दिखावा नहीं होता  होता है तो बस  अनकहा प्रेम  और विश्वास  जो नहीं माँगता  कभी कोई प्रमाण  चाहत का……! मैं  तुम्हारे सम्मुख  अपने चाँद के साथ  कहती हूँ तुमसे.., मुझे  प्यारा है  अपने मीत का  अनकहे प्रेम-विश्वास का शाश्वत उपहार  अपने हर  करवाचौथ पर….!! तुम  सुन रहे हो न  चाँद……..!!! ———————— ४— अटका है..! ————— मेरी  प्रियतमा! कहना चाहता हूँ  आज तुम्हें  अपने हृदय की बात…, सुनो! आज भी  मुझे याद है  पहला करवाचौथ  जब हम  यात्रा के मध्य थे, स्टेशन पर  रेल से उतर कर  चाँद को  अर्ध्य दिया था तुमने…! वो  सादगी भरा  मोहक रूप  पहले करवाचौथ का  आज भी  मेरी आँखों में  वैसा ही बसा है…!! मेरा हृदय  सच कहूँ तो  आज भी वहीं  करवाचौथ के  चाँद के साथ  तुम्हारी  उसी भोली सी  सादगी पर अटका  स्टेशन पर  अब भी वहीं खड़ा है….!!! सुन  रही हो न  तुम मेरी प्रियतमा….!!!! ——————————— डा० भारती वर्मा बौड़ाई आपको कविता “करवा चौथ पर चार काव्य अर्घ्य “कैसी लगीं ? कृपया अपने विचार अवश्य रखे | यह भी पढ़ें … करवाचौथ के बहाने एक विमर्श करवाचौथ और बायना करवाचौथ -एक चिंतन प्यार का चाँद filed under- Indian festival, karvachauth, love, karva chauth and moon

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रद्दी वाले ने रख दिए मेरे हाथ में 150 रुपये  और पीछा करती रहीं मेरी भरी हुई आँखें  और निष्प्राण सी देह  उस रद्दी वाले का   वो बोरा  ले जाते हुए  जब तक आँखों से ओझल नहीं हो गया  इस बार की रद्दी मामूली नहीं थी पुराने अखबारों की बासी ख़बरों की तरह  इस बार की रद्दी में किलो के भाव में बिक गया था मेरा स्वाभिमान  जिसे विवाह में अपने साथ लायी थी  इस रद्दी में कैद थी मेरी अनगिनत  जागी हुई राते  जो गवाह थी मेरे अथक परिश्रम का  वो सहेलियों के बीच एक एक -एक नंबर से आगे बढ़ने की होड़  वो टैक्सोनामी की किताबे  जिसके पीले पड़े पन्नों में छोटे बड़े कितने चित्रों को बना कर  पढ़ा था वर्गीकरण का इतिहास  वो जेनेटिक्स की किताबें  जो बदलना चाहती थीं आने वाली पीढ़ियों का भविष्य  वो फोसिल्स की किताबे जाते -जाते कह गयीं कि  कि कुछ चीजों के अवशेष भी नहीं बचते  इन्हीं हाँ इन्हीं किताबों में कैद था मेरा इंतज़ार  कि बदल जाएगा कभी ना कभी वो वाक्य  जो प्रथम मिलन पर तुमने कहा था  हमारे घर की औरतें  बाहर जा कर काम नहीं करतीं मर्दों की दुनिया में  मैं नहीं तोड़ सकता तुम्हारे लिए परम्पराएं  हमारे घर की औरतों की  जो रसोई के धुएं में  सुलगती रहतीं हैं धुँआ हो जाने तक  कुंदन से पवित्र घर ऐसे ही तो बनते हैं उसी दिन …. हां उसी दिन से शुरू हो गयी थी  मेरी आग में ताप कर कुंदन बन जाने की प्रक्रिया  इतिहास गवाह है भरी हुई आँखों व्   हल्दी और नमक और आटे  से सने हाथों को अपने आंचल से पोछते हुए  ना जाने कितनी बार दौड़ कर देख आती थी  अपनी किताबों को  सुरक्षित तो हैं ना  हर साल दीवाली की सफाई में झाड -पोछ कर फिर से अलमारी में सजा देती अपने इंतज़ार को  शायद इस इंतज़ार की नमीं ही  मुझे रोकती रही  रसोई के धुएं में धुँआ हो जाने से पहले वो अक्सर सपनों में आती थीं अपने दर्द की शिकायतें  कहने नहीं लायीं थी तुम इन्हें सेल्फ में बंद करने को तुम्हें संवारना था बच्चों का भविष्य फिर क्यों कर रही हो हमारी बेकद्री फिर धीरी -धीरे वो भी मौन हों गयीं क्योंकि उन्होंने सुन लिए थे तुम्हारे ताने चार किताबें पढ़ कर मत समझो अपने को अफलातून आज भी तुम्हारी जगह रसोई में है चूल्हे से देहरी तक वहाँ  ही मनाओं  आज़ादी का जश्न और मैं कैद में मनाती  रही नाप -तौलकर दी गयी आज़ादी का जश्न मेरे साथ तुमने भी तो भोगा है परतंत्रता का दंश अपराधी हूँ मैं तुम्हारी इसीलिये देह की कारा  छोड़ने से पहले कर दी तुम्हारी भी मुक्ति ये १५० रुपये गवाह है कि कुछ तो समझीं कबाड़ी वाले ने मेरे ज्ञान की कीमत पर तुमने …. वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … मैं माँ की गुडिया ,दादी की परी नहीं … बस एक खबर थी कच्ची नींद का ख्वाबकिताबें कतरा कतरा पिघल रहा है आपको ”  मूल्य   “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- poem in Hindi, Hindi poetry, women, cost

रिश्ते तो कपड़े हैं

टूटते और बनते रिश्तों के बीच आधुनिक समय में स्वार्थ प्रेम पर हावी हो गया , अब लोग रिश्तों को सुविधानुसार कपड़ों की तरह बदल लेते हैं … कविता -रिश्ते तो कपडे हैं  आधुनिक जमाने में  रिश्ते तो कपड़े हैं नित्य नई डिज़ाइन, की तरह बदलते हैं नया पहन लो पुराने को त्याग दो मन जब भी भर जाए खूँटी पर टाँग दो यदि कार्य बनता है तो नाता जोड़ लो काम निकल जाए तो घूरे पर फेंक दो उषा अवस्थी यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “रिश्ते तो कपड़े हैं   “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita, love,