कविता मन के भाव हैं , कब ये भाव शब्द के रूप में आकर ले कर पन्ने पर उतर जाते हैं कवि भी नहीं जानता | आइये आज ऐसे ही रीतू जी के कविता के रूप में ढलते कुछ भावों में डूब जाए … रीतू गुलाटी की पांच कवितायेँ जीवन का लेखा-जोखा जीवन के इस सांध्यकाल मे आ, साथी पैगाम लिखूं…….. बीती,कैसे,ये सदियां ये सारे हिसाब लिखूं……… आ,साथी पैगाम लिखूं…… अरमानो के जंगल मे घूमू प्रीत के वो फिर गीत लिखू प्रथम प्रेम के प्रेम नेह को फिर से साथी याद कंरू आ,साथी पैगाम लिखू….. क्या खोया,क्या पाया इसका फिर हिसाब लिखू….. जीवन के इस सांध्यकाल मे, आ,साथी पैगाम लिखू…. कुछ तुम उलझे,कुछ हम सुलझे, कुछ हंसते-गाते वक्त गुजार चले, कुछ गम झेले,कुछ सुख भोगे ये प्रेम भरी,किशती मे नैया,अपनी पार चले। एक दूजे का ऐतबार लिखूं ,।। आ साथी ,पैगाम लिखूं गरीबी ये गरीबी नही तो क्या है….. चंद सिक्को की खातिर लहू बेच रहा अपना कोई ये गरीबी नही तो क्या है…… चंद सिक्कों की खातिर अस्मत बेच रहा कोई चंद सिक्कों की खातिर घर से मिलो दूर जूझ रहा कोई ये गरीबी नही तो क्या है…. प्रतिभा होते हुऐ भी बच्चो को उंच शिक्षा दिला नही पा रहा ये गरीबी नही तो क्या है बेटी जिनकी बिन ब्याही रहे पढने लिखने से महरूम रहे ये गरीबी नही तो कया है चंद सिक्कों की खातिर…. सपनो के महल धाराशाही हुऐ कल्पना के पंछी घायल हुए ये गरीबी नही तो क्या है….. सर पे टपकती हुई छत को ढीक ना करा पाये ये गरीबी नही तो कया है…. किसान का जीवन चिलचिलाती धूप मे खेत खोदता बेचारा किसान….. वक्त से पहले फसल बोने को तैयार बेचारा किसान….. पानी की बाट मे नभ को निहारता बेचारा किसान….. रात के सन्नाटे मे खेत को सम्भालता बेचारा किसान…. भूखे पेट रहकर भी दूसरो का पेट भरता बेचारा किसान…… बैमौसम बरसात की मार सहता बेचारा किसान….. कभी कटी फसल पानी मे डूबती निहारता बेचारा किसान…. संजोये सपने रेत मे मिलते देखता बेचारा किसान…… सुंदर कपडो मे सजा हो,शिशु अपना,देखने को तरसता बेचारा किसान…… नंगे बदन,नंगे पांव भागते खेत मे, शिशु को निहारता बेचारा किसान… टपकते हुऐ,घर मिटटी के देख आंसू भर लेता आंखो मे बेचारा किसान….. आडतिये की मनमर्जी को सहता बेचारा किसान…… बैंक से लोन की आस करता बेचारा किसान….कब होगी खुशहाली,उसकी इस आस मे जीता किसान।। मन की वीणा मेरे प्राण प्रिय,मन की वीणा बजा दो सुप्त हुऐ,तार कही,तुम फिर से आज जगा दो।। मेरे प्राण….. मै नही पिछली झंकार भूली,मै नही पहले दिन का प्यार भूली।। गोद मे ले,मोद से मुझे निहारो, सुप्त हुऐ तारो को,प्रिय फिर से जगा दो। हाथ धरो हाथो मे,मै नया वरदान पाऊ, फूंक दो नव प्राण मै प्राण पाऊ स्वर्ग का सा हिडोला झूलू, जब तुम प्रेम से बाहो मे लैकर मुसकुराओ। सुप्त हुऐ तारो को प्रिय फिर से तुम जगा दो। सुख का प्रभात होगा, जग उषा मुसकान,प्रेम से स्नात होगा, उषा हंसेगी,किरणे मुसुकुरायेगी, प्रेम की मधुर तान से,सुप्त प्राणो मे जान आयेगी।। मेरे प्राणप्रिय मन की वीणा बजा दो इन सुप्त हुऐ तारो को तुम फिर आज जगा दो।।। उम्मीद ही मेरी कल्पना के ख्वाब हो तुम……।। कही दिल के चमकते हुए ताज हो तुम…….।। कही ममता की कमजोरी हो तुम……..।। कही आशीवाद की आस हो तुम….. कही बिखरी हुई ताकत हो तुम…… कही बुझते हुऐ चिराग की प्यास हो तुम…. कही मेरे फैले चिराग की प्यास हो तुम…. कही मेरे फैले वजूद का अहसास हो तुम…… कैसे बिसराऊ तुम्हे… मेरी आत्मा की जान हो तुम…..। कैसे नकार दूं तुम्हारी आकांक्षा मेरी इच्छाओ के सूत्रधार हो तुम…… मेरे जीवन के पहले-पहले प्यार की सौगात हो तुम….. उम्मीदो पर खरे उतरो इन उम्मीदो की नाव के पतवार हो तुम।।. रीतू गुलाटी यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको “रीतू गुलाटी की पांच कवितायेँ “ | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita,