फूल गए कुम्हला

किसी का आगमन तो किसी का प्रस्थान ये जीवन का शाश्वत नियम है |  प्रात : सुंदरी सूर्य की रश्मियों के रथ पर बैठ कर जब आती है तो संध्या को खिलने वाले फूल कुम्हला जाते हैं और दीपक धुंधले पड़ जाते हैं | आईये पढ़ें प्रकृति का मनोहारी वर्णन करती हुई कविता … फूल गए कुम्हला   फूल गए कुम्हला , साँझ के दीप गए धुंधला फूल गए कुम्हला   देव भास्कर का सारथि  आरुण रथ ले आया अंधकार डूबा , पूरब में है प्रकाश झाँका फूल- – – – नव किरणें संदेश बिखेरें सुप्रभात आया भानु बढ़ रहे लेकर रथ अब , नव प्रकाश छाया फूल- – – – प्रात कुमुदिनी , सकुचाई खिली कमलिनी पाँत भ्रमर कर रहे मधुमय गुंजन  ज्योति भरे आकाश फूल गए कुम्हला , साँझ के दीप गए धुंथला फूल गए कुम्हला मौलिक एवं स्वरचित उषा अवस्थी विराम खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ (उ0 प्र) यह भी पढ़ें … रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “ फूल गए कुम्हला  “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: flower, poetry, hindi poetry, kavita

सावन अट्ठारह साल की लड़की है

कविता के सौदर्य में उपमा से चार -चाँद लग जाते हैं | ऐसे में सावन की चंचलता , अल्हड़ता , शोख नजाकत भरी अदाएं देख कर क्यों न कवि उसे १८ साल की लड़की समझ बैठे | आइये पढ़ें एक रिमझिम फुहारों में भीगी सुन्दर कविता सावन अट्ठारह साल की लड़की है सावन———– सीधे-साधे गाँव की, एक अट्ठारह साल की लड़की है. भाभी की चुहल और शरारत, बाँहों मे भरके कसना-छोड़ना, एक सिहरन से भर उठी——- वे सुर्ख से गाल की लड़की है. सावन——– सीधे-साधे गाँव की, एक अट्ठारह साल की लड़की है. वे उसका धान की खेतों से तर-बतर, बारिश मे भीगते हुये, घर की तरफ लौटना, और उस लौटने मे उसके, पाँव की सकुचाहट, उफ! गाँव मे सावन——– बहुत ही मादक और कमाल की लड़की है. सावन——— सीधे-साधे गाँव की, एक अट्ठारह साल की लड़की है. न शायर,न कवि, न नज़्म, न कविता वे उर्दू और हिन्दी दोनो से कही ऊपर, किसी देवता,फरिश्ते के हाथ से छुटी, इस जमीं पे उनके——– खयाल की लड़की है. सावन———- सीधे-साधे गाँव की, एक अट्ठारह साल की लड़की है. @@@रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी. जज कालोनी, मियाँपुर जिला—जौनपुर–222002 (उत्तर-प्रदेश). atootbandhann.com पर रंगनाथ दुबे की रचनाएँ पढने के लिए क्लिक करें –रंगनाथ दुबे यह भी पढ़ें … सुई बन , कैंची मत बन संबंध गीत -वेग से भ रहा समय नए साल पर पांच कवितायें आपको    “   गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under: Rainy Season, rain, savan, young girl, poem in Hindi

गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि

४ जनवरी १९२५ को इटावा में जन्मे   हर दिल अजीज गीत सम्राट गोपाल दास सक्सेना “नीरज ” …. जिन्हें हम सब कवि  नीरज के नाम से जानते हैं १९ जुलाई २०१८ को हमें  अपने शब्दों की दौलत थमा कर अपना कारवाँ ले कर उस लोक की महफ़िल सजाने चले गए | उनके जाने से  साहित्य जगत शोकाकुल है | हर लब  पर इस समय कविवर “नीरज “के गीत हैं | भले ही आज ‘नीरज ‘जी हमारे बीच नहीं हैं पर अपने शब्दों के माध्यम से वो अमर हैं | गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि  हायकू  गीत सम्राट  अनंत ओर चले  विवश मन। गीत रहेंगे  सबके हृदय में  मीत बनेंगे। मृत्यु सत्य है  मत अश्रु बहाना  करना याद। तुम्हारे गीत  साहित्य प्रेमियों को  भेंट अमूल्य। जीवित सदा  साहित्य से अपने  रहोगे तुम। ..सादर नमन। ..डा० भारती वर्मा बौड़ाई —————————- ०२—छोड़ सभी कुछ जाना होगा ——— नियत समय जब भी आयेगा  छोड़ सभी कुछ जाना होगा, पृथ्वी-कर्म सब पूरे कर अपने  स्वर्ग प्रयाण कर जाना होगा  अब यह तो अपने ही वश है  कैसे क्या-क्या कर्म करें हम  सूखे पात से गिर कर बिखरें  या हृदय से बन प्रीत झरें हम! ……….स्मृति शेष नीरज जी की स्मृति को शत-शत नमन। ———————————— डा०भारती वर्मा बौड़ाई चित्र विकिपीडिया से साभार यह भी पढ़ें … सबंध बैसाखियाँ मेखला जोधा -अकबर और पद्मावत क्यूँ है मदर्स डे -माँ को समर्पित कुछ भाव पुष्प आपको    “   गीत सम्राट कवि नीरज जी के प्रति श्रद्धांजलि  “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: GOPAL DAS NEERAJ

सुई बन , कैंची मत बन……

कहते हैं कि माँ की हर बात में शिक्षा होती है | ये कविता आभा जी ने अपनी माँ की शिक्षा के ऊपर ही लिखी है जिसमें वो परिवार को जोड़े रखने के लिए सुई बनने की शिक्षा देती है | ये शिक्षा हम सब के लिए बहुत उपयोगी है | कविता -सुई बन कैची मत बन  बचपन में जब कभी  हम भाई-बहिन  आपस में झगड़ते थे  किसी भी खिलौने या  मनचाही चीज़ों पर  ये मेरा है , ये तेरा है  कहकर लड़ पड़ते थे  हर छोटी-छोटी बातों में  माँ -माँ कहकर  चिल्लाते थे ……!! तब घर की परेशानियों से लड़ती  पैसों की तंगी से जूझती  हमे बेहतर भविष्य देने की  कोशिश में तत्पर रहती  माँ !!  सब भाई- बहिन में बड़ी होने के नाते  मेरा हाथ पकड़ती  कान खींचती  और वही जाना -पहचाना वाक्य  दोहरा देती …. “सुई बन , कैंची मत बन ” ……!! तब मेरा बालमन  इस वाक्य के अर्थ से अनभिज्ञ  इसे माँ की डांट समझ  सहज ही भूल जाता था  लेकिन आज !!  उम्र के इस दौर में  एक कुशल गृहणी का  कर्तव्य निभाते हुए  संयुक्त परिवार को  एक सूत्र में बांधे हुए  माँ की डांट में छुपे गूढ़ अर्थ को  जान पायी हूँ  कि रिश्तों को जोड़ना सीखो , तोड़ना नहीं  अब जान गयी हूँ कि !  कैसे सुई –दो टुकड़ों को एक करती है  और  कैंची –एक टुकड़े को दो टुकड़ों में बांटती है …..!!!!!!! आभा खरे  यह भी पढ़ें … सबंध बैसाखियाँ मेखला जोधा -अकबर और पद्मावत क्यूँ है मदर्स डे -माँ को समर्पित कुछ भाव पुष्प लेखिका परिचय नाम —- आभा खरे जन्म —- ५ अप्रैल, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) शिक्षा —- बी.एस.सी (प्राणी विज्ञान) सम्प्रति —- स्वतंत्र लेखन लखनऊ से प्रकाशित साहित्य व संस्कृति की त्रेमासिक पत्रिका “ रेवान्त “ में सह संपादिका के रूप में कार्यरत प्रकाशित कृतियाँ —- ‘गुलमोहर’, ‘काव्यशाला’, ‘सारांश समय का’, ‘गूँज’                   ‘अनुभूति के इन्द्रधनुष’ ‘काव्या’(सभी साझा संकलन) में                   रचनाएँ सम्मलित वेब पत्रिका : १)अभिव्यक्ति अनुभूति             २)हस्ताक्षर              में नियमित रचनाओं का प्रकशन इसके अतिरिक्त विभिन्न समाचार पत्रों के साहित्यिक परिशिष्ट में रचनाएँ प्रकाशित !! आपको    “    सुई बन , कैंची मत बन……“  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: women, poetry, hindi poetry, kavita, , scissors, nail

सबंध

रिश्ते टूट जाते पर यादे साथ नहीं छोडती | इतना अंतर अवश्य है जो कभी फूल से सुवास देती है वो विछोह के बाद नागफनी के काँटों सी  गड़ती हैं | टूट कर भी नहीं टूटते ये सबंध  सबंध  तुम्हारा मेरा “संबंध”….माना की भूल जाना चाहिए था,मुझे अब तक……! पर लगता है एक शून्य अब भी है,जो बिना कहे सुने पल रहा हैहमारे बीच……! आज वही शून्य मुझसे कह रहा है,कीवह सब यदि मुझे भुला नहीं ,तोभूल जाना चाहिए अवश्यएकदम अभी, आज ही, इसी वक़्त.. पर उन यादों को मिटाना क्या आसान है….???जो नागफनी की तरहमेरे “मन” के हर कमरे मेंफर्श से लेकर दीवारों तक फैले हैं…जिसका दंश रह-रह कर शूल साचुभता रहता है…!! याद है…?तुम हमेशा कहा करते थेनागफनी तो सदाबहार होती है…!————————–शायद इसलिए सदाबहार की तरह छाये रहते हो मेरे मन- मस्तिष्क पर ..। -नंदा पाण्डेयरांची (झारखंड) यह भी पढ़ें … बैसाखियाँ एक दिन मेहनतकशों के नाम अम्बरीश त्रिपाठी की कवितायें रंडी एक वीभत्स भयावाह यथार्थ आपको    “   सबंध   “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, relation, relationship

मंदिर-मस्जिद और चिड़िया

सारे धर्म भले ही बाँटने की कोशिश करें पर हवा , पानी , खशबू , जीव जंतुओं को कौन बाँट पाया है | ऐसे ही चिड़िया की बात कवि ने कविता में की है जो मंदिर -मस्जिद में भेद भाव न करके इंसानों से कहीं ज्यादा सेकुलर है | कविता –मंदिर-मस्जिद और चिड़िया मै देख रहा था——— अभी जो चिड़िया मंदिर के मुँडेर पे बैठी थी, वही कुछ देर पहले——– मस्जिद के मुँडेर पे बैठी थी. वहाँ भी ये अपने पर फड़फड़ाये उतरी थी, चंद दाने चुगे थे, यहाँ भी अपने पंख फड़फड़ाये उतरी, और चंद दाने चुग, फिर मंदिर की मुँडेर पे बैठ गई. फिर जाने क्यूँ एक शोर उठा, मंदिर और मस्जिद में अचानक से लोग जुटने लगे, और वे चिड़िया सहम गई. शायद चिड़िया को मालूम न था कि वे, जिन मंदिर-मस्जिद के मिनारो पे, अभी चंद दाने चुग, अपने पंख फड़फड़ाये बैठी थी, उसमे हिन्दू और मुसलमान नाम की कौमे आती है, जहा से हर शहर और गाँव के जलने की शुरुआत होती है, और हुआ भी वही, फिर उस चिड़िया ने अपने पर फड़फड़ाये मिनार से उड़ी, और फिर कभी मैने उस चिड़िया को, शहर के दंगो के बाद, दाना चुग पर फड़फड़ा, किसी मंदिर या मस्जिद की मिनार पे बैठे नही पाया , शायद वे चिड़िया एै “रंग “———– हम इंसानो से कही ज्यादा सेकुलर निकली. रचयिता—–रंगनाथ द्विवेदी । जज कालोनी, मियाँपुर जौनपुर—-222002 (उत्तर-प्रदेश) यह भी पढ़ें … बोनसाई काव्यकथा -गहरे काले रंग के परदे शहीद दिवस पर कविता संगीता पाण्डेय की कवितायें आपको    “  मंदिर-मस्जिद और चिड़िया   “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, mandir, masjid, bird

पुर्नस्थापन

तुलसी मात्र एक पौधा ही नहीं है वो हमारी संस्कृति और भावनाओं का प्रतीक भी है  जिसका पुनर्स्थापन जरूरी है | प्रतीक के माध्यम से संवेदनाओं को संजोने का सन्देश देती कविता  कविता -पुर्नस्थापन क्यों तुलसी को उसके   आँगन से उखाड़ ले जाओगे ? भला वहाँ कैसे पनपेगी रोप कहाँ तुम पाओगे ? इतने दिन की पाली पोसी कैसे यह बच पाएगी अपने गाँव शहर से कटकर यह कैसे रह पाएगी ?  जब अनुकूल नहीं जलवायु नहीं सहन कर पाएगी दे विश्रान्ति उसे , तुम ऐसी खाद कहाँ से लाओगे ?  अन्तराल से जो रीते मन के संवेग जगाओ तुम  फिर आकर उसको , उसके आँगन से लेकर जाओ तुम उषा अवस्थी गोमती नगर , लखनऊ (उ0 प्र0) यह भी पढ़ें …… आखिरी दिन निर्भया को न्याय है सखी देखो वसंत आया लज्जा फिर से रंग लो जीवन वृक्ष की तटस्थता आपको    “  पुर्नस्थापन   “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, 

पिता को याद करते हुए -अपर्णा परवीन कुमार की कवितायें

बेटी का अपने पिता से बहुत मीठा सा रिश्ता होता है | पिता बेटियों से कितने सुख -दुःख साझा करते हैं लेकिन एक दिन अचानक पिता बिना कुछ बताये बहुत दूर चले जाते हैं |  पिता के होने तक मायका अपना घर लगता है , उसके बाद वो भाई का घर हो जाता है , जहाँ माँ रहती है | पिता का प्यार अनमोल है | पिता के न रहने पर ये प्यार एक कसक बन के दिल में गड़ता है जो कभी कम नहीं होती | ऐसी ही कसक है इन कविताओं में जो अपर्णा परवीन कुमार जी ने पिता कोयाद करते हुए लिखी हैं | पिता को याद करते हुए -अपर्णा परवीन कुमार की कवितायें  मेहंदी के मौसमों में त्यौहारों के दिनों में, घेवर की खुशबुओं में, सावन के लहरियों में, इन्द्रधनुष के रंगों में, और पीहर के सब प्रसंगों में, अब कुछ कमी सी है……. बाबा! तुम्हारे बिना, दुनिया चल भी रही है… फिर भी थमी सी है ………. ______________________________________________________ माँ के साथ  माँ को नहीं आता था मेहंदी मांडना, वो हथेली में मेहंदी रख के कर लेती थी मुट्ठियाँ बंद, मेरी तीज, मेरे त्यौहार, सब माँ के हाथों में रच जाते थे इस तरह ……….. शगुन का यह खा ले, शगुन का यह पहन ले, माँ करा लेती थीं, न जाने कितने शगुन, पीछे दौड़ भाग के……. रचा देती थीं मेरे भी हाथों में मेहंदी, चुपके से आधी रात को……., माँ, मैंने नहीं सीखा तुम्हारे बिना, त्यौहार मनाना, …… शगुन करना, मीठा बनाना, मेहंदी लगाना, तुम डाँटोगी फिर भी….. अब हर तीज, हर त्यौहार, मैं जी रही हूँ तुम्हारा वैधव्य तुम्हारे साथ ……………. बाबा  वो उंचाइयां जो पिरो लीं थी अपनी बातों में तुमने, वो गहराइयाँ जो थमाँ दी थी मेरे हाथों में तुमने, वो वक़्त जो बेवक्त ख़त्म हो गया, सपने सा जीवन, जो अब सपना हो गया, मैं मुन्तजिर हूँ, खड़ी हूँ द्वार पे उसी, आना था तुम्हे तुम्हारी देह ही पहुंची, जो तुम थे बाबा तो तुमसे रंग उत्सव था, माँ का अपनी देह से एक संग शाश्वत था, तुम देह लेकर क्या गए वो देह शेष है, जीने में है न मरने में, जैसे एक अवशेष है, जोड़ा है सबका संबल फिर भी टूट कर उसने, जीवन मरण की वेदना से छूट कर उसने, इस उम्मीद में हर रात देर तक मैं सोती हूँ, सपने में तुम्हे गले लग के जी भर के रोती हूँ, बाबा! कहाँ चले गए कब आओगे? बाबा! जहाँ हो वहां हमें कब बुलाओगे? अख़बार की कतरने  पुरानी किताबों डायरीयों में, मिल जाती हैं अब भी इक्की दुक्की, दिलाती है याद सुबह की चाय की, कोई सीख, कोई किस्सा, कोई नसीहत, सिमट आती है उस सिमटी हुई मुड़ी, तुड़ी, बरसों पन्नों के बीच दबी हुई, अखबार की कतरनों में…………… चाय पीते हुए, अखबार पढ़ते हुए, कभी मुझे कभी भैया को बुलाकर, थमा देते थे हाथों में पिताजी अखबार की कतरन…………. कागज़ का वो टुकड़ा, जीवन का सार होता था, हम पढ़ते थे उन्हें, संभल कर रख लेते थे, अब जब निकल आती हैं, कभी किसी किताब से अचानक, तो कागज़ की कतरने भी, उनकी मौजूदगी, उनका आभास बन जाती हैं……………………… अपर्णा परवीन कुमार           यह भी पढ़ें ……… आखिरी दिन किरण सिंह की कवितायें एक गुस्सैल आदमी टूटते तारे की मिन्नतें आपको    “   पिता को याद करते हुए -अपर्णा परवीन कुमार की कवितायें  “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita,father, daughter, memories

आखिरी दिन

कहते हैं “ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या “| जीवन के आखिर दिन ये सपना टूट जाना है | प्रश्न ये भी है कि आखिरी दिन के बारे में सोच कर जीवन का सुंदर स्वप्न क्यों ख़राब किया जाये | कविता -आखिरी दिन  उस दिन भी वैसे ही होगी सुबह अल सुबह वैसे ही अलासाए हुए उठकर गैस पर चढ़ा दूंगीं चाय की पतीली उफनते दूध के साथ उफन जाएगा कुछ दर्द  कुछ निराशा उस दिन भी होगा बच्चों से  हरी सब्जी खाने को लेकर विवाद उस दिन भी झुन्झुलाउंगी सोफे पर रखे तुम्हारे गीले तौलिये पर लिखूंगी सब्जी भाजी का हिसाब बनाउंगी अगले महीने का बजट भविष्य की गुल्लक में संभाल  कर रख दूँगी कुछ सपनों की चिल्लर उस दिन भी बहुत कुछ बाकी होगा कल करने को बहुत कुछ बाकी होगा कल कहने को बहुत कुछ बाकी होगा कल के लिए पर कल नहीं होगा वो दिन जो मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा मृत्यु आएगी दबे पाँव , चोरों की तरह बिना कोई पूर्व सूचना दिए बिना अंतिम इच्छा पूंछे छीन कर ले जायेगी जिन्दगी कुछ साँसे टूटते ही टूट जाएगा भ्रम मुझे मेरे होना का वो दिन जिस दिन मेरी  जिंदगी का आखिरी दिन होगा आखिरी दिन कहते हैं पहले से ही मुक़र्रर है भले ही हो यह सबसे बड़ा सच पर लाखों -करोणों लोगों की तरह मैं कल्पना भी नहीं करती उसकी करना भी नहीं  चाहती भ्रम ही सही स्वप्न ही सही पर ये जीवन , जीवंतता से भरने का अवसर तो देता है सफ़र को रोमांचक बना देता है उस दिन तक जिस दिन मेरी जिन्दगी का आखिरी दिन होगा आखिरी दिन के बाद भी खत्म नहीं होगी यात्रा बन पथिक चलना होगा आगे और आगे कि अनंत जीवन में जीवन और मृत्यु की पुनरावृत्ति में जीवन और मृत्यु के महामिलन का बस क्षितिज है वो दिन जो  मेरी जिंदगी का आखिरी दिन होगा वंदना बाजपेयी यह भी पढ़ें … जाने कितनी सारी बातें मैं कहते -कहते रह जाती हूँ लज्जा फिर से रंग लो जीवन टूटते तारे की मिन्नतें आपको    “ आखिरी दिन    “ कैसे लगी  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: , poetry, hindi poetry, kavita, last day of life, mrityu, life, death

टूटते तारे से मिन्नतें

कहते हैं टूटते तारे से जो मानगो वो मिल जाता है | इसलिए जब भी कोई टूटता तारा दिखता है हाथ खुद ब खुद दुआ के लिए जुड़ जाते हैं |लेकिन किसी विरहणी  की मिन्नतें कुछ अलग ही होती हैं ….  कविता -टूटते तारे से मिन्नतें  हर टूटते तारे से मिन्नतें करती हूँ  हर ऊंचे दर पर माथा टेकती हूँ  काश कोई मेरी किस्मत तुमसे जोड़ दे  जाने -अनजाने में हो गये अलग जो हम  कहीं किसी जगह….. किसी ठिकाने  जहां तुम मिल जाओ मेरी राह उधर मोड़ दे गर हो ना सके इतना भी ‘खुदा ‘ तो  बस इतनी सी इल्तिज़ा है मेरी  ले ज़िन्दगी मेरी ..तार सांसों का तोड़ दे …!!!   __________ साधना सिंह              गोरखपुर  यह भी पढ़ें … किताबें लज्जा फिर से रंग लो जीवन अब मैं चैन से सोऊंगी आपको    “   टूटते तारे से मिन्नतें “  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: women, poetry, hindi poetry, kavita, shooting star