वो प्यार था या कुछ और था

जो मैं ऐसा जानती कि प्रीत किये दुःख होय , नगर ढिंढोरा पीटती , की प्रीत न करियो कोय                                                प्रेम , यानि हौले से मन के ऊपर दी गयी एक दस्तक और बावरा मन न जाने कैसे अपने ऊपर ही अपना हक़ खो देता है | आज कहा जा रहा है कि प्यार दो बार तीन बार …कितनी भी बार हो सकता है पर पहला पहला प्यार आज भी ख़ास है | पहले प्यार का अहसास ताउम्र साथ रहता है | तभी तो निशा एक ब्याहता होते हुए भी बार -बार बचपन की गलियों में उजास की तलाश में भटकती फिरती है | वो प्यार था या कुछ और था  दिल की गलियाँ सूनी हैं राहों पर ये कैसा अंधकार सा छाया आज ..तू ..! तू मुझे बहुत याद आया ……… “ कमला ! कैसा लगा मेरा ये शेर तुझे …बता न … “ निशा ने कमला से पूछना चाहा और अपने पास बुला कर बैड पर बैठने का इशारा किया । कमला जानती थी कि आज बीबी जी का मूड फिर कोई पुरानी बात या घटना का जिक्र करना चाहता था उससे ….फिर अपनी वही पुरानी घिसी पिटी कहानी …… “ कमला..! वो अक्सर आता था हमारे घर । अक्सर ..! नही .. नही , लगभग रोज ही । …… वो रोज ही हमारे घर आता था । मैं नही जानती थी कि क्यों आता था । लेकिन उसका आना मेरे मन को बहुत भाता था । ये बात बहुत पुरानी है कमला जब मैं छोटी थी । जब ये भी समझ नही थी मुझे ..कि प्यार क्या होता है “ निशा ने बैड पर पड़े -पड़े अपने अतीत के सुनहरे पलों को कमला से फिर बताना चाहा था । निशा न जाने कितनी ही बार बता चुकी थी कमला को ये सब बातें ..लेकिन आज फिर कहना शुरु कर दिया था उसने । “ कमला ..! मैं जब भी उदास होती हूँ न ! तो न जाने वो कहाँ से मेरे ज़हन में चुपके से आ कर, मुझ पर पूरी तरह से छा जाता है “ “ बीबी जी ! अब बस करो ! कब तक पीती रहोगी । देखो न ! क्या हाल कर लिया है अपना । अब हो गयी न आपकी शादी जीतू साहब जी से , पुरानी बातें काहे नही भूल जाती हो “ कमला ने पास आकर निशा का हाथ पकड़ कर प्यार से कहा । “ कमला ! तुझे क्या मालुम प्यार क्या होता है ? तू क्या समझेगी …ये तो मैं अब जाकर समझी हूँ ..पगली … तूझे नही मालूम कमला… आज जि़न्दगी दुबारा फिर मुझे वहाँ पर बहाए ले जा रही है । जिस उम्र में न कोई चिंता होती है , और न ही किसी बात की फिकर “ ये कहते हुए निशा फिर विस्की से अपने गिलास को भरने लगी थी । आज निशा की आँखों से नींद कोसों दूर थी । वो डुबो देना चाहती थी अपने को पूरी तरह से रीतेश की यादों में । रात का तीन बज चुका था । जीतू अभी तक नही आये थे अपनी ड्यूटी से …। पुलिस वालों को अक्सर देर हो ही जाती है । वो भी तब …..जब , वो जिम्मेदार पोस्ट पर होते हैं । “ बस करो बीबी जी ! भगवान के नाम पर बस …करो ..” कमला ने निशा के हाथ से गिलास लेना चाहा तो निशा ने उसे परे धकेल दिया था । निशा के ऊपर विस्की का पूरा असर हो चुका था । वो पूरा रौब दिखाते हुए कमला से कह उठी थी । “ तू ..तू ! कौन है री .. मुझे रोकने वाली .. जिसको मेरा ध्यान रखना चाहिए जब वो नही रखता …तो तू कौन है मेरी .. बता तो सही “ निशा कमला से पूछना चाहती थी । लेकिन कमला को बहुत गुस्सा आ रहा था निशा पर ..और आये भी क्यों न !.. बचपन से साथ है । वो निशा पर अपना पूरा अधिकार रखती थी । तभी तो तपाक से बोल उठी थी । “ जीबन है तो सब कुछ है बीबी जी । क्यों न रोके तुमको दारू पीने से ? तुम्हारे बिना हमारा है कौन ? छुटपन से तुमने ही तो हमारा ध्यान रखा है । हम नही देख सकते तुमको इस तरह से घुट- घुट कर मरते हुए “ कमला ने निशा की बात का तुरन्त जवाब तो दिया पर निशा के पास आ कर खड़ी हो गयी थी । कमला अच्छी तरह समझने लगी थी कि उसकी बीबी जी को अकेलापन खाये जा रहा है ।साहब जी को काम काज से फुर्सत नही है । अगर एक दो बच्चे होते तो शायद ध्यान भी बंटा रहता बीबी जी का । अब तक तो बच्चे भी बड़े हो चुके होते । हमारी बीबी जी की किस्मत में भी ईश्वर ने न जाने क्या लिखा है । सब कुछ तो है भगवान का दिया उनके पास ,लेकिन उनकी उदासी से ऐसा लगता है जैसे कुछ है ही नही उनके पास …। कमला के मुँह से एक लम्बी और ठंडी साँस निकली थी । कमला को खूब याद है वो अक्सर देखती थी …,कि पहले शौकिया साथ दे देती थीं बीबी जी पीने में साहब जी का ….लेकिन अब तो मुँह से ऐसी लगी है कि अकेलेपन से जब भी दुखी होती हैं तो अपने को भुलने के लिए पूरा डुबो देती हैं नशे में । साहब जी ने कितना मना किया था पर वो अब नही मानती हैं । शौक कब आदत बन जायेगा ये मालूम नही था उनको…….। कमला पास जा कर उसके बालों को सहराने लगी थी । निशा को लग रहा था कि उस पर नशा चढ़ने सा लगा है पर कमला को पास पा कर उसकी सुप्त भावनाएँ फिर जागने लगी थीं । उसने फिर कमला से अपने अतीत की बातें दोहरानी शुरु कर दी थीं ।…. “ मालुम है कमला ! मुझे और रीतेश दोनों को ..शाम का इन्तज़ार रहता था । कब शाम आये और … Read more

कुछ अनकहा सा -स्त्री जीवन के कुछ अव्यक्त दस्तावेज

                            बातें , बातें और बातें …दिन भर हम सब कितना बोलते रहते हैं …पर क्या हम वो बोल पाते हैं हैं जो बोलना चाहते हैं | कई बार बार शब्दों के इन समूहों के बीच में वो दर्द छिपे रहते हैं हैं जो हमारे सीने में दबे होते हैं क्योंकि उनको सुनने वाला कोई नहीं होता या फिर कई बार उन शब्दों को कह पाना हमारी हिम्मत की परीक्षा लेता है , आसान नहीं होता अपने बाहरी समाज स्वीकृत रूप के आवरण के तले अपने मन में छुपी उस  नितांत निजी पहचान को खोलना जिसको हम खुद भी नहीं देखना चाहते …शायद इसी लिए रह जाता है बहुत कुछ अनकहा सा ..और इसी अनकहे  को शब्द देने की कोशिश की है कुसुम पालीवाल जी ने अपने कहानी संग्रह ” कुछ अनकहा सा ” में | जिसमें अनकहा केवल दर्द ही नहीं है प्रेम , समर्पण की वो भावनाएं भी हैं जिनको व्यक्त करने में शब्द बौने पड़ जाते हैं | इस संग्रह की ज्यादातर कहानियाँ स्त्री पात्रों के इर्द -गिर्द घूमती हैं | यह संग्रह किसी स्त्री विमर्श के साहित्यिक ढांचे से प्रेरित नहीं है , लेकिन धीरे से स्त्री जीवन की समस्याओं की कई परते खोल देता है …जो ये सोचने पर विवश करती हैं कि इस दिशा में अभी बहुत काम किया जाना बाकी है |  कुसुम जी के कई काव्य संग्रह  पाठकों द्वारा पसंद किये जा चुके हैं ये उनका पहला कहानी संग्रह है | जाहिर है उनको इस पर भी पाठकों की प्रतिक्रियाएं व् स्नेह मिल रहा होगा | इस संग्रह को पढने के बाद मैंने भी इस अनकहे  पर कुछ कहने का मन बनाया है …. कुछ अनकहा सा -स्त्री जीवन के कुछ अव्यक्त दस्तावेज  “गूँज” इस संग्रह की पहली कहानी है | ये गरीब माता -पिता की उस बेटी की कहानी है  जिसकी पढाई बीच में रोक कर उसकी शादी कर दी जाती है | पिता शुरू में तो अपनी बेटी की शिक्षा में साथ देते हैं फिर उसी सामाजिक दवाब में आ जाते हैं जिसमें आकर ना जाने कितने पिता अपनी बेटियों की कच्ची उम्र  में शादी कर देते हैं कि पता नहीं कब अच्छा लड़का मिले | अपने ऋण से उऋण होने की जल्दी बेटी के सपनों पर कितनी भारी पड़ती है इसका उन्हें अंदाजा भी नहीं होता | यही हाल सरोज का भी है जो अपने सपनों को मन के बक्से में कैद करके कर्तव्यों की गठरी उठा कर ससुराल चली आती हैं | आम लड़कियों और सरोज में फर्क बस इतना है कि उसके पास माँ की शिक्षा की वो थाती है जो आम लड़कियों को नसीब नहीं होती | उसकी माँ ने विदा होते समय  चावल के दानों के साथ उसके आँचल के छोर में ये वाक्य भी बाँध दिए थे कि , ” बेटा अपना अपमान मत होने देना , मर्द जाति  का हाथ एक बार उठ जाता हैं तो बार -बार उठता हैं तो बार -बार उठता है और इस तरह औरत का समूचा अस्तित्व ही खतरे में आ जाता हैं |”  अपने आस -पास देखिये , कितनी माएं हैं जो ऐसी शिक्षा अपनी बेटी को देती हैं | ये सरोज की थाती है | शराबी पति , धीरे -धीरे बिकती जमीन , हाथ में कलम के स्थान पर गोबर कंडा पाथना और घर और बच्चों की परवरिश के लिए दूसरों के घर जाकर सफाई -बर्तन करना , सरोज हर जुल्म बर्दाश्त करती हैं | लेकिन जब एक दिन उसका पति उस पर हाथ उठाता  है, तो   ….अपने शराबी पति के लिए किये गए सारे त्याग समर्पण भूल कर एक झन्नाटेदार तमाचा उसे भी मारती है | ये गूँज उसी तमाचे की है …. जिसकी आवाज़ उसकी छोटी से झुग्गी के चारों ओर फ़ैल जाती है | ये कहानी घरेलु हिंसा के खिलाफ स्त्री के सशक्त हो कर खड़े होने की वकालत करती है | अमीर हो , गरीब हो , हमारा देश हो या अमेरिका हर जगह पुरुष द्वारा स्त्री के पिटने की काली दास्तानें हैं | कितनी सशक्त महिलाएं बरसों बाद जब अपने पति से अलग हुई तो उन्होंने भी इस राज का खुलासा किया कि वो अपने पति से रोज पिटती थीं | आखिर क्या है जो महिलाएं ऐसे रिश्ते में रहती हैं … पिटती हैं और आँसूं बहाती  हैं | हो सकता है हर स्त्री का पति सरोज के पति की तरह शराब से खोखले हुए शरीर वाला न हो और वो उस पर हाथ ना उठा सके पर पर अन्याय के खिलाफ पहले दिन से ही वो घर के बाहर आ कर खुल कर बोल सकती है | और शब्दों के इस थप्पड़ की गूँज भी कम नहीं होगी | “कुछ अनकहा सा”   कहानी एक रेप विक्टिम की कहानी है | कहानी लम्बी है और कई मोड़ों से गुज़रती है | कहीं -कहीं हल्का सा तारतम्य टूटता है जिसे कुसुम जी  फिर साध ले जाती हैं | कहानी एक अनाथ बच्ची नर्गिस की है , जिसे उसका शराबी चाचा फरजाना बी को घरेलु काम करवाने के लिए बेंच देता है | उस समय नर्गिस की उम्र मात्र नौ साल होती   है | फरजाना बी एक समाज -सेविका हैं उनके तीन बेटे हैं सलीम , कलीम और नदीम | जिन्हें नर्गिस भाईजान कहती और समझती है | अपने कार्यकौशल से सबका ल जीतते हुए नर्गिस उस घर में   है … और   साथ ही बड़ी होती है जाती है उसकी अप्रतिम सुंदरता जो तीनों बेटों के लिए आकर्षण का केंद्र हैं | एक  दिन बड़ा बेटा उसे अकेले में दबोच  लेता है | अपनी लुटी हुई इज्ज़त और टूटे मन  साथ जब वो फरजाना बी का सामना करती है तो वो उसे देख कर भी अनदेखा करती है | यहीं से दूसरे भाई को भी शह मिलती है और दोनों भाई जब -तब उसका उपभोग करने लगते हैं | रोज़ -रोज़ होते इन हमलों से खौफजदा बच्ची जो कभी कश्मीरी सेब सी थी  जाती है | ऐसे में तीसरा भाई नदीम मसीहा बन कर आता है और उससे निकाह का प्रस्ताव रख देता है | नदीम सिर्फ उसके शरीर … Read more

वारिस

अपने बेटे के विवाह के समय से माता -पिता के मन में एक सपना पलने लगता है कि इस घर को एक वारिस मिले जो खानदान के नाम और परंपरा को जीवित रखे | स्वाभाविक है , पर कभी कभी ऐसा भी होता है कि अपनी इस इच्छा की भट्टी में मासूम बहु की सिसकियों की आहुति उन्हें जरा भी नहीं अखरती |  वारिस शादी की पहली रात यानि सुहागरात वाले दिन ही मेरे पति ने मेरे ऊपर पानी से भरी एक बाल्टी उढ़ेल दी थी ।वो सर्दी की रात और ठन्डा पानी..मुझे अन्दर तक झकझोर गया था । कमरे में आते हुए जब शिव को मैंने देखा था तो चाल ढाल से समझ चुकी थी । कि जिसके साथ मुझे बाँधा गया है वो शायद मन्दबुद्धि है । मेरा शायद आज उसकी इस हरक़त से यक़ीन में बदल चुका था । मैं बिस्तर से उठकर कमरे के बगल वाली कोठरी में कपड़े बदलने पहुँची तो शिव पीछे-पीछे आ पहुँच था । मैं गठरी बन जाना चाहती थी शर्म से । लेकिन वो मुझे नचाना चाहता था । “ ऐ ..नाचो न .., नाचो ..न ..पार्वती ! इसी पेटीकोट में नाचो “ शिव ने जैसे ही कहा मैं हैरत से बोल उठी थी..“ क्यों ? तुम अपनी पत्नि को क्यों नचाना चाहते हो “ “ वो ..न … तब्बू तो ऐसे ही नाचती है न ..जीनत भी नाचती है ..मुंशी जी मुझे ले जाते हैं अपने साथ “ शिव बच्चे की तरह खिलखिलाकर बोल उठा था..। और मुझे नौकरों के बूते पर पले बच्चे की परवरिश साफ नज़र आ रही थी …जिसके घर पर शादी में रंडी नचाना रहीसी था , तो उसके बच्चे का हश्र तो ये होना ही था । मैं समझ चुकी थी आज से मेरे भाग्य फूट गये हैं । पिता जी को कितना बड़ा धोखा दिया था उनके ही रिश्तेदार ने ये सम्बन्ध करवा कर । जमींदार सेठ ईश्वरचंद के घर में उनके इकलौते बेटे को ब्याही पार्वती सिसक उठी थी …“ हे ईश्वर ये तूने क्या किया ..मेरी किस्मत तूने किसके साथ बाँध दी …” अनायास ही उसके मुंह से निकल पड़ा था …।सुबह सेठानी के पैर छूने झुकी तो “ दुधो नहाओ.. पूतों फलो “ ये कहते हुये मुझे गले का हार देते हुये सेठानी बड़े मीठे स्वर में बोली …..धैर्य से काम लेना बहुरिया । पड़ोस में मुंह दिखाई का बुलावा देकर लौटी चंपा ने मुझे कनखियों से जैसे ही देखा मैं समझ गयी थी कि ये भी जानना चाहती है कुछ ..“ काहे भाभी बिटवा कछु कर सके या कोरी ही लौट जईहो “ चंपा का सवाल मुझे बिच्छू के डंक की तरह लगा था । मैं चुप रह गयी थी । दूसरी बिदा में जब ससुराल आई थी तो सेठ जी ने पहले दिन ही कहला दिया था सेठानी से ..,,“ हमारे घर की बहुएं मुंशी , कारिन्दों के आगे मुंह खोल कर नहीं रहती हैं कह देना बहू से । “ छह महीने बीत गये थे , शिव को कोई मतलब नहीं था मुझसे ..होता भी कैसे ? वो मर्द होता तो ही होता न …..अचानक एक दिन ….” बहू से कह दो सेठानी ..! हमारे दोस्त का लड़का आयेगा । उसकी तीमारदारी में कोई कमी न रखे “ सेठ जी ने कहा और अपने कमरे में चले गये.. मैं घूँघट की ओट में सब कुछ समझ चुकी थी । “ये दोगला समाज अपनी साख रखने के लिए अपनी बहू और बेटियों को दाव पर लगाने से भी नहीं चूकता । “ और , मैं उस रात एक अजनबी और उस व्यक्ति को सौंप दी गयी थी जो इस घर को वारिस दे सके….. ( कुसुम पालीवाल, नोयडा) यह भी पढ़ें … मेकअप लेखिका जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “वारिस“कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories,new born, varis

गुटखे की लत

                        गुटखे की लत वो लत है जिसमें आदमी स्वयं तो अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता ही है पर उसकी गिरफ्त में उसकी निर्दोष पत्नी व् मासूम बच्चे भी आ जाते हैं |एक ऐसी ही कहानी जिसमें एक मासों पत्नी ने पति की “गुटखे की लत ” की सजा को ताउम्र झेला | कहानी -गुटखे की  लत   खिड़की के किनारे खड़ी सुमन अपनी उन पुरानी बातों को सोच रही थी जो वो अक्सर  राहुल को समझाने के तौर पर उससे कहती थी।       सुमन की ज़िन्दगी एक ऐसे व्यक्ति के साथ बीत रही थी जिस पर उसकी कही बात का कुछ भी असर नहीं होता था |शादी के समय से ही कितना मनाकरती थी राहुल को कि , पान मसाला , गुटखा छोड़ दो , लेकिन मज़ाल क्या …ये लत् उसकी ज़िन्दगी से ऐसी चिपकी कि आज तक नहीं छूटी थी …. ट्रिन….ट्रिन …अचानक बाहर की डोर बैल की आवाज ने उसका ध्यान भंग किया था । बाहर देखा तो काम वाली बाई खड़ी थी ….। उसने दरवाज़ा खोला ही था कि , कमरे से खांसने की आवाज़ पर चौक गयी थी । उसके पैर कमरे की ओर बढ़ चले थे ।              राहुल बिस्तर पर लेटा था ।  गुटखे  की आदत आज अपना रंग दिखा रही थी ….सुमन पलंग के पास खड़ी सोच रही थी .. डॉ. शरद ने साफ- साफ चेताबनी दे दी थी कि अगर राहुल ने गुटखा अभी नही छोड़ा तो परिणाम घातक हो सकते हैं .. “ सुमन ..!“  राहुल ने सुमन को पास खड़े देख कर पुकारा .. “ हाँ ..राहुल ..! बोलो , तुम कुछ कहना चाहते हो “ सुमन ने राहुल के बालों में हाथ फेरते हुऐ पूछा.. “ सुमन ! मैंने तुम्हारी बात .. खुल्ह..खुल्ह……पहले मान ली होती ..तो शायद ..खुल्ह…खुल्ह .. राहुल बेतहाशा खांसते हुए बोलने की चेष्टा कर रहा था .. “ राहुल ..! कुछ मत बोलो .प्लीज़ ..! “ सुमन ने उसकी पीठ को सहलाते हुए कहा था ।   राहुल आज महसूस कर रहा था अपनी ग़लती को ..तो सब कुछ कह देना चाहता था सुमन से …। उसकी आँखों के कोर से कुछ गरम –गरम बह निकला था ..।     ईश्वर ने उसकी झोली में बच्चे भी तो नहीं डाले थे एक बच्चा भी होता तो शायद सुमन की चिन्ता आज उसको न व्याप्ती …। लेटे हुए अपनी बन्द आँखों मेंराहुल अपने अतीत को ढूँढने  निकल चुका था ..  “ सुमन ! आज लेडी डॉ. अन्जुमन के पास जाना है तुमको अपने चेकअप के लिए .. याद है या भूल गयी “  “ अरे ! याद है राहुल ! कितनी बार मेरा टैस्ट करवाओगे तुम “ किस तरह सुमन ने मुझसे कहा था कितना विश्वास था उसको अपने मातृप्त पर  “ क्यों नही कराऊँगा ? बच्चा तो तुम्हें ही पैदा करना है मुझे नहीं “…. और , ये कह कर मैं कितना हँसा था ….। कितना ग़लत था मैं ! ..उसको मेरी हँसी शायद कहीं चुभ गयी थी तुरन्त किस तरह बोली थी .. “राहुल ! बच्चा सिर्फ एक ही व्यक्ति नही पैदा करता , उसमें दोनों का स्वस्थ होना ज़रूरी है ।मेरी रिपोर्ट हमेशा सही आती है ..तुम अपना चेकअप क्यों नहींकराते राहुल ? “  मुझे न जाने उसकी किस बात का बुरा लगा था ,हो सकता है शायद अपनी मर्दानगी  को लेकर ।  मैंने तुरन्त उसकी बात काट दी थी और गुस्से में ही कहा था .. “ क्या मैं नामर्द हूँ जो मेरे चेकअप की राय दे रही हो”  सुमन चुप हो गयी थी आगे कुछ न बोली थी ।           दिन बीत रहे थे हम दोनों के बीच एक ठंडापन सा रहने लगा था । न उसके कहने से मैंने गुटखा छोड़ा था और न ही उसके कहने से अपना चेकअप कराया था ।लेकिन अब जब मुझे कैन्सर की शिकायत हुयी तब एक दिन डॉ. ने बातों बातों में पूछा था ..”कोई औलाद है क्या.?” मैंने कहा था “ नहीं”  “क्यों ..? की नहीं या हुई नही “ डॉ. ने फिर से पूछा था.. “ पत्नी की रिपोर्ट तो ठीक आती थी फिर भी कोई बच्चा नही हुआ डॉक्टर साहब “ मैंने जैसे ही कहा वो तुरन्त  बोले थे …. “ क्या तुमने अपना चेकअप नही कराया था ..? तुममें भी तो कमी हो सकती है “  “ मुझमें….?”किस तरह आश्चर्य व्यक्त किया था मैंने… “ हाँ..राहुल .! मर्द को हमेशा औरत में ही कमी लगती है वो भूल जाता है कि बच्चा एक नही दोंनो के सन्सर्ग से पैदा होता है …और ये गुटखा कितने समय सेखा रहे हो तुम ? तुरन्त डॉ. ने मेरी ओर देख कर पूछा था  “ करीब दस सालों से “ और , मैंने ये कह कर नज़रें झुका लीं थीं किस तरह अगले दिन डॉ. ने मेरा चेकअप कराया था ।और , तीसरे दिन रिपोर्ट साफ दर्शा रही थी कि मैं सुमन को बच्चे का सुख नहीं दे सकता था ।      कारण पूछने पर मालूम हुआ था कि तंबाकू की मात्रा बॉडी में इतनी बढ़ चुकी होती है कि वो गुटखा मुंह संबंधी बीमारियों को बुलावा तो देता ही है, पर सेक्सहार्मोन पर इसका सबसे ज्यादा निगेटिव प्रभाव  पड़ता है , जिससे प्रजनन क्षमता समाप्त हो जाती है और आपको नपुंसक बना देती है ।     मैं किस तरह बेचैन हो उठा था …काश .! मुझे सुमन की बात बहुत पहले मान लेनी चाहिए थी । मेरी गुटके की आदत ने मेरा सब कुछ  छीन लिया ।  ये सोचते –सोचते राहुल सिसक उठा था ….।  पास में बैठी सुमन ने देखा तो अन्दर ही अन्दर बिखर उठी थी ।वो अपनी भावनाओं को  पति के सामने दिखा कर उसको और कमज़ोर नही करना चाहती थी ।  “ ऐ .. ये क्या राहुल …? तुम तो कभी इतने कमज़ोर न थे । हम दोनों मिल कर लड़ेगें राहुल ..थोड़ा तुम हिम्मत रखना थोड़ा मैं हौसला रखुंगी “ ।        उसके माथे को चूम कर सुमन जैसे ही जाने लगी थी राहुल ने कस कर हाथ थाम लिया था सुमन का और अपने पास फिर से बैठने का इशारा करके बोलाथा .. “ सुमन …मुझे मॉफ कर दो ..और ….और….. “ और , क्या राहुल ? तुम्हारी सुबह हो चुकी है राहुल !         मैंने डॉ. से बात की है , सब ठीक होगा ..चलो , अब आराम करो ..” सुमन ने थपथपा कर उसको चादर उढा़ते हुए कहा और दूसरे कमरे में जाकर फूटफूट कर रो पड़ी थी ।        आज दो साल हो चुके थे । सुमन की अथक सेवा और राहुल के आत्म विश्वास को देखकर डॉक्टर भी हैरान थे । कहते हैं न ! बीमार इन्सान में अगर जीनेकी चाहत हो , तो बीमारी भी डर कर भाग जाती है …..।            सुमन और राहुल आज खुश थे और नॉर्मल ज़िन्दगी जी रहे थे । आज ..! राहुल ने अपने घर के बाहर एक स्लोगन लिख कर टांग दिया था “ “ गुटखा बन्द कराएं , जीवन को बचाएं “                                       ( कुसुम पालीवाल , नोयडा ) यह भी पढ़ें … उसकी मौत ममत्व की प्यास घूरो चाहें जितना घूरना है                                                                                                तुम्हारे बिना  लेखिका  का परिचय – नाम–कुसुम पालीवाल जन्म –2जनवरी 1961 जन्म स्थान –आगरा,उ.प्र स्थाई निवास -नोयडा , उ.प्र kusum.paliwal@icloud.com शिक्षा –एम . ए .हिन्दी साहित्य कॉलेज ,आगरा कॉलेज ,आगरा ,उ.प्र प्रथम काव्य संग्रह –” अस्तित्व ” 2017 में (प्रकाशन -ए.पी.एन पब्लिकेशन्स , दिल्ली से ) बुक का विमोचन -प्रगति मैदान ,दिल्ली , विश्व पुस्तक मेला , दिल्ली में द्वितीय काव्य संग्रह “ अन्तस् से “ 2018 में , वनिका पब्लिकेशन्स से तृतीय काव्य संग्रह “ कुछ कहना है “ 2018 में , वनिका पब्लिकेशन्स से , दोनों ही संग्रह का विमोचन बुक फेयर , प्रगति मैदान , दिल्ली में ही समय समय पर पत्र -पत्रिकाओं में रचनाओं का लगातार निकलते रहना । आपको  कहानी  “गुटखे की  लत “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under- Tobacco, Tobacco addiction,health issueS फोटो क्रेडिट –डेली हंट

युवाओं में “लिव इन रिलेशन “ की ओर झुकाव …आखिर क्यो ????

आज कल आधुनिकता का दौर तेजी से बढ़ रहा है आधुनिक सभ्यता ने इस कदर पाँव पसार लिए हैं कि लगता नहीं है अब युवा वर्ग पीछे की ओर देखेगा ।युवा वर्ग आखिर शादी की जिम्मेदारियों से बच्चों की जिम्गमेदारियों से  क्यों भाग रहा है ? आखिर ये समस्या आयी कैसे ? क्या इसके पीछे कुछ माता-पिता का व्यवहार तो नहीं ?   आधुनिकता के पीछे भागने वाला कोई भी गरीब व्यक्ति नहीं है इसके पीछे भागने वाला सम्रद्ध सम्पन्न मध्यम वर्ग का प्राणी है जो  समाज में अपनी एक दिखाबटी साख बनाने में विश्वास रखता है ये वो  तबका है जिसको अपने परिवार से ज्यादा अपने स्टेटस को लेकर चिन्ता रहती है समाज में ………आज की इस आधुनिक शैली के कारण ही न जाने कितने परिवार टूट चुके हैं ..और परिवार का इस तरह टूटना कहीं न कहीं बच्चे को भी तोड़ देता है अन्दर से वैवाहिक जीवन की सोच को लेकर ..तब वो बच्चा सोचने लगता है कि अगर विवाह का ये ही हश्र है तो उसको “विवाह नही करना “ वो इस नतीजे पर सोचने को विवश हो जाता है | पैसा बहुत कुछ है लेकिन सब कुछ नहीं  एक तरफ घर में माता-पिता के बीच तनाबग्रस्त जीवन और दूसरी ओर बढती हुयी आधुनिक शैली —सोच सकते हैं हम जिस वक्त बच्चा मेच्योर होने की अवस्था में होता है वो इस मनोदशा से गुज़र रहा हो तो उसकी सोच कहाँ जा कर कैसा रूप लेगी ।लिव इन की ओर झुकाव होना ऐसे में सम्भव हो जाता है उनके लिए । विवाह उनको एक बन्धन लगने लगता है ..रोज की माता पिता की ओर से रोका टोकी , रोज के माता पिता के झगडे़ ,  अपनी नौकरी का तनाब उस पर किराये के मकान पर रहने पर किराया देने का बोझ न जान कितने कारण हो जाते है जो वो लिव इन को स्वीकृति देने लगते हैं उनके  मन में ….लेकिन वो भूल जाते हैं कि लिव इन रिलेशन के निगेटिव पक्ष भी होते हैं .. घटनायें तो दोनो में ही घटतीं हैं …चाहें विवाह हो या लिव इन रिलेशन..….शायद वो इस तरफ ध्यान देता नहीं है या देना नहीं चाहता …..उसको सोचना चाहिए —- १-विवाह पर समाज की मोहर लग जाती है  लिव इन पर खुद लड़के-लड़की का डिसीजन होता है २-विवाह एक हमारी भारतिय शैली है  लिव इन विदेश का चलन  ३- विवाह में एक दूसरे से अलग होने पर रिश्ता कानूनी कार्यवाही की माँग करता है  लिव इन में जब तबियत हो बोरिया बिस्तर बाँध कर अलग होने का अपना डिसीजन ४- विवाह में स्त्री की मदद कानून के द्वारा दिलायी जाती है   लिव इन में ऐसा कुछ नही है (शायद ) निगेटिव पॉइंट दोनों में  ही होते है —- कभी -कभी लिव इन में एक पक्ष इस तरह जुड़ जाता है दूसरे की भावनाओं से , कि अपने दोस्त के छोड़ कर चले जाने पर अपने आपको हानि देने से भी नही चूकता..या आपने पार्टनर को हानि देने से भी…… यही हाल विवाह में भी देखा जाता है —-लेकिन हमारा मानना है कि अगर एक समय बाद उम्मीदें , अपेक्षाएं दोनों ही रिश्तों में जाग जाती हैं तो युवा “लिव इन रिलेशन “को प्राथमिकता देते नज़र क्यों  आते हैं ?  घुटन से संघर्ष की ओर   ये समस्या या इसका समाधान अभी नहीं निकला तो वो दिन दूर नही .. जिसका परिणाम आगे आने वाले समय और पीढी को इसका ख़ामियाज़ा न झेलना पड़ेगा …..।   हमारे  युवा वर्ग को सोचना चाहिये कोई भी रिश्ता बिना आपसी विश्वास और स्पेस के ज्यादा समय टिकना बहुत मुश्किल होता है । आपसी सम्बन्ध वही ज्यादा टिकते यानि लम्बा सफर तय करता हैं जिस जगह पर दोनों के रिश्ते  में विश्वास और स्पेस होता है ।          हमारी भारतिय सभ्यता को विदेशी अपना रहे हैं और भारत का युवा विदेशी सभ्यता के फेरे में पड़ा है ।ये एक गम्भीर सोच का मुद्दा है .. लिव इन रिलेशन कोई हलुआ नहीं ..झगड़े लिव इन में भी होते हैं और शायद शादी शुदा लोगों से ज्यादा …विदेश में आये दिन पार्टनर बदल लेते हैं लोग ——ये हिन्दुस्तान में सम्भव है क्या ??  हमारी युवा पीढी को शादी और लिव इन के डिफरेन्स को समझना होगा …….।।।                   लेखिका —कुसुम पालीवाल , नोयडा यह भी पढ़ें …… बुजुर्गों की अधीरता का जिम्मेदार कौन क्यों लुभाते हैं फेसबुक पर बने रिश्ते बस्तों के बोझ तले दबता बचपन गुड़िया कब तक न हँसोगी से लाफ्टर क्लब तक  आपको  लेख “युवाओं में “लिव इन रिलेशन “ की ओर झुकाव …आखिर क्यो ????“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके email पर भेज सकें  filed under-live in relationship, live in

अंतस से -व्यक्ति से समष्टि की ओर बढती कवितायें

                                   कवितायें वैसे भी भावनाओं के कुसुम ही हैं और जब स्वयं कुसुम जी लिखेंगी तो सहज ही अनुमान लागाया जा सकता है कि उनमें सुगंध कुछ अधिक ही होगी| मैं बात कर रही हूँ कुसुम पालीवाल जी के काव्य संग्रह “अंतस से “की | अभी हाल में हुए पुस्तक मेले में इसका लोकार्पण हुआ है | यह कुसुम जी का तीसरा काव्य संग्रह है जो ” वनिका पब्लिकेशन “से प्रकाशित हुआ है |मैंने कुसुम जी के प्रथम काव्य संग्रह अस्तित्व को भी पढ़ा है | अस्तित्व को समझने के बाद अपने अंतस तक की काव्य यात्रा में कुसुम जी का दृष्टिकोण और व्यापक , गहरा और व्यक्ति से समष्टि की और बढ़ा है | गहन संवेदन शीलता कवि के विकास का संकेत है | कई जगह अपनी बात कहते हुए भी  उन्होंने समूह की भावना को रखा है | यहाँ उनके ‘मैं ‘ में भी ‘हम ‘निहित है | ‘अंतस से’समीक्षा  -व्यक्ति से समष्टि की ओर बढती कवितायें   यूँ तो संग्रह में 142 कवितायें हैं | उन पर चर्चा को सुगम करने के लिए मैं उन्हें कुछ खण्डों में बाँट कर   उनमें से कुछ चयनित रचनाओं को ले रही हूँ | आइये चलें  ‘अंतस से ‘ की काव्य यात्रा पर कविता पर …                  कवितायें मात्र भावनाओं के फूल नहीं हैं |ये विचारों को अंतस में समाहित कर लेना और उसका मंथन है | ये विचारों की विवेचना है , जहाँ तर्क हैं वितर्क  हैं और विचार विनिमय भी है |  इनका होना जरूरी भी है क्योंकि जड़ता मृत्यु की प्रतीक है | कविता जीवंतता है | पर इनका रास्ता आँखों की सीली गलियों से होकर गुज़रता है … देखिये –  अक्षर हूँ नहीं ठहरना चाहता रुक कर किसी एक जगह 2 … जहाँ विचार नहीं है वहां जड़ता है जहाँ जड़ता है वहाँ जीवन नहीं विचार ही जीवन है जीवन को उलझने दो प्रतिदिन संघर्षों से 3… कविता कोई गणित नहीं जो मोड़-तोड़ कर जोड़ी जाए गणित के अंकों का जोड़-गाँठ से है रिश्ता किन्तु कविता का गणित दिल से निकल कर आँखों  की भीगी और सीली गलियों से होकर गुज़रता है रिश्तों पर ….                     अच्छे रिश्ते हम सब के लिए जरूरी है क्योंकि ये हमें भावनात्मक संबल देते हैं | परन्तु आज के समय का सच ये है कि मकान  तो सुन्दर बनते जा रहे पर रिश्तों में तानव बढ़ता जा रहा है एकाकीपन बढ़ता जा रहा है | क्या जरूरी नहीं कि ह्म थोडा  ठहर कर उन रिश्तों को सहेजें – आजकल संगमरमरी मकानों में मुर्दा लाशें रहती हैं न बातें करती हैं न हँसती ही हैं उन्होंने बसा ली है दुनिया अपनी-अपनी एक सीमित दायरे में २…. ख्वाबों के पन्नों पर लिखे हुए थे जो बीते दिनों के अफ़साने आज दर्द से लिपटकर पड़पड़ाई हुई भूमि में वो क्यूँ तलाशते  रहते हैं दो बूंदों का समंदर 3 … सोंचती हूँ… जीवन की आपाधापी में ठिठुरते रिश्तों को उम्मीदों की सलाइयों से आँखों की भीगी पलकों पर ऊष्मा से भरे सपनों का एक झबला बुनकर मैं पहनाऊं नारी पर …                     नारी मन को नारी से बेहतर कौन जान सका है | जो पीड़ा जो बेचैनी एक नारी भोगती है उसे कुसुम जी ने बहुत सार्थक  तरीके से अपनी कलम से व्यक्त किया है |वहां अतीत की पीड़ा भी है , वर्तमान की जद्दोजहद भी और भविष्य के सुनहरी ख्वाब भी जिसे हर नारी रोज चुपके से सींचती है – दफ़न रहने दो यारों ! मुझे अपनी जिन्दा कब्र के नीचे बहुत सताई गयी हूँ मैं सदियों से यहाँ पर कभी दहेज़ को लेकर तो कभी उन अय्याशों द्वारा जिन्होंने बहन बेटी के फर्क को दाँव पर लगा बेंच खाया है दिनों दिन 2… तुम लाख छिपाने की कोशिश करो तुम्हारी मानसिकता का घेरा घूमकर आ ही जाता है आखिर में मेरे वजूद के कुछ हिस्सों के इर्द -गिर्द 3… तुम्हारी ख़ुशी अगर मेरे पल-पल मरने में और घुट -घुट जीने में विश्वास करती है तो ये शर्त मुझे मंजूर नहीं 4… चाँद तारों को रखकर अपनी जेब में सूरज की रोशिनी को जकड कर अपनी मुट्ठी में तितली के रंगों को समेट कर अपने आँचल में बैठ जाती हूँ हवा के उड़न खटोले पर तब बुनती हूँ मैं अपने सपनों के महल को 5 .. सतयुग हो या हो त्रेता द्वापर युग हो या हो आज सभी युगों में मैंने की हैं पास सभी परीक्षाएं अपनी तुम लेते गए और मैं देती गयी 6… छोटे – छोटे क़दमों से चलते हुए चढ़ना चाहती थी वो सपनों की कुछ चमकीली उन सीढ़ियों पर जिस जगह पहुँच कर सपने जवान हो जाते हैं और फिर … खत्म हो जाता है सपनों का आखिरी सफ़र 7 … मैं पूँछ ती हूँ इस समाज से क्या दोष था मेरी पाँच साल की बच्ची का लोग कह रहे हैं बाहर छोटे कपडे थे … रेप हो गया क्या दोष था उसका ! बस फ्रॉक ही तो पहनी थी पांच साल की बच्ची थी वो उम्र में भी कच्ची थी हाय …. कहाँ से ऐसी मैं साडी लाऊं जिसमें अपनी बच्ची के तन को छुपाऊं ! समाज के लिए ….                          किसी कवि के ह्रदय में समाज के लिए दर्द ही न हो , ऐसा तो संभव ही नहीं | चाहे वो आतंक वाद हो , देश के दलाल हो या भ्रस्टाचार हो सबके विरुद्ध कुसुम जी की कलम मुखरित हुई है | वो सहमी सी आँखें डरती है एक ख्वाब भी देखने से जो गिरफ्त में आ चुकी हैं संगीनों के साए में उनकी आँखों में भर दिए गए हैं कुछ बम और बारूद 2. ओ समाज के दलालों कुछ तो देश का सोंचो मत बेंचो अपनी माँ बहनों को इन्हीं पर तुम्हारी सभ्यता टिकी है और उइन्ही से तुम्हारी संस्कृति जुडी है 3. अंधेरों से कह दो चुप जाएँ कहीं जा कर कलम की धर … Read more

स्त्री देह और बाजारवाद ( भाग – तीन ) -कब औरत को उसका पूरा मान सम्मान दिया गया ?

दिनांक ६ /६ /17 को स्त्री देह और बाजारवाद पर एक पोस्ट डाली थी | जिस पर लोगों ने अपने अपने विचार रखे | कई मेल भी इस विषय पर प्राप्त हुए | कल आपने इस विषय पर पुरुषों  के प्रतिनिधित्व के विचार पढ़े | आज पढ़िए कुसुम पालीवाल जी के विचार … पहले की लिंक … स्त्री देह और बाज़ारवाद (भाग – २ ) लडकियां भी अपनी सोंच को बदलें स्त्री देह और बाजारवाद ( भाग -1 ) आज की कड़ी – कब औरत को उसका पूरा मान सम्मान दिया गया ? औरत को आदिकाल से लेकर आज तक देह ही समझा जा रहा है ये कोई माने न माने … देह का मतलब सैक्स पूर्ती तो है ही शारिरिक कार्य से भी है … उसका अपना मत क्या है ये कोई नहीं पूछता , न पहले ही न आज ही ।  राजा महाराजाओं के वक्त से आज तक औरत का दोहन हो रहा है , पहले मनोंरंजन का साधन थी , फिर कोठों पर बैठाई गई ,आज मार्केट में प्रसाधनों पर छापी जा रही है , कब औरत को उसका पूरा मान सम्मान दिया गया ।  रहा काव्य सृजन का सवाल तो रिति काल में भी कवियों ने नारी के शिख से लेकर पैरों के एड़ी तक का वर्णन कर डाला …यहाँ तक उसके बक्षस्थल और योनि तक का बखान कर डाला । आज जिस तरह से , आज का पुरूष समाज कहता है कि घर से निकलोगी तो ये सब कुछ तो होगा ही , इक्कीसवी शताब्दी में भी औरत को आजादी नही मिलेगी तो कब मिलेगी । पुरूष ने कहीं भी औरत को सम्पूर्ण आजादी नही दी है …आजादी का मतलब ये नहीं कि वो नग्न हो कर नाचना चाहती है वो मानसिक रूप से आजादी चाहती है ।                                                                                 पुरूष ने उसे उसे उस मोड़ पर ला कर खड़ा कर दिया जहाँ सारे रास्ते बन्द हो जाते हैं जीने के लिए तो उसकी बैचारगी दूर करने के लिए भी इसी समाज के पुरूषवर्ग ने ही कोठो पर बैठा दिया । यहीँ पर दोष स्त्री जाति का कम और पुरूष जाति का ज्यादा है ..याद रखें जब भी नारी को ठुकराया है इस पुरूष जाति ने तब तब तब उसी पुरूष जाति ने उसे कोठे या कॉल गर्ल के धन्धे में लिप्त किया । यहाँ पर एक के बदलने से समस्या का समाधान नही वल्कि दोनो की मानसिकता बदलनी चाहिए , अब मानसिकता को ही लें जगह जगह पर ऐसे पुरूष दिखलाई दे जाते हैं जो अश्लीलता की हदें पार कर चुके होते हैं ,उनको क्या कहा जायेगा ? वही एक लड़की डीप नैक या शोर्टस पहने दिँखती है तो समाज बबाल खड़ा कर देता है । तो ये सब क्या है ? क्या मानसिकता का नजरिया नहीं है क्योकि कोई काम धन्धा नही है लड़कियों को घूरो .. जहाँ तक निगाह पहुँचे खरोंच डालो आँखो ही ऑंखों में । जब आप खुद को संभालेगें तब देश बदलेगा , नई सोच और हैल्दी सोच का प्रादुर्भाव होगा .. इसमें स्त्री पुरूष दोनो को ही बदलना होगा । कुसुम पालीवाल 

अटल रहे सुहाग : चौथी कड़ी : कहानी—” सरप्राइज “

रिया,,,, ओ,,, रिया,,,,,, बेटा सारा सामान रख लिया न पूजा का, बेटा सब इकट्ठा करो एक जगह ,,,,, थाली में, ,, तुमको जाना है न ,, पार्क में पूजा के वास्ते, ,,,। हाँ , माँ मैने सब कुछ रख लिया, ,, माँ, आप कितनी अच्छी हो,,, सारी चीजों का ध्यान रखती हो,,,,,, ये कहते-कहते रिया माँ से लिपट गई थी । अनुराधा जो रिया की सास थीं, ,, वाकई में सास हो तो अनुराधा जैसी, ,,,,,,,।कितना ध्यान रखती थी रिया का,,,, क्योंकि बेटा सिद्धार्थ बाहर नेवी में जाॅव करता था, और नेवी वाले हर करवाचौथ पर पास में ही हो , ये संभव नहीं था ।अनुराधा इस व्रत की भावना को बहुत अच्छी तरह पहचानती थी,,,, इसी कारण, उसका उसका व्यवहार भी रिया के लिए पूर्ण समर्पित था ,,,।रिया उसकी बहू ही नहीं, ,,, एक बेटी, सहेली और हर सुख दुःख की साथी थी ,,,,। आज दो दिनों से उसकी तैयारी करवा रहीं थी अनुराधा, ,।अच्छे से अच्छे मेहंदी वाले से मेहंदी लगवाना तो उनका सबसे बडा शौक था ,,,,,, आज भी रिया की मेहंदी देख कर बडी खुश थीं, ,,, और उसकी मेहंदी को देखते-देखते , जाने कौन सी दुनिया में खो गई थी, ,,,। रा,,,,,जेश को मेरे हाथों में मेहंदी कितनी पसंद थी ,,,,, वो तीज , त्यौहार बिना मेहंदी के ,,, मेरे हाथों को देख ही नहीं सकते थे और फिर “करवाचौथ”,,,,,,,उस पर तो उनका विषेश आग्रह होता था मेहंदी वाले से,,,,,,,,। खूब अच्छी तरह याद है कि एक करवाचौथ पर , मेहंदी नहीं लगवा पाई थी ,तो किस तरह सारा घर आसमान पर उठा लिया था इन्होनें, ,,,। अम्मा, ,,, अम्मा, अनु के हाथों में मेहंदी क्यूँ नहीं लगी,,,, क्या , काम में इतनी भी फुर्सत नहीं मिली, ,,,,। अम्मा तो जानों करेला खा कर बैठीं थीं, ,,, अरे,,,, मैं क्या जानूं क्यों न लगी,,,, अम्मा ने जवाब दिया ,,,,,, तो ,,,,, तुम्हें लेकर जाना चाहिए था अम्मा, ,,,। बस राजेश का इतना कहना था कि बिफर गईं,,,,,,,,,,अरे एक साल नहीं लगेगी तो कोई आफत नहीं आ जायेगी ,,,,,।इतनी,, परवाह थी,,,,, तो ले जाता, आया क्यों नहीं नौकरी के बीच में छुट्टी लेकर, ,,,। राजेश को अम्मा से ऐसे जवाब की उम्मीद न थी,,,।कि जिसकी बहू, उसी के बेटे की सलामती के लिए व्रत और श्रंगार कर रही है और अम्मा, ,,,,,, ऐसे कैसे बोल सकती हैं।आज राजेश को समझ आ चुका था , अनु के चुप रहने का राज, ,,,,,,। तभी और उसी दिन राजेश ने सोच लिया था कि अनु को लेकर, ,,, वो ट्रांसफर पर चला जायेगा ,,,। सिद्धार्थ की भी पढाई पूरी होने जा रही थी, सिद्धार्थ भी 24 साल का हो गया था और राजेश उसके लिए लडकी अपनी पसंद की लाना चाहते थे, ,,, क्योंकि सिद्धार्थ मुझे ब्यूटी क्वीन जो कहता रहता था । अम्मा गुज़र चुकी थीं , राजेश ने सिद्धार्थ की शादी में किसी चीज की कमी न रहने दी थी कितना उत्साह था इनको,,,,,, कि घर में रौनक छा जायेगी, ,,,। रिया हमारे घर की बहू बन कर आ चुकी थी, और हमारी लाइफ बहुत अच्छी तरह से चल रही थी , कितना स्नेह था राजेश को रिया से, बेटी की तरह हर इच्छा का ख्याल रखते थे, ,,,। एक दिन सिद्धार्थ ने बताया कि उसका नेवी में सिलेक्शन हो गया है, तो किस कदर सारे घर में शोर मचा था, ,,, अनु का तो रो -रो कर बुरा हाल था, लेकिन रिया की तरफ देख कर अपनी भावनाओं को दबा दिया था उसने,,,,, क्योंकि रिया नहीं जा सकती थी उसके साथ सिद्धार्थ नौकरी पर चला गया था, शिप पर ।  अब रिया, राजेश और ,,, मैं ही तो रह गये थे , रिया तो जैसे हमारे आँखों का तारा बन गई थी,,,। अचानक एक दिन ऐसा आया कि राजेश की तबियत इतनी बिगड गई, कि डॉ. तक ने जवाब दे दिया, ,,,,और इनको भी जाना पडा । विधि के विधान को टालना किसी के बस की नहीं है अगर होती, तो अनु कभी न जाने देती राजेश को दूसरी दुनिया में, ,,,,,,,,। सारी जिन्दगी अम्मा के एक ही आशीर्वाद के लिए तरसती रही थी , जब भी पैर छूआ ,,,,ठीक है, ,, खुश रहो,, बस । अनु औरौ को देखा करती थी, बडी-बूढी औरतें ,,,,,,, सदा सुहागिन रहो, अटल रहे सुहाग तेरा ,,, जाने कितने आशीष थे ,,,, उनके पास । माँ, ,,, माँ, क्या सोच रही हैं, , देखो, मेरी मेहंदी कितनी लाल रंग लाई है, ,,।रिया की आवाज जैसे ही अनुराधा के कानों में पडी, तो चौंकते हुए ही कहा था उन्होंने, ,,,, ओहहो,,,,, रिया,,, ये तो बहुत ही लाल रंग आया है तेरी मेहंदी का, ,,,,, और उसने रिया के हाथों को चूमते हुए कहा था ,,,, जा,, जाकर तैयार हो जा ,,,,। आज अनु बहुत खुश थी , क्योंकि एक राज,,,,, उसने छुपा रखा था अपने सीने में, ,,, और वो था ,,, कि आज उसके जिगर का टुकडा, लाडला बेटा सिद्धार्थ जो आ रहा था, ,,,,।उसकी और सिद्धार्थ की बातें जो हो चुकी थीं , कि रिया को बताना नहीं है माँ, ,,,, ” सरप्राइज” दुंगा, ,। शाम हो चुकी थी और रिया दुल्हन की तरह सजी हुई थी , उसने पूजा की और पूजा करके उठी ही थी कि, अचानक घंटी बजी, ,, रिया ने सोचा माँ खोल देंगी, ,,, लेकिन अनुराधा थी कि, ,, अपने को व्यस्त शो करने में लगीं थीं कि दरवाजा रिया ही खोले,,,,,नारी के अंतर्मन को अनुराधा पूरी तरह समझती थी ,,,,। रिया उठी, उसने जैसे ही डोर खोला ,,,,,, वो देखते ही रह गई, ,,,,, सामने सिद्धार्थ खडा था, हाथ में फूलों का खूबसूरत बुके को लेकर ,, हैप्पी, , करवाचौथ डार्लिंग, ,,,,,,, ।  रिया थी कि उसको अपनी आँखों पर विश्वास ही नहीं आ रहा था और उसके होठों से ,,,, कोई शब्द ही नही निकल रहे थे, ,,, वो सिद्धार्थ की जगह ,,,,माँ से लिपट गई थी जा कर,,,,,,। सिद्धार्थ भी ,,,, माँ से आ कर गले लग गया था । छत पर रिया ने चाँद को अर्ध्य दिया, चलनी की ओट से सिद्धार्थ को देखा, ,,,,और दोनों माँ का आशीर्वाद लेने, ,,,,, नीचे उनके चरणों में झुके,,,,,, तो अनुराधा के होठों पर … Read more

लघु कथा— ” बुढापा “-कुसुम पालीवाल

                  अरे…दीदी…..तंग करके रखा हुआ है न तो चैन से रहते हैं….. न तो चैन से रहने लायक छोडा है …..सारे समय की चिकचिक ने नाक में दम कर रखा है. …..।    अरे ….किसने  की तेरी नाक में दम …..किसकी आफत आई …..मैने हंस कर .. उत्सुकता पूर्वक पूछा…। अरे …दीदी ..आप भी…..वही…..ऐ-204 वाले जैन साहब के घर …। क्या हुआ ….जैन साहब के घर ?? मैने फिर पूछा. …..। जैन भाभी हैं न…….उनकी सास …बाप रे बाप…..और तो और …अभी तो बुढऊ…भी हैं दीदी , पूरे …नौ और चार के हो गये हैं , तब भी ……बै…..ठै……..    अरे रानी …तू कैसी बात कर रही है …..जिसका सम्मान करना चाहिए इस उम्र में …तू उसी के लिए  …अपशब्द बोल रही है ।अरे …ये तो बुढापा है ……. क्या तुझे नहीं आयेगा  …? तू क्या ऐसे ही जवान बनी रहेगी क्या. ……?? मैने गुस्से से ..रानी से कहा ।      रानी हमारे घर की नौकरानी थी , पुरानी थी इसलिए सिर पर चढी रहती थी काम अच्छा करती थी साथ में ईमानदार भी थी मैं सर्विस पर जाती पीछे से सारा घर वो ही संभालती थी , कि तभी ……नही …दीदी , वो बात नहीं है , मैं. …..सोच रही थी बुड्ढे इतनी …..खिटखिट क्यों करतें हैं. ….अरे चैन से रहो…बेचारी जैन भाभी कितना करेंगी  ।उनकी भी तो उम्र हो गई है बेचारी ….बीमार होने पर भी ध्यान रखतीं हैं  ..55 के करीब पहुँच चुकी हैं ……अभी भी चैन नहीं है उनके जी को , मालूम नही उनकी बहुएं इतना कर भी पायेंगी. ……? रानी को मिसेज जैन से बडी सहानुभूति थी ।            रानी ….जीवन मृत्यु अपने हाथों में नहीं होते , सब ईश्वर के हाथ में है लेकिन इतना जरूर समझ ले ……बुढापा एक बच्चे की तरह है …….वो…वो कैसे दीदी ?? तुरन्त बीच में ही रानी बोल उठी ।        सुन… तेरी बडी खराब आदत है…….ये..जो.. तेरी बीच में बोलने की. ……।   ……जिस तरह बच्चों को हम अंगुली पकड कर चलना सिखाते हैं और …वो गिरने के डर से, कस कर अंगुली पकड …सहारे की उम्मीद कर, आगे पैर बढाता है ….उसी प्रकार … “बुढापा ” भी एक तरह का ..बचपन का ही रूप है. ….।        जिस प्रकार ये शरीर मिट्टी से बना और मिट्टी में मिल जाता है , उसी प्रकार जीवन का चक्र भी यही है ….बचपन और बुढापा  एक समान हो जाता है ……क्योंकि प्रकृति का ये नियम है जहाँ से चलते हो वही वापस आना पडता है. …………। और तू बुढापे को लेकर ऐसा कैसे सोच सकती है  ……।        रानी अब पहले से शांत थी और सोच रही थी , कि दीदी कितना अच्छा समझातीं हैं मुझे तो घर में कोई भी व्यक्ति समझाने वाला नहीं है ।   दीदी , आज के बाद मैं बिल्कुल नहीं सोचुंगी ऐसा ….आपने मेरी आँखे खोल दी , मै भी कहीं भटकी हुई थी शायद. …….मै भी अपने सास-ससुर की देखभाल करूँगी ……..।           हाँ……यदि किसी इंसान को अपना आगामी  जीवन ( बुढापा ) संवारना है तो उसे,, पहले अपने बडों को सम्मान देने की जरूरत है ……..।       यही ,  वो संस्कार हैं रानी …..जिनके तहत ही हम  ….अपने बच्चों में ये बीज बो सकते हैं , जो उनको वापस अपने संस्कारों की तरफ या उनकी जडों की ओर मोड सकते हैं  ……….।    मेरी तो… आज की पीढी से सिर्फ एक ही कामना है———। ” ग़र दे न सको , कुछ खुशियाँ और ले न सको , कुछ गम दुःख  दे कर , दुःख देने का तुम बनों , न भागीदार. …….. तो सम्मान , तुम्हारा है ।। कुसुम पालीवाल 

भीखू : कहानी -कुसुम पालीवाल

कहानी—- ” भीखू “                  ********** ललिया..ओ..ललिया…….कहाँ मर गये सब …..किसी को चिंता नहीं है मेरी  , अरे कहाँ हो तुम सब……..मरा जा रहा हूँ सारा कलेजा जल रहा है….. ,।भीखू की आवाज जैसे ही धनिया ने सुनी….., दौडी-दौडी भीखू के पास आई ….., क्यों चिल्लाबत हो …….., ठौरे ही तो बइठे हतै………ललिया नाही है घरै मा ….काम पर गई है बोलो …….का भवा…..।        अरी …थोडी दारू दे… दै…मर जाऊंगा , नहीं पीऊंगा  तो …………तू  क्या ये ही चाहे है …..। अब धनिया तो मानों …..फट पडी भीखू पर ……., हाँ ….हाँ , हम सब यही चाहें. ……..तभी तो ललिया काम धन्धे पर जात है , तुमका.. का पडी……कहाँ जात है…..का करत है…….., तुम्हे तो मुंह जरी जे …… दारू ही  चाहे ……….।       मालूम है बा दिना …डांगदर साब  ….का बोले हते……., ललिया की माँ भीखू को जिन्दा धरनौ है तो , दारू बन्द करवा दै  । कलेजा जल गयो है…. तुम्हारौ………तुम्हे पता नाय……..।     लेकिन भीखू कहाँ समझने वाला था , उसको तो जब से मुंह लगी थी तो अब कहाँ छूटने वाली थी ? चाहे जान चली जाये …।         अरे……जा भाषण मती दै…..दारू ला…….। धनिया बेचारी खडी -खडी सोच रही थी ……, सारी उम्र बिता दी पीते -पीते उसने , लेकिन अब भी समझ नहीं है ,मत मारी गई है , बेटी का ध्यान नहीं है , कैसे-कैसे वो अपने जमीर को बेच कर घर चला रही है , आखिर बेटी है न …….बेटा होता …कब का घरवाली को लेकर चला गया होता  ।         हमारी थोडी सी जमीन थी वो भी गिरवी है इतने भी पैसे नहीं थे कि उसको छुडवा सकें. ……। बेटी के जवान होते ही , सारे गाँव के …मर्द जाति की  नजरें तो जैसे गिद्ध बन गईं थीं ……साले पास तो आ नहीं सकते थे , तो आँखों से ही नोंच -नोंच कर खा रहे थे बिटिया को ………।  कितनी बार जब  मैं देखती थी तो कलेजा फट उठता था  ।  जवानी थी कि जोश मार रही थी , तन ढांपने को कपडे नहीं थे , और जो थे वो भी जगह -जगह से फटे ….., शरीर का दिखाना वहाँ स्वभाविक था ।                               एक बार कुछ पैसो की जरूरत पडने पर धनिया  , उस सेठ के  पास गई  , जिसके पास जमीन गिरवी रखी थी ……….. , साहब ……थोडे पैसे चाहिए ……दे …दो हुजूर. ……….।     क्या……. करोगी  ?  पैसों का …..आदमी को दारू पिलायेगी…….। नहीं साहब. ……घर में अनाज नहीं है , क्या खायेंगे  ………साब …मर जायेंगे …….।        साहब तो लग रहा था इसी मौके में था , तुरन्त मन में दबी बात …होठों पर आ गई   ।  अरे , तेरी तो बेटी भी सयानी हो गई है. …… उसको ……काम पर भेज दिया कर………..मालकिन के साथ , काम में हाथ बटा दिया करेगी , कमाई होगी सो अलग ……।धनिया को बात समझ में आ गई  , बस वो दिन था …कि आज का  दिन , लडकी को रखैल बना कर छोड दिया था ससुरे …कमीने  ने   …..।      अरे , वहीं खडी रहेगी ….का सोच रही है -ठाडी ठाडी……। धनिया की सोच टूटी ….., और वो तुरन्त भीखू के पास आई ………,सारी बोतलें खालीं हैं …घर में नाय दारू , कहाँ तै लाऊँ…. ..थोडो सबर करौ ……..। और ये कह कर  धनिया भीखू का सिर अपनी गोद में रख कर , सहराने लगी थी  ।        इन्सान आखिर इन्सान है , धनिया की गोद का सहारा …भीखू के मन को , अन्दर तक भिगो गया , क्योंकि हालात और स्वास्थ का मारा व्यक्ति प्यार की जरा सी आँच में पिघल उठता है , वही भीखू के साथ भी  हुआ. …… ।और वो सोचने लगा …… मैंने जिन्दगी में क्या किया. … अब तक….और उसके  आँसू  ठुलक गये आँखों से ……। धनिया को कुछ गरम -गरम सा एहसास हुआ अपनी गोद में …..तो समझ चुकी थी , बाप का कलेजा दुखी हो रहा है , लेकिन बोली कुछ नहीं  । कहते हैं न ” मन का गुबार आँखों के रास्ते बह जाये तो मन हल्का हो उठता है , ऐसा ही कुछ भीखू के साथ हुआ……….।      ललिया नहीं आई अभी तक. …., भीखू ने धनिया से पूछा. …। धनिया ने तुरन्त कहा …..आती होगी , मौसम की मार है. …….थोडा रुक गई होगी. …..। तभी अचानक ….एक आहट हुई …..देखा.. …..ललिया ने किवाड खोला ……..और सीधे अपने कमरे में चली गई थी  ।   माँ की नजरों ने सब भाँप लिया था. ….. आखिर माँ थी न……….नौ महीने कोख में रख कर भी जो न समझे , तो वो पालक कैसा  ?????      मै , अभी आवत हूँ ये कह कर वो ललिया के पास गई. ……. ललिया का चेहरा और उसकी आँखों के आँसू , एक अलग दास्तान बयां कर रहे थे  । पूछने पर पता चला….. कि कमीना सेठ , खुद तो रौंदता ही  था ………आज तो उसने किसी और के साथ सौदा भी कर दिया था ललिया के शरीर का …………….। ये जुल्म सुन कर धनिया सोच में पड गई थी ……कि भीखू को सब कुछ बताये या नहीं ……। सोच ही रही थी कि अचानक किवाड की ओट से एक छाया को देख कर  सहम गई थी धनिया , ये क्या …..ये तो भीखू ही है ……अरे हाँ ,ये भीखू ही खडा है ……..सहम गई अन्दर तक , और कहने लगी …….तुम का कर रहे हो इतै (यहाँ) …….आराम करौ जाय कै………।   धनिया माँ थी  तो साथ में एक पत्नी भी , पति को कोई कष्ट न हो , इसलिए सब कुछ अकेले ही सुलटाना चाहती थी ।       लेकिन अब आराम …भीखू के लिए हराम हो गया था …….भीखू की आँखों में खून उतर आया था. …….वो बाहर की तरफ भागा. ……..उसके पीछे-पीछे धनिया  …।    धनिया रोक रही थी लेकिन …….भीखू की आँखों और सिर पर तो खून सवार था ।     खोल …..कमीने. ………किवाड खोल …… आज तक मुझे नहीं मालूम था कि बहन बेटियों का सौदा करता है तू ………तुझे मैं नही छोडुगां ……. …..कमीने ….। मैं दारू पीता हूँ …..एक नजर भी नहीं … Read more