जीवित माता -पिता की अनदेखी और मरने के बाद श्राद्ध : चन्द्र प्रभा सूद

                                                          पितर पक्ष यानि श्रादों का पक्ष इन दिनों चल रहा है। आप सभी मित्रों से अनुरोध है कि जो साक्षात जीवित पितर आपके अपने घर में विद्यमान हैं उनके विषय में विचार कीजिए। यदि आपको श्राद्ध करना ही है तो उन जीवितों का कीजिए। श्राद्ध का यही तो अर्थ है न कि अपने पितरों को श्रद्धा पूर्वक अन्न, वस्त्र, आवश्यकता की वस्तुएँ तथा धनराशि दी जाए।         आपके घर में जो माता-पिता आपकी स्वर्ग की सीढ़ी हैं उन्हें वस्त्र दीजिए, उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उन्हें धन दीजिए, उनके खानपान में कोई भी कमी न रखिए, उनके स्वास्थ्य की ओर सदा ध्यान दीजिए। यदि वे अस्वस्थ हो जाते हैं तब उनका अच्छे डाक्टर से इलाज करवाइए तभी आपका श्राद्ध करना सही मायने में सफल हो सकेगा।            यदि जीवित पितरों की ओर से विमुख होकर मृतकों के विषय में सोचेंगे तो आपका सब किया धरा व्यर्थ हो जाएगा। जो पुण्य आप ऐसा करके कमाना चाहते हैं वह सब पाप में बदल जाएगा और आप अपयश के भागीदार बन जाएँगे। उसका कारण हैं कि आप पितरों के उपयोग में आने वाली जो भी सामग्री उन तथाकथित ब्राह्मणों के माध्यम से मृतकों को भेजना चाहते हैं वह तो उन तक नहीं पहुँचेगी। वे ब्राह्मण तो इसी भौतिक जगत में खा-पीकर उसका उपभोग कर लेंगे।            आज अधिकांश ब्राह्मण नौकरी अथवा अपना व्यवसाय कर रहे हैं। उन्हें ऐसे भोजन की आवश्यकता नहीं है। बहुत से ब्राह्मण आजकल शूगर जैसी बीमारियों से ग्रसित हैं। वे हर भोज्य पदार्थ को नहीं खा सकते बल्कि खाने में परहेज करना पड़ता है, मीठे का तो खासकर। इन दिनों वे इतने व्यस्त रहते हैं कि बुलाने पर कह देते हैं कि थाली घर भिजवा दो।           ऐसे ब्राह्मणों के पीछे फिरते हुए लोग अपने घर में आने के लिए अनावश्यक ही उनकी मिन्नत चिरौरी करते हैं।          परन्तु अपने घर में विद्यमान ब्राह्मण स्वरूप माता-पिता को दो जून का भोजन खिलाने में शायद उनके घर का बजट गड़बड़ा जाता है। इसीलिए उनको असहाय छोड़ देते हैं और स्वयं गुलजर्रे उड़ाते हैं, नित्य पार्टियों में व्यस्त रहते हैं, शापिंग में पैसा उड़ाते हैं। फिर उनके कालकवलित (मरने) होने के पश्चात दुनिया में अपनी नाक ऊँची रखने के लिए लाखों रुपए बरबाद कर देते हैं और उनके नाम के पत्थर लगवाकर महान बनने का यत्न करते हैं। इस बात को हमेशा याद रखिए कि माता-पिता का तिरस्कार कर ऐसे कार्य करने वाले की लोग सिर्फ मुँह पर प्रशंसा करते है और पीठ पीछे निन्दा।            माफ कीजिए मैं कभी ऐसे आडम्बर में विश्वास नहीं करती। मुझे समझ में नहीं आता कि आपने किसके सामने स्वयं को सिद्ध करना है? आपका अंतस तो हमेशा ही धिक्कारता रहेगा। अगर समाज में इस बात का लौहा मनवाना है कि आप बड़े ही आज्ञाकारी हैं, श्रवण कुमार जैसे पुत्र हैं तो उनके जीवित रहते ऐसी व्यवस्था करें कि जीवन काल में उन्हें किसी प्रकार की कोई कमी न रहे। इससे उनका रोम-रोम हमेशा आपको आशीर्वाद देता रहे। उनके मन को  अनजाने में भी जरा-सा कष्ट न हो।          हमारे ऋषि-मुनियों और महान ग्रन्थों ने माता और पिता को देवता माना है। उस परमात्मा को हम मनुष्य इन भौतिक आँखों से देख नहीं सकते परन्तु ईश्वर का रूप माता-पिता हमारी नजरों के सामने रहते हैं। जो बच्चे माता और पिता की पूजा-अर्चना करते हैं अर्थात सेवा-सुश्रुषा करते हैं उनके ऊपर ईश्वर की कृपा सदा बनी रहती है। ऐसे बच्चों का इहलोक और परलोक दोनों ही सुधर जाते हैं। चन्द्र प्रभा सूद

आधी आबादी :कितनी कैद कितनी आजाद (चन्द्र प्रभा सूद )

जाने अपने अधिकार  महिला दिवस पर नारी सशक्तिकरण के लिए भाषण दे देने से या कुछ लेख लिख देने से अथवा कानून बना देने से समस्या का समाधान संभव नहीं  है। सभ्य समाज में नारी उत्पीड़न की घटनाओं में निरंतर  बढ़ोत्तरी हो रही है। पुरुष मानसिकता में बदलाव आता हुआ दिखाई नहीं देता।           स्त्री को देवता मानकर सम्मान देने की परंपरा वाले देश हमारे भारत देश में उसकी शोचनीय अवस्था वाकई गंभीरता से विचार करने योग्य है।          इस स्थिति से उभरने के लिए नारी को स्वयं ही झूझना होगा। उसे अपना स्वाभिमान बचाने के लिए कटिबद्ध होना पड़ेगा। जब तक वह स्वयं होकर आगे नहीं बढ़ेगी तब तक उसकी सहायता न कोई कानून करेगा और न ही कोई और इंसान।       शहरों में स्त्री अपनी पहचान बनाने की भरसक कोशिश कर रही है। वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है। शिक्षा, ज्ञान, विज्ञान, खेलकूद, राजनीति, संगीत, फिल्म आदि सभी क्षेत्रों में  अपना स्थान बना रही है। इसके साथ ही घर, परिवार व समाज के प्रति अपने दायित्वों का निर्वाह भी कर रही है।          नारी को सशक्त होने के लिए आर्थिक  रूप से निर्भर होने की आवश्यकता है ताकि उसे किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े। इस आवश्यकता को समझते हुए वह उच्च शिक्षा ग्रहण कर रही है।         हर वर्ष के आंकड़ों में विविध परीक्षाओं में लड़कियाँ लड़कों से बाजी भी मार रही हैं। अपनी योग्यता के बल पर वह सभी प्रकार के कम्पीटीशन में सफल होकर अपने कैरियर की ऊँचाइयों को छू रही है। देश-विदेश जहाँ भी उसे मौका मिलता है वह उस अवसर का भरपूर लाभ उठा रही है। उच्च पदों पर आसीन होकर बता रही है कि किसी भी क्षेत्र में वह अपने पुरुष साथियों से कमतर नहीं है।        शहरों के में तो नारियाँ अपने स्वास्थ्य और कैरियर के प्रति सजग हो रही हैं परन्तु गाँवों में भी नारी सशक्तिकरण की उतनी ही आवश्यकता है। शहरों के साथ-साथ गाँवों में भी उसे आगे बढ़कर अपने स्वाभिमान को बनाए रखना होगा           स्त्री पर व्यंग्य करना या उसका मजाक बनाना पुरुष मानसिकता है। न जाने किन-किन नामों से उसे संबोधित कर अपने अहम की तुष्टि करते हैं। दिखावा या छलावा करना उनकी फितरत में शामिल है। मौके-बेमौके सबके सामने पत्नी को अपमानित करने से भी नहीं चूकते।        हर आज्ञा का पालन होते देखने का आदि पुरुष किसी भी कदम पर अपनी अवहेलना सहन नहीं कर सकता। छोटी-छोटी बातों से उसके अहम को ठेस लग जाती है और वह घायल होने लगता है। उसका पुरुषत्व या उसका अहम शायद ऐसे काँच का बना हुआ है जो जरा हल्की-सी चोट लगने से टूटकर किरच-किरच हो  जाता है।        सड़क पर चलते हुए मनचलों का नवयुवतियों पर फब्तियाँ कसना,  उन पर कटाक्ष करना या अनर्गल प्रलाप करना भी  तो विकृत पुरुष मानसिकता का ही उदाहरण कहलाता है। कुछ मुट्ठी भर ओछे लोगों के कारण जो सारे पुरुष समाज को कटघरे में कर देता है।        प्रतिदिन फेसबुक, पत्र-पत्रिकाओं में स्त्रियों के लिए अभद्र बातें, अपमानजनक टिप्पणियाँ, व्यंग्य, चुटकुले आदि जिस लहजे में लिखते हैं उन्हें देख-पढ़ कर मन को बहुत पीड़ा होती है। ऐसे घिनौने विचारों के प्रदर्शन से उनकी महानता कदापि सिद्ध नहीं हो सकती।       व्यंग्यकार, लेखक व कवि स्त्रियों पर अश्लील टीका-टिप्पणी व भद्दे मजाक करके जिस तरह अपनी रोटियाँ सेकते हैं वह बरदाश्त के बाहर हो जाता है। पत्नी या स्त्री के अतिरिक्त अन्य ढेरों सामाजिक विषय हैं जिन पर लिखकर वह अपनी सूझबूझ का परिचय दे सकते हैं।           मेरा सभी पुरुष मानसिकता वालों से निवेदन है कि महिलाओं की छिछालेदार करने के बजाय सकारात्मक रुख अपनाते हुए समाज के दिग्दर्शक बनें और आने वाली पीढ़ियों के मार्गदर्शक।            इसके साथ ही उसे अपने अधिकारों की अर्थात् कानून की जानकारी भी रखनी होगी ताकि समय आने पर उसे किसी का मुँह न देखना पड़े। वह स्वयं ही बिना किसी की सहायता के सभी समस्याओं से निपटने में सक्षम हो जाए।         बहुत से कानून महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने हुए हैं। कई सरकारी व सामाजिक संस्थाएँ भी उनकी मदद करने के लिए प्रस्तुत हैं। पर हम चाहते हैं कि आज नारी को किसी पर आश्रित रहना छोड़कर अपनी शक्ति को टटोलना होगा। तभी वह अपनी छाप समाज पर छोड़ सकने में समर्थ हो सकती है।             महिलाओं के लिए कुछ कानूनों की जानकारी यहाँ प्रस्तुत है-  (क) भारत का संविधान मौलिक अधिकारों तथा नीतिदर्शक तत्त्वों के अंतर्गत महिलाओं के समान अधिकारों के विषय में कहता है- 1.  अनुच्छेद 14- समानता का उल्लेख। 2. अनुच्छेद 15- लिंग जाति व धर्म के आधार पर किसी प्रकार के भेदभाव पर रोक लगाने का वर्णन। 3. अनुच्छेद 16- रोजगार या नियुक्ति के समान अवसर। 4. अनुच्छेद 19- बोलने व अपनी बात रखने की स्वतंत्रता। 5. अनुच्छेद 21- सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार। 6. अनुच्छेद 39- समान कार्य करने का अधिकार। 7. अनुच्छेद 42- कार्य एवं प्रसव की राहत की सही व मानवीय दशाओं का उल्लेख। इनके अतिरिक्त निम्नलिखित कानूनों का प्रावधान है- 1. फैक्टरी अधिनियम 1948 2. विशेष विवाह अधिनियम 1954 3. हिन्दू विवाह अधिनियम 1954 4. विधवा विवाह अधिनियम 1955 5. हिन्दू दत्तक ग्रहण व भरण-पोषण अधिनियम 1956 6. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 7. दहेज निषेध अधिनियम व प्रसूति लाभ अधिनियम 1961 8. समान पारिश्रमिक अधिनियम 1976 9. बाल विवाह प्रतिरोधक अधिनियम 1976 10. दी मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी एक्ट 1972 11. अश्लील चित्रण निवारण अधिनियम 1986 12. प्रसूति एवं नैदानिक तकनीक (दुरूपयोग, नियंत्रण व रोकथाम) अधिनियम 1994 13. घरेलू हिंसा महिला (संरक्षण) अधिनियम 2005 14. कार्य स्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ महिला संरक्षण विधेयक 2010        इनके अतिरिक्त पंचवर्षीय योजनाओं में भी  महिलाओं के लिए विशेष प्रवधान रखे गए हैं। चन्द्र प्रभा सूद Cprabas59@gmail.com अटूट बंधन मेरा भारत महान ~जय हिन्द