मृत्यु संसार से अपने ‘असली वतन’ जाने की वापिसी यात्रा है!

(जब जन्म शुभ है तो मृत्यु अशुभ कैसे हो सकती है?) – डा0 जगदीश गांधी, संस्थापक-प्रबन्धक,  सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) जीवन-मृत्यु के पीछे परमपिता परमात्मा का महान उद्देश्य छिपा है:- इस सत्य को जानना चाहिए कि शरीर से अलग होने पर भी आत्मा तब तक प्रगति करती जायेगी जब तक वह परमात्मा से एक ऐसी अवस्था में मिलन को प्राप्त नहीं कर लेती जिसे सदियों की क्रान्तियाँ और दुनिया के परिवर्तन भी बदल नहीं सकते। यह तब तक अमर रहेगी जब तक प्रभु का साम्राज्य, उसकी सार्वभौमिकता और उसकी शक्ति है। यह प्रभु के चिह्नों और गुणों को प्रकट और उसकी प्रेममयी कृपा और आशीषों का संवहन करेगी। बहाई धर्म के संस्थापक बहाउल्लाह कहते हंै कि हमें यह जानना चाहिए कि प्रत्येक श्रवणेंद्रीय, अगर सदैव पवित्र और निर्दोष बनी रही हो तो अवश्य ही प्रत्येक दिशा से उच्चरित होने वाले इन पवित्र शब्दों को हर समय सुनेगी। सत्य ही, हम ईश्वर के हैं और उसके पास ही वापस हो जायेंगे। मनुष्य की शारीरिक मृत्यु के रहस्यों और उसकी असली वतन अर्थात दिव्य लोक की अनन्त यात्रा को प्रकट नहीं किया गया है। माता के गर्भ में बच्चे के शरीर में परमात्मा के अंश के रूप में आत्मा प्रवेश करती है। जिसे लोग मृत्यु कहते हैं, वह देह का अन्त है। शरीर मिट्टी से बना है वह मृत्यु के पश्चात मिट्टी में मिल जाता है। परमात्मा से उनके अंश के रूप में आत्मा संसार में मानव शरीर में आयी थी मृत्यु के पश्चात आत्मा शरीर से निकलकर अपने असली वतन (दिव्य लोक) वापिस लौट जाती है। मृत्यु संसार से अपने ‘असली वतन’ जाने की वापिसी यात्रा है! (2) प्रभु कृपा की लघुता तथा विशालता पर विचार नहीं करना चाहिए:- मृत्यु प्रत्येक दृढ़ अनुयायी को वह प्याला अर्पित करती है जो वस्तुतः जीवन है। यह आनन्द की वर्षा करती है और प्रसन्नता की संवाहिका है। यह अनन्त जीवन का उपहार देती है। जिन्होंने मनुष्य के भौतिक जीवन का आनन्द उठाया है, जो आनन्द एक सत्य प्रभु को पहचानने में निहित है, उनका मृत्यु के बाद का जीवन ऐसा होता है, जिसका वर्णन करने में हम असमर्थ है। यह ज्ञान केवल सर्वलोकों के स्वामी प्रभु के पास ही है। इस युग में व्यक्ति का संपूर्ण कर्तव्य यह है कि उस पर प्रभु द्वारा बरसायी जाने वाली अनन्त कृपा के अमृत जल का भरपूर पान करें। किसी को भी उस कृपाजल की विशालता या लघुता पर विचार नहीं करना चाहिए। उस कृपाजल का भाग किसी की हथेली भर हो सकता है, किसी को एक प्याले भर मिल सकता है और किसी को असीम जलराशि की प्राप्ति हो सकती है। (3) जो कोई भी प्रभु आज्ञा को पहचानने में असफल रहा है, वह प्रभु से दूर होने का दुःख उठायेगा:- मनुष्य को उत्पन्न करने के पीछे का उद्देश्य उसे इस योग्य बनाने का है और सदा रहेगा कि वह अपने सृष्टा को जान सके और उसका सान्निध्य प्राप्त कर सके। इस सर्वोत्तम तथा परम उद्देश्य की पुष्टि सभी धर्मिक ग्रंथों गीता, त्रिपटक, बाइबिल, कुरान, गुरू ग्रन्थ साहिब, किताबे अकदस में अवतारों कृष्ण, बुद्ध, ईसा, मोहम्मद, नानक, बहाउल्लाह इत्यादि ने की है। जिस किसी ने भी उस दिव्य मार्गदर्शन के दिवा स्त्रोत को पहचाना है और उसके पावन दरबार में पदार्पण किया हैं, वह प्रभु के निकट आया है, उसने प्रभु के अस्तित्व को पहचाना है। वह अस्तित्व जो सच्चा स्वर्ग है और स्वर्ग के उच्चतम प्रसाद उसके प्रतीक मात्र है। ऐसा व्यक्ति उस स्थान को प्राप्त करता है जो बस, केवल दो पग दूर है। जो कोई भी उसे पहचानने में असफल रहा है, वह प्रभु से दूर होने का दुःख उठायेगा। ऐसी दूरी असत्य-लोक और शन्ूय में विचरण करने के बराबर है। बाहरी तौर पर वह व्यक्ति चाहे सांसारिक सुखों के सिंहासन पर ही क्यों न विराजमान हो, किन्तु दिव्य सिंहासन के दर्शन से वह सदैव वंचित रहेगा। (4) संसार में रहते हुए अगले दिव्य लोक की क्षमतायें विकसित करें:- मानव जीवन के आरम्भ में मनुष्य गर्भाशय के संसार में भ्रूण की अवस्था में था। वहाँ उसने मानव-अस्तित्व की वास्तविकता के लिये क्षमता और संपन्नता प्राप्त की। इस संसार के लिये आवश्यक शक्तियाँ और साधन शिशु को उसकी उस सीमित अवस्था में दिये गये थे। इस संसार में उसे आँखों की जरूरत थी उसने उसे इस संसार में पाया। उसे कानों की जरूरत थी, उसे उसने वहाँ तैयार पाया, जो उसके नये अस्तित्व की तैयारी थी। जिन शक्तियों की आवश्यकता उसे इस दुनिया के लिये थी, उन्हें गर्भाशय की अवस्था में दे दिया गया। अतः इस संसार लोक में उसे अगले जीवन की तैयारी अवश्य ही करनी चाहिये। प्रभु के साम्राज्य में उसे जिसकी जरूरत पडे़गी, उसे यहाँ अवश्य ही प्राप्त कर लेना चाहिये। जैसे उसने गर्भावस्था में ही इस दुनियाँ के अस्तित्व के लिये सभी शक्तियाँ अर्जित कर ली उसी तरह दिव्य अस्तित्व के लिये जिन अपरिहार्य शक्तियों की आवश्यकता है, उन्हें अवश्य इस संसार में प्राप्त कर लेना चाहिये। (5) जो प्रभु का आज्ञापालक है तो वह प्रभु के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करेगा:- आत्मा की प्रकृति के सम्बन्ध में हमें यह जानना चाहिए कि यह ईश्वर का एक चिह्न है, यह वह दिव्य रत्न है जिसकी वास्तविकता को समझ पाने में ज्ञानीजन भी असमर्थ रहे हंै और जिसका रहस्य किसी भी मस्तिष्क की समझ से परे है, चाहे वह कितना भी तीक्ष्ण क्यों न हो। प्रभु की श्रेष्ठता की घोषणा करने में सभी सृजित वस्तुओं में वह प्रथम है, उसकी ज्योति को पहचानने में प्रथम है, उसके सत्य को मानने में प्रथम है और उसके समक्ष नतमस्तक होने में प्रथम है। यदि वह प्रभु का आज्ञापालक है तो वह उसके प्रकाश को प्रतिबिम्बित करेगा और अन्ततः उसी में समाहित हो जायेगा। यदि प्रभु से तादात्म्य स्थापित करने में असमर्थ रहता है तो यह स्वार्थ और वासना का शिकार बनेगा और अन्त में उन्हीं की गहराईयों में डूब कर रह जायेगा। (6) दिव्य लोक की ओर ऊँची उड़ान भरने के लिए गुणों को विकसित करना चाहिए:- बहाउल्लाह कहते हैं तुम उस पक्षी के समान हो जो अपने दृढ़ आनंददायक विश्वास और पंखों की शक्ति के सहारे दूर गगन के विस्तार में विचरण करता होता है और तब तक नीचे नहीं आता … Read more

आज हमारे नन्हें-मुन्नों को संस्कार कौन दे रहा है? माँ? दादी माँ? या टी0वी0 और सिनेमा?

– डा0 जगदीश गांधी, प्रसिद्ध शिक्षाविद् एवं संस्थापक–प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) आज हमारे नन्हें–मुन्नों को संस्कार कौन दे रहा है?:-                 वर्तमान समय मंे परिवार शब्द का अर्थ केवल हम दो हमारे दो तक ही सीमित हुआ जान पड़ता हैं। परिवार में दादी–दादी, ताऊ–ताई, चाचा–चाची, आदि जैसे शब्दों को उपयोग अब केवल पुराने समय की कहानियों को सुनाने के लिए ही किया जाता है। अब दादी और नानी के द्वारा कहानियाँ सुनाने की घटना पुराने समय की बात जान पड़ती है। अब बच्चे टी0वी, डी0वी0डी0, कम्प्यूटर, इण्टरनेट आदि के साथ बड़े हो रहे हैं। परिवार में बच्चों को जो संस्कार पहले उनके दादा–दादी,  माँ–बाप तथा परिवार के अन्य बड़ेे सदस्यों के माध्यम से उन्हें मिल रहे थे, वे संस्कार अब उन्हें टी0वी0 और सिनेमा के माध्यम से मिल रहे हैं। (2) घर की चारदीवारी के अंदर भी बच्चा अब सुरक्षित नहीं है:-                 आज हमने अपने घरों में रंगीन केबिल टी0वी0 के रूप में बच्चों के लिए एक हेड मास्टर नियुक्त कर लिया है। बाल तथा युवा पीढ़ी इस हेड मास्टर रूपी बक्से से अच्छी बातों की तुलना में बुरी बातें ज्यादा सीख रहे हैं। टी0वी0 की पहुँच अब बच्चों के पढ़ाई के कमरे तथा बेडरूम तक हो गयी है। यह बड़ी ही सोचनीय एवं खतरनाक स्थिति है। दिन–प्रतिदिन टी0वी0 के माध्यम से फ्री सेक्स, हिंसा, लूटपाट, निराशा, अवसाद तथा तनाव से भरे कार्यक्रम दिखाये जा रहे हैं। बाल एवं युवा पीढ़ी फ्री सेक्स, लूटपाट, बलात्कार, हत्या तथा आत्महत्या करने वाले समाचारों से सीख रही है। (3) युवक ने टी0वी0 देखने में खलल पड़ने पर उठाया हिंसक कदम:-                      हैवानियत की सारी हदें पार कर कानपुर के श्यामनगर के भगवंत टटिया इलाके मंे हुई हिंसक वारदात में एक युवक ने सिर्फ इसलिए अपनी बहन और दो मासूम भान्जियों के गले रेत दिए क्योंकि उसके टी0वी0 देखने में खलल पड़ रही थी। इस युवक को अपने किए पर पछतावा भी नहीं है। इस हिंसक वारदात में माँ माया और बहन सुनीता के काम पर जाने के बाद जब बच्चे रोए तो अनीता ने टीवी देख रहे भाई सुनील से चाकलेट लाने को कहा, इस पर वह भड़क गया। सुनील ने दरवाजा बंद किया और बहन अनीता की गर्दन पर गड़ासे का तेज वार कर उसे मौत के घाट उतार दिया। बाद में सुनील ने मासूम भान्जियों प्रज्ञा व शिवी की भी गर्दन रेत डाली। इसके बाद सुनील ने अपनी गर्दन पर भी प्रहार कर लिया। (4) बच्चों के मन–मस्तिष्क पर टी0वी0 तथा सिनेमा के द्वारा पड़ने वाले दुष्प्रभाव:-                 इसी प्रकार की एक घटना में एक बच्चे ने अपनी दादी को सिर्फ इसलिए मार डाला था क्योंकि उसकी दादी ने उसे गन्दी पिक्चर देखने से मना किया था। उसके न मानने पर दादी ने टी0वी0 को बंद कर दिया था। टी0वी0 बंद होने से नाराज बच्चे ने गुस्से में आकर अपनी दादी की हत्या कर दी। टेलीविजन पर दिखाए जाने वाले धारावाहिक बच्चों के कोमल मन–मस्तिष्क पर कितना गहरा दुष्प्रभाव डाल रहे हैं इसका एक उदाहरण केरल के इदुकी नामक स्थान पर देखने को मिला। वहाँ कक्षा पाँच की छात्रा ने टी0वी0 पर आत्महत्या का दृश्य देखा और उसकी नकल करने में उसकी जान चली गई। पत्थानम्थित्ता क्षेत्र में मंगलवार को आठ वर्ष की एक बच्ची टेलीविजन पर एक धारावाहिक देख रही थी। घर में माता–पिता नहीं थे, उसका पाँच वर्षीय भाई ही उसके साथ घर पर था। टी0वी0 पर आत्महत्या का दृश्य देख बच्ची को इसकी नकल करने की सूझी। दूसरे कमरे में उसने दरवाजा बंद कर लिया। काफी देर बाद जब वह बाहर नहीं आई तो भाई ने हल्ला मचाया। पड़ोसियों ने दरवाजा तोड़ा तो बच्ची फाँसी लगा चुकी थी। (5) सी0एम0एस0 के फिल्म डिवीजन एवं दो रेडियो स्टेशनों में शैक्षिक कार्यक्रमों का निर्माण:-                 सी0एम0एस0 के बच्चों ने प्रतिज्ञा की है कि वे गन्दी फिल्में नहीं देखेंगे। केवल शैक्षिक फिल्में देखेंगे। शैक्षिक फिल्में निर्मित करने के उद्देश्य से सी0एम0एस0 ने फिल्म डिवीजन की स्थापना की है। सी0एम0एस0 द्वारा दो रेडियो स्टेशन भी स्थापित किये हैं। सी0एम0एस0 ने अत्यन्त उच्च कोटि की प्रेरणादायी अनेक बाल फिल्मों का निर्माण किया है। संसार में ऐसी सशक्त बाल फिल्मों का निर्माण आज तक नहीं हुआ है। समाज को हिंसा, सेक्स, रेप, हत्या, आत्महत्या जैसे अपराधिक मामलों की प्रेरणा देने वाले अश्लील चैनलों को तत्काल बंद किया जाये। ताकि आगे किसी माँ–बाप के जिगर के टुकड़ों प्रिय बेटे–बेटी को असमय मुरझाने से बचाया जा सके। (6) प्रियजनों के मन में पनप रहे बुरे विचार को समय रहते पहचाने:-                 जीवन प्रभु का दिया है। किसी दूसरे की हत्या करना अथवा स्वयं आत्महत्या करना दोनों एक ही जैसी मनः स्थिति को दर्शाती हैं। और वह है ईश्वर से अलगाव। प्रभु की दृष्टि में ये दोनों ही स्थितियाँ पापपूर्ण हैं। बच्चे माता–पिता के लाड़ले बेटी–बेटे होते हैं। कोई अज्ञानी बालक या युवक आत्महत्या करके अपने परिजनों को जीवन भर के लिए अपराध बोध के बोझ तले रोते–बिलखते रहने के लिए छोड़ जाता है। हमारी आंखों में पड़ा मोह का पर्दा अपने प्रियजनों के मन में पनप रहे बुरे विचार को समय रहते देखने से रोके रखता है। बाद में वह बुरा विचार धीरे–धीरे परिपक्व हो जाता है। तब बहुत देर हो चुकी होती है। (7) परिवार विश्व की सबसे छोटी एवं सशक्त इकाई है:-                            परिवार में मां की कोख, गोद तथा घर का आंगन बालक की प्रथम पाठशाला है। परिवार में सबसे पहले बालक को ज्ञान देने का उत्तरदायित्व माता–पिता का है। माता–पिता बच्चों को उनके बाल्यावस्था में शिक्षित करके उन्हें अच्छे तथा बुरे अथवा ईश्वरीय और अनिश्वरीय का ज्ञान कराते हैं। बालक परिवार में आंखों से जैसा देखता है तथा कानों से जैसा सुनता है वैसा बालक के अवचेतन मन में धारणा बनती जाती हैं। बालक की वैसी सोच तथा चिन्तन बनता जाता है। बालक की सोच आगे चलकर कार्य रूप में परिवर्तित होती है। परिवार में एकता व प्रेम या कलह, माता–पिता का अच्छा व्यवहार या बुरा व्यवहार जैसा बालक देखता है वैसे उसके संस्कार ढलना शुरू हो जाते हंै। अतः प्रत्येक बालक को उसकी प्रथम पाठशाला में ही प्रेम, दया, एकता, करूणा आदि ईश्वरीय गुणों की शिक्षा दी जानी चाहिए। परिवार विश्व की सबसे छोटी एवं सशक्त इकाई … Read more

शांति से ओत -प्रोत नारी युग के आगमन की शुरुआत हो चुकी है

डाॅ. जगदीश गाँधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) संयुक्त राष्ट्र संघ की महिला सशक्तिकरण की दिशा में महत्वपूर्ण पहल:- संयुक्त राष्ट्र संघ ने प्रतिवर्ष 8 मार्च को अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की है। अन्तरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाने का उद्देष्य विष्व के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रति सम्मान, प्रषंसा और प्यार प्रकट करते हुए इस दिन को महिलाओं के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक उपलब्धियों के उपलक्ष्य में उत्सव के तौर पर मनाया जाता है। आज विज्ञान, अंतरिक्ष, खेल, साहित्य, चिकित्सा, षिक्षा, राजनीति, समाज सेवा, बैंकिंग, उद्योग, प्रषासन, सिनेमा आदि ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं हैं जहाँ महिलाओं ने अपना वर्चस्व न कायम किया हो। वास्तव में आज विष्व समाज में महिलाओं की सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक हिस्सेदारी पहले से काफी बढ़ गई है। महिलाओं ने महत्वपूर्ण व असरदार भूमिकाएँ निभा कर न सिर्फ पुरूषों के वर्चस्व को तोड़ा है, बल्कि पुरूष प्रधान समाज का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित किया है। लेकिन इसके साथ ही साथ आज समाज में आज चारों तरफ लड़कियों तथा महिलाओं पर घरेलू हिंसा, रेप, बलात्कार, भू्रण हत्याऐं आदि की घटनायें भी लगातार बढ़ती ही जा रहीं हैं। (2) जब तक देश में स्त्रियां सुरक्षित नहीं होगी तब तक परिवार, समाज और राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है:- महिलाओं तथा छोटी बच्चियों पर होने वाले भेदभाव, शोषण एवं अत्याचार से विचलित होकर किसी ने कहा है कि विश्व में गर बेटियाँ अपमानित हैं और नाशाद हैं तो दिल पर रखकर हाथ कहिये कि क्या विश्व खुशहाल है? किसी ने नारी पीड़ा को इन शब्दों में व्यक्त किया है – बोझ बस काम का होता, तो शायद हंस के सह लेती ये तो भेदभाव है, जिसे तुम काम कहते हो। वास्तव में अपने जन्म के पहले से ही अपने अस्तित्व की लड़ाई को लड़ती हुई बेटियां इस धरती पर जन्म लेने के बाद भी अपनी सारी जिंदगी संघर्षों एवं मुश्किलों से सामना करते हुए समाज में अपनी एक अलग पहचान बनाती जा रही हैं। लेकिन बड़े दुःख की बात है कि घर, परिवार की जिम्मेदारियों से लेकर अंतरिक्ष तक अपनी कामयाबी का झंडा फहराने वाली इन बेटियों को समाज में अभी भी भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है। जबकि महर्षि दयानंद ने कहा था कि ‘‘जब तक देश में स्त्रियां सुरक्षित नहीं होगी और उन्हें, उनके गौरवपूर्ण स्थान पर प्रतिष्ठित नहीं किया जायेगा, तब तक समाज, परिवार और राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है।’’ इस प्रकार राष्ट्र का निर्माण मातृषक्ति करती है, माँ ही परिवार, समाज और राष्ट्र को संस्कारित करती है। राष्ट्र की गुणवत्ता का आधार नागरिकों की चारित्रिक गुणवत्ता है, जिसकी निर्मात्री केवल मातृषक्ति है। (3) जिस घर में नारी का सम्मान होता है वहाॅ देवता वास करते हंै:- वह मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री भी है। ‘मनुस्मृति’ में लिखा है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवतः। यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।। (मनुस्मृति,3/56) अर्थात् ”जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं। वाल्मीकि जी ने ‘रामायण’ में कहा है ”जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी” अर्थात् ”जननी और जन्म-भूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।” महाभारत में श्री विदुर जी ने कहा है ”घर को उज्जवल करने वाली और पवित्र आचरण वाली महाभाग्यवती स्त्रियाँ पूजा (सत्कार) करने योग्य हैं, क्योंकि वे घर की लक्ष्मी कही गई हैं, अतः उनकी विशेष रूप से रक्षा करें।” (महाभारत, 38/11)। नये युग का सन्देश लेकर आयी 21वीं सदी नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की है। मेरा विश्वास है कि नारी के नये युग की शुरूआत हो चुकी है। (4) नारी के सम्मान में एक प्रेरणादायी गीत इस प्रकार है:- नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे, धैर्य, दया, ममता बल हंै विश्वास तुम्हारे।। कभी मीरा, कभी उर्मिला, लक्ष्मी बाई, कभी पन्ना, कभी अहिल्या, पुतली बाई। अपने बलिदानों से, इतिहास रचा रे। नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे, धैर्य, दया, ममता बल हंै विश्वास तुम्हारे।। अबला नहीं, बला सी ताकत रूप भवानी, पहचानो अपनी अद्भुत क्षमता हे कल्याणी। बढ़ो बना दो, विश्व एक परिवार सगा रे।। नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे। धैर्य, दया, ममता बल हंै विश्वास तुम्हारे। महिला हो तुम, मही हिला दो, सहो न शोषण, अत्याचार न होने दो, दुष्टांे का पोषण। अन्यायी अन्याय मिटा दो, चला दुधारे।। नारी हो तुम, अरि न रह सके पास तुम्हारे, धैर्य, दया, ममता बल हैं विश्वास तुम्हारे।। (5) अगर धरती पर कहीं जन्नत है तो वह माँ के कदमों में है:- महिला का स्वरूप माँ का हो या बहन का, पत्नी का स्वरूप हो या बेटी का। महिला के चारांे स्वरूप ही पुरूष को सम्बल प्रदान करते हैं। पुरूष को पूर्णता का दर्जा प्रदान करने के लिए महिला के इन चारों स्वरूपों का सम्बल आवश्यक है। इतनी सबल व सशक्त महिला को अबला कहना नारी जाति का अपमान है। माँ तो सदैव अपने बच्चों पर जीवन की सारी पूँजी लुटाने के लिए लालायित रहती है। मोहम्मद साहब ने कहा है कि अगर धरती पर कहीं जन्ऩत है तो वह माँ के कदमों में है। हमारा मानना है कि एक माँ के रूप में नारी का हृदय बहुत कोमल होता है। वह सभी की खुशहाली तथा सुरक्षित जीवन की कामना करती है। ‘महिला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘मही’ (पृथ्वी) को हिला देने वाली महिला। विश्व की वर्तमान उथल-पुथल शान्ति से ओतप्रोत नारी युग के आगमन के पूर्व की बैचेनी है। (6) माँ, बहिन, पत्नी तथा बेटी को हृदय से पूरा सम्मान देकर ही विश्व को बचाया जा सकता है:- मेरा मानना है कि अनेक महापुरूषों के निर्माण में नारी का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान रहा है। कहीं नारी प्रेरणा-स्रोत तथा कहीं निरन्तर आगे बढ़ने की शक्ति रही है। प्राचीन काल से ही नारी का महत्व स्वीकार किया गया है। नये युग का सन्देश लेकर आयी 21वीं सदी नारी शक्ति के अभूतपूर्व जागरण की है। जगत गुरू भारत से नारी के नये युग की शुरूआत हो चुकी है। आज बेटियां फौज से लेकर अन्तरिक्ष तक पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं। स्वयं मुझे भी मेरी बेटी गीता, जो कि मेरी आध्यात्मिक माँ भी है, … Read more

दीपावली पर जलायें विश्व एकता का दीप

– डॉ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) कितने भी संकट हो प्रभु कार्य समझकर विश्व एकता के दीप जलाये रखना चाहिए :- कितने ही महान कार्य संसार में सम्पन्न हुए और व्यापक बने हैं, जिनके मूल में मनस्वी लोगों के संकल्प और प्रयत्न ही काम करते हैं। संकल्प और निश्चय तो कितने ही व्यक्ति करते हैं, लेकिन उन पर टिके रहना और अंत तक निर्वाह करना हर किसी का काम नहीं। विरोध, अवरोध सामने आने पर कितने ही हिम्मत हार बैठते हैं और किसी बहाने पीछे लौट पड़ते हैं, पर जो हर परिस्थिति से लोहा लेते हुए अपने पैरों अपना रास्ता बनाते हैं और अपने हाथों अपनी नाव खेकर उस पार तक पहुँचते हैं, ऐसे मनस्वी विरले ही होते हैं। मनोबल ऐसे मनस्वियों के साहस का नाम है, जो समझ-सोचकर कदम उठाते और उसे अपने संकल्प से पूरा करते हैं। नाविक क्यों निराश होता है! यदि तू हृदय निराश करेगा जग तेरा उपहास करेगा। यदि तूने खोया साहस तो ये जग और निराश करेगा, अरे अंधेरी रात के पार साहसी नव प्रभात होता है! आज विश्व एकता की शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता है। इसलिए जीवन कितने संकटों से घिरा हो विश्व एकता रूपी विचार के दीप जलाये रखना चाहिए। (2) अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है एक दीप जलायें :- ताजी हवा के लिए अपने घर की खिड़की खुली रखनी चाहिए। इसी प्रकार संसार से ज्ञान लेने के लिए मस्तिष्क के कपाट खुले रखना चाहिए। यह युग की मांग है अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है विश्व एकता के दीप जलायें। हमारे चारों ओर प्रकृति का आलोक बिखरा पड़ा है। इसे देखने के लिए अपनी आंखें खोलने की आवश्यकता है। अच्छाई का प्रकाश फैलाने के लिए अपने को समर्पित करने के लिए आगे आये। अन्धकार का कोई अस्तिव नहीं होता प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है। हमें सारे संसारवासियों से प्यार करना चाहिए तथा लोक कल्याण की भावना से संसार में रहना चाहिए। (3) वसुधा को कुटुम्ब बनाने का समय अब आ गया है :- वर्तमान में सारा विश्व छः महाद्वीपों रूपी छः कमरों के घर की तरह सिमटता जा रहा है। वसुधा को कुटुम्ब बनाने की कल्पना साकार होने जा रही है। ऐसे परिवारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है जिसमें जाति, धर्म, ऊँच-नीच, रंग-भेद का कोई अस्तित्व तथा अर्थ नहीं रह गया है। आधुनिक संचार माध्यमों ने विश्व की हजारों किलो मीटर की दूरियों को खत्म कर दिया है। मानव जाति को इस तीव्र संचार माध्यमों का शीघ्रता के साथ वसुधा को कुटुम्ब बनाने के लिए सदुपयोग करना चाहिए। (5) हमारे प्रत्येक कार्य विश्व एकता तथा लोक कल्याण की सुन्दर कृति बने :- हर व्यक्ति के अंदर से आवाज उठती है। इस आवाज का अस्तित्व अच्छे व्यक्ति तथा बुरे व्यक्ति दोनों में होता है। जिस काम को करने से विवेक रोके उसे नहीं करना चाहिए तथा जिस कार्य को करने को विवेक कहे उसे पूरे मनोयोग से करते हुए अपने प्रत्येक कार्य को विश्व एकता तथा लोक कल्याण की सुन्दर कृति बनाना चाहिए। जो प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को जान जाता है उसे धरती, आकाश एवं पाताल की कोई भी शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकती। (4) जिन्दगी का सफर करने वाले अपने विश्व एकता का दीया तो जला लें :- जगत भर की रोशनी के लिए करोड़ों की जिन्दगी के लिए सूरज रे जलते रहना, सूरज रे जलते रहना! हमेशा सोचिए! मैं भारत के लिए क्या कर सकता हूँ? मैं सारे विश्व के लिए क्या कर सकता हूँ? एक तरफ लोक कल्याण की ओर जाना वाला पथ है, एक तरफ एकमात्र अपने स्वार्थ की ओर जाने वाला पथ है। संसार में सदैव विश्व एकता अर्थात लोक कल्याण की उंगली पकड़कर चलना चाहिए। तभी हम भटकने से बच सकते है। जिन्दगी का सफर करने वाले अपने मन का दीया तो जला लें। रात लम्बी है गहरा अंधेरा, कौन जाने कहां हो सवेरा। रोशनी से डगर जगमगा लें, अपने मन में विश्व एकता का दीया तो जला लें। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विश्व एकता की शिक्षा संसार का सबसे शक्ति हथियार है जिससे विश्व में सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। धरती से युद्धों तथा आतंकवाद को समाप्त करने के लिए विश्व एकता की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचायें। ’’’’’ यह भी पढ़ें …. दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली लक्ष्मी की विजय

“वैलेन्टाइन दिवस” को” पारिवारिक एकता दिवस “के रूप में मनाये

संत वैलेन्टाइन को सच्ची श्रद्धाजंली देने के लिए 14 फरवरीको “वैलेन्टाइन दिवस” को” पारिवारिक एकता दिवस “के रूप में मनाये (1) ‘वैलेन्टाइन दिवस’ के वास्तविक, पवित्र एवं शुद्ध भावना को समझने की आवश्यकताः- संसार को ‘परिवार बसाने’ एवं ‘पारिवारिक एकता’ का संदेश देने वाले महान संत वैलेन्टाइन के ‘मृत्यु दिवस’ को आज भारतीय समाज में जिस ‘आधुनिक स्वरूप’ में स्वागत किया जा रहा है, उससे हमारी भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता प्रभावित हो रही है। संत वैलेन्टाइन ने तो युवा सैनिकों को विवाह करके परिवार बसाने एवं पारिवारिक एकता की प्रेरणा दी थी। इस कारण अविवाहित युवा पीढ़ी का अपने प्रेम का इजहार करने का ‘वैलेन्टाइन डे’ से कोई लेना-देना ही नहीं है। आज वैलेन्टाइन डे के नाम पर समाज पर बढ़ती हुई अनैतिकता ने हमारे समक्ष काफी असमंज्स्य तथा सामाजिक पतन की स्थिति पैदा कर रखी है। (2) विवाह के पवित्र बन्धन को ‘वैलेन्टाइन दिवस’ पूरी तरह से स्वीकारता एवं मान्यता देता है:- ‘वैलेन्टाइन डे’ विवाह के पवित्र बन्धन को पूरी तरह से स्वीकारता एवं मान्यता देता है। आज महान संत वैलेन्टाइन की मूल, पवित्र एवं शुद्ध भावना को भुला दिए जाने के कारण यह महान दिवस मात्र युवक-युवतियों के बीच रोमांस के विकृत स्वरूप में देखने को मिल रहा है। वैलेन्टाइन डे को मनाने के पीछे की जो कहानी प्रचलित है उसके अनुसार रोमन शासक क्लाडियस (द्वितीय) किसी भी तरह अपने राज्य का विस्तार करना चाहता था। इस लक्ष्य की पूर्ति के लिए वह संसार की सबसे ताकतवर सेना को बनाने के लिए जी-जान से जुटा था। राजा के मन में स्वार्थपूर्ण विचार आया कि विवाहित व्यक्ति अच्छे सैनिक नहीं बन सकते हैं। इस स्वार्थपूर्ण विचार के आधार पर राजा ने तुरन्त राजाज्ञा जारी करके अपने राज्य के सैनिकों के शादी करने पर पाबंदी लगा दी। (3) महान संत वैलेन्टाइन के प्रति सच्ची श्रद्धा प्रकट करने के लिए मनाया जाता था ‘वैलेन्टाइन दिवस’:- रोम के एक चर्च के पादरी महान संत वैलेन्टाइन को सैनिकों के शादी करने पर पाबंदी लगाने संबंधी राजा का यह कानून ईश्वरीय इच्छा के विरुद्ध प्रतीत हुआ। कुछ समय बाद उन्होंने महसूस किया कि युवा सैनिक विवाह के अभाव में अपनी शारीरिक इच्छा की पूर्ति गलत ढंग से कर रहे हैं। सैनिकों को गलत रास्ते पर जाने से रोकने के लिए पादरी वैलेन्टाइन ने रात्रि में चर्च खोलकर सैनिकों को विवाह करने के लिए प्रेरित किया। सम्राट को जब यह पता चला तो उसने पादरी वैलेन्टाइन को गिरफ्तार कर माफी मांगने के लिए कहा अन्यथा राजाज्ञा का उल्लघंन करने के लिए मृत्यु दण्ड देने की धमकी दी। सम्राट की धमकी के आगे संत वैलेन्टाइन नहीं झुके और उन्होंने प्रभु निर्मित समाज को बचाने के लिए मृत्यु दण्ड को स्वीकार कर लिया। संत वैलेन्टाइन की मृत्यु के बाद लोगों ने उनके त्याग एवं बलिदान को महसूस करते हुए प्रतिवर्ष 14 फरवरी को उनके ‘शहीद दिवस’ पर उनकी दिवंगत आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थनायें आयोजित करना प्रारम्भ कर दिया। इसलिए ऐसे महान संत के ‘शहीद दिवस’ पर खुशियां मनाकर उनकी भावनाओं का निरादर करना सही नहीं है। (4) वैलेन्टाइन डे को ‘आधुनिक’ तरीके से मनाना भावी पीढ़ी के प्रति अपराध:- ‘वैलेन्टाइन डे’ मनाने को तेजी से प्रोत्साहित करने के पीछे ‘वैलेन्टाइन डे’ कार्डो एवं महंगे उपहारों की ब्रिकी के लिए एक बड़ा बाजार विकसित करना एवं मंहगे होटलों में डिनर के आयोजनों की प्रवृत्तियों को बढ़ाकर अनैतिक ढंग से अधिक से अधिक लाभ कमाने वाली शक्तियां इसके पीछे सक्रिय हैं। विज्ञापन के आज के युग में वैलेन्टाइन बाजार को भुनाने का अच्छा साधन माना जाता है। मल्टीनेशनल कंपनियां अपने उत्पादों को बेचने के लिए अपना बाजार बढ़ाना चाहती हैं और इसके लिए उन्हें युवाओं से बेहतर ग्राहक कहीं नहीं मिल सकता। अतः ‘वैलेन्टाइन डे’ आधुनिक तरीकांे से मनाने को प्रोत्साहित करना भावी पीढ़ी एवं मानवता के प्रति अपराध है। अन्तिम विश्लेषण यह साफ संकेत देते हैं कि ‘वैलेन्टाइन डे’ के आधुनिक स्वरूप का भारतीय समाज एवं छात्रों में किसी प्रकार का स्वागत नहीं होना चाहिए क्योंकि यह मात्र सस्ती प्रेम भावनाओं को प्रदर्शित करने की छूट कम उम्र में छात्रों को देकर उनकी अनैतिक वृत्ति को बढ़ावा देता है। (5) परिवार, स्कूल एवं समाज को ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित करें:- हम संत वैलेन्टाइन के इन विचारों का पूरी तरह से समर्थन करते हैं कि विवाह के बिना किसी स्त्री-पुरूष में अनैतिक संबंध होने से समाज में नैतिक मूल्यों में गिरावट आ जाएगी और समाज ही भ्रष्ट हो जाएगा। इस समस्या के समाधान का एक मात्र उपाय है, बच्चों को बचपन से ही भौतिक, सामाजिक, मानवीय तथा आध्यात्मिक सभी प्रकार की संतुलित शिक्षा देकर उनका सर्वागीण विकास किया जाए। किसी भी बच्चे के लिए उसका परिवार, स्कूल तथा समाज ये तीन ऐसी पाठशालायें हैं जिनसे ही बालक अपने सम्पूर्ण जीवन को जीने की कला सीखता है। इसलिए यह जरूरी है कि परिवार, स्कूल तथा समाज को ईश्वरीय प्रकाश से प्रकाशित किया जाये। एक स्वच्छ व स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए हमारा कर्तव्य है कि हम विश्व के बच्चों की सुरक्षा व शांति के लिए आवाज उठायें और पूरे विश्व के बच्चों तक संत वैलेन्टाइन के सही विचारों को पहुँचायें जिससे प्रत्येक बालक के हृदय में ईश्वर के प्रति, अपने माता-पिता के प्रति, भाई-बहनों के प्रति और समाज के प्रति भी पवित्र प्रेम की भावना बनी रहे। (6) परिवार, विद्यालय तथा समाज से मिली शिक्षा ही मनुष्य के चरित्र का निर्माण करती हैः- किसी भी मनुष्य के सम्पूर्ण जीवन को तीन प्रकार के चरित्र निर्धारित करते हैं। पहला प्रभु प्रदत्त चरित्र, दूसरा माता-पिता के माध्यम से प्राप्त वांशिक चरित्र तथा तीसरा परिवार, स्कूल तथा समाज से मिले वातावरण से विकसित या अर्जित चरित्र। इसमें सबसे अधिक महत्वपूर्ण चरित्र तीसरा अर्थात् ‘अर्जित चरित्र’ होता है। बालक को जिस प्रकार की शिक्षा परिवार, विद्यालय तथा समाज से मिलती है वैसा ही उसका चरित्र निर्मित हो जाता है। इसलिए आज संसार में बढ़ते अमानवीय कृत्य जैसे हत्या, बलात्कार, चोरी, भ्रष्टाचार, अन्याय आदि शैतानी सभ्यता इन्ही तीनों क्लासरूमों से मिल रही उद्देश्यविहीन शिक्षा के कारण ही है। (7) ‘वैलेन्टाइन डे’ को ‘पारिवारिक एकता दिवस’ के रूप में मनाने की प्रतिज्ञा लें:- आइये, वैलेन्टाइन डे पर हम सभी लोग यह प्रतिज्ञा ले कि हम अपने मस्तिष्क से भेदभाव हटाकर सारी मानवजाति … Read more