बाल दिवस पर विशेष कविता : पढो और बढ़ो :डॉ भारती वर्मा बौड़ाई

पढ़ो, बढ़ो, जीवन के दुर्गम पर्वत चढ़ो। मिलें बाधाएँ रौंद उन्हें नव पथ गढ़ो। दिखे कहीं अन्याय, सहो न आगे बढ़ लड़ो। पथ अपना चुन, उस पर अकेले ही बढ़ो। अँधियारा, डरना कैसा? अपना दीपक आप बनो। रंग भले ही हों कितने भी बस भोलापन चुनो। ———————— कॉपीराइट@डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई।

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एक वर्ष : अटूट बंधन के साथ

प्रिय अटूट बंधन               आज तुम एक वर्ष के हुए और इसी के साथ हमारी मित्रता भी एक वर्ष की हुई। एक वर्ष की इस यात्रा में विभिन्न, पर नित नए कलेवर में नए-नए साहित्यिक पुष्प लिए तुम जब-जब हमारे सम्मुख आए….हमें सम्मोहित करते गए, अपने आकर्षण में बांधते गए। एक-एक कड़ी के रूप में … Read more

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अटल रहे सुहाग : मैं आ रहा हूँ…..डॉ भारती वर्मा बौड़ाई

       मैं सदा उन अंकल-आंटी को साथ-साथ देखा करती थी। सब्जी लानी हो, डॉक्टर के पास जाना हो, पोस्टऑफिस, बैंक, बाज़ार जाना हो या अपनी बेटी के यहाँ जाना हो……हर जगह दोनों साथ जाते थे।उन्हें देख कर लगता था मानो एक प्राण दो शरीर हों। आज के भौतिकवादी समय को देखते हुए विश्वास नहीं होता … Read more

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अंतरराष्ट्रीय वृद्ध जन दिवस परिचर्चा : जरा सी समझदारी : डॉ भारती वर्मा बौड़ाई

—-डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई–                                                           वृद्धावस्था ! जीवन का महत्वपूर्ण और अंतिम पड़ाव ! जीवन भर के सँजोये मधु-तिक्त अनुभवों का सामंजस्य लिए एक संपूर्ण संसार। हमारे बड़े … Read more

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