तृप्ति वर्मा की कवितायेँ

1 –   मेरी वृद्ध माँ        -×-×-×-×-×-×- उम्र के सारे पद चिन्हों को पार कर आँखो में आशाओं के अश्रु लिए माँ कहती …। मेरे वो हरे भरे बागीचे सूख रहे जिन्हें रोपती, सींचती थी मैं..। रंग बिरंगे फूलों से सजाती बदलते मौसम से बचाती थी मैं…। अब उन पंछियों ने भी अपना बसेरा कही ओर बना लिया, जो कभी शाखाओं पर चहचहाया करते थे । अब पेडों पर लगा वो फल ताकता मुझे सन्नाटे से । अब बागीचे में लगा वो झूला कभी हँसता नहीं । अब द्वार पर सजती रंगोली, दीप की जगह बैठी मैं ताकती ..। मैं पूछतीं, माँ ऐसा क्यों ? माँ आशाओं से भरे स्वर में कहती, जो सूख रहा बागीचा, वो मेरा परिवार है, जिसे सींचा था मैंने वर्षो लगन से । जो बसेरा बदलते पंछी, वे मेरे बेटे , जो लुप्त हुए बाहुल्य लोभ में…। वे रंग बिरंगे फूल मेरे नाती पोते, जो खिलते थे मेरी दुलार से…। अब झुलसते है प्रतिष्पर्धा के ताप से….। जिन फलों पर कभी वे लपकते थे, वे फल ताक रहे सन्नाटे से…। वे झूले जो स्पर्श से ही हस देते, खडे आज उदासी से…। इसलिए मैं ताकती द्वार पर, उस सावन की आश में , जिसकी बूँदे हरियाली दे, मेरे सूखते परिवार में…।                                  2- मन की उत्सुकता       -×-×-×-×-×-×-×-×- मैं अपने घर के चौखट पर खडी, खुद को बाहर निहारती और खोजती…। क्या हूँ मैं, कहा हूँ मैं…? अपने अस्तित्व को तलाशती, पूछती क्या मैंने वो पाया जो चाहा….। तभी एक आवाज आती, वो था मेरा मन, जो व्याकुलता से मेरी आँखों से झांक रहा था, जो खुद को बांधे, चौखट पर खडा बाहर निकलने को उत्सुक था । मैं जैसे ही मन को लिए बाहर आती, कुटुम्ब की आहट मुझे रोक लेती, मानो अनेको जिम्मेवारी, कर्तव्य, पहरेदार बने चौखट पर खडे हो….। मैं मन को आँखों में कैद कर लेती, खुद को चौखट के भीतर समेट लेती, मानो उडने की उत्सुकता लिए नवजात पंछी, जो गिरने के भय से घोसले में छिप जाता…..।                                                                     3 – चिंगारी    -×-×-×-×- हम फूल ना बने, फूलों में लगा वो कांटा बने. …। हम पत्थर नहीं उनकी रगड से पैदा वो चिंगारी बने…। हम वो बेटी बने जो कुरबानी दे परिवार के लिए….। हम वो पत्नी बने, जो चले पति की परछाई बन. …। हम वो बेटी की माँ बने जो सिखाएं उन्हें निर्भयता, संस्कार, हिम्मत, और आत्मविश्वास …। हम वो बेटों की माँ बने, जो सिखाएं उन्हें  संस्कार ,संवेदनशीलता , सम्मान देना….। ताकि बने वो जब भाई, पति, दोस्त या उच्चाधिकार, तो ना करें किसी महिला के साथ दुराचार. …। जब भी बात हो महिला दुराचार की पुरूष ही बनता मुख्य किरदार. …। क्यो ना हम उस जड में जाए जब जन्मे माँ पुत्र तो कानो में प्रभु के नाम से पहले महिला सम्मान के मंत्र सुनाएँ…..। क्योंकि जब महिला सम्मान हैं जाता, तो प्रभु भी वहां अदृश्य हो जाता. …।                                            4 – हाँ मुझे प्रेम है    -×-×-×-×-×-×-×- जब नारी अधिवेशन किसी मंच पर, असंख्य लोगों के बीच. …। छिपा ना सके नारी अपने भाव और बोले बेबाक….। तभी तंग विचार ग्रस्त हस्ताक्षेप करे मानों बिन बुलाए मेहमान. …। बांधे नारी लाज, हद, परिचय की गठरी, बरसाए ज्ञान मेह बिन तुफान. …। तभी तीव्र वेग बहते नारी के भाव, उडा ले जाती मेह की छीटों को, और कहती …….।        हाँ मुझे प्रेम हैं नारी के स्वतंत्र उडान से,        हाँ मुझे प्रेम हैं नारी के बेबाक अंदाज से,          हाँ मुझे प्रेम हैं नारी के मीरा, झाँसी की         रानी शैली से ,        हाँ मुझे प्रेम हैं नारी के वात्सल्य रूप से,        हाँ मुझे प्रेम हैं….। प्रेम हैं….। प्रेम हैं. …।                                                                                                                                                                        5 –  मेरी सुलह      -×-×-×-×-×-     जब भी तुम्हे सोच उठती हूँ ,     जरा तुमसे बात कर लूँ ,     पर शब्द गुम हो जाते,     उंगलियां खुद ही उठती ,     तुम्हें संदेश लिखने को,     पर वे थम से जाते…..।     अब जब भी तुमसे बात     करने का ख्याल आता,     दिल सहम जाता….।     वह पहले दिन की मुलाकात से     आज तक के संवाद में,     मैं केवल व्यंग पाती अपने लिए….।     तुम्हें व्यंग लगता मेरा प्रेम,     जो फूटता है तुम्हारे शब्दों से,     जो असहनीय हो चला मेरे लिए,     तुम्हारे सम्मुख होना मेरे खुद     के अंत का सबब ना बने,     क्योंकि एकतरफा प्रेम मेरा हैं     तुम्हारे लिए. …।     इसलिए तुम्हें अपने ख्वाबों,     ख्यालों में बसा लिया. ….।     वहीं तुमसे बाते, मुलाकातें कर     लेती हूँ क्योंकि वहाँ मैं बोलतीं    और तुम अनुरागी नैनो से निहारते     मुझे, कम से कम ये भ्रम तो मुझे     जीने की वजह देती हैं. …।     यही सुलह मैंने की है तुमसे…..।                                           तृप्ति वर्मा atoot bandhan editor.atootbandhan@gmail.com      

आधी आबादी :कितनी कैद कितनी आज़ाद ( तृप्ति वर्मा )

जरूरी है बराबर का पालन -पोषण  हमारा भारत स्वतंत्र है और स्वतंत्र भारत में अधिकांश आबादी पित्र सत्ता, रूढिवादी, अंधविश्वास, आडम्बरी परम्पराओं को संग लिए पिढी दर पिढी इसे निभाते देखा गया है।परंतु हमारा भारत आज स्वतंत्र भारत के साथ आधुनिक भारत भी बन चुका है भारत विज्ञान के क्षेत्र में भी परचम लहरा रहा है , इसके साथ ही पिता के सम्पत्ति का वारिस के लिए पुत्र का होना अनिवार्य है ऐसी धारणा भी खंडित हो चुकी है।आज लोग पुत्री के जन्म पर भी उतनी ही खुशियाँ और संतोष व्यक्त करते हैं जितनी की पुत्र के जन्म पर। किंतु प्रश्न यह है कि बेटा और बेटी को समान प्रेम और अधिकार की बात कहने और करने में कहीं अंतर तो नहीं। हम स्त्रियां सदैव पुरषों को ही स्त्री विरोधी खलनायक की भूमिका में रखते हैं जहां स्त्री दुराचार में पुरुष दोषी हैं वहीं यह भी देखा जाता है स्त्री स्वयं ही स्त्री विरोधी होती है      यहाँ मैं सारी स्त्रियों को या सारे पुरुषो को स्त्री विरोधी नहीं कह रही ,सामाज में ऐसे बहुत से स्त्री /पुरुष है जिन्होंने मिल कर स्त्रियों के उत्थान के लिए, शिक्षा के लिए , रोजगार में सहायता के लिए कार्य किया है, यहाँ तक कि बहुत सी ऐसी महिलाएं  हैं जो पुरुषों को पीछे छोड उँचे पद पर हैं , पर मैं यहाँ स्त्री /पुरुष के उस वर्ग या उन परिवारों को बिन्दू कर रही जो कम पढी लिखी है या पढी लिखी तो है,पर  स्वतंत्रता की मात्र बाते करती है पर मानसिक रूप से , विचारों से  स्वतंत्र नहीं।हमें यही एहसास होता है कि ‘स्त्री की स्वतंत्रता अधीनता के शर्त पर’ ही है हम देखते हैं कि आज भी स्त्री आधुनिक तकनीकों से लैस जीवन जीती है पर कैद मानसिकता के लोगों से घिरा जीवन उसकी स्वतंत्रता उडान को बाधित करता है। आज कुछ स्त्री आधुनिक भारत में जन्मी नयी पीढी के साथ चली , शिक्षित हुईं, सपने बुने पर सपने सच करने की स्वतंत्रता केवल शब्दों तक ही सीमित रही स्त्री को स्वतंत्रता केवल अधीनता के शर्त पर ही मिली है ऐसी स्त्रिया समाज में अनगिनत हैं।मैं यहां आधुनिक तकनीकी युग में सफल महिलाओं की बात नहीं करूँगी , मै यहाँ उन महिलाओं की बात करूँगी जो स्वतंत्र, आधुनिक, और वैज्ञानिक क्षेत्र में आगे रहने वाले भारत में आज भी अपनी छोटी इच्छा को पूरा करने , अपनी पहचान बनाने के लिये केंचुए की तरह रेंगती हुई संघर्ष कर रही हैं। ऐसी ही कहानी अभिलाषा की है जो एहसास दिलाती है की आज भी महिलाएं स्वतंत्र नहीं। अभिलाषा- एक मल्टी काम्पलेक्स सीटी में रहने वाली पिता सरकारी उच्चाधिकार , माँ कम पढी लिखी सामान्य सोच,  एक भाई आनंद। ‘अभिलाषा’ का घर बिल्कुल आधुनिक साज सज्जा से पूर्ण, आधुनिक उपकरणों से लैस। ‘अभिलाषा’ के परिवारजन शिक्षित सामान्य सोच वाले। ‘अभिलाषा’ के पिता की बदली होती है और अभिलाषा का पूरा परिवार बनारस शहर में आ बसता है।अभिलाषा की उम्र 8 वर्ष और भाई आनंद की उम्र 14 वर्ष। एक दिन अभिलाषा के घर उनके पडोसी आते हैं बातों -बातें में अभिलाषा के पिता कहते हैं पिता – हम बेटा -बेटी में कोई अंतर नहीं करते हमारे लिए दोनों ही बराबर है, बस ऐसे ही खुशी से जीवन कट जाए । पडोसी – सर नये शहर में आए हैं बच्चो का एडमिशन कहा करा रहे ? अफसर पिता – बेटे का एडमिशन शहर के टाप कालेज में कराया है घर से 45 मिनट का रास्ता है एक बाइक खरीद दिया है उसी से चला जाएगा पडोसी – और बेटी का एडमिशन अफसर पिता – बेटी को पास के हिन्दी स्कूल में डाला है वक्त कहा है बेटी को लेकर स्कूलों में दौड लगाए। अभिलाषा ये सुन दौड कर माँ के पास जा कहती हैं अभिलाषा –  माँ वो हिंदी स्कूल मेरे पुराने अंग्रजी स्कूल सा नहीं मुझे वहाँ कुछ समझ में नहीं आता। माँ जो बिल्कुल साधारण सोच की जिसने जिंदगी में परिवार को बनाने खिलाने के अलावा कोई भी आकांक्षा नहीं जताई , वो अपनी बच्ची के मन को ना समझ पायी , और कहा माँ- अभिलाषा परेशान मत करो , ज्यादा जानने लगी हो, पापा ने कुछ सोच कर ही एडमिशन कराया होगा। अभिलाषा उसी स्कूल में जाने लगती है और आगे की पढाई करते हुए दसवीं कक्षा में पहुंच जाती हैं। अब उसे अपना विषय चुनना होता है अभिलाषा विज्ञान को आगे की पढाई के लिए चुनती है अब उसे पढाई में कठिन परिश्रम की अवश्यकता है सहेलियों की मदद से घर से कुछ दूर ट्यूशन की व्यवस्था होती है । अभिलाषा रोज सुबह 5 बजे से 9 बजे तक ट्यूशन में ही रहती  एक दिन अभिलाषा 5 बजे सुबह ट्युशन जाती है सडक पर सन्नाटा पसरा सामने से एक लडका अचानक से आ अभिलाषा से टकरा जाता और कुछ  दुर्व्यवहार कर तुरंत भाग जाता , अभिलाषा साक हो जाती आँखो में आँसू भर जाते जो कदम पढने को जा रहे थे अब वो वापस घर को लौट जाती है अभिलाषा तुरन्त अपने माँ ,पिता ,भाई को सारी बातें कहती हैं , अभिलाषा और उसका पूरा परिवार सदमे में , अभिलाषा रोती है और सोचती आज क्या सोच जा रही थी और क्या हो गया , पिता और भाई उस लडके को खोजते पर वह दूर भाग चुका था।अभिलाषा कुछ दिनों तक घर में ही रहती हैं फिर हिम्मत कर कालेज जाना शुरू करती पर उसका पूरा परिवार डरा हुआ।अब मानो अभिलाषा के पैरों में जंजीर लग गई हो , परिवार का बार -बार कहना तुम्हें यहाँ नहीं जाना तुम्हें वहां नहीं जाना “यहां पुरूषों को सोचने की जरूरत है कि उनके एक दुर्व्यवहार से लडकी का पूरा जीवन कितना प्रभावित हो जाता है” अब अभिलाषा के साथ हुए इस घटना के बाद पूरा परिवार उसे कहता है –  तुम विज्ञान की पढाई छोड दो और आसान विषय ले अपनी आगे की पढाई खत्म करो, बार -बार बाहर आना जाना तुम्हारे बस की बात नही। “अब यहां समस्या का दूसरा समाधान हो सकता था परिवार नकारात्मक रुख अपनाने के बजाए सकारात्मक और हिम्मत का साथ देता तो अभिलाषा का आज स्वपन उसकी खुशियाँ छूटती नहीं।” ऐसी परिस्थिति में माँ … Read more