हर आँगन में दीप जलायें

उजियारे से भरें दिशाएँ हर आँगन में दीप जलायें आओ दीपावली मनायें।। गली-गली को  करें  सुसज्जित कोना-कोना करें प्रकाशित तारागण जिनसे शर्मायें आओ दीपावली मनायें।। अंतसतम को करें  तिरोहित नेह-शिखा को करें  प्रसारित आपस के मन-भेद मिटायें आओ दीपावली मनायें।। हर परिसर को करें  सुवासित शुभग कामना करें  प्रचारित रंगोली के रँग फैलायें आओ दीपावली मनायें।। झोपड़ियों में निर्धन के हित आनंदित क्षण करें  समाहित मधुर बोलियाँ मन हर्षायें आओ दीपावली मनायें।।  भवदीया  भावना तिवारी

धनतेरस : दीपोत्सव का प्रथम दिन

       दीपोत्सव के प्रथम दिवस धनतेरस पर निबंध                    यूँ तो खुशियों का और त्योहारों का अटूट बंधन है | इन्ही ख़ुशी के पलों को सहेजने के लिए हर धर्म में अनेकानेक त्यौहार मनाये जाते हैं | इन्हीं त्योहारों की कड़ी में से एक त्यौहार हैं धनतेरस | धनतेरस हिंदुओं  का एक प्रमुख त्यौहार है | यह कार्तिक मास की  कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी को मनाया जाता है | इसी दिन से पांच दिन मनाये जाने वाले दीपोत्सव का प्रारंभ  भी होता है | धनतेरस शब्द धन +तेरस से मिल कर बना है | धन से सम्बंधित होने के कारण यह पर्व व्यापारियों में विशेष रूप से लोकप्रिय है | परन्तु इस दिन विशेष रूप से धनवंतरी जी की पूजा की जाती  है | यमराज जी की पूजा का भी विधान है | क्यों होती है धन्वंतरी जी की पूजा                           धन या संपत्ति कई प्रकार की होती है | हमारे पुराणों  में पहला धन स्वास्थ्य धन माना गया है | जब व्यक्ति निरोग होगा उसका स्वास्थ्य अच्छा होगा तभी वो पर्व त्यौहार या धन का आनंद ले सकता है | इसलिए दीपोत्सव में सबसे पहले धनतेरस को स्थान दिया गया | धन्वंतरी चिकित्सक हैं व् विष्णु के अंशावतार हैं | समुद्र मंथन के समय वह हाथ में अमृत कलश ले कर निकले थे | जिन्होंने अमृत देवताओं को देकर उन्हें अमर कर दिया था | धन्वंतरी की पूजा अच्छे स्वास्थ्य की पूजा है | स्वास्थ्य अच्छा है तो हर तरह का धन कमाया जा सकता है व् उसका आनंद उठाया जा सकता है | साथ ही इस दिन यमराज के नाम भी एक दीपक जलाया जाता है | इसे मुख्य द्वार पर रखा जाता है | ये प्रतीकात्मक है की इस घर में धन्वंतरी का पूजन हो रहा है | हे यम देव आप प्रसन्न हों व् इस घर में सबको जीवन दान देते हुए द्वार से लौट जाएँ | धनतेरस को क्यों होता है यमदीप का दान  यम दीप दान के संदर्भ में एक पौराणिक कथा प्रचिलित है | बहुत समय पहले की बात है एक हिम नाम का राजा था | जिसके कोई संतान नहीं थी | बहुत पूजा पाठ  धर्म कर्म करने के पश्चात उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई |  युवराज की कुंडली देखते ही पंडित आश्चर्य में पड़ गए | कुंडली के अनुसार युवराज की शादी के चौथे दिन उसकी मृत्यु होनी थी | समय बीतता गया | युवराज बड़ा हुआ और उसका विवाह हुआ | राजा – रानी ने उसकी पत्नी को सब बात बता दी | विवाह का चौथा दिन भी आ गया | राजा-रानी बहुत चिंतित थे | परन्तु नव ब्याहता पत्नी उन दोनों को दिलासा दे रही थी | उसे माँ लक्ष्मी की भक्ति पर भरोसा था |रात के समय जब सब सो गए तो राजकुमार की पत्नी ने माँ लक्ष्मी के भजन गाने शुरू कर दिए | व् सारा महल दीपों से सजा दिया | जब राजकुमार को लेने यमदूत आये तो उनकी आँखे दीपों की रोशिनी से चुंधिया गयी | वो खाली हाथ लौट गए | तब यमराज स्वयं सर्प का भेष धर राजमहल में पहुंचे | पर जब वो राजकुमार के कक्ष  की ओर अगला कदम रखने जा रहे थे | तभी राजकुमारी के भजनों के मीठे सुर ने उनका ध्यान खींच लिया वो मंत्रमुग्ध से राजकुमारी के पास फूलों व् दीपों के पीछे छुपे भजन सुनते रहे | सारी  रात गुज़र गयी व् राजकुमार की मृत्यु का समय भी निकल गया |यमराज खाली हाथ लौट गए | राजकुमार दीर्घायु हो गया | यम को दीपदान इसी उद्देश्य से किया जाता है की परिवार में सब दीर्घायु हों | इसके लिए सरसों के तेल का दीपक मुख्य द्वार पर दक्षिण की दिशा की ओर मुंह करके रखा जाता है | धनतेरस की पौराणिक कथा धनतेरस की पौराणिक कथा के अनुसार राजा बलि ने देवताओं का सारा धन संपत्ति छीन ली थी | उसके बाद निश्चिन्त हो कर राजा बलि यज्ञ करा रहा था | भगवान् विष्णु देवताओं की सहायता करने के लिए वामन अवतार ले कर बलि के पास गए | बलि ने उनकी आवभगत की | परन्तु राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान् विष्णु को पहचान लिया | उसने बलि को समझाया की ये विष्णु हैं, इन्हें वामन समझ कर कुछ भी दान न दें | पर राजा बलि ने उनकी बात मानने से इनकार कर दिया उन्होंने कहा की भले ही ये विष्णु हों पर मेरे द्वार पर वामन भेष में आये हैं तो मैं इन्हें दान अवश्य दूंगा | राजा बलि जब दान का संकल्प लेने के लिए कमंडल उठा कर आचमन के लिए जल लेने वाले थे | तभी उन्हें रोकने के लिए शुक्राचार्य  अति लघुरूप में कमंडल में घुस  गए व् उसकी टोंटी में ऐसे बैठ गए की जल न निकल सके | भगवान् विष्णु उनकी चाल  समझ गए | उन्होंने शुक्राचार्य को वहां से हटाने के उद्देश्य से एक कृष के तिनके  के सहारे से टोंटी में छेद किया | वो तिनका शुक्राचार्य जी की आँख में लग गया | शुक्राचार्य जी की एक आँख फूट गयी वो बिलबिलाते हुए बाहर निकले | उसे समय बलि ने दान का संकल्प ले लिया | भगवान् विष्णु ने तीन पग भूमि मांगी | पहले पग में उन्होंने सारी  धरती नाप ली | दूसरे में सारा आकाश  | अब तीसरा पग रखने के लिए कोई जगह ही नहीं बची तो बलि ने अपना शीश आगे कर दिया | भगवान् ने अपना पैर उसके शीश पर रख दिया | इस तरह राजा बलि को परस्त कर भगवान् विष्णु ने देवताओं की संपत्ति को मुक्त कराया | उस दिन कार्तिक मॉस की कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी थी | तभी से देवताओं को धन संपत्ति मिलने की ख़ुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है | प्रतीक के रूप में सब लोग कुछ नया धातु का सामन खरीद कर लाते हैं | धनतेरस की पूजन विधि १)मंदिर की सफाई करने पश्चात् स्वच्छ कपडा बीछा  कर मिटटी के हठी व् धन्वंतरी भगवान् की मूर्ति स्थापित करें   २ ) ताम्बे की आचमनी से जल का आचमन करें ३) प्रथम श्री गणेश जी का पूजन व् ध्यान करें , … Read more

दीपावली पर 11 नए शुभकामना संदेश

दीपावली का त्यौहार खुशियों का त्यौहार है | ऐसे में हम अपने मित्रों , सगे संबंधियों  को शुभकामनाएं भेजते हैं | आज हम आपके लिए 11 नए शुभकामना संदेश   ले कर आये हैं |जिन्हें आप अपने मित्रों परिवारजनों को भेजिए व् दीपावली की खुशियों में वृद्धि  कीजिये | 1) दीपावली पर शुभकामना संदेश  प्रेम का घृत भरा हो , नेह की बाती बने  दीप श्रद्धा का जलाना , अबकी दीवाली पर  दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं 2 ) दीपावली का शुभकामना संदेश  तम हरे अज्ञान का जो ज्ञान के प्रकाश से एक दिया तुम भी जलाओ एक दिया हम भी जलायें हम दिवाली यूँ मनाएं … शुभ दीपावली     ३ ) दीपावली पर शुभकामना संदेश  भस्म हों सब बैर- भाव आलोकित हो गाँव -गाँव अज्ञान का तम मिटे अबकी दिया कुछ यूँ जले शुभ दीपावली 4 ) दीपावली पर शुभकामना संदेश  जैसे तम हरता है दीपक खुशियाँ हरें जीवन का हर गम झिलमिल हो आपका घर – आँगन सहस्त्र शुभकामनायें देते हैं हम शुभ दीपावली  5) दीपावली पर शुभकामना संदेश  हे प्रभु वरदान दो की दीप सम हब सब बनें खुद जलें बेशक मगर अज्ञानता का तम हरें शुभ दीपावली  6) दीपावली पर शुभकामना सन्देश  गणपति दें विद्या की छाया माँ लक्ष्मी दें वैभव माया खुशियाँ बरसे चारों ओर शुभकामनाओं का हो इतना जोर शुभ दीपावली  7 ) दीपावली पर शुभकामना संदेश  सजा लो पूजा अब की थाली रख लो अक्षत कुमकुम रोली खन – खन करती अबकी बार आयें श्री लक्ष्मी आपके द्वार शुभ दीपावली    8) दीपावली पर शुभकामना संदेश  आयें गणपति विघ्नों को हरने माता लक्ष्मी धन धान्य भरने आये दीपक तम को हरने आयें खुशियाँ मन को भरने दीपावली का यह त्यौहार बहुत ख़ास हो अबकी बार हैप्पी दीपावली  9 ) दीपावली पर शुभकामना संदेश  दीप कुछ ऐसा जले सब अंधियारा मिटे हारे अमावस की रात काली बहुत शुभ हो आपकी दिवाली हैप्पी दिवाली  10) दीपावली पर शुभकामना संदेश  खुशियाँ फुलझड़ियों  सी छूटें धन – धान्य  के अनार फूटें चले आशीर्वादों की चकरी सफलताओं की फूटे सुतली नहीं पटाखों का हो शोर इको फ्रेंडली दिवाली का है दौर शुभ दीपावली   11)दीपावली पर शुभकामना संदेश  बहुत याद आती है मुझको माँ फिर पहले की दीवाली नहीं धुआँ था न कोई शोर मधुर घंटियाँ बजती चहुँ ओर दसियों पकवानों से मीठी थी तेरी एक थाली लड्डू वाली एस बार फिर माँ की दिवाली को लौटाएं इको फ्रेंडली दीवाली मनाएं दीपावली पर शुभकामना संदेशों की रचनाकार व् प्रस्तुतिकरण  वंदना बाजपेयी मित्रों  आप सभी को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें | आप की दीपावली शुभ व् मंगलमय हो | उम्मीद है की आपको ये शुभकामना सन्देश अच्छे लगे होंगे | पसंद आने पर शेयर करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |आप इन शुभकामना संदेशों को अपने मित्रों व् संबधियों को भेजें अपने लैप टॉप व् मोबाइल का कवर बनाएं | * अगर आप अपनी वेबसाईट या कामर्शियल पर्पस के लिए इन शुभकामना संदेशों का उपयोग करना कहते हैं तो आप इन्हें इस्तेमाल कर सकते हैं  | बस आपको अटूट बंधन को क्रेडिट देना होगा 

मनायें इको फ्रेंडली दीपावली

दीपावली का त्यौहार यानी खुशियों का त्यौहार | पांच दिन चलने वाले इस दीपोत्सव का बच्चे तो बच्चे बड़ों को भी इंतज़ार रहता है | क्यों न हो | घर का रंग – रोगन , साफ़ – सफाई नए कपडे , गहने , घर का सामान , मित्रों पड़ोसियों को दिए जाने वाले गिफ्ट्स के साथ  माँ लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी | दीप बिजली की झालरों से रात के अंधकार को   पछाड़ती  दीपावली |खुशियों को मनाने के कितने रंग हैं |कितना ढंग हैं | क्या जरूरत है इसमें पटाखों के शोर और धुएं की |क्यों न हम इको फ्रेंडली दीपावली मनाएं |   इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में एक नया  कदम  इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में पटाखों की बिक्री व् उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगायी गयी रोक एक अच्छा फैसला है |पिछले साल दीपावली और उसके बाद पंजाब में जलाई गयी फसलों से दिल्ली किस तरह गैस चैंबर में तब्दील हुई थी | इसको भुक्त भोगी ही बता सकता है | हालंकि ये फैसला पूरे देश में और हर त्यौहार पर होना चाहिए | पटाखों का कोई धर्म नहीं होता पर पर्यावरण की रक्षा  करना हमारा धर्म है | दीपावली या अन्य त्योहारों पर पटाखों को जलाने के अलावा अब बात- बात पर पटाखों को जलाने का फैशन चल पड़ा है | क्रिकेट मैच में जीत तो जीत 4 या 6 रन बनने  पर भी लोग पटाखे छोड़ने लगते हैं | हमेशा से नहीं जलाए जाते थे पटाखे  दीपावली पर हमेशा से पटाखे नहीं जलाए जाते थे | शगुन के नाम पर ये कब शुरू हुए कहा नहीं जा सकता | अपने बचपन की दीपावली याद करती हूँ तो बहुत कम पटाखे जलाए जाते थे | जब इसके प्रदूषण के रूप में दुष्परिणाम सामने आने लगे तो खिलाफ जन – जागरूकता के अभियान चलाये जाने लगे | “ से नो टू क्रैकर्स” अभियान लगभग हर साल हर स्कूल में चलाया जाता है | बच्चे स्लोगन चार्ट बना कर अपना होम वर्क पूरा कर लेते हैं |हकीकत में  हर साल जलाए जाने वाले पटाखों की संख्या  पिछले साल से बढ़ रही है | कुछ % लोगों को बात समझ में आई है | फिर भी ये सच है की इसे हम सामाजिक रूप से समझा – बुझा कर कम करने में असफल रहे हैं | कानूनन बैन होने के बाद शायद कुछ कमी आये | पटाखों से होती हैं दुर्घटनायें  पर्यावरण के अतिरिक्त पटाखे धन का अपव्यय भी हैं | हालांकि ये किसी का निजी फैसला मान कर अनदेखा किया जा सकता है | परन्तु पटाखों के कारण बहुत सी दुर्घटनायें भी घटती है |कितने लोग दीपावली के दिन बच्चों को लेकर डॉक्टर के यहाँ दौड़ते हैं | इसके अतिरिक्त सांस लेने में परेशानी , दमा , अस्थमा , ब्लड  प्रेशर , आदि के मरीजों को भी पटाखों से दिक्कत होती है |  कितने बच्चे पटाखे की फैक्ट्री में काम करते हैं व् उन्हें बनाते समय और पटाखे जलाते समय घायल हो जाते हैं | जरा सी थ्रिल के नाम पर हम अपने बच्चों के हाथों में ऐसी चीज दे हीं क्यों जो उन्हें घायल कर सकती है | पर्यावरण के नुक्सान के आगे कम है व्यापारियों का नुक्सान  जिन लोगों की पटाखों की फैक्ट्री है , जो लोग वहां काम करते हैं या जिन व्यापारियों ने दीपावली के मद्देनज़र पहले से ही पटाखे खरीद लिए हैं | उनकों जो नुक्सान हुआ है | उसमें सरकार कुछ राहत दे तो बेहतर है | हालांकि पटाखों से जो पर्यावरण को नुक्सान पहुँचता है उससे ये नुक्सान बहुत कम है |क्योंकि व्यापारियों का नुक्सान तो अल्पकालिक है | पर पर्यावरण को जो नुक्सान झेलना पड़ेगा वो बहुत लम्बे समय तक असरकारी होगा | क्या हम अपने बच्चों के लिए ऐसी पृथ्वी छोड़ना  चाहते हैं जहाँ उनका दम घुटे |  दीपावली ही नहीं हर त्यौहार व् अवसर पर लगे पटाखों पर बैन                                          ये सच है की अगर दीपावली पर ही पटाखों पर बैन लगता है तो बहुत से लोगों को ये लग सकता है की हमारे त्यौहार पर ही सरकार विरोध करती है | जबकि पटाखे अनेक अवसरों पर छुडाये जाते हैं | और पटाखों का धुंआ दीपावली , क्रिसमस ईद और न्यू इयर में पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने में भेद नहीं करता है | अतः जरूरी है की साल भर पटाखों पर बैन लगे | और पर्यावरण  की रक्षा हो |                         मित्रों , दीपावली खुशियों का त्यौहार है | परिवार और अपनों के साथ बिताये गए खुशनुमा पलों वक्त का धमाका पटाखों के धमाके से कहीं ज्यादा कहीं ज्यादा जोरदार है और इको फ्रेंडली भी |  नीलम गुप्ता 

आओ मिलकर दिए जलाए

भारतीय संस्कृति में अक्टूबर नवम्बर माह का विशेष महत्व् है,क्योंकि यह महीना प्रकाशपर्व दीपावली लेकर आता है.दीपावली अँधेरे पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है भौतिक रूप से दीपावली हर साल सिर्फ एक साँझ की रौशनी लेकर आती है और साल भर के लिए चली जाती है,किन्तु प्रतीकात्मक रूप से उसका सन्देश चिरकालिक है.प्रतिवर्ष दीपपर्व हमें यही सन्देश देता है कि अँधेरा चाहे कितना ही सघन क्यों न हो,चाहे कितना ही व्यापक क्यों न हो और चाहे कितना ही भयावह क्यों न हो,लेकिन उसे पराजित होना ही पड़ता है.एक छोटा सा दीप अँधेरे को दूर करके प्रकाश का साम्राज्य स्थापित कर देता है. अंधेरे का खुद का कोई अस्तित्व नहीं होता,खुद का कोई बल नहीं होता,खुद की कोई सत्ता नहीं होती.अँधेरा प्रकाश के अभाव का नाम है और सिर्फ उसी समय तक अपना अस्तित्व बनाये रख सकता है,जब तक प्रकाश की मौजूदगी न हो.अँधेरा दिखाई भले ही बहुत बड़ा देता हो,लेकिन इतना निर्बल होता है कि एक दीप जलते ही तत्काल भाग खड़ा होता है.दीपक प्रकाश का प्रतीक है और सूर्य का प्रतिनिधित्व करता है। दीपक से हम ऊंचा उठने की प्रेरणा हासिल करते हैं। शास्त्रों में लिखा गया है ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय’, अर्थात अंधकार से प्रकाश की ओर चलने से ही जीवन में यथार्थ तत्वों की प्राप्ति सम्भव है। अंधकार को अज्ञानता, शत्रु भय, रोग और शोक का प्रतीक माना गया है। देवताओं को दीप समर्पित करते समय भी ‘त्रैलोक्य तिमिरापहम्’ कहा जाता है, अर्थात दीप के समर्पण का उद्देश्य तीनों लोकों में अंधेरे का नाश करना ही है। आज बाहर के अँधेरे से ज्यादा भीतर का अँधेरा मनुष्य को दुखी बना रहा है.विज्ञानं ने बाहर की दुनिया में तो इतनी रौशनी फैला दी है,इतना जगमग कर दिया है कि बाहर का अँधेरा अब उतना चिंता का विषय नहीं रहा,लेकिन उसी विज्ञानं की रौशनी की चकाचौंध में भीतर की दुनिया हीन से हीनतर बनती जा रही है,जिसका समाधान तलाश पाना विज्ञान के बस की बात नहीं है.भीतर के अँधेरे से मानव जीवन की लड़ाई बड़ी लम्बी है.जब भीतर का अँधेरा छंटता है.तो बाहर की लौ जगमगा उठती है ,नहीं तो बाहर का घोर प्रकाश भी भीतर के अँधेरे को दूर नहीं कर पाता.  हममे से कितने हैं जो हैप्पी दीपावली के शोर के बीच सघन निराशा को अपने अन्दर दबाये रहते हैं | उनके लिए दीपावली मात्र एक परंपरा है जिसे निभाना है | यंत्रवत दीपक ले आये , यंत्रवत झालरे सजा दीं  व् यंत्रवत हैप्पी दीपावली का उद्घोष कर दिया |सच्चाई ये है की जब अँधेरा भीतर की दुनिया में हो सब कुछ यंत्रवत हो जाता है |भाव्हें मशीन |  तभी हमारी संस्कृति में आत्मदीपो भव की परिकल्पना की गयी है | स्वयं दीपक बन जाना | स्वयं भी प्रकाशित होना और दूसरों को भी प्रकाशित करना | जैसा की कबीर दास जी कहते हैं की …  जब मैं था तब हरि नहीं , अब हरी हैं मैं नाहीं  सब अंधियारा मिट गया जब दीपक देखा माहिं || पर ये दीपक दिखे कैसे ? क्या ये इतना सहज है | जीवन के तमाम जरूरी गैर जरूरी कर्तव्य व् रिश्तों के बंधन हमें रोकते हैं | अत : अन्दर तक ज्ञान का प्रकाश नहीं पहुँच पाता | परन्तु आत्म दीपक बनने में एक शाब्दिक बाधा है |  शाब्दिक इसलिए क्योंकि हम शब्द को पकड़ते हैं अर्थ को नहीं | जब हम आत्म दीप बनने की राह पर होते हैं तो हम दिया बन जाते हैं | मिटटी का दिया | जो दूसरों को प्रकाश देता है पर उसके खुद के नीचे अँधेरा होता है | ऐसा क्यों है ? दीपक बन गए यानी मात्र प्रवचन दिए | खुद में सुधार नहीं किया | अपने अन्दर अँधेरा ही रहा | मिटटी का दीप अर्थात शरीर बोध | आत्मदीप बनने का अर्थ है ज्योति बन जाना | ज्योति के नीचे अँधेरा नहीं होता | सिर्फ प्रकाश होता है | ज्योति के नीचे अँधेरा हो ही नहीं सकता | ज्योति सिर्फ प्रकाश  स्वरुप  है | दीपक उल्टा भी हो तो भी ज्योति ऊपर की ओर भागती है | क्योंकि उसने दीपक अर्थात मिटटी से स्वयं को अलग कर लिया है |शरीर से ऊपर आत्मतत्व को पहचान लिया है | पर कैसे ? वस्तुतः भीतर की दुनिया का अँधेरा सिर्फ सकारात्मक सोच और प्रेरक विचारों से ही दूर किया जा सकता है.भीतर का अँधेरा दूर करने के लिए आत्मतत्व को पहचानना जरूरी है और ” अटूट बंधन ” का सिर्फ यही मकसद है कि सकारात्मक चिंतन का इतना प्रचार-प्रसार हो कि पूरी धरा से निराशा के अँधेरे का अस्तित्व ही ख़त्म हो जाये.हमारी आपसे यही अपील है कि एक दिया हमने जलाया है और आप भी हमारे साथ आइये,एक दिया आप भी जलाइए और दीप से दीप जलाने का यह सिलसिला तब तक चलता रहे,तब तक मानव मन से अँधेरे का समूल नाश नहीं हो जाता | आप सभी को दीप पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ओमकार मणि त्रिपाठी  यह लेख लखनऊ से प्रकाशित दैनिक  समाचार पत्र ” सच का हौसला ” व् राष्ट्रीय  हिंदी मासिक पत्रिका ” अटूट बंधन ” के संपादक स्व . श्री ओमकार मणि त्रिपाठी जी का है | स्व . त्रिपाठी जी ने अपने जीवन काल में तमाम पुस्तकों का अध्यन किया व्अ ज्ञान को ही सर्व श्रेष्ठ माना | ज्ञान का प्रचार प्रसार उनके जीवन का उद्देश्य था | अपनी अनुपम सोंच व् जुझारू व्यक्तित्व के लिए सदा जाने जाते रहेंगें | हम आपको इस ब्लॉग के माध्यम से उनके लेखों व् विचारों से समय – समय  पर आपको परिचित करवाते रहेंगे | उम्मीद है ” आओ मिलकर दिए जलायें ” लेख आपको पसंद आया होगा | पसंद आने पर इसे शेयर करें व् हमारा फेसबुक पेज लाइक करें |  वैचारिक लेखों व् उत्तम साहित्य के लिए आप हमारा ई मेल सब्स्क्रिप्शन लें व् समस्त सामग्री को सीधे अपने ई मेल पर प्राप्त करें | यह भी पढ़ें ……… दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली लक्ष्मी की विजय

दीपावली पर जलायें विश्व एकता का दीप

– डॉ. जगदीश गांधी, शिक्षाविद् एवं संस्थापक-प्रबन्धक, सिटी मोन्टेसरी स्कूल, लखनऊ (1) कितने भी संकट हो प्रभु कार्य समझकर विश्व एकता के दीप जलाये रखना चाहिए :- कितने ही महान कार्य संसार में सम्पन्न हुए और व्यापक बने हैं, जिनके मूल में मनस्वी लोगों के संकल्प और प्रयत्न ही काम करते हैं। संकल्प और निश्चय तो कितने ही व्यक्ति करते हैं, लेकिन उन पर टिके रहना और अंत तक निर्वाह करना हर किसी का काम नहीं। विरोध, अवरोध सामने आने पर कितने ही हिम्मत हार बैठते हैं और किसी बहाने पीछे लौट पड़ते हैं, पर जो हर परिस्थिति से लोहा लेते हुए अपने पैरों अपना रास्ता बनाते हैं और अपने हाथों अपनी नाव खेकर उस पार तक पहुँचते हैं, ऐसे मनस्वी विरले ही होते हैं। मनोबल ऐसे मनस्वियों के साहस का नाम है, जो समझ-सोचकर कदम उठाते और उसे अपने संकल्प से पूरा करते हैं। नाविक क्यों निराश होता है! यदि तू हृदय निराश करेगा जग तेरा उपहास करेगा। यदि तूने खोया साहस तो ये जग और निराश करेगा, अरे अंधेरी रात के पार साहसी नव प्रभात होता है! आज विश्व एकता की शिक्षा की सर्वाधिक आवश्यकता है। इसलिए जीवन कितने संकटों से घिरा हो विश्व एकता रूपी विचार के दीप जलाये रखना चाहिए। (2) अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है एक दीप जलायें :- ताजी हवा के लिए अपने घर की खिड़की खुली रखनी चाहिए। इसी प्रकार संसार से ज्ञान लेने के लिए मस्तिष्क के कपाट खुले रखना चाहिए। यह युग की मांग है अन्धकार को क्यों धिक्कारे अच्छा है विश्व एकता के दीप जलायें। हमारे चारों ओर प्रकृति का आलोक बिखरा पड़ा है। इसे देखने के लिए अपनी आंखें खोलने की आवश्यकता है। अच्छाई का प्रकाश फैलाने के लिए अपने को समर्पित करने के लिए आगे आये। अन्धकार का कोई अस्तिव नहीं होता प्रकाश का अभाव ही अन्धकार है। हमें सारे संसारवासियों से प्यार करना चाहिए तथा लोक कल्याण की भावना से संसार में रहना चाहिए। (3) वसुधा को कुटुम्ब बनाने का समय अब आ गया है :- वर्तमान में सारा विश्व छः महाद्वीपों रूपी छः कमरों के घर की तरह सिमटता जा रहा है। वसुधा को कुटुम्ब बनाने की कल्पना साकार होने जा रही है। ऐसे परिवारों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है जिसमें जाति, धर्म, ऊँच-नीच, रंग-भेद का कोई अस्तित्व तथा अर्थ नहीं रह गया है। आधुनिक संचार माध्यमों ने विश्व की हजारों किलो मीटर की दूरियों को खत्म कर दिया है। मानव जाति को इस तीव्र संचार माध्यमों का शीघ्रता के साथ वसुधा को कुटुम्ब बनाने के लिए सदुपयोग करना चाहिए। (5) हमारे प्रत्येक कार्य विश्व एकता तथा लोक कल्याण की सुन्दर कृति बने :- हर व्यक्ति के अंदर से आवाज उठती है। इस आवाज का अस्तित्व अच्छे व्यक्ति तथा बुरे व्यक्ति दोनों में होता है। जिस काम को करने से विवेक रोके उसे नहीं करना चाहिए तथा जिस कार्य को करने को विवेक कहे उसे पूरे मनोयोग से करते हुए अपने प्रत्येक कार्य को विश्व एकता तथा लोक कल्याण की सुन्दर कृति बनाना चाहिए। जो प्रभु की इच्छा तथा आज्ञा को जान जाता है उसे धरती, आकाश एवं पाताल की कोई भी शक्ति प्रभु का कार्य करने से रोक नहीं सकती। (4) जिन्दगी का सफर करने वाले अपने विश्व एकता का दीया तो जला लें :- जगत भर की रोशनी के लिए करोड़ों की जिन्दगी के लिए सूरज रे जलते रहना, सूरज रे जलते रहना! हमेशा सोचिए! मैं भारत के लिए क्या कर सकता हूँ? मैं सारे विश्व के लिए क्या कर सकता हूँ? एक तरफ लोक कल्याण की ओर जाना वाला पथ है, एक तरफ एकमात्र अपने स्वार्थ की ओर जाने वाला पथ है। संसार में सदैव विश्व एकता अर्थात लोक कल्याण की उंगली पकड़कर चलना चाहिए। तभी हम भटकने से बच सकते है। जिन्दगी का सफर करने वाले अपने मन का दीया तो जला लें। रात लम्बी है गहरा अंधेरा, कौन जाने कहां हो सवेरा। रोशनी से डगर जगमगा लें, अपने मन में विश्व एकता का दीया तो जला लें। विश्व एकता की शिक्षा इस युग की सबसे बड़ी आवश्यकता है। विश्व एकता की शिक्षा संसार का सबसे शक्ति हथियार है जिससे विश्व में सामाजिक परिवर्तन लाया जा सकता है। धरती से युद्धों तथा आतंकवाद को समाप्त करने के लिए विश्व एकता की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचायें। ’’’’’ यह भी पढ़ें …. दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली लक्ष्मी की विजय

दीपावली पर हायकू व् चोका

जपानी विधा *हाइकु (5/7/5) ; कविता लेखन का जिस तरह एक विधा है 1. दीया व बाती दम्पति का जीवन धागा व मोती। 2 लौ की लहक सीखा दे चहकना जो ना बहके। 3 पथिकार है हरा दुर्मद तम अतृष्ण दीप । 4 मिटे न तम भरा छल का तेल बाती बेदम। 5 पलते रहे नयनों के सपने तम में जीते। 6 लौ की लहक सिखा दे चहकना जो ना बहके। 7 हँस पड़ती पथ दिखाती ज्योति सहमी निशा। 5 नभ हैरान तारे फीके क्यूँ लगे दीप सामने । 6 बत्ती की सख्ती अमा हेकड़ी भूली अंधेर मिटा । 7 मन के अंधे ज्ञान-दीप से डरे अंह में फँसे 8 सायास जीव देहरी मांगे ज्योति दीये जो गढ़े ~~ ठीक उसी तरह तानका (5/7/5/7/7) अकेला जल सहस्र जलाता है सहस्रधी है जीयें हम जीवन दीप जैसा सीख लें सेदोका (5/7/7/5/7/7) तमिस्रा मिटा प्रकाशमान होता सच्चा दीपक वही नव्य साहस संचरण करता विकल्प सूर्य का हो ~~ और चोका (5/7/5/7/5/……अनगिनत…… 7/7) कविता लेखन विधा है चोका 1. इक कहानी चार दीप थे दोस्त फुसफुसाते गप्प में मशगुल एक की इच्छा बड़ा बनना था मायूस रोया था वो लोल का टेढ़ा छोटा दीया था बाती फक्क बुझती दूजे आकांक्षा भव्य मूर्ति बनना शोभा बढ़ाना अमीर घर सज्जा ना जा सका वो मिट्टी विद्युत होड़ी हुआ हवन तीजे महोत्वाकांक्षा पैसे का प्यासा गुल्लक तो बनता भरा रहता खनक सुनता वो चांदी सोने की न यंत्रणा सहता आकंठ डूबा बातें सुन रहा था चौथा दीपक संयमी विनम्र था हँसता हुआ वो आया बोला आपको हूँ बताता राज की बात छूटा भवन ठाठ  सब ना रूठा सोचो साथ ईश का हमें जगह मिली  पूजा घर में तम डरा हराए  उजास फैला हम  दीपो का पर्व सब करे खरीदारी  दीवाली आई क्यूँ बने हम सब रोने वाला चिराग आस जगायें राह दिखाने वाले मंजिल पहुंचायें विभा रानी श्रीवास्तव  ~~~ यह भी पढ़ें ……. दीपावली पर जलायें विश्व एकता का दीप दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली लक्ष्मी की विजय

लक्ष्मीजी का आशीर्वाद

दीपावली के दिन लक्ष्मी ,गणेश के साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है । विघ्न विनाशक ,मंगलकर्ता ,ऐश्वर्य ,भोतिक सुखों ,धन -धान्य ,शांति प्रदान करने के साथ साथ विपत्तियों को हरने वाले लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर का महापूजन अतिफलदायी होता है ।  प्राचीन ग्रंथों में लक्ष्मी जी के साथ अलक्ष्मी जी का भी उल्लेख मिलता है । अलक्ष्मी जी को “नृति “नाम से भी जाना जाता है तथा दरिद्रा के नाम से पुकारा जाता है । लक्ष्मी जी के प्रभाव का मार्ग धन -संपत्ति ,प्रगति का होता है वही अलक्ष्मीजी दरिद्रता ,पतन,अंधकार,का प्रतीक होती है । लक्ष्मी जी और अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )में संवाद हुआ । दोनों एक दूसरे का विरोध करते हुए कहने लगी -“में बड़ी हूँ । ” लक्ष्मीजी ने कहा कि देहधारियों का कुल शील और जीवन में ही हूँ । मेरे बिना वे जीते हुए भी मृतक के समान है ।  अलक्ष्मी जी (दरिद्रा )ने कहा कि “में ही सबसे बड़ी हूँ ,क्योंकि मुक्ति सदा मेरे अधीन है । जहाँ में हूँ वहां काम क्रोध ,मद लोभ ,उन्माद ,इर्ष्या और उदंडता का प्रभाव रहता है । “ अलक्ष्मी(दरिद्रा ) की बात सुनकर लक्ष्मी जी ने कहा- मुझसे अलंकृत होने पर सभी प्राणी सम्मानित होते है । निर्धन मनुष्य जब दूसरों से याचना करता है तब उसके शरीर से पंच देवता -बुद्धि ,श्री ,लज्जा ,शांति और कीर्ति तुरंत निकलकर चल देते है । गुण और गोरव तबी तक टिके रहते है जब तक कि मनुष्य दूसरों के सामने हाथ नहीं फेलाता । अत: दरिद्रे ।. में ही श्रेष्ठ हूँ “। दरिद्र ने लक्ष्मीजी के दर्पयुक्त तर्क को सुनकर कहा-“जिस प्रकार मदिरा पीने से भी पुरुष को वेसा भयंकर नशा नहीं होता, जेसा तेरे समीप रहने मात्र से विद्वानों को भी हो जाता है । योग्य, कृतज्ञ ,महात्मा ,सदाचारी। शांत ,गुरू सेवा परायण ,साधु ,विद्वान ,शुरवीर तथा पवित्र बुद्धि वाले श्रेष्ठ पुरुषों में मेरा निवास है । तेजस्वी सन्यासी मनुष्यों के साथमे रहा करती हूँ । ‘ इस तरह विवाद करते हुए समाधान हेतु ब्रहमाजी के पास दोनों पहुंची ब्रहम्माजी ने कहा कि -पृथ्वी और जल दोनों देवियाँ मुझसे ही प्रकट हुई है । स्त्री होने के कारण वे ही स्त्री के विवाद को समझ सकती है । नदियों में भी गोतमी देवी सर्वश्रेष्ठ है । वे पीडाओं को हरने वाली तथा सबका संदेह निवारण करने वाली है । आप दोनों उन्ही के पास जाएँ । “ लक्ष्मी जी और दरिद्रा बड़ी कोन है के विवाद को सुलझाने हेतु गोतमी देवी के पास पहुँची । गोतमी देवी(गंगाजी )ने कहा कि ब्रह्श्री ,तपश्री ,यग्यश्री ,कीर्तिश्री ,धनश्री ,यशश्री ,विधा ,प्रज्ञा ,सरस्वती ,भोगश्री ,मुक्ति ,स्मृति ,लज्जा ,धृति ,क्षमा ,सिद्धि ,वृष्टि ,पुष्टि ,शांति ,जल ,पृथ्वी ,अहंशक्ति ,ओषधि ,श्रुति ,शुद्धि ,रात्रि ,धुलोक ,ज्योत्सना ,आशी ,स्वास्ति ,व्याप्ति ,माया ,उषा ,शिवा आदि जो कुछ भी संसार में विद्दमान है वह सब लक्ष्मीजी द्वारा व्याप्त है । ब्राहमण ,धीर क्षमावान ,साधु ,विद्द्वान ,भोग परायण तथा मोक्ष परायण पुरुषों जो -जो श्रेष्ठ सुंदर है वह लक्ष्मी जी का ही विस्तार है। दरिद्रा ,क्यों तू लक्ष्मीजी कके साथ स्पर्धा करती है । जा चली जा यहाँ से कहकर दरिद्रा को भगा दिया । इसी कारण तब से गंगाजी का जल दरिद्रा का शत्रु हो गया । कहते है कि तभी तक दरिद्रा का कष्ट उठाना पड़ता है जब तक गंगाजी के जल का सेवन न किया जाए । इसीलिए गंगाजी के जल में स्नान और दान करने से मनुष्य लक्ष्मीवान तथा पुण्यवान होता है ,साथ ही उस पर लक्ष्मीजी का आशीर्वाद भी बना रहता है । दिवाली के दीपक के प्रकाश में आत्ममंथन ,आत्मलोचन ,आत्मोउन्नति ,को प्राप्त करने की दिशा में अंधकार को उखाड़कर प्रकाश की राह पर चलने हेतु अन्यों को भी उन्नति -उजाले की रहा दिखाने का प्रयत्न करते आ रहे है । यही प्रकाश का आगमन ,आराध्य की तरह सर्वत्र पूजनीय तो है ही साथ ही लक्ष्मी ,गणेश ,कुबेर के स्वागत हेतु दीपों को जलाना दिवाली पर उनके आगमन के शुभ सूचक होते है ।  संजय वर्मा “दृष्टि 

दीपावली पर मिटाए भीतरी अन्धकार

 दीपावली पर मिटाए भीतरी अन्धकार  हम हर वर्ष दीपावली मनाते हैं | हर घर ,हर आंगन,हर गाँव ,हर बस्ती एक जगमग रौशनी से नहा उठती है | यूँ लगता है जैसे सारा संसार एक अलग ही पोशाक धारण कर लिया है | इस दिन मिट्टी के दिये में दीप जलाने की मान्यता है | क्योंकि मिट्टी के दिये में हमारी मिट्टी की खुश्बू है,मिट्टी का दिया हमारा आदर्श है,हमारे जीवन की दिशा है,संस्कारों की सीख है,संकल्प की प्रेरणा है और लक्ष्य तक पहुँचने का सबसे अच्छा माध्यम है | दीपावली अपने आप में बेहद ही रौशनी से परिपूर्ण आस्था का त्यौहार है पर इसकी सार्थकता तभी पूर्ण है जब हमारे मन के भीतर का अंधकार भी दूर हो | यह त्यौहार भले ही सांस्कृतिक त्यौहार है पर ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रसंग से भी इस पर्व की महता जुडी है | दीपावली लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अनूठा पर्व है | ‘अंधकार से प्रकाश की ओर प्रशस्त’ ही  इस पर्व का मूल मतलब है  ज्ञान ही मिटाता है भीतरी अन्धकार  ज्ञान की प्रकाश ही असली प्रकाश है | हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है ,वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता हैं | ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है, जब ज्ञान का दीप प्रकाशित होता है  तो भीतर और बाहर दोनों आलोकित करता है | ज्ञान के प्रकाश की हमें हर पल हर क्षण जरुरत है | जहाँ ज्ञान का सूर्य उदित हो गया वहां अंधकार टिक ही नहीं सकता | प्रयास हो की दीपावली पर ज्ञान के प्रकाश से भीतरी अंधकार मिटे  हलांकि दीपावली एक लौकिक पर्व है ,फिर भी यह केवल बाहरी  अंधकार को ही नहीं,बल्कि भीतरी अंधकार को भी मिटाने का पर्व बने ऐसी हमारी कोशिश होनी चाहिए | हम अपने भीतर धर्म और ज्ञान का दीप जलाकर मोह और लालच के अंधकार को दूर कर सकते हैं | हमें  अपने भीतर के सारे दुर्गुणों को मिटाकर उसमें आत्मा रूपी दीपक की अखंड ज्योति को प्रज्वलित करना होगा तभी हमारा मनुष्य जीवन सार्थक और समृद्ध होगा | अगर हम  कभी अपनी सारी इन्द्रियों को विराम देकर एकाग्र मन से अपने अन्दर झांकना शुरू कर  दें तो यक़ीनन हमें एक दिन ऐसी झलक मिल जाएगी कि हमारा अंतर्मन रोमांचित एवं प्रफुलित हो जायेगा ,इसमें कोई संदेह नहीं ……! भीतर का जगत बहुत ही विशाल है ,यहाँ प्रकाश की लौ हमेशा प्रकाशित रहती है| यहाँ हर पल एक दिव्य ज्योत जलते रहती है | बस जरुरत है इसे अपने अन्दर प्रज्वलित करने का | दीपावली पर्व की सार्थकता ही है प्रकाशित करना   दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए हमें अपने अन्दर एक लौ प्रकाशित करना होगा क्योंकि दिया चाहे मन के अन्दर जले  या मन के बाहर उसका काम तो उजाला देना ही है ,सो वह अवश्य देगा | दीपावली का सन्देश है, हम जीवन से कभी विचलीत न हों और न ही कभी पलायन की सोंचें ,उन सबसे अलग हटकर जीवन को परिवर्तन दें क्योंकि पलायन किसी भी समस्या का हल नहीं बल्कि बुजदिली की निशानी है |                                                        संगीता सिंह ‘भावना’                                                सह-संपादक –त्रैमासिक पत्रिका                               करुणावती साहित्य धारा यही भी पढ़ें ……… आओ मिलकर दिए जलायें दीपावली पर 11 नयें शुभकामना संदेश धनतेरस दीपोत्सव का प्रथम दिन मनाएं इकोफ्रेंडली दीपावली

आओ जलाए साहित्य दीप – हायकू एवं हाइगा ( डॉ .रमा द्विवेदी )

                                    `दीपावली’ हाइकु एवं हाइगा  प्रस्तुत हैं वरिष्ठ  साहित्यकार डॉ . रमा द्विवेदी  जी के हायकू .एवं हाइगा ……..  – अँधेरी रात       अकेला है जलता      माटी का दीया । १ ………….. २ ………… -दीप लघु हूँ  अंधेरों को पीता हूँ  तन्हा जीता हूँ । ३ …………….. -उजालों में भी  पलते हैं अँधेरेदीपक तले ।  ४ ………………   रंगोली सजी  हर देहरी द्वार  दीपों के साथ ।                                                                             ५ ………….. –उजाले देता  मुफलिसी में जीता  अँधेरे पीता ।  डॉ रमा द्विवेदी  संपादक -पुष्पक ,साहित्यिक पत्रिका  हैदराबाद ,तेलंगाना