राम नवमी पर विशेष :राम नाम एक सम्पूर्ण मन्त्र
वैज्ञानिक तथा प्लेनिटेरियम सॉफ्टवेयर के अनुसार राम जन्म 4 दिसम्बर 7,393 ई° पूर्व हुआ था, यह गणना हिन्दू कालगणना से मेल खाता है।वाल्मीकि पुराण के अनुसार राम जन्म के दिन पाँच ग्रह अपने उच्च स्थान में स्थापित थे, नौमी तिथि चैत्र शुक्लपक्ष तथा पुनर्वसु नक्षत्र था। जिसके अनुसार सूर्य मेष में 10 डिग्री, मंगल मकर में 28 डिग्री, ब्रहस्पति कर्क में 5 डिग्री पर, शुक्र मीन में 27 डिग्री पर एवं शनि तुला राशि में 20 डिग्री पर था। राम नाम की बड़ी अद्भुत महिमा है। बस, जरूरत है श्रद्धा, विश्वास और भक्ति की। राम नाम स्वयं ज्योति है, स्वयं मणि है। राम नाम के महामंत्र को जपने में किसी विधान या समय का बंधन नहीं है। राम दो अक्षर का नाम ,जितना छोटा उतना प्यारा …… आइये जानते हैं इस नाम जप के महत्व को ……………. बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥ भावार्थ:–मैं श्री रघुनाथजी के नाम ‘राम’ की वंदना करता हूँ, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात् ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ रूप से बीज है। वह ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है। वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमारहित और गुणों का भंडार है॥1॥ जाने राम नाम जप का वैज्ञानिक महत्व राम नाम की महिमा अपरंपार है। अन्य देवी-देवताओं की तुलना में राम सबको सरलता से प्राप्त हो जाते हैं। यह नाम सबसे सरल और सुरक्षित है और इसके जप से लक्ष्य की प्राप्ति निश्चित रूप से होती है। इस नाम मंत्र के जप के लिए आयु, स्थान, स्थिति, जात-पात आदि वाह्य आडंबर का कोई बंधन नहीं है। किसी क्षण, किसी भी स्थान पर इसे जप सकते हैं। स्त्री या पुरुष जब भी चाहें, इस नाम का जप कर सकते हैं। प्रभु के लिए सब समान हैं। तारक मंत्र ‘श्री’ से प्रारंभ होता है। ‘श्री’ को सीता अथवा शक्ति का प्रतीक माना गया है। राम शब्द ‘रा’ रकार ‘म’ मकार से मिलकर बना है। ‘रा’ अग्नि स्वरूप है यह हमारे दुष्कर्मों का दाह करता है। ‘म’ जल तत्व का द्योतक है। जल आत्मा की जीवात्मा पर विजय का कारक है। इस प्रकार पूरे तारक मंत्र श्री राम जय राम जय जय राम का सार है शक्ति से परमात्मा पर विजय। ‘बीज मंत्र ¬ को हिंदू धर्म में परमात्मा का प्रतीक माना गया है। इसलिए मंत्रों के आरंभ में ‘¬’ जोड़ा जाता है। ‘¬’ को जोड़कर तारक मंत्र ‘¬श्री राम जय राम जय जय राम’ का जप किया जाता है। योग शास्त्र में ‘रा’ वर्ण को सौर ऊर्जा का कारक माना गया है। यह हमारी रीढ़ रज्जु के दायीं ओर स्थित पिंगला नाड़ी में स्थित है। यहां से यह शरीर में पौरुष ऊर्जा का संचार होता है। ‘म’ वर्ण को चंद्र ऊर्जा का कारक अर्थात् स्त्रीलिंग माना गया है। यह ऊर्जा रीढ़ रज्जु के बायीं ओर स्थित इड़ा नाड़ी में प्रवाहित होती है। इसीलिए कहा गया है कि श्वास और निःश्वास तथा निरंतर रकार ‘रा’ और मकार ‘म’ का उच्चारण करते रहने के फलस्वरूप दोनों नाड़ियों में प्रवाहित ऊर्जा से सामंजस्य बना रहता है। अध्यात्मवाद में माना गया है कि जब व्यक्ति ‘रा’ शब्द का उच्चारण करता है तो इसके साथ-साथ उसके आंतरिक पाप बाहर आ जाते हैं। इस समय अंतःकरण निष्पाप हो जाता है। अभ्यास में भी ‘रा’ को इस प्रकार उच्चारित करना है कि पूरे का पूरा श्वास बाहर निकल जाए। इस समय ‘तान्देन’ से रिक्तता अनुभव होने लगती है। इस स्थिति में पेट बिल्कुल पिचक जाता है। किंतु ‘रा’ का केवल उच्चारण मात्र ही नहीं करना है। इसे लंबा खींचना है रा…ऽ…ऽ…ऽ। अब ‘म’ का उच्चारण करें। ‘म’ शब्द बोलते ही दोनों होठ स्वतः एक ताले के समय बंद हो जाते हंै। और इस प्रकार वाह्य विकार के पुनः अंतःकरण में प्रवेश पर बंद होठ रोक लगा देते हैं। राम नाम अथवा मंत्र जपते रहने से मन और मस्तिष्क पवित्र होते हैं और व्यक्ति अपने पवित्र मन में परब्रह्म परमेश्वर के अस्तित्व को अनुभव करने लगता है। यह विधि कितनी सरल है। शांति पाने का यह कितना सरल उपक्रम है। फिर भी न जाने क्यों व्यक्ति इधर-उधर भटकता फिरता है। भायँ कुभायँ अनख आलस हूँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ॥सुमिरि सो नाम राम गुन गाथा। करउँ नाइ रघुनाथहि माथा॥1॥॥ भावार्थ:–अच्छे भाव (प्रेम) से, बुरे भाव (बैर) से, क्रोध से या आलस्य से, किसी तरह से भी नाम जपने से दसों दिशाओं में कल्याण होता है। उसी (परम कल्याणकारी) राम नाम का स्मरण करके और श्री रघुनाथजी को मस्तक नवाकर मैं रामजी के गुणों का वर्णन करता हूँ॥1॥ व्यक्ति के शरीर में 72,000 नाड़ियां हैं। इनमें से 108 नाड़ियों का अस्तित्व हृदय में माना गया है। इसलिए मंत्र जप संख्या 108 मानी गई है। इस तरह एक माला अर्थात 108 जप संख्या के अनेक महत्व हैं। यहां केवल इतना समझंे कि इतना जप करना महत्वपूर्ण है। सुर, ताल तथा नाद और प्राणायाम से जप को और भी शक्तिशाली बनाया जाता है। मंत्र जप में तीन पादों की प्रधानता है। पहले आता है मौखिक जप। इस स्थिति में जैसे ही हमारा मन मंत्र के सार को समझने लगता है, हम जप की द्वितीय स्थिति अर्थात् उपांशु में पहुंच जाते हैं। इस स्थिति में मंत्र का अस्पष्ट उच्चारण भी नहीं सुना जा सकता। तृतीय स्थिति में मंत्र जप केवल मानसिक रह जाता है। यहां मंत्रोच्चार केवल मानसिक रूप से चलता है। इसमें दृष्टि भी खुली रहती है और मानसिक तादात्म्य के साथ-साथ व्यक्ति अपने दैनिक कर्मों में भी लीन रहता है। यह अवस्था मंत्र के एक करोड़ जप कर लेने मात्र से आ जाती है। यहीं से शांभवी मुद्रा सिद्ध हो जाती है और परमहंस की अवस्था पहुंच जाती है। तारक मंत्र का एक लाख जप कर लेने से व्यक्ति को अपने अंतःकरण में अनोखी अनुभूति होने लगती है। यहां से व्यक्ति के लिए दुर्भाग्य नाम की किसी वस्तु का अस्तित्व ही नहीं रह जाता। यदि ऐसा व्यक्ति मंत्र जप के बाद किसी बीमार व्यक्ति की भृकुटी में सुमेरु छुआ दे … Read more