होली आई रे

                                                होली त्यौहार है मस्ती का , जहाँ हर कोई लाल , नीले गुलाबी रंगों से सराबोर हो कर एक रंग हो जाता है ….वो रंग है अपनेपन का , प्रेम का , जिसके बाद पूरा साल ही रंगीन हो जाता है …आइये होली का स्वागत करे एक कविता से … कविता -होली आई रे  फिर बचपन की याद दिलाने बैर  भाव को दूर भगाने जीवन में फिर रंग बढाने होली आई रे … बूढ़े दादा भुला कर उम्र को दादी के गालों पर मलते रंग को जीवन में बढ़ाने उमंग को होली आई रे पप्पू , गुड्डू , पंकू देखो अबीर उछालो , गुब्बारे फेंकों कोई पाए ना बचके जाने होली आई रे गोरे फूफा हुए हैं लाल तो काले चाचा हुए सफ़ेद आज सभी हैं नीले – पीले होली आई रे  बन कन्हैया छेड़े जीजा राधा सी शर्माए  दीदी प्रीत वाही फिर से जगाने होली आई रे घर में अम्माँ गुझिया तलती चाची दही और बेसन मलती बुआ दावत की तैयारी करती होली आई रे बच्चे जाग गए हैं तडके इन्द्रधनुषी बनी हैं सडकें सबको अपने रंग में रंगने होली आई रे  जिनमें कभी था रगडा -झगडा चढ़ा प्रेम का रंग यूँ तगड़ा सारे बैर -भाव मिटाने होली आई रे नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … होली और समाजवादी कवि सम्मलेन होली के रंग कविताओं के संग फिर से रंग लो जीवन फागुन है होली की ठिठोली आपको “ होली आई रे “कैसे लगी अपनी राय से हमें अवगत कराइए | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords- happy holi , holi, holi festival, color, festival of colors

लव यू इमरान – आखिर ये पहले क्रश का मामला है

एक समय था जब लड़कियों के क्रश इमरान खान हुआ करते थे |लडकियाँ उन्हें खून से खत लिखा करती थीं |  आज शोशल मीडिया की अनेकों जगह  पर लव यू इंडिया की जगह लव यू इमरान  दिखाई पड़ रहा है | पढ़िए इसी पर एक व्यंगातमक रचना ……….. लव यू इमरान – ये पहले क्रश का मामला है  साहिबान कद्रदान , मेहरबान ,                      आगे समाचार ये है कि युद्ध की मुंडेर पर खड़े भारत पाकिस्तान  के बीच अच्छी खबर ये है कि  पाकिस्तान अंतर्राष्ट्रीय दवाब के चलते हमारे जाबांज विंग कमांडर अभिनन्दन को भारत को सौप दिया गया है  कल  हम सबने  अपने देश के इस बहादुर बेटे की  कुमकुम  और अक्षत की थाली ले कर  आगवानी की है | इस ख़ुशी की खबर आते ही जिस तरह से  सोशल मीडिया पर लव यू पाकिस्तान , लव यू  इमरान के नारे  लग रहे हैं उससे इमरान खान एक आतंकवादी देश के मुखिया कम शांति दूत ज्यादा घोषित किये जा रहे है | इतना लव यू , लव यू तो  हमारे प्यारे -प्यारे सुदर्शन कुवांरे बेचलर नेता  के नसीब में भी नहीं आया |                                 मामले पर जरा गौर  किया तो देखा कि ये लव यू महिलाओं ने ज्यादा लिखा | कसम से हमें भी अपनी जवानी के दिन याद आ गए | उस समय इमरान खान बहुत तेज गेंद फेंकते थे | जब वो दौड़ना शुरू करते थे तो दिल पर हाथ रखे महिलाएं जोर से हूऊऊऊ …. किया करतीं , बेचारे गावस्कर क्रीज पर डटे -डटे उनको खूब दौड्वाते पर लड़कियों की दिल की धड़कन तो इमरान ही बढाते  थे | वो  भारत के खिलाफ मैच खेलते पर लड़कियों की दीवानगी इमरान के साथ रहती | लड़कियों की  इस  कदर दीवानगी पाने के लिए गावस्कर उम्र निकल जाने के बाद भी पिच पर इसी उम्मीद से डटे रहे पर वो उन्हें नहीं मिली तो नहीं मिली | उन्हीं दिनों हमारे  कॉलेज की लडकियाँ खून से इमरान को लव लैटर  लिखतीं थीं | ये लव लैटर कॉलेज में ही लिखे जाते क्योंकि प्रेम तब वर्जित क्षेत्र था | बाकायदा सेफ्टीपिन का इस्तेमाल होता खून निकालने के लिए | जिनका खून थोडा ज्यादा था वो कुछ बड़े खत लिखतीं , जो एनीमिया की शिकार थीं वो बस लव यू इमरान लिख कर छोड़ देतीं | ये चिट्ठियाँ इमरान तक पहुंची या नहीं … पता नहीं | ये उन्होंने पढ़ी या नहीं ये भी पता नहीं …. ये भी पता नहीं | अनुमान लगाया जा सकता है कि उन्होंने पढ़ी नहीं होगीं , वर्ना एक -आध शादी किसी भारतीय लड़की से भी कर लेते | खैर ,  यही लडकियाँ इमरान की चिट्ठी का इंतज़ार करते -करते दूसरों की बीवियाँ बन गयीं और घर गृहस्थी में ऐसी  रमीं की ये पहला क्रश  भूल ही गयीं , फिर इमरान ने भी खेलना  छोड़ दिया | अब इधर फिर से उन्होंने प्रधानमंत्री बन बैटिंग शुरू की और अपने पूर्ववर्तियों की तरह आतंक की फ़ास्ट बॉल हमारे देश पर फेंकने लगे | इमरान की शक्ल देख कर फिर पहला क्रश याद तो आया पर बेचारीं करतीं क्या … इस बार मामला खेल का नहीं देश का था तो  हर बॉल पर दिल पकड कर हाआआआ इमरान कर नहीं सकतीं थीं | मन मसोस कर रह जातीं | कभी कभी मन होता कि इमरान से कहें कि क्या हुआ है तुम्हें , कभी तो कुछ ऐसा करो कि हम लव यू इमरान कह सकें .. पर इमरान मानते ही नहीं , उन्हें सेना की जो सुननी थी | अब अंतर्राष्ट्रीय दवाब के चलते ही सही इमरान ने मौका दे ही दिया ,  उन लडकियां … मेरा मतलब प्रौढ़ाओं के दिल में प्रेम की पुरानी दस्तक की याद ताज़ा करने का  | ये फर्माबदार  महिलाएं अभिनंदन की वापसी के लिए सारे राष्ट्रीय , अन्तराष्ट्रीय  प्रयासों को दरकिनार करते हुए लव यूं इमरान , लव यू इमरान का राग अलापने लगीं  | उम्र हो गयी है , अब ये खत छुप  कर लिखने की जरूरत भी नहीं है ,तो  सोशल मीडिया पर ये चिट्ठियाँ सरेआम लिखी जाने लगीं …. क्या पता  इस बार इमरान तक पहुँच ही जाए आखिर सोशल मीडिया पर तो वो भी रहते हैं | रहते ही होंगे . बाल पक  गए हैं , इसलिए सबको इतना तो समझ आ रहा है कि इमरान ठहरे फ़ास्ट बॉलर , वो  अगला बाउंसर क्या मारेंगे .. पता नहीं , फिर भी जानते समझते हुए , अपने देश की रणनीति और कूटनीति पर गर्व करते हुए भी जो लव यू इमरान लिख रहीं हैं उनको कुछ ना कहें …. ये पहले क्रश का मामला है … पहला प्यार और पहला क्रश भुलाए भूलता है क्या ? नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें ………. अप्रैल फूल -याद रहेगा होटल का वो डिनर सूट की भूख तुम्हारे पति का नाम क्या है ? वो पहला खत आपको आपको  व्यंग लेख “ लव यू इमरान – आखिर ये पहले क्रश का मामला है  “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under- ,  Satire in Hindi, Imran khan, Love, I Love , You

माँ के जेवर

बचपन में जो बेटे माँ मेरी माँ मेरी कह कर झगड़ते थे वही बड़े होने पर माँ तेरी , माँ तेरी ख कर झगड़ते हैं | ऐसी ही एक माँ थी फुलेश्वरी देवी जिसकी सेवा सिर्फ छोटा बेटा ही करता था | फिर भी बड़े बेटे  का फरमान था कि सेवा भले ही छोटा बेटा  कर रहा हो पर माँ के जेवर आधे उसे भी मिलने चाहिए | माँ उसकी इस बात से हताश होती पर उसने भी अपने जेवरों के अनोखे बंटवारे का फैसला कर लिया | लघुकथा -माँ के जेवर  माँ , फुलेश्वरी देवी ,  कम्बल से अपना मुँह ढककर लेटी थी | नींद तो उसकी बहुत पहले खुल गयी थी, पर दोनों बेटों  की बहस सुन रही थी | बहस उसी को लेकर हो रही थी | बड़े भाई छोटे भाई से क्रोध में कह रहा था  ,” देखो , ये सेवा -एव का नाटक ना करो | मुझे पता है तुम माँ की जेवर  के लिए ये सब कर रहे हो | लेकिन कान खोल कर सुन लो , माँ जेवर हम दोनों में आधे -आधे  बंटेंगे | एक नाक की कील भी ज्यादा मैं तुमको नहीं लेने दूंगा |” छोटा भी बोला ,” अगर आप को लगता है कि मं इस लिए सेवा कर रहा हूँ कि माँ के जेवर हड़प लूँ , तो आप ले जाइए माँ को अपने साथ , करिए सेवा और रखिये साथ , फिर सारे जेवर आप ही रख लीजियेगा , मुझे एक भी नहीं चाहिए |” बड़े भाई ने बात काटते हुए कहा ,” वाह बेटा ! वाह इसमें सेवा की बात कहाँ आ गयी | जेवर के बहाने  तुम माँ का भार  मेरे ऊपर डालना चाहते हो | माँ इतने समय से तुमहारे  साथ रह रही है , उसको अगर मैं ले जाउंगा तो उसे वहाँ अच्छा नहीं लगेगा | मेरे बच्चे भी बड़े हो गए हैं , वो भी अपनी पढाई में व्यस्त रहते हैं , माँ दो बातों को तरस जायेंगी | तुम्हारे बच्चे तो अभी छोटे हैं , माँ से दुबक सोते हैं , तुम्हारी पत्नी को भी आराम मिल जाता है , घडी दो घडी का | इसलिए माँ को तुम अपने ही पास रखो , पर जेवर में मुझे भी हिस्सा चाहिए | छोटा भाई बोला ,” मैं तो बस आपके मन की टोह लेने के लिए ऐसा कह रहा था | माँ कहीं नहीं जायेंगी वो हमारे साथ ही रहेंगी | आपको हो ना हो मुझको तो अहसास है कि बचपन में माँ ने इससे ज्यादा सेवा की थी | आप जाइए जेवर के पीछे , और अभी जोर -जोर से मत चिल्लाइये , माँ जाग जायेंगी तो उन्हें बुरा लगेगा | बड़ा भाई – हाँ , हाँ जा रहा हूँ , जा रहा हूँ , पर जेवर की बात ना भुलाना  | बड़ा भाई चला गया |छोटा भाई माँ के कमरे में जाकर देखता है , कि माँ ने सुन न लिया हो उन्हें दुःख होगा |माँ को सोते देख वो चैन की सांस लेता है, फिर अपनी पत्नी को बुलातेहुए कहता है की ध्यन रखना माँ को भैया की बात न पता चले | पत्नी हाँ में सर हिला देती है | माँ की आँखों में आसूँ है | उसे पता कि छोटा बेटा बहु उसकी सेवा करते हैं , दिल से करते हैं , उन्हें पैसे का लालच नहीं है | बड़ा बेटा उसे कभी दो रोटी  को भी नहीं पूछता | जब देखो तब लड़ने चला आता है | उसे माँ से प्यार नहीं , जेवरों से प्यार है | बड़ा बेटा उसकी भी कहाँ सुनता है | हर बार जब भी तू -तू, मैं मैं होती है वो बड़े से तो कुछ नहीं कह पाती , छोटे को ही समझा बुझा कर शांत कर देती है ताकी घर में शांति बनी रहे | ………………… तीन वर्ष ऐसे ही बीत गए | बार – बार हॉस्पिटल  जाना , आना लगा रहता | कभी -कभी कई  दिनों के लिए भी बीमार पड़ती | छोटा बेटा और बहु दौड़ -दौड़ कर सेवा करते | एक बार माँ को मैसिव हार्ट अटैक पड़ा | बचने की उम्मीद कम थी , बस साँसों की डोर थमी थी | सब रिश्तेदार आ कर देख के जा रहे थे | एक दिन अस्पताल में उन्हें देखने उनकी छोटी बहन राधा मौसी भी आई तो माँ ने एक डायरी उसे पकड़ा कर कहा कि मेरा एक काम का देना मेरे मरने के बाद  तेरहवीं  के दिन इसे सबके सामने पढना | बहन डायरी ले कर अपने घर चली गयी | उसी रात माँ के प्राण पखेरू उड़ गए | शायद बहन को डायरी सौंपने के लिए ही प्राण अटके थे | तेरहवीं के दिन जब सब लोग खाने बैठे तो मौसी ने डायरी खोल कर पढना शुरू किया | मेरे बेटों ,                ये डायरी ही मेरी वसीयत है | अक्सर मैं तुम दोनों को  झगड़ते हुए सुनती | मेरी आत्मा बहुत तडपती पर मैं  ये दिखाती कि मैंने सुना ही नहीं है | ज्यादातर जेवरों की बात होती | मैं बताना चाहती हूँ कि मेरे जेवर भण्डार घर की  अलमारी के तीसरे खाने में छोटू के पुराने कपड़ों के नीचे एक डब्बे में रखे हैं | क्योंकि तुम दोनों मेरे ह बच्चे हो इसलिए मैं उन जेवरों को तौल के अनसुर बाँट कर आधा -आधा तुम दोनों को दे रही हूँ |  परन्तु मेरे पास कुछ और जेवर हैं वो मैं छोटे बेटे को दे रही हूँ …. वो है मेरा आशीर्वाद | मैं ढेरों आशीर्वाद अपने छोटे  बेटे के लिए छोड़े  जा रही हूँ क्योंकि सिर्फ उसी ने मेरी निस्वार्थ सेवा करी है |                                                                        तुम्हारी माँ  पत्र सुनते ही लोग छोटे बेटे की जयजयकार करने लगे | छोटे बेटे की आँखों में आँसू थे और बड़ा बेटा सर झुकाए लज्जित खड़ा था | माँ के जेवरों के ऐसे अद्भुत बंटवारे की … Read more

रीता की सफलता

सफलता और असफलता केवल एक सिक्के के दो पहलू हैं | आपके माता -पिता के लिए आपकी सफलता से कहीं ज्यादा आप अनमोल हो | आखिर रीता को ऐसी क्या बात समझ में आ गयी जिससे  उसके जीवन की सफलता के मायने ही बदल गए | प्रेरक कथा -रीता की सफलता  ये उस ज़माने की बात है जब हाईस्कूल  रिजल्ट ऑनलाइन नहीं निकलते थे | छात्रों  को मात्र एक संभावित तिथि पता होती थी | उस दिन से एक दो दिन पहले से बच्चों के दिल की धड़कने बढ़ जाया करती थीं | बच्चों और उनके घरों में रिजल्ट की प्रतीक्षा  बढ़ जाती |रिजल्ट के F, S और Th बस तीन अक्षर बच्चों की ख़ुशी मात्र को निर्धारित करते | फेल  होने वाले छात्रों का रोल नंबर नहीं चाप होता था | वो बच्चे निराशा में डूब जाते , तब घर वाले तरह -तरह के प्रयास कर उन्हें , ” अरे तो क्या हुआ अगले साल पास हो जाओगे कहकर सँभालने का प्रयास करते | ये वो समय था जब रिजल्ट माता -पिता की प्रेस्टीज का इशु नहीं हुआ करता था | पर बच्चे तो उत्साहित या निराश हुआ ही करते थे |   “निकल गया भाई निकल गया , हाई स्कूल  का रिजल्ट निकल गया ” कहते हुए  जब सड़क  से होकर गुजरता था तो ना जाने  कितनी घरों की साँसे थम जाया करती थीं | बच्चे जिन्होंने हाईस्कूल  का एग्जाम दिया है वो ना रात देखते ना दिन उसी समय सड़क पर दौड़ लगा पड़ते | लडकियाँ जो रात -बिरात घर से नहीं निकल पातीं | भाइयों की चिरौरी में लग जातीं | भाई पहले तो भाव खाते फिर  मान मनव्वल करके निकल पड़ते साइकिल वाले लड़के की खोज में जिसके पास होता उसी समय  प्रकाशित हुए परीक्षाफल वाला अखबार | उसी दौर में एक लड़की थी रीता  | जिसने पूरे साल फर्स्ट डिवीजन  लाने के लिए बहुत मेहनत की थी | सारे इम्तिहान सही जारहे थे  , बस विज्ञान का पर्चा बचा था |  उस दिन हिंदी का पर्चा था |  पर्चा बहुत ही अच्छा हुआ था | घर लौटते हुए वो इम्तिहान खत्म होने के बाद मौसी के घर जा कर , अपने मौसेरे भाई -बहनों के साथ खूब मस्ती की योजनायें बना रही थी |  तभी तवे की  टनटनाहट ने उसका ध्यान खींचा | गोलगप्पे उसकी जुबान में खट्टा चटपटा स्वाद उतर आया | गोलगप्पे की तो वो दीवानी थी |  एक रुपये के पांच गोलगप्पे मिला करते थे उन दिनों और वो  दो तीन रुपये से कम के तो खाती ही नहीं थी | भैया दो रुपये के गोलगप्पे दो कहते हुए उसे ख्याल तक नहीं आया कि माँ ने मना किया है कि इम्तिहान वाले दिन बाहर की चीज मत खाना , तबियत खराब हो गयी तो पछताना पड़ेगा | धडाधड गोलगप्पे खाए और निकल पड़ी घर की ओर | शाम से ही पेट में दर्द होने लगा | उलटी और दस्त का जो सिलसिला शुरू हुआ वो एग्जाम रुका नहीं | जैसे -तैसे एग्जाम देने गयी | पर ठीक से पर्चा लिखा नहीं जा रहा था | जितना कुछ लिख पायी , लिख दिया |फेल होने की पूरी सम्भावना थी | रोते हुए घर लौटी | माँ से  लिपट करतो घिग्घी  ही बंध गयी | रोते हुए बोली , ” माँ मुझे माँ कर देना , मैं पास नहीं हो पाउंगी |” रीता को सबसे ज्यादा दुःख था अपने माता-पिता की अपेक्षाओं पर खरे ना उतर पाने का | माँ बचपन से ही उसे अच्छे नंबर लाने को कहती थीं , और पिताजी ने ट्यूशन , किताबों आदि पर अपनी सीमा से ज्यादा खर्च किया था | और वो … वो उनको क्या दे रही है | माँ ने उसे सीने लगा लिया | अकेली बेटी थी बड़ी मन्नतों बाद हुई थी | उसको यूँ निराश देखकर शब्द ही साथ छोड़ रहे थे | दो महीने बहुत ही निराशा से कटे | माँ कोे बेटी के दुःख का अंदाजा था | वो खुद ही हर रोज उसकी सफलता की दुआएं मांगती , पर रिजल्ट से कुछ दिन पहले माँ ने ये सोच कर उसे मौसी के यहाँ भेज दिया कि अचानक से फेल की खबर पर वहां भाई -बहन उसे संभल लेंगे | उसने तय कर लिया था कि वो रिजल्ट निकलने के अगले दिन ही घर आ जायेगी | तय तिथि पर रिजल्ट निकला | शाम को अपने मौसेरे  भाई के साथ घर आते ही वो माँ से चिपक गयी | माँ … ओ माँ मेरी फर्स्ट डिविजन आई है | लगता है और पेपर में नंबर इतने अच्छे आये कि  विज्ञान का पेपर ख़राब होने के बाद भी फर्स्ट डिविजन बन  गयी | माँ ने भी हुलस कर उसे गले से लगा लिया | रीता ने  अंदर आ कर देखा | खाने की मेज पर तरह -तरह के व्यंजन लगे हुए हैं | जैसे घर में कोई पार्टी हो | उसने डोंगों की प्लेट हटा कर देखा , सारे उसी के पसंद के व्यंजन थे | वो समझ गयी कि पार्टी उसी के लिए हैं | तभी उसने एक डोंगा खोला , उसमें एक परचा रखा हुआ था | जिसमें कुछ लिखा हुआ था | मेरी प्यारी बेटी रीता ,                       मुझे पता था कि तुम जरूर सफल होगी | आखिर तुमने मेहनत जो इतनी की थी | एक पेपर बिगड़ क्या तो भी तुम्हारी सफलता तय थी  | ये तुम्हारे जीवन की पहली सफलता है | इस पहले कदम को अपनी सफलता के भवन की नींव समझो और कदम दर कदम आगे बढ़ो |                                                                                 ढेर सारे प्यार के साथ                                                                                    तुम्हारी … Read more

एक डॉक्टर की डायरी – उसकी मर्जी

ये एक डॉक्टर का सत्य अनुभव है | आमतौर पर डॉक्टर संवेदनहीन माने जाते हैं पर एक डॉक्टर को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सीखना होता है …. खास कर तब जब मरीज के नाम ऊपर से मौत का फरमान जारी हो चुका हो | एक डॉक्टर की डायरी – उसकी मर्जी वार्ड के बाहर बहुत शोर था | ये सारे डॉक्टर बहुत चोर होते हैं | मरीज की जान चली जाए पर इनकी जेबें भरी रहे | अपने ही केबिन में बैठे -बैठे मैं समझ गयी की शायद मीता का केस बिगड़ गया है | एक ठंडी आह भर कर “उसकी मर्जी “कह , मैंने सामने बैठे मरीज को देखना शुरू किया | पर फिर से एक प्रश्न मन में उमड़ आया ,क्या डॉक्टर सच में संवेदना शून्य होते हैं ? मैं … मैं भी तो ऐसी नहीं थी | जब मेडिकल की परीक्षा पास करी थी तब कितने सपने थे की मरीजों की सेवा करने के | सोचती थी हर मरीज को अपने परिवार का सदस्य मानूँगी , पूरी जी जान से सेवा करुँगी |  जूनियर डॉक्टर बनते ही वार्ड में ड्यूटी  भी लगने लगी | उस समय कोई खास काम नहीं करना होता था | बस मरीजों को चेक कर ये देखना होता था कि वो ठीक से दवा वैगैरह ले रहे हैं या नहीं , उनसे बातें करना और खिलखिला कर उनके दर्द कम करना |  उसी समय हॉस्पिटल में एडमिट हुई थी श्रेया | फर्स्ट डिलीवरी थी उसकी |  थोडा कोम्प्लिकेशन था ,इसीलिये एडमिट किया गया था | श्रेया का प्रेम विवाह था | घर वालों के खिलाफ जा जा कर उसने श्रेयस से शादी की थी , पर साथ ज्यादा ना चल सका | एक कार एक्सीडेंट ने श्रेयस को उससे उस समय छीन लिया जब वो तीन माह की गर्भवती थी | श्रेयस की अंतिम निशानी को वो दुनिया भर की सारी  खुशियाँ देना चाहती थी | तभी तो इतने बड़े आघात के बाद भी उसने आशा का दीप अपने अंदर संजोये रखा था |  उसका पूरा परिवार भी इसी कोशिश में लगा रहता कि वो हरदम खिलखिलाती रहे | पूरा जच्चा -बच्चा वार्ड उनकी हंसी से खिलखिलाता | मैं भी अक्सर वहीँ जा कर बैठ जाती | श्रेया से मेरी दोस्ती होने लगी थी | श्रेया अक्सर मुझे अपने होने वाले बच्चे के लिए खुद बनाए हुए कपडे दिखाती | कभी वो  अपने उन सपनों को साझा करती जो उसने बच्चे के लिए देखे थे | कभी -कभी श्रेयस की याद में जब उसकी आँखें भर जातीं तो अपना दुःख झटक कर कहती , मुझे रोना नहीं है , मुझे हँसना है श्रेयस की निशानी के लिए , तभी तो वो मेरे पास छोड़ कर गए हैं | उस दिन मैं श्रेया के साथ बैठी ताश खेल रही थी कि डॉक्टर आहूजा राउंड पर आयीं | उन्होंने  श्रेया की खांसी पर गौर करते हुए कहा , श्रेया तुम ये टेस्ट करवा लो |” मैंने भी ध्यान दिया जब से श्रेया आई है उसे लगातार खाँसी आ रही है | हालांकि खाँसी इतनी नहीं थी कि चिंता की जाए | श्रेया ने मेरा हाथ पकड़ कर पूछा ,” सब ठीक तो है ना | मैंने भी हाँ में गर्दन हिला दी | वो मुस्कुरा दी | दूसरे दिन पता चला कि उसने उसने फूल सी बेटी को जन्म दिया है | नन्ही फूल सी बच्ची पा  श्रेया बहुत खुश थी … बहुत खुश | पूरा परिवार जैसे जीवंत हो उठा | सपनों ने फिर आकर लेना शुरू कर दिया | बच्ची कमजोर थी इसलिए डॉक्टर आहूजा ने उसे कुछ दिन और हॉस्पिटल में रुकने को कहा | एक हफ्ते बाद डॉक्टर आहूजा ने मुझे अपने केबिन में बुला कर कहा , ” मेघा , ये श्रेया की रिपोर्ट हैं …. इसके बारे में तुम्हे उसे बताना है | मैंने रिपोर्ट पलट कर देखी | ओह … ओरल कैंसर जो  मेटा स्टैसिस कंडीशन में आ कर दोनों फेफड़ों को घेर चुका  था | मुझे चक्कर सा आ गया | मैंने डॉक्टर आहूजा की तरफ देख कर पूंछा , ” कितना समय है ? बस डेढ़ , दो महीने | मेरी आँखें  बाँध तोड़ कर बहने लगीं | मैंने डॉक्टर आहूजा से कहा , ” मैम , मैं नहीं बता पाऊँगी , कृपया  ये काम किसी और को दें | कितनी उम्मीदें है उसे अपनी बच्ची को लेकर | मैं कैसे बता पाऊँगी | डॉक्टर आहूजा ने सख्त आवाज में कहा , ” तुम ही जाओगी , ये भी तुम्हारे प्रोफेशन का हिस्सा है | ऐसे मरीजों को बताना कि उनकी जिन्दगी अब ज्यादा बाकी नहीं है , ऐसे में भी उन्हें आशा देना जब ‘उसकी मर्जी’ के आगे हम सब डॉक्टर हारते हैं | मैं रोती जा रही थी पर डॉक्टर आहूजा ने मेरी एक ना सुनी | मेरे हाथों में फ़ाइल और मेरे चेहरे को देख कर उन सब ने किसी अनहोनी को भांप लिया | श्रेया ने मेरा हाथ पकड कर पूंछा , ” सब ठीक तो है ना | मैंने रुलाई रोकते हुए कहा , रिपोर्ट ठीक नहीं है , कुछ और टेस्ट करने होगे | “रिपोर्ट में क्या निकला है ?” श्रेया के पिता ने अधीरता से पूंछा अभी की रिपोर्ट के अनुसार कैंसर है ,अडवांस स्टेज है ,  हम कल से ही ट्रीटमेंट शुरू कर देंगे |बहुत से मरीज ठीक होते हैं | पर कैंसर शब्द के बाद उन्होंने कुछ भी नहीं सुना | श्रेया , मेरी बेटी , मेरे श्रेयस की निशानी मुझे तुझे पालना है , खूब बड़ा करना है , कह -कह कर रोने लगी | पूरा परिवार अपने आंसू पोंछते  हुए उसे संभालने की कोशिश करने लगा | मैं अपने आँसू पीये वहीँ खड़ी रह गयी …. धीर गंभीर बने रह कर उस दिन मैंने पहली बार अभिनय करना सीखा | उन दो महीनों के समय में पल -पल श्रेया टूटती रही और एक दिन सारे दर्द , सारे भय , सारी  चिंताएं छोड़ कर उस लोक चली गयी | उन दो महीनों के दौरान मैं कितना विवश थी , कितनी असहाय थी , कितना टूट रही थी …. ये मेरे आलावा कोई नहीं … Read more

लेखिका एक दिन की

लोगों को लगता है कि लिखना बहुत आसान है | बस अपने मन की बात कागज़ पर उतार देनी है , पर इसके लिए मन के अंदर कितना संघर्ष होता है वो लिखने वाला ही जान सकता है , खासकर लेखिकाएं | शायद इसी कारण आज जितनी लेखिकाएं दिखती हैं उससे कहीं ज्यादा लेखिकाएं अपने पहले प्रयास के बाद खुद ही एक गहरे अँधेरे में गुम हो गयीं | लघु कथा -लेखिका एक दिन की आज पाँच वर्ष हो गए थे | उस भयानक एक्सीडेंट के बाद निधि के आधे शरीर में लकवा मार गया था | वैसे भी तो वो घर के बाहर नहीं निकलती थी पर अब तो जिंदगी एक कमरे में ही सिमिट कर रह गयी थी | निराशा के दौरे पड़ते तो मृत्यु के सिवा कुछ ना सूझता | अवसाद का इलाज करने वाले डॉक्टर ने ही सलाह दी थी कि जो कुछ आप एक हाथ से कर सकती हैं करिए ताकि मन लगे | बचपन में लिखने का शौक था | कितने सपने थे लेखिका बनने के ….घर गृहस्थी के बाद सब छूट गया था |उसने लिखने की इच्छा जाहिर की | पति ने अगले ही दिन आई पैड लाकर दे दिया | मन में कुछ उमंग जागी , हाथों में हरकत हुई | फेसबुक अकाउंट भी बना दिया गया | मेरी डायरी शीर्षक डाल कर कुछ -कुछ लिख दिया | आँख लगने के बाद सबने पढ़ा | सब ने उसके लेखन की तारीफ भी की | एक सशक्त लेखिका उसके अंदर छुपी हुई दिखी | अगले दिन ऑफिस जाते समय टाई ठीक करते हुए पति ने कहा ,” देखो मेरे बारे में कुछ मत लिखना ….मेरे बारे में मतलब जो कुछ मैंने देखा सुना तुमसे कहा है उस बारे में …. और चाहे जो कुछ लिखो |” स्कूल जाते समय बच्चे भी कह गए ,” मम्मी हमारी बातों की फेसबुक पोस्ट मत बना देना …न ही हमारे स्कूल की कोई बात लिखना … और चाहें जो कुछ लिखो | सासू माँ की कमरे से आवाज़ आई , ” अरे तुम लोगों के बारे में नहीं लिखेगी | मेरे बारे में लिखेगी …सासें तो वैसे ही बुरी होती हैं , देखो कुछ भी लिखना मुझे पढ़ा जरूर देना | वो डर गयी | एक भी अक्षर लिखा नहीं गया | सब के पूछने पर कह दिया अब लिखने का मन नहीं करता | और उस पहली पोस्ट के बाद वो एक दिन किलेखिका हमेशा के लिए शब्दों से दूर हो गयी नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … हकीकत मक्कर इंटरव्यू मकान नंबर -१३ आपको  लघु कथा  “ लेखिका एक दिन की ” कैसी   लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |    filed under-short stories, writer, female writer, patient

फिल्म बधाई हो के बहाने लेट प्रेगनेंसी पर एक चर्चा

“पूत भये और पूत बियाहे ” किसी भी व्यक्ति की जिन्दगी के दो सबसे सुखद पल माने जाते हैं | तभी तो बच्चों के ब्याह की तमाम तामझाम के बाद नव दम्पत्ति से मिलने वाला का पहला सवाल होता है ,”भाई खुशखबरी कब सुना रहे हो ?” और इसका  उत्तर हां में पा कर  ” बधाई हो ” कहने वालों का ताँता लग जाता है  , हम प्रेगनेंसी का स्वागत करते हैं परन्तु जब यह प्रेगनेंसी अधेड़ावस्था में बिन बुलाये मेहमान की तरह आ जाए तो क्या तब भी हमारा  उनको “बधाई हो ” कहने का सुर वही रहता है ? फिल्म बधाई हो के बहाने लेट प्रेगनेंसी पर एक चर्चा  अभी हाल में आयुष्मान की एक फिल्म रिलीज हुई है “बधाई हो”… फिल्म में एक माध्यम वर्गीय परिवार में तब भूचाल आ जाता है जब एक अधेड़ दम्पत्ति ( नीना गुप्ता व् गजराज राव )  को पता चलता है कि उनके तीसरा बच्चा होने वाला है | उन्हें ये बात अपने युवा पुत्रों व् माँ पड़ोसियों को बताने में किस शर्मिंदगी से गुज़रना पड़ता है … इसका सटीक चित्रण है | बच्चों को भी अपने स्कूल , ऑफिस में व्यंग बानों को झेलना पड़ता है |  बड़े बेटे आयुष्मान खुराना की लव लाइफ भी डांवाडोल  होती है | बच्चे और सासू माँ एक तरह से दम्पत्ति का बायकॉट कर देते हैं | अंतत: पूरा परिवार एक जुट  होता है और सब खुले दिल से बच्चे का स्वागत करते हैं | लेट प्रेगनेंसी -ये दोहरी मानसिकता किस लिए  यूँ तो यह एक हास्य फिल्म है पर इसमें लेट प्रेगनेंसी जैसे गंभीर मुद्दे को उठाया गया है | गंभीर इस लिए कि हमारे देश में अभी भी महिलाओं को मीनोपॉज़ के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है | उनको जानकारी नहीं है कि मनोपॉज़ का एक लम्बा साइकिल होता है जिसमें पर्याप्त इंतजाम ना करने से कभी भी प्रेगनेंसी ठहर सकती है |                            प्रेगनेंसी ठहरना तो एक बात है पर लेट प्रेगनेंसी को लोग अभी भी मजाक के तौर पर लेते हैं |क्योंकि हमारे देश में अभी भी आने वाले बच्चे का तो स्वागत किया जाता है पर वो बच्चा पति –पत्नी के जिस प्रेम के कारण दुनिया में आता है इस बात  पर लोग अपनी अनभिज्ञता दिखाते हैं या यूँ कहिये कि वो इस विषय पर बात करना ही नहीं चाहते और अभी भी बच्चे तो भगवान् की देंन  हैं जैसा सामाजिक मुखौटा ओढ़े रहते हैं | लेट प्रेगनेंसी में अजीब सी हास्यास्पद स्थिति इस लिए आती है क्योंकि लोग ये दिखाते हैं कि ४० की उम्र के बाद पति –पत्नी एक दूसरे के साथ किसी प्रकार का कोई शारीरिक रिश्ता नहीं रखते , बल्कि वो एक दूसरे के साथ रहते हुएभी ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हैं | जबकि हकीकत में ऐसा नहीं है ये बात हर कपल जानता है | परन्तु दूसरे की प्रेगनेंसी की बात सामने आने पर ” छुपा रुस्तम ” का खिताब देने से नहीं चूकता | यह दोहरी मानसिकता जहाँ हास्य पैदा करती हैं वहीँ इस सत्य को भी उजागर करतीहै कि ऐसे स्थिति में किसी परिवार के लोगों को किस मानसिक उलझन से गुजरना पड़ता है | इस दोहरी मानसिकता का एक अच्छा कटाक्ष फिल्म में नायिका की माँ व् नायिका के बीच का संवाद है | नायिका की माँ प्रेगनेंसी के बारे में पूछती हैं कि ऐसे कैसे? और नायिका मासूमियत के साथ उत्तर देती है , “ आई थिंक जैसे होता है वैसे” क्या है लेट प्रेगनेंसी के खतरे  फिल्म देखते समय मुझे भी ऐसे कई चेहरे याद आये जिनके दो बच्चे थे और ४० -५० की उम्र में बिना प्लानिंग के तीसरा बच्चा आ गया | जहाँ पहले के दो बच्चों में दो या तीन साल का अंतर था वहीँ तीसरे बच्चे में १७ -१८ साल का अंतर | कितने ताने सुनने पड़ते थे उन्हें …टी वी नहीं देखते हो क्या , कोई नियंतरण ही नहीं है , अरे बच्चों को अपने बीच में सुलाया करो | मजाक के बीच कभी इस समस्या को समझने की कोशिश ही नहीं की , कि महिलाओं को मीनोपॉज़ के बारे में ठीक से जानकारी नहीं होती , या इसमें  कितने हेल्थ कंप्लीकेशन हो सकते हैं या माता –पिता को बच्चे के लालन –पालन के बारे में कितनी चिंता  होगी | मीनोपॉज़ का साइकिल ४ या ५ साल चलता है जिसमें मासिक धर्म अनियमित हो जाता है कई बार एक -दो पीरियड्स मिस करने केव बाद महिला समझ लेती है कि उसे मीनोपॉज़ हो गया है परन्तु हुआ नहीं होता है | इस समय में प्रेगनेंसी ठहरने का खतरा होता है | डॉक्टरों के मुताबिक एक साल तक जब पीरियड ना आयें तब मीनोपॉज़ माना जाए उससे पहले को प्रीमीनोपॉज़ में में रखा जाता है | दूसरी तरफ लेट प्रेगनेंसी में महिला के शरीर में कैल्सियम कम होने के कारण शिशु  का ठीक से विकास मुश्किल होता है वहीँ मानसिक बाधित शिशु होने क सम्भावना अधिक होती है | लेट प्रेगनेंसी में महिला को हार्ट अटैक की सम्भावना भी ज्यादा होती है | वैसे आज के ज़माने में लेट प्रेगनेंसी  में डॉक्टर की निगरानी में कोम्प्लिकेशन से बचा जा सकता है | बस जरूरत है सही देखभाल की |  उम्मीद है ये सब कारण जानने  के बाद आप किसी की लेट प्रेगनेंसी पर “बधाई हो ” कहने के बाद मजाक उड़ाने केस्थान पर आप उस दम्पत्ति के साथ पूरी संवेदनाओं के साथ खड़े होंगे | वैसे भी किसी बच्चे को दुनिया में लाने का निर्णय एक महिला का और उसके परिवार का मिउल कर लिया हुआ निरनय होता है …. ऐसे में उन दोनों के इस निर्णय का स्वागत करना चाहिए , और कहना चाहिए …”बधाई हो “ नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … ब्यूटी विथ ब्रेन – एक जेंडर बायस कॉम्प्लीमेंट  सोलमेट -असलियत या भ्रम सबरीमाला -मंदिर  –जड़ों को पर प्रहार करने से पहले जरा सोचें  क्या फेसबुक पर अतिसक्रियता रचनाशीलता में बाधा है सोल हीलिंग -कैसे बातचीत से पहचाने आत्मा में छुपे घाव को                                              आपको आपको  लेख “ फिल्म बधाई हो के बहाने लेट … Read more

क्या आपने अपने mind का user manual ठीक से पढ़ा है ?

जब भी आप कोई गेजेट खरीदते  हैं तो उसका यूजर मैन्युअल जरूरार पढ़ते हैं | आखिर उसी में सारे दिशा निर्देश होते हैं उस को चलाने के लिए | ऐसा ही एक कमल का गेजेट है हमारा mind यानि की दिमाग या फिर थोडा और विस्तार में जाएँ तो मन | जो हमारा हो कर भी हमारा नहीं है | पलक झपकते ही यहाँ पलक झपकते ही वहाँ |हमें ये तो पता है कि शरीर को स्वस्थ रखने के लिए क्या क्या खाना चाहिए पर क्या हमने कभी अपने दिमाग का यूजर मैनुअल पढ़ा है ? पढ़िए और इसे सही से इस्तेमाल करना सीखिए … देखिएगा आप कितने शांत व् प्रसन्न रहेंगे | जानिये  अपने mind के  user manual के बारे में  क्या आप ठीक हैं ? हाँ ठीक तो हूँ , पर वो चार साल पहले की बात जब -तब याद आ जाती है तो मन से निकलती ही नहीं , कभी -कभी लगता है जैसे जीवन ही व्यर्थ है … जब तक उस बात का ठीक ना कर लूँ तब तक दिमाग से निकलना मुश्किल है | और आप ? अजी क्या बताये , ये प्रश्न  मत पूछिए जब तक कार न आ जाये /मकान  न खड़ा हो जाए , बेटे की शादी ना हो जाए /बेटे की नौकरी ना लग जाए तब तक क्या खाक ठीक हैं ?                                         हममे  से अधिकतर लोग अतीत की यादों या भविष्य की चिंता से जूझ रहे होते हैं | जबकि जीवन केवल इस पल है | दरअसल हमारा दिमाग तीन काल में चलता है भूत काल , वर्तमान काल और भविष्य काल | आप किसी ज्योतिषी के पास जाए तो वह आपके past या future के बारे में बताता है … ऐसे लोगों को त्रिकाल दर्शी भी कहते हैं | पर यहाँ हम बात कर रहे अपने mind की जो तीन स्तरों पर चलता है स्मृति , कल्पना और ये पल , यानि की memory, imagination और वर्तमान समय | अधिकतर लोगों को मेमोरी या इमेजिनेशन के कारण दुःख होता है | वर्तमान समय में उन्हें कोई खास दुःख नहीं होता फिर भी वो या तो पिछला या अगला सोच -सोच कर परेशां होते रहते हैं | अतीत से छुटकारा  मान लीजिये कि किसी के साथ कोई बहुत बड़ा हादसा हो गया वो उससे नहीं निकल पा रहा है … तब तो कुछ हद तक बात समझ में आती है पर ज्यादातर लोग छोटे बड़े हादसों , बातों , किसी की गलती के बारे में इतना सोचते हैं कि वो वर्तमान समय का आनन्द उठा ही नहीं पाते | आप जिसे महान जीवन समझते हैं वो पृथ्वी की नज़र में बस एक उपजाऊ मिटटी है जिसे एक फसल के बाद फिर से रौंद कर दूसरी फसल उगानी है … सद्गुरु जग्गी वाशुदेव                                          जो घटना घट चुकी है अब उसका कोई अस्तित्व नहीं है वो केवल अतीत में थी | लेकिन हम उसे अपनी स्मृति में जिन्दा रखते हैं और उसी दुःख को जिसे एक बार भोग कर हम निकल आये थे बार -बार भोगते हैं | कितने लोग हैं जो अच्छी स्मृतियों को बार -बार दोहराते हैं और अगर दोहराते भी हैं तो एक कसक के साथ कि अब वो समय नहीं रहा | जब आप कहते हैं कि मैं उसको माफ़ नहीं कर सकता मतलब आप उस व्यक्ति से सम्बंधित स्मृतियों को नहीं भुला पा रहे हैं , और खुद को बार -बार दंड दे रहे हैं | भविष्य की चिंता से मुक्त                                   एक कहावत है सामान सौ बरस का … खबर पल की नहीं | जो हम आज हैं वो हमारे अतीत में किये गए कामों और फैसलों की वजह से हैं जो हम कल होंगे वो आज किये गए कामों और फैसलों की वजह से होंगे | बेहतर है कि हम सही काम आज करें न कि भविष्य की चिंता | हमारे सोचते रहने से कुछ होने वाला नहीं है |  मेमोरी या इमेजिनेशन क्या है … माइंड के एप्रेटस में आने वाले विचार ही तो हैं -संदीप महेश्वरी  ऐसा नहीं हो सकता कि विचार ना आयें पर उन पर चिंतन ना करे ये आपके हाथ में है | इसके लिए जरूरी है कि आप इस प्रक्रिया को समझें | विचारों के बनने की प्रक्रिया को समझें , विचारों के बहुगुणित होने की प्रक्रिया को समझे | वर्तमान के जीवन को समझे … समझे कि केवल वर्तमान ही हमारे हाथ में हैं …. जहाँ हम कुछ कर सकते हैं बाकि दुःख सब विचार रूप में हैं | जिस दिन हम अपने mind का user manual समझ जायेंगे … उस दिन से ही हम चिंता मुक्त ,सुखी जीवन जी पायेंगे | नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … क्या आप  हमेशा  रोते रहते हैं ? स्ट्रेस मेनेजमेंट और माँ का फार्मूला अपने दिन की प्लानिंग कैसे करें समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल आपको   लेख  “  क्या आपने अपने mind का user manual ठीक से पढ़ा है ?“  कैसा लगा   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: article, positive thinking, mind, user manual, user manual of mind

मतलब

सुनो , “ये करवाचौथ के क्या ढकोसले पाल रखे हैं तुमने ?” कहीं व्रत रखने से भी कभी किसी की उम्र बढ़ी है ? रहोगी तुम गंवार ही , आज जमाना कहाँ से कहाँ पहुँच गया है , और तुम वही पुराने ज़माने की औरतों की तरह ….इतनी हिम्मत तो होनी चाहिए ना कि परम्परा तोड़ सको |” हर साल तुम्हें समझाता हूँ पर तुम्हारे कानों पर जूं  भी नहीं रेंगती | हर साल करवाचौथ पर गुस्सा करवा -करवा कर तुम मेरी उम्र घटवाती हो , देखना एक दिन मैं  यूँही चीखते -चिल्लाते  चला जाऊँगा भगवान् के घर ….फिर रह जायेंगे तुम्हारे सारे ताम -झाम , नहीं मानेगा करवाचौथ इस घर में | हर बार की तरह दीनानाथ जी के कटु वचनों से मंजुला घायल हो गयी | आँसू पोछते हुए बोली , ” भगवान् के लिए आज के दिन शुभ -शुभ बोलो ,मेरी सारी  पूजा लग जाए,तुम्हारी उम्र  चाँद सितारों जितनी हो | माना की तुम्हें परम्परा में विश्वास नहीं है पर मेरी इसमें आस्था है …. तुम कुछ भी कहो इस घर में करवाचौथ हमेशा ऐसे ही पूरे विधि विधान से मनेगा |” ओह इस मूर्ख औरत को समझाना व्यर्थ है , जब मैं नहीं रहूँगा तो खुद ही अक्ल आ जायेगी | तब नहीं मनेगा इस घर में करवाचौथ | ——————- रात को चाँद अपने शबाब पर था | हर छत पर ब्याह्तायें सज धज कर अपने पति के साथ चलनी से चाँद का दीदार कर रहीं थीं | दीनानाथ जी ने पीछे मुड़ कर अपनी छत पर नज़र डाली | ना वहां चलनी थी , ना दीपक , ना चाँद के इंतज़ार को उत्सुक आँखे | चार साल हो गए मंजुला को तारों के पास गए हुए , तब से इस घर में करवाचौथ नहीं मना | हमेशा करवाचौथ को अपनी उम्र से जोड़कर देखने वाले दीनानाथ जी ने आंसूं पोछते हुए कहा ,”वापस आ जाओ मंजुला अब कभी  नहीं कहूँगा करवाचौथ ना मनाने को | नादान था मैं हर करवाचौथ को तुम्हारा दिल दुखाता रहा …नहीं पता था कि इस घर में करवाचौथ ना मनने का मतलब ये भी हो सकता है | __________________________________________________________________________________ नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें …                                                  वारिस गुटखे की लत  ममत्व की प्यास घूरो चाहें जितना घूरना है                                                    आपको  कहानी  “इंटरव्यू “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under-  karvachauth   , story, short story, free read  ,                                     

नींव

             दुनिया के सारे घरों की नींव में दफ़न औरतें भी देखती हैं कंगूरे बनने के ख्वाब , कभी -कभी भयभीत भी होती हैं यूँ अँधेरे में अकेले छूट जाने से …फिर भी , फिर भी न जाने क्यों वो पसंद करती हैं नींव बनना कविता -नींव  जब भी मैं बनाती हूँ अपनी प्राथमिकताओं की सूची एक से दस तक तो हर बार मेरी निजी प्राथमिकताएं पाती हैं दसवाँ  स्थान या कभी -कभी हो जाती हैं सूची से ही बाहर और फिर कितनी रातों में नींद को लाने के क्रम में आधे -खुले , आधे बंद नेत्रों के सामने मंडराते किसी भूतिया साये की तरह डराती हैं मुझे बदलो अपनी प्राथमिकताओं की सूची को तुम्हें आधार बना ,सब निकल जायेंगे आगे और वक्त निकल जाने के के बाद छोड़ देंगे तुम्हे वक्त के रहमोकरम पर या फिर कितनी ही रातों की खुशनुमा नींदों में स्वप्न में आ फुसलाती हैं मुझे वो देखो तुम्हारा आसमान वो क्षितिज पर उगता तारा वो तालियाँ , वो वाहवाही वो शोर … सिर्फ तुम्हारे लिए बदलो प्राथमिकताओं की सूची को , काट कर दूसरों के नाम करो अपने को पहले नंबर पर कि वक्त बदलते वक्त नहीं लगता हर बार फिर -फिर पलटती हूँ सूची लाख कोशिशों के बाद भी नहीं बदल पाती उसे जानती हूँ कंगूरे बनने के लिए किसी को बनना पड़ेगा नींव किसी स्त्री विमर्श से परे , किसी माय लाइफ माय रूल्स के नारों के परे जाने क्यों बार -बार हर बार मैं खुद स्वीकारती हूँ नींव बनना नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें … कह -मुकरियाँ ओ री गौरैया अशोक कुमार जी की कवितायें मायके आई हुई बेटियाँ आपको    “नींव   “    कविता कैसी लगी | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: poetry, hindi poetry, kavita,foundation