अनकही

क्या आपने कभी सोचा है ….घर में सब ठीक है के पीछे एक स्त्री कितनी बातें , ताने दर्द लील जाती है किसी मीठी गोली की तरह | कितनी बातें रह जाती हैं अनकही | कविता -अनकही  सुबह -सुबह की भाग-दौड़ के बीच मम्मी मेरे मोज़े कहाँ हैं ? मेरी फ़ाइल जाने कहाँ रख देती हो , बहु सुबह गुनगुन पानी में नीबू शहद जल्दी दे दिया करो , नहीं होता पेट साफ और सारा दिन बनी रहती है हाज़त के बीच रोकते हुए आँसूं तय कर लिया था उसने आज कह दूंगी वो सब जो बरसों से दबा है मन में इस दौड़ भाग के बीच कुछ उसकी भी अहमियत है इस घर में जैसे ही खोलने चाहे होंठ ससुर ने मुँह बनाया अब रहने दो बची है है चार दिन की जिंदगी एक समान होते हैं बूढ़े और बच्चे थोडा जल्दी उठ जाया करो बस … सब ठीक रहेगा पति ने कर दिया ईशारा न -ना … आज नहीं बॉस से आया हूँ डांट खाकर आज ही निपटानी हैं ये फाईलें बच्चे भी लगाने लगे गुहार नहीं मम्मी मेरा मैथ टेस्ट प्रोजेक्ट सम्मीशन आज नहीं फिर कभी टपकने को आतुर शब्दों को उसने फिर कर लिया अंदर लार के साथ रह गयी फिर  अनकही ये सोच कर की गटक ही लो इससे  दुरुस्त रहता है इससे परिवार का हाजमा आखिर सब अपने ही तो है … नीलम गुप्ता यह भी पढ़ें …. रूचि भल्ला की कवितायें अनामिका चक्र वर्ती की कवितायें वीरू सोनकर की कवितायें अजय चंद्रवंशी की लघु कवितायें आपको    “ अनकही “    | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: Women, poetry, hindi poetry, kavita

आई एम सॉरी विशिका

अगर आप भी किसे के प्रति आसानी से धारणा बना लेते हैं तो ये कहानी अवश्य पढ़ें , क्योंकि अंत में पछतावे के सिवा कुछ नहीं रहता | बेहतर हो समय रहते ही सजग हो जाएँ |  कहानी -आई एम सॉरी विशिका  रिंकू …बेटा रिकू , चलो आज विशिका आंटी  घर जाना है |  मेरी आवाज सुनते ही रिंकू ने बुरा सा मुँह बना दिया | नहीं मम्मा  मैं उनके यहाँ नहीं जाऊँगा , मैं तो उन्हें ठीक से जानता भी नहीं | मैं तो घर पर ही दादी के  रहूँगा  कहते हुए १० साल का रिंकू खेल में लग गया |  यूँ तो विशिका को मैं भी ठीक से नहीं जानती थी, पति के साथ कुछ साल पहले बस एक बार पार्टी में मुलाकात हुई थी | उनका बेटा पीयूष रिंकू से दो साल छोटा है | जहाँ मैं रिंकू को हर समय खेलने के लिए मस्त छोड़ देती वो हर समय अपने बेटे के साथ लगी रहती | मुझे उनकी बच्चे की  परवरिश का ये ढंग बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा | इस कारण पहली ही मुलाकात से वो मुझे कुछ जमीं नहीं | इंसान भी कितना अजीब है किसी के बारे मैं कितनी आसानी से धारणा  बना लेता है | मैंने भी पहली ही मुलाकात में धारणा  बना ली थी | इसीलिए फिर मिलने का मन भी नहीं किया | पर पिछले दो दिन से मेरे पति  अमित उनके घर चलने को कह रहे थे | दरअसल अमित को काम के सिलसिले में विशिका के पति मयंक से जरूरी बात करनी थी | वो बात उन्हें ऑफिस में न करके घर में करना ज्यादा उचित लग रहा था | अब घर जाना था तो वो चाहते थे कि मैं भी साथ चलूँ | मुझे जाना पड़ा तो  मुझे लगा रिंकू को भी ले चलूँ … शायद पीयूष और विशिका बदल गए हों | चेन  रीएक्शन केवल एटम के न्यूकलियस के ही नहीं होते …. हम भी घरों में यही प्रयास करते हैं | खैर रिंकू के मना करने के बाद मन मार के मैं जाने के लिए तैयार होने लगी | फिरोजी साड़ी , फिरोजी चूड़ियाँ , और फिरोजी बिंदी लगा कर जब शीशे में खुद को देखा तो अपनी ही प्रशंसा करे बिना न रह सकी | अमित भी समय पर घर आ गए और हम कार से उनके घर रवाना हो गए |  सावन की हलकी फुहारे पड़ रहीं थी हमारा मन जो थोड़ी बोरियत महसूस कर रहा था सुहाने मौसम के कारण गुनगुना उठा |  उनके घर पहुँचने पर विशिका ने एक फीकी मुस्कान से स्वागत किया | विशिका ने मामूली गाउन पहन रखा था | उसमें भी जगह -जगह हल्दी के दाग लगे थे | घर भी बेतरतीब था | उसे पता था हम आने वाले हैं , फिर भी उसका  ऐसा फीका स्वागत हमें अटपटा सा लगा | हम ड्राइंग रूम में बैठ गए , बातें होने लगीं | मुझे पीयूष बहुत ही कमजोर लग रहा था | बहुत रोकने की कोशिश करते हुए भी मेरे मुंह से निकल गया …. पीयूष मेरे बेटे की उम्र का ही है पर  कमजोर होने के  कारण बहुत छोटा लगता है … आप इसे कुछ खेल खेलने को कहें … जैसे टेनिस , फुटबॉल , बैडमिन्टन , जिससे इसे भूख लगेगी और सेहत भी बनेगी | मेरे इतना कहते ही विशिका जी क्रोधित हो गयीं और बोली , ” आप अपने बेटे को पालने की टिप्स अपने पास रखिये … ये जैसा है ठीक है | माहौल थोडा संजीदा हो गया | मैंने  माहौल हल्का करने के लिए इधर -उधर की बातें की फिर भी बात बन नहीं पायी | अमित जिस काम के लिए बात करना चाहते थे , उसके लिए भी मयंक जी ने कोई रूचि नहीं दिखाई | लौटते समय गाडी में मेरा मूड बहुत ख़राब था | मैं अमित पर फट पड़ी | क्या जरूरत थी मुझे साथ ले चलने की , काम  की बात ऑफिस में ही कर लिया करो |  खामखाँ में अपना और मेरा समय बर्बाद किया | देखा नहीं , कैसे मेरी  जरा सी राय पर गुस्सा गयीं | मुझे जो उचित लगा मैंने कहा , अब अच्छी राय देना भी गुनाह है क्या  …. रखें अपने लड़के को १६ किलो का मुझे क्या करना है ? ठीक से बच्चे की परवरिश करनी आती नहीं , पहनना -ओढना आता नहीं , मेहमानों का स्वागत करना आता नहीं … ऐसे लोग किसी भी तरह से मिलने के काबिल नहीं हैं | अमित ने मेरी बात में हाँ में हाँ मिलाई | घर आकर मैं उन्हें लगभग भूल गयी | दिन गुज़रते गए | ऐसे ही करीब १० महीने बीत गए | उस दिन रिंकू के स्कूल का एनुअल फंक्शन था | रिंकू को स्पोर्ट्स में कई सारे पुरूस्कार मिले थे | मैं एक गर्वीली माँ की तरह उसके तमगे सँभालने में लगी थी | मन ही मन खुद पर फक्र हो रहा था कि मैंने कितनी अच्छी शिक्षा दी है रिंकू को जो वो आज इतने पुरूस्कार जीत पाया | कितना ध्यान रखती हूँ मैं उसके खाने -पीने का , तभी तो इतना ऊँचा कद निकला है | पढाई में भी अच्छा कर रहा है | एक गर्वीली माँ के गर्वीले विचारों को झकझोरते हुए मेरे साथ गयी निशा ने कहा , ” विशिका से मिलने नहीं चलोगी ? मेरे मुँह  का स्वाद बदल गया | फिर भी मैंने  पूंछा , ” क्यों ?” स्पोर्ट्स के पुरूस्कार उसी ने स्पोंसर करे  हैं , निशा ने बताया क्या ??? मैंने मुश्किल से अपनी हँसी  रोकते हुए पूंछा औ उत्तर की प्रतीक्षा करे बिना कहना शुरू किया , ” बड़े आदमियों के बड़े चोंचले ,अपने बेटे को तो स्पोर्ट्स खेलने नहीं देती और दूसरों के बच्चों को पुरूस्कार बाँट रही है | बच्चे पर ध्यान नहीं और खुद के लिए इतनी यश कामना …. देखा है उसका बेटा , १६ किलो से ज्यादा वजन नहीं होगा …. अब उसका बेटा दुनिया में नहीं है , निशा ने मेरी बात काटते हुए कहा | क्यायाययया , कब , कैसे , मुझे लगा पुरूस्कार मेरे हाथ से गिर जायेंगे | तुम्हें … Read more

जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे

जिंदगी के छोटे –छोटे सूत्र कहीं ढूँढने नहीं पड़ते वो हमारे आस –पास ही होते हैं पर हम उन्हें नज़रअंदाज कर देते हैं | ऐसे ही दो सूत्र मुझे तब मिले जब मैं मिताली के घर गयी | ये सूत्र था … जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे  मिताली के दो बच्चे हैं एक क्लास फर्स्ट में और एक क्लास फिफ्थ में | दोनों बच्चे ड्राइंग कर रहे थे | उसकी बेटी सान्या जो छोटी है अपनी आर्ट बुक में डॉट्स जोड़ कर कोई चित्र बना रही थी | और बेटा राघव ड्राइंग फ़ाइल में ब्रश से पेंटिंग कर रहा था | जहाँ बेटी हर मोड़ पर उछल  रही थी क्योंकि उसे पता नहीं था की क्या बनने वाला है …  उसे बस इतना पता था की उसे बनाना है कुछ भी , इसलए बनाते हुए आनंद ले रही थी | गा रही थी हँस  रही थी | बेटा बड़ा था उसे पता था कि उसे क्या बनाना है | वो भी आनंद ले रहा था | लेकिन जब भी उसे अहसास होता कि कुछ मन का नहीं हो रहा है वो दो –तीन कदम पीछे लौटता दूर से देखता , सोचता , “ अरे ये रंग तो ठीक नहीं है , इसकी जगह ये लगा दे , ये लकीर थोड़ी सीधी  कर दी जाए , यहाँ कुछ बदल दिया जाए | फिर जा कर उसमें रंग भरने लगता बच्चे रंग भरते रहे और मैं जीवन के महत्वपूर्ण सूत्र ले कर घर वापस आ गयी | जीवन एक  कैनवास जैसा ही तो है जिसमें हमें रंग भरने हैं पर इस रंग भरने में इतना तनाव नहीं भर लेना चाहिए कि रंग भरने का मजा ही चला जाए या बाहर से रंग भरते हुए हम अन्दर से इतने बेरंग होते जाए कि अपने से ही डर लगने लगे | चित्र बनाना है उस बच्ची की तरह हँसते हुए , गाते हुए ,हर कदम पर इस कौतुहल के साथ कि देखें आगे क्या बनने वाला है  पर क्योंकि अब हम बड़े हो गए हैं तो दो कदम पीछे हट कर देख सकते हैं , “ अरे ये गलती हो गयी , यहाँ का रंग तो छूट ही गया , यहाँ ये रंग कर दें तो बेहतर होगा | पर क्या हम इस सुविधा का लाभ उठाते हैं ?  शायद नहीं , आगे आगे और आगे बढ़ने का दवाब में जल्दी –जल्दी रंग भरने में कई बार हम देख ही नहीं पाते कि एक रंग ने बाकी रंगों को दबा दिया है | जीवन भी एक रंग हो गया और सफ़र का आनंद भी नहीं मिला |पीछे हटने में कोई बुराई नहीं है पर मुश्किल ये है कि हम पीछे हट कर देखना नहीं चाहते हैं | जो बन गया , जैसा बन गया उसी पर रंग पोतते जाना है | क्या जरूरी नहीं है हम दो कदम पीछे हट कर उसी समय जिंदगी को सुधार लें | भले ही आप का चित्र सबसे पहले न बन पाए पर यकीनन चित्र उसी का अच्छा बनेगा जो दो कदम आगे एक कदम पीछे में विश्वास रखता है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …  अपनी याददाश्त व् एकाग्रता को कैसे बढाएं समय पर काम शुरू करने का 5 सेकंड रूल वो 22 दिन इतना प्रैक्टिकल होना भी ठीक नहीं आपको  लेख “ जिंदगी दो कदम आगे एक कदम पीछे   “ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन“की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |  filed under-life, Be positive, success

मेकअप

हमारा व्यक्तित्व बाह्य और आंतरिक रूप दोनों से मिलकर बना होता है | परंतु लोगों की दृष्टि पहले बाह्य रूप पर ही पड़ती है | आंतरिक गुण दिखने के लिए भी कई बार बाह्य मेक अप की जरूरत होती है | लघु कथा -मेकअप  विद्यापति जी की  शुरू से धर्म आध्यात्म में गहरी रूचि थी |  अक्सर मंदिर चले जाते और पंडितों के बीच बैठ कर धर्मिक चर्चा शुरू कर देते | धर्म धीरे -धीरे अध्यात्म की ओर बढ़ गया | मानुष मरने के बाद जाता कहाँ हैं , कर्म का सिद्धांत क्या है ? क्या ईश्वर में सबको संहित होना है आदि प्रश्न सर उठाने लगे | अब ये प्रश्न तो मंदिर  की चौखट के अन्दर सुलझने वाले नहीं थे | सो देशी -विदेशी सैंकड़ों किताबें पढ़ डाली | घूम -घूम कर प्रवचनों का आनंद लेते | कई लोगों की शागिर्दगी करी |ज्ञान बढ़ने लगा |                            और जैसा की होता आया है जब कुछ बढ़ जाता है तो बांटने का मन होता है | विद्यापति जी का भी मन हुआ कि चलो अब ये ज्ञान बांटा जाए | लोगों को समझाया जाये की जीवन क्या है | आखिर उन्होंने जो इतनी मेहनत से हासिल किया है उसे आस -पास के लोगों को यूँ हीं दे दें , जिससे उनका भी उद्धार हो | वैसे भी वो चेला ही क्या जिसकी गुरु बनने की इच्छा ही न हो |  उन्होंने ये शुभ काम मुहल्ले के पार्क से शुरू किया | जब भी वो कुछ बोलते चार लोग उनकी बात काट देते | कोई पूरी बात सुनने को तैयार ही नहीं था | यहाँ तक की अम्माँ भी घर में उनकी बात सुनती नहीं थीं | विद्यापति जी बड़े परेशान  हो गए | बरसों के ज्ञान को घर में अम्माँ चुनौती देती तो बाहर  पड़ोस के घनश्याम जी | बस तर्क में उलझ कर रह जाते | अहंकार नाजुक शीशे की तरह टूट जाता और वो टुकड़े मन में चुभते रहते | मन में ‘मैं ‘ जागृत हुआ | मैंने इतना पढ़ा फिर भी मुझे कोई नहीं सुनता |किसी को कद्र ही नहीं है | वही बात टी वी पर कोई कहे तो घंटों समाधी लगाए सुनते रहेंगें | वो तो मन से भी आध्यात्मिक हैं फिर कोईक्यों नहीं सुनता |  पत्नी समझदार थी | पति की परेशानी भाँप गयी , बोली ,  ” सारा दोष आपके मेकअप का है , ये जो आप ब्रांडेड कपडे पहन कर टाई लगा कर और पोलिश किये जूते चटकाकर ज्ञान बांटते हो तो कौन सुनेगा आपको | लोगों को लगता है हमारे जैसे ही तो हैं फिर क्या बात है ख़ास जो हम इन्हें सुने | थोडा मेकअप करना पड़ेगा … हुलिया बदलना पड़ेगा | बात विद्यापति जी को जाँच गयी | अगले दिन सफ़ेद धोती -कुरता ले आये | एक झक सफ़ेद दुशाला और चार -पांच रुद्राक्ष की माला भी खरीद  ली |दाढ़ी -बाल बढाने  शुरू हो गये  | कुछ दिन बाद पूरा मेकअप करके माथे पर बड़ा तिलक लगा कर निकले तो पहले तो माँ ही सहम गयीं , ” अरे ई तो सच्ची में साधू सन्यासी हो गया | उस दिन माँ ने बड़ी श्रद्धा से उनके मुंह से रामायण सुनी | विद्यापति जी का आत्मविश्वास बढ़ गया |  घर के बाहर निकलते ही चर्चा आम हो गयी | विद्यापति जी बड़े ज्ञानी हो गए हैं | साधारण वस्त्र त्याग दिए | हुलिया ही बदल लिया , अब ज्ञान बांटते हैं | आज पार्क में भी सबने उन्हें ध्यान  सुना | धीरे -धीरे पार्क में उन्हें सुनने वालों की भीड़ बढ़ने लगी | आज विद्यापति जी के हाथों में भी रुद्राक्ष  की मालाएं  लिपटी होती हैं , पैरों में खडाऊं  आ गए हैं …. अब उन्हें सुनने दूसरे शहरों  से भी लोग आते हैं | नीलम गुप्ता * मित्रों हम जो भी काम करें उसके अनुरूप परिधान होने चाहिए | उसके बिना बिना हमारी बात का उतना प्रभाव नहीं पड़ता | फिल्मों में भी किसी चरित्र को निभाने से पहले उसके गेट अप में आना पड़ता है |असली जिंदगी में भी यही होता है | आप जो भी करे आप के वेशभूषा उसी के अनुरूप हो | यह भी पढ़ें …….. परिवार और …पासा पलट गया  जब झूठ महंगा पड़ा बदचलन  आपको    “ मेकअप “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, makeup,personality, spiritual guru

और …पासा पलट गया

एक कहावत है , ” बड़ा कौर खा ले पर बड़ी बात बोले ” | कहावत बनाने वाले बना गए पर लोग जब -तब जो मन में आया बोलते ही रहते हैं …. इस बात से बेखबर की जब पासे पलटते हैं तो उन्हीं की बात उन के विपरीत आ कर खड़ी हो जाती है | और …पासा पलट गया  श्रीमती देसाई मुहल्ले में  गुप्ता जी की बड़ी बेटी श्यामा के बारे में सब से  अक्सर कहा करतीं , ” अरे देखना उसकी शादी नहीं होगी | रंग देखा है तवे सा काला है | कोई अच्छे घर का लड़का तो मिलेगा ही नहीं |हाँ पैसे के जोर पर कहीं कर दें तो कर दें, पर मोटी  रकम देनी पड़ेगी “|मैं तो करोंड़ों रुपये ले कर भी अपने मोहित के लिए ऐसे बहु न लाऊं कहते हुए वो अपने खूबसूरत बेटे मोहित को गर्व से देखा करतीं , जो वहीँ माँ के पास खेल रहा होता | मोहित माँ को देखता फिर खेलने में जुट जाता | मुहल्ले वाले हाँ में हाँ मिलाते , हाँ रंग तो बहुत दबा हुआ है | पर क्या पता पैसे जोड़ रही हों | तभी तो देखो किसी से मिलती -जुलती नहीं | अपने में ही सीमित रहती हैं | अब आने जाने में खर्चा तो होता ही है | मुहल्ले की इन बातों से बेखबर श्रीमती गुप्ता अपनी बेटी श्यामा को अच्छी शिक्षा व् संस्कार देने में लगी हुई थीं |क्योंकि वो कहीं जाती नहीं थीं , इसलिए उन्हें पता ही नहीं था कि श्रीमती देसाईं उनके बारे में क्या कहती हैं | कुछ साल बाद उनका तबादला दूसरे शहर में हो गया | अब श्रीमती देसाई का शिकार मुहल्ले की कोई दूसरी महिला हो गयी थी | समय पंख लगा कर उड़ गया |  युवा मोहित ने माँ के सामने  श्यामा के साथ शादी की इच्छा जाहिर की | श्यामा  , अब IIT से  इंजिनीयरिंग करने के बाद उसी MNC में काम करती थी जिसमें मोहित था | कब श्यामा के गुणों पर मोहित फ़िदा हो गया किसी को पता नहीं चला | मोहित ने सबसे पहले बताया भी तो माँ को , वो भी इस ताकीद के साथ कि अगर ये शादी नहीं हुई तो कभी शादी नहीं करेगा | माँ की मिन्नतों और आंसुओं का मोहित पर कोई असर नहीं हुआ | मजबूरन श्रीमती देसाई को  हाँ बोलनी पड़ी | शादी के रिसेप्शन में चर्चा आम थी …. ” लगता है श्रीमती देसाई को करोंड़ों रूपये मिल गए हैं तभी तो वो श्यामा से मोहित की शादी के लिए राजी हुई | “ नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … परिवार चॉकलेट केक अपनी अपनी आस बदचलन  आपको    “ और …पासा पलट गया “कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | keywords: short stories , very short stories, dice, life

उल्टा दहेज़

हमारे समाज में विवाह में वर पक्ष द्वारा दहेज़ लेना एक ऐसी परंपरा है जो  लड़कियों को लड़कों से कमतर सिद्ध करती है | अगर दहेज़ परंपरा इतनी ही जरूरी है तो आज जब लडकियाँ आत्मनिर्भर है और पुरुषों के साथ कंधे से कन्धा मिला कर चल रही हैं  तो क्यों उल्टा दहेज़ लिया जाए |  लघुकथा -उल्टा दहेज़  अरे तुम  अभी तक तैयार नहीं हुई ,कहा था न तुम्हें आज लड़के वाले देखने आने वाले हैं |  नहीं माँ मुझे उस लड़के से शादी नहीं करनी |  शादी नहीं करनी … इसका क्या मतलब है | माँ मेरे हिसाब से ये लड़का ठीक नहीं है | मैंने आपकी और पापा की बात सुन ली थी | वो लोग दहेज़ में ४० लाख रुपये मांग रहे  हैं | ये तो समाज का चलन है | सदियों से यही होता आ रहा है | सदियों से यह होता आ रहा माँ उसके लिए मैं तो कुछ नहीं कर सकती | लेकिन जो लड़का पढ़ लिख कर गलत परम्पराओं में अपने माता -पिता का साथ दे रहा है , मैं उससे शादी नहीं कर सकती |  कभी सोचा है , तुम्हारी उम्र निकली जा रही है | आगे पढने और अपने पैरों खड़े होने की तुम्हारी जिद्द  का मान  रखते हुए हमने तुम्हें मनमानी करने दी | परिवार की सब लड़कियों की शादी हो गयी , एक तुम ही बैठी हो , कभी सोचा है , उम्र निकली जा रही है |  माँ  दहेज़ लेना गलत है , फिर आप जानती हैं कि उस लड़के की तनख्वाह मुझसे बहुत कम है , फिर भी उनकी इतनी मांग , और क्या मतलब है माँ कि उम्र निकली जा रही है , क्या वो लड़का मुझसे उम्र में छोटा है |  अरे , लड़कों का तो चलता है | उनकी उम्र बढ़ना मायने नहीं रखता | रही बात तनख्वाह की तो तेरी उम्र निकली जा रही है ऐसे में कहाँ से लाऊं तुझ सा लाखों कमाने वाला , उम्र दो चार साल और बढ़ गयी तो कोई पूंछेगा भी नहीं | कम से कम हमारे बुढापे के बारे में सोचो ,  लोग कितनी बातें बना रहे हैं | तुम्हारे हाथ पीले हो तो हम भी दुनिया से आँख मिला कर बात करें | ( आँसूं पोछते हुए ) तुम्हारी इस जिद ने हमें किसी के आगे आँख उठाने लायक नहीं छोड़ा है |  ओह , तो फिर ठीक है , मैं शादी को तैयार हूँ , पर मेरी एक शर्त है |  क्या ? मुझे ४० लाख दहेज़ चाहिए | जो तुम लोगों ने मेरी पढाई के लिए  में खर्च किया है  उसके एवज में |  दिमाग ख़राब हो गया है क्या ?ये उल्टा दहेज़ कैसा ? माँ आज तक दहेज़ देते ही इस लिए थे की लड़की को फाइनेंशियल प्रोटेक्शन मिले | अब  जब  मैं उस परिवार को और लड़के को फाइनेंसियल प्रोटेक्शन दूँगी | तो दहेज़ लेने का हक़ मेरा हुआ | भले ही आपके हिसाब से ये उल्टा दहेज़ हो |  नीलम गुप्ता  * दहेज़ जैसे कुप्रथा हमारे समाज से जाने का नाम नहीं ले रही है | ” उल्टा दहेज़ क्या उस प्रथा को खत्म करने में कारगर हो सकता है | कृपया अपने विचार रखे |  यह भी पढ़ें … फैसला अहसास तीसरा कोण तीन तल दूसरा विवाह आपको    “ उल्टा दहेज़ “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, dowry, against dowry

नेगेटिव लोगों से कैसे दूर रहे

                                 एक वाक्य जो आजकल बहुत प्रचलन में है ,  ” आप जैसा सोचते हैं वैसे बनते हैं ” | हम सब अच्छा सोचना चाहते हैं , हम सब खुश रहना चाहते हैं , पॉजिटिव  रहना चाहते हैं पर ऐसा हमेशा संभव नहीं हो पाता | कई बार परिस्थितियाँ  प्रतिकूल  होती हैं  और कई बार हमारे इर्द गिर्द के कुछ लोग हमेशा नकारात्मकता से भरे रहते हैं | ये लोग हमारे अंदर भी नकारात्मकता भरते रहते हैं |  परन्तु चाह  कर भी हम उनसे दूर नहीं हो पाते क्योंकि वो या तो हमारे परिवार और करीबी लोग होते हैं या फिर साथ काम करने वाले | ऐसे में ये प्रश्न उठाना स्वाभाविक है कि हम नेगेटिव लोगों से कैसे दूर  रहे | नेगेटिव लोगों से कैसे दूर  रहे                         सबसे पहले तो मैं ये कहना चाहती हूँ कि पॉजिटिव और नेगेटिव परिस्थितियों से मिलकर हमारा जीवन बना है | हम हर समय पॉजिटिव नहीं रह सकते , न ही  नेगटिव रह सकते हैं | परिस्थितियां तो आएँगी ही जो  हमें अपने अनुसार ढालने का प्रयास करेंगी |  ज्यादातर पॉजिटिव रहने के लिए जरूरी है कि हमारे आस -पास के लोग  पॉजिटिव हों परन्तु ऐसा हमेशा नहीं होता | नकारात्मक लोग हमारे जीवन का काम का हिस्सा होते हैं | जो हमारे अच्छे खासे पॉजिटिव मूड को नेगेटिव कर देते हैं |  अगर ऐसा है  तो आप को पॉजिटिव बने रहने के लिए कुछ बातें ध्यान में रखनी होंगीं | अपने बचाव की रणनीति बनाएं                                                अगर नेगेटिव लोग आपके आस -पास हैं और आप पर बुरा प्रभाव  पड़ रहा है तो जाहिर तौर पर आपको खुद को बचाना चाहिए | जैसे अगर आप के घर के सामने की बिल्डिंग बन रही है तो आप के घर में धूल  आएगी ही | यहाँ पर आप ये तो नहीं कह सकते कि आप अपना घर बनाना बंद कर दें | आप कितना भी कहें धरना प्रदर्शन करें उनका घर तो बनेगा और आपके घर में धूल  मिटटी आएगी ही | बेहतर होगा कि आप परिस्थिति को स्वीकार करें व् बचाव की रणनीति अपनाए जैसे आप अपनी खिड़कियाँ बंद कर लें , परदे डाल  कर रखे ताकि कम धूल  आये |  इसी तरह से अगर नेगेटिव लोग आपकी जिंदगी में आ गए हैं , चाहे वो रिश्तों में हों या ऑफिस में आप उनके साथ कम से कम इंटरेकशन करें | दिव्या को जब पता चला कि उसकी जेठानी इसलिए उसके  गायन  में नुक्स निकालती है ताकी वो डर कर गाना छोड़ दे तो उसने अपना रियाज छोड़ने के स्थान पर जेठानी जी से पूछना बंद कर दिया कि सुर ठीक से लगे हैं या नहीं | आज सब दिव्या के गाने की तारीफ़ करते हैं , हालांकि उनकी जेठानी अभी भी उसमें दस बुराइयां ढूंढ लेती हैं | पर अब दिव्या को फर्क नहीं पड़ता | जानने का प्रयास केलिए कि वो नेगेटिव क्यों है                                                        आज पॉजिटिव थिंकिंग पर जोर दिया जा रहा है , हम सब चाहते हैं कि हमारे आस -पास पॉजिटिव लोग रहे | पर हमेशा जो लोग हमारे पास नकारात्मक दिखाई दे रहे हैं वो वास्तव में नकारात्मक नहीं हैं , परिस्थितियों ने उन्हें ऐसा बना दिया है | कई बार स्टे पॉजिटिव के नशे में हम अपना मूलभूत स्वाभाव सहानुभूति व् समानुभूति खो देते हैं | याद रखिये बचपन में कोई बच्चा नकारात्मक नहीं होता | परिस्थितियाँ उन्हें ऐसा बना देती हैं | जो हमारे करीब के लोग हैं हमें उनकी परिस्थिति को समझना होगा कि आखिर वो ऐसा क्यों कर रहे हैं | इससे न सिर्फ उनकी व् हमारी नकारात्मकता दूर होगी बल्कि हम ज्यादा अच्छे रिश्ते बना पायेंगे |  मीरा के चहेरे भाई की  स्कूल पिकनिक पर नदी में डूब कर मृत्यु हो गयी थी | शादी के बाद वो अपने पति को कहीं भी टूर पर जाने से रोकती अगर वो जाता तो हर आधे घंटे में फोन कर पूछती कि क्या वो ठीक है ? ऑफिस में उसके पति का माज़क बनने लगा , उसके जी में आया कि उसके बारे में मीरा हर समय गलत सोचती है , उसे विश्वास  नहीं है क्यों न इस रिश्ते  को खत्म कर लूँ | अंतिम फैसला लेने से पहले उसने मीरा से बात करने का निश्चय किया | प्यार भरे शब्दों से मीरा टूट गयी | उसने अपने बचपन का वो दर्द बता दिया जिसे वो भूल कर भी याद नहीं करना चाहती थी पर जो उसके  अवचेतन में हर पल जिन्दा था | पति के प्यार  व् सहानुभूति से वो डर धीरे -धीरे निकल गया | ऐसे बहुत से कारण होते हैं जो लोगों को हमेशा के लिए नकारात्मक बना देते हैं | अगर आप के आस -पास भी ऐसे लोग हैं तो आप कारण जानने  का प्रयास करें … हो सकता हैं उन्हें प्यार व् सहानुभूति से फिर से नार्मल किया जा सके | करे खुद की रीसाइकिलिंग                                       पानी का एक साइकिल है वो गन्दा हो जाता है तो उसे एक प्रोसेस द्वारा फिर से साफ़ कर लिया जाता है | एक प्रोसेस नेचर का बनाया हुआ है और एक प्रोसेस हमारे जल विभाग ने बनाया है | आपको भी इन  नकारात्मक लोगों के साथ वक्त बिताने के बाद थोडा समय खुद की रीसाइकिलिंग में लगाना चाहिए | आप देखेंगे कि जो लोग आप के आस -पास नकारात्मक हैं वो , ऐसा काम नहीं कर पाए हैं , या ऐसे चीज नहीं पा पाए हैं जो आपके पास है | इस कारण वो नीचा महसूस कर रहे हैं | उनकी कोशिश यही होगी कि वो आप को नीचा दिखाए या … Read more

तीन तल

युवा भविष्य के सपने देखते हैं बुजुर्ग अतीत की यादों में खोये रहते हैं और प्रोढ़ इन दोनों के लिए सोचने को विवश केवल वरतमान और कर्तव्य में ही जीते हैं | जीवन के ये तीन तल चुपके से परिभाषित कर देते हैं कि हमारी  सोच पर उम्र का असर होता है |  लघु कथा – तीन तल  दिल्ली में विश्वेश्वर प्रसाद जी का तीन तल का मकान है । सबसे नीचे के तल में वह अपनी पत्नी लक्ष्मी  देवी के साथ रहते हैं । दूसरे तल में उनका बेटा प्रकाश अपनी  पत्नी ज्योति के साथ रहता है । प्रकाश की उम्र कोई ५७ साल है । प्रकाश की एक अनब्याही बेटी नेहा बंगलौर में फैशन डिजाइनिंग का कोर्स कर रही है । सुधीर …. उनका २५  वर्षीय बेटा … जिसकी नयी नयी शादी हुई है अपनी पत्नी सुधा के तीसरे तल साथ रहता है । रात का समय है …. तीनों जोड़े सोने गए हैं । दृश्य  इस प्रकार है ।  सबसे ऊपर का तल …… ‘सुधा आज तुम इस लाल ड्रेस में बहुत सुन्दर लग रही हो‘ सुधीर  सुधा की तरफ प्रशंसा भरी नज़रों से देख कर कहता है । सुधा ख़ुशी से चहकते हुए सुधीर को देखती है और कहती है ‘ तुम क्या मुझे सदा ऐसे ही प्यार करते रहोगे । सुधीर ‘ अरे  ये भी कोइ कहने  की बात है , हमारा प्प्रेम तो अम्र होगा  … मैं तो तुम्हारे लिए ताजमहल बनवाऊंगा ‘। बीच के  तल में ………..प्रकाश ‘ सुनो ज्योति,  बेटे की शादी में बहुत खर्च हो गया है … ऊपर से नेहा की पढाई का भी खर्च है … मैं अबसे ओवरटाइम किया करूंगा ‘। ज्योति ‘ मैं भी सोंच रही हूँ बॉस से बात करके दो चार टूर मांग लूं … आखिर नेहा की शादी भी तो करनी है ‘।हाँ , कर लो , मैं भी सोच रही हूँ साबुन तेल थोड़े कम दाम वाले ही लूँ , पिताजी  मोतिया भी तो पक गया है , आखिर ओपरेशन कब तक टालेंगे |  सबसे नीचे का तल ….७५  वर्षीय विश्वेश्वर नाथ जी अपनी पत्नी लक्ष्मी  देवी से कहते हैं ‘ सुनो तुम्हें याद है जब हमारी शादी हुई थी तब तुम लाल साड़ी  में कितनी सुंदर लग रही थीं ‘। लक्ष्मी  देवी लजा कर कहती है ‘ हाँ और वही साड़ी मुन्ना ने खेलते हुए ख़राब कर दी थी …. तब तुम कितना गुस्सा हुए थे ‘। क्यों ना होता … मैं जो इतने प्यार से तुम्हारे लिए ले कर आया था … विश्वेश्वर जी ने उतर दिया । अतीत ….वर्तमान ओर भविष्य को याद करते हुए एक ही मकान के तीन तलों में तीन पीढियां सो गयीं । नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … सुकून जमीर डर प्रायश्चित बस एक बार आपको    “ तीन तल “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें | filed under: short stories, short stories in Hindi, three stories

case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ?

                                एक सवाल अक्सर उठता रहता है जो दिखता क्या वही बिकता है  या जो बिकता है वही दिखता है ?सवाल भले ही उलझन भरा हुआ है पर हम सब के लिए बहुत मह्त्वपूर्ण है | case study-क्या जो दिखता है वो बिकता है ? आप में से कई लोग सोच रहे होंगे , ” अरे हमें इससे क्या , हम कोई व्यापारी थोड़े ही हैं | अगर आप ऐसा सोच रहे हैं तो आप गलत हैं क्योंकि  हम सब लोग कहीं न कहीं कुछ न कुछ  बेंच रहे हैं |  अगर आप नौकरी कर रहे हैं तो भी आप  उस कार्य के लिए अपनी क्षमता बेंच रहे हैं , डॉक्टर या इंजिनीयर हैं तो अपना ज्ञान बेंच रहे हैं , कलाकार हैं तो अपनी कला बेंच रहे हैं | यानी हम सब कुछ न कुछ बेंच रहे हैं …. इसलिए ये  जानना हम सब के लिए उतना ही महत्वपूर्ण है | जो दिखता है वो बिकता है                                       नीलेश व् महेश दोनों साइंस टीचर हैं | दोनों के पास अपने सब्जेक्ट का ज्ञान है पर नीलेश जी ने अपने   प्रचार के लिए अख़बारों में व् विभिन्न वेबसाइट्स पर ऐड दिए | जिसमें विज्ञान के अच्छे टीचर चाहिए तो संपर्क करें में अपनी प्रोफेशनल योग्यता व्  अपना फोन नम्बर डाल दिया | उसके पास बहुत सारे कॉल्स आये व् उसे शुरुआत में ही बहुत सारे बच्चे पढ़ाने के लिए मिल गए | महेश जी ने केवल आस -पास के बच्चों को पढ़ाना  शुरू किया | उनके पास शुरुआत में बहुत कम बच्चे थे | इस तरह से ये लगता है कि जो दिखता है वही बिकता है | इस आधार पर बड़ी -बड़ी कम्पनियां विज्ञापन करती रहती है भले ही उनका प्रोडक्ट स्थापित हो गया हो | ताकि मार्किट में उनका प्रोडक्ट बराबर दिखता रहे | ऐसा करने से उसके बिकने की सम्भावना बढ़ जाती है | मेरे घर के पास में एक रिलायंस स्टोर है | वहां क्वालिटी वाल्स ने  स्कीम लगा रखी है दो छोटी ब्रिक लेने पर 50 रुपये की छूट | बड़ा -बड़ा लिखा होने के बावजूद उनकी कम्पनी की एक लड़की काउंटर पर खड़ी रहती है जो बिल भरने आये लोगों को बचत के बारे में समझा कर आइस  क्रीम खरीदने को कहती है | अक्सर लोग जो आइस क्रीम खरीदने नहीं आये होते हैं बार -बार चार्ट दिखाए जाने पर आइस क्रीम खरीद लेते हैं | इसी तरह  लक्स साबुन को ही लें साधना भी लक्स से नहाती थी और सोनम कपूर भी | सारी  सुंदर अभिनेत्रियाँ  लक्स साबुन से नहाती हैं ये लक्स के विज्ञापन का तरीका है | लक्स एक स्थापित ब्रांड है फिर भी विज्ञापन बार -बार इसलिए दिखाए जाते हैं ताकि लोग उसी ब्रांड से चिपके रहे  कोई दूसरा प्रोडक्ट न लें | क्योंकि अगर उन्होंने कोई दूसरा प्रोडक्ट लिया तो लक्स को उसकी क्वालिटी से फिर से टकराना पड़ेगा पूरा विज्ञापन उद्योग इसी पर टिका है …. “जो दिखता है वो बिकता है “इसीलिये विज्ञापन बार -बार दिखाए जाते हैं | जो बिकता है वो दिखता है                                कुछ लोगों का इसके विपरीत भी तर्क  होता है | उनके अनुसार जो माल बिकता है वही दि खता है | जैसे अगर  टी वी का कोई ब्रांड या कोई अन्य सामान बार -बार  बिक रहा है तभी वो हर दुकान पर दिखाई देगा | जो सामन बिक नहीं रहा दुकान दार उसे अपनी दूकान पर नहीं रखेंगे | मैगी पर बैन के बाद कई नूडल्स बाज़ार में आये थोड़े बहुत बिके भी , पर जब मैगी वापस लौटी तो फिर से मार्किट पर छा गयी | हर दूकान पर किसी और ब्रांड की नूडल्स हो न हों पर मैगी जरूर होती है | क्योंकि वो बिकती है इसी लिए हर दुकान पर दिखती है | जैसे  अगर आप लेखक हैं आप की कोई रचना लोगों को पसंद आ गयी तो लोग उसे शेयर करेंगे | आपने अपनी हर रचना को पूरी शिद्दत से लिखा उसका प्रचार किया | पर वही रचना हर वाल पर दिखेगी , जो लोगों को पसंद आई है| इसी क्रम में एक उदाहरण हालिया रिलीज फिल्म ” राजी” है | आलिया भट्ट की छोटे बजट की इस फिल्म का   शुरूआती प्रचार नहीं हुआ , पर क्योंकि फिल्म अच्छी बनी थी | इसलिए हॉल से निकलने वाले व्लोगों ने इसकी बहुत प्रशंसा की | समीक्षकों ने जगह -जगह समीक्षाएं लिखी | माउथ पब्लिसिटी इतनी जबरदस्त हुई कि ३० करोंड़ के बज़ट की फिल्म देखते ही देखते 100 करोंड़ क्लब में शामिल हो गयी | किसी लो बज़ात फिल्म के लिए ये किसी चमत्कार से कम नहीं है | और ये सब बिना किसी विज्ञापन या प्रचार के हुआ |  यानी जो बिकता है वही दिखता है | दिखता या बिकता से महत्वपूर्ण है कौन टिकता है                                               ऊपर के उदाहरणों से दोनों बातें तय हो रही है जो दिखता है वो बिकता है ये फिर जो बिकता है वही दिखता  है | परन्तु इन दोनों से महत्वपूर्ण बात ये है कि मार्किट में टिकता वही है जिस प्रोडक्ट में  दम हो | जैसे मान लीजिये नीलेश को शुरू में बहुत सारे ट्यूशन मिल गए व् महेश को बहुत कम | निखिल के पढ़ाने के तरीके से विद्यार्थी खुश  नहीं हुए धीरे -धीरे उसका नाम गिरने लगा उसे कम ट्यूशन मिलने लगे पर महेश के पढ़ाने के तरीके को उसके  विद्यार्थियों ने पसंद किया माउथ पब्लिसिटी से उसका काम आगे बढ़ा | एक साल के अंदर निखिल के ट्यूशन बहुत कम व् महेश जी के ट्यूशन बहुत हो गए |                                        आप इसको ऐसे भी समझ सकते हैं कि  आप विज्ञापन … Read more

ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल

              ये दुनिया कितनी सुंदर है … नीला आकाश , हरी घास , रंग बिरंगे फूल , बड़े -बड़े पर्वत , कल -कल करी नदिया और अनंत महासागर | कितना कुछ है जिसके सौन्दर्य की हम प्रशंसा करते रहते हैं और जिसको देख कर हम आश्चर्यचकित होते रहते हैं | परन्तु कुछ लोग ऐसे भी हैं जिनकी दुनिया अँधेरी है …  जहाँ हर समय रात है | वो इस दुनिया को देख तो नहीं सकते पर समझना चाहे तो कैसे समझें क्योंकि काले  अक्षरों को पढने के लिए भी रोशिनी का होना बहुत जरूरी है | दृष्टि हीनों की इस अँधेरी दुनिया में ज्ञान की क्रांति लाने वाले मसीहा लुईस ब्रेल स्वयं दृष्टि हीन थे | उन्होंने उस पीड़ा को समझा और दृष्टिहीनों के लिए एक लिपि बनायीं जिसे उनके नाम पर ब्रेल लिपि कहते हैं | आइये जानते हैं लुईस ब्रेल के बारे में … ब्रेल लिपि के जनक लुई ब्रेल लुईस ब्रेल का जन्म फ़्रांस केव एक छोटे से गाँव कुप्रे  में ४ फरवरी सन १८०९ में हुआ था | उनके पिता साइमन रेले ब्रेल शाही घोड़ों के लिए जीन और काठी बनाने का कार्य करते थे |  उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी | लुई ब्रेल की बचपन में  आँखे बिलकुल ठीक थीं | नन्हें लुई  पिता के साथ उनकी कार्यशाला में जाते और वहीँ खेलते | तीन साल के लुईस के खिलौने जीन सिलने वाला सूजा , हथौड़ा और कैंची होते | किसी भी बच्चे का उन चीजों  के प्रति आकर्षण जिससे उसके पिता काम करते हो सहज ही है | एक दिन खेलते -खेलते  एक सूजा  लुई की आँख में घुस गया | उनकी आँखों में तेज दर्द होने लगा  व् खून निकलने लगा | आप भी कर सकते हैं जिन्दिगियाँ रोशन उनके पिता उन्हें घर ले आये | धन के आभाव व् चिकित्सालय से दूरी के कारण उन लोगों  डॉक्टर  को न दिखा कर घर पर ही औषधि का लेप कर के उनकी आँखों पर पट्टी बाँध दी | उन्होंने सोचा कि बच्चा छोटा है उसका घाव स्वयं ही भर जाएगा | परन्तु ऐसा हुआ नहीं | लुई की एक आँख की रोशिनी जा चुकी थी | दूसरी आँख की रोशिनी भी धीरे -धीरे कमजोर होती जा रही थी | फिर भी उनके घर वाले उन्हें धन के आभाव में चिकित्सालय ले कर नहीं गए | आठ साल की आयु में उनकी दूसरी आँख की रोशिनी भी चली गयी | नन्हें लुई की दुनिया में पूरी तरह से अँधेरा छा गया | ब्रेल लिपि का आविष्कार                                   लुईस ब्रेल बहुत ही हिम्मती बालक थे | वो इस तरह अपनी शिक्षा को रोक कर परिस्थितियों  के आगे हार मान कर नहीं बैठना चाहते थे | इसके लिए उन्हने पादरी बैलेंटाइन से संपर्क किया | उन्होंने  प्रयास करके उनका दाखिला ” ब्लाइंड स्कूल ‘में करवा दिया | तब नेत्रहीनों को सारी  शिक्षा बोल-बोल कर ही दी जाती थी | १० साल के लुई ने पढाई शुरू कर दी पर उनका जन्म कुछ ख़ास करने के लिए हुआ था | शायद भगवान् को जब किसी से बहुत कुछ कराना होता है तो उससे कुछ ऐसा छीन लेता है जो उसके बहुत प्रिय हो | नेत्रों को खोकर ही लुई के मन में अदम्य  इच्छा उत्पन्न हुई कि कुछ ऐसा किया जाए कि नेत्रहीन भी पढ़ सकें | वो निरंतर इसी दिशा में सोचते | ऐसे में उन्हें पता चला कि सेना में सैनिको के लिए कूट लिपि का इस्तेमाल होता है | जिसमें सैनिक अँधेरे में शब्दों को टटोल कर पढ़ लेते हैं | इस लिपि का विकास कैप्टेन चार्ल्स बर्बर ने किया था | ये जानकार लुईस की प्रसन्नता का ठिकाना न रहा , वो इसी पर तो काम कर रहे थे कि नेत्रहीन टटोल कर पढ़ सकें |  वे कैप्टन से मिले उन्होंने अपने प्रयोग दिखाए | उनमें से कुछ कैप्टन ने सेना के लिए ले लिए | वो उनके साहस को देखकर आश्चर्यचकित थे क्योंकि उस समय लुईस की उम्र मात्र १६ साल थी | मर कर भी नहीं मरा हौसला                                        लुइ ब्रेल पढने में बहुत होशियार थे | उन्होंने आठ वर्ष तक कठिन परिश्रम करके १८२९ में ६ पॉइंट वाली ब्रेल लिपि का विकास किया | इसी बीच उनकी नियुक्ति एक शिक्षक के रूपमें हुई | विद्यार्थियों के बीच लोकप्रिय ब्रेल की ब्रेल लिपि को तत्कालीन शिक्षा विदों ने नकार दिया | कुछ का कहना था की ये कैप्टन चार्ल्स बर्बर से प्रेरित  है इसलिए इसे लुई का  नाम नहीं दिया जा सकता तो कुछ बस इसे सैनिकों द्वारा प्रयोग में लायी जाने वाली लिपि ही बताते रहे | लुई निराश तो हुए पर उन्होंने हार नहीं मानी |  उन्होंने जगह -जगह स्वयं इसका प्रचार किया | लोगों ने इसकी खुले दिल से सराहना की पर शिक्षाविदों का समर्थन न मिल पाने के कारण इसे मान्यता नहीं मिल सकी | अपनी लिपि को मान्यता दिलाने की लम्बी लड़ाई के बीच वो क्षय रोग ग्रसित हो गए और ६जन्वरी  १८५२ को जीवन की लड़ाई हार गए | पर उनका हौसला मरने के बाद भी नहीं मरा वो टकराता रहा शिक्षाविदो से , और , अन्तत : जनता के बीच अति लोकप्रिय उनकी लिपि को शिक्षाविदों ने गंभीरता से आंकलन करना शुरू किया | अब उन्हें उसकी खास बातें समझ आने लगीं | पूरे विश्व में उसका प्रचार होने लगा और उस लिपि को आखिरकार मान्यता मिल गयी |                                              फोटो क्रेडिट –shutterstock.com क्या है ब्रेल लिपि                   ब्रेल लिपि जो नेत्रहीनों के लिए प्रयोग में लायी जाती  है उसमें प्रत्येक आयताकार में ६ उभरे हुए बिंदु यानी कि डॉट्स होते हैं |  यह दो पक्तियों में बनी होती है इस आकर में अलग -अलग 64 अक्षरों को बनाया जा सकता है | एक  … Read more