कैसे करें अपनी लाइफ से negativity eliminate

                             हम सब positive रहना चाहते हैं | positive thinking पर ढेरों किताबें भी पढ़ते हैं | पर फिर भी negativity हमारा पीछा नहीं  छोडती |  क्या आप जानते हैं कि  ऐसा क्यों होता है?तो आइये आज हम जाने कि कैसे हर समय पॉजिटिव रह सकते हैं और negativity को अपनी लाइफ से पूरी तरह से दूर कर सकते हैं | जानिये कैसे करें अपनी लाइफ से negativity eliminate                                                        दोस्तों , मुझे एक वाकया  याद आ रहा है | एक बार मैं अपने भाई से बात कर रही थी | बात पेंट खरीदने पर हो रही थी |  हम तरह -तरह के रंग की राय दे रहे थे | तभी जुबान फिसल गयी( होता है कभी -कभी )और मैंने कहा,” भैया इस दीपावली को आप हरे रंग की सफ़ेद पेंट लेना| इतना सुनना था की सब हँस पड़े | क्योंकि ये रंग तो संभव ही नहीं था| कोई एक ही हो सकता था, या तो हरा या सफ़ेद | या दोनों को मिला दो तो भी एक नया रंग ही बनेगा| वो बात तो हँसी में टल गयी | बरसों बाद मैंने यही बात Positivity और Negativity में भी देखी |               ये दोनों भावनाएं एक साथ नहीं रह सकती | या व्यक्ति पॉजिटिव होगा या नेगेटिव,  या रो रहा होगा या खुश होगा, या कुछ बुरा सोंच रहा होगा, या अच्छा सोंच रहा होगा | कहने का मतलब ये है कि ये दोनों चीजे एक साथ नहीं रह सकती|  आप कह सकते हैं कि ख़ुशी के आँसूं  होते हैं , कुछ तो ये भी कह सकते हैं कि गम की भी हँसी होती है 🙂 🙂 , पर दोनों ही परिस्थितियों में आप की feeling एक ही होगी या ख़ुशी की या गम की , दोनों एक साथ नहीं | यानी एक तो अपने आप eliminate हो ही जाएगा | Negativity eliminate करने के लिए बनिए positive maganet                                                                 अब ये तो आप जान गए की दो भावों में से एक भावना  ही रह जायेगी | लेकिन क्या आप जानते है कि ये अपने आप हो जाता है | इसे करने की आपको जरूरत नहीं पड़ती | जैसे …  आप रात में देर तक जागते हैं और दिन में देर तक सोते हैं तो आपकी लाइफ से  ८ घंटे वो लोग eliminate हो जायेंगे जो जल्दी सोते और जल्दी उठते हैं | आप ऑफिस टाइम से पहले पहुँचते हैं तो आप की लाइफ से वो लोग eliminate हो जायेंगे जो देर से आते हैं | और उनकी लाइफ में से आप eliminate हो जायेंगे |  अगर आप पढने वाले बच्चे हैं तो आपकी लाइफ से वो friends eliminate हो जाते हैं जो time बर्बाद करते हैं |  अगर आप खेलने में रूचि लेते हैं हैं तो वो लोग आपकी life से निकल जाते हैं जो ज्यादा पढ़ते हैं |  अगर आप गप्प मारने के शौक़ीन हैं तो ऐसे लोग आपको देख कर दूर भाग जाते हैं जो फ़ालतू बात करना पसंद नहीं करते |  अगर आप बहुत भावुक हैं तो practical thinking वाले लोग आपका  साथ पसंद नहीं करते ,  इसलिए वो eliminate हो जाते हैं | फिर भी अगर वो आपकी life में आ रहे हैं तो जरूर उनकी किसी प्रैक्टिकल  योजना के कारण |                                      उदाहरण बहुत हैं आप खुद ही इस लिस्ट को बड़ा  कर सकते हैं | मेरा कहने का मतलब ये हैं कि आप जैसे हैं वैसे ही लोग आप की तरफ खींचते हैं | हम सब एक magnet हैं | लेकिन खास बात ये हैं की बेचारे मैगनेट के विपरीत हम खुद अपने नार्थ और साउथ पोल को बदल सकते हैं | यानी अगर आप पॉजिटिव रहना चाहते हैं ( मुझे उम्मीद है की आप पॉजिटिव रहना चाहते हैं तभी आप ये लेख पढ़ रहे हैं | ) तो आप को सबसे पहले खुद पॉजिटिव होना पड़ेगा | कैसे बने Positive                                  पॉजिटिव होने का मतलब है आप का माइंड पॉजिटिव है | इसके लिए आप को हर बात में Positivity ढूंढनी पड़ेगी |जैसे … आज बस नयी मिली ,… अच्छा है  टहलते हुए जायेंगे , कुछ exercise हो जायेगी | बीमार पड़ गए … कितने दोस्त व् रिश्तेदार मिलने आ रहे हैं , मुझ्गे लोग कितना चाहते हैं | काम वाली नहीं आई … आज  ज्यादा अच्छे से सफाई कर पाऊँगी , वो तो कोने छोड़ देती है | जो भी नौकरी या काम मिला … वाह इसमें कितना कुछ सीखने को है | नौकरी छूट गयी … जिंदगी तो नहीं छूटी , कुछ न कुछ  कर ही लेंगे |                                                                     अब इस लिस्ट को भी आप ही बढ़ाइए | मेरा कहने का मतलब ये है कि आप को हर चीज में पॉजिटिव कारण खोजना है | क्योंकि लाइफ वही है जिस पर आप फोकस करते हो | उदाहरण देखिये … स्टीफन हाकिंग अगर अपनी बीमारी पर फोकस करते तो क्या साइंटिस्ट बन कर दुनिया को इतना दे पाते | निक व्युजेसिक जो बिना  हाथों , पैरों के पैदा हुआ क्या मोटिवेशनल स्पीकर बन पाता | स्टीव जॉब्स अपनी ही कम्पनी से निकाले जाने पर वापस अपना एम्पायर खड़ा कर पाते | केतकी जानी एलोपेसिया की शिकार हो कर  mrs india कांटेस्ट में फाइनल तक पहुँच पाती | संदीप माहेश्वरी कॉलेज ड्राप आउट होने के बाद एक सफल व्यवसायी व् मोटिवेशनल … Read more

सफलता और शब्दोंकी शक्ति

                                         शब्दों को हमारे जीवन में बहुत महत्व हैं| हम अपने विचार , भावनाएं , इच्छायें सब शब्दों के माध्यम से ही तो व्यक्त करते हैं | शब्दों से ही रिश्ते बनते हैं , बिगड़ते हैं | कई बार कोई हमें एक चाटा  मार दे वो हम भूल जाते हैं , पर अगर किसी ने  अपने शब्दों से जो हमारा दिल दुखाया होता है उसे हम जीवन भर नहीं भूलते| शब्दों का प्रभाव बहुत गहरा होता है |                         हमारे शास्त्रों में शब्दों को ब्रह्म भी कहा गया है | क्या आपने ऐसा सोचा है कि क्यों? क्योंकि शब्दों का हमारे जीवन पर गहरा असर होता है|  उन शब्दों का जो हम बोलते हैं सुनते हैं हमारे ऊपर बहुत प्रभाव पड़ता है | परन्तु  उन शब्दों का हम पर सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ता है जो हम खुद से बोलते हैं | ये ही हमारे रिश्ते सफलता , ख़ुशी शांति या अशांति का सबसे बड़ा कारण बनते हैं | यूँ तो शब्दों जीवन के हर क्षेत्र में व्यापक प्रभाव है | पर आज मैं शब्दों के आपकी  Success से  संबंध बताऊँगी | जिसके बाद आप अपने Words पर जरूर ध्यान देने लगेंगे | सफलता और शब्दों की शक्ति  /How to use power of words(in Hindi) सफलता का शब्दों से क्या संबंध है इस पर कुछ लिखने से पहले मैं आप के साथ एक प्रयोग करना चाहती हूँ | जरा नीचे दिए शब्दों को चार -बार पढ़िए .. निराशा , दुःख , दर्द , तकलीफ , गम , बिमारी  अब फिर से इन शब्दों को पढ़िए .. ख़ुशी , हँसी , सफलता , सौभाग्य , स्वास्थ्य                                     क्या आपको कुछ अंतर लगा| जरूर लगा होगा | पहली बार आपको दर्द और दुःख महसूस हुआ होगा और दूसरी बार ख़ुशी |                                                अब जरा रोजाना इस्तेमाल किये जाने वाले अपने WORDS पर गौर करके देखिये कि  आप अपने जीवन में किन शब्दों का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं .. जैसे .. मेरी जिंदगी में बहुत मुश्किलें हैं | मेरी LIFE में  कभी कुछ अच्छा होता नहीं  मेरा तो नसीब ही खोटा है | मैं तो ऊपर से लिखवा के आया ? आई हूँ की सोने में भी  में हाथ डालूँगा  वो मिटटी हो जाएगा | पता नहीं भगवान् ने किस कलम से मेरा भाग्य लिखा है |  या new generation के words… झंड लगी है , डब्बा गोल है , आदि |  इसके अतिरिक्त कुछ और शब्द हैं जैसे , काश , कर सकता हूँ , करना चाहता हूँ | ये शब्द सोंच की शक्ति या WILL POWER को कम करते हैं | जिस कारण उस काम के भी पूरा  होने में बड़ा प्रश्न चिन्ह लगा रहता है |                                                                            अगर आप भी बार- बार ऐसे ही शब्दों का इस्तेमाल करते हैं | तो निश्चित रूप से आपके जीवन में सफलता के मौके दूर से की सलाम कर लेते होंगे | सफलता के अलावा जो लोग ऐसे शब्द बार -बार बोलते हैं उनके ज्यादा दोस्त नहीं होते| सबके जीवन में सौ  परेशानियां होती हैं | किसके पास इतना समय है कि वो दर्द भरी कहानी सुने | यानि रिश्तों से भी गए और सफलता से भी तो  ख़ुशी तो दूर हो ही गयी | इन सब के पीछे अगर किसी का हाथ है तो वो है शब्द | क्या है शब्दों के मन पर पड़ने वाले प्रभाव का विज्ञान                                        इन NEGATIVE शब्दों का हमारे मन पर बहुत प्रभाव पड़ने का कारण  हमारा तंत्रिका तंत्र है | दरअसल हमारे दिमाग में एक छोटा सा हिस्सा होता है | जिसे AMYGDALA   कहते हैं | देखने में तो ये बादाम जैसा होता है | पर एक भी नेगेटिव शब्द से ये एक्टिवेट हो जाता है और तुरंत ही स्ट्रेस हरमोंन  रिलीज करने लगता है| जिसका असर हमारी भावनाओं पर , मन पर और पूरे शरीर पर पड़ता है | आप किसी इंसान को देख कर ही पता लगा सकते हैं कि वो STRESS में है | क्योंकि स्ट्रेस में आते ही शरीर ढीला पड़ जाता हैं ,कंधे झुक जाते हैं और सोंचने समझने की शक्ति भी कम हो जाती है |  अगर सही शब्दों में कहें तो हमारा मन व् शरीर दोनों नेगेटिव हो जाते हैं | जब आप इस मानसिक स्थिति में किसी से बात करते हों , कोई इंटरव्यू दे रहे हों , या कोई मनपसंद फिल्म ही क्यों न देखते हो … कुछ भी अच्छा नहीं लगता , कुछ भी अच्छा नहीं होता |                                          उसके विपरीत POSITIVE WORDS हमें स्ट्रेस फ्री करते हैं , हमारे आत्मविश्वास को बढाते हैं | हम सब जानते है की सफलता आत्मविश्वास से मिलती है| दो STUDENTS जिन्हें  बराबर  ज्ञान हो इंटरव्यू देने जाएँ तो वही बच्चा सेलेक्ट होगा जिसका आत्मविश्वास बढ़ा  हुआ हो , जिसका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ होता है वो छोटी- छोटी बातों  को माइंड नहीं करता , जिस कारण उसके रिश्ते अच्छे चलते हैं , और इसी कारण  वो खुश रहता है |  इसलिए जरूरी है की हम नकारात्मक शब्दों से दूर रहे | सफलता चाहिए तो शब्दों को बदलें                                                 अगर आप अपने ऊपर इतने सारे निगेटिव शब्दों का भार  लिए चलेंगे तो सफलता हमेशा आपसे दो कदम दूर रहेगी … Read more

जानिये एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम को

एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम, यानि की खाली घोंसला और सिंड्रोम मतलब लक्षणों का समूह|  जैसा की नाम से ही स्पष्ट है यह उन लक्षणों का समूह है जो बच्चों द्वारा हॉस्टल या नौकरी पर घ से चले जाने से माता- पिता खासकर माँ में उत्पन्न होता है |आइये जानते हैं इसके बारे में … नए ज़माने की बिमारी एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम        आज सुधा जी के घर गयी| सोफे पर उदास सी बैठी थी| मेरे लिए पहचानना मुश्किल था यह वही  सुधा जी हैं जिन्हें कभी शांति से बैठे नहीं देखा| एक हाथ बेसन में सने बेटे के लिए पकौड़ियाँ तल रही होती दूसरे हाथ से एक्वागार्ड ओन कर पानी भर रही होती और मुंह जुबानी बेटी के गणित के सवालों से जूझ रही होती| अक्सर मुस्करा कर कहा करती तुम आ जाया करो ,मेरे पास तो फुर्सत नहीं है| मेरी तो हालत यह है कि अगर यमराज भी आ जाए तो मैं कहूँगी अभी ठहर जाओ पहले ये काम खत्म कर लूँ| मैं मुस्कुरा कर कहती करिए ,करिए ,ये समय भी हमेशा नहीं रहेगा|  पर आज …. मैंने उनके कंधे पर हाथ रख कर पूंछा “ क्या हुआ? उनकी आँखों से आँसू की धारा बह चली| सुबुकते हुए बोली “ कितना चाहती थी मैं की बच्चे कुछ बन जाए, जीवन में सफल हो जाए …उनको समय पर हेल्दी खाना , डांस क्लासेज, ट्युशन ले जाना ,पढाना, हर समय उन्हीं के चारों ओर घूमती रहती| अब जब की दोनों का मनपसंद कॉलेज में चयन हो गया है और मुझसे दूर चले गए हैं …. घर जैसे काट खाने को दौड़ता है| अब कौन है जिसको मेरी जरूरत है, खाना बनाऊ  तो किसके लिए, कौन बात –बात पर कहेगा “ आप दुनियाँ की सर्वश्रेष्ठ मॉम हो| कहकर वो फिर रोने लगी |                   ये समस्या सिर्फ सुधा जी की नहीं है| इससे एकल परिवार में रहने वाली ज्यादातर महिलाएं व् कुछ हद तक पुरुष भी जूझ रहे हैं| वो बच्चे जो माँ के जीवन की धुरी होते हैं जब अचानक से हॉस्टल चले जाते हैं तो माँ का जीवन एकदम खाली हो जाता है| २४ घंटे व्यस्त रहने वाली स्त्री को लगता है जैसे उसके पास कोई काम ही नहीं हैं| यही वो समय होता है जब उनके पति अपने –अपने विभाग में ज्यादा जिम्मेदारियों में व्यस्त होते हैं| एकाकीपन और महत्वहीन होने की भावना स्त्री को जकड लेती है| मनो चिकित्सीय भाषा में इसे एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कहते है| क्या है एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम                 शाब्दिक अर्थ देखे तो ,एक चिड़िया द्वारा तिनके –तिनके को जोड़कर घोसला बनाना फिर चूजे के पर लगते ही उसका खाली हो जाना| देखा जाए तो एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम कोई शारीरिक बीमारी नहीं है|  ये उस खालीपन का अहसास है जो बच्चों के घर के बाहर चले जाने से उत्पन्न हो जाता है| ये अहसास  अब बच्चों को मेरी जरूरत नहीं रही| या मुझे अब २४ घंटे बच्चों का साथ नहीं  मिलेगा| साथ ही बच्चों की जरूरत से ज्यादा चिंता … वो ठीक से तो होगा , सुरक्षित होगा , खाया होगा या नहीं| यदि किसी का एक ही बच्चा है और उसने जरूरत से ज्यादा अपने को बच्चे में व्यस्त कर रखा है तो उसकी पीड़ा भी ज्यादा होगी|  एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम के लक्षण             इस के शिकार पेरेंट्स ऐसी वेदना से गुजरते हैं जैसे उनका बहुत कुछ खो गया है | इसके अतिरिक्त उनमें  हर समय होने वाले सर दर्द ,  आइडेंटिटी क्राइसिस , और  वैवाहिक झगड़ों व्  अवसाद के भी लक्षण दिखाई देते हैं | एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम में क्या करे           जाहिर है यह मानसिक अवस्था है ,इसलिए इसकी तैयारी भी मानसिक ही होगी | जब आपके बच्चे दूर रह रहे हों तब  अपने टाइम टेबल के हिसाब से उनका टाइम टेबल सेट करना छोड़ दीजिये ,बल्कि इस बात पर ध्यान देने की कोशिश करिए की आप अपने बच्चे की सफलता में अब  क्या योगदान दे सकते हैं|  फोन ,विडिओ कालिंग या वहां जा कर उनसे टच बनायें रखिये | जितना हो सके सकरात्मक रहिये| अगर आप फिर भी अवसाद महसूस कर रहे हैं तो दोस्तों ,रिश्तेदारों की मदद लीजिये व् अगर जरूरत समझे तो डॉक्टर को दिखाने में देर न करिए| इस समय का उपयोग अपने जीवन साथी के साथ झगड़ने में नहीं रिश्ते सुधारने में करिए| क्योंकि अब आप आराम से एक दूसरे को वक्त दे सकते हैं, कैंडल लाइट डिनर कर सकते हैं |ताजमहल घूमने जा सकते हैं |     एम्प्टी नेस्ट सिंड्रोम से बचने की तैयारी    आपको पता है कि बच्चो को अपना भविष्य बनाने के लिए आपसे दूर जाना ही है तो उसकी तैयारी पहले से करिए | कोई रचनात्मक स्किल में रूचि लीजिये |कोई एन जी .ओ ज्वाइन कीजिये |  घर के अन्दर और बाहर कोई बड़ी जिम्मेदारी लीजिये |कुछ भी ऐसा कीजिये जिसमें  आप अपनी पूरी शक्ति झोक सके और आप को उस खालीपन का अहसास न हो जो बच्चों के घर से दूर जाने की वजह से उत्पन्न हुआ है |  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें …. प्रिंट या डिजिटल मीडिया कौन है भविष्य का नंबर वन बिगड़ते रिश्तों को संभालता है पॉज बटन आखिर क्यों 100% के टेंशन में पिस रहे हैं बच्चे गुरु कीजे जान कर   आपको  लेख “क्या पृथ्वी से बाहर ब्रह्माण्ड में कहीं जीवन है?“ कैसा लगा  | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें |   

सपने सच भी होते हैं …

                                          आज मैं आप को ले जाने वाली हूँ सपनों की दुनिया में|  जब हम रात में सोते हैं तो सपने बिन बुलाये मेहमान की तरह आ जाते हैं, और सुबह होते ही फुर्र से उड़ जाते हैं|  अक्सर तो हमें याद भी नहीं रहते वो सपने जिन्हें पूरी रात भर बड़ी शिद्दत से देखते हैं, पर आज मैं दिन में देखे जाने वाले सपनों की बात कर रही हूँ|  वो सपने जो हम कुछ बनने के, कुछ करने के,   कुछ पाने के देखते हैं|  वो सपने जो खुली आँखों से देखे जाते हैं|                                         हम सब अपने जीवन में कुछ करना चाहते हैं जिसका सपना हम मन ही मन पाले रहते हैं|  आज के समय में अगर आप डॉक्टर या इंजीनीयर, वगैरह-वगैरह बनना चाहते हैं तो समाज आप के सपने को सुनते ही ख़ारिज नहीं कर देगा|  भले ही आप को सामाजिक दवाब झेलना पड़े पर लोग ये तो नहीं कहेंगे कि अरे, ये भी कोई काम है करने लायक?                                          लेकिन अगर आप सिंगर, एक्टर, लेखक, पेंटर आदि बनना चाहते हैं तो?  तो सबसे पहले आपको माता–पिता के प्रश्नों का जवाब देना पड़ेगा|  वो कहेंगे, “जिंदगी खराब हो जायेगी इससे|  ये भी कोई काम है करने लायक|  दो पैसे भी नहीं कमा पाओगे|”  16-17 की उम्र में आप डर जायेंगे और अपने सपनों को एक बक्से में बंद कर के लग जायेंगे केमिस्ट्री की बेंजीन रिंग का फार्मूला याद करने में|  आखिरकार इसी से तो निकलेगा दो पैसे कमाने का रास्ता|  पर अंदर ही अंदर आप निराश और कुंठित होंगे|  इस कारण न तो आप अपना सपना पूरा कर पायेंगे, न ही ठीक से केमिस्ट्री पढ़ कर अपने पिताजी का सपना पूरा कर पायेंगे|  फिर क्या?  बेरोजगारों की लिस्ट में आप का भी नाम जुड़ जाएगा| All your dreams will come true (In Hindi )                 सपने टूटते हैं तो बहुत दर्द होता है|  मैं नहीं चाहती कि किसी के भी सपने टूटें और बिखरें और वो दर्द से गुज़रें|  अगर आप अपने सपने के प्रति दीवाने हैं, तो आपको उस काम को करने के लिए शुरूआती ताकत अपने अंदर से ही लानी होगी|  जानिये कैसे- सपनों को खुल कर बताने की हिम्मत करिए                                                  कितने लोग हैं जो अपने सपनों को बताने की हिम्मत ही नहीं करते हैं|  वो पहले से ही डर जाते हैं कि पापा, या मम्मी, या भैया, या पड़ोस वाले अंकल जी, या चाचा के ताऊ की बहन क्या कहेंगे | सबसे बड़ा रोग, क्या कहेंगे लोग – संदीप माहेश्वरी                  दरअसल लोग एक सेट पैटर्न में जिन्दगी जीते हैं और उसी में हमें जीते हुए देखना चाहते हैं|  हम सब उनकी ‘हाँ’ ना मिल पाने के भय के कारण अपने सपने कहते ही नहीं|  हमें समाज की स्वीकृति चाहिए होती है|  हमें लगता है जो सोसायटी कह रही है वही करना है क्योंकि वही सुरक्षित रास्ता है|  यही सोंच कर बैठ जाते हैं सपनों को मार कर|  इसलिए सबसे पहले हिम्मत कर के सपनों को बताइए|  यहाँ पर एक बात और है कई बार हम सोसायटी के कहने पर चुप इसलिए हो जाते हैं क्योंकि हमें खुद अपने सपने और अपने ऊपर विश्वास नहीं होता है|  हमें लगता है कि अगर हमने अपना सपना शेयर किया और स्वीकृति मिल गयी, फिर उसे हम खुद ही पूरा न कर पाए तो?  अगर ऐसा है तो ये वो सपना नहीं है जिसने आपकी नींद उड़ा दी है|  ऐसे में सफलता मिलना मुश्किल है |  फर्स्ट रीएक्शन के लिए तैयार रहिये                            ऐसा नहीं है की आपने खुल कर अपने सपने के बारे में बात की तो सबने हाँ में हाँ मिला दी|  उन का पहला रीएक्शन ऐसा होगा की आप को लगे कि कह कर गलती की है|  चलो वापस उसी पैटर्न में लौट जाते हैं|  मुझे याद है कि जब मैंने अपने पिताजी से कहा था कि मैं लेखक बनना चाहती हूँ तो उन्होंने पहला शब्द यही कहा था, “लेखक, ये भी कोई चीज है बनने की? लिख लो, चार दिन में ऊब जाओगी, कुछ लिख नहीं पाओगी|”  और मैंने लिख लिया,  अपने दिमाग के पन्ने पर|  आपको क्या लगा?  यह सुनकर मुझे पढ़ लिख कर डिग्री पर डिग्री हासिल करना ठीक लगा?  हम में से अधिकतर लोग यही करते हैं|  बस यहीं पर वो फंस जाते हैं|  मैंने दिमाग के पन्ने पर लिखा कि अब मुझे लेखक ही बनना है|  याद रखिये, जब सपना देखा है तो पूरा करने में यह पहला अवरोध है|  हिम्मत करके इसका सामना करिए|  अवरोध खुद ब खुद गिर जाएगा|  ये अवरोध तो आप को डराने के लिए हैं|  अंदर जितना डर होगा, अवरोध उतना ही बड़ा लगेगा|  याद रखिये, शुरू में आप के सपने का कोई साथ नहीं देगा                                            अगर आप ने अपने सपने को पूरा करने की दिशा में कदम बढ़ाया ही है, तो याद रखिये कि शुरू में आप का कोई साथ नहीं देगा|  सबको अजीब लगता है कि कोई ऐसा सपना कैसे देख सकता है जो उनके द्वारा स्वीकृत न हो|  हालांकि शुरू का सहयोग सबसे ज्यादा मायने रखता है, क्योंकि उस समय आप एक अनदेखी दिशा में कदम रखते हैं, बार–बार हिम्मत टूटती है|  कई बार लगता है, कोई हो जो रास्ता बता दे या कम से कम मन की उहापोह को सुन ले|  लेकिन आप ये उम्मीद जितनी जल्दी छोड़ देंगे उतना ही अच्छा होगा, क्योंकि उम्मीद से आप अपनी हार का दोष दूसरों पर डाल देते हैं|  आप कहते हैं, “अगर वो साथ होता तो…”  या फिर हर रोज़ उम्मीद करके और … Read more

टेंशन को न दें अटेंशन

 मित्रों  , हो सकता है की लेख का  टॉपिक देख कर आप को टेंशन हो गया हो , आप की त्योरियां थोड़ी चढ़ गयी हो | वो क्या है ना टेंशन बड़ा संक्रामक होता है | इसलिए सावधान हो जाइए क्योंकि  आज मैं टेंशन की नहीं टेंशन को अटेंशन न देने की बात करने आई  हूँ  How to live a stress-free life (In Hindi) सबसे पहले  आपका मूड थोडा रिलैक्स करने के लिए आपको एक छोटी सी कहानी सुनाती हूँ | एक बार की बात एक प्रोफ़ेसर क्लास में एक गिलास ले कर आये | उन्होंने गिलास हाथ में ले कर बच्चों से पूंछा ,” बच्चों इसका वजन क्या है ? किसी बच्चे ने कहा २५ ग्राम किसी ने कहा ५० ग्राम , किसी ने … प्रोफ़ेसर ने कहा , “ इसका वजन कितना भी हो अगर मैं  इसे ऐसे ही लिए खड़ा रहूँ तो १५ मिनट बाद क्या होगा आप का हाथ में दर्द हो  जाएगा सर , बच्चों ने कहा | अच्छा अगर आधा घंटा ऐसे ही लिए खड़ा रहूँ तो ? तो आप का हाथ अकड़  जायेंगे | अगर एक घंटा ऐसे ही खड़ा रहूँ तो ? प्रोफेसर ने पूंछा तब तो आपके हाथ सुन्न पड़ जायेंगे , हो सकता है आप को हॉस्पिटल में एडमिट करना पड़े |बच्चों ने कहा  फिर … फिर मैं क्या करूँ ,” प्रोफ़ेसर ने घबरा कर पूंछा गिलास नीचे रख दीजिये सर ,बच्चों ने एक साथ कहा | प्रोफ़ेसर ने गिलास नीचे रख कर बच्चों से कहा , “बच्चों इतनी देर में गिलास का वजन तो नहीं बढा  फिर भी मेरे हॉस्पिटल पहुँचने की नौबट आ गयी | ये प्रयोग मैंने आप लोगों को ये समझाने के लिए किया था कि ये  गिलास टेंशन की तरह है जिसे आप जितनी देर अपने सर पर लादे रहेंगे उतना ही आपका नुकसान होता जाएगा | क्योंकि टेंशन  चाहे जितना छोटी सी बात का क्यों न हो यह नकारात्मकता का भार  लिए रहता है | इस बोझ के कारण हमारे सोंचने समझने ,  काम करने की हर क्षमता प्रभावित होती हैं | तो ये तो रही प्रोफेसर की बात | ये बात मैंने आपसे इसलिए की ताकि आप संक्रामक होने वाले टेंशन में न आये | अब मैं अपनी बात बताती हूँ | हुआ ये की आज जब सुबह सो कर उठी तो लाइट गायब थी | सर्दी के दिन लाईट न हो तो सुबह 5 बजे भी रात के बारह लगते हैं | खैर किसी तरह मोमबत्ती जला कर किचन में गयी तो पानी की टंकी भी खाली | वो कल रात में भरी नहीं थी | अब मुझे बहुत टेंशन हो गया | बच्चों को स्कूल कैसे भेजूंगी , पति को ऑफिस कैसे भेजूंगी | इसे अब इस टेंशन के साथ ही पिछले दिनों उनसे पिछले दिनों बचपन के सभी टेंशन एक दूसरे  के साथ चेन बना कर आना शुरू हो गए | हालत ये हो गयी कि लगने लगा कि अपनी तो जिंदगी ही खराब है | यानी एक टेंशन किया और 10 टेंशन साथ में आ गए |अब हर चीज फ्री की अच्छी तो नहीं लगती है ना |  आप के साथ भी ऐसा ही होता होगा |                 तो आइये कोशिश करते हैं  की इस टेंशन को शुरू में ही खत्म कर दें यानी की इसे अटेंशन ही न दें | Five  rules for stress free life  टेंशन को शेयर करिए अगर आप सारा टेंशन अपने अन्दर भरते रहेंगे तो एक न एक दिन विस्फोट होगा | ये विस्फोट जरूरी नहीं की गुस्से के रूप में हो | ये आपके स्वास्थ्य पर भी बीत सकता है | इसलिए इसे शेयर करें | किसी ऐसे व्यक्ति से जो आप से समानुभूति रखता हो | जैसे आप के माता – पिता , भाई – बहन , जीवनसाथी या फिर दोस्त | इससे आप को सही राय मिलने की भी सम्भावना है और आप हल्का भी फील करेंगे | जैसे मैं चली … विशु ( मेरी बचपन की सहेली )  , कहाँ हो तुम ? उन लोगों से बात करें जो खुशमिजाज  रहते हैं हमारी जिंदगी ऐसे लोग भी होते हैं जो जिंदादिल व्  हंसमुख होते हैं | वो अपनी खुद की परेशानियों में भी हँसते – मुस्कुराते रहते हैं | उनके पास जाकर बैठिये | थोड़े ठहाके लगाइए | हँसते ही या तो आप को समस्या का सोल्युशन मिल जाता है या फिर आप इतना हल्का महसूस  करने लगते हैं जैसे की कभी टेंशन हुआ ही न हो | तो उठाइए फोन और घुमाइए नंबर कुछ अच्छा देखे , सुने या पढ़ें अगर घर में अकेले हैं और किसी से भी बात करने का मन नहीं है तो इन्टरनेट खोले | फेसबुक पर भूल कर मत जाइएगा | क्योंकि वहन कहीं न कहीं किसी न किसी का युद्ध चल रहा होगा | आप ऐसे मूड में किसी से खामखाँ में उलझ पड़ेंगे | और टेंशन का डबल टेंशन ले कर आयेंगे | कोई अच्छी वेबसाईट का अर्टिकल पढ़ें , कोई हँसी का यू ट्यूब वीडियो देखे , कोई अच्छा गीत सुने , गुनगुनाएं | फिर देखिये कैसे टेंशन छू मंतर होता है | देखिये मैंने तो अटूट बंधन की वेबसाईट खोली हुई है | पॉजिटिव थिंकिंग के आर्टिकल पढ़ रही हूँ |  लिख दें हाले दिल                             अगर आप को टेंशन ज्यादा है और इनमें से कोई उपाय काम नहीं कर रहा है | तो कॉपी और पेन उठाइये या लैपटॉप में नोट पैड  पर लिख दीजिये हाले दिल या समस्या का कारण | जब हम समस्या को  लिखते हैं तो वो समस्या हमें दूसरे की लगने लगती है | फिर तो आप आसानी से उसका हल भी निकाल लेंगे | तो … कहाँ है आप का नोट पैड | अब ये आर्टिकल मैंने क्यों लिखा … समझ गए न आप | वैसे अपनी समस्या हल करते – करते किसी दूसरे की भी समस्या हल हो जाए तो इसमें हर्ज ही क्या है |  जरा  डरिये टेंशन टेंशन को खींचता है                                  जिसने … Read more

केवल 5 स्टेप में बने निगेटिव से पॉजिटिव

यूँ तो जिंदगी नेगेटिव और पॉजिटिव परिस्थितयों का मिला जुला रूप है | फिर भी कुछ लोग हर परिस्थिति में पॉजिटिव रहते हैं और कुछ ज्यादातर में नेगेटिव | पॉजिटिव लोग हर बुराई में भी कुछ अच्छाई ढूंढ लेते हैं और नेगेटिव हर अच्छाई में कुछ बुराई | जाहिर हैं जो ज्यादा पॉजिटिव  रहेगा वो ज्यादा समय खुश व् उर्जा से भरा हुआ रहेगा | जिसके कारण अपने काम ज्यादा जोश व् ऊर्जा से कर पायेगा , परिणाम स्वरुप सफलता की ऊँचाइयों  को छुएगा | अब दुनिया में कौन है जो ज्यादा खुश  , ज्यादा स्वस्थ और ज्यादा सफल नहीं होना चाहता | फिर भी हम में से बहुत से लोग हैं जो अपनी परिस्थितियों को दोष देते रहते हैं | और कहते हैं हम प्रयास तो करते हैं पॉजिटिव रहने का पर क्या करें नेगेटिविटी मेरे जीवन का हिस्सा बन गयी है | पीछा ही नहीं छोडती | ये लेख उन्हीं लोगों के लिए है जो ये सोंचते हैं कि वो निगेटिविटी के जाल में फंस गए हैं और निकल ही नहीं पा रहे हैं | यहाँ इस लेख के माध्यम से मैं आप को बताने जा रही हूँ कि नेगेटिव से पॉजिटिव  कैसे बनें वो भी सिर्फ 5 स्टेप में |  यानि …  सिर्फ 5 स्टेप्स चढ़ कर आप बन सकते हैं निगेटिव  से पॉजिटिव                                          अब जैसे आप को किसी  ऊँचाई पर जाना होता है तो आप को सीढियाँ चढ़नी पड़ती हैं | उसी तरह नेगेटिव से पॉजिटिव बनने  के लिए आप को बस पाँच सीढियां चढ़नी पड़ेंगी |मित्रों ये एक बहुत ही रोमांचक यात्रा की शुरुआत होने जा रही है | तो आइये साथ – साथ चढ़े ये सीढियां .. 1)पॉजिटिव होने के लिए अपने आसपास के पांच लोगों को बदल दीजिये आप अपने आस पास के पांच करीबी लोगों पर गौर करिए | वो लोग जिनके साथ आप सबसे ज्यादा समय बिताते हैं | वो कैसे हैं सकारात्मक या नकारात्मक | अगर वो हर बात पर खुश रहने वाले जोश और जूनून से भरे हैं तो आपके लिए ये प्लस पॉइंट हैं | लेकिन अगर वो बात – बात पर कहने वाले है नहीं मुझसे नहीं होगा , ये ठीक नहीं , वो ठीक नहीं तो आप के लिए भी खतरे की घंटी है |  एक वैज्ञानिक तथ्य है की आप वैसे ही सोंचने लग जाते हैं जैसा आपके पांच सबसे करीबी व्यक्ति सोंचते हैं | अगर उनका दुनिया को देखने का नजरिया दुःख व् निराशा से भरा है तो आपका भी नज़रिय वैसा ही हो जाएगा | अब मिताली का ही उदाहरण लें | मिताली डॉक्टर बनना चाहती थी | उसने अपनी पांच पक्की सहेलियों को भी कोचिंग के लिए कनविंस  किया | मिताली उनके साथ कोचिंग जाने लगी | मिताली ने शुरू में बहुत जोश से पढाई शुरू की | पर उसकी सहेलियों का डॉक्टर बनने  का कोई अरमान नहीं था | वो तो शौक में कोचिंग कर रही थी | जैसा की आजकल चलन है हर बच्चा कोई न कोई कोचिंग तो करता है |बात – बात पर वो मिताली से पढाई को बोरिंग कहती व् मेडिकल प्रोफेशन की १० बुराइयां गिनाती | अब मिताली को भी लगने लगा ,” हां वास्तव में डॉक्टर बनना कोई बहुत अच्छी बात नहीं है , वास्तव में लम्बे समय तक पढना आसान नहीं है …. वो नहीं कर पायेगी | ये नहीं कर पाएगी उसके दिमाग में इतना छा गया की वो डॉक्टर बनने  की क्षमता और प्रतिभा होते हुए भी मेडिकल की परीक्षा में फेल हो गयी | अगर आप सफल होना चाहते हैं आगे बढ़ना चाहते हैं तो ऐसे लोगों को अपने से दूर कर दीजिये जो आपके मन में नकारात्मकता का जहर घोलते हों | फिर पांच लोगों को करीबी दोस्त बनाइये जो आपकी ही तरह जोश जूनून व् कठोर परिश्रम करने वाले हों | फिर देखिये सफलता कैसे आपके कदम चूमेगी | इसी तरह से बहुत से लोग रोज़ सुबह  नकारात्मक ख़बरों को पढ़ कर दुखी होते रहते हैं | उन्हें हर बात का दुःख होता है , देश के प्रधान मंत्री से लेकर घर की काम वाली तक सब से उन्हें शिकायत रहती है |अगर आप पॉजिटिविटी की पहली सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं तो उनसे दूरी बना लें क्योंकि हर जीतने वाले , खुश रहने वाले व् सफल होने वाले व्यक्तियों के सामने भी सैंकड़ों निगेटिव चीजे आती रहती हैं पर वो उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देते या उनका संमाधन निकाल लेते हैं | अगर खुदा न खास्ता आपके परिवार के लोग ही बहुत निगेटिव हैं तो आप उनकी निगेटिविटी से बचने के लिए घर के बाहर ज्यादा से ज्यादा ऐसे दोस्त बानाइये जो पॉजिटिव हो व् न सिर्फ घवालों की निगेटिविटी को काउंटर एक्ट करें बल्कि आपको पॉजिटिविटी  की और ले चलें |                        तो अब आप समझ गए होने की निगेटिविटी से  पाजिटिविटी की और चलने के लिए आपको अपने करीब के पाँच लोगों का सर्किल बदलना होगा |और दोस्ती कीजे जान कर की पुरानिखाव्त पर चलना होगा |  निगेटिव लोगों की बहस से बचें  आम जिंदगी में अक्सर ऐसा होता है आप  बड़े ही खुश मन  से ऑफिस या कॉलेज गए | वहां दो लोग झगड़ रहे हैं | आपका  उनसे कोई मतलब नहीं है और आप  बेवजह पहुँच गए बहस में उलझने  |वो क्या है न बहस करने में हारमोंस थोडा बढ़ जाते हैं और ऐडवेंचर का मजा आता है | आपको थोडा मजा जरूर आया होगा पर असल में  हुआ क्या उनकी बहस तो शांत नहीं हुई सारी  निगेटिविटी हमने अपने ऊपर उड़ेल ली | आप उस परिस्थिति से बच सकते थे | लेकिन नहीं आ बैल मुझे मार की तर्ज पर पहुँच गए आग में घी डालने | इससे बचने का आसन तरीका है फ़ालतू की बहस में न पड़ें | बहस का कभी अंत नहीं होता | क्योंकि बहस लोग अपने ईगो से जोड़ लेते हैं |  अब मान लीजिये मोदी समर्थक व् विरोधी आपस में झगड़ रहे हैं और  आप पहुँच गए बीच में टांग अड़ाने | आप को दोनों की कुछ बात … Read more

सेंटा क्लॉज आएंगे

                                                                                            कहते हैं आस्था का कोई रूप नहीं होता आकार नहीं होता | पर वो हमारे मन में गहरे कहीं निवास करती है और समय समय पर चमत्कार भी दिखाती है | इसी आस्था और विश्वास पर आइये पढ़ें …. Santa claus aayenge-  Hindi story on faith  दिव्या क्रिसमस की तैयारी के लिए स्टार्स , क्रिसमस ट्री बैलून्स व् गिफ्ट्स खरीद रही थी | तभी स्वेता जी दिख गयीं |  देखते ही बोलीं ,” अरे , आप ये सब खरीद रही हैं | आप तो क्रिस्चियन नहीं हैं | दिव्या ने मुस्कुरा कर कहा हां , पर मेरे घर में भी सेंटा क्लॉज  आते हैं | इससे पहले की वो कुछ कहतीं दिव्या उन्हें उनके सवालों के साथ छोड़ कर आगे बढ़ गयी |                                        घर आ कर उसने सामान रख दिया और बालकनी में चाय का प्याला ले कर बैठ गयी |  चाय की चुस्कियों के साथ वो उस दिन को याद करने लगी जब उसने पहली बार क्रिसमस मनाई थी | तब गौरांग मात्र ३ साल का था | उसने जिद की थी कि हमारे घर में भी क्रिसमस ट्री , स्टार्स सजाये जायेंगे | सेंटा क्लाज आयेंगे | वो गिफ्ट देंगे | वो भी बच्चे का मन रखने के लिए सब सामान ले आई | २२ को नितिन को ऑफिस के टूर  पर जाना था | उनका मन भी जाने का नहीं कर रहा था | पर  जाना जरूरी था | इधर नितिन गए उधर गौरांग को तेज जापानी  बुखार ने घेर लिया | पश्चिमी उत्तर प्रदेश के उस इलाके में जापानी बुखार का प्रकोप रहता  रहा है | कई मासूम बच्चों को इसने  कभी सपने न देखने वाली गहरी नीद में सुला दिया था | दिव्या बेहद डर  गयी | पर गौरांग सेंटा क्लाज आयेंगे,  इसलिए क्रिसमस सेलिब्रेट करने  की जिद करता रहा | हलकी बेहोशी में भी उसकी फरमाइश जारी रही | मन न होते हुए भी दिव्या ने क्रिसमस ट्री पर गिफ्ट्स से सजा दिया | दवा ने थोडा असर किया | गौरांग थोडा सा चैतन्य हुआ | २४ दिसबर की शाम को गौरांग जिद कर रहा था ,” मम्मा , आप खिड़की मत बंद करना सेंटा क्लॉज आयेंगे | अगर खिड़की बाद होगी तो वो अन्दर कैसे आयेंगे | गिफ्ट कैसे देंगे | वो उसको समझाती रही की सर्दी है  , तुम्हे बुखार है , हवा लग जायेगी | इसे बंद कर लेने दो | पर गौरांग रोता रहा … जिद करता रहा | थोड़ी देर में गौरांग की हालत बिगड़ने लगी | डॉक्टर ने हालत क्रिटिकल बतायी | और उसे हॉस्पिटल में एडमिट कर के दिव्या को कुछ जरूरी सामन लाने को कहा | घबराई सी दिव्या घर गयी | सामान थैले में भरते हुए उसकी नज़र बेड रूम की खिड़की पर गयी | न जाने क्या सोंच कर उसके दोनों हाथ जुड़ गए ,” हे सेंटा मेरे बच्चे का जीवन मुझे गिफ्ट में दे दो | फिर आंसूं पोंछती हुई वो घर में ताला लगा कर हॉस्पिटल पहुंची | सारी रात मुश्किल से कटी | सुबह डॉक्टर ने गौरांग को आउट ऑफ़ डेंजर घोषित कर दिया | दिव्या ने चैन की सांस ली |                                  जब गौरांग को ले कर वो वापस घर आई तो  क्रिसमस गुज़र चुका था पर बेड रूम की खिड़की अभी भी खुली थी | खुली खिड़की देख गौरांग चहक कर बोला ,” मम्मा क्या सेंटा  क्लॉज आये थे ?उसने गौरांग का माथा चूमते हुए कहा ,” हां बेटा , सच में आये थे | तो उन्होंने गिफ्ट में क्या दिया ? गौरांग ने रोमांचित होते हुए पूंछा उन्होंने गिफ्ट में तुम्हे दिया .. दिव्या ने उत्तर दिया | मुझे … गौरांग को बहुत आश्चर्य हुआ |                                             पर दिव्या को  उसके बाद हर क्रिसमस को  सेंटा क्लॉज का इंतज़ार रहने लगा | वो हर क्रिसमस पर इस विश्वास के साथ स्टार्स व् ट्री सजाती कि … सेंटा क्लॉज़ आयेंगे |इसलिए तो हर क्रिसमस की ठीक एक रात पहले वो बेड रूम की खिड़की खोल कर तारों में कहीं सेंटा क्लॉज को ढूंढते हुए उन्हें धन्यवाद देना नहीं भूलती हैं | नीलम गुप्ता उसकी मौत झूठा सफलता का हीरा पापा ये वाला लो आपको  कहानी  “सेंटा क्लॉज आएंगे ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें  keywords: santa claus’s, christmas, christmas tree, faith, christmas gifts

बाल कहानी -जब झूठ महंगा पड़ा

आज हम आपके लिए लेकर आये हैं एक बाल कहानी | ये बाल कहानी है उस नन्हे बच्चे के बारे में जिसका पढने में बिलकुल मन नहीं लगता था | इसलिए उसका होम वर्क कभी पूरा ही नहीं हो पाता था | होम् वर्क न पूरा होने की वजह से  उसको डर  लगता की स्कूल जाने पर टीचर की मार खानी पड  सकती है | इसलिए वो रोज कोई न कोई झूठी  कहानी बना कर स्कूल जाने से मना  कर देता | कई दिन तक तो मम्मी – पापा उसके बहानों  पर विश्वास करते रहे | पर धीरे – धीरे उन्हें भी विश्वास हो गया की ये झूठ बोल रहा है | फिर क्या था उन्होंने ऐसी चाल चली की बच्चे को सच बोलना ही पड़ा | आइये पढ़ते हैं बाल कहानी – जब झूठ महंगा पड़ा  ये कहानी है दो जुड़वां बच्चों की | एक का नाम था मोहन और दूसरे का नाम सोहन |वैसे तो दोनों जुड़वां थे पर दोनों के स्वाभाव में बहुत अंतर था | जहाँ मोहन गंभीर प्रकृति का व् अपना काम समय से पूरा करने वाला था | वहीँ सोहन खिलंदड़ा व् आलसी प्रकृति का | माँ – पापा सोहन को बहुत समझाते पर वो तो बदलने का नाम ही नहीं लेता | दोनों साथ – साथ स्कूल जाते … पर लौटते साथ नहीं | कारण सोहन को होम वर्क पूरा न करने के कारण सजा मिल जाती | और उसे वहीँ पिछले दिन का होम् वर्क  पूरा कर के लौटने को मिलता | अब उसके ऊपर घर में जा कर आज का होम वर्क  करने का प्रेशर होता | जहाँ एक और मोहन स्कूल से आ कर खाना खा कर होम वर्क करने बैठ जाता | वहीँ सोहन घर आ कर बिना खाना खाए खेलने में लग जाता | माँ दस बार बुलातीं तब आता | खाना खा कर झटपट फिर खेलने लग जाता | माँ कहती ही रह जाती सोहन बेटा  होम वर्क कर लो | पर सोहन को नहीं सुनना था तो नहीं सुनना था | अब क्योंकि होम वर्क किया नहीं होता | इसलिए सुबह जहाँ मोहन जल्दी से उठ कर नहा धो कर नाश्ता कर के स्कूल चला जाता | वहीँ सोहन धीमे – धीमे काम करता … इतना धीमे की  स्कूल बस आ कर मोहन को ले कर चली जाए और वो घर में ही रह जाए | जब माँ उसे जल्दी करने को कहती तो कोई न कोई बहाना बना देता | कभी सर में दर्द तो कभी पेट में तो कभी हाथ में | उसके इन बहांनों को सुन पहले तो माँ भी उन पर विश्वास कर लेती और स्कूल न जाने को मान जाती | पर माँ हमेशा देखती कि जैसे ही स्कूल बस मोहन को ले कर चली जाती | सोहन बिलकुल ठीक हो जाता | और सारा दिन घर में खेलता कूदता और ऊधम करता | माँ को शक होने लगा | उन्होंने ये बात पिताजी को बताई | पिताजी ने दो – तीन दिन सोहन पर नज़र रखी उन्हें भी विश्वास हो गया कि सोहन झूठ  बोल रहा है | अब प्रश्न ये था कि सोहन से सच कैसे उगलवाया जाए | आखिरकार पिताजी ने एक योजना बना ली | उन्होंने माँ को योजना बता कर कहा कि अब तुम्हे ध्यान रखना है | माँ ने हामी भर दी | अगले दिन जब माँ ने सोहन , मोहन से स्कूल जाने को कहा तो मोहन तो हमेशा की तरह उठ गया और तैयार होने लगा पर सोहन जोर – जोर से रोते हुए बोला .. आआआअ , मम्मी मेरे पेट में बहुत दर्द हो रहा है | मैं स्कूल नहीं जा सकता | माँ ने कहा ,” ठीक है बेटा तुम घर पर आराम करो | हमेशा की तरह स्कूल बस जाते ही सोहन बिस्तर से उठ बैठा और उधम करने लगा | शाम को पिताजी   आये तो उनके हाथ में बड़े – बड़े थैले थे | उन्होंने दोनों बच्चों को बुलाया | और कहा आज स्कूल कौन – कौन गया था |  मोहन बोला ,” मैं गया था पिताजी | सोहन बोला ,” मैं नहीं गया क्योंकि मेरे पेट में दर्द था | आप क्या लाये हैं ? पिताजी बोले ,” हाँ हाँ तुम्हारे पेट में दर्द था | खैर  कोई बात नहीं | आज् मेरे  बॉस ने उन बच्चों  को इनाम दिया है जो रोज स्कूल जाते हैं | अब तुम तो बिमारी के कारण जा नहीं पाते तो ये इनाम मोहन को मिलेगा |  उन्होंने चमचमाती हुई कार जो रिमोट से चलती थी मोहन को दे दी | सोहन मन मसोस के रह गया | यही वो कार  थी जिसके लिए वो पिछले ६ महीने से जिद्द कर रहा था | अब पिताजी ने  एक घडी मोहन की कलाई पर बांधते हुए कहा ,” तुम्हारे स्कूल के प्रिंसिपल ने उन बच्चों को दी है जिनकी १०० % अटेंडेंस है | अब सोहन की आँखों में तो आंसू भर आये |  फिर भी उसे आशा थी की अगले थैले में कुछ उसके लिए भी होगा |उसने पूंछा ,” पिताजी उस थैले में क्या है ? बेटा  इसमें मैं केक लाया था | अब तुम्हारे पेट में दर्द है तो मोहन को ही दे देते हैं | और हाँ मम्मी  से कह कर तुम्हारे लिए खिचड़ी बनवा देते हैं | केक तो सोहन को बहुत पसंद था | वो रोने लगा और बोला ,” पापा मैं खिचड़ी नहीं खाऊंगा |” मैं भी केक खाऊंगा | नहीं बेटा  हम इतने तंगदिल नहीं हैं जो केक  खिला कर तुम्हारा पेट खराब करवाएं | न न , हम तुम्हें केक नहीं खाने देंगे | बल्कि केक खरीदने के बाद तुम्हारी माँ का फोन आया | वो बहुत परेशान थी कि मेरा बेटा  हमेशा बीमार रहता है अप कुछ करते क्यों नहीं | इसीलिए मैं डॉक्टर के पास चला गया | उन्होंने बहुत अच्छा उपाय बताया है | जिससे तुम हमेशा स्वस्थ  रहोगे | वो … बस तुम्हें एक हफ्ते तक रोज इंजेक्शन लगवाने पड़ेंगे | पहला इंजेक्शन लगाने वो अभी आते होंगे | इंजेक्शन नहीं हीहीही … सोहन जोर से चीखा | पर … Read more

सब कुछ संभव है : बिना -हाथ पैरों वाले निक व्युजेसिक कि प्रेरणादायक कहानी

फोटो क्रेडिट –विकिमीडिया कॉमन्स ईश्वर से शिकायतें करना सबसे आसान काम है | हम सब इसे बड़ी कुशला से करते भी हैं | क्या आप को नहीं लगता की हममें  से सबकी शिकायत रहती है की हम इसलिए सफल नहीं हो पाए क्योंकि हमारे पास ये ये या वो वो नहीं था | जो दूसरे सफल व्यक्तियों के पास है | पर जब आप एक ऐसे व्यक्ति के बारे में जानेगे जिसके हाथ पैर ही नहीं हैं |और वो व्यक्ति सफल मोटिवेशनल स्पीकर है | जिसने अपनी शारीरिक कमियों के बावजूद न सिर्फ अपनी जिन्दगी को संवारा बल्कि वो अनेकों जिन्दिगियों  को सफल जीवन जीने की प्रेरणा दे रहा है | यकीनन आप उसके बाद उसके साहस को नमन करते हुए कहेंगे की    “सब कुछ संभव है” …… निकव्युजेसिक  शारीरिक रूप से विकलांग है | जब वो पैदा हुए थे तभी से उनके हाथ – पैर नहीं थे | डॉक्टरों ने जन्म के समय उन्हें वेजिटेटिव घोषित कर दिया था |अपने छोटे से पैर और दो अँगुलियों के बल पर तन और मन की जंग जीतने वाले  निक आज एक सफल मोटिवेशनल स्पीकर हैं | उनकी कहानी है कठिन संघर्ष पर महान विजय की | आज हम “ a man without limbs “ प्रेरणा दायक कहानी आप के साथ साझा कर रहे हैं जो आपको सोंचने पर विवश कर देगी … चमत्कार आसमानी खुदाओं की जादुई छड़ी से नहीं अपनी इच्छा शक्ति पर निर्भर होते हैं | आइये जानते हैं बिना हाथ पैरों वाले निक व्युजेसिक के बारे में  निक व्युजेसिक का पूरा नाम निकोलस जेम्स व्युजेसिक है |निक उनका “ निक नेम है | उनका जन्म 4 दीसंबर 1982 को ऑस्ट्रेलिया के मेलबोर्न शहर में हुआ था | निक की माँ का नाम दुशांका व् पिता का नाम बोरिस्लाव व्युजेसिक है | निक के माता – पिता सर्बिया के मूल निवासी थे | वो ऑस्ट्रेलिया में आ कर बस गए थे |  उनके पिता अकाउंटेंट व् माँ हॉस्पिटल में नर्स का काम करती थी | निक के जन्म से पहले उसकी माँ भी वैसे ही उत्त्साहित थीं जैसे कोई सामान्य माँ होती है | परन्तु निक का जन्म एक सामान्य बच्चे की तरह नहीं हुआ | वो टेट्रा अमेलिया सिंड्रोम से पीड़ित थे | टेट्रा एमिलिया सिंड्रोम एक ग्रीक शब्द है जहाँ टेट्रा का अर्थ चार व् एमिलिया का अर्थ एब्सेंस ऑफ़ आर्म्स है | ये एक बहुत रेयर डिसीज है | जिस कारण उनके उनके हाथ पैर थे ही नहीं | जन्म के समय निक के एक पैर में कुछ जुडी हुई अंगुलियाँ थीं | इस बिमारी के साथ पैदाहुए ज्यादातर बच्चे स्टील बोर्न पैदा होते हैं या जन्म के कुछ समय बाद ही मर जाते हैं |       निक को देखने के बाद नर्स ने उसकी माँ को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए उन्होंने उसे एकदम से देखने भी नहीं दिया | वो बहुत निराश हुई हालंकि बाद में उसके माता – पिता सामान्य हो गए | डॉक्टर्स ने निक की जुडी हुई अंगुलियाँ अलग – अलग करने के लिए ओपरेशन किया ताकि निक उनसे चीजों को पकड़ सके व् उनका इस्तेमाल हाथ की अँगुलियों की तरह कर सके | निक व्युजेसिक का प्रारंभिक निराशा से भरा जीवन निक के दो भाई – बहन और थे | जो सामान्य थे | निक से पहले दिव्यांग बच्चों को सामान्य बच्चों के साथ नहीं पढने दिया जाता था | परन्तु निक के समय में कानून में परिवर्तन हुआ और निक उन शुरूआती बच्चों में रहे जो सामान्य बच्चों के साथ स्कूल में पढ़ सकते थे |क्योंकि उनकी माँ की इच्छा थी की निक जीवन को सामान्य नज़रिए से ही देखें |  हालांकि निक का स्कूली  जीवन सामान्य नहीं था | बिना हाथ – पैर वाले बच्चे को देखकर सारे बच्चे उनका मजाक उड़ाते | जिस से मासूम निक अवसाद में घिर गए | उन्होंने आत्महत्या की कोशिश की और एक बार बाथ टब  में खुद को डुबाने का भी प्रयास किया | पर अपने माता – पिता के प्रेम को देख कर बाद में उन्होंने आत्महत्या का प्रयास छोड़ दिया | और जीवन का संघर्ष करने का मन बनाया |  निक ने अपने म्यूजिक वीडियो “ समथिंग मोर “अपने बचपन के दर्द का वर्णन किया हैं | निक शुरू से काफी आस्थावान रहे हैं | वो ईश्वर से रोज प्रार्थना करते थे कि उनके हाथ पैर उग आये | एक बार तो उन्होंने ईश्वर को अल्टीमेटम भी दे दिया कि अगर वो उनके हाथ पैर नहीं उगायेंगे तो वो ज्यादा दिन तक उनकी पूजा नहीं कर पायेंगे | हालांकि निक अब कहते हैं की ईश्वर को उन्हें कुछ ख़ास देना था इसलिए वो उनकी प्रार्थनाओं को अनसुना कर रहे थे |इसकी शुरुआत उन्होंने उस दिन करी जब उनकी माँ ने उन्हें न्यूज़ पेपर का एक आर्टिकल पढवाया | वो एक ऐसे दिव्यांग व्यक्ति के बारे में था जो अपने जीवन से शारीरिक रूप से लड़ रहा था  परन्तु हार नहीं मानी और मानसिक शक्ति के बल पर सफलताएं अर्जित की | इस लेख ने निक को बहुत प्ररणा दी | उन्हें लगा की जिन्दगी भर अपने अभावों पर रोने के स्थान पर अपने इसी शरीर के साथ भी कुछ अच्छा कर सकते हैं | ऐसा करके वो बहुतों को प्रेरणा भी दे सकते हैं | उनका कहना था … अगर आप के साथ चमत्कार नहीं हो सकता तो खुद चमत्कार बन जाइए | असंभव को संभव करती निक की जिंदगी की लड़ाई                       निक की आत्मनिर्भर बनने  की लड़ाई में उनके माता – पिता ने उनका भरपूर साथ दिया | निक ने अपनी दो अँगुलियों से वो सब कुछ करना सीखा जो एक सामान्य व्यक्ति करता है | इसकी शुरुआत उन्होंने छोटी सी उम्र में तैराकी सीखने से की | उन्होंने दो नन्हीं अँगुलियों की मदद से चम्मच पकड़ना व् टाइपिंग करना सीखा | विशेषज्ञों की मदद से उनके लिए एक ऐसी चीज बनवाई गयी जिसे वो अपनी अँगुलियों में पहन कर आसानी से लिख सकते थे |आप को जान कर आश्चर्य होगा की निक अपनी दो अँगुलियों के सहारे न सिर्फ पढ़ – लिख सकते हैं बल्कि फुटबॉल ,गोल्फ खेल सकते हैं , मछली … Read more

विवाहेतर रिश्तों में सिर्फ पुरुष ही दोषी क्यों ?

                                दो व्यस्क लोग जब मिल कर एक गुनाह करते हैं तो सजा सिर्फ एक को क्यों ? ये प्रश्न उठता तो हमेशा से रहा है परन्तु  इस सामजिक प्रश्न  की न्यायलय में कोई सुनवाई नहीं थी | ये सच है की विवाह  एक ” अटूट बंधन ” है | जिसमें पति – पत्नी दोनों एक दूसरे के प्रति वफादार रहने की कसम खाते हैं | फिर भी जब किसी भी कारण से ये कसमें टूटती हैं तो उसकी आंच चार जिंदगियों को लपेटे में ले लेती है | और जिंदगी भर जलाती है |दुर्भाग्य है की एक तरफ तो हम स्त्री पुरुष समानता की बात कर रहे हैं वही  हमारा कानून ऐसे मामलों में सिर्फ पुरुषों को दोषी मानता है | और कानूनन  दंड का अधिकारी भी |  अक्सर ऐसे मामलों में महिला शोषित की श्रेणी में आ जाती है | जिसे बरगलाया या फुसलाया गया  | हालांकि इस बात पर उस महिला का पति उससे तलाक ले सकता है पर कानून दंड का कोई प्रावधान नहीं हैं | क्या आज जब महिलाएं पढ़ी -लिखी व् खुद फैसले ले सकती हैं तो क्या व्यस्क रिश्तों में दोनों को मिलने वाले दंड में बराबरी नहीं होनी चाहिए ? विवाहेतर रिश्तों की कहानी     दिव्या और सुमीत अपने बच्चों के साथ  दिल्ली में रह रहे थे | दिव्या और सुमीत के बीच में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे ये कहा जा सके की ये खुशहाल परिवार नहीं है | तभी ताज़ा हवा के झोंके की तरह समीर उनके घर के पास वाले घर में अपनी पत्नी आशा व् बेटी निधि के साथ किराए पर रहने आया | दोनों परिवारों में पारिवारिक मित्रता हुई | जैसा की हमेशा होता है की पड़ोसी के यहाँ कुछ अच्छा बनाया भेज दिया , एक दूसरे की अनुपस्थिति में उनके बच्चों के आने पर उसका ध्यान रख लिया , और मुहल्ले की अन्य  कार्यक्रमों में साथ – साथ गए | पर यहाँ दोस्ती का कुछ अलग ही रंग में रंग रही थी |                                     दिव्या जो बहुत अच्छा खाना बनाती थी और सुमीत को खाने का बिलकुल शौक नहीं था | ऐसा नहीं है की सुमीत को अच्छा खाना भाता नहीं था | पर पेट की बीमारियों के कारण वो सादा खाना ही पसंद करते थे | दिव्या जब भी कुछ बनाती तो तारीफ़ की आशा करती | पर सुमीत कोई भी तली – भुनी चीज सिर्फ एक – दो चम्मच ले कर यह कहना नहीं भूलते ज्यादा तला भुना न बनाया करो | मुझे हजम नहीं होता और बच्चों को भी इससे कोई फायदा नहीं होगा | दिव्या मन मसोस कर रह जाती | ऐसे ही एक दिन दिव्या ने कुछ बनाया और सुमीत ने सही से रीएक्ट नहीं किया | दिव्या दुखी बैठी थी की समीर आशा व् निधि के साथ उनके घर आये |दिव्या ने वही खाना टेबले पर लगा दिया | समीर जो खाने के बहुत शौक़ीन थे | अपने आप को रोक नहीं पाए | और तारीफ़ कर – कर के खाते रहे | दिव्या की जैसे बरसों की मुराद पूरी हो गयी |                            अब तो आये दिन दिव्या कुछ न कुछ अच्छा बना कर भेजती | समीर तारीफों के पुल बाँध देते | हालांकि आशा भी बदले में दिव्या के घर कुछ भेजती पर  वो खाना पकाने में इतनी कुशल नहीं थी | उसका मन किताबों में लगता था | उसका समीर का इस तरह दिव्या के खाने की तारीफ करना खलता तो था पर वो यही सोंच कर चुप रहती की चलो कोई बात नहीं समीर की इच्छा तो पूरी हो रही है | फिर उसे दिव्या से कोई शिकायत भी नहीं थी |  खाने का ये आकर्षण सिर्फ खाने तक सीमित नहीं रहा | समीर की तारीफे बढती जा रही थीं | एक दिन वो किसी जरूरी कागज़ात को देने दिव्या के घर गया | दिव्या गाज़र का हलवा बना रही थी | उसने समीर से हलवा खा कर जाने की जिद की | समीर भी वही बैठ गया |  बच्चे खेल रहे थे | थोड़ी देर बाद बच्चे बाहर पार्क में खेलने चले गए  | दिव्या  हलवा ले कर आई | पिंक साड़ी में वो बहुत आकर्षक लग रही थी | समीर हलवा खाते हुए एक – टक  दिव्या को देख रहा था | दिव्या समीर का देखने का अंदाज समझ रही थी मुस्कुरा कर बोली हलवा कैसे बना | समीर ने दिव्या की आँखों में डूब कर कहा ,” जी करता है बनाने वाले के हाथ चूम  लूँ | दिव्या ने हाथ आगे बढ़ा दिये … तो फिर देर कैसी ? फिर क्या था … मर्यादा , संस्कार और सामाजिक नियम की दीवारें गिरने  में देर नहीं लगी | दोनों की शादियों के अटूट बंधन ढीले पड़ने लगे |  ये सिलसिला तब तक चला जब तक आशा और सुमीत को पता नहीं चला | जब उन्हें पता चला तो जैसे तूफान सा आ गया | आशा व् सुमीत अपने को ठगा सा महसूस कर रहे थे | विवाहेतर रिश्तों में क्या कहता है न्याय                         कानून के अनुसार दो विवाहित लोगों के बीच विवाहेतर रिश्ते  जो आपसी सहमति  से बने हैं रेप की श्रेणी में नहीं आते हैं |परन्तु उनमें दोनों अपराधी  या गिल्टी माना जाता है | offence of adultery को समझने के लिए हमें कोड ऑफ़ क्रिमिनल प्रोसीजर , 73 के सेक्शन 198(2) को समझना पड़ेगा | कोई भी कोर्ट इस प्रकार के रिश्तों को तब तक दंडात्मक नहीं मानेगी जब तक वो लोग जो इससे प्रभावित हैं इसकी शिकायत न करें | ( इंडियन पीनल कोड – 45ऑफ़ 1860) किसी भी विवाहेतर रिश्ते में स्त्री पुरुष जिनकी सहमति  से रिश्ता बना है दोनों अपराधी है हालांकि इसमें दंड का प्रावधान तब तक नहीं है जब तक उस महिला का पति ( उदाहरण  में सुमीत ) दूसरे … Read more