रिश्तों का अटूट बंधन

बाबा कितने दिन , महीने बरस बीत गए जब बांधा था तुमने ये अटूट बंधन एक अपरिचित अनजान से और मैं घबराई सी माँ की दी शिक्षाएं और तुम्हारे दिए उपहार बाँध कर ले चली थी उस घर जिसे सब मेरा अपना बताते थे वहां न जाने कितने अटूट बंधनों से  बंध  गयी मैं  कितने रिश्तों के नामों में  ढल गयी मैं न जाने कब , ये घर अपना हो गया और वो घर मायका हो गया बाबा न जाने कब खर्च हो गए तुम्हारे दिए उपहार पर माँ की दी हुई थाती आज भी सुरक्षित है मेरे पास जो संभालती है , सहेजती है हर पग पर और बनाए रखती है इस घर को अटूट  उम्र की पायदाने चढ़ते हुए न जाने कब मैं आ गयी माँ की जगह और बेटी मेरी जगह जो खड़ी  है उस देहरी पर जहाँ से ये घर हो जाएगा मायका और वो अपना घर आज निकालूंगी फिर से वही पोटली जो माँ तुम ने दी थी मुझे विदा के वक्त जानती हूँ नहीं काम आयेंगे उसे भी पिता के दिए उपहार काम आएगी तो बस तुम्हारी  दी हुई थाती जो पहुँचती रही है एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक और बनाती रही है रिश्तों के अटूट बंधन  नीलम गुप्ता आपको आपको  कविता  “रिश्तों का अटूट बंधन “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

प्रेरक कथा – दूसरी गलती

स्वर्ग – नरक भले ही कल्पना हो | पर इन कल्पनाओं के माध्यम से हमें जीवन का मार्ग बताने की शिक्षा दी जातीं हैं | जैसे की इस प्रेरक कथा में स्वर्ग – नरक के माध्यम से जीवन में असफलता व् दुःख झेलने की वजह बताने की चेष्टा की गयी है | Hindi motivational story – swarg ka darvaaja एक व्यक्ति मरने के बाद ऊपर पहुंचा | उसने देखा वहां दो दरवाजे हैं | उसमें निश्चित तौर पर एक दरवाजा स्वर्ग का व् एक नरक का था | हालांकि किसी पर कुछ लिखा नहीं था | अब हर व्यक्ति की तरह वो व्यक्ति भी स्वर्ग ही जाना चाहता था | तो उसने ध्यान से दोनों दरवाजों को देखा | एक दरवाजे सेबहुत  सारे लोग अन्दर जा रहे थे | जबकि दूसरे से एक्का – दुक्का  लोग ही अन्दर जा रहे थे | व्यक्ति ने सोंचा की जिसमें ज्यादा लोग अन्दर जा रहे हैं वही स्वर्ग का दरवाजा होगा | वो भी उसी दिशा में आगे बढ़ने लगा | तभी यमदूत वहां आया | और बोला ,’ अरे , अरे ये तो नरक का दरवाजा है | स्वर्ग का तो वो है | लेकिन आप इस तरफ बढ़ चले हैं तो आप को नरक में ही जाना होगा | वह आदमी घबराया उसने दूत से कहा ,” मैं तो भीड़ देख कर ऊधर चल दिया था | क्या मैं वापस स्वर्ग में नहीं जा सकता | कोई तो उपाय  होगा | यमदूत बोला ,” वैसे तो मुश्किल है पर क्योंकि आपने पुन्य किये हैं इसलिए मैं आपको यह बही खाते की किताब दे रहा हूँ | आप इसमें से अपनी एक गलती दूर कर सकते हैं | मतलब मिटा सकते हैं | पर यह मौका आपको सिर्फ एक बार ही मिलेगा | जब उस आदमी के हाथ बही – खाते की किताब आई तो वो उलट – पलट कर देखने लगा | उसने देखा की उसके पड़ोसी के पुन्य तो उससे कई गुना ज्यादा हैं | अब तो पक्का उसे स्वर्ग मिलेगा | और ज्यादा दिन को मिलेगा | यह सोंच कर उसे बहुत ईर्ष्या होने लगी की उसका पड़ोसी बहुत ज्यादा दिनों तक स्वर्ग भोगेगा | उसने थोड़ी देर तक सोंच – विचार करने के बाद अपने पड़ोसी द्वारा किया गया एक बड़ा सा पुन्य मिटा दिया |वो चैन की सांस ले कर अगला पन्ना पलटने ही वाला था तभी यमदूत ने आकर उसके हाथ से किताब ले ली | और उसे नरक की तरफ ले जाने लगा | आदमी रोने चिल्लाने लगा अरे अभी तो मैं अपनी गलती ठीक ही नहीं कर पाया | आप मुझे नरक क्यों भेज रहे हैं | यमदूत मुस्कुराया और बोला ,” मैंने आपसे पहले ही कहा था की आप के पास बस एक मौका है | वो मौका आपने अपने पड़ोसी के पुन्य मिटाने में गँवा दिया | इस तरह से आपने थोड़ी ही देर में दो  गलतियां कर दी | एकतो जब आप पहले जब आप स्वर्ग जा सकते थे तब आपने भीड़ का अनुसरण किया | दूसरी बार जब आप कोमौका मिला तो अपनी गलती सुधारने के स्थान पर आपने पड़ोसी का पुन्य मिटाने का काम किया | जबकि आप का पड़ोसी तो अभी और दिन धरती पर रहने वाला है वो और पुन्य कर लेगा पर आप का तो आखिरी मौका चला गया | अब उस आदमी के पास नरक भोगने के आलावा कोई रास्ता नहीं था |उसने स्वयं स्वर्ग का दरवाजे से जाने का मौका गंवाया था | दोस्तों ये प्रेरक कथा हमें जीवन की शिक्षा देती है | मरने के बाद क्या होता है किसने देखा है पर जीते जी असफलता का कारण यही  दो गलतियाँ ही तो होती हैं | एक भीड़ को फॉलो करना | अपनी  पैशन को जानने समझने के स्थान पर हम भीड़ को फॉलो करते हैं| सब इंजीनियर बन रहे हैं या डॉक्टर बन रहे हैं तो हमें भी बनना है | सब टीचर बन रहे हैं तो हमें भी बनना है | भले ही हमारा मन गायक बनने  का हो |  तो ऐसी में न काम में मन लगता है न सफलता मिलती है जिस कारण जीवन नरक सामान लगने लगता है | जिसे अनचाहे ही भोगते हैं | व् दूसरी गलती ये होती है की हम अपने काम से ज्यादा इस बात की चिंता करते हैं की दूसरे हमसे नीचे कैसे हो या हम कोई चीज न पा सके तो न पा सके पर हमारा पड़ोसी उसे बिलकुल न पा सके | धन , नाम , पावर सब में हम अपने आस –पास वालों को अपने से कम देखना चाहते हैं |  इस ईर्ष्या के कारण हम खुद ही असफलता के द्वार खोलते हैं | क्योंकि हमारा फोकस काम पर न हो कर  बेकार की बातों पर होता है | जो हमें अन्तत : असफलता की और ले जाती है और हमारा स्वर्ग सा जीवन नरक में बदल देती हैं | इस प्रकार हम खुद ही ये दो गलतियाँ  कर के अपने स्वर्ग का दरवाज़ा बंद कर नरक का द्वार खोल देते हैं |यदि आप जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो ये दो गलतियां न करें | भीड़ को फॉलो करने के स्थान पर अपने दिल की आवाज़ सुने |व् दुसरे का काम बिगाड़ने के स्थान पर अपने काम  पर ध्यान दें | फिर देखिएगा ये जीवन कैसे स्वर्ग सा सुखद हो जाता हैं |  नीलम गुप्ता  दिल्ली  परिस्थिति सम्मान राम रहीम भीम और अखबार अनफ्रेंड आपको आपको  कहानी  “प्रेरक कथा – दूसरी गलती “ कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

तुम्हारे बिना

नीलेश और दिया की शादी को १० साल हो गए हैं | उनके कोई संतान नहीं है | संतान के न होने के खालीपन को भरने के लिए दोनों ने अपना – अपना तरीका खोज निकाला है | जहाँ दिया जरूरत से ज्यादा घर को व्यस्त रखने लगी है | वही नीलेश जरूरत से ज्यादा अस्त – व्यस्त रखने लगा है | और यही उनके बीच लड़ाई का सबसे बड़ा मुद्दा है | जब भी दिया नीलेश को चीजे ठीक से रखने को कहती है | नीलेश झगड़ना शुरू कर देता है | झगडा किसी भी बात पर हो | इस झगडे में उसका एक जुमला आम है ,” तुम जाओ तो कभी , तुम्हारे बिना मैं बहुत आराम से रह लूंगा | ये सुनते ही दिया की आँखों में आँसू आ जाते हैं और दोनों की बातचीत बंद हो जाती है | गोया की दोनों की बातचीत केवल झगड़ने के लिए ही होती है | हर झगड़े के बाद हफ़्तों के लिए फिर शांति | इस शांति में नीलेश को एक बात बहुत खलती है की हर चीज करीने से क्यों रखी है | वाशबेसिन पर हाथ धोने जाओ तो चमचम करता | किचन में सब बर्तन साफ़ – सुथरे | घर का सारा सामान यथावत | एक  झूठा कप भी १० मिनट डाईनिंग टेबल पर आराम नहीं कर पाता | इधर चाय पी के रखा उधर महारानी सिंक में डाल देती हैं | लिहाजा वो पूरी कोशिश करता है की सामान बिखेरे | घर – घर सा लगे | कोई शो रूम नहीं | अब दिया है की मानती ही नहीं बात चाहे न करे पर काम टाइम पर ही कर के देगी | ऐसी बीबी से तो भगवान् बचाए | पर दिया तो दिया इधर बातचीत बंद हुई और उधर उसने अपना काम दुगना तिगुना बढ़ा दिया | आखिरकार एक दिन नीलेश से ही नहीं रहा गया | उसने देखा की कल ही बेड शीट  बदली थी आज फिर बदल दी | धोने में मेहनत ही नहीं साबुन भी लगता है | उसने आव – देखा न तव चिल्लाना शुरू कर दिया | साबुन कोई तुम्हारे पिताजी नहीं दे गए थे | दिन भर खटता हूँ तब जा कर मुट्ठी भर पैसे आते हैं | उसे यूँ ही उड़ा  देती हो | पिंड छोड़ो मेरा  तुम्हारे बिना ये घर स्वर्ग हो जाएगा | जो चाहूँगा करूँगा | जैसे चाहूँगा जियूँगा | दिया भी कहाँ चुप होने वाली थी |  आज रोई नहीं बस फट पड़ी किसी प्रेशर कुकर की तरह | ठीक है , ठीक है , चली जाउंगी मैं | किसी आश्रम में पड़ी रहूंगी | पर अब तुम्हारे  साथ नहीं  रहूंगी | कहते हो ना तुम्हारे बिना अच्छा लगेगा | अब रहना मेरे बिना | ये झगडा तो रोज की बात थी | झगडा हुआ और हमेशा की तरह बातचीत बंद हो गयी | सुबह नीलेश ऑफिस चले गए | जब लौटे तो गेट में ताला  लगा हुआ था | पड़ोसन ने चाभी दी | पूंछने पर बस इतना  बताया भाभी जी दे गयी हैं | नीलेश को थोडा अजीब सा लगा | ऐसे तो कभी नहीं किया उसने | आज अचानक क्यों | ताला खोलते ही अन्दर का दृश्य उससे भी ज्यादा अजीब था | पूरा घर बिखरा पड़ा था | सोफे के कुशन  कल रात की तरह ही बिखरे थे | डाईनिग टेबल पर सुबह के नाश्ते की प्लेटे थी | बेडशीट में हज़ारों सिलवटें थी | कैसे कोई  सो सकता है इसमें |  किचन का सिंक बर्तनों से बजबजा रहा था |उसे उबकाई सी आई |  और बाथरूम … वो तो बुरी तह से महक रहा था | उफ़ , इतनी बदबू तो पहले कभी नहीं आई | ये … ये दिया आखिर हैं कहाँ ? नीलेश ने इधर – उधर देखा | मेज पर एक पर्चा सा दिखाई दिया | नीलेश ने दौड़ कर परचा उठाया | दिया ने ही लिखा था | नीलेश तुम हमेशा कहते हो न , तुम्हारे बिना मैं बहुत सुखी रहूंगा | लो आज मैं जा रही हूँ | अब आराम से रहो मेरे बिना | मैं अब लौट कर नहीं आउंगी | मुझे खोजने की कोशिश मत करना | मैं चाहे आश्रम में रह लूँ पर रहूंगी तुम्हारे बिना ही |  नीलेश दिया के शब्द पढ़ कर रोने लगा | दिया मेरी दिया कहाँ हो तुम | देखो आज तुम्हारा घर कितना बेतरतीब पड़ा है | तुम कितनी मेहनत  करती थी इसे संवारने में | मेरी हर चीज का ख़याल रखती थी | मैं तो यूँ ही झगड़ता था | मैं कैसे रह पाऊंगा तुम्हारे बिना | तभी नीलेश को अपने कंधे पर एक हाथ महसूस हुआ | दिया खड़ी थी | उसकी आँखें भी नम थी | नीलेश के गले से लग कर बोली मैं भी नहीं रह पाऊँगी  तुम्हारे बिना | वो तो पड़ोसन ने मुझे ऐसा करने को कहा था | ताकि  मैं तुम्हारे रोज – रोज के तानों से बच सकूँ | चलों मैं जल्दी से घर साफ़ कर के तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ |  डेढ़ घंटे की मेहनत  के बाद दिया चाय का कप ले कर आई | नीलेश ने हँसते हुए लिया | आज उसे साफ़ घर और साफ़ कप की अहमियत महसूस हो रही थी | कप में थोड़ी से चाय बची थी वो पलंग पर  कप ले कर चला गया | और अखबार पढने लगा | कप उठाना चाहा तो पलट गया | नयी बिछी चादर चाय  की चुस्की लेने लगी | तभी दिया वहां आई | ये देखते ही उसका पारा सातवे आसमान पर पहुँच गया | नीलेश का हाथ खींच कर उसे उठाया , बेडशीट  बदलते हुए बड बडाती जा रही थी | एक काम भी करना तुम्हे ठीक से नहीं आता | कितना करूँ मैं | दिन भर खटती हूँ | और तुम ………. नीलेश भी कहाँ चुप रहने वाले थे | उफ़ सफाई , सफाई , सफाई … कब छोडोगी मुझे | तुम्हारे बिना स्वर्ग बन जाएगा ये घर ….. दोनों की बातचीत फिर बंद है | नीलम गुप्ता यह भी पढ़िए ……. सवाल का जवाब फुंसियाँ प्रायश्चित अस्तित्व आपको आपको  … Read more

बाल दिवस : समझनी होंगी बच्चों की समस्याएं

बच्चे , फूल से कमल ओस की बूँद से नाजुक व् पानी के झरने से गतशील | कौन है जो फूलों से ओस से , झरने से और बच्चों से प्यार न करता होगा | बच्चे हमारा आने वाला कल हैं , बच्चे हमारा भविष्य है , बच्चे उन कल्पनाओं को साकार करने की संभावनाएं हैं | रविन्द्र नाथ टैगोर ने कहा था कि  हर बच्चा इस सन्देश के साथ आता है की ईश्वर अभी इंसान से निराश नहीं हुआ है | उन्हीं नन्हें मुन्ने बच्चों के लिए समर्पित है एक खास दिन यानी  बच्चों का दिन … बाल दिवस | आइये सब से पहले जानते हैं इस बाल दिवस के बारे में ……. बाल दिवस का इतिहास हमारे देश भारतवर्ष के लिए ये गौरव की बात है कि बच्चों के लिए एक खास अन्तराष्ट्रीय दिन बनाया जाए इस की यू एन ओ में मांग सबसे पहले पूर्व भारतीय रक्षा मंत्री श्री वी के कृष्ण मेनन ने की थी | और पहली बार २० नवम्बर १९५९ को अन्तराष्ट्रीय बाल दिवस मनाया गया | भारत में भी पहले २० नवम्बर को ही बाल दिवस मनाया जाता था | जैसा की सभी जानते हैं कि भारत के प्रथम प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरु जी को बच्चों से बहुत प्यार था | वो बच्चों के साथ खेलते उन्हें दिशा दिखाते व् उनके साथ खेलते थे | उन्होंने बच्चों के लिए कई कल्याण कारी योजनायें भी शुरू की | बच्चे भी उन्हें बहुत प्यार करते थे , और प्यार से उन्हें चाचा नेहरु कहा करते थे | बच्चों द्वारा प्यार से कहा गया चचा नेहरु बाद में नेहरु जी का मानो उपनाम पड़ गया | २७ मई १९६४ को नेहरु जी की मृत्यु के बाद उनके बच्चों के प्रति प्रेम को सम्मान देने के लिए उनके जन्म दिन १४ नवम्बर को बाल दिवस के रूपमें मनाये जाने की घोषणा कर दी गयी |तब से भारत में नेहरु जी की जयंती यानि १४ नवम्बर को बाल दवस मनाया जाने लगा | कैसे मनाया जाता है बाल दिवस बाल दिवस को मानाने में तमाम सरकारी व् गैर सरकारी आयोजन होते हैं | स्कूलों में रंगारंग कार्यक्रम , भाषण व् निबंध प्रतियोगिताएं होती है |बच्चे जिसमें बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं | बाल दिवस पर बच्चों स्कूल में यूनिफार्म में न आने की छूट होती है | जिससे बच्चों को स्कूल में कुछ खास होने का अहसास होता है | कई स्कूलों में प्रिसिपल व् टीचर्स मिल कर बच्चों के लिए कार्यक्रम बनाते हैं | रोज सजा देने वाले या अनुशासन में रहने की ताकीद देने वाले टीचर्स जब इस कार्यक्रम को  बच्चों की ख़ुशी के लिए करते हैं तो बच्चे बहुत आनन्दित होते हैं | कार्यक्रम के अंत में बच्चों को मिठाइयाँ व् फ्रूट्स बांटे जाते हैं | स्कूलों के अतरिक्त टेलीविजन व् रेडियों में भी बाल दिवस पर बच्चों के लिए  खास कार्यक्रम होते हैं | कई कार्यक्रम ऐसे होते हैं जिनमें बच्चे बढ़ चढ़ कर भाग लेते हैं | कई स्वयं सेवी संस्थाएं भी बच्चों के लिए कार्यकर्मों का आयोजन करती हैं | बच्चों को मिठाइयाँ  व् फल आदि वितरित किये जाते हैं | बाल दिवस पर आइये सोंचे बच्चों के बारे में                             बाल दिवस बच्चों का दिन है | इसे स्कूल , संस्थाओं , व् सरकारी तौर पर मनाया जाता है | पर एक  दिन रंगारंग कार्यक्रम कर के मिठाइयाँ बाँट देना बच्चों की सारी  समस्याओं का हल है | जिन्हें आज के बच्चे झेल रहे हैं  | एक नागरिक के तौर पर हमें उन समस्याओं को समझना होगा व् उनका हल निकालना होगा | आइये उस बारे में क्रमवार सोंचे … कन्या शिशु की भ्रूण हत्या .. जन्म लेने का अधिकार ईश्वर का दिया हुआ अधिकार है | परन्तु आज इतने प्रचार के बावजूद कन्या शिशु की भ्रूड हत्या हो रही है | इसके आंकड़े दिन पर दिन बढ़ते ही जा रहे है | ये न सिर्फ अमानवीय बल्कि अत्यंत पीड़ादायक प्रक्रिया है | हमारी कोशिश यह होनी चाहिए कि हम अपने स्तर पर इसे रोकने का प्रयास करें | मतलब हम अपने परिवार में ऐसा नहीं होने देंगें | बाल श्रम की समस्या सड़कों पर कूड़ा बीनते बच्चे , होटल ढाबों में काम करते बच्चे , कार साफ़ करते बच्चे , हमारे घरों में मेड के रूपमें काम करते बच्चे | ये सब भी बच्चे हिन् हैं जो बचपन में खिलौने व् किताबों के स्थान पर श्रम कर के अपना व् अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं | इनसे इनका पूरा बचपन छीना जा चुका है | क्या हमारा कर्तव्य नहीं की हम इन बच्चों को बाल श्रम से निकाल कर सरकारी स्कूल में पढने की व्यवस्था करवाने की कोशिश करे | सरकारी स्कूल में बच्चों को मुफ्त शिक्षा व् भोजन मिलता है |केवल जरूरत है इनके माँ – पिता को समझाने की , कि जिम्मेदारी परिवार का पेट पालना नहीं है बल्कि आप की जिम्मेदारी है की आप इनको शिक्षा देकर इस गरीबी के जीवन से निकलने में मदद करें | बच्चों का शारीरिक व् मानसिक शोषण की समस्या  अभी हाल में कैलाश सत्यार्थी के व्यक्तव्य ने हर संवेदनशील व्यक्ति की आँखों में आंसूं ला दिए , जब उन्होंने बताया की न जाने कितने बच्चे यौन शोषण का शिकार होते हैं | ये शिकार सिर्फ लडकियां ही नहीं लड़के भी होते हैं | अफ़सोस ये ज्यादातर पड़ोस के भैया , मामा , चाचा , अंकल कहे जाने वाले लोगों के द्वारा होता है | शिकार होते बच्चे किस भय से अपने माता – पिता को उस समस्या के बारे में नहीं बता पाते | इन सब कारणों की तह में जाना है | छोटे बच्चों को गुड टच व् बैड टच के बारे में समझाना व् उनके माता –पिता को समझाना की अपने बच्चे की शारीरिक व् मानसिक बदले व्यवहार को नज़र अंदाज न करें | एकसभ्य  नागरिक के रूप में हमारा कर्तव्य है | लडकियों की शिक्षा  अभी भी हमारा समाज लड़का लड़की में भेद भाव करता है | लड़कियों की शिक्षा की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं हैं | जहाँ है भी वहां माता … Read more

विश्वास

                                                                                      ईश्वर है की नहीं इस बात पर भिन्न भिन्न मत हो सकते हैं | और मत के अनुसार फल भी अलग – अलग होते हैं |   जो लोग ईश्वर पर ही नहीं किसी भी चीज पर अटूट विश्वास करते हैं  | उनके काम अवश्य पूरे होते हैं | आधुनिक विज्ञानं इसे subconscious mind  की चमत्कारी शक्ति के रूप में परिभाषित करती है |हमारा विश्वास हमारे आगे परिस्तिथियों का सृजन करता है | अविश्वास के कारण जीवन के हर क्षेत्र में नुक्सान उठाना पड़ता है और कभी – कभी खुद जीवन से भी | ऐसी ही एक कहानी है विशाल मल्होत्रा की |  hindi motivational story on faith विशाल मल्होत्रा को पहाड़ पर चढने का बहुत शौक था |बर्फ से ढके ऊँचे  – ऊँचे पर्वत उसे बहुत लुभाते थे |   यूँ तो विशाल दिल्ली में रहता था | पर उसने पर्वतारोहण का प्रशिक्षण लिया था | अक्सर वो हिमालय की वादियों में अपने दल के साथ गर्मी की छुट्टियों में हिमालय पर फतह करने जाता था | इस दल के अटूट विश्वास  और उत्साह के कारण हिमालय भी कितनी बार दयालु हो कर उनके लिए रास्ते बना देता था | विशाल का कांफिडेंस बढ़ता जा रहा था | इस बार अपने घरेलू कार्यक्रमों में व्यस्त होने के कारण मई के पर्वतारोहण  शिविर में अपने दोस्तों के साथ नहीं  जा सका था | दिसंबर  में एक दूसरा दल जाने वाला था | विशाल ने उनके साथ जाने की हामी भर दी | हालांकि दोस्तों ने समझाया था कि वो ज्यादा प्रशिक्षित दल है | वो जा सकता है | पर तुम्हारा अभी सर्दी के दिनों में पहाड़ों पर चढ़ने का प्रशिक्षण इतना नहीं हुआ है | पहाड़ों पर दिसंबर में बर्फ गिरने लगती है | मौसम खराब होने के कारण चढ़ना मुश्किल होता है | पर विशाल ने उनकी एक न सुनी | उसने कह मैंने उतना नहीं सीखा है तो क्या मैं कोशिश तो कर सकता हूँ | हम सब साथ में रहेंगे तो डर कैसा ? नियत समय पर विशाल अपने दल के साथ पर्वत पर चढ़ाई करने चला गया |एक दिन जोर का बर्फीला तूफान आया | सारा दल तितिर- बितिर हो गया | शाम घनी हो चली थी | अँधेरे में कुछ दिखाई नहीं दे रहा था | विशाल पागलों की तरह अपने साथियों को ढूंढ रहा था | अचानक से एक तेज हवा का झोंका आया | विशाल अपना संतुलन नहीं बनाये रख सका | वो अपने रस्सी के सहारे हवा में झूल गया | अब सुबह तक कुछ नहीं हो सकता था | मृत्यु निश्चित थी | विशाल जोर जोर से ईश्वर को रक्षा के लिए पुकारने लगा | तभी आसमान से आवाज़ आई | मैं तुम्हारी अवश्य रक्षा करूँगा | पहले तुम बताओ तुम मुझ पर कितना विश्वास करते हो | विशाल लगभग रोते हुए बोला ,” हे ईश्वर मुझे बचा लो | मैं आप पर पूरा विश्वास करता हूँ | आसमान से फिर आवाज़ आई ,” क्या तुम सच कह रहे हो ?” हाँ मैं बिलकुल सच कह रहा हूँ ,कृपया मुझे बचा लो , विशाल ने लगभग गिडगिडाते हुए कहा | आसमान से फिर आवाज़ आई ,” ठीक है तो तुम अपनी रस्सी काट दो |” विशाल का हाथ अपनी रस्सी पर गया नीचे खाई की गहराई सोंच कर उसे अजीब सी सिहरन हुई |  उसने आसमान की और देखा फिर रस्सी को छुआ … सुबह जब पर्वतारोही बचाव दल हेलीकाप्टर से कल के तूफ़ान में फँसे  हुए लोगों को निकालने आया तो उन्हें रस्सी से झूलता हुआ विशाल का शव मिला जो रात की सर्दी बर्दाश्त नहीं कर पाया था और बुरी तरह अकड  गया था | दल ने देखा की विशाल जमीन से सिर्फ १० फुट ऊपर था | अगर वो रस्सी काट देता तो उसकी जान बच जाती | दोस्तों , अगर विशाल ने आकाशवाणी की बात मान कर अपनी रस्सी काट दी होती तो उसकी जान बच सकती थी | बात सिर्फ ईश्वर पर विश्वास या अविश्वास की नहीं है | हमें जिस जिस चीज पर जैसा – जैसा विश्वास होता है वही परिणाम हमारे जीवन में आते हैं | जिनको विश्वास होता  है की वो जीवन में कुछ कर सकते हैं वो कर सकते हैं | जिनको विश्वास होता है नहीं कर सकते वो नहीं कर पाते हैं | कई लोगों ने विश्वास के दम पर असाध्य रोग भी ठीक किये हैं और अनेकों लोग अविश्वास के कारण छोटे छोटे रोगों में बहुत तकलीफ पाते है व् परेशान  रहते हैं | दरसल अटूट विश्वास ईश्वर पर हो , खुद पर , डॉक्टर पर या किसी अन्य पर | यह हमारी आत्म शक्ति को बढ़ा देता है | हमारी आत्म शक्ति कोई भी चमत्कार कर सकती है | नीलम गुप्ता आपको  motivational story “विश्वास ” कैसी लगी   | अपनी राय अवश्य व्यक्त करें | हमारा फेसबुक पेज लाइक करें | अगर आपको “अटूट बंधन “ की रचनाएँ पसंद आती हैं तो कृपया हमारा  फ्री इ मेल लैटर सबस्क्राइब कराये ताकि हम “अटूट बंधन”की लेटेस्ट  पोस्ट सीधे आपके इ मेल पर भेज सकें 

विशाखापट्टनम रेप -संवेदनाएं भी अब आभासी हो गयी हैं

विशाखापट्टनम का रेलवे स्टेशन साक्षी है एक ऐसे क्रूरतम कृत्य का जिसे पशुता कहना भी पशुओं का अपमान होगा |एक स्त्री के साथ हुई इस वीभत्स घटना का अपराधी केवल एक गंजेड़ी नर पिशाच ही नहीं हर वो आदमी है जो उस समय वहां मौजूद था , जिसने उस घटना को देख कर भी अनदेखा कर दिया | जिसने भी उस घटना को देखकर अपना रास्ता बदल दिया या जिसने भी उस घटना को देखकर सिर्फ शोर मचाना ही अपन कर्तव्य समझा | और उस घटना को अंजाम देने वाले से कम दोषी नहीं हैं वो जो उस घटना का वीडियो बनाते रहे | जिन्हें उस औरत से कहीं ज्यादा चिंता थी अपने फेसबुक अपलोड की | ढेरों लाइक कमेंट उनके झूठे अहंकार को संतुष्ट कर के उनका दिन बना सकते थे | फिर क्या फर्क पड़ता है की किसी की पूरी जिंदगी बिगड़ जाए | विशाखापत्तनम  -सरेआम होता रहा रेप                आज मैं बात कर  रही हूँ  विशाखा पट्टनम रेप केस की | जहाँ एक औरत के साथ भीड़ भरे रेलवे स्टेशन पर सरेआम रेप होता रहा और भीड़ ने उसे रोकने का प्रयास भी नहीं किया | घटना के अनुसार  गंजी सिवा जिसकी उम्र २० वर्ष है २२ अक्टूबर को दिन दोपहर शराब के नशे में रेलवे स्टेशन जाता है | वहां फुट पाथ पर सो रही महिला के साथ सरेआम रेप करता है | सामने से लोग गुज़र रहे है | किसी को कहीं जाना हैं | कोई अपने परिवार को लेने आया है,  कोई किसी को छोड़ने आया है उस भीड़ को केवल अपने परिवार से मतलब है |  महिला की दर्द भरी चीखें जो शायद पर्वतों को भी हिला दें | किसी को सुनाई ही नहीं देती | अलबत्ता कुछ लोग हैं जो सुनते हैं , रुकते हैं , कुछ आवाजे  भी करते हैं पर इतने लोग मिलकर एक निहत्थे शराबी से एक महिला को नहीं बचा पाते | क्यों ? क्योंकि वो बचाना ही नहीं चाहते थे |  इन दर्द से बेपरवाह कुछ उत्त्साही युवक  वीडियो बनाने लग जाते हैं |लाइव रेप …  आभासी दुनिया में  तहलका मच जाएगा | वो औरत जो भिखारी है अर्द्धविक्षिप्त है किसी की लगती ही क्या है ?  हमें तो लाइक कमेन्ट से मतलब है | फलाने ने जब एक पगली से रेप की कविता डाली थी वो भी रात के अँधेरे में तो कितने लाइक आये  थे | ये तो दिन के उजालों में हो रहा है | ये पोस्ट तो वायरल होगी | अफ़सोस की वायरल ये पोस्ट नहीं ये घृणित चलन हो रहा है हालांकि  अब अपराधी पकड़ा जा चुका है और पीड़ित महिला का अस्पताल में इलाज़ चल रहा है | पर किसी घटना को समय रहते रोकने के स्थान पर हम समय निकल जाने के बाद बस मरहमपट्टी में विश्वास करते हैं | ये जानते हुए की ये घाव कभी नहीं भरते | हमारी संवेदनाएं भी बस आभासी हो गयी हैं   संवेदन हीनता की ये हद है की जिस घटना में  हमारा कोई पीड़ित नहीं है उस घटना से हमें कुछ लेना देना नहीं है |हम सब को जल्दी है अपने काम की , नाम की , पैसे की और खुशियों की | समाज के लिए वक्त निकालने को वक्त ही कहाँ है हमारे पास | हम ये भूल जाते हैं की जब  पास के घर में आग लग रही है तो हमारा घर भी सुरक्षित नहीं है | एक चिंगारी हमारे घर को भी स्वाहा  कर सकती है | महिलाओं पर बढ़ते हुए शारीरिक अत्याचार  क्या इस बात का प्रमाण नहीं है की अब हम समाज में नहीं रहते | मुर्दा लोगों की बस्ती में रहते हैं | जी हाँ मुर्दा लोग जो जीते हैं चलते हैं खाते हैं पर जिनकी संवेदनाएं मर गयी हैं | या आभासी दुनिया में दिन रात अपलोड करते हुए  हमारी संवेदनाएं भी बस आभासी हो गयी हैं  नीलम गुप्ता  यह भी पढ़ें … दोहरी जिंदगी की मार झेलती कामकाजी स्त्रियाँ सपने जीने की कोई उम्र नहीं होती करवाचौथ के बहाने एक विमर्श संवेदनाओं को झकझोरते लेख ” विशाखापट्टनम रेप -संवेदनाएं भी अब  आभासी हो गयी हैं “ पर अपने विचार व्यक्त करें |  हमारा फेसबुक पेज लाइक करें व् “अटूट बंधन “ का फ्री इ मेल सबस्क्रिप्शन लें | जिससे हम लेटेस्ट पोस्ट सीधे आपके इमेल पर भेज सकें | 

मनायें इको फ्रेंडली दीपावली

दीपावली का त्यौहार यानी खुशियों का त्यौहार | पांच दिन चलने वाले इस दीपोत्सव का बच्चे तो बच्चे बड़ों को भी इंतज़ार रहता है | क्यों न हो | घर का रंग – रोगन , साफ़ – सफाई नए कपडे , गहने , घर का सामान , मित्रों पड़ोसियों को दिए जाने वाले गिफ्ट्स के साथ  माँ लक्ष्मी के स्वागत की तैयारी | दीप बिजली की झालरों से रात के अंधकार को   पछाड़ती  दीपावली |खुशियों को मनाने के कितने रंग हैं |कितना ढंग हैं | क्या जरूरत है इसमें पटाखों के शोर और धुएं की |क्यों न हम इको फ्रेंडली दीपावली मनाएं |   इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में एक नया  कदम  इको फ्रेंडली दीपावली मनाने की दिशा में दिल्ली एन सी आर में पटाखों की बिक्री व् उपयोग पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा लगायी गयी रोक एक अच्छा फैसला है |पिछले साल दीपावली और उसके बाद पंजाब में जलाई गयी फसलों से दिल्ली किस तरह गैस चैंबर में तब्दील हुई थी | इसको भुक्त भोगी ही बता सकता है | हालंकि ये फैसला पूरे देश में और हर त्यौहार पर होना चाहिए | पटाखों का कोई धर्म नहीं होता पर पर्यावरण की रक्षा  करना हमारा धर्म है | दीपावली या अन्य त्योहारों पर पटाखों को जलाने के अलावा अब बात- बात पर पटाखों को जलाने का फैशन चल पड़ा है | क्रिकेट मैच में जीत तो जीत 4 या 6 रन बनने  पर भी लोग पटाखे छोड़ने लगते हैं | हमेशा से नहीं जलाए जाते थे पटाखे  दीपावली पर हमेशा से पटाखे नहीं जलाए जाते थे | शगुन के नाम पर ये कब शुरू हुए कहा नहीं जा सकता | अपने बचपन की दीपावली याद करती हूँ तो बहुत कम पटाखे जलाए जाते थे | जब इसके प्रदूषण के रूप में दुष्परिणाम सामने आने लगे तो खिलाफ जन – जागरूकता के अभियान चलाये जाने लगे | “ से नो टू क्रैकर्स” अभियान लगभग हर साल हर स्कूल में चलाया जाता है | बच्चे स्लोगन चार्ट बना कर अपना होम वर्क पूरा कर लेते हैं |हकीकत में  हर साल जलाए जाने वाले पटाखों की संख्या  पिछले साल से बढ़ रही है | कुछ % लोगों को बात समझ में आई है | फिर भी ये सच है की इसे हम सामाजिक रूप से समझा – बुझा कर कम करने में असफल रहे हैं | कानूनन बैन होने के बाद शायद कुछ कमी आये | पटाखों से होती हैं दुर्घटनायें  पर्यावरण के अतिरिक्त पटाखे धन का अपव्यय भी हैं | हालांकि ये किसी का निजी फैसला मान कर अनदेखा किया जा सकता है | परन्तु पटाखों के कारण बहुत सी दुर्घटनायें भी घटती है |कितने लोग दीपावली के दिन बच्चों को लेकर डॉक्टर के यहाँ दौड़ते हैं | इसके अतिरिक्त सांस लेने में परेशानी , दमा , अस्थमा , ब्लड  प्रेशर , आदि के मरीजों को भी पटाखों से दिक्कत होती है |  कितने बच्चे पटाखे की फैक्ट्री में काम करते हैं व् उन्हें बनाते समय और पटाखे जलाते समय घायल हो जाते हैं | जरा सी थ्रिल के नाम पर हम अपने बच्चों के हाथों में ऐसी चीज दे हीं क्यों जो उन्हें घायल कर सकती है | पर्यावरण के नुक्सान के आगे कम है व्यापारियों का नुक्सान  जिन लोगों की पटाखों की फैक्ट्री है , जो लोग वहां काम करते हैं या जिन व्यापारियों ने दीपावली के मद्देनज़र पहले से ही पटाखे खरीद लिए हैं | उनकों जो नुक्सान हुआ है | उसमें सरकार कुछ राहत दे तो बेहतर है | हालांकि पटाखों से जो पर्यावरण को नुक्सान पहुँचता है उससे ये नुक्सान बहुत कम है |क्योंकि व्यापारियों का नुक्सान तो अल्पकालिक है | पर पर्यावरण को जो नुक्सान झेलना पड़ेगा वो बहुत लम्बे समय तक असरकारी होगा | क्या हम अपने बच्चों के लिए ऐसी पृथ्वी छोड़ना  चाहते हैं जहाँ उनका दम घुटे |  दीपावली ही नहीं हर त्यौहार व् अवसर पर लगे पटाखों पर बैन                                          ये सच है की अगर दीपावली पर ही पटाखों पर बैन लगता है तो बहुत से लोगों को ये लग सकता है की हमारे त्यौहार पर ही सरकार विरोध करती है | जबकि पटाखे अनेक अवसरों पर छुडाये जाते हैं | और पटाखों का धुंआ दीपावली , क्रिसमस ईद और न्यू इयर में पर्यावरण को नुक्सान पहुँचाने में भेद नहीं करता है | अतः जरूरी है की साल भर पटाखों पर बैन लगे | और पर्यावरण  की रक्षा हो |                         मित्रों , दीपावली खुशियों का त्यौहार है | परिवार और अपनों के साथ बिताये गए खुशनुमा पलों वक्त का धमाका पटाखों के धमाके से कहीं ज्यादा कहीं ज्यादा जोरदार है और इको फ्रेंडली भी |  नीलम गुप्ता 

जब कालिदास नन्ही बच्ची से शास्त्रार्थ में पराजित हुए

 नीलम गुप्ता महाकवि कालिदास के कंठ में साक्षात सरस्वती का वास था. शास्त्रार्थ में उन्हें कोई पराजित नहीं कर सकता था. अपार यश, प्रतिष्ठा और सम्मान पाकर एक बार कालिदास को अपनी विद्वत्ता का घमंड हो गया.उन्हें लगा कि उन्होंने विश्व का सारा ज्ञान प्राप्त कर लिया है और अब सीखने को कुछ बाकी नहीं बचा. उनसे बड़ा ज्ञानी संसार में कोई दूसरा नहीं. एक बार पड़ोसी राज्य से शास्त्रार्थ का निमंत्रण पाकर कालिदास विक्रमादित्य से अनुमति लेकर अपने घोड़े पर रवाना हुए. . गर्मी का मौसम था. धूप काफी तेज़ और लगातार यात्रा से कालिदास को प्यास लग आई. थोङी तलाश करने पर उन्हें एक टूटी झोपड़ी दिखाई दी. पानी की आशा में वह उस ओर बढ चले. झोपड़ी के सामने एक कुआं भी था.कालिदास ने सोचा कि कोई झोपड़ी में हो तो उससे पानी देने का अनुरोध किया जाए. उसी समय झोपड़ी से एक छोटी बच्ची मटका लेकर निकली. बच्ची ने कुएं से पानी भरा और वहां से जाने लगी. . कालिदास उसके पास जाकर बोले- बालिके ! बहुत प्यास लगी है ज़रा पानी पिला दे. बच्ची ने पूछा- आप कौन हैं ? मैं आपको जानती भी नहीं, पहले अपना परिचय दीजिए. कालिदास को लगा कि मुझे कौन नहीं जानता भला, मुझे परिचय देने की क्या आवश्यकता ?फिर भी प्यास से बेहाल थे तो बोले- बालिके अभी तुम छोटी हो. इसलिए मुझे नहीं जानती. घर में कोई बड़ा हो तो उसको भेजो. वह मुझे देखते ही पहचान लेगा. मेरा बहुत नाम और सम्मान है दूर-दूर तक. मैं बहुत विद्वान व्यक्ति हूं. . कालिदास के बड़बोलेपन और घमंड भरे वचनों से अप्रभावित बालिका बोली-आप असत्य कह रहे हैं. संसार में सिर्फ दो ही बलवान हैं और उन दोनों को मैं जानती हूं. अपनी प्यास बुझाना चाहते हैं तो उन दोनों का नाम बाताएं ? . थोङा सोचकर कालिदास बोले- मुझे नहीं पता, तुम ही बता दो मगर मुझे पानी पिला दो. मेरा गला सूख रहा है. बालिका बोली- दो बलवान हैं ‘अन्न’ और ‘जल’. भूख और प्यास में इतनी शक्ति है कि बड़े से बड़े बलवान को भी झुका दें. देखिए प्यास ने आपकी क्या हालत बना दी है.कलिदास चकित रह गए. लड़की का तर्क अकाट्य था. बड़े-बड़े विद्वानों को पराजित कर चुके कालिदास एक बच्ची के सामने निरुत्तर खङे थे. बालिका ने पुनः पूछा- सत्य बताएं, कौन हैं आप ? वह चलने की तैयारी में थी. . कालिदास थोड़ा नम्र होकर बोले-बालिके ! मैं बटोही हूं. मुस्कुराते हुए बच्ची बोली- आप अभी भी झूठ बोल रहे हैं. संसार में दो ही बटोही हैं. उन दोनों को मैं जानती हूं, बताइए वे दोनों कौन हैं ? तेज़ प्यास ने पहले ही कालिदास की बुद्धि क्षीण कर दी थी पर लाचार होकर उन्होंने फिर से अनभिज्ञता व्यक्त कर दी. . बच्ची बोली- आप स्वयं को बङा विद्वान बता रहे हैं और ये भी नहीं जानते ? एक स्थान से दूसरे स्थान तक बिना थके जाने वाला बटोही कहलाता है. बटोही दो ही हैं, एक चंद्रमा और दूसरा सूर्य जो बिना थके चलते रहते हैं. आप तो थक गए हैं. भूख प्यास से बेदम हैं. आप कैसे बटोही हो सकते हैं ?. इतना कहकर बालिका ने पानी से भरा मटका उठाया और झोपड़ी के भीतर चली गई. अब तो कालिदास और भी दुखी हो गए. इतने अपमानित वे जीवन में कभी नहीं हुए. प्यास से शरीर की शक्ति घट रही थी. दिमाग़ चकरा रहा था. उन्होंने आशा से झोपड़ी की तरफ़ देखा. तभी अंदर से एक वृद्ध स्त्री निकली. उसके हाथ में खाली मटका था. वह कुएं से पानी भरने लगी. अब तक काफी विनम्र हो चुके कालिदास बोले- माते पानी पिला दीजिए बङा पुण्य होगा. . स्त्री बोली- बेटा मैं तुम्हें जानती नहीं. अपना परिचय दो. मैं अवश्य पानी पिला दूंगी. कालिदास ने कहा- मैं मेहमान हूँ, कृपया पानी पिला दें. स्त्री बोली- तुम मेहमान कैसे हो सकते हो ? संसार में दो ही मेहमान हैं. पहला धन और दूसरा यौवन. इन्हें जाने में समय नहीं लगता. सत्य बताओ कौन हो तुम ? . अब तक के सारे तर्क से पराजित हताश कालिदास बोले- मैं सहनशील हूं. अब आप पानी पिला दें. स्त्री ने कहा- नहीं, सहनशील तो दो ही हैं. पहली, धरती जो पापी-पुण्यात्मा सबका बोझ सहती है. उसकी छाती चीरकर बीज बो देने से भी अनाज के भंडार देती है.दूसरे, पेड़ जिनको पत्थर मारो फिर भी मीठे फल देते हैं. तुम सहनशील नहीं. सच बताओ तुम कौन हो ? कालिदास लगभग मूर्च्छा की स्थिति में आ गए और तर्क-वितर्क से झल्लाकर बोले- मैं हठी हूं. . स्त्री बोली- फिर असत्य. हठी तो दो ही हैं- पहला नख और दूसरे केश, कितना भी काटो बार-बार निकल आते हैं. सत्य कहें ब्राह्मण कौन हैं आप ? पूरी तरह अपमानित और पराजित हो चुके कालिदास ने कहा- फिर तो मैं मूर्ख ही हूं.नहीं तुम मूर्ख कैसे हो सकते हो. मूर्ख दो ही हैं. पहला राजा जो बिना योग्यता के भी सब पर शासन करता है, और दूसरा दरबारी पंडित जो राजा को प्रसन्न करने के लिए ग़लत बात पर भी तर्क करके उसको सही सिद्ध करने की चेष्टा करता है. . कुछ बोल न सकने की स्थिति में कालिदास वृद्धा के पैर पर गिर पड़े और पानी की याचना में गिड़गिड़ाने लगे. वृद्धा ने कहा- उठो वत्स ! आवाज़ सुनकर कालिदास ने ऊपर देखा तो साक्षात माता सरस्वती वहां खड़ी थी. कालिदास पुनः नतमस्तक हो गए.माता ने कहा- शिक्षा से ज्ञान आता है न कि अहंकार. तूने शिक्षा के बल पर प्राप्त मान और प्रतिष्ठा को ही अपनी उपलब्धि मान लिया और अहंकार कर बैठे इसलिए मुझे तुम्हारे चक्षु खोलने के लिए ये स्वांग करना पड़ा. . कालिदास को अपनी गलती समझ में आ गई और भरपेट पानी पीकर वे आगे चल पड़े. मित्रों घमंड किसी को भी गलत ही होता है | अगर आप दूसरों से ज्यादा जानते हैं और ज्यादा योग्य हैं तो दूसरों को नीचा समझने के स्थान पर ईश्वर को धन्यवाद दें की आपमें जानने की इच्छा है क्योंकि ज्ञान का कोई आर – पार नहीं है | हम सब अभी भी एक बूँद ही हैं | रिलेटेड पोस्ट जमीन में गड़े हैं शैतान का सौदा … Read more

छुट्टी का दिन

नीलम गुप्ता आज छुट्टी का दिन है ……… आज  बच्चे देर से उठेंगे तय नहीं है कब नहायेंगे नहायेंगे भी या नहीं घर भर में फ़ैल जायेंगी किताबें , अखबार के पन्ने , मोज़े , कपडे , यहाँ वहां इधर – उधर सारा दिन चलेगा  टीवी , मोबाइल और कम्प्यूटर देखी  जायेगी फिल्म , होगी चैट खेले जायेंगे वीडियो गेम आज छुट्टी का दिन जो है … आज साहब उठेंगे देर से बिस्तर पर ही पियेंगे चाय फिर घंटो पढेंगे अखबार जमेगी दोस्तों की महफ़िल लगेंगे कहकहे करेंगे तफरी बुलायेंगे उसे पास ना नुकुर पर हवा में उछाल देंगे वही पुराना जुमला ” आखिर तुम सारा दिन करती क्या रहती हो आज छुट्टी का दिन जो है ………. वो उठेगी थोडा जल्दी कामवाली ने ले रखी है छुट्टी निपटा लेगी बर्तन सबके उठने से पहले बदल देगी रसोई के अखबार आज धुलेंगे ज्यादा कपडे पूरी करने है कुछ अच्छा बनाने की फरमाइश लानी है हफ्ते भर की सब्जी तरकारी बनाना है बच्चों का टाइम टेबल आज ही टाइम है सजाना है करीने से घर आज छुट्टी का दिन जो है……..

शैतान का सौदा

एक बार  एक पादरी रास्ते पर टहल रहा था। उसने एक आदमी को देखा, जिसे अभी-अभी किसी नुकीले हथियार से मारा गया था। वह आदमी अपने चेहरे के बल रास्ते पर गिरा हुआ था, सांस के लिए संघर्ष कर रहा था और दर्द से कराह रहा था। पादरियों को हमेशा यह सिखाया जाता है कि करुणा सबसे बड़ी चीज होती है, प्रेम का मार्ग ही ईश्वर का मार्ग है। स्वभावतः वह उस आदमी की तरफ दौड़ा। उसने उसे सीधा किया और देखा तो वह खुद शैतान ही था। वह अचंभित रह गया, डर कर तुरंत पीछे की तरफ हट गया। शैतान उससे प्रार्थना करने लगा, कृपया मुझे अस्पताल ले चलो! कुछ करो! पादरी थोड़ा हिचकिचाया और बोला, तुम तो शैतान हो, तुम्हें भला मुझे क्यों बचाना चाहिए? तुम ईश्वर के खिलाफ हो। भला मैं तुम्हें क्यों बचाउं? तुम्हें तो मर ही जाना चाहिए। पूरा पादरीपन शैतानों को भगाने के संबंध में है और ऐसा लगता है कि किसी ने ऐसा करके सचमुच एक अच्छा काम किया है। मैं तुम्हें बस मर जाने दूंगा।’शैतान ने कहा, ‘ऐसा मत करो। जीसस तुमसे कह गए हैं कि अपने शत्रु से भी प्रेम करो और तुम जानते हो कि मैं तुम्हारा शत्रु हूं। तुम्हें जरूर मुझसे प्रेम करना चाहिए।’फिर पादरी ने कहा, ‘मुझे पता है, शैतान हमेशा धर्म ग्रंथों से उदाहरण देते हैं। मैं इस चक्कर में पड़ने वाला नहीं हूं।’ तब शैतान बोला, ‘मूर्खता मत करो। अगर मैं मर गया, तो फिर चर्च कौन आएगा? ईश्वर को कौन खोजेगा? फिर तुम्हारा क्या होगा? ठीक है, तुम ग्रंथों की नहीं सुनते हो, लेकिन अब मैं धंधे की बात कर रहा हूं, बेहतर होगा कि तुम सुनो। ’पादरी समझ गया कि वह ठीक कह रहा है। जब शैतान नहीं होंगे, तो चर्च कौन आएगा? लोग चर्च और मंदिर ईश्वर के कारण नहीं जाते, बल्कि इसलिए जाते हैं क्योंकि उन्हें शैतान की चिंता होती है। अगर शैतान मर जाता है, फिर पादरी का क्या होगा? इससे धंधे की अक्ल आई। उसने तुरंत शैतान को अपने कंधों पर डाला और उसे अस्पताल ले गया। दोस्तों , धर्म के नाम पर हम ज्यादातर पाखंड में जीते हैं  | धर्मिक  होना व धर्म  का अपने स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करना दो अलग – अलग बातें हैं | बेहतर है की हम इस अंतर को समझे | जो कट्टरता अपनी दुकान चलने के लिए इन  तथाकथित पाखंडी  धर्म गुरुओं द्वारा परोसी जा रही है | उसका विरोध करें |  यह भी पढ़ें ……….. मर – मर कर जीने से अच्छा है जी कर मरें मेंढक कैसे जीवित रहा ईश्वर का काम काज अपना – अपना स्वार्थ